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दांत किटकिटाना/ घिसना | Teeth grinding*

परिचय : दांत घिसना या दांत किटकिटाना भी एक प्रकार का रोग है। इस प्रकार के दांतों के रोग में अकसर रोगी को दांत किटकिटाने में आनन्द आता है। इसकी आदत लग जाने पर कभी-कभी रोगी सोने के बाद भी दांतों को घिसता (किटकिटाना) रहता है। इसका कारण है दांतों को ठीक से साफ न करना एवं पेट में कीड़े होना।

कारण :  पेट में कीड़े बनने के कारण कुछ बच्चे दांत किटकिटाते रहते हैं। कभी-कभी दांतों पर मैल जम जाने के कारण भी दांतों में खुजली होने से बच्चे दांत किटकिटाते रहते हैं।

विभिन्न घरेलू आयुर्वेदिक औषधियों से उपचार-
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वायविडंग : दांतों को किटकिटाने वाले रोगी को लगातार 3 दिन तक वायविडंग का चूर्ण 6 ग्राम को 100 ग्राम दही के साथ मिलाकर सुबह-शाम खिलाना चाहिए। इससे दांतों का घिसना बन्द हो जाता है।

नीम : नीम के पत्तों का रस निकालकर 5 ग्राम रस को 2 से 4 दिन सुबह-शाम पिलाने से दांतों में होने वाले कीड़े खत्म हो जाते हैं और रोगी दांत किटकिटाना बन्द कर देता है।

कत्था : कत्था को बारीक पीसकर उसमें सरसों का तेल मिला लें। इस मिश्रण को बच्चों के मसूढ़ों पर मलने से दांत घिसना बन्द हो जाता है।

नमक : नमक में सरसों का तेल मिलाकर प्रतिदिन दांतों की जड़ या मसूढों पर मलने से दांत घिसने की आदत छूट जाती है
*।
*एरण्ड : कई बच्चे रात को सोने के बाद भी दांत घिसते (किटकिटाते) रहते हैं। इस प्रकार के रोग में बच्चे के गुदा में एरण्ड का रस डालें। इससे सभी कीड़े नष्ट हो जाते हैं और दांत का घिसना बन्द हो जाता हैं।*

टमाटर : दांत घिसने वाले रोगी को 2 टमाटर का रस निकालकर उसमें कालीमिर्च और काला नमक मिलाकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं और दांत घिसने की आदत छूट जाती है।

इरिमदादि तेल: इरिमदादि तेल को दांतों की जड़ों पर मलने से दांतों का घिसना (किटकिटाना) बन्द होता है।

खदिरादि : खदिरादि के तेल को रूई पर लगाकर प्रतिदिन 2 से 4 बार दांतों पर मलने से दांतों में लगे कीड़े खत्म हो जाते हैं।
फिटकरी : फिटकरी, सेंधानमक और नौसादर बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह से बारीक पीसकर पॉउडर (मंजन) बनाकर दांतों व मसूढ़ों को मलने से दांतों में लगे कीड़े समाप्त होते हैं और दांत का किटकिटाना बन्द हो जाता है।

अजवायन : अजवायन में थोड़ा सेंधानमक मिलाकर रात को सोते समय खाने से रात को दांत किटकिटाने की आदत छूट जाती है।

हल्दी : हल्दी को पीसकर सरसों के तेल में मिलाकर दांतों पर प्रतिदिन मलने से दांतों का दर्द खत्म होता है और दांत किटकिटाना बन्द हो जाता है।

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त्रिफला चूर्ण – बनाने की विधि और सेवन के फायदे

त्रिफला चूर्ण

हम जो कुछ खाते – पिते है , उसका प्रभाव हमारे मन , शरीर और आचार – विचार पर पड़ता है | इसलिए प्रकृति ने हमारे शरीर के लिए कुछ नियम कायदे बनाये है जिनका हम पालन कर के स्वस्थ और निरोगी रह सकते है | कुछ घरेलु उपचार हमें निरंतर डॉ. से दूर रख सकते है – जैसे त्रिफला चूर्ण जिसे आयुर्वेद में सबसे ऊपर जगह मिली है | इसलिए आज हम इस post में त्रिफला चूर्ण के फायदे और उसको बनाने की यथावत विधि जानेंगे |

त्रिफला :- जैसा की नाम से ही विधित होता है – तीन फलों का मिश्रण अर्थात त्रिफला मुख्या रूप से तीन फलों का ही मिश्रण होता है | हरेड, बहेड़ा और आंवला इन फलों के समान मात्रा में मिले हुए चूर्ण को त्रिफला कहते है |अगर हरड , बहेड़ा एवं आमला इन तीनो को समान मात्रा या 1 : 2 : 3 में मिलाया मिलाया जाए तो त्रिफला का निर्माण होता है | l

हरड़ 100 gm

बहेरा 200 gm

आंवला 300 – 400 gm

छोटी पीपल और सेंधा नमक़ अपनी इच्छा se मिला सकते है. ना मिलना हो तो भी ठीक है

कई जगह इनके साथ पिप्पली एवं सैन्धव लवण मिलाकर त्रिफला बनाने के बारे में बताया गया है | वैसे दोनों ही विधि सही है एवं फायदेमंद है |

यहाँ हमने हरड, बहेड़ा, आंवला, पिप्पल एवं सैन्धव लवण के साथ त्रिफला चूर्ण बनाने की विधि का वर्णन किया है |

हरड , बहेड़ा , आंवला , छोटी पीपल और सैन्धव नमक इन सब को बराबर मात्रा में ले कर इनको कूट पीसकर चूर्ण बना ले | इस प्रकार आपका त्रिफला चूर्ण बन जावेगा |

त्रिफला चूर्ण के फायदे

त्रिफला चूर्ण के आयुर्वेद में बहूत से फायदे है | यह प्राकृतिक चूर्ण मनुष्य के लिए रोगनाशक और स्वास्थ्य प्रदान करने वाली महत्वपूर्ण औषदी है | त्रिफला चूर्ण को आयुर्वेद का एंटीबायोटिक भी कह सकते है क्यों की यह बहूत से रोगों में काम आता है इसलिए जानते है इसके फायदे

⚉ श्वास रोग ⚉

त्रिफला के प्रयोग से श्वास रोग में लाभ मिलता है | त्रिफला के नियमित सेवन से श्वास से संबधित रोगों के उपचार में सहायता मिलाती है एवं फेफड़ो के संक्रमण से छुटकारा मिलता है |
⚉ रोग प्रतिरोधक ⚉
 
त्रिफला – कमजोर रोगप्रतिरोधक क्षमता वाले लोगो के लिए एक बेहतरीन विकल्प है क्यों की त्रिफला में एंटीबायोटिक व एंटी ऑक्सीडेंट गुण होते है . जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते है | इसलिए नियमित त्रिफला के सेवन से अपनी एंटी बॉडीज को बढ़ा कर रोगों से लड़ा जा सकता है

⚉ ज्वर ⚉
 
त्रिफला का उपयोग ज्वर में भी लाभ देता है

⚉ कब्ज ⚉
 
कब्ज के उपचार के लिए त्रिफला रामबाण औषदी साबित होती है | कब्ज की समस्या से पीड़ित व्यक्ति को रात्रि में सोते समय त्रिफला चूर्ण – 5 ग्राम की मात्रा में गुनगुने जल के साथ नियमित सेवन करना चाहिए जिससे सुबह पेट अछे से साफ़ हो |

⚉ कील-मुहांसों में  ⚉
 
त्रिफला अच्छा रक्त शोधक होता है | इसलिए नियमित त्रिफला के सेवन से हमारे शरीर का रक्त शुद्ध होकर विषैले पदार्थ खून से बाहर निकल जाते है जिससे खून की खराबी से होने वाले कील – मुहांसों से निजत मिलाती है |
पढ़े त्रिफला चूर्ण का सम्पूर्ण परिचय और औषध उपयोग 
इसके अलावा त्रिफला अन्य बहूत से रोगों में काम आता है जैसे – मन्दाग्नि , खांसी , आँखों की रोशनी बढ़ाने में , सिर दर्द में और पेट से संबधित रोग आदि

त्रिफला चूर्ण लेने के नियम

त्रिफला चूर्ण सेवन विधि – सुबह हाथ मुंह धोने व कुल्ला आदि करने के बाद खाली पेट ताजे पानी के साथ इसका सेवन करें तथा सेवन के बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ ना लें | इस नियम का कठोरता से पालन करें |

यह तो हुई साधारण विधि पर आप कायाकल्प के लिए नियमित इसका इस्तेमाल कर रहे है तो इसे विभिन्न ऋतुओं के अनुसार इसके साथ गुड़, सैंधा नमक आदि विभिन्न वस्तुएं मिलाकर ले | हमारे यहाँ वर्ष भर में छ: ऋतुएँ होती है और प्रत्येक ऋतू में दो दो मास |

1.- ग्रीष्म ऋतू –

14 मई से 13 जुलाई तक त्रिफला को गुड़ 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें |

2- वर्षा ऋतू –

14 जुलाई से 13 सितम्बर तक इस त्रिदोषनाशक चूर्ण के साथ सैंधा नमक 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें |

3- शरद ऋतू –

14 सितम्बर से 13 नवम्बर तक त्रिफला के साथ देशी खांड 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें |

4- हेमंत ऋतू –

14 नवम्बर से 13 जनवरी के बीच त्रिफला के साथ सौंठ का चूर्ण 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें |

5- शिशिर ऋतू –

14 जनवरी से 13 मार्च के बीच पीपल छोटी का चूर्ण 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें |

6- बसंत ऋतू – 14 मार्च से 13 मई के दौरान इस के साथ शहद मिलाकर सेवन करें | शहद उतना मिलाएं जितना मिलाने से अवलेह बन जाये |

इस तरह इसका सेवन करने से एक वर्ष के भीतर शरीर की सुस्ती दूर होगी , दो वर्ष सेवन से सभी रोगों का नाश होगा , तीसरे वर्ष तक सेवन से नेत्रों की ज्योति बढ़ेगी , चार वर्ष तक सेवन से चेहरे का सोंदर्य निखरेगा , पांच वर्ष तक सेवन के बाद बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होगा ,छ: वर्ष सेवन के बाद बल बढेगा , सातवें वर्ष में सफ़ेद बाल काले होने शुरू हो जायेंगे और आठ वर्ष सेवन के बाद शरीर युवाशक्ति सा परिपूर्ण लगेगा

त्रिफला चूर्ण लेने का सही नियम –

*सुबह अगर हम त्रिफला लेते हैं तो उसको हम “पोषक ” कहते हैं |क्योंकि सुबह त्रिफला लेने से त्रिफला शरीर को पोषण देता है जैसे शरीर में विटामिन ,आयरन,कैल्शियम,मिक्रोनुट्रिएंट्स की कमी को पूरा करता है एक स्वस्थ व्यक्ति को सुबह त्रिफला खाना चाहिए |

*सुबह जो त्रिफला खाएं हमेशा गुड के साथ खाएं |

*रात में जब त्रिफला लेते हैं उसे “रेचक ” कहते है क्योंकि रात में त्रिफला लेने से पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि )का निवारण होता है |

*रात में त्रिफला हमेशा गर्म दूध के साथ लेना चाहिए |

नेत्र-प्रक्षलन : एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को एक कटोरी पानी में भिगोकर रखें। सुबह कपड़े से छानकर उस पानी से आंखें धो लें। यह प्रयोग आंखों के लिए अत्यंत हितकर है। इससे आंखें स्वच्छ व दृष्टि सूक्ष्म होती है। आंखों की जलन, लालिमा आदि तकलीफें दूर होती हैं।

  • कुल्ला करना : त्रिफला रात को पानी में भिगोकर रखें। सुबह मंजन करने के बाद यह पानी मुंह में भरकर रखें। थोड़ी देर बाद निकाल दें। इससे दांत व मसूड़े वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं। इससे अरुचि, मुख की दुर्गंध व मुंह के छाले नष्ट होते हैं।

मोटापा :

  • त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है। त्रिफला के काढ़े से घाव धोने से एलोपैथिक- एंटिसेप्टिक की आवश्यकता नहीं रहती। घाव जल्दी भर जाता है।
  • गाय का घी व शहद के मिश्रण (घी अधिक व शहद कम) के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन आंखों के लिए वरदान स्वरूप है।
  • संयमित आहार-विहार के साथ इसका नियमित प्रयोग करने से मोतियाबिंद, कांचबिंदु-दृष्टिदोष आदि नेत्र रोग होने की संभावना नहीं होती।
  • मूत्र संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में यह फायदेमंद है। रात को गुनगुने पानी के साथ त्रिफला लेने से कब्ज नहीं रहती है।
  • मात्रा : 2 से 4 ग्राम चूर्ण दोपहर को भोजन के बाद अथवा रात को गुनगुने पानी के साथ लें।
  • त्रिफला चूर्ण का सेवन रेडियोधर्मिता से भी बचाव करता है। प्रयोगों में देखा गया है कि त्रिफला की खुराकों से गामा किरणों के रेडिएशन के प्रभाव से होने वाली अस्वस्थता के लक्षण भी नहीं पाए जाते हैं। इसीलिए त्रिफला चूर्ण आयुर्वेद का अनमोल उपहार कहा जाता है।

सावधानी : दुर्बल, कृश व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को एवं नए बुखार में त्रिफला चूर्ण का सेवन नहीं कर सकते

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