🌷ऊं ह्लीं पीताम्बरायै नमः🌷
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अध्यात्म की तीन शिक्षाएं
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शिक्षा नंबर एक
अध्यात्म में 3 शिक्षाएं हैं जिसमें पहली शिक्षा है ईश्वर का विश्वास। ईश्वर की पूजा नहीं ईश्वर का विश्वास। ईश्वर की पूजा और ईश्वर के विश्वास में जमीन आसमान का अंतर है। कई डाकू भी ऐसे होते हैं जो देवी के आगे बकरा चढ़ाते हैं। वह ईश्वर के विश्वासी नहीं है, वरन ईश्वर की पूजा करने वाले हैं। पुजारियों में और ईश्वर विश्वासइयों में जमीन आसमान का अंतर होता है। ईश्वर के विश्वास कि शिक्षा हमारे धर्म ग्रंथों और वेद शास्त्रों में है। कदाचित ईश्वर का विश्वास हमारे जीवन में आ जाता तो हमारा कायाकल्प हो जाता और हमारा कायाकल्प हो जाता और इसी इंसान के कलेवर में हम देवता दिखाई पड़ने लगते, अगर ईश्वर का विश्वास हमारे भीतर होता तब।
शिक्षा नंबर दो
अध्यात्म की शिक्षा नंबर दो यह है कि अपनी अंतरात्मा के ऊपर मल, आवरण और विक्षेप की जो परतें जमा हो गई हैं उन परतों को धोकर साफ कर डालें। अपने कषाय और कल्मषों को दूर कर डालें। आग के अंगारे के तरीके से हमारे जीवात्मा के भीतर जो ब्रह्म तेजस जलजला रहा है, वह एसे चमक पड़े मानो हम साक्षात भगवान हैं। अर्थात मनुष्य को यह प्रयास करना चाहिए कि वह अपने दोष, और दुर्गण, पाप और अनाचार, दृष्टि के दोष, सोचने के गलत तरीके और काम करने के गलत ढंग- उनका सुधार करता हुआ चला जाए। अगर आदमी इस तरह अपना सुधार करता हुआ चला जाए, तो ना जाने क्या से क्या हो सकता है? मनुष्य भगवान बन सकता है।
शिक्षा नंबर तीन
धर्म ग्रंथों में तीसरी शिक्षा यह है कि मनुष्य को उदार होना चाहिए। मनुष्य को स्वार्थी नहीं होना चाहिए। मनुष्य को संकीर्ण नहीं होना चाहिए। पेट और प्रजनन के लिए, वासना और तृष्णा के लिए, मनुष्य को नहीं बनाया गया है। वरन किन्हीं महान उद्देश्य के लिए भगवान ने मनुष्य को बनाया है। अगर मनुष्य अपने आप के बारे में जान ले, तो उसे आत्म बोध हो जाए। आत्मबोध को हम ज्ञान का सार कहते हैं, अपने आप को जानना कहते हैं। मनुष्य अपने आप को जान ले, अपने जीवन को जान ले, अपने लक्ष्य को जान ले तो समझना चाहिए कि वह उदात्त हो करके ही रहेगा। ऋषि हो करके ही रहेगा।
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🌷जय मां पीताम्बरा🌷