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जानिए घर की दिशा और आपके ग्रह

      किसी भी जातक का घर किस गृह से सम्बन्ध रखता है यह जानने के लिए जातक की कुंडली नहीं बल्कि उसके घर की दिशा, आस पास लगे पेड़ पोदे और ग्रहों से संबधित अन्य वस्तुओं से जाना जा सकता है। हम यह भी जान सकते हैं की यह घर जातक के लिए शुभ रहेगा या नहीं और कोन से बदलाव करने पर घर के नकारात्मक प्रभाव को पूर्ण रूप से समाप्त किया जा सकता है। जातक कुंडली में कितने ही अच्छे ग्रह हों लेकिन यदि आप खराब घर में रहते हैं तो ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं मिल पता। आइए जानते हैं किस ग्रह का कौन सा घर होता है।

सूर्य का घर : सूर्य की दिशा पूर्व है यदि घर पूर्वमुखी है तो यह सूर्य का घर है। इसके अतिरिक्त अधिकतर घरों में पानी का स्थान गेट में दाखिल होते ही दाएं हाथ पर होगा। यदि तेज फल का वृक्ष लगा हो और बड़ा-सा दरवाजा भी हो, तो यह सूर्य का पक्का घर है। यदि घर में हवा से ज्यादा प्रकाश है, तो यह एक दोष है, ज्यादा प्रकाश भी जिंदगी में अंधेरा ला देता है। इस घर के अंदर का वास्तु ठीक होना जरूरी है तभी यह शुभ फल देगा।
चन्द्र का घर : भले ही चन्द्र की दिशा वायव्य कोण है परन्तु चन्द्र का घर अधिकतर पश्चिम या उत्तर कोण में होता है। यदि यह पश्चिम या उत्तर कोण में नहीं है तो फिर घर से २४-२५ कदम दूर या ठीक सामने तालाब, कुआं, हैंडपंप या बहता हुआ पानी अवश्य होगा तब ऐसी स्थिति में भी यह चन्द्र का घर होगा। यदि घर के आसपास दूध वाले वृक्ष अधिक हैं, तो भी यह चन्द्र काघर होगा। लेकिन यदि इस घर के आसपास शनि से संबंधित पेड़-पौधे हैं, तो यह चन्द्र-शनि से युक्त घर होगा, जो कि हानिकारक है। इस दोष का निवारण करने से ही जातक को शुभ फल प्राप्त होगा।

मंगल का घर : मंगल ग्रह की दिशा दक्षिण है। यदि आपकी कुंडली में मंगल बद है, तो जातक को दक्षिण दिशा का घर मिलता है। यदि घर दक्षिणमुखी है तो घर के मुख्या द्वार पर या आस पास लगा नीम का पेड़ तय करेगा कि मंगल शुभ असर देगा या नहीं। नीम के पेड़ से दक्षिण दिशा का बुरा असर कम होता है, परन्तु इसकी कोई गारंटी नहीं कि घर फलदायी होगा।

बुध का घर : बुध गृह की दिशा उत्तर है इस दिशा के घर के अलावा बुध ग्रह के घर के चारों ओर खाली जगह रहती है। हो सकता है कि यह घर सभी घरों से अलग-थलग अकेला नजर आता हो। यदि ऐसा नहीं है, तो घर के आसपास चौड़े पत्तों के वृक्ष होंगे। यदि गुरु और चन्द्र के वृक्ष के साथ घर हुआ, तो वह घर बुध की दुश्मनी का घर होगा अर्थात नौकरी और व्यवसाय के लिए यह घर हानिकारक होगा ।

बृहस्पति का घर : बृहस्पति की दिशा ईशान या उत्तर है इसलिए जिस घर का मुख्य द्वार इस दिशा में हो वह घर गुरु का घर होगा। इसके अतिरिक्त बृहस्पति का घर बहुत ही सुहाना होता है। ऐसे घर में सुहानी हवा के रास्ते होते हैं। ऐसे घरों के सामने ज्यादातर पीपल का वृक्ष या धर्मस्थल जरूर होता है। यहां कभी भी घटना या दुर्घटना नहीं होती, दिमाग शांत रहता है और ऐसे घरों के सदस्यों का मान-सम्मान बढ़ता रहता है। लेकिन शर्त यह कि गुरु ग्रह के दुश्मन ग्रहों से संबंधित वृक्ष घर के आसपास नहीं होना चाहिए।

शुक्र का घर : वैसे शुक्र आग्नेय कोण का स्वामी है इस दिशा के घर अतिरिक्त यदि घर में किसी एक जगह पर कच्चा स्थान छोड़ रखा है, तो समझो वहां शुक्र का असर होगा। यदि पूरे घर में ही फर्श नहीं लगा, तो शुक्र का घर माना जाएगा। घर के आसपास कपास, मनीप्लांट या जमीन पर आगे बढ़ने वाली लेटी हुई कोई भी बेल है, तो वह शुक्र का पक्का घर है। शुक्र और चन्द्र की दिशा एक समान है। अक्सर गांवों में इस तरह के घर होते हैं।
शनि का घर : पश्चिम दिशा के द्वार के अलावा घर किसी भी दिशा में है और उसमें तलघर है, तो यह शनि के असर वाला घर होगा। यदि तलघर नहीं भी है लेकिन कीकर, आम और खजूर के वृक्ष हैं, तो यह शनि का घर होगा। तीनों हैं, तो पक्के रूप में इस घर पर शनि का असर होगा। पीछे की दीवार कच्ची होती है। यदि वह दीवार गिर जाए, तो शनि के खराब होने की निशानी है।

राहु का घर : नैऋत्य कोण राहु का कोण है। शौचालय में राहु का स्थान होता है। इसके अलावा राहु का घर भीतर से भयानक अहसास वाला होता है। यदि राहु का अच्छा असर है, तो यह खानदानी और धनपति का घर होगा और यदि राहु का असर खराब है, तो यह भूतों का घर होगा। कई दिनों से खाली पड़ा डरावना-सा घर भी राहु के असर वाला होगा। इस घर के आसपास कैक्टस, बबूल का पेड़ या कांटेदार झाड़ियां हैं, तो हो यह राहु का ही घर होगा। ऐसे घर में हत्या या आत्महत्या हो सकती है। यदि आपका घर ऐसा है, तो आपके रिश्तेदार आपके यहां कम ही आते होंगे।

केतु का घर : केतु का घर अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी। केतु के घर की निशानी है कि यह घर कोने का होगा। ३ तरफ घर, एक तरफ खुला या ३ तरफ खुला हुआ और एक तरफ कोई साथी घर या खुद उस घर में ३ तरफ खुला होगा। केतु के घर में नर संतानें लड़के चाहे पोते हों, लेकिन कुल ३ ही होंगे। हो सकता है कि घर के आसपास इमली का वृक्ष, तिल के पौधे या केले का वृक्ष हो। इस घर में बच्चों से संबंधित, खिड़कियां, दरवाजे, बुरी हवा, अचानक धोखा होने का खतरा रहता है।
[#गरीबीमेंजन्मलेनेकेबादकौनबनतेहैधनी? गरीब परिवार में जन्म लेना और उसके बाद समय के साथ अमीर और सफल व्यक्ति बन जाना यह किस्मत ही होती है और कही न कही जातक की मेहनत और ग्रह नक्षत्र।अब इसी विषय पर बात करते है। जन्मकुंडली में ज्यादा से ज्यादा मात्रा में राजयोगों का बनना, शुभ योगो का बनना, दसवे, नवे भावो में इनके स्वामियों के साथ शुभ योगो का बनना, इनका बलवान होना जातक को गरीब परिवार में जन्म लेने पर भी उचाईयो की सीढ़ी चढ़ाता है, क्योंकि दूसरा/ ग्यारहवा भाव धनः, लाभ उन्नति और दसवा नवा भाव तरक्की, प्रतिष्ठा और भाग्य का है साथ ही लग्न भी बलि होगा एक ऐसा जातक सम्मानित भी होगा। उदाहरण से समझने अब।। #लग्नउदाहरण_अनुसार:- वृष लग्न में शनि नवमेश-दश्मेश बनकर योगकारक होता है साथ ही लग्नेश शुक्र का मित्र भी है, अब यहाँ माना योगकारक ग्रह शनि उच्च होकर छठे भाव मे स्वग्रही शुक्र के साथ बेठे साथ ही द्वितीय भावपति यहाँ बुध बनेगा बुध दूसरे ही भाव मे हो या उच्च हो, ग्यारहवे भाव का स्वामी यहाँ गुरु बनता है गुरु भी बलवान होकर कहि बेठा हो शुभ योग आदि में हो तब, ऐसा जातक गरीब परिवार में भी जन्म लेकर भविष्य में सफल और धन, संपदा आदि से पूर्ण होगा,क्योंकि कर्मेश भाग्येश शनि व धनेश लाभेश गुरु बलि है यदि यह चारो ग्रह एक साथ हो संबंध में और बलवान हो तब सोने पर सुहागा होगा।। जन्मकुंडली में या जो ग्रह जन्मकुंडली में कमजोर है वह नवमांश कुंडली मे बलवान होकर बेठे और जन्मकुंडली के दूसरे, ग्यारहवे भाव पति अपने आप मे बलवान हो, नवमेश दशमेश और इन भावों की बलवान स्थिति एक आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में जन्म लेने वाले व्यक्ति को भी तरक्की और सफल , धनः संपदा से पूर्ण व्यक्ति बनाकर जीवन व्यवतीत करने को है।यहाँ दूसरा,नवा, दसवा और ग्यारहवा भाव ही इस कारण महत्वपूर्ण है क्योंकि यह धनः कारक और सफलता कारक भाव है इन भावों के सहयोग के बिना आर्थिक रूप से बलवान और सफल होना मुश्किल ही नही असम्भव होता है।ज्यादा से ज्यादा ग्रहो का प्रभाव ग्यारहवे भाव पर आर्थिक तरक्की के लिए शुभ होता है।राजयोग, धन योगो की संख्या ज्यादा होना यह तय करता है कि जातक सफल होगा।। अब प्रश्न उठता है कि जब इतने अच्छी स्थिति है तब जातक गरीब परिवार में क्यों जन्म लेता है? ऐसा इस लिए होता है क्योंकि उस समय तक ऐसे जातको पर ऐसे ग्रहो की दशाएं होती है जो उनको लाभ नही दे रही होती है या वह ग्रह कोई विशेष शुभ फल देने की स्थिति में नही होता और जातक उसी कारण वश गरीब परिवार में पलता है लेकिन स्वयम की कुंडली मे बलवान ग्रहो के बैठने के कारण, धन योग, राजयोग, सफलता ग्रह योग होने के कारक बढ़ती उम्र के साथ अनुकूल ग्रह दशाओ के मिलने पर एक उच्च स्तरीय सफल, धनी, राजयोग सुख अपनी मेहनत और काबिलियत से या भाग्य के सहयोग से ऐसा जातक फल प्राप्त करता है।इस तरह ग्रह योग शुभ है उपरोक्त उदाहरण अनुसार और जातक की युवावस्था आदि में अनुकूल ग्रहो की दशाएं मिल रही है तब गरीब परिवार में जन्मा जातक भी सफल, धनी और सुख सुविधाओं का उपभोग से पूर्ण जीवन जीता है और अच्छी स्थिति को जीवन मे प्राप्त करता है।इसके अलावा ग्रहो की अच्छी स्थिति इसमे दूसरे,ग्यारहवे, नवे,दसवे और ग्रह दशाओ की अच्छी स्थिति सबसे ज्यादा ऊपर उठाने और सफल बनाने में महत्वपूर्ण होती है इसके अलावा अन्य कई शुभ स्थितिया भी होती है जो धनी और अमीर बना देती है लेकिन यह स्थिति सबसे महत्वपूर्ण होती है जो पोस्ट में यहाँ लिखी गई है, जिस भी जातक की कुंडली मे गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद भी सफल और धनी बनने के ग्रह योग है वह जातक निश्चित ही जीवन मे ऊपर उठेगा।।
कुण्‍डली मिलान में नाड़ी दोष का महत्त्व
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विवाह के लिए कुण्डली और गुण मिलान करते समय नाड़ी दोष को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

विवाह में वर-वधू के गुण मिलान में नाड़ी का सर्वाधिक महत्त्व को दिया गया है। 36 गुणों में से नाड़ी के लिए सर्वाधिक 8 गुण निर्धारित हैं। ज्योतिष की दृष्टि में तीन नाडियां होती हैं – आदि , मध्य और अन्त्य। इन नाडियों का संबंध मानव की शारीरिक धातुओं से है। वर-वधू कीसमान नाड़ी होने पर दोषपूर्ण माना जाता है तथा संतान पक्ष के लिए यह दोष हानिकारक हो सकता है।

शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि नाड़ी दोष केवलब्रह्मण वर्ग में ही मान्य है। समान नाड़ी होने पर पारस्परिक विकर्षण तथा असमान नाड़ी होने पर आकर्षण पैदा होता है। आयुर्वेद केसिद्धांतों में भी तीन नाड़ियाँ – वात (आदि ), पित्त (मध्य) तथा कफ (अन्त्य) होती हैं। शरीर में इन तीनों नाडियों के समन्वय के बिगड़ने से व्यक्ति रूग्ण हो सकताहै।

भारतीय ज्योतिष में नाड़ी का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं।

नौ नक्षत्रों की एक नाड़ी होती है। जो इस प्रकार है।
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰आदि नाड़ी👉 अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्व भाद्रपद ।

मध्य नाड़ी👉 भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और उत्तराभाद्रपद

अन्त्य नाड़ी👉कृतिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती।

नाड़ी के तीनों स्वरूपों आदि, मध्य और अन्त्य आदि नाड़ी ब्रह्मा विष्णु और महेश का प्रतिनिधित्व करती हैं। यही नाड़ी मानव शरीर की संचरना की जीवन गति को आगे बढ़ाने का भी आधार है।

सूर्य नाड़ी, चंद्र नाड़ी और ब्रह्म नाड़ी जिसे इड़ा, पिंगला, सुषुम्णा के नाम से भी जानते हैं। कालपुरुष की कुंडली की संरचना बारह राशियों, सत्ताईस नक्षत्रों तथा योगो करणों आदि के द्वारा निर्मित इस शरीर में नाड़ी का स्थान सहस्रार चक्र के मार्ग पर होता है। यह विज्ञान के लिए अब भी पहेली बना हुआ है कि नाड़ी दोष वालों का ब्लड प्राय: ग्रुप एक ही होता है। और ब्लड ग्रुप एक होने से रोगों के निदान चिकित्सा उपचार आदि में समस्या आती हैं।

इड़ा, पिंगला, और सुसुम्णा हमारे मन मस्तिष्क और सोच का प्रतिनिधित्व करती है। यही सोच और वंशवृद्धि का द्योतक नाड़ी हमारे दांपत्य जीवन का आधार स्तंभ है। अत: नाड़ी दोष को आप गंभीरता से देखें। यदि एक नक्षत्र के एक ही चरण में वर कन्या का जन्म हुआ हो तो नाड़ी दोष का परिहार संभव नहीं है। और यदि परिहार है भी तो जन मानस के लिए असंभव है। ऐसा देवर्षि नारदने भी कहा है।

एक नाड़ी विवाहश्च गुणे: सर्वें: समन्वित:
वर्जनीभ: प्रयत्नेन दंपत्योर्निधनं।

अर्थात वर -कन्या की नाड़ी एक ही हो तो उस विवाह वर्जनीय है। भले ही उसमें सारे गुण हों, क्योंकि ऐसा करने से पति -पत्नी के स्वास्थ्य और जीवन के लिए संकट की आशंका उत्पन्न हो जाती है।

पुत्री का विवाह करना हो या पुत्र का, विवाह की सोचते ही कुण्‍डली मिलान की सोचते हैं जिससे सब कुछ ठीक रहे और विवाहोपरान्‍त सुखमय गृहस्‍थ जीवन व्‍यतीत हो. कुंडली मिलान के समय आठ कूट मिलाए जाते हैं, इन आठ कूटों के कुल अंक 36 होते हैं. इन में से एक कूट नाड़ी होता है जिसके सर्वाधिक अंक 8 होते हैं. लगभग 23 प्रतिशत इसी कूट के हिस्‍से में आते हैं, इसीलिए नाड़ी दोष प्रमुख है।

ऐसी लोक चर्चा है कि वर कन्या की नाड़ी एक हो तो पारि‍वारिक जीवन में अनेक बाधाएं आती हैं और संबंधों के टूटने की आशंका या भय मन में व्‍याप्‍त रहता है. कहते हैं कि यह दोष हो तो संतान प्राप्ति में विलंब या कष्‍ट होता है, पति-पत्नी में परस्‍पर ईर्ष्या रहती है और दोनों में परस्‍पर वैचारिक मतभेद रहता है. नब्‍बे प्रतिशत लोगों का एकनाड़ी होने पर ब्लड ग्रुप समान और आर एच फैक्‍टर अलग होता है यानि एक का पॉजिटिव तो दूसरे का ऋण होता है. हो सकता है इसलिए भी संतान प्राप्ति में विलंब या कष्‍ट होता है।

चिकित्सा विज्ञान की आधुनिक शोधों में भी समान ब्लड ग्रुप वाले युवक युवतियों के संबंध को स्वास्थ्य की दृष्टि से अनपयुक्त पाया गया है। चिकित्सकों का मानना है कि यदि लड़के का आरएच फैक्टर पॉजिटिव हो व लड़की का आरएच फैक्टर निगेटिव हो तो विवाह उपरांत पैदा होने वाले बच्चों में अनेक विकृतियाँ सामने आती हैं, जिसके चलते वे मंदबुद्धि व अपंग तक पैदा हो सकते हैं। वहीं रिवर्स केस में इस प्रकार की समस्याएँ नहीं आतीं, इसलिए युवा अपना रक्तपरीक्षण अवश्य कराएँ, ताकि पता लग सके कि वर-कन्या का रक्त समूह क्या है। चिकित्सा विज्ञान अपनी तरहसे इस दोष का परिहार करता है, लेकिन ज्योतिष ने इस समस्या से बचने और उत्पन्न होने पर नाड़ी दोष के उपाय निश्चित किए हैं। इन उपायों में जप-तप, दान पुण्य व्रत अनुष्ठान आदि साधनात्मक उपचारों को अपनाने पर जोर दिया गया है।

शास्त्र वचन यह है कि-एक ही नाड़ी होने पर गुरु और शिष्य मंत्र और साधक, देवता और पूजक में भी क्रमश: ईर्ष्या अरिष्ट और मृत्यु जैसे कष्टों का भय रहता है।

देवर्षि नारद ने भी कहा है-वर कन्या की नाड़ी एक ही हो तो वह विवाह वर्जनीय है. भले हीउसमें सारे गुण हों, क्योंकि ऐसा करने से तो पति-पत्नी के स्वास्थ्य और जीवनके लिए संकट की आशंका उत्पन्न हो जाती है।

वेदोक्त श्लोक
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अश्विनी रौद्र आदित्यो, अयर्मे हस्त ज्येष्ठयो।
निरिति वारूणी पूर्वा आदि नाड़ी स्मृताः॥

भरणी सौम्य तिख्येभ्यो, भग चित्रा अनुराधयो।
आपो च वासवो धान्य मध्य नाड़ी स्मृताः॥

कृतिका रोहणी अश्लेषा, मघा स्वाती विशाखयो।
विश्वे श्रवण रेवत्यो, अंत्य नाड़ी स्मृताः॥

आदि नाड़ी के अंतर्गत 1, 6, 7, 12, 13,18,19,24,25 वें नक्षत्र आते हैं।

मध्य नाड़ी के अंतर्गत 2, 5, 8, 11, 14, 17, 20, 23, 26 नक्षत्र आते हैं।

अन्त्य नाड़ी के अंतर्गत 3, 4, 9, 10, 15, 16, 21, 22, 27 वें नक्षत्र आते हैं।

‌‌‌गण
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अश्विनी मृग रेवत्यो, हस्त: पुष्य पुनर्वसुः।
अनुराधा श्रुति स्वाती, कथ्यते देवतागण॥

त्रिसः पूर्वाश्चोत्तराश्च, तिसोऽप्या च रोहणी।
भरणी च मनुष्याख्यो, गणश्च कथितो बुधे॥

कृतिका च मघाऽश्लेषा, विशाखा शततारका।
चित्रा ज्येष्ठा धनिष्ठा, च मूलं रक्षोगणः स्मृतः॥

देव गण- नक्षत्र 1, 5, 27, 13, 8, 7, 17, 22, 15,।

मनुष्य गण- नक्षत्र 11, 12, 20, 21, 25, 26, 6, 4।

राक्षस गण- नक्षत्र 3, 10, 9, 16, 24, 14, 18, 23, 19।

स्वगणे परमाप्रीतिर्मध्यमा देवमर्त्ययोः।
मर्त्यराक्षसयोर्मृत्युः कलहो देव रक्षसोः॥

संगोत्रीय विवाह को कराने के लिए कर्म कांडों में एक विधान है, जिसके चलते संगोत्रीय लड़के का दत्तक दान करके विवाह संभव हो सकता है।

इस विधान में जो माँ-बाप लड़के को गोद लेते हैं। विवाह में उन्हीं का नाम आता है। वहीं ज्योतिष के वैज्ञानिक पक्ष के अनुरूप यदि एक ही रक्त समूह वाले वर-कन्या का विवाह करा दिया जाता है तो उनकी होने वाली संतान विकलांग पैदा हो सकती है।

अत: नाड़ी दोष का विचार ही आवश्यक है. एक नक्षत्र में जन्मे वर कन्या के मध्य नाड़ी दोष समाप्त हो जाता है लेकिन नक्षत्रों में चरण भेद आवश्यक है.

ऐसे अनेक सूत्र हैं जिनसे नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है। जैसे दोनों की राशि एक हो लेकिन नक्षत्र अलग-अलग हों. वर कन्या का नक्षत्र एक हो और चरण अलग-अलग हों. उदाहरण वर-ईश्वर (कृतिका द्वितीय), वधू उमा (कृतिका तृतीया) दोनों की अंत्य नाड़ी है। परंतु कृतिका नक्षत्र के चरण भिन्नता के कारण शुभ है।

एक ही नक्षत्र हो परंतु चरण भिन्न हों – यह निम्न नक्षत्रों में होगा।

आदि नाड़ी👉 वर- आर्द्रा, (मिथुन), वधू- पुनर्वसु, प्रथम, तृतीय चरण (मिथुन), वर उत्तरा फाल्गुनी (कन्या)- वधू- हस्त (कन्या राशि)

मध्य नाड़ी👉 वर- शतभिषा (कुंभ)- वधू- पूर्वाभाद्रपद प्रथम, द्वितीय, तृतीय (कुंभ)

अन्त्य नाड़ी👉 वर- कृतिका- प्रथम, तृतीय, चतुर्थ (वृष)- वधू- रोहिणी (वृष)

वर- स्वाति (तुला)- वधू-विशाखा- प्रथम, द्वितीय, तृतीय (तुला)
वर- उत्तराषाढ़ा- द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ (मकर)- वधू- श्रवण (मकर) —-

एक नक्षत्र हो परंतु राशि भिन्न हो
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जैसे वर अनिल- कृतिका- प्रथम (मेष) तथा वधू इमरती- कृतिका- द्वितीय (वृष राशि)। दोनों की अन्त्य नाड़ी है परंतु राशि भिन्नता के कारण शुभ

पादवेध नहीं होना चाहिए. वर-कन्‍या के नक्षत्र चरण प्रथम और चतुर्थ या द्वितीय और तृतीय नहीं होने चाहिएं.

उक्त परिहारों में यह ध्यान रखें कि वधू की जन्म राशि, नक्षत्र तथा नक्षत्र चरण, वर कीराशि, नक्षत्र व चरण से पहले नहींहोने चाहिए। अन्यथा नाड़ी दोष परिहार होते हुए भी शुभ नहीं होगा। उदाहरण देखें-

वर- कृतिका- प्रथम (मेष), वधू- कृतिका द्वितीय (वृष राशि)-

शुभ वर- कृतिका- द्वितीय (वृष), वधू-कृतिका- प्रथम

(मेष राशि)- अशुभ

वैसे तो वर कन्या के राशियों के स्वामी आपस में मित्र हो तो वर्ण दोष, वर्ग दोष, तारा दोष, योनि दोष, गण दोष भी नष्ट हो जाता है.

वर और कन्या की कुंडली में राशियों के स्वामी एक ही हो या मित्र हो अथवानवांश के स्वामी परस्पर मित्र हो या एक ही ही हो तो सभी कूट दोष समाप्त हो जातेहैं.

नाड़ी दोष हो तो महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए. इससे दांपत्य जीवन में आ रहे सारे दोष समाप्त हो जाते हैं.

नाड़ी दोष का उपचार:
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पीयूष धारा के अनुसार स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्न दान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राण प्रतिष्ठा तथा महामृत्युञ्जय जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर वर और कन्या की राशि समान हो तो उनके बीच परस्पर मधुर सम्बन्ध रहता है.दोनों की राशियां एक दूसरे से चतुर्थ और दशम होने पर वर वधू का जीवन सुखमय होता है. तृतीय और एकादश राशि होने पर गृहस्थी में धन की कमी नहीं रहती है.ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि वर और कन्या की कुण्डली में षष्टम भाव,अष्टम भाव और द्वादश भाव में समान राशि नहीं हो.।
वर और कन्याकी राशि अथवा लग्न समान होने पर गृहस्थी सुखमय रहती है परंतु गौर करने की बात यह है कि राशि अगर समान हो तो नक्षत्र भेद होना चाहिए अगर नक्षत्र भी समान हो तो चरण भेद आवश्यक है.अगर ऐसा नही है तो राशि लग्न समान होने पर भी वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आती है।

कुण्डली में दोष विचार
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विवाहके लिए कुण्डली मिलान करते समय दोषों का भी विचार करना चाहिए. कन्या की कुण्डली में वैधव्य योग , व्यभिचार योग, नि:संतान योग, मृत्यु योग एवं दारिद्र योग हो तो ज्योतिष की दृष्टि से सुखी वैवाहिक जीवन के यह शुभ नहीं होता है.इसी प्रकार वर की कुण्डली में अल्पायु योग, नपुंसक योग,व्यभिचार योग, पागलपन योग एवं पत्नी नाश योग रहने पर गृहस्थ जीवन में सुख का अभाव होता है.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कन्या की कुण्डली में विष कन्या योग होने पर जीवन में सुख का अभाव रहता है.पति पत्नी के सम्बन्धों में मधुरता नहीं रहती है.

हालाँकि कई स्थितियों में कुण्डली में यह दोष प्रभावशाली नहीं होता है अत: जन्म कुण्डली के अलावा नवमांश और चन्द्र कुण्डली से भी इसका विचार करके विवाह किया जा सकता है।


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