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“अहिल्या” एक ऐसी निरापराध स्त्री की कथा!

जिसे कष्ट और श्राप मुक्त करने के लिये भगवान को भी करना पड़ा अपने युगों के क्रम में परिवर्तन, और लेना पड़ा श्रीराम अवतार!

ब्रह्माजी ने अपने तपोबल से एक अत्यंत रूपमती स्त्री की रचना की। उसका नाम ब्रह्मा जी ने अहिल्या (जिसमें कोई भी हिल्य “कमी” न हो) रखा। अहिल्या का रूप इतना सुन्दर था कि उसके आगे स्वर्ग की सभी अप्सराएँ भी कुछ नहीं थीं। उसे देख कर हर कोई मोहित हो जाये। सभी देव उससे विवाह करने को आतुर थे। देवराज इन्द्र की इच्छा थी कि वह रूपवान स्त्री अहिल्या उनके देवलोक की अप्सरा बने।

अहिल्या ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थी इसलिए उन्होंने उसके विवाह के लिए एक प्रतियोगिता रखी जिसमें गौतम ऋषि विजयी हुये। अतः ब्रह्मा जी ने विधिवत अहिल्या का विवाह ऋषि गौतम से कर दिया। अहिल्या एक पतिव्रता स्त्री थी। वह गौतम ऋषि के साथ उनके आश्रम में अपना जीवन ऋषि सेवा में व्यतीत करने लगी।

देवराज इन्द्र अहिल्या के रूप पर इतना अधिक मोहित थे कि उन्होंने चन्द्र देव के साथ मिलकर एक कुटिल योजना बना ड़ाली।

गौतम ऋषि प्रातःकाल मुर्गे की पहली बाँग की आवाज पर उठ कर मंगलाचरण के लिये गंगा नदी के तट पर चले जाते थे। ऋषि की इसी दिनचर्या को देखते हुए इन्द्र ने चन्द्र देव को मुर्गे के रूप में गौतम ऋषि के द्वार पर बाँग देने के लिए वाध्य किया।

मुर्गे की बाँग की आवाज सुन गौतम ऋषि अपनी नित्य की दिनचर्चा की तरह उठ कर गंगा नदी के तट की ओर चल दिये किन्तु जब वे गंगा जी के तट पर पहुंच गये जैसे ही स्नान के लिए वे गंगा जी में प्रविष्ट होने लगे तो उन्होंने पाया की गंगा मईया अभी निंद्रा में हैं, तो वेकिसी अनिष्ट की आशंका से पुनः आश्रम की ओर लौट आये।

इधर गौतम ऋषि के जाने के उपरांत इन्द्र ने गौतम ऋषि का वेश धारण कर लिया तथा निन्द्रालीन अहिल्या के पास जाकर उनका शील भंग कर दिया।

गौतम ऋषि जब पुनः आश्रम में लौट कर आये तो उन्होंने मुर्गे के रूप में चन्द्रमा को छिपे पाया, जिसके असमय बाँग देने के लिए उन्होंने अपना गीला वस्त्र उस पर दे मारा।

वस्त्र लगते ही चन्द्रमा वहाँ से भाग गये। गौतम ऋषि के गीले वस्त्र के निशान आज भी चन्द्रमा पर देखे जा सकते हैं। चन्द्रमा को भगाने के उपरांत गौतम ऋषि अन्दर कुटिया में गये तो वहाँ इन्द्र को उन्होंने अपने वेश में अहिल्या के पास पाया।

जिससे गौतम ऋषि का क्रोध सभी सीमायें पार कर गया। उन्होंने तुरन्त ही इन्द्र को शाप दे दिया, कि जिस कामाग्नि ने द्रवित होकर तूने यह कृत्य किया है आज से तू हजार लिंगी हो जा।

आज के बाद यह कार्य तू कभी नहीं कर सकेगा और देवराज होने के बाद भी कहीं तेरी पूजा ना होगी। निन्द्रा से जाग चुकी अहिल्या को भी अपने साथ हुए छल का आभास हो गया वह क्षमा याचना के लिए गौतम ऋषि के चरणों में गिर पड़ी किन्तु गौतम ऋषि का क्रोध शान्त नहीं हुआ था उन्होंने अहिल्या को भी क्षमा नहीं किया।

उन्होंने अहिल्या से कहा तूने एक स्त्री होते हुए भी इन्द्र के साथ सहयोग कर एक पाषाण (पत्थर) रूपी कृत्य किया है, (ऋषि के रूप में इन्द्र को न पहचान पाने का अपराध) तो तू भी अभी से पाषाण रूप हो जा। अहिल्या निरापराध होते हुए भी उसी समय और उसी मुद्रा में एक पत्थर के रूप में परिवर्तित हो गई।

इन्द्र के इस अत्यंत अशोभनीय कृत्य ने पूरे देव लोक को हिला कर रख दिया। सभी देवताओं को अहिल्या के साथ हुए इस अनैतिक कार्य पर शर्मिंदगी हुई। और सभी देव गौतम ऋषि के पास आकर निरापराध अहिल्या को क्षमा करने की विनती करने लगे। ऋषि का दिया शाप वापस तो नहीं हो सकता किन्तु जब गौतम ऋषि को क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने इस शाप से मुक्त होने का उपाय देवताओं को बताया।

अहिल्या जल्द-से-जल्द शाप मुक्त हो और गौतम ऋषि द्वारा बताये गये शाप के निवारण के लिये सभी देव एकजुट हो भगवान् विष्णु के पास गये और उन्हें पूरी व्यथा कह सुनाई। तथा भगवान् विष्णु से अहिल्या के उद्धार की प्रार्थना की।

त्रेता युग में भगवान् विष्णु ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में अवतार लिया। महर्षि विश्वामित्र ताड़का नामक राक्षसी के वध के लिए अयोध्या से श्रीराम एवं लक्ष्मण जी को साथ ले गये थे।

ताड़का के वध के उपरांत जब वे यज्ञ के लिए आश्रम की ओर प्रस्थान कर रहे थे तो रास्ते में एक सुनसान पड़े आश्रम पर प्रभु श्रीराम की दृष्टि पड़ी जिसके बारे में उन्होंने महर्षि से जानना चाहा तो महर्षि ने बताया कि यह ऋषि गौतम का आश्रम है, तथा अहिल्या के साथ हुई घटना का पूरा वृतांत भी बताया।

तथा अहिल्या के उद्धार के लिये बताये गये उपाय का भी वर्णन किया कि ” गौतम ऋषि ने अहिल्या के उद्धार का उपाय यह बताया था कि जब भगवान् विष्णु स्वयं मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में आकर तुम्हें स्पर्श करेंगे तब तुम इस शाप से मुक्त हो कर उनके पास पुनः आ सकोगी तथा तभी हजार लिंगी इन्द्र भी हजार नेत्री हो जायेंगे।”

सारा वृतांत सुनाने के उपरांत महर्षि ने प्रभु श्रीराम से निरापराध कष्ट भोग रही अहिल्या को स्पर्श कर उसका उद्धार करने को कहा। प्रभु श्रीराम के स्पर्श मात्र से ही अहिल्या पुनः स्त्री रूप में आ गयी तथा प्रभु श्रीराम को प्रणाम कर देवलोक में ऋषि गौतम के पास चली गयीं। तथा उसी समय हजार लिंगी इन्द्र भी हजार नेत्री हो गये इन्द्र को सहस्त्र नेत्री भी कहा जाता है।

यह थी एक निरापराध स्त्री अहिल्या की कथा जिसके उद्धार के लिए भगवान् श्रीहरि विष्णु को मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में अवतार लेना पड़ा था। भगवान् श्रीराम के अवतार के अनेक कारणों में से “अहिल्या उद्धार” भी एक प्रमुख कारण था।

अहिल्या की कथा सदा ही विवादों से ग्रसित रही है, किन्तु यहाँ इस कथा का मंतव्य किसी विवाद को बढ़ावा देने का नहीं है अपितु मंतव्य सिर्फ यह है कि अपराध चाहे इन्द्र का हो या ऋषि गौतम के क्रोध का किन्तु सजा मिली निरापराध स्त्री अहिल्या को युगों तक पाषाण बन कर रहने की। जिसका निवारण करने के लिये स्वयं भगवान् विष्णु को युगों के चक्र में परिवर्तन करके त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अवतार लेना पड़ा।

      

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