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भक्ति क्या है? भक्ति भगवान की प्राप्ति का साधन है,भक्ति से क्या लाभ है?

भक्ति की भावना से ही हम इस सत्य को अनुभव करते हैं, कि ईश्वर ने हमे कितना कुछ दिया है।वह हमारे प्रति कितना उदार है। इससे हमें अपनी लघुता और उसकी महानता का बोध होता है, अपनी इच्छाओं और इंद्रियों पर नियंत्रण की शक्ति प्राप्त होती है ,और दूसरे जीवों के प्रति प्रेम का भाव पैदा होता है।

भक्ति कैसे की जाती है?

शास्त्रों में हमें अनेक प्रकार के भक्ति मार्गों का वर्णन मिलेगा।हमारे श्रीरूप गोस्वामी जी ने भक्ति के 64 तरीके बताए हैं। प्रहलाद ने श्रीमद््भागवत में भगवान को प्रसन्न करनेके 9 तरीके बताए हैं।

ये हैं श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन व दास्य भाव आदि। श्री चैतन्य चरितामृत में भगवान के ही मुख से कहलाया गया है कि मैं पाँच तरह से बहुत प्रसन्न होता हूँ। ये हैं साधु-संग, नाम-कीर्तन, भगवत्-श्रवण, तीर्थ वास और श्रद्धा के साथ श्रीमूर्ति सेवा।

वे आगे कहते हैं कि इन पांचों में से यदि किसी मार्ग का अवलंबन श्रद्धा के साथ किया जाए तो वह हृदय में भगवत प्रेम उत्पन्न करेगा। इस विषय में महाप्रभु कहते हैं कि नवधा भक्ति के नौ अंगों में से किसी एक अंग का भी आचरण करने से भगवत-प्रेम की प्राप्ति हो सकती है। परन्तु इन नौ अंगों में भी श्रवण, कीर्तन व स्मरण रूप श्रेष्ठ है।

इन सभी मार्गों में श्रेष्ठ भक्ति मार्ग कौन सा है?

सरल भक्त-जीवन में केवल नामाश्रय ही सर्वोत्तम साधन है भगवान की प्राप्ति का। नवधा भक्ति में भी श्रीनाम के जाप और स्मरण को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। यदि निश्छल भाव से हरिनाम का कीर्तन किया जाए तो अल्प समय में ही प्रभु की कृपा प्राप्त होगी। नाम संकीर्तन करना ही भगवान् को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम तरीका है, यही सर्वोत्तम भजन है। जिस युग में हम रह रहे हैं, इस में तो भवसागर पार जाने का यही एक उपाय है। शास्त्र तो कहते हैं कि कलिकाल में एकमात्र हरिनाम संकीर्तन के द्वारा ही भगवान की आराधना होती है।

नाम संकीर्तन का सुझाव किन ग्रंथों मेंदिया गया है?

श्रीमद्भागवत कहताहै कि कलियुग में श्रीहरिनाम-संकीर्तनयज्ञ के द्वारा ही आराधना करना शास्त्रसम्मत है। वे लोग बुद्धिमान हैं जो नाम संकीर्तन रूपी यज्ञ के द्वारा कृष्ण की आराधना करते हैं।

रामचरित मानस में भी कहा गया है कि कलियुग में भवसागर पार करने के लिए राम नाम छोड़ कर और कोई आधार नहीं है।

कलियुग समजुग आन नहीं, जो नरकर विश्वास।
गाई राम गुण गनविमल, भव तर बिनहिं प्रयास।।

नाम संकीर्तन में कथा श्रवण का क्या महत्व है?

जीवन में ऐसा अक्सर देखने को मिलता कि किसी व्यक्ति या स्थान को हमने देखा तक नहीं होता, परन्तु उनके बारे में समाचारपत्रों व पत्रिकाओं में पढ़ने से हमें काफी आनंद मिलता है।

ठीक इसी प्रकार भगवद धाम, आनन्द धाम, वहाँ के वातावरण या प्रभु की लीलाओं के बारे में सुन कर हमें आनंद प्राप्त होता है, हमारा चित्त स्थिर होता है और चंचल मन भटकने से रुकता है। ये कथाएं हमारे वेद-शास्त्रों में वर्णित हैं, जिन्हें पढ़ने या सुनने से हमें भगवान के विषय में कुछ जानकारी भी प्राप्त होती है।

भजन -कीर्तन करने से क्या होता है और इसे किस प्रकार करना चाहिए?

गोस्वामी जी कहते हैं कि आप भक्ति का कोई भी मार्ग अपनाएं, उसे श्रीनाम कीर्तन के संयोग से ही करें। इसका फल अवश्य प्राप्त होता है और शीघ्र प्राप्त होता है। सब कहते हैं कि भगवान का भजन करो…..भजन करो! तो क्या करें हम भगवान का भजन करने के लिए?

सच्चे भक्तों के संग हरि नाम संकीर्तन करना ही सर्वोत्तम भगवद भजन है। सच्चे भक्तों के साथ मिलकर, उनके आश्रय में रहकर नाम-संकीर्तन करने से एक अद्भुत प्रसन्नता होती है, उसमें सामूहिकता होती है, व्यक्तिगत अहंकार नहीं होता और उतनी प्रसन्नता अन्य किसी भी साधन से नहीं होती, इसीलिए इसे सर्वोत्तम हरि भजन माना गया है।

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