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🌹मन का कंट्रोल हमारे पास है, तो परिस्थितियों का दूसरों के पास कैसे?🌹

हम समझते हैं कि सारी चीजें जो हम तक आती हैं, परिस्थितियों या लोगों की वजह से आती हैं। और खुशी भी जब आती है तो किसी न किसी परिस्थिति या व्यक्ति की वजह से आती है। मान लो कि दो व्यक्तियों की आपस में अनबन हो गई। यह एक परिस्थिति है जो कि बाहर है, लेकिन शब्द सुनने के बाद मन में जो कुछ भी चलना शुरू होता है वह हमारी मर्जी से होता है। अगर यह समीकरण हम जीवन में अपना लें तो हमारा पूरा जीवन ही बदल जाएगा। ऑफिस के बॉस ने दस लोगों को एक ही बात कही। परिस्थिति दस लोगों के लिए एक समान है। उनकी बात सुनने के बाद जो दस लोगों की सोच चलेगी, क्या वह भी एक समान होगी?

परिस्थिति एक, व्यक्ति एक, बात एक, उसको सुनने के बाद दस लोगों की जो सोच चलेगी वह कभी भी एक समान नहीं होगी। मैं कैसा सोचूंगी यह मैं तय करूंगी। उस परिस्थिति में हम जैसा सोचेंगे वैसा हम महसूस करेंगे। लेकिन दिनभर में हम कितनी बार ऐसा बोलते हैं कि इनकी वजह से हमें गुस्सा आ गया, इनकी वजह से मैं दुखी हूं, इनकी वजह से मैं सुखी हूं। मैं सोचता हूं कि मेरे मन का कंट्रोल बाहर है। क्योंकि दूसरों के बोल, दूसरों के व्यवहार, दूसरों की परिस्थिति, मेरे मन को कंट्रोल करने लग गई। मुझे खुश व शांत रहना है, इसके लिए मैंने दूसरों को बदलने की कोशिश की जबकि हम यह भी जानते हैं कि हम लोगों को बदल नहीं सकते हैं। मेडिटेशन हमें जीवन की एक आसान सी चीज सिखाता है कि परिस्थिति बाहर से आने वाली है, उस परिस्थिति के सामने हमें कुछ सोचना है तो मुझे कैसा सोचना है यह मुझ पर निर्भर है।

मान लो किसी मीटिंग में किसी का मोबाइल बजा लेकिन ये रिंगटोन सुनने के बाद सबके मन में अलग-अलग विचार चलते हैं। कोई कहेगा इट्स ओके, कोई कहेगा इनको इतना भी नहीं पता कि इतनी महत्वपूर्ण मीटिंग चल रही है। अब फोन 5 सेकंड बजकर बंद हो गया, लेकिन मन के अंदर एक और रिंगटोन शुरू हो जाती है। इसका क्या करेंगे। इसका कोई बटन है? हमने माना कि गुस्सा आना स्वाभाविक है। हम दूसरों को बदलने कहते हैं। लेकिन हम जितना दूसरों को बदलने को कहते हैं उतना ही हम अपनी शक्ति कम करते जा रहे हैं। हमारे मन का रिमोट कंट्रोल दूसरों के हाथ में चला गया है। जैसे कि आपके टीवी का रिमोट आपके पड़ोसी के पास है और पड़ोसी के टीवी का रिमोट आपके पास है। अब जो बटन वह दबाएगा वह चैनल हमें देखना पड़ेगा और जो बटन हम दबाएंगे वह चैनल उनको देखना पड़ेगा।

आज हम जो जीवन जी रहे हैं वह कुछ ऐसा ही है। अगर मैंने आत्मा का ध्यान नहीं रखा तो मुझे गुस्सा भी आ सकता है और डिप्रेशन भी हो सकता है। वरना हम 18 घंटे काम करते हुए भी तनाव मुक्त रह सकते हैं, क्योंकि हमारे मन का कंट्रोल हमारे पास है। मेडिटेशन के दौरान तो हम शांत रहते हैं लेकिन उसके बाद मन पर नियंत्रण करना हमें सीखना होगा।

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