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शनिदेव और राजा विक्रमादित्य की कथा
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एक बार सबसे ज्यादा श्रेष्ठ कौन है को लेकर सभी देवताओं में वाद-विवाद होने लगा विवाद जब बढ़ गया तब सभी देवता देवराज इन्द्र के पास पहुंचे और पुछा की देवराज बताइए हम सभी देवगणों सबसे ज्यादा श्रेष्ठ कौन है . उनकी बात सुनकर देवराज भी चिंता में पड़ गए की इनको क्या उत्तर दूं. फिर उन्होंने ने कहा पृथ्वीलोक में उज्जैनी नमक नगरी है, वहा के रजा विक्रमादित्य जो कोई न्याय करने में बहुत ज्ञानी हैं वो दूध का दूध और पानी का पानी तुरंत कर देते हैं आप उनके पास जाइये वो आपके शंका का समाधान कर देंगे।

सभी देवता देवराज इन्द्र की बात मानकर विक्रमादित्य के पास पहुचे और उनको अपनी बात बताई , तो विक्रमादित्य ने अलग-अलग धातुओं सोना,तम्बा, कांस्य, चंडी आदि के आसन बनवाए ओर सभी को एक के बाद एक रखने को कहा और सभी देवताओं को उनपर बैठने को कहा उसके बाद राजा ने कहा फैसला होगया जो सबसे आगे बैठे हैं वो सबसे ज्यादा श्रेष्ठ हैं.

इस हिसाब से शनिदेव सबसे पीछे बैठे थे, राजा की ये बात सुनकर शनिदेव बहुत ही क्रोधित हुए और रजा को बोला तुमने मेरा घोर अपमान किया है जिसका दंड तुम्हे भुगतना परेगा,
उसके बाद सभी देवता वहा से चले गए. लेकिन शनिदेव अपने अपमान को भूल नहीं पाए थे. और वो रजा विक्रमदित्य को दंड देना चाहते थे.

एक बार शनिदेव घोड़े के व्यापारी का रूप धर कर राजा के पास पहुचे. राजा को घोडा बहुत पसंद आया और उन्होंने वो घोडा खरीद लिया फिर जब वो उसपर सवार हुए तो घोडा तेजी से भागा और राजा को जंगल में गिरा कर भाग गया . विक्रमादित्य जंगल में अकेलाभूखे प्यासे भटक रहा था भटकते भटकते राजा एक नगर में पंहुचा वहा जब एक सेठ ने राजा की ये हालत देखि तो उसे राजा पर बहुत दया आया और अपने’घर में’शरण दिया उस दिन शेठ को अपने व्यापर में काफी मुनाफा हुआ . तो उसके लगा ये मेरे कि ये मेरे लिए बहुत भाग्यशाली है, फिर वो उसे अपने घर लेकर गया.

सेठ के घर में एक सोने का हार खूंटी से लटकी हुई थी सेठ विक्रमादित्य को घर में अकेला छोर कर थोड़ी देर के लिए बाहर गया इस बिच खूटी सोने के हार को निगल गयी. सेठ जब वापस आया तो सोने के हार को न पाकर बहुत क्रोधित हुआ . उसे लगा की विक्रमादित्य ने हार’चुरा लिया . वो उसे लेकर उस नगर के रजा पास गया और सारी बात बताई. राजा ने विक्रमादित्य से पूछा की ये सच है तो विक्रमादित्य ने बताया की’ वो सोने की हार खूँटी निगल गयी जिसपर राजा को भरोसा नहीं हुआ और राजा ने विक्रमादित्य के हाथ-पैर कट देने की सजा सुनाई.

फिर विक्रमादित्य के हाथ पैर काटकर नगर के चौराहे पर रख दिया. एक दिन उधर से एक तेली गुजर रहा था उसने जब विक्रमादित्य की हालत देखि तो बहुत दुखी हुआ वो उसे अपने घर लगाया और वही रखा. एक दिन राजा विक्रमादित्य मल्लहार गा रहे थे और उसी रस्ते से उस नगर की राजकुमारी जा रही थी इसी उसने जब मल्लहार की आवाज सुनी तो वो आवाज का पीछा करते विक्रमादित्य के पास पहुची और उसकी ये हालत देखि तो बहुत दुखी हुई. और अपने महल जा कर पिता से विक्रमादित्य से शादी करने की जिद करने लगी. राजा पहले तो बहुत क्रोधित हुए फिर बेटी की जिद के झुक कर दोनों का विवाह कराया. तब तक विक्रमादित्य का साढ़ेसाती का प्रकोप भी समाप्त हो गया था फिर एक दिन शनिदेव विक्रमादित्य के स्वप्न में आये ओर बताया की ये सारी घटना उनके क्रोध के कारन हुई.

फिर राजा ने कहा हे प्रभु आपने जितना कष्ट मुझे दिया उतना किसी को न देना.तो शनि देव ने कहा जो शुद्ध मन से मेरी पूजा करेगा शनिवार काव्रत रखेगा वो हमेशा मेरी कृपा का पात्र रहेगा. फिर जब सुबह हुई तो रजा के हाथ पैर वापस आगये थे. राजकुमारी ने जब यह देखा तो बहुत प्रसन्न हुई. फिर रजा और रानी उज्जैनी नगरी आये और नगर में घोषणा करवाई कि शनिदेव सबसे श्रेष्ठ हैं सब लोगो को शनिदेव का उपवास और व्रत रखना चाहिए।
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