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फ्रोज़न शोल्डर(अववाहक, विश्वाची) :

  1. रोग परिचय : वर्तमान में जिन रोगों का प्रचलन बढ़ रहा है,उनमें अववाहक,विश्वाची रोग भी एक है,जिसे आधुनिक चिकित्सा में फ्रोज़न शोल्डर के नाम से जाना जाता है। प्रचलित भाषा में इसे “कन्धा जाम” रोग भी कहा जाता है। इस रोग में बाहु पृष्ठ से हाथ तक हर एक अँगुलियों की जो कण्डराएँ(मोटी नसें)होती हैं,उनमें वायु घुसकर पीड़ा पैदा करता है और बाहु को बेकाम कर देता है, बाहु को उठाने में,सिकोड़ने में,किसी चीज़ को थामने में कष्ट होता है। आयुर्वेद के अनुसार अस्थि सन्धिगत वायु का प्रकोप होकर सन्धिगत जकड़न पैदा हो जाती है,जो अधिकतर कन्धे की संधियों में होती है, जिसे आयुर्वेद में विश्वाची,अववाहक एवं0म आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में थोरेसिक आउटलेट सिंड्रोम कहते हैं।
  2. रोग के लक्षण : इस रोग के प्ररम्भ में रोगी को किसी भी हाथ के कन्धे में दर्द महसूस होता है,और वह समझता है कि सोते समय मेरा हाथ करवट के नीचे आ गया है,और 1-2 दिन में ठीक हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं होता और धीमे-धीमे दर्द के साथ-साथ हाथ में सुन्नता,जड़ता उत्पन्न होने लगती है। रोगी आसानी से ऊँचाई तक हाथ उठाने में असमर्थ हो जाता है। इसमें अधिकतर कन्धे एवं बांह में दर्द होता है। विशेषकर रोगी अपने हाथ को पीछे ठीक तरह लाने में भी असमर्थ हो जाता है,और हाथ ऊपर करने से या कर चलाते समय, बालों में कंघी करते समय असहनीय पीड़ा होती है। रोगी कपड़े पहनना,शौच धोना,बेल्ट लगाना आदि कार्य सुगमता से नहीं कर पाता। किसी रोगी को पीड़ा कम तथा किसी को असहनीय हो जाती है। अतः विश्वाची का लक्षण हुआ-ऐसी व्याधि जिसमे बाहु के पृष्ठ भाग(Posterior Side) से प्रारम्भ होकर हाथ एवं अँगुलियों के पृष्ठ भाग तथा प्रकोष्ठ,हाथ एवं अँगुलियों के तल भाग(Anterior Side)की पेशियों को सप्लाई करने वाली नाडियों में विकृति हो जाने से हाथ की संकोचन(Flexion)एवं प्रसारण(Extension)शक्ति में विकृति उत्पन्न हो जाती है। आधुनिक दृष्टि से देखें तो हाथ की संकोचन(Flexion) क्रिया अल्नर नर्व(Ulnar Nerve)एवं प्रसारण (Extension)क्रिया रेडियल नर्व(Radial-Nerve)के अधीन है। अतः इन नाडियों में विकृति का परिणाम विश्वाची रोग हो सकता है,ये विकृतियाँ चार प्रकार की हो सकती हैं–
  3. Radial Nerve paisy or
    Radial neuritis.
  4. Ulnar Nerve paisy or Ulnar neuritis or Ulnar
    Paralysis.
  5. Radio-Ulnar paisy or Radio Ulnar neuritis.
  6. Lesion of the medical cord of the brachial plexus. आचार्य वाग्भट्ट विश्वाची को भी गृधसी के समान ही विकृति मानते हैं और अन्तर केवल इतना बताते हैं कि गृधसी पैर में होती है और विश्वाची हाथ में। सामान्य अनुभव में आया है कि यह रोग मधुमेह(शूगर) ग्रस्त रोगियों को अधिक होता है,तथा 40 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति इससे अधिक पीड़ित होते हैं।
  7. रोग के कारण : यद्यपि संहिताओं में विश्वाची के रोग के कारणों का उल्लेख नहीं मिलता है,मगर लक्षणों के आधार पर इसके निम्न कारण हो सकते हैं – ऐसा कोई भी कारण जिससे कि हाथ की नाडियों में सूजन आ जाए, जैसे अधिक कार्य करना,अधिक वज़न उठाना, गलत स्थिति में हाथ को रख करके लम्बे समय तक बैठे रहना, हाथ को सिरहाने के रूप में रखकर सो जाना,कम्प्यूटर पर अधिक कार्य करना या फिर किसी भी प्रकार के आघात के कारण विश्वाची रोग की उतपत्ति
    उत्पत्ति हो सकती है। आयुर्वेद के मतानुसार वात और कफ का स्कन्ध में प्रकोप होने से सन्धि में जड़ता उत्पन्न हो जाती है।
    आधुनिक चिकित्सक इसे मधुमेह या अन्य कारणों से सन्धिगत नाड़ियों की कार्य क्षमता कम हो जाने से यह रोग उत्पन्न होता है, यह मानते हैं।
  8. फ्रोज़न शोल्डर की चिकित्सा : चिकित्सा की दृष्टि से आधुनिक चिकित्सक इस रोग के उपचार में व्यायाम (फिजियोथेरेपी) को विशेष महत्व देते हैं। निसन्देह धैर्यपूर्वक व्यायाम करते रहने से इस रोग में लाभ अवश्य होता है। इस रोग के प्रारम्भ में रैड लेम्प से सिकाई करने से भी लाभ होते देखा गया है।
  9. फ्रोज़न शोल्डर की अनुभूत चिकित्सा :

★ बाह्य उपचार :

१. व्यायाम (फिजियोथेरेपी) –

   इस रोग के निवारण हेतु विभिन्न प्रकार के व्यायाम हैं जिनमें हाथ का चारों ओर घुमाना, विशेष है। हाथ को जितना अधिक से अधिक उठाया जा सके,उठाने का प्रयत्न करना आदि व्यायाम प्रमुख हैं। रोगी को धैर्य पूर्वक यह व्यायाम औषधि उपचार के साथ-साथ करते रहना ज़रूरी है।

२. वाष्प स्वेदन –

          इसके लिए 1 लीटर या कुछ अधिक पानी में 4-4 चम्मच सेंधा नमक,अजवायन,फिटकरी, तथा हल्दी डालकर अच्छी तरह गर्म करें। जब 1 गिलास पानी कम हो जाए तो उतारकर इसमें 2 रुमाल साइज़ के तौलिए भिगोकर, उन्हें अच्छी तरह निचोड़कर कन्धे तथा उसके आसपास के क्षेत्र की सिकाई करें। यह सिकाई कम से कम 20 मिन्ट तक अवश्य होनी चाहिए। इस उपचार को स्नान के तुरन्त बाद करना चाहिए।

३. सिकाई –

 50 ग्राम मावा (खोया) लाकर इसमें 50 ग्राम अम्बा हल्दी का चूर्ण,5 ग्राम कुचला का पिसा चूर्ण तथा 4 चम्मच महा विषगर्भ तेल मिलाकर कढ़ाई में गर्म कर लें तथा इसे 2 सूती कपड़ों की पोटली बनाकर पीड़ित भाग पर सेंक करें। बाद में सम्भव हो तो इसे सन्धि पर कपड़े से बांध लें।

४. मालिश –

    दिन में 1 बार किसी वात रोगहर तेल(महा विषगर्भ तेल, महा नारायण तेल,महामाश तेल या रुमासिल तेल) की किसी जानकार व्यक्ति से धीमे-धीमे मालिश कराएं।
  1. फ्रोज़न शोल्डर की अनुभूत आयुर्वेदिक चिकित्सा :

★ प्रथम उपचार :

१. विश्वाची नाशक मिश्रण –

बृहत वात चिन्तामणि रस 3 ग्राम
एकांगवीर रस 6 ग्राम
महा वात विध्वंसन रस 6 ग्राम
समीरपन्नग रस 6 ग्राम

   उपरोक्त सब रसों को अच्छी तरह कांसे के बर्तन में घुटाई कर इसकी 30 पुड़िया बनाकर रख लें।

सेवन विधि –

   1-1 पुड़िया प्रात-सायं शहद के साथ सेवन करें। यदि रोगी मधुमेही हो तो कैप्सूल में भरकर पानी से निगल ले।

२.सिंहनाद गुगल 2-2 गोली

 दोपहर व रात्रि के भोजन के आधे घण्टे बाद महारास्नादि क्वाथ के साथ सेवन करें।

३. अशवगंधा चूर्ण

   3-3 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार दूध के साथ सेवन करें।

★ द्वितीय उपचार :

१.महावात विध्वंसन रस 1 गोली
योगराज गुगल 1 गोली

    दिन में 2 बार सेवन करें।

२.विश्वाची नाशक मिश्रण –

अशवगंधा चूर्ण 50 ग्राम
यष्टिमधु(मुलेठी) 25 ग्राम
चोपचीनी 25 ग्राम
पीपलामूल 25 ग्राम
विषतिन्दुक वटी 40 ग्राम

   उपरोक्त सबको अच्छी तरह मिश्रित कर रख लें।

      3-3 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करें।

३.सिंहनाद गुगल 1 गोली
लहसुनादि वटी 1 गोली

 दोपहर व रात्रि के भोजन के आधे घण्टे बाद दशमूलारिष्ट के साथ सेवन करें।

★ तृतीय उपचार :

१. दशमूलारिष्ट 4 ढक्कन
महारास्नादि क्वाथ 4 ढक्कन

         प्रात: निराहार समजल मिलाकर सेवन करें।

२. महावात विध्वंसन रस1 गोली
एकांगवीर रस 1 गोली

       दिन में 2 बार सेवन करें।

३.विश्वाची/ मन्या स्तम्भ नाशक मिश्रण –

अशवगंधा चूर्ण 50 ग्राम
यष्टिमधु(मुलेठी) 25 ग्राम
चोपचीनी 25 ग्राम
पीपलामूल 25 ग्राम
नवजीवन रस 40 ग्राम

   उपरोक्त सबको अच्छी तरह मिश्रित कर रख लें।

      3-3 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करें।

५. लहसुनादि वटी 1-1 गोली

      भोजन के आधे घण्टे बाद उष्ण जल के साथ सेवन करें।

★ चतुर्थ उपचार :

योगराज गुग्गल या 2-2 गोली
कैशोर गुग्गल

   प्रत्येक भोजन के आधे घण्टे बाद महारास्नादि क्वाथ या दशमूलारिष्ट 4-6 ढक्कन+ समजल के साथ सेवन करनी चाहिए।

विशेष –

१. उपरोक्त किसी एक औषधि व्यवस्था से रोगी को 2-3 माह में स्थाई लाभ हो जाता है।

२. वात एवं कफवर्धक आहार-विहार का सेवन इस रोग में विशेष हानिकर है।

३. यह बात घ्यान देने योग्य है कि यदि रोगी मधुमेही है तो मधुमेह का नियंत्रण अत्यन्त आवश्यक है।

४. अधिक तेज़ हवा, कूलर या एयर कंडीशनर के सामने सोने से भी इस रोग में वृद्धि होती है। अतः रोगी को इनसे बचना चाहिए।

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