सागर-भर शुभ मंगल कामनाओ सहित
दोस्तो ,
मान लो तो मुश्किल और ठान लो तो जीत है। कुछ लोग मुश्किल दिखने वाले काम को भी पूरा करने का ठान लेते हैं कि इसे करना ही करना है। और वह उसे पूरा कर भी लेते हैं। किंतु कुछ लोग आसान काम को भी मुश्किल मान कर डर जाते है। और उसे अधूरा छोड़कर हार स्वीरकार लेते हैं। इस मुश्किल को मुश्किल और आसान को आसान कौन तय करता हैं??? यह सीमा कौन तय करता हैं??? यह हमसे कौन कहता हैं कि यह काम तुम कर सकते हो, और ये काम तुम कभी नहीं कर सकते।
यह तय करता है हमारे आसपास का वातावरण। यदि हमारे आसपास के लोग सकारात्मक हैं। साहस और आत्मविश्वास बढ़ाने वाले हैं। किसी कार्य को करने के लिये प्रोत्साहित करने वाले हैं तो हम चुनौतीपूर्ण काम को भी पूरी ऊर्जा और उत्साह के साथ करेंगे। किन्तु हमारे आसपास के लोग नकारात्मक है। हमारे अंदर डर पैदा करने वाले हैं, तो हम आसान दिखने वाले काम को करने से भी डरने लगते हैं।
इस दुनिया में एक ही चीज सबसे आसान है। वह यही कि हम नकारात्मक लोगों की निराशाजनक बातें सुनकर बहुत जल्दी पीछे हट जाए। डर जाते हैं।और अपने लक्ष्य से, अपने सपनों से समझौता कर लें। लेकिन जब हम ऐसे लोगों की बातों पर कोई परवाह किया बिना, अपने सपने को पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं। तो फिर वह काम मुश्किल नहीं लगता। बल्कि आसान बन जाता है और आसानी से पूरा भी होता है।
विचार कीजिये! यदि किसी के कहने मात्र से काम का होना या न होना निर्भर होता। तो आज दुनिया में कोई अविष्कार, खोज या बदलाव हो पाते? बिल्कुल नही हो पाते। क्योंकि आज तक दुनिया में जितने भी नए नए अविष्कार या बदलाव हुए हैं, उनकी शुरुआत मुश्किल और नामुमकिन शब्द से हुई है। हमारी पहचान और वास्तविकता, दुनिया वालों की सलाह, राय, मशवरा को सुनकर रुकने में नहीं है। बल्कि स्वयं पर अचल, अडिग, अटूट विश्वास रखते हुए उसे पूरा कर दिखाने में है।
‘मुश्किल काम’ कुछ नहीं होता, मुश्किल होता हैं खुद को समझाना। खुद पर विश्वास करना। लगातार धैर्य, साहस, विश्वास बनाये रखना कि ये काम मैं कर सकता हूँ। और जब हमारे अंदर आत्मविश्वास पैदा होता। दूसरों की बजाय खुद की सुनते हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ निरंतर प्रयास करते हैं तो ‘मुश्किल’ मुश्किल नहीं रह जाता, बल्कि ये तो ‘आसान है’ हो जाता हैं।