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[: आज के आधुनिक युग में भवन निर्माण का कार्य अत्यन्त कठिन हो गया है। साधारण मनुष्य जैसे तैसे गठजोड़ करके अपने लिए भवन की निर्माण करता है। तब भी यदि भवन वास्तु के अनुसार न हो तो मनुष्य दुखी, चिंतित एवं परेशान रहने लगता है।
वास्तु शास्त्र वस्तुतः कला भी हैं और विज्ञान भी । चुंकि कलाओं और विज्ञान का जन्म शास्त्रों से ही हुआ हैं, इसलिए ‘‘वास्तु विद्या‘‘ को भी ‘‘शास्त्र‘‘ ही कहा गया हैं किन्तु आज यह शास्त्र से अधिक विज्ञान और शिल्प की दृष्टि से कला बन चुका हैं । वास्तु काफी पुराना हैं । इसके सिद्धान्त किसी न किसी रूप में हर युग और हर देश में प्रभावी रहे हैं । किसी भी नव निर्माण से पूर्व कुछ मूलभूत सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना होता हैं । अतः वास्तु विद्या उतनी ही पुरानी हैं जितनी की मानव सभ्यता । वास्तु विज्ञान का उद्गम स्थल मस्तिष्क हैं, कारण कि ज्ञान यहीं से प्राप्त होता हैं । दिशाओं, ग्रहों आदि को ज्ञानवर्धक बनाते हुए ‘‘वास्तु‘‘ का सृजन हुआ हैं । एक शिल्पकार भवन को सुन्दर रूप दे सकता हैं किन्तु सुख शान्ति की गारन्टी केवल वास्तृ विज्ञ ही दे सकता हैं ।
यदि आप पारिवारिक, मानसिक और शारीरिक समस्याओं से ग्रस्त हैं तो इनका समाधान वास्तुशास्त्र के द्वारा किया जा सकता हैं। मनुष्य के जीवन को मुख्यतः भाग्य एवं वास्तु प्रभावित करती हैं। यदि वास्तु ठीक नहीं हो और सितारे बुलन्द हो तो उसके परिणाम आधे मिलते हैं । वास्तु सम्मत निवास करने पर भाग्य की स्थिति बदल सकती हैं । वास्तु घर की सुखः-शान्ति व सुरक्षा के साथ पुरूषार्थ की प्राप्ति में सहायक बनता हैं । हमारे जीवन में होने वाले अनुकूल और प्रतिकूल प्रभावों को वास्तु से सुधारकर दूर किया जा सकता हैं ।
भवन निर्माण के लिए भूमिखंड (प्लाट) का चयन करते समय यह ध्यान रखें कि वह वर्गाकार या आयताकार हो । इनमें भी आयताकार सर्वश्रेष्ठ हैं । जमीन खरीदते समय ढलान का ध्यान रखना चाहिए, जमीन का ढलान पूर्व और उत्तर दिशा में होने पर जहॉ धन लाभ होता हैं वहीं पश्चिम दिशा में होने पर पुत्र हानि, दक्षिण में मृत्युभय, ईशान कोण में विद्यालाभा और नेऋत्य कोण में होने पर धन हानि होती हैं।
भूखण्ड के आस-पास कोई कब्रिस्तान, औषधालय या शमशान आदि न हो तथा सीधी सड़क उस भूखण्ड आकर खत्म न होती हो । इन सब के कारण वहॉ नकारात्मक प्रभाव पैदा होता हैं तथा वहॉ निवास करने वालों में उत्साह और आशावाद की कमी नजर आती हैं। भूखण्ड के चयन के बाद शुभ मुहूर्त में भूमि का वास्तु पूजन और गृह शान्ति सुयोग्य पंडित से करवाकर निर्माण कार्य आरम्भ करना चाहिए ।
ऐसा भवन जहॉ सुख, शान्ति और समृद्धि हो, भवन न रहकर घर बन जाता हैं तथा वहॉ रहने वालों की जिन्दगी में खुशी भर जाती हैं । प्रायः सभी घरों में किसी न किसी बात के कारण विवाद बना ही रहता हैं । माता-पिता, पति-पत्नि युवाओ ंव बुजुर्गो में किसी बात को लेकर तनाव का वातावरण बना रहता हैं जिससे सभी परेशान रहते हैं । घर में व्याप्त तनाव एवं कलह का वातावरण अशान्ति आदि का मुख्य कारण घर में वास्तुदोष का होना भी हो सकता हैं ।
बने हुए भवनों एवं नवनिर्माण होने वाले भवनों में वास्तुदोष निवारण का प्रयास करना चाहिए बिना तोड़-फोड़ के प्रथम प्रयास में दिशा परिवर्तन कर अपनी दशा को बदलने का प्रयास करें । यदि भवन वास्तु शास्त्र के नियमों के विपरीत बना हो तब
उसमें बिना तोड-फोड किये वास्तु दोषों को दूर किया जा सकता है। जैसे कमरों की बन्द दीवारों पर आईना, सुन्दर फूलों के मनोरम दृश्यों, सुखद प्राकृतिक दुश्यों तथा लुभावने दृश्यों के चित्रों को टाँगने से मनुष्य की उर्जा का चक्र पूरा हो जाता है और वास्तु के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक कमरे के ईशान कोंण को खाली रखने, दक्षिण-पश्चिम कोंण को भारी तथा वजनदार रखने,गैर-सृजनात्मक दिशाओं में खुले दरवाजों, खिडकियों को बंद रखने से वास्तु दोषें का कुप्रभाव कम होने लगता है। वास्तुदोष होने पर गृह क्लेश का निवारण निम्न उपाय अपनाकर किया जा सकता हैं.

  1. घर का प्रवेश द्वार यथासम्भव पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। प्रवेश द्वार के समक्ष सीढियॉ व रसोई नहीं होनी चाहिए । प्रवेश द्वार भवन के ठीक बीच में नहीं होना चाहिए। भवन में तीन दरवाजे एक सीध में न हो ।
    2 . भवन में कांटेदार वृक्ष व पेड़ नहीं होने चाहिए ना ही दूध वाले पोधे – कनेर, ऑकड़ा केक्टस, बाैंसाई आदि । इनके स्थान पर सुगन्धित एवं खूबसूरत फूलों के पौधे लगाये ।
    3 . घर में युद्ध के चित्र, बन्द घड़ी, टूटे हुए कॉच, तथा शयन कक्ष में पलंग के सामने दर्पण या ड्रेसिंग टेबल नहीं होनी चाहिए ।
    4 . भवन में खिड़कियों की संख्या सम तथा सीढ़ियों की संख्या विषम होनी चाहिए ।
    5 . भवन के मुख्य द्वार में दोनों तरफ हरियाली वाले पौधे जैसे तुलसी और मनीप्लान्ट आदि रखने चाहिए । फूलों वाले पोधे घर के सामने वाले आंगन में ही लगाए । घर के पीछे लेगे होने से मानसिक कमजोरी को बढावा मिलता हैं ।
    6 . मुख्य द्वार पर मांगलिक चिन्ह जैसे स्वास्तिक, ऊँ आदि अंकित करने के साथ साथ गणपति लक्ष्मी या कुबेर की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए ।
    7 . मुख्य द्वार के सामने मन्दिर नहीं होना चाहिए । मुख्य द्वार की चौड़ाई हमेशा ऊँचाई की आधी होनी चाहिए ।
    8 . मुख्य द्वार के समक्ष वृक्ष, स्तम्भ, कुआं तथा जल भण्डारण नहीं होना चाहिए । द्वार के सामने कूड़ा कर्कट और गंदगी एकत्र न होने दे यह अशुभ और दरिद्रता का प्रतिक हैं ।
  2. रसोई घर आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण पूर्व दिशा में होना चाहिए । गैस सिलेण्डर व अन्य अग्नि के स्त्रोतों तथा भोजन बनाते समय गृहणी की पीठ रसोई के दरवाजे की तरफ नहीं होनी चाहिए । रसोईघर हवादार एवं रोशनीयुक्त होना चाहिए । रेफ्रिजरेटर के ऊपर टोस्टर या माइक्रोवेव ओवन ना रखे । रसोई में चाकू स्टैण्ड पर खड़ा नहीं होना चाहिए । झूठें बर्तन रसोई में न रखे ।
    10 . ड्राइंग रूम के लिए उत्तर दिशा उत्तम होती हैं । टी.वी., टेलिफोन व अन्य इलेक्ट्रोनिक उपकरण दक्षिण दिशा में रखें । दीवारों पर कम से कम कीलें प्रयुक्त करें । भवन में प्रयुक्त फर्नीचर पीपल, बड़ अथवा बेहडे के वृक्ष की लकड़ी का नहीं होना चाहिए ।
    11 . किसी कौने में अधिक पेड़-पौधें ना लगाए इसका दुष्प्रभाव माता-पिता पर भी होता हैं वैसे भी वृक्ष मिट्टी को क्षति पहुॅचाते हैं ।
    12 . पुरानी एवं बेकार वस्तुओं को घर से बाहर निकाले ।
    13 . बेडरूम में डबल बैड पर दो अलग-अलग गद्दों के स्थान पर एक ही गद्दा प्रयोग में लावे । यह तनाव को दूर करता हैं। दो गद्दे होने से तनाव होता हैं व सम्बन्धों में दरार आकर बात तलाक तक पहुॅच सकती हैं । शयन कक्ष में वाश बेसिन नहीं होना चाहिए । हॉ अटेच बाथरूम होने पर वाश बेसिन हो सकता हैं । शयन कक्ष में हिंसा या युद्ध दर्शाता चित्र नहीं होना चाहिए । शयन कक्ष में पति-पत्नि का एक संयुक्त चित्र हंसते हुए लगाना चाहिए। शयन कक्ष में कॉच (ड्रेसिंग टेबिल) आदि नहीं होने चाहिए । नकारात्मक ऊर्जा बढती है। गुलाबी रंग का उपयोग करें । शयन कक्ष में क्रिस्टल बाल व लव बर्ड का प्रयोग करने से प्यार व रोमांस बढता हैं तथा सम्बन्धों में मधुरता आती हैं तथा एक दूसरे के प्रति विश्वास में प्रगाढता आती हैं। शयनकक्ष दक्षिण पश्चिम दिशा में सर्वोत्तम हैं । शयन के समय सिर दक्षिण में होना चाहिए इससे शरीर स्वस्थ्य रहता हैं तथा नींद अच्छी आती हैं ।
  3. झाड़-फानूस लगाने से अविवाहित युवक-युवती का विवाह शीघ्र हो जाता हैं। इसके साथ ही अविवाहित युवक-युवती को पूर्व दिशा में सिर रखकर शयन करना चाहिए ।
    15 . क्रिस्टल (स्फटिक) की माला का पयोग करें । क्रिस्टल की वस्तुओं का प्रयोग करें जैसे – पैन्डल, माला, पिरामिड, शिवलिंग, श्रीयंत्र आदि ।
    16 . मोती का प्रयोग करें । यह तन-मन को निरोगी एवं शीतल रखता हैं। घर में तनाव उत्पन्न नहीं होगा ।
    17 . घर का मुख्य द्वार छोटा हो तथा पीछे का दरवाजा बड़ा हो तो वहॉ के निवासी गंभीर आर्थिक संकट से गुजर सकते हैं ।
    18 . घर का प्लास्टर उखड़ा हुआ नहीं होना चाहिए चाहे वह आंगन का हो, दीवारों का या रसोई अथवा शयनकक्ष का । दरवाजे एवं खिड़किया भी क्षतिग्रस्त नहीं होनी चाहिए। मुख्य द्वार का रंग काला नहीं होना चाहिए । अन्य दरवाजों एवं खिडकी पर भी काले रंग के इस्तेमाल से बचे ।
    19 . मुख्य द्वार पर कभी दर्पण न लगायें । सूर्य के प्रकाश की और कभी भी कॉच ना रखे। इस कॉच का परिवर्तित प्रकाश आपका वैभव एवं ऐश्वर्य नष्ट कर सकता हैं ।
    20 . घर में जगह-जगह देवी देवताओं के चित्र प्रतिमाएॅ या केलेन्डर ना लगाएॅ ।
    21 . घर में भिखारी, वृद्धो या रोते हुए बच्चों के चित्र व पोस्टर आदि ना लगाएॅ । ये गरीबी, बीमारी या दुख दर्द का आभास देते हैं । इनके स्थान पर खुशहाली, सुख-समृद्धि एवं विकास आदि का आभास देने वाले चित्र व पोस्टर लगाएॅ ।
    22 . घर एवं कमरे की छत सफेद होनी चाहिए, इससे वातावरण ऊर्जावान बना रहता हैं ।
    23 . पूजा कक्ष पूर्व दिशा या ईशान (उत्तर पूर्व) में होना चाहिए । प्रतिमाएॅ पूर्व या पश्चिम दिशा में स्थापित करें । सीढ़ियों के नीचे पूजा घर कभी नहीं बनावें । एक से अधिक मूर्ति (विग्रह) पूजा घर में ना रखे ।
    24 . धनलाभ हेतु जेवर, चेक बुक, केश बुक, ए.टी.एम. कार्ड, शेयर आदि सामग्री अलमारी में इस प्रकार रखें कि अलमारी प्रयुक्त करने पर उसका द्वार उत्तर दिशा में खुले। अलमारी का पिछवाड़ा दक्षिण दिशा में होना चाहिए ।
    25 . बारामदा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा में तथा बालकनी उत्तर पूर्व में रखनी चाहिए ।
    26 . भवन में सीढियॉ पूर्व से पश्चिम या दक्षिण अथवा दक्षिण पश्चिम दिशा में उत्तर रहती हैं । सीढिया कभी भी घूमावदार नहीं होनी चाहिए । सीढियों के नीचे पूजा घर और शौचालय अशुभ होता हैं । सीढियों के नीचे का स्थान हमेशा खुला रखें तथा वहॉ बैठकर कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए ।
    27 . पानी का टेंक पश्चिम में उपयुक्त रहता हैं । भूमिगत टंकी, हैण्डपम्प या बोरिंग ईशान (उत्तर पूर्व) दिशा में होने चाहिए । ओवर हेड टेंक के लिए उत्तर और वायण्य कोण (दिशा) के बीच का स्थान ठीक रहता हैं। टेंक का ऊपरी हिस्सा गोल होना चाहिए ।
    28 . स्नानघर पूर्व दिशा में ही बनवाएॅ । यह ध्यान रखें कि नल की टोटियों से पानी न टपके न रिसें, यह अशुभ होता हैं।
  4. शौचालय की दिशा उत्तर दक्षिण में होनी चाहिए अर्थात इसे प्रयुक्त करने वाले का मुँह दक्षिण में व पीठ उत्तर दिशा में होनी चाहिए । मुख्य द्वार के बिल्कुल समीप शौचालय न बनावें । सीढियों के नीचे शौचालय का निर्माण कभी नहीं करवायें यह लक्ष्मी का मार्ग अवरूद्ध करती हैं । शौचालय का द्वार हमेशा बंद रखे । उत्तर दिशा, ईशान, पूर्व दिशा एवं आग्नेय कोण में शौचालय या टेंक निर्माण कदापि न करें ।
    30 . भवन में दर्पण हमेशा उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना चाहिए ।
    31 . श्रीमद् भगवत गीता का एक अध्याय रोज पढे़ ।
    32 . घड़ी को उत्तर दिशा में टांगना या रखना शुभ होता हैं ।
  5. पानी हमेशा उत्तर या पूर्व की ओर मुँह करके पिएं ।
    34 . भोजन करते समय मुख पूर्व में रखना चाहिए ।
    35 . भवन की दीवारों पर आई सीलन व दरारें आदि जल्दी ठीक करवा लेनी चाहिए क्योकि यह घर के सदस्यों के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं रहती ।
    36 . घर की छत पर तुलसी को गमले में स्थापित करने से बिजली गिरने का भय नहीं रहता हैं।
    37 . घर के सभी उपकरण जैसे टीवी, फ्रिज, घड़ियां, म्यूजिक सिस्टम, कम्प्यूटर आदि चलते रहने चाहिए। खराब होने पर इन्हें तुरन्त ठीक करवां लें क्योकि बन्द (खराब) उपकरण घर में होना अशुभ होता हैं ।
    38 . भवन का ब्रह्म स्थान रिक्त होना चाहिए अर्थात भवन के मध्य कोई निर्माण कार्य नहीं करें ।
    39 . बीम के नीचे न तो बैठंे और न ही शयन करें । शयन कक्ष, रसोई एवं भोजन कक्ष बीम रहित होने चाहिए ।
    40 . वाहनों हेतु पार्किंग स्थल आग्नेय दिशा में उत्तम रहता हैं क्योंकि ये सभी उष्मीय ऊर्जा (ईधन) द्वारा चलते हैं ।
    41 . भवन के दरवाजें व खिड़कियां न तो आवाज करें और न ही स्वतः खुले तथा बन्द हो ।
    42 . एक ही दिशा में तीन दरवाजे एक साथ नहीं होने चाहिए ।
  6. व्यर्थ की सामग्री (कबाड़) को एकत्र न होने दें । घर में समान को अस्त व्यस्त न रखें । अनुपयोगी वस्तुओं को घर से निकालते रहें ।
    44 . भवन के प्रत्येक कोने में प्रकाश व वायु का सुगमता से प्रवेश होना चाहिए । शुद्ध वायु आने व अशुद्ध वायु बाहर निकलने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए । ऐसा होने से छोटे मोटे वास्तु दोष स्वतः समाप्त हो जाते हैं ।
    45 . अध्ययन करते समय मुख पूर्व, उत्तर या ईशान दिशा में होना चाहिए ।
    46 . गृह कलेश निवारण हेतु योग्य आचार्य से पितृदोष शान्ति एवं कालसर्प योग निवारण करवाएॅ ।
    यूं तो सारे नियम ही महत्वपूर्ण हैं किन्तु रसोईघर, पानी का भण्डारण, शौचालय व सैप्टिक टेंक बनाते समय विशेष ध्यान रखें । इसके बावजूद भी यदि निर्माण करवाना पड़े तो पिरामिड के प्रयोग द्वारा बिना तोड़-फोड़ किये गृहक्लेश निवारण किया जा सकता हैं ।
    [: जिस जमीन पर मकान आदि का निर्माण करना हो, उस स्थान पर गृह स्वामी की कुहनी से मध्यमा अंगुली तक की लम्बाई नापकर उसी नाप का गहरा, लम्बा व चौड़ा गड्ढा कर लें एवं निकली हुई मिट्टी से गड्ढे को पुनः भर दें। यदि मिट्टी कम पड़े तो हानि, बराबर रहे तो न हानि न लाभ तथा मिट्टी शेष बच जाए तो ऐसी भूमि को सुख-सौभाग्य प्रदान करने वाली समझना चाहिए।

नारायण भट्ट ग्रंथ के अनुसार सांयकाल सूर्यास्त के समय ऊपर बताए गए नाप का गड्ढा खोदकर उसे पानी से पूरा भर दें। प्रातःकाल जाकर देखें, यदि पानी शेष है तो शुभ, पानी नहीं बचा लेकिन मिट्टी गीली है तो मध्यम तथा सूखकर दरारें पड़ जाए तो भवन निर्माण के लिए इसे अशुभ माना गया है।

भूमि परीक्षण बीज बो कर भी किया जाता है। यदि बीज समय पर अंकुरित हो जाए तो ऐसी भूमि पर निर्माण करना वास्तु में उचित माना जाता है। जिस जगह पर विश्राम करने से व्यक्ति के मन को शांति अनुभव होती है, अच्छे विचार आते हैं तो वह भूमि भवन निर्माण के योग्य होती है। वास्तु शास्त्र में कहा गया है कि गड्ढे में पानी स्थिर रहे तो घर में स्थायित्व, बाएं से दाएं घूमता दिखे तो सुख, दाएं से बाएं घूमे तो अशुभ रहता है।

भूखंड की खुदाई में कपाल, बाल, हड्डी, कोयला, कपड़ा, जली लकड़ी, चींटियां, सर्प, कौड़ी, रुई अथवा लोहा मिले तो अनिष्ट होता है।लेकिन पत्थर मिलें तो धनलाभ, ईंट मिलें तो बढ़ोत्तरी एवं तांबे के सिक्के आदि निकलें तो ऐसी भूमि सुख-समृद्धि दायक होती है।
[: स्वस्थ रहने के लिए अपनाएं 15 वास्तु टिप्स

1) सुबह उठकर पूर्व दिशा की सारी खिडकियां खोल दें। उगते सूरज की किरणें सेहत के लिए बहुत लाभदायक होती हैं। इससे पूरे घर के बैक्टीरिया एवं विषाणु नष्ट हो जाते हैं।

2) दोपहर बाद सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट किरणों से निकलने वाली ऊर्जा तरंगें सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह होती हैं। इनसे बचने के लिए सुबह ग्यारह बजे के बाद घर की दक्षिण दिशा स्थित खिडकियों और दरवाजों पर भारी पर्दे डाल कर रखें। क्योंकि ये किरणें त्वचा एवं कोशिकाओं को क्षति पहुंचाती हैं।

3) रात को सोते समय ध्यान दें कि आपका सिर कभी भी उत्तर एवं पैर दक्षिण दिशा में न हो अन्यथा सिरदर्द और अनिद्रा जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

4) गर्भवती स्त्रियों को दक्षिण-पश्चिम दिशा स्थित कमरे का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसी अवस्था में पूर्वोत्तर दिशा या ईशान कोण में बेडरूम नहीं रखना चाहिए। इसके कारण गर्भाशय संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

5) नवजात शिशुओं के लिए घर के पूर्व एवं पूर्वोत्तर के कमरे सर्वश्रेष्ठ होते हैं। सोते समय बच्चे का सिर पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।

6) हाई ब्लडप्रेशर के मरीजों को दक्षिण-पूर्व में बेडरूम नहीं बनाना चाहिए। यह दिशा अग्नि से प्रभावित होती है और यहां रहने से ब्लडप्रेशर बढ जाता है।

7) बेडरूम हमेशा खुला और हवादार होना चाहिए। ऐसा न होने पर व्यक्ति को मानसिक तनाव एवं नर्वस सिस्टम से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं।

8) वास्तुशास्त्र की दृष्टि से दीवारों पर सीलन होना नकारात्मक स्थिति मानी जाती है। ऐसे स्थान पर लंबे समय तक रहने से श्वास एवं त्वचा संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

9) परिवार के बुजुर्ग सदस्यों को हमेशा नैऋत्य कोण अर्थात दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित कमरे में रहना चाहिए। यहां रहने से उनका तन-मन स्वस्थ रहता है।

10) किचन में अपने कुकिंग रेंज अथवा गैस स्टोव को इस प्रकार व्यवस्थित करें कि खाना बनाते वक्त आपका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे। यदि खाना बनाते समय गृहिणी का मुख उत्तर दिशा में हो तो वह सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस एवं थायरॉइड से प्रभावित हो सकती है। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन बनाने से बचें। गृहिणी के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर इसका नकारात्मक प्रभाव पडता है। इसी तरह पश्चिम दिशा में मुख करके खाना बनाने से आंख, नाक, कान एवं गले से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।

11) यह ध्यान रखें कि रात को सोते हुए बेड के बिलकुल पास मोबाइल, स्टेवलाइजर, कंप्यूटर या टीवी आदि न हो। अन्यथा इनसे निकलने वाली विद्युत-चुंबकीय तरंगें मस्तिष्क, रक्त एवं हृदय संबंधी रोगों का कारण बन सकती हैं।

12) बेडरूम में पुरानी और बेकार वस्तुओं का संग्रह न करें। इससे वातावरण में नकारात्मकता आती है। साथ ही, ऐसे चीजों से टायफॉयड और मलेरिया जैसी बीमारियों के वायरस भी जन्म लेते हैं।

13) आंखों की दृष्टि मजबूत बनाने के लिए सुबह जल्दी उठकर, किसी खुले पार्क या हरे-भरे बाग बगीचे में टहलें। वहां मिलने वाला शुद्ध ऑक्सीजन शरीर की सभी ज्ञानेंद्रियों को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता है।

14) कोशिश होनी चाहिए कि भोजन करते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा में रहे। इससे सेहत अच्छी बनी रहती है। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से पाचन तंत्र से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं।

15) टीवी देखते हुए खाने की आदत ठीक नहीं है। ऐसा करने पर मन-मस्तिष्क भोजन पर केंद्रित न होकर माहौल के साथ भटकने लगता है। इससे शरीर को संतुलित मात्रा में भोजन नहीं मिल पाता। साथ ही टीवी से निकलने वाली नकारात्मक ऊर्जा का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है।
[: पांच चीजों के बारे में जिनसे आपको हो सकती परेशानी

1) बहुत से लोग दरवाजे, खिड़कियों में लगे कांच के टूट जाने पर भी उसे बदलवाते नहीं है और टूटे हुए कांच को लगे रहने देते हैं। ऐसे में वास्तुदोष उत्पन्न होता है जो आर्थिक नुकसान का कारण बनता है।

2) टूटे हुए आइने को भी कभी घर में नहीं रखना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि टूटे हुए आइने में चेहरा नहीं देखें।

3) उन्नति और धन संबंधी परेशानियों से बचाव के लिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बंद हुई घड़ी को चालू करलें।

4) अगर घड़ी खराब हो चुकी है और चलने लायक नहीं है तो उसे घर में यादगार बनाकर न रखें।

5) वास्तुविज्ञान के अनुसार घर में भगवान की टूटी हुई मूर्ति भूलकर भी नहीं रखें। भगवान की टूटी हुई मूर्तियों को घर में रखने से घर में नकारात्मक उर्जा का प्रवाह होने लगता है जिससे घर में कई तरह की परेशानियां आने लगती हैं।

6) इस तरह फटी हुई और पुरानी हो चुकी भगवान की तस्वीरों को भी घर में नहीं रखना चाहिए। ऐसी तस्वीरें और मूर्तियों को जल में प्रवाहित कर देना चाहिए।

7) लेकिन वास्तुविज्ञान के अनुसार घर में लोगों के बीच आपसी प्रेम और सद्भाव बनाए रखने के लिए कभी भी कांटे वाले पौधों को घर में नहीं रखना चाहिए। इससे उर्जा का प्रवाह प्रभावित होता है, उन्नति और लाभ में भी बाधा आती है।

9) इस बात का भी ध्यान रखें कि जिन पौधों के पत्ते सूख या गल चुके हों उनके गले सूखे पत्तों को तोड़कर घर के बाहर फेंक दें। शयन कक्ष के अंदर कभी भी पौधा नहीं रखना चाहिए।

10) वास्तु विज्ञान में बताया गया है कि कूड़ा कबाड़ घर में बिल्कुल भी नहीं रखें। अगर कोई चीज आपके लिए उपयोगी नहीं है, टूट-फूट गई है तो उसे तुरंत ही घर से बाहर कर दें।

11) खराब और बेकार की चीजों को घर में सहेज कर रखने से नकरात्मक उर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है। इससे स्वास्थ्य और धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

12) खराब विद्युत उपकरण जैसे टीवी, कंप्यूटर, फ्रीज और दूसरे जो भी सामान हों उसे खराब होने पर जल्दी ठीक करवा लें। खराब सामान को घर में रखना अपने लिए नुकसान को बुलावा देना है।

13) वास्तुविज्ञान के अनुसार कभी भी किसी एक देवी देवता की मूर्ति आमने-सामने नहीं रखनी चाहिए। यानी आपके घर में दो लक्ष्मी माता की मूर्ति या तस्वीर है तो दोनों को एक दूसरे के आमने सामने नहीं रखें।

14) ऐसा होने से धन आगमन का मार्ग बाधित होता है और खर्च बढ़ जाते हैं। देवी लक्ष्मी ही नहीं इस बात का ख्याल हर देवी देवता के मामले में रखें।
[: आजकल अधिकतर लोग घर के वास्तु को लेकर परेशान रहते हैं क्योंकि घर में वास्तुदोष हो तो घर में समृद्धि नहीं होती। कलह, बीमारियों व लड़ाई-झगड़े आदि से धन का नाश होता है। यदि यही समस्या आपके साथ भी है तो नीचे लिखे वास्तु टोटकों को जरुर अपनाएं।

इन टोटकों से आपके घर के वास्तुदोष में कमी आएगी और साथ ही घर में बरकत रहने लगेगी।

– दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के समय पांच लक्ष्मीकारक कौडिय़ां और आम की लकड़ी का स्वास्तिक दोनों की धूप -दीप से पूजा करें, इसके बाद दूसरे दिन लक्ष्मीकारक कौडिय़ों को अपनी तिजोरी में लाल कपड़े में बांधकर रख दें। आम से बने स्वास्तिक को घर के मुख्यद्वार पर लगवा दें।
– ढक्कन वाला एक चांदी का कलश लें। उसमें गंगाजल डालक र उसकी गर्दन पर कलावे में मुंगा पिरोकर बांध दें। ढक्कन लगा दें। इसके बाद घर के उत्तर पूर्व में स्थापित कर दें।
– लाल रंग का रिबन तांबे के सिक्के के साथ, मुख्य द्वार पर बांधने से घर में धन वृद्धि होती है।
– स्फटिक का कछुआ उत्तर दिशा में इस प्रकार रखें कि उसका मुंह घर के अन्दर की ओर हो। गल्ले और तिजोरी में स्फटिक कछुआ, सोने चांदी के सिक्के और चावल रखने से लक्ष्मी आती है।
– घर के निवास के मुख्यद्वार पर बैठे हुए गणपति की दो मूर्तियां इस प्रकार लगाएं कि दोनों की पीठ एक-दूसरे से सट जाये।
फेंगशुई कैंडल्स भर देंगी घर को सकारात्मक ऊर्जा से दीपावली पर रंगीन मोमबत्ती की सजावट का ट्रेंड आजकल जोरों पर हैं। मोमबत्तीयों की सजावट को फेंगशुई के अनुसार भी शुभ माना गया है। दीपावली पर आप अपने घर के सही कोने में सही रंग की मोमबत्ती लगाएं तो घर सकारात्मक ऊर्जा से भर जाएगा।
– घर के उत्तर-पूर्वी कोने में ग्रीन रंग की मोमबत्ती लगाएं। इससे घर में पढऩे वाले बच्चों का एकाग्रता बढ़ती है।
– ग्रीन रंग की मोमबत्ती लगाने से घर की सकारात्मक ऊर्जा मे वृद्धि होती है।
– दक्षिण पश्चिम यानी अग्रिकोण में गुलाबी और पीले रंग की मोमबत्ती जलाएं। इससे परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम व सामंजस्य बढ़ेगा।
– दक्षिण भाग को लाल रंग की मोमबत्ती से सजाएं। इससे धन समृद्धि में वृद्धि होती है।
– पूर्व में नीले रंग की मोमबत्ती जलाना चाहिए।
– उत्तर पश्चिम में सफेद रंग की मोमबत्ती लगाने से रचनात्मकता बढ़ती है।
[: पारिवारिक जीवन

1) बेडरूम दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए और इसी कोने में बेड भी रखना चाहिये। यदि आपने अपना बेड कमरे के दक्षिण-पूर्व दिशा में रखा तो आपको ठीक से नींद नहीं आयेगी, आप तनाव से घिरे रहेंगे, आपको गुस्‍सा जल्‍दी आयेगा और बेचैनी सी बनी रहेगी।

2) मकान के मालिक या मुखिया अगर उत्‍तर-पश्चिम दिशा में स्थित बेडरूम में सोते हैं, तो अस्थिरता बनी रहती है, इसीलिए इस दिशा में घर के मालिक का बेडरूम नहीं होना चाहिए। घर के अन्‍य सदस्‍यों का बेडरूम यहां हो सकता है। इसी बेडरूम को मास्‍टर बेडरूम कहा जाता है।

3) बेड का सिरहाना दक्षिण की ओर होना चाहिये। इससे बेचैनी नहीं रहती है और रात में अच्‍छी नींद आती है उसका स्‍वास्‍थ्‍य उत्‍तम रहता है। उत्‍तर की तरफ सिर करके सोने से खराब सपने आते हैं और नींद अच्‍छी नहीं आती और स्‍वास्‍थ्‍य खराब रहता है। वहीं पूर्व की ओर सिर करने से ज्ञान बढ़ता है, जबकि पश्चिम की ओर सिर करके सोने से स्‍वास्‍थ्‍य खराब रहता है।

4) बेहतर निर्णय क्षमता के लिए अपनी बेटी और बेटे का कक्ष अपने कक्ष से पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए.उसके पड़ने लिखने की दिशा भी पूर्व ही होनी चाहिए. जहां तक मुमकिन हो बेटी को अपने कक्ष में सोने दें.उसके कमरें में सुन्दर, आकर्षक और मोहक पेंटिंग लगी होनी चाहिए. इससे बेटी के मन में आत्मविश्वास भरे और सकारात्मक भाव उत्पन्न होंगे.

5) अपनी बेटी या अपने बेटे का कमरा ज्यादा सजा हुआ नहीं होना चाहिए कोई भी विलासिता का सामान वहां नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इससे विलासिता बडती है. और गलत भावना का विकास होने लगता है. टेलीफोन, टीवी, संगीत से सम्बंधित कोई भी वस्तु का प्रयोग कम से कम करें. इस तरह की बाते भी आपकी संतान को विद्रोही बनाती है.

6) अपनी संतान का जरूरी सामान जैसे की किताबे, कलम आदि घर में जन्म वास्तु के अनुसार रखें. उसके सिरहाने बेकार के सामान रद्दी आदि ना रखे, और ना ही अपने बच्चों के पलंग के नीचे जूते-चप्पल इत्यादि रखें और अपने बच्चों की अलमारी में नए जूते या चप्पल आदि ऊपर- नीचे कहीं भी ना रखे क्योंकि इसके कारण आपकी संतान घर में बड़ों का आदर सत्कार नहीं करेगी अर्थात जिद्दीपन बढ़ेगा.

7) उत्तर पूर्वी भागों में ज्वलनशील पदार्थ तथा गर्मी उत्पन्न करने वाले उपकरण नहीं रखने चाहिए इससे पुत्र का व्यवहार उग्र होता है और पिता की बातों को नहीं मानता है।

8) ईशान कोण खंडित हो अथवा इस दिशा में कूड़ादान रखते हों तो इससे पिता और पुत्र के बीच वैमनस्य बढ़ता है और गंभीर विवाद हो सकता है।

9) भूखंड उत्तर व दक्षिण में संकरा तथा पूर्व व पश्चिम में लंबा हो तो ऐसे भवन को सूर्यभेदी कहते हैं। ऐसे भवन में पिता-पुत्र साथ रहें तो एक दूसरे से अक्सर विवाद होते रहते हैं और रिश्तों में दूरियां बढ़ जाती हैं।

10) घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाएं। इससे परिवार में प्रेम बढ़ता है।

11) घर में कभी-कभी नमक के पानी से पोंछा लगाना चाहिए। इससे नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है।

12) घर से निकलते समय माता-पिता को विधिवत (झुककर) प्रणाम करना चाहिए। इससे बृहस्पति और बुध ठीक होते हैं। इससे व्यक्ति के जटिल से जटिल काम बन जाते हैं।

13) प्रवेश द्वार पर कभी ‍भी बिना सोचे-समझे गणेशजी न लगाएं। दक्षिण या उत्तरमुखी घर के द्वार पर ही गणेशजी लगाएं।। …. .. …………… : धन संबंधित उपाय

धन की समस्या समस्त जनसमाज में प्रतिदिन विकराल रूप लेती जा रही है। जैसे जैसे व्यक्ति की आवश्यकताए बढ़ी है उससे अधिक व्यर्थ के खर्च बढ़े है। इन सभी की पूर्ति करने के लिये धन की आवश्यकता से इनकार नही किया जा सकता व्यक्ति कभी भी आकस्मिक घटनाओं अथवा दुर्घटनाओं के लिये तैयार नही रहता इसलिये जब भी अनापेक्षित एवं अनायास किसी प्रकार की घटना अथवा दुर्घटना का सामना करना पड़ता है तो अनेक समस्याओं के साथ साथ धन संबंधित समस्या भी उभर कर सामने आती है। अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करने में भी धन की आवश्यकता पड़ती है।
इसके अतिरिक्त एक अन्य स्थिति को भी देखना चाहिये जो धन संबंधित समस्या उत्पन्न करती है।ये समस्या अधिकांशतः व्यवसाय से संबंधित ही होती है। व्यवसाय में किसी भी प्रकार की समस्या उत्पन्न होने पर भी खर्च यथावत रहते है। इस स्थिति में धन की अधिक आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में यह विचार उत्पन्न होता है जिस धन की हमे आवश्यकता है उसे कैसे प्राप्त किया जाए प्रारंभ से ही हमारे विद्वान ऋषियों ने किसी भी समस्या से मुक्ति के अनेकों उपाय बताए है। धन संबंधित समस्याओं के लिये भी की ऐसे चमत्कारिक उपाय है जिनका प्रयोग कर धन प्राप्ति के मार्ग में आने वाली बाधाये समाप्त हो सकती है। आज से हम आपके साथ प्रतिदिन धन अथवा अन्य समस्याओं से छुटकारा दिलाने के स्वानुभूत प्रयोग सांझा करेंगे।

धन संबंधित उपाय कब करें
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हमारे द्वारा बताए गए धन संबंधित अधिकांश उपाय को लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्ति के साथ जोड़कर दिखाया गया है इससे आप यह विचार ना करें कि लक्ष्मी के उपाय केवल दीपावली पर ही करें आप दीवावली के अतिरिक्त भी अन्य शुभ अवसरों पर ये उपाय कर सकते है। लेकिन जब भी कोई उपाय करें तो पूरी श्रद्धा के साथ करें तभी शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। आडंबर से भरपूर और विशाल स्तर पर की गई आस्था एवं श्रद्धाहीन पूजा का फल कभी नही मिलता इसका विशेष ध्यान रखें। इसके अतिरिक्त कुछ नियम का पालन करना भी अतिआवश्यक है जो आपको नीचे बताये जा रहे है।

आवेश की अवस्था मे उपाय नही करें👉 अधिकांश अवसरों पर व्यक्ति दुखो परेशानियों से क्षुब्ध होकर पूजा पाठ अथवा उपाय करने बैठता है तब भी आवेश से भरा रहता है। ऐसे स्थित में आपका ध्यान उपायों पर कम अपनी समस्याओं पर अधिक रहता है परिणाम स्वरूप जिस स्थित और समर्पित भाव से उपाय करना है उस स्थिति में आया ही नही जा सकता ऐसे में किये उपाय का लाभ नही मिल पाता।

👉 असम्भव की प्राप्ती के लिये उपाय नही करें।

👉 किसी के अनिष्ट के लिये उपाय नही करे अन्यथा प्रकृति के नियम अनुसार आप जिसके साथ जैसा करेंगे वैसा ही फल आपको भी आगे भोगने को मिलेगा।

👉 संस्कृत ज्ञान ना होने पर हिंदी अनुवाद में पाठ अथवा स्त्रोत्र करें संस्कृत को जबरदस्ती पढ़ने का प्रयास हानि करा सकता है।

👉 उपाय करते समय अपने गुरु और इष्ट के प्रति समर्पित भाव होना चाहिये तभी सफलता निश्चित होती है।

👉 फल प्राप्ति में विलंब होने पर निराश ना हो पूर्वसंचित कर्म धीरे धीरे ही कटते है उसके बाद ही उपायों में सफलता मिकने लगती है एक या दो बार सफल ना होनेपर भी निष्ठा से उपाय करते रहे पत्थर पर भी रस्सी बार बार रगड़ते रहने पर निशान आ जाता है इससे भी कुछ प्रेरणा लें।

👉 जिस उपाय के प्रति अधिक आस्था हो विलंब होने पर भी उसे बदलें नही अन्यथा नया उपाय करने पर शक्तियों को संग्रहित होने में फिर से उतना ही समय लगेगा।

👉 उपाय करने के साथ-साथ कर्म भी करते रहे कुछ व्यक्ति सोचते है कि जो उपाय कर रहे है उसका फल मिलते ही उनकी समस्त संमस्या समाप्त हो जाएगी इसलिये अब अधिक पुरुषार्थ करने की आवश्यता नही जबकि ऐसा नही होता जैसे कर्ज होने की स्थिति में केवल उपाय पर ही निर्भर नही रहा जा सकता साथ मे व्यवसाय अथवा अन्य रोजगार में अधिक परिश्रम करने पर ही कर्ज उतारने की स्थिति बनेगी परिश्रम के साथ परमार्थ भी करने पर शीघ्र ही भगवत कृपा प्राप्त होती है।

सामग्री को जल में प्रवाहित कैसे करें?
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अनेक उपायों में यह उल्लेख आता है कि अमुक सामग्री को जल में प्रवाहित करें इसके पीछे छुपा कारण आपको बताते है कि इसके पीछे यह भावना होती है जिस प्रकार से प्रवाहित करने पर वस्तु हमसे दूर जा रही है उसी में हमारे कष्ट और समस्याए है जिन्हें तीव्र वेग वाले जल में बहाने पर उसी तीव्र वेग से हमारे दुख एवं कष्ट दूर चले जाएं। अधिकांश पाठकों के समक्ष यह समस्या आती है कि हमारे आस-पास बहता जल नही है ऐसी स्थिति में आप किसी तालाब में भी यह उपाय कर सकते है जो सामग्री आपने प्रवाहित करनी है उसे जल में छोड़कर दोनो हाथों से ११ अथवा २१ बार जल को आगे की ओर धकेले ऐसा करने पर सामग्री आपसे दूर चली जायेगी इसके बाद बहती सामग्री को प्रणाम कर ईश्वर से प्रार्थना करे जिसप्रकार सामग्री डोर जा रही है उसी प्रकार मेरी समस्याओं को दूर करें।

सामग्री 👉 उपायों में प्रयोग करने वाली सामग्री हमेशा स्वच्छ ही ले अधिकांश वस्तु आपके आसपास ही मिल जाती है लेकिन कुछ वस्तु ऐसी भी होती है जिन्हें डोर शहर से मंगाना पड़ता है जैसे कि शंख, गौमती चक्र, कौड़िया, यंत्र, रुद्राक्ष, अथवा अन्य सामग्री जो कि आपके पास पहुचने से पहले कई हाथों से गुजरती है इसलिये इनका पुनः शुद्धिकरण होना आवश्यक हो जाता है। इसलिये इन्हें गंगाजल में धोकर प्रयोग करें गंगाजल उपलब्ध ना होने पर गौमूत्र का भी प्रयोग कर सकते है। इसके बाद आप जो भी उपाय करेंगे वह अवश्य ही सफल होगा।

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