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अटूट श्रद्धा – विश्वास और समर्पण – अध्यात्म साधना का पहला सिद्धांत!!!!!!

मनुष्य के पास श्रृद्धा की ऐसी शक्ति विद्यमान हैं कि वो भौतिक जगत में बहुत सारे हेर फेर कर सकता हैं। किन्तु वह उसका सही उपयोग करना नहीं जानता हैं । श्रद्धा के आधार पर ही ब्राह्मण वरदान और शाप देने में समर्थ होते हैं । श्रृद्धा के आधार पर ही रामकृष्ण परमहंस की पत्थर की काली माँ जिंदा हो गई थी । श्रृद्धा के आधार पर ही भक्त प्रह्लाद की रक्षार्थ भगवान विष्णु स्तम्भ से निकल आये थे । और श्रृद्धा के आधार पर ही एकलव्य के मिट्टी के दोणाचार्य वो सिखाने में समर्थ हुये जो असली के दोणाचार्य भी नहीं सिखा सके ।

श्रृद्धा में बहुत ताकत हैं, बहुत शक्ति हैं । श्रृद्धा की शक्ति के चमत्कारों से इतिहास में पन्ने भरे पड़े हैं । श्रृद्धा एक ऐसा तत्त्व हैं, जिसका उपयोग अच्छे और बुरे दोनों तरीके से किया जा सकता हैं । अच्छा उपयोग क्या हैं ? और बुरा उपयोग क्या हैं? ये आपको इस कहानी से पता चल जायेगा ।

एक बार की बात हैं की एक गाँव में कुछ दोस्त मिलकर एक भुत बंगले पर चर्चा कर रहे थे । उनका कहना था की आजतक कोई भी उस भुत बंगले से जिंदा वापस नहीं आया था । उन्ही दिनों उनका एक शहरी दोस्त “बहादुर” शहर से गाँव आया हुआ था ।

उस समय वह भी वहां पहुँच गया । जब उसने ऐसा सुना की भुत बंगले के भूतों से आजतक कोई जिंदा नहीं बचा, तो उसे बहुत हंसी आई । उसने कहा की ये सब बकवास हैं । भुत – प्रेत नहीं होते हैं । तो उसके मित्र कहने लगे कि “ठीक हैं हम तेरी बात मान लेंगे, यदि तू आज रात को १२ बजे उस भुत बंगले में एक किल ठोककर आ जाये” उसने कहा – “ठीक हैं” ।

अब समय आया १२ बजे का । सर्दी की रात तेज ठण्डी – ठण्डी हवाएं चल रही थी । सभी मित्र इस दुस्साहसी कार्य देखने के लिए इक्कठे हो गये थे । इन दोस्तों के अलावा पूरा गाँव सो रहा था । किसी को कुछ भी पता नहीं की क्या हो रहा हैं ।

बहादुर कम्बल ओढ़कर आया और तुरन्त किल और हथोड़ी लेकर बंगले की ओर चल दिया । हालाँकि खुद मन ही मन डर रहा था । किन्तु सब पर रौब जमाने की खातिर आखिर यह जोखिम उठा ही लिया । कुछ दोस्तों ने मना किया कि “यार मत जा सच में कोई भूत – चुड़ेल हुई तो तुझे वही पकड़ लेगी” तो बहादुर बोला – “आज तुम सब लोगों के मन से ये भुत का भ्रम मिटा कर रहूँगा” । और तेजी से भुत बंगले की और चल दिया ।

हवाएं सांय – सांय कर रही थी । सारे जंगली जानवर सो चुके थे । बहादुर के बंगले में आने की आहट को सुनकर वहाँ सो रहे पंछियों के भागने से बहादुर अचानक चौंक गया । फिर उसने डरते हुये बंगले में अन्दर प्रवेश किया । अब बहादुर को काली – अंधियारी निशा के सन्नाटे कुछ ज्यादा ही व्याकुल कर रहे थे ।

उसकी ह्रदय की धडकने तेज हो चुकी थी । इतनी सर्दी में भी उसके शरीर से पसीना छुट रहा था । अब तो बस किसी तरह हिम्मत जुटाकर ये काम ख़त्म करके वहाँ से भागने का इरादा था । सो वो अपने कार्य को अंजाम देनें के लिए वह नीचे बैठा और डरते हुये किल को ठोकने लगा । लेकिन दुर्भाग्य ! की अँधेरे में कुछ दिखा नही, और किल जमीन पर पड़े उसके कम्बल को पार करते हुये जमीन में ठुक गई ।

अब जैसे ही वह उठ कर चला । उसे लगा कि पीछे से उसे किसी ने पकड़ लिया हैं । ये सोचना ही था कि उसके होश उड़ गये । यह होती हैं श्रृद्धा की ताकत ।

जब तक बहादुर को विश्वास नहीं था कि भुत होते हैं । वह सामान्य डरा हुआ था । किन्तु जैसे ही यह बात उसके दिल में बैठ गई कि “मुझे भुत ने पकड़ लिया हैं” तो उसके प्राण पखेरू उड़ गये । जबकि वहाँ ना कोई भुत था, ना ही प्रेत ।

इस तरह हम अपने डर पर श्रृद्धा और विश्वास करके अपना ही नुकसान और दुरुपयोग कर सकते हैं । या फिर किसी दैवीय शक्ति, मन्त्र या साधना पर श्रृद्धा और विश्वास करके उससे लाभ उठा सकते हैं । आप चाहे कोई भी साधना करें, आपका इष्ट चाहे कोई भी हो लेकिन अगर आपने श्रृद्धा से विहीन साधना की हैं तो आपको कोई परिणाम नहीं मिल सकता ।

इसलिए अगर आप किसी दैवीय शक्ति से सहायता पाना चाहते हो, लाभ उठाना चाहते हो तो पहले अपने अंतःकरण में श्रृद्धा का बीज बोइये । और उसे निरन्तर सींचते रहिये तभी आपको वह लाभ होगा जो उस साधना के महात्म्य में बताया गया हैं । जैसा हमारे शास्त्रों में बताया गया हैं ।

          

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