Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याएं और उनका समाधान

माँ बनना किसी भी नारी के जीवन का सबसे बड़ा सपना है। विवाह का एक वर्ष बीतते हर स्त्री एक नन्हे बच्चे की किलकारी सुनने के लिए आतुर हो उठती है। गर्भाधान से प्रसव तक की लंबी प्रक्रिया में कुछ सावधानियाँ अपेक्षित हैं, ताकि समस्याओं का कम-से कम सामना करना पड़े। यहाँ गर्भाधान के दौरान आनेवाली जटिलताओं का वर्णन किया जा रहा है

गर्भावस्था की समस्याएं और समाधान –

बवासीर : गर्भावस्था के दौरान पौष्टिक भोजन के अभाव के कारण अकसर कब्ज की शिकायत के साथ-साथ बवासीर की समस्या हो जाती है। अधिकतर गर्भवती महिलाओं को अधिक मिर्च-मसालेदार भोजन करने के कारण आमाशय व अँतड़ियों में जटिलता पैदा होने से कब्ज के साथ-साथ बवासीर होने का खतरा बना रहता है, इसलिए गर्भाधान से प्रसव तक की लंबी प्रक्रिया में जटिलताओं को कम करने के लिए खान-पान के विषय में सावधानियाँ बरतनी आवश्यक हैं। बवासीर आरंभ होने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लें तथा प्रभावित स्थान पर मरहम का प्रयोग करना चाहिए। प्रसव के बाद अधिकतर महिलाओं को प्राकृतिक रूप से इस मुसीबत से छुटकारा मिल जाता है, इसलिए इस समस्या के बारे में अधिक चिंतित नहीं होना चाहिए और प्रसव के दौरान घावों पर मरहम का प्रयोग तथा साफ-सफाई की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए।

उच्च रक्तचाप :-गर्भाधान में कई बार भोजन में नमक की मात्रा अधिक लेने व पानी की अधिक धारण शक्ति के कारण रक्तचाप बढ़ जाता है, इसलिए यह जानने के लिए। कि रक्त संचार में कहीं अधिक शक्ति तो नहीं खर्च हो रही, ‘ब्लड प्रेशर’ की नियमित जाँच करवाना अनिवार्य है। सामान्य ब्लड प्रेशर 110/70 से लेकर 130/86 के बीच होना चाहिए।’हाई ब्लड प्रेशर के साथ-साथ कई बार इस अवस्था में ‘लो ब्लड प्रेशर की समस्या भी हो जाती है। ऐसी स्थिति में घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि यह कोई बीमारी नहीं। कम रक्तचाप के कारण कई बार थकान, ढीलापन तथा नींद महसूस होती है।तनाव, आराम न मिलना, चिंता, क्रोध, मोटापा, धूम्रपान, नशा, अधिक खाना, भोजन में नमक का अधिक सेवन करने से उच्च रक्तचाप की समस्या उत्पन्न होती है। इसके लिए डॉक्टर से परामर्श करना अनिवार्य है और बिना डॉक्टर की सलाह एवं जाँच-पड़ताल के कोई दवा नहीं लेनी चाहिए

पेट दर्द:-पेट के निचले भाग में लगातार पीड़ा का अहसास होने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। गर्भाधान के प्रथम चरण के दौरान कमजोर महिलाएँ अकसर कमर के आस-पास की इंद्रियों में दर्द होने तथा पेशाब में संक्रमण होने की शिकायत करती हैं। ऐसी अवस्था में डॉक्टर की सलाह लेना कदापि न भूलें

श्वेत प्रदर : यह महिलाओं की एक आम शिकायत है। योनि-मार्ग प्रायः गीला रहता है। और यौन उत्तेजना के समय यह गीलापन और बढ़ जाता है। गर्भाधान के दौरान जबकि डिंब डिंबाशय से निकलकर डिंब नलिका से होते हुए गर्भाशय की ओर बढ़ता है तो इस अवधि में भी यह गीलापन बढ़ जाया करता है, इसलिए चिंता नहीं करनी चाहिए और चिकित्सा भी जरूरी नहीं। इसका मुख्य कारण है, पोषण की कमी। गर्भकाल के दौरान भोजन में पोषक तत्वों के अभाव के कारण शरीर में विटामिन व कैल्सियम की कमी हो जाती है तथा खून की कमी से एनीमिया की शिकायत होने की संभावना रहती है।प्रायः योनि के अंदर संक्रमण होने के कारण श्वेत स्राव बढ़ जाता है। स्राव की मात्रा अत्यधिक होने पर अपने डॉक्टर से परामर्श लेना न भूलें । ऐसी हालत में अकसर डॉक्टर योनि के भीतर गोलियाँ रखने अथवा ‘एंटी-फंगल क्रीम’ प्रयोग करने की सलाह देती हैं। संक्रमण के कारण अकसर पानी रिसने की शिकायत के साथ-साथ खुजली व जलन के साथ पीला गाढ़ा द्रव्य निकलता है। रोग के लक्षण तीव्र व गंभीर होने पर पानी के साथ रक्तस्राव भी होने लगता है, ऐसी हालत में डॉक्टरी परामर्श जरूरी है। इस अवस्था में शरीर की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए। योनि प्रदेश को बार-बार धोकर साफ करें और सूखा रखें। जाँघिया शीघ्र बदलना चाहिए और हर संभव सूती जाँघिया ही पहनना चाहिए।गर्भकाल में सहवास के दौरान कई बार योनि से स्राव के साथ रक्त के धब्बे भी देखे जाते हैं, ऐसी हालत में सावधान रहें अन्यथा भविष्य में समस्याएँ उत्पन्न होने की आशंका रहती है। जहाँ तक संभव हो, गर्भकाल के दौरान शारीरिक सम्मिलन से परहेज करना चाहिए

चर्म रोग : गर्भाधान का त्वचा पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इस दौरान अकसर त्वचा का रंग या तो साफ हो जाता है अथवा काला पड़ने लगता है और इसका मुख्य कारण शरीर में यौन हारमोंस का अधिक सक्रिय होना है। गर्भवती के शरीर की त्वचा, विशेषकर चेहरे व ग्रीवा पर, अकसर काले धब्बे पड़ने लगते हैं। इसके अलावा गर्भवती के पेट के निचले भाग व जाँघों की त्वचा पर अधिक खिंचाव के कारण सिलवटें पड़ने लगती हैं। ऐसी स्थिति में रक्त में हारमोंस के अधिक प्रभावी होने के कारण त्वचा संवेदनशील हो जाती है। अतः इस दौरान त्वचा को साफ, नरम व शुष्क रखने का हर संभव प्रयास करें । दुष्प्रभाव के लक्षण अकसर शरीर के विभिन्न अंगों-गरदन, पीठ, उदर व वक्षस्थल पर दिखाई देते हैं। ऐसी हालत में चिंतित नहीं होना चाहिए, क्योंकि प्रसवोपरांत यह दुष्प्रभाव अपने आप ठीक होने लगते हैं और त्वचा धीरे-धीरे अपने सामान्य रूप में आने लगती है

गर्भावस्था के दौरान विषमताएँ :गर्भवती महिलाओं में प्रायः वजन बढ़ना, अंगों में सूजन और उच्च रक्तचाप के साथ-साथ पेशाब में जलन, श्वास लेने में कठिनाई, दिल का तेज गति से धड़कना, अचानक योनि-मार्ग से रक्तस्राव होना आदि प्रमुख विषमताएँ देखी जाती हैं। ऐसी हालत में चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है। गर्भवती महिला को समय-समय पर नियमित रूप से वजन, ब्लड प्रेशर और पेशाब की जाँच करवानी चाहिए। गर्भकाल के दौरान गर्भवती महिला का वजन सामान्य वजन से 10 किलोग्राम से अधिक नहीं बढ़ना चाहिए। तीसरे महीने के बाद प्रायः प्रतिमाह गर्भवती का वजन 1 से 1 डेढ़ किलोग्राम बढ़ता है और प्रसव से लगभग दो सप्ताह पूर्व वजन का बढ़ना बंद हो जाता है। इस अवस्था में डॉक्टर आहार में कम-से-कम नमक के सेवन करने का परामर्श देती हैं, ताकि ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण रहे।

प्रातःकालीन आरोग्यता :गर्भाधान के प्रारंभिक काल में प्राय: छठे माह तक अकसर प्रातः जी मिचलाने व कब्ज की शिकायत पाई जाती है और अकसर दोपहर के बाद गर्भवती स्वयं को पूर्णतया स्वस्थ महसूस करने लगती है। कई बार यह समस्या देर शाम तक बनी रहती है। ऐसी हालत में चिंतित नहीं रहना चाहिए, क्योंकि प्रायः आठवें सप्ताह के बाद यह समस्या अपने आप समाप्त हो जाती है। गर्भकाल में स्वयं को कब्ज़ की शिकायत से बचाएँ

इसके लिए घरेलू उपचार इस प्रकार है:-बराबर मात्रा में सफेद चन्दन पाउडर व आँवले का चूर्ण मिलाकर इसमें दोनों की मात्रा के समान मिश्री चूर्ण मिला लें, फिर इसे शहद में मिलाकर इस्तेमाल करें, आपको निस्संदेह आराम मिलेगा

कब्ज : गर्भाधान के दौरान कब्ज रहना गर्भवती स्त्रियों की आम शिकायत है, लेकिन इस समस्या पर नियंत्रण पाना अनिवार्य है; क्योंकि लंबी अवधि तक कब्ज़ रहना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। आँतों की कमजोरी प्रायः कब्ज रहने का प्रमुख कारण होती है। गर्भकाल के दौरान हर संभव शीघ्र पचनेवाला हलका आहार लेना चाहिए। प्रातः शौच से पूर्व गुनगुने पानी में नीबू का रस मिलाकर पीना चाहिए। दिन भर में अधिक-से-अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए। रात को सोने से पहले दूध के साथ कैस्टर ऑयल’ का सेवन करने से इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है

तनाव : गर्भवती को प्रारंभ से ही अपने भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जच्चाबच्चा को पूर्ण पोषण मिले, इसके लिए आहार में पोषक तत्वों की मात्रा-जैसे प्रोटीन, खनिज, लवण और विटामिन की मात्रा सामान्य से अधिक होनी चाहिए। गर्भवती को भोजन में अंकुरित अनाज , कैल्सियम के लिए अपने आहार में दूध की मात्रा, लौह तत्त्वों के लिए पालक तथा खनिज-लवण व विटामिन के लिए हरी सब्जियाँ और सलाद अधिक मात्रा में लेने चाहिए। प्रातः व सायं हलका भ्रमण रात्रि के समय तनाव मुक्त नींद लेने में सोने पर सुहागा जैसा काम करते हैं

आर.एच. ब्लड ग्रुप :माँ में आर.एच. नेगेटिव ब्लड ग्रुप होने से कई बार जन्म लेनेवाला शिशु पिता से आर.एच. पोजिटिव ब्लड ग्रुप लेकर जन्म लेने से पीलिया का शिकार होने के कारण मर सकता है अथवा शिशु के जन्म से पूर्व गर्भ गिरने का डर रहता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान समय-समय पर रक्त की जाँच करवाना अनिवार्य है। और गर्भवती को सामान्य सावधानियाँ बरतनी चाहिए।

वक्षस्थल में सूजन :गर्भकाल के दौरान वक्षस्थल में सूजन होना एक आम शिकायत है, जिसका अकसर गले में दुष्प्रभाव हो जाने से मुँह का स्वाद बिगड़ जाता है।

पेट दर्द :गर्भावस्था के दौरान पेट व जिगर में दर्द होना एक आम शिकायत है, जिसका प्रमुख कारण शरीर का वजन बढ़ना व शिराओं में तनाव उत्पन्न होना है। ऐसी अवस्था में पेट पर देसी घी से सहज-सहज मालिश करनी चाहिए।

पेट में गैस बनना :इस समस्या के कारण वक्षस्थल व गले में सूजन होने के कारण खट्टी डकारें व मितली होने की संभावना बनी रहती है। कई बार भोजन के बाद उलटी होने लगती हैं। अपने आहार में पुराने चावल, हरी सब्जियाँ, पपीता, कच्चे नारियल का पानी, खनिज, जल और जौ के पानी का सेवन बढ़ा दें।

नाल (प्लेसेंटा) कट जाना :गर्भावस्था के दौरान पोषण नलिका, जिसके माध्यम से पेट के अंदर पल रहे शिशु को आहार प्राप्त होता है, किसी कारणवश शिशु के शरीर से अलग हो जाती है। ऐसा प्रायः गर्भाशय के फैलाव के कारण होता है, यह शिशु के लिए जानलेवा हो सकता है। ऐसी हालत में अविलंब चिकित्सक को दिखाएँ। प्रायः देखा गया है। कि प्रथम बार माँ बननेवाली स्त्रियों में यह अनियमितता अधिक पाई जाती है। प्रसवोपरांत ही नाल काटकर शिशु को अलग किया जाता है।

*रक्त की कमी गर्भावस्था के अंतिम चरण के दौरान गर्भवती के शरीर में प्रायः खून की कमी (एनीमिया) आ जाती है । गर्भकाल के बारहवें से बत्तीसवें सप्ताह के दौरान गर्भवती के शरीर में रक्त की आवश्यकता बढ़ जाने के कारण गर्भवती के भोजन में पोषक तत्त्वों, विशेषकर लौह तत्त्व की अति आवश्यकता होती है। अतः गर्भवती के आहार में ताजा फलों व हरी सब्जियों, दूध की मात्रा अवश्य बढ़ा देनी चाहिए। याद रहे-गेहूँ, चावल, आलू, गुड़, चीनी आदि कार्बोहाइड्रेटवाली वस्तुएँ उतनी ही ली जाएँ जितनी कि शारीरिक शक्ति बनाए रखने के लिए जरूरी हैं अन्यथा इनका अधिक सेवन मोटापे के साथ सुस्ती और अनेक रोगों को नियंत्रण देता है। इन दिनों चिकनाई व कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम कर दें तथा उसी अनुपात में प्रोटीन की मात्रा बढ़ा दें। दिन भर में एक गर्भवती महिला के लिए उपयुक्त आहार में 250 ग्राम दूध, 30 ग्राम फल, 150 ग्राम हरे पत्तेवाले साग, 150 ग्राम हरी सब्जियाँ, 350 ग्राम चावल, 350 ग्राम अनाज, 35 ग्राम तेल, 40 ग्राम शक्कर होना पर्याप्त है

वजन कम होना :-गर्भावस्था के दौरान कुपोषण व अन्य कारणों के वजन कम होता है इसके लिए रात्रि भोजन के बाद गर्म गाय के दूध में देशी गाय का घी डालकर पीना चाहिए इससे वजन माँ व बच्चे का वजन सन्तुलित रहता है साथ ही कब्ज की शिकायत व बदन दर्द की भी नही होता है इसके साथ गेहूँ के दाने के बराबर चुना अनार के जूस में नियमित सेवन से बच्चा स्वस्थ आरोग्य व बुद्धिमान बनता है

बदहजमी : बहदहजमी यानी डिस्पेप्सिया से बचाव जरूरी है अन्यथा गर्भवती को अनेक समस्याओं को झेलना पड़ सकता है। अधिक भोजन करने अथवा तली हुई वस्तुएँ खाने या मसालेदार आहार से प्रायः बदहजमी की शिकायत रहती है। भूख न लगना गर्भावस्था में एक आम समस्या है, जिस पर अकसर भोजन करने पर परेशानी का सामना करना पड़ता है तथा तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है। पेट में हवा भर जाना, खट्टी डकार आना तथा मुँह के स्वाद में खटास उत्पन्न होना और जी मिचलाना स्वाभाविक क्रियाएँ हैं। तबीयत अधिक खराब होने पर गुनगुने जल में चुटकी भर नमक डालकर पीने से कै हो जाती है। कै होने के बाद अकसर तबीयत ठीक हो जाती है, यदि फिर भी असुविधा महसूस हो तो पुदीने की पत्तियाँ आधी प्याली में उबाल लें तथा इसमें थोड़ी सी इलायची पाउडर मिलाकर पीने को दें।बदहजमी की शिकार गर्भवती महिला को चौबीस घंटे तक भोजन नहीं देना चाहिए। पर हाँ, फलों का रस पिलाया जा सकता है

गुरदे का दर्द : गर्भावस्था के दौरान रात्रि के समय अकसर जिगर का दर्द होना आम समस्या है। अचानक पीठ से उठता हुआ दर्द दाएँ कंधे तक फैल जाता है। पेट दबाने से इस स्थिति पर नियंत्रण पाया जा सकता है। जिगर का दर्द मुख्यतः पेट में अम्लीय तत्त्वों के दुष्प्रभाव के कारण गैस बन जाने से होता है। कई बार गर्भिणी को गुरदे के दर्द के कारण भी कठिनाई झेलनी पड़ती है। गुरदे के दर्द से अपेक्षाकृत अधिक तकलीफ होती है। गुरदे के ऊपर उठते दर्द का दुष्प्रभाव वक्षस्थल के नीचे तक फैल जाता है। ऐसी हालत में गर्भवती को आराम करना चाहिए।

डायरिया :गर्भावस्था के दौरान बदहजमी का समय पर उपचार न किए जाने पर प्रायः डायरिया होने की आशंका रहती है। जलवायु में परिवर्तन, मौसम में बदलाव, खान-पान में तबदीली आदि इस रोग के कुछ अन्य मुख्य कारण हैं। समय पर उपचार नहीं होने पर कई बार गर्भपात होने का डर रहता है। डायरिया के लक्षण प्रतीत होने पर केवल तरल खाद्य-पदार्थों का सेवन करें। शरीर में जल की मात्रा पर्याप्त बनी रहे, इसके लिए समय-समय पर पानी में ग्लूकोस घोलकर पीना चाहिए।

मांसपेशियों में ऐंठन :गर्भाधान के चौथे महीने में अकसर रात्रि को सोते समय गर्भवती महिलाओं को शरीर के किसी भाग, अधिकतर भुजाओं, टाँगों अथवा पिंडलियों की मांसपेशियों में ऐंठन होने लगती है और इसका मुख्य कारण शरीर में विटामिन व खनिज पदार्थों का अभाव होता है। ऐसी अवस्था में शरीर के प्रभावित अंग में ऐंठन के साथ-साथ काँटों सी चुभन का एहसास होता है। कई बार शरीर के अन्य अंगों-कमर, पेट, नितंबों तथा अँतड़ियों आदि में दर्द फैल जाता है। ऐसे में महानारायण तेल से दुष्प्रभावित अंगों पर मालिश करने से आराम मिलता है।’कॉड-लिवर ऑयल’ एवं ‘कैल्सियम लैक्टेट’ के नियमित सेवन से शरीर में खनिज तत्त्वों की वृद्धि होती है।

गुप्तांगों में खुजलाहट व दर्द :प्रसव से पूर्व जिन महिलाओं को अस्वाभाविक संभोग क्रिया से गुजरना पड़ता है, उन गर्भवती महिलाओं को अकसर योनि में खुजलाहट व मीठे-मीठे दर्द का अहसास होता रहता है। ऐसी महिलाओं को हर संभव गर्भावस्था के प्रारंभिक काल व अंतिम चरण के दौरान संभोग नहीं करना चाहिए। यदि गर्भावस्था के शेष काल में भी संभोग से बचें तो उत्तम होगा, ऐसी महिलाओं में प्रायः संभोग के पश्चात् गर्भाशय में सूजन व योनि-नलिका के आस-पास त्वचा पर छाले पड़ने लगते हैं।

योनि-मार्ग से रक्तस्राव : इसे डॉक्टरी भाषा में हाइड्रमनियोज (Hydramnios) कहते हैं। गर्भकाल के पाँचवें से छठे मास के दौरान गर्भवती स्त्रियाँ कई बार इस घातक रोग का शिकार हो जाती हैं और नब्बे प्रतिशत मामलों में गर्भपात होना निश्चित होता है। गर्भाशय के अंदर सूजन होने के कारण पोषण नलिका (प्लेसेंटा) बंद हो जाती है । इस रोग के कारण योनि-मार्ग से रक्त मिश्रित श्वेत स्राव होने लगता है और इन्हीं लक्षणों से इस रोग की पहचान होती है।

इनसोमेनिया :गर्भकाल के दौरान थका-थका रहना, दिमागी बोझ, शारीरिक दुर्बलता नींद न आना, भूख न लगना आदि इस रोग के मुख्य लक्षण हैं। उपचार नहीं किए जाने पर तेज बुखार होने या गर्भपात तक होने का डर रहता है। इसके उपचार के लिए कुछ घरेलू उपाय यहाँ दिए जा रहे हैं

दो भाग लौकी का तेल, दो भाग भाँग के बीज तथा एक भाग कैंफर (कपूर) सबका मिश्रण कर सिर की मालिश करें। ब्राह्मी तेल अथवा नारायण तेल से सिर पर मालिश करने से भी इस समस्या से राहत मिलती है।

गहरी नींद के लिए रात को सोने से पहले सरपकंदवका चूर्ण दूध के साथ लेने से भी आराम मिलता है।

हृदय रोग :हृदय रोग की समस्या भी कभी-कभी गर्भवती महिला के लिए चिंता का विषय बन जाती है। यदि कोई महिला इस रोग से पहले ही पीड़ित हो तो उसके लिए गर्भधारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो सकता है। ऐसा नहीं कि दिल की बीमारी से ग्रस्त महिला गर्भधारण नहीं कर सकती; लेकिन दिल अधिक कमजोर होने की स्थिति में डॉक्टर के परामर्श से उपचार कराना ही श्रेयस्कर होगा।

गर्भपात :गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय से रक्तस्राव होने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि इससे गर्भपात होने की आशंका रहती है। पूर्णतः आराम के साथ-साथ डॉक्टर द्वारा सुझाई गई दवाओं के प्रयोग से गर्भपात को रोका जा सकता है। इसके लिए कुछ घरेलू उपाय यहाँ दिए जा रहे हैं

गर्भवती महिला को प्रतिदिन एक आँवला अवश्य खाना चाहिए।
सफेद गुलाब की पत्तियों से तैयार गुलकंद सेवन करना चाहिए।
समान मात्रा में आँवला, पठानी लोध तथा लाई कोरिश को बारीक पीस लें। इसमें सम मात्रा में चीनी मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से गर्भपात की समस्या से बचाव हो सकता है।

वक्ष में पीड़ा :वक्ष पीड़ा का अहसास प्रायः प्रथम प्रसव के दौरान महसूस होता है; क्योंकि वक्ष में दूध की मात्रा बढ़ने से छाती की शिराओं में खिंचाव महसूस होने लगता है, जो कि माँ को प्रकृति की देन है। ऐसी अवस्था में दर्द निवारक दवाओं के सेवन से बचना ही अच्छा रहता है।

सिर दर्द : गर्भावस्था के दौरान कब्ज की शिकायत होने पर भी प्रायः सिर में भारीपन तथा दर्द महसूस होता है। इसलिए पेट साफ करने की दवा के सेवन से सिर दर्द से निजात मिल सकती है। रात को सोने से पहले गरम दूध के साथ गुलकंद लेने से भी कब्ज से छुटकारा मिलता है। माजूफल या तुलसी पत्ते या चन्दन या दालचीनी (इसे नारियल या जैतून तेल में घिसे)को पानी में घिसकर इसका लेप माथे पर लगाने से सिर दर्द में आराम मिलता है।

बार-बार पेशाब आना : गर्भधारण के प्रारंभिक महीनों में बार-बार पेशाब आना एक गंभीर समस्या है। ऐसी हालत में दूध व पानी बराबर मात्रा में मिलाकर पीना चाहिए। यदि प्रसव पीड़ा के दौरान ऐसा महसूस हो तो कोई भी दवा लेने की आवश्यकता नहीं।

पेशाब में रुकावट : गर्भधारण के अंतिम चरण में प्रायः यह समस्या उत्पन्न हो सकती है; क्योंकि गर्भाशय में भ्रूण के बढ़ने से मूत्र-नलिका पर इसका अतिरिक्त प्रभाव पड़ता है, जिस कारण पेशाब आने में रुकावट महसूस होती है। डॉक्टर अथवा नर्स द्वारा योनि में हाथ की दो अँगुलियाँ डालकर गर्भाशय को थोड़ा ऊपर उठाने से पेशाब सामान्य रूप से आना शुरू हो जाता है। यदि किन्हीं कारणवश चिकित्सा उपलब्ध न हो तो दूध में पानी की बराबर मात्रा मिलाकर पीना चाहिए अथवा दूध के साथ चावल खाने चाहिए। हर संभव पेशाब लानेवाली औषधि के सेवन से परहेज करें।

गुप्तांग में जलन :गर्भवती को कई बार योनि में पीड़ा व जलन महसूस होती है। मिर्चमसालेदार भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। हर संभव हलकी खुराक लेनी चाहिए। गुलाब जल में कपूर (Camphor) मिलाकर प्रभावित स्थान पर मलना चाहिए, फिर गरम पानी से धोना चाहिए।

पीलिया :गर्भवती महिलाओं का पीलिया (Jaundice) रोग से ग्रस्त होना एक आम समस्या है। पीलिया जिगर से पैदा होनेवाली जटिलताओं के कारण तब होता है जब पित्त अँतड़ियों में प्रवाहित होने के बजाय रक्त में मिल जाता है, जिस कारण त्वचा का रंग पीला पड़ जाता है। यह रंगीन द्रव्य पदार्थ त्वचा के रोम-छिद्रों से पसीने के साथ त्वचा से बाहर आता है। कई बार रोगी के वस्त्र तक पीले हो जाते हैं। आँखों के सफेद भाग में भी पीलापन आ जाने से पीलिया होने के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। और धीरे-धीरे शरीर की पूरी त्वचा पीलेपन से कुप्रभावित हो जाती है। इस बीमारी के दौरान रोगी को संतुलित भोजन देना अति आवश्यक है।

जरायु की स्थानच्युति :गर्भकाल के दौरान उलट-पुलट आसन से मैथुन करना, उछल-कूद आदि। अमर्यादा के कार्य करने से जरायु कभी-कभी अपने स्थान से टल जाता है। इसे ‘धरना डिगना’ भी कहते हैं। यह दो तरह से टलता है-स्थान भ्रष्ट होकर वस्ति के कोटर के अंदर ही रहे या योनि के बाहर निकल आए। दोनों अवस्थाओं में जरायु या तो सामने खिसक जाता है या उतर जाता है अथवा पीछे खिसक जाता है या उतर जाता है। इस कारण पेट में दर्द, पेशाब में दर्द, श्वेत प्रदर तथा अधिक रक्तस्राव होने लगता है। इस रोग से बाधक और वंध्यापन उत्पन्न हो जाते हैं।

कामोन्माद :निरंतर पुरुष-प्रसंग करते रहने से पति की अनुपस्थिति के समय स्त्री को एकाएक पुरुष की प्राप्ति न होने पर उसे कामोन्माद हो जाता है। ऐसी स्त्रियों की योनि के भीतर छोटे कृमि जैसे कीटाणु उत्पन्न हो जाते हैं। उनकी सरसराहट से स्त्री की जननेंद्रिय में तीव्र उन्माद और उत्तेजना बढ़ जाती है। ऐसी स्त्री असमय हास्य, गीत, श्रृंगार और किसी पुरुष को देखकर निर्लज्ज चेष्टा करती है। ऋतुकाल के बाद रोग का वेग और बढ़ जाता है

निरोगी रहने हेतु महामन्त्र

मन्त्र 1 :-

• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें

• ‎रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें

• ‎विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)

• ‎वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)

• ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)

• ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें

• ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

मन्त्र 2 :-

• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)

• ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)

• ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये

• ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें

• ‎पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये

• ‎बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूणतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें

Recommended Articles

Leave A Comment