योगी रात को जागता है और सांसारिक सोता है।
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः॥
श्रीमद भागवत गीता–2/69
सम्पूर्ण प्राणियों के लिए जो रात्रि के समान है, उस नित्य ज्ञानस्वरूप परमानन्द की प्राप्ति में स्थितप्रज्ञ योगी जागता है और जिस नाशवान सांसारिक सुख की प्राप्ति में सब प्राणी जागते हैं, परमात्मा के तत्व को जानने वाले मुनि के लिए वह रात्रि के समान है।
मानव दिनभर कार्य करता है और रात को आराम करता है यही जीवन जीकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है लेकिन हमारे भगवान श्रीकृष्ण रहस्मयी संकेत देकर हमें सत्य के मार्ग पर अग्रसर कर रहे है लेकिन अगर हम् अपनी आँखें बन्दकर ले तो हमारा ही नुकशान होगा।
भगवान श्रीकृष्ण कह रहे है– जिस रात्रि अर्थात रात को मानव आराम से सोता है वही रात्रि में योगी जागता है इसलिए ताकि संसार को चलायमान रख सके योगी के लिए रात ही वो पल है जिससे वो अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और जिस दिन में मानव अपने सांसारिक सुख भोगने के लिए दौड़ता है भागता है वो एक योगी के लिए रात्रि के समान है क्योंकि उसमें स्थिरता नही है। शोरगुल में भगवान का ध्यान हो नही सकता है इसलिए महापुरुष एकांत में रहना पसंद करते है।
यह मानव जन्म केवल भोग को भोगने के लिए नही मिला है बल्कि किसी महान लक्ष्य को पाने के लिए मिला है जो केवल योग से ही सम्भव है। योग का अर्थ केवल आँखें बन्दकर बैठ जाना नही बल्कि साथ ही ईश्वर से जुड़ना अपने भीतर से फिर जब योग करेंगे तो ईश्वरमय के आनंद को प्राप्त कर पाएंगे।
क्या आप उस योग को धारण किए जो भगवान श्रीकृष्ण कह रहे है।