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चोटी रखने का महत्व :–

सुश्रुत संहिता में लिखा है कि , मस्तक के भीतर ऊपर जहां बालों का आवृत (भंवर) होता है, वहां सम्पूर्ण नाडिय़ों व संधियों का मेल है, उसे ‘अधिपतिमर्म’ कहा जाता है। यहां पर चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती है। सुषुम्ना के मूल स्थान को ‘मस्तुलिंग’ कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों-कान, नाक, जीभ, आंख आदि का संबंध है और कर्मेन्द्रियों-हाथ, पैर, गुदा, इंद्रिय आदि का संबंध मस्तुलिंगंग से है। मस्तिष्क ठंडक चाहता है मस्तुलिंगंग गर्मी। मस्तिष्क को ठंडक पहुंचाने के लिए क्षौर कर्म करवाना औमस्तुलिंगंग को गर्मी पहुंचाने के लिए गोखुर के परिणाम के बाल रखना आवश्यक है।बाल कुचालक हैं, अत: चोटी के लम्बे बाल बाहर की अनावश्यक गर्मी या ठंडक समस्तुलिंगंग की रक्षा करते हैं।’
चोटीधारी और जटाधारी :
पहला जो कर्मकांड, संस्कार आदि को संपन्न कराता है वह प्राचीनकाल में चोटीधारी होता था उसके सिर पर सिर्फ चोटी ही होती थी। दूसरा वह जो धर्म, शिक्षा और दीक्षा का कार्य करता था वह दाड़ी और जटाधारी होता था। लेकिन कालांतर में समाज के यह विभाजन बदलते गए। शास्त्रों के अनुसार चोटी की लंबाई और आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होनी आवश्यक मानी गई है जबकि वर्तमान में इसका ध्यान नहीं रखा जाता। प्राचीन काल में किसी की शिखा काट देना मृत्युदंड के समान माना जाता था।
चोटी या शिखा रखने के कारण:
वैष्णव पंथी जब मुंडन कराते हैं तो चोटी रखते हैं और शैव पंथी जब मुंडन कराते हैं तो चोटी नहीं रखते हैं। मुंडन कराने के कई मौके होते हैं। पहला जब पैदा होने के बाद जब पहली बार बाल उतारे जाते हैं, दूसरा जब परिवार आदि में कोई शांत हो जाता है तब, तीसरा विशेष तीर्थ आदि में और चौथा किसी विशेष पूजा या कर्मकांड में।
चोटी रखने के कई कारण होते हैं। बच्चे की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर बच्चे के बाल उतारे जाते हैं और यज्ञ किया जाता है जिसे मुंडन संस्कार या चूड़ाकर्म संस्कार कहा जाता है। चोटी या शिखा रखने का संस्कार बच्चे के मुंडन और उपनयन संस्कार के समय किया जाता है। जब यज्ञोपवित धारण की जाती है तब भी मुंडन संस्कार में चोटी रखी जाती है। यज्ञोपवित कोई भी संप्रदाय का व्यक्ति धारण कर सकता है। जिस स्थान पर चोटी रखी जाती है उसे सहस्त्रार चक्र कहते हैं। उस स्थान के ठीक नीचे आत्मा का निवास होता है जिसे ब्रह्मरंध कहा गया है। चोटी रखने के बाद उसमें गठान बांधी जाती है।
सिर में सहस्रार के स्थान पर चोटी रखी जाती है अर्थात सिर के सभी बालों को काटकर बीचोबीच के स्थान के बाल को छोड़ दिया जाता है। इस स्थान के ठीक 2 से 3 इंच नीचे आत्मा का स्थान है। भौतिक विज्ञान के नुसार यह मस्तिष्क का केंद्र है। विज्ञान के अनुसार यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। वैज्ञानिक कहते हैं कि जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। हमारे ऋषियों ने सोच-समझकर चोटी रखने की प्रथा को शुरू किया था।
इस स्थान पर चोटी रखने से मस्तिष्क का संतुलन बना रहता है। शिखा रखने से इस सहस्रार चक्र को जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सहस्रार चक्र का आकार गाय के खुर के समान होता है इसीलिए चोटी का आकार भी गाय के खुर के बराबर ही रखा जाता है।
शिखा या चोटी रखने का वैज्ञानिक कारण
▪️अत्यन्त संवेदनशील ब्रह्मरन्ध्र की रक्षा के लिए सुरक्षा कवच है शिखा (चोटी)- मनुष्य की समस्त शारीरिक क्रियाएं मस्तिष्क से ही संचालित होती हैं ।यदि मस्तिष्क स्वस्थ है तो मनुष्य सौ वर्ष तक जीवित रह सकता है । शिखा धारण करना एक सुरक्षा कवच के रूप में का कार्य करता है । सिर के जिस भाग पर चोटी रखी जाती है, वह शरीर का सबसे ऊंचा भाग है । इस हिस्से को ‘ब्रह्मरन्ध्र’ कहते हैं । यह स्थान शरीर के अन्य सभी स्थानों से अत्यधिक कोमल मर्मस्थान होता है । यहां पर चोट लगने से मनुष्य की तत्काल मृत्यु हो जाती है । इस स्थान पर यदि केशों का गुच्छा रखा जाए तो बाहरी धूल, धूप, चोट आदि से उन सूक्ष्म छिद्रों को कोई हानि नहीं पहुंचती है और वे बन्द नहीं होते हैं ।
इस तरह शिखा धारण करने से अत्यन्त महत्वपूर्ण और संवेदनशील ब्रह्मरन्ध्र की रक्षा होती है । विदेशों में इस स्थान की रक्षा के लिए टोप (hat) लगाते हैं ।▪️शरीर विज्ञान के अनुसार जिस स्थान पर शिखा रखी जाती है वहां ‘पिट्यूटरी ग्रन्थि’ होती है । इससे जो रस निकलता है, वह शरीर की वृद्धि और बल के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है । शिखा रखने से इस ग्रन्थि को अपना काम करने में बहुत सहायता मिलती है ।
शिखा या चोटी रखने का आध्यात्मिक कारण
▪️शास्त्र के अनुसार मनुष्य की बुद्धि सूर्य का अंश है । इसीलिए गायत्री मन्त्र द्वारा सूर्य की उपासना करके हम उनसे सद्बुद्धि की याचना करते हैं । सुषुम्णा नाड़ी का मूलस्थान ठीक शिखा के नीचे होता है जो बुद्धि का केन्द्र है । मनुष्य को जीवनी शक्ति और प्राण शक्ति सूर्य से प्राप्त होती है ।
विज्ञान भी इस बात को मानता है कि काली वस्तु सूर्य की किरणों से अधिक ताप, शक्ति और ऊर्जा ग्रहण करती है । इसलिए मस्तिष्क के ब्रह्मरन्ध्र पर काले बालों का गुच्छा रखने से सूर्य की बुद्धि और प्राण शक्ति मनुष्य के शरीर में ज्यादा आकर्षित होती है ।
▪️शिखा से मनुष्य शरीर में परमात्मा की ओज शक्ति का आवागमन होता रहता है । जैसे तडित चालक बिजली को अपनी ओर खींच लेता है उसी प्रकार शिखा या चोटी आकाश में बहने वाली परमात्मा की ओज शक्ति को अपनी ओर खींच लेती है । इसीलिए साधना या अनुष्ठान में रत ऋषि-मुनियों, साधुओं, ब्राह्मणों को शिखा परमात्मा से सम्पर्क स्थापित करने में सहायता करती है ।
▪️शिखा धारण करने के स्थान पर छोटे-छोटे सैंकड़ों ऐसे छिद्र होते हैं जिनके द्वारा साधक योग के द्वारा अपनी प्राण-वायु को बाहर निकालता है । मृत्यु के समय योगियों, ऋषि-मुनियों के प्राण इसी ब्रह्मरन्ध्र के मार्ग से बाहर निकलते हैं । मनुष्य शरीर में यह भाग परब्रह्म का गुप्त खजाना है ।
ध्यान या समाधि का अन्तिम स्थान भी यहीं है । इसी स्थान पर योगियों को परमात्मा के दर्शन प्राप्त होते हैं । यह ज्ञान प्राप्ति का केन्द्र है ।
इसीलिए शिखा धारण करने से मनुष्य की ज्ञान शक्ति व बौद्धिक शक्ति बनी रहती है । इसीलिए भारत ही नहीं विदेशों में भी वैज्ञानिक, कवि, लेखक सिर पर लम्बे बाल रखते हैं ।
शिखा काटने से बड़े-से-बड़े तेजस्वी पुरुष भी कान्तिहीन हो जाते हैं । महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने अश्वत्थामा को मृत्युदण्ड देने के बजाय उसका सिर मूंड़ कर तेज हीन कर दिया । वेद में कहा गया है-‘मैं दीर्घ आयु, बल और तेज के लिए शिखा को स्पर्श करता हूँ ।साधु-सन्यासी चोटी न रखकर सिर क्यों मुंडवाते हैं ?
सन्यासियों के लिए चोटी रखने का निषेध है । उनको सिर मुंडवाने का विधान है ।
इसका कारण यह है कि सन्यासी योग की क्रियाओं द्वारा प्रतिदिन अपनी प्राण वायु को इसी ब्रह्मरन्ध्र के मार्ग से बाहर निकालते और वापिस खींचते रहते हैं । अत: उस स्थान के सूक्ष्म छिद्रों की सफाई प्रतिदिन अपने-आप होती रहती है ।
यदि वे लोग चोटी रखें तो बालों के गुच्छे के कारण योग के द्वारा प्राणु वायु को छोड़ते और वापिस खींचते हुए कठिनाई हो सकती है । इसलिए उनके लिए चोटी रखना मना है । गृहस्थ लोग ऐसी यौगिक क्रियाएं नहीं करते हैं इसलिए उनके लिए चोटी रखना आवश्यक है ।
शिखा या चोटी में गांठ लगाने क्यों लगाई जाती है ?
शास्त्रों में स्नान, सन्ध्या, जप, होम, स्वाध्याय, दान आदि के समय शिखा में गांठ लगाने का विधान है । इसका कारण यह है कि शिखा स्थान के नीचे बुद्धि चक्र और ब्रह्मरन्ध्र होते हैं । जहां से अमृत-तत्त्व सहस्त्रदल-कर्णिका के मार्ग से बाहर निकलने के लिए शिखा मार्ग को चुनता है । इसलिए शिखा में गांठ लगाकर इस मार्ग को रोक दिया जाता है और मनुष्य को आयु, बल और तेज देने वाला अमृत-तत्त्व सहस्त्रदल कर्णिका में ही रह जाता है ।
एक अन्य धारणा के अनुसार चोटी में गांठ लगाने का आशय है कि साधक ने अपनी आत्मा का परमात्मा के साथ गांठ बांधकर सम्बन्ध स्थापित कर लिया है ।

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