आत्मचिंतन
“व्यक्ति मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व संतुलित कैसे बन सकता है? “
“मन की क्रियाओं को तीन भागों में विभाजित किया जाता है-
1.भावना,
2.विचार,
3.क्रियाएं.
ऐसे बहुत कम व्यक्ति हैँ जिनमें उपरोक्त तीनों क्रियाओं का पूर्ण सामंजस्य या पूर्ण संतुलन हो. किसी में भावना का अंश अधिक है तो वह भावुकता से भरा है, आवेशों का शिकार रहता है. उसकी कमजोरी ‘अतिसंवेदनशीलता’ है। वह जरा सी भावना को तिल का ताड़ बनाकर देखता है.
विचार प्रधान व्यक्ति दर्शन की गूढ़ गुत्थियों में ही डूबते उतराते रहते हैँ. नाना कल्पनाएं उनके मानस क्षितिज पर उदित अस्त होते रहतीं हैँ. योजना बनाने का कार्य उनसे खूब करा लीजिये, पर असली काम के नाम पर वे शून्य हैँ.
तीसरे प्रकार के व्यक्ति सोंचते कम हैँ, भावनाओं में नही बहते हैँ, पर काम खूब करते रहते हैँ. इन कार्यों में ऐसे भी काम वे कर ड़ालते हैँ जिनकी आवश्यकता नही होती, तथा जिनके बिना भी उनका काम चल सकता है।
अच्छे व्यक्ति के निर्माण में क्रिया, भावना तथा विचारशक्ति इन तीनों आवश्यक तत्वों का पूर्ण विकास होना चाहिए. जो व्यक्ति काम, क्रोध, आवेश, उद्वेग इत्यादि में निरत रहते हैँ, उन्हें भावनाजन्य मानसिक व्याधियों का परित्याग करना चाहिए, जो केवल कागजी योजना से और व्योम विहारिणी कल्पनाओं में लगे रहते हैँ, इन्हें सांसारिक दृष्टिकोण से अपनी योजनाओं की सत्यता जांचनी चाहिए।
“पूर्ण संतुलित व्यक्ति वही है, जिसमें भावना, विचार तथा कार्य, इन तीनों ही तत्वों का पूर्ण सामंजस्य या मेल हो. ऐसा व्यक्ति मानसिक दृष्टि से पूर्ण स्वस्थ है। महान पुरुषों में पूर्ण विकसित बुद्धि, बलवती विचार, इच्छाशक्ति और उच्चकोटि की कार्यशक्ति के दर्शन हम आसानी से कर सकते हैँ”