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माया सभ्यता के संस्थापक मयासुर दानव …
मय दानव को
मयासुर भी कहते हैं।
विश्वकर्मा देवताओं के तो मय दानव असुरों के वास्तुकार थे।
मय दानव हर तरह की रचना करना जानता था।
मय विषयों का परम गुरु है।
राजा बलि रसातल का …
तो मय दानव तलातल का राजा था।
सुतल लोक से नीचे तलातल है।
वहां त्रिपुराधिपति दानवराज मय रहता है।
पुराणों अनुसार पाताल लोक के निवासियों की उम्र हजारों वर्ष की होती है।
रामायण के उत्तरकांड के अनुसार माया दानव, कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी दिति का पुत्र और असुर सम्राट रावण की पत्नी मंदोदरी का पिता था।
इसकी दो पत्नियां- हेमा और रंभा थीं
जिनसे पांच पुत्र तथा तीन कन्याएं हुईं।
रावण की पत्नी मंदोदरी की मां हेमा एक अप्सरा थी और उसके पिता एक असुर।
अप्सरा की पुत्री होने के कारण मंदोदरी अत्यंत सुन्दर थी,
साथ ही वह आधी दानव भी थी।
मय दावन की शक्ति …….
मयासुर एक खगोलविद भी था।
कहते हैं कि
‘सूर्य सिद्धांतम’ की रचना मयासुर ने ही की थी।
खगोलीय ज्योतिष से जुड़ी भविष्यवाणी करने के लिए ये सिद्धांत बहुत सहायक सिद्ध होता है।
मय दानव के पास एक विमान रथ था
जिसका परिवृत्त 12 क्यूबिट था और उस में चार पहिए लगे थे।
इस विमान का उपयोग उसने देव-दानवों के युद्ध में किया था।
देव- दानवों के इस युद्ध का वर्णन स्वरूप इतना विशाल है,
जैसे कि हम आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस सैनाओं के मध्य परिकल्पना कर सकते हैं।
मयासुर के निर्माण कार्य……
ऐसा माना जाता है
कि वह इतना प्रभावी और चमत्कारी वास्तुकार था कि अपने
निर्माण के लिए वह पत्थर तक को पिघला सकता था।
मयासुर ने दैत्यराज वृषपर्वन् के यज्ञ के अवसर पर बिंदुसरोवर के निकट एक विलक्षण सभागृह का निर्माण कर प्रसिद्धि हासिल की थी।
रामायण के उत्तरकांड के अनुसार रावण की सुन्दर नगरी, लंका का निर्माण विश्वकर्मा ने किया था
लेकिन यह भी मान्यता है कि लंका की रचना स्वयं रावण के श्वसुर और योग्य वास्तुकार मयासुर ने ही की थी।
मैसूर, मंदसौर और मेरठ उसी के नाम केे अपभ्रंष है।✔️
माया दानव ने
सोने, चांदी और लोहे के तीन शहर जिसे त्रिपुरा कहा जाता है, का निर्माण किया था।
त्रिपुरा को बाद में स्वयं भगवान शिव ने ध्वस्त कर दिया था।
तारकासुर के लिए माया दानव ने इस तीनों राज्यों, त्रिपुरा का निर्माण किया था।
तारकासुर ने ये तीनों राज्य अपने तीनों बेटों
तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युनमाली
को सौंप दिए थे।
माया सभ्यता का जनक ……….
मायासुर को
दक्षिण अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता का जनक भी माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि जो जानकारियां और विलक्षण प्रतिभा माया दानव के पास थीं,
वही माया सभ्यता के लोगों के पास भी थी।
कहते हैं कि
अमेरिका के प्रचीन खंडहर उसी के द्वारा निर्मित हैं।
अमेरिका में शिव, गणेश, नरसिंह आदि देवताओं की मूर्तियां तथा शिलालेख आदि का पाया जाने इस बात का सबसे बड़ा सबूत है ….
कि प्रचीनकाल में अमेरिका में भारतीय लोगों का निवास था।
इसके बारे में विस्तार से वर्णन आपको
भिक्षु चमनलाल द्वारा लिखित पुस्तक ‘हिन्दू अमेरिका’
में चित्रों सहित मिलेगा।
इंद्रप्रस्थ का निर्माता ………
महाभारत में
उल्लेख है कि मय दानव ने पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नामक नगर की रचना की थी।
यह भी कहा जाता है कि उसने द्वारिका के निर्माण में भी विश्वकर्मा का सहयोग किया था।
खांडव वन के दहन के समय
अर्जुन ने
मय दानव को अभयदान दे दिया था।
इससे कृतज्ञ होकर
मय दानव ने अर्जुन से कहा, ‘हे कुन्तीनंदन! आपने मेरे प्राणों की रक्षा की है अतः आप आज्ञा दें, मैं आपकी क्या सेवा करूं?’
अर्जुन ने उत्तर दिया, ‘मैं किसी बदले की भावना से उपकार नहीं करता, किंतु यदि तुम्हारे अंदर सेवा भावना है तो तुम श्रीकृष्ण की सेवा करो।’
मयासुर के द्वारा किसी प्रकार की सेवा की आज्ञा मांगने पर श्रीकृष्ण ने उससे कहा,
‘हे दैत्यश्रेष्ठ! तुम युधिष्ठिर की सभा हेतु ऐसे भवन का निर्माण करो जैसा कि इस पृथ्वी पर अभी तक न निर्मित हुआ हो।’
मयासुर ने कृष्ण की आज्ञा का पालन करके एक अद्वितीय नगर और उस नगर में एक भवन का निर्माण कर दिया।
इसके साथ ही
उसने पाण्डवों को देवदत्त शंख, एक वज्र से भी कठोर रत्नजटित गदा तथा मणिमय पात्र भी भेंट किया।
यह भी कहा जाता है कि
उत्तर प्रदेश का मेरठ शहर भी मय दानव ने बनाया और बसाया था।