गणेश और कार्तिक की कहानी
शिव जी और पार्वति जी के दो पुत्र थे। कार्तिक और गणेश। दोंनो ही अपने गुणों मे निपुण और एक से बढकर एक थे। एक दिन दोंनो भाईयों में इस बात की बहस हो गई कि बड़ा कौन । अपने बुद्धि और पराक्रम से दोंनो एक-दूसरे के तर्क और ताकत को काटते जा रहे थे। देवों ने यह देखा तो उन्हें लगा कि इस झगड़े का तो कोई अंत ही नहीं। उन्होंने दोंनो भाईयों से अनुरोध किया कि वह अपने माता-पिता, यानि शिव और पार्वति जी के पास जाएँ, वही इस समस्या का समाधान कर सकेंगे। देवों का यह सुझाव मानकर कार्तिक और गणेश जी अपने माता-पिता के पास चल दिए।
जब शिव जी और पार्वति जी ने इस दुविधा को सुना कि कार्तिक और गणेश जी में बड़ा कौन है, तो पहले मुस्कुराए। और फिर दोंनो भाईयों के बीच में एक प्रतियोगिता रखी। उन्होंने कहा कि जो इस ब्रह्माण्ड का तीन चक्कर लगाकर सबसे पहले वापस आएगा, वही दोंनो में से बड़ा होगा। दोंनो भाईयों ने इस शर्त को मान लिया और निकल पड़े चक्कर लगाने। कार्तिक अपनी सवारी मोर पर विराजमान हुए और तेज गति से उड़ चले। रास्ते में उन्होंने पवित्र स्थानों को नमस्कार किया और प्रार्थना अर्पन किए। उधर गणेश जी भी अपनी सवारी चूहे पर सवार होकर चल दिए ब्रह्माण्ड भ्रमण के लिए। पर कहाँ मोर की उड़ान और कहाँ चूहे की चाल ! गणेश जी को लगा कि वह कितनी भी तत्पर कोशिश कर लें पर वे कार्तिक को परास्त नहीं कर पाएँगे।
तभी उनके मन में एक विचार आया। उन्होंने माता पार्वति और महादेव शिव का बहुत मन से ध्यान किया और उनके ही तीन चक्कर लगा लिए। जब माता-पिता ने इसका अर्थ पूछा तो उन्होंने कहा कि सारा ब्रह्माण्ड तो महादेव शिव और माता पार्वति में ही समाया हुआ है, अतः अगर सच्चे मन से ध्यान कर के उनका ही चक्कर लगा लिया जाए तो वह पूरे ब्रह्माण्ड के चक्कर के बराबर है।
जब कार्तिक लौटे तो गणेश जी को वहाँ पाकर आश्चर्यचकित रह गए। परन्तु जब उन्होंने गणेश जी का तर्क सुना तो उन्होंने भी अपनी हार मान ली और उन्हें शत्-शत् नमन किया।
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