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‘पराशर’

पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार हैं। ये व्यास कृष्ण द्वैपायन के पिता थे ।

बड़े होने पर जब पराशर ऋषि को यह पता चला कि उनके पिता को वन में राक्षसों ने खा लिया था, तब वे क्रुद्ध होकर लोकों का नाश करने के लिए उद्यत हो उठे। वसिष्ठ ने उन्हें शांत किया, किंतु क्रोधाग्नि व्यर्थ नहीं जा सकती थी। अत: समस्त लोकों का पराभव न करके पराशर ने राक्षस सत्र का अनुष्ठान किया। राक्षस सत्र में प्रज्वलित अग्नि में राक्षस नष्ट होने लगे। कुछ निर्दोष राक्षसों को बचाने के लिए महर्षि पुलस्त्य आदि ने पराशर से जाकर कहा– “ब्राह्मणों को क्रोध शोभा नहीं देता। शक्ति का नाश भी उसके दिये शाप के फलस्वरूप ही हुआ। हिंसा ब्राह्मण का धर्म नहीं है।”

इसप्रकार समझा-बुझाकर उन्होंने पराशर का यज्ञ समाप्त करवा दिया तथा संचित अग्नि को उत्तर दिशा में हिमालय के आसपास वन में छोड़ दिया। वह आज भी वहाँ पर्व के अवसर पर राक्षसों, वृक्षों तथा पत्थरों को जलाती है।

–महाभारत, आदिपर्व,177-180

‘पराशर’ शब्द का अर्थ

‘पराशर’ शब्द का अर्थ है –

‘पराशृणाति पापानीति पराशरः।’

अर्थात् जो दर्शन-स्मरण करने से ही समस्त पापों का नाश करता है, वही पराशर है।

आचार्य सायण ने पराशर शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है –

‘हे पराशर परागत्य शृणाति हिनस्ति शत्रुन् इति पराशर:।’

अर्थात् शत्रुओं को परास्त करके उन्हें नष्ट कर देने वाले को पराशर कहते हैं।

                       – सायण भाष्य

निरुक्त में एक अन्य स्थल पर पराशर की दूसरी व्याख्या है –

‘पराशातयिता यातुनाम् इति पराशरः।… परा परितः यातूनां… रक्षसाम्।’

          –निरुक्त , 6/30 

अर्थात् जो चारों ओर से राक्षसों का विनाश करने में समर्थ हो वह पराशर है।

‘परं मातुर्निमातुरनिजायायददरं तदयं यतः। ऋचमुच्चार्य निर्भिद्य निर्गात स पराशरः।’

           –निरुक्त/ निघण्टु 

अर्थात् यर माता के उदर से वेद ऋचाओं को बोलते हुए निकाले थे, अतः इनका नाम पराशर रखा गया।

‘परस्य कामदेवस्य शरः सम्मोहनादयः। न विद्यन्ते यतस्तेन ऋषिरुक्तः पराशरः।’

अर्थात् कामदेव के सम्मोहन, उन्मादन, शोषण, तापन, स्तम्भन, इन पांच बाणों का प्रभाव अपने पर न होने देने के यतन के कारण ऋषियों ने भी इन्हें पराशर कहा।

‘पराकृताः शरा यस्मात् राक्षसानां वधार्थिनाम्। अतः पराशरो नामः ऋषिरुक्तः मनीषिभिः। पराशातयिता यातूनाम् इति पराशरः।’

अर्थात् वध की इच्छा रखने वाले राक्षसों के बाणों को इन्होंने विफल कर दिया। अतः बुद्धिमानों ने इनका नाम पराशर नाम कहा।

‘परासुः स यतस्तेन वशिष्ठः स्थापितो मुनिः। गर्भस्थेन ततो लोके पराशर इति स्मृतः ।’

अर्थात् उस बालक ने गर्भ में आकर परासु (मरने की इच्छा वाले ) वसिष्ठ मुनि को पुन: जीवित रहने के लिये उत्‍साहित किया था; इसलिये ये लोक में पराशर के नाम से विख्‍यात हुए।

‘पराशृणाती पापानीति पराशर: ।’
अर्थात जो दर्शन स्‍मरण करने मात्र से ही समस्‍त पाप-ताप को छिन्‍न-भिन्‍न कर देते हैं , वे ही पराशर हैं।

अतः प्राण-परित्याग करने की इच्छा वाले वशिष्ठ का आधार होने के कारण, या काम-बाण प्रभावों को परास्त करने के कारण, या फिर शरों से दूर ले जाकर इनका रक्षण करने के कारण अथवा शत्रुओं का पराभव करने वाला होने के कारण इस बालक को पराशर नाम से अभिहित किया गया।

वेदों में वर्णित पराशर शाबर मंत्र –

वेदों में वर्णित सत्यवादी मुनिश्रेष्ठ महामना पराशर के गुणों का वर्णन –

‘अपराजितो जितारातिः सदानन्दों दयायुतः गोपालो गोपतिर्गोप्ता कलिकालपराशरः।’

अर्थात् शत्रुओं के द्वारा अजेय, शत्रुओं को जीतने वाले, सदा आनन्दित रहने वाले, दयालु, पृथ्वी का पालन करने वाले, इंद्रियों के स्वामी, भक्तों के रक्षक कलिकाल(कलियुग) के मुनिश्रेष्ठ पराशर अर्थात् कथा वाचकों के उत्पादक महामुनि पराशर ।

अथर्ववेद में महर्षि पराशर का देवत्व –
अथर्ववेद में ऋषिश्रेष्ठ पराशर का देवत्व निर्दिष्ट है। अथर्ववेद में वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ, तपोनिधि, भगवान पराशर की गणना ऋषियों में न होकर देवताओं में की गयी है।

ऋषि – अथर्ववेद के अधिकांश सूक्तों के ऋषि ‘अथर्वा'(अविचल, प्रज्ञायुक्त-स्थिरप्रज्ञ) ऋषि हैं। अन्य अनेक ऋषियों के सूक्तों के साथ भी अथर्वा का नाम संयुक्त है। जैसे अथर्वाचार्य, अथर्वाकृति, अथर्वाङ्गिरा, भृगवंगीरा ब्रह्मा आदि।

अथर्ववेद के इस मंत्र में पराशर से प्रार्थना की गई है की वे शत्रु को नष्ट करें।

अथर्ववेद –

(ऋषि – अथर्वा, देवता – पराशर, छन्द-1 पथ्यापंक्ति, 2-3 अनुष्टुप)

‘अव मन्युरवायताव बाहू मनोयुजा।
पराशर त्वं तेषां पराञ्चम् शुष्ममर्दयाधा नो रयिमा कृधि।’

 –अथर्ववेद , शत्रुनाशक सूक्त , 65

अर्थात् (शत्रु के) क्रोध एवं शस्त्रास्त्र दूर हों। शत्रुओं की भुजाएं अशक्त एवं मन साहसहीन हों। हे दूर से ही शर-संधान में निपुण देव पराशर ! आप उन शत्रुओं के बल को परांगमुख करके नष्ट करें तथा उनके धन हमें प्रदान करें।

परासोराशासनमवस्थानं येन स पराशरः । आङ्पूर्ब्बाच्छासतेर्डरन् । इति नीलकण्ठः ॥

‘परासुः स यतस्तेन वशिष्ठः स्थापितो मुनिः।
गर्भस्थेन ततो लोके पराशर इति स्मृतः।’

       –महाभारते , 1/179/3 

‘परासोराशासनमवस्थानं येन स पराशरः। आंपूर्ब्बाच्छासतेर्डरन्।’ इति नीलकण्ठः।

   

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