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टाइफाइड के कारण ,लक्षण और घरेलू इलाज

रोग परिचय :आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसे टायफाइड के नाम से जाना जाता है। इसमें पहले दिन साधारण ज्वर आता है । दूसरे दिन तीव्र ज्वर हो जाता है। गले, पीठ और छाती पर लाल-लाल दाने निकल आते हैं। प्रायः 24 घंटों के अन्दर इन दानों में जल भर जाता है जिसके फलस्वरूप यह दाने मोती की भांति चमकने लगते हैं । इसीलिए इसे मोतीझरा के नाम से भी जाना जाता है । धीरे-धीरे यह दाने सूख जाते हैं जिससे ज्वर भी मन्द पड़ जाता है तथा दानों की पपड़ी उतर जाती है ।

टाइफाइड के कारण : यह बुखार एक विशेष प्रकार के कीटाणु द्वारा फैलता है।इस रोग का अति सूक्ष्म कीटाणु जो अणुवीक्ष्ण यन्त्र से देखा जा सकता है इसको ‘बेसीलस टाइफोसिस” के नाम से जाना जाता है। इस रोग के कीड़े अधिकतर रोगी के मल या मूत्र द्वारा शरीर से बाहर निकलते हैं। यहाँ से यह या तो मक्खियों द्वारा खाने-पीने कीचीजों में पहुँचते हैं या कुंओं और तालाबों के पानी में कीड़ों के पहुंचने से उसका पानी पीने से स्वस्थ मनुष्य के अन्दर जाकर उसको बीमार कर देते हैं।

टाइफाइड के लक्षण :

1-  रोग के कीड़े स्वस्थ शरीर में पहुँचने के 1-2 हफ्ते या कभी-कभी 3 सप्ताह बाद रोग के लक्षण प्रकट होते है।

2-  यह लगभग 50% 12 से 15 वर्ष वर्ष की आयु में लगभग 50% 25 से 30 वर्ष की आयु में हुआ करता है। यह मत आधुनिक चिकित्साशास्त्रियों का है।

3-  इसमें पहले दिन मामूली बुखार आता है। दूसरे या तीसरे दिन बुखार तेज 103-104° डिग्री तक हो जाता है और गर्दन, पीठ, छाती, पर लाल-लाल दाने निकल आते हैं। फिर लगभग 24 घन्टे के भीतर इन दानों में पानी भर आता है। पानी भरने से दाने मोती की भाँति चमकने (झलकने) लगते हैं, इसीलिए इस रोग को साधारण बोलचाल में “मोती झरा” कहते हैं। धीरे-धीरे दाने अच्छी तरह भर जाते हैं और सूख जाते हैं। अब बुखार भी कुछ मन्द पड़ जाता है। दानों में पानी सूखने के बाद उसकी पपड़ी उतर जाती है तथा शरीर पर गुलाबी रंग के निशान रह जाते हैं। यह रोग लगभग 3 सप्ताह तक रहता है। चौथे सप्ताह में रोगी की हालत में काफी सुधार हो जाता है। रोगी को भूख आदि लगने लगती है।

4-  इसकी प्रारम्भिक अवस्था में रोगी के शरीर में सुस्ती, कार्य करने की इच्छा-शक्ति में कमी, शारीरिक एवं मानसिक गड़बड़ी, कमजोरी, सिरदर्द, भूख न लगना, पतले दस्त आना, नाक से रक्तस्राव, कब्ज तथा उदरशूल आदि लक्षण होते हैं।

5- यदि रोग पुनः (दुबारा) हो जाये, तो सात दिन का पहाड़ा पढ़ते हुए। कितने ही दिनों तक यह रह सकता है।

6- एक बार इस बीमारी के हो जाने पर, फिर सारी जिन्दगी इस बीमारी के होने का डर नहीं रहता किन्तु आराम हो जाने के बाद कुछ दिनों तक फिर से दुबारा होने का डर रहता है।

7-  ज्वर का क्रमशः चढ़ना, ज्वर की अपेक्षा नाड़ी की गति मन्द होना, जीभ | ‘श्वेत’ एवं मलिन हो, उस पर लाल-लाल एवं कुछ उभरे हुए अंकुर आदि से इस रोग की पहिचान सरलता पूर्वक हो जाती है।

8- यदि यह रोग गर्भवती स्त्री को हो जाये तो गर्भपात का खतरा रहता है। वैसे यह गर्भवती रत्री को तथा दूध पीते बच्चों को बहुत कम होता है।

9- कभी-कभी मलेरिया और टायफाइड इकट्ठे भी हो जाया करते हैं।

10- गर्म देशों में यह ज्वर अधिक हुआ करता है। ग्रीष्म ऋतु तथा पतझड़ के मौसम में यह रोग अधिक तीव्र रूप से हुआ करता है।

टाइफाइड के घरेलू इलाज :

हर प्रकार की बुखार की अचूक व रामबाण औषधि है :-तुलसी के पत्ते अजवायन,सौठ,दालचीनी,गिलोय,कालमेघ,त्रिकुटा,लौंग,कालीमिर्च,मेथी,अदरक,निम,छोटी पीपर इन्हें मिलाकर (तुलसी महत्वपूर्ण है विशेष में जो घर मे उबलब्ध हो उसे जरूर मिलाये अन्यथा सिर्फ तुलसी का ही उपयोग करते रहें) नियमित दिन में 3 से 4 बार 3 से 7 दिन लगातार इस काढ़े का सेवन कराए इसे स्वादिष्ट बनाने हेतु गुड़ या किशमिश या मुन्नका या सेंधा या काला नमक मिला सकते हैं या ठंडा होने पर शहद

ख़ूबकला:- मोतीझरा, मियादी बुखार या टॉयफाइड जैसे रोगों में इसका विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। 4 -5 मुनक़्क़ा के बीज निकाल कर उस पर खूबकला अच्छे से लपेट लें फिर इसको गर्म तवे पर सेंक कर रोगी को रोज़ खिलाने से आराम मिलता है। यदि लंबे समय से ज्वर न जा रहा हो या बार-बार लौट कर आ रहा हो तो उसके लिये भी ये उपाय लाभकारी है। इसके अतिरिक्त पानी अथवा दूध में पका कर पिलाने से भी लाभ मिलता व कमजोरी भी दूर होता है

1- बच्चों को मोती भस्म 15 से 30 मि.ग्रा. दिन में 2 बार मधु से चटाना अत्यन्त ही लाभप्रद है

2- महासुदर्शन चूर्ण (भै. र.) बच्चों को 1 से 2 ग्राम तक गरम जल से प्रत्येक 4-6 घंटे पर देना लाभकारी है ।

3- गिलोय का काढ़ा 1 तोला को आधा तोला शहद में मिलाकर दिन में 2-3 बार पिलाना लाभकारी है ।

4- अजमोद का चूर्ण 2 से 4 ग्राम तक शहद के साथ सुबह शाम चाटने से लाभ होता है।

5- मोथा, पित्त पापड़ा, मुलहठी, मुनक्का चारों को समभाग लेकर अष्टावशेष क्वाथ करें। इसे शहद डालकर पिलाने से ज्वर, दाह, भ्रम व वमन आदि नष्ट होते हैं।

6- अनबिंधे मोती 1 रत्ती, कस्तूरी 2 रत्ती, केशर कश्मीरी 3 रत्ती, जायफल 4 रत्ती, जावित्री 5 रत्ती, लवंग 6 रत्ती, तुलसी पत्र 7 रत्ती, अभ्रक भस्म 8 रत्ती सभी औषधियों को खरल करके अदरक के स्वरस में घोटकर गोली बनालें । इसे चौथाई से आधी रत्ती तक जल में घिसकर सेवन कराने से मन्थर ज्वर के दाने शीघ्र ही निकलकर ढारा ले जाते हैं तथा अन्य उपद्रव भी नहीं होते हैं । यह योग बड़ेमूल्यवान अंग्रेजी औषधियों के भी कान काट देता है ।

7- नीम के बीज पीसकर 2-2 घंटे के बाद पिलाने से आन्त्रिक ज्वर उतर जाता है । यह योग मल निकालता है। शरीर में ताजा खून बनाता है, नयी शक्ति का संचार करता है । यदि मलेरिया बुखार से टायफाइड बना हो तो नीम जैसी औषधि के अतिरिक्त अन्य कोई सस्ता और सहज शर्तिया उपचार नहीं है ।

8- टायफाइड ज्वर के कारण उत्पन्न हुई कमजोरी में मधु का सेवन अंग्रेजी औषधि-हैप्टोग्लोबिन से भी अधिक लाभप्रद है

9- जीरे को जल के साथ महीन पीसकर 4-4 घंटे के अंतर से ओष्ठों (होंठ के किनारों पर लेप करने से ज्वर उतरने के पश्चात् ज्वरजन्य ओष्ठ-प्रकोप बुखार का मूतना) अर्थात् होठों का पकना व फूटना ठीक हो जाता है ।

10- जीरा सफेद 3 ग्राम 100 मि. ली. उबलते जल में डाल दें । इसे 15-20 मिनट के बाद छानकर थोड़ी शक्कर मिलाकर रोगी को दें। 10-15 दिनों तक निरन्तर प्रात:काल में पीने से ज्वर उतरने के पश्चात् आने वाली कमजोरी व अग्निमान्द्य नष्ट होकर भूख खुलकर लगने लगती है।

टाइफाइड के बाद सावधानी :

1- पहले लक्षण दिखलायी देने के 8 सप्ताह तक रोगी को दूसरे स्वस्थ एवं निरोगी व्यक्तियों से अलग रखना चाहिए।

2- रोगी के सम्पर्क में आने वालों को टीका लगवायें, दूध और पानी उबाल कर दें, कच्चे फल एवं शाक आदि न दें तथा रोगी द्वारा छुई हुई (पकड़ी या प्रयोग में लाई गई) प्रत्येक वस्तु का शुद्ध करना चाहिए।

3- रोगी को पूर्ण विश्राम दें। 2-घूमने-फिरने न दें।

4- रोगी के बिस्तर एवं कमरे में स्वच्छता बनाये रखें। विशेषतः रोगी का बिस्तर 1-1 दिन बाद बदलवा दें तथा रोगी द्वारा प्रयोग में लाया गया बिस्तर को पूरे दिन की धूप दिखला दें। रोगी के कमरे में सूर्य का प्रकाश (रोशनी) एवं शुद्ध वायु आनी जरूरी है।

5-रोगी को अकेला न छोड़ें किन्तु उसके कमरे में अधिक भीड़-भाड़ भी न हो ।

6- रोगी के पेट, मल-मूत्र, पीठ, नाड़ी, तापमान तथा दिन में पिये जल की मात्रा का पूर्ण विवरण बनाये रखें।

7-रोगी का मुख खूब अच्छी तरह कुल्ले करवाकर शुद्ध रखना चाहिए।

8- मुँह आने और होंठ पकने पर ‘बोरो गिलेसरीन’ लगावें। रोगी की अन्तड़ियों का वायु से बहुत अधिक फूल जाना इस रोग का बुरा लक्षण है।

9- तारपीन का तेल 5 मि.ली. सवा किलो गरम पानी में मिला कर इसमें फलालेन का कपड़ा (टुकड़ा) भिगो एवं निचोड़कर गद्दी बनाकर पेट पर बाँध दें। रोगी को आराम मिलेगा।

10- दालचीनी का तेल 2-3 बूंद पेट फूलने, पेट में दर्द तथा पेट में वायु पैदा होने के लिए अत्यन्त लाभकारी है।

11- केओलिन पाउडर (चीनी मिट्टी का पिसा छना बारीक चूर्ण) या एन्टी फ्लोजेस्टिन की गर्म-गर्म पुल्टिस पूरे पेट पर फैलाकर ढंक देने से भी पेट फूलने को आराम आ जाता है।

12- घर के दरवाजे एवं खिड़कियाँ बन्द करवाकर रोगी का शरीर खौले हुए मामूली गर्म पानी से पोंछवा दें। अधिक दिनों तक लगातार शैय्या पर रहने के कारण रोगी को जो ‘शैय्या क्षत’ (बिस्तर के घाव) कमर, पीठ, कूल्हों आदि में हो जाते हैं, वे न होने पायें, इसका ध्यान रखें।

टाइफाइड में क्या खाएं क्या न खाए :

1- रोगी को तरल, पुष्टिकर, लघुपाकी, आहार जैसे गाय के दूध में ग्लूकोज मिलाकर दें।

2- पेट बहुत अधिक फूल जाने पर तथा समय से सही चिकित्सा न करने पर रक्त में विषैले प्रभाव फैल जाने या अन्तड़ियों में छेद हो जाने का डर उत्पन्न हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में-कम मात्रा में भोजन खिलायें। 3-दही का मट्ठा पानी में घोलकर दूध के स्थान पर दें।

4- मीठे सेव का रस पिलायें।

5- दूध के स्थान पर दही का मट्ठा थोड़ी मात्रा में बार-बार पिलाते रहने से दस्तों में भी आराम आ जाता है।

6- तीन-चार बूंद दालचीनी का तेल’ ग्लूकोज आदि में मिलाकर रोगी को 2-2 घन्टे बाद खिलाते रहने से दस्तों की बदबू, पेट की वायु और कई दूसरे कष्ट दूर हो जाते है।

7- रोगी को रोग की प्रथमावस्था में सादा सुपाच्य भोजन दें।

8- यदि पतले दस्त न हों तो दूध दें।

9- अफारा हो तो ग्लूकोज दें।

10-रोगी को किसी भी कड़ी वस्तु का पथ्य न दें।

यह बीमारी टायफस बैसिलाई नामक कीटाणु से होता है l यह छूत का रोग है l इसमें शुरुआत में धीरे – धीरे बुखार बढ़ता है, जितना बुखार सुबह होता है उससे 2 डिग्री तक शाम को बढ़ जाता है l इस बुखार की अवधि लगभग 4 सफ्ताह तक रहती है l पहले तीन सफ्ताह के अन्दर शरीर पर छोटे छोटे लाल रंग के दानें निकल सकतें हैं l इस रोग में आंतों में जख्म हो जाता है

रोग की पहली अवस्था में जब रोगी शांति चाहता है, इसका कारण बहुत दर्द होना है l हिलने डुलने की इच्छा नहीं होती, जीभ सफ़ेद, होंठ खुश्क, कब्ज हो और प्यास ज्यादा लगे (ब्रायोनिया 30, दिन में 3-4 बार, यदि दवा का चुनाव सही है तो रोग शुरू में ही रुक जायेगा l

पहले सफ्ताह में l बच्चों के टायफ़ायड में यह ज्यादा फायदेमंद है l बहुत कमजोरी व सुस्ती, ऊँघना, पलकें भरी, आंखे खोले रहना मुश्किल – (जल्सेमियम 30, दिन में 3 -4 बार)

सिरदर्द, मल बदबूदार, सांस में भी बदबू, बातों का जवाव देते देते रोगी सो जाए, प्रलाप करे – (बैप्टिशिया Q, 5-10 बूंद दिन में 3 – 4 बार, 30 पावर भी दी जा सकती है)

रोगी को पतले दस्त हो, जीभ सख्त व अग्र भाग लाल, शरीर में दर्द, बेचैनी, सुस्ती, रोगी बडबडाता हो और शरीर को इधर उधर घुमाता हो – (रस टाक्स 6 या 30, दिन में 3 – 4 बार)

रोग की बढ़ी हुई अवस्था में , जब रोगी बहुत कमजोर हो जाये, बेचैनी, तेज प्यास l सब लक्षण रात के समय बढ़ जायें खासकर 1 बजे के करीब – (आर्सेनिक 6 या 30, दिन में 2 -3 बार)

रोगी को मुनक्का दूध ही दें l अनाज या अनाज से बनी चीजें न दें, जटिल रोग में किसी अनुभवी डॉक्टर को दिखाएं l

निरोगी रहने हेतु महामन्त्र

मन्त्र 1 :-

• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें

• ‎रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें

• ‎विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)

• ‎वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)

• ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)

• ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें

• ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

मन्त्र 2 :-

• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)

• ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)

• ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये

• ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें

• ‎पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये

• ‎बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूणतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें

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