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शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या की वास्तविकता

👉शनि साढ़ेसाती क्या वास्तव में होती है, या ज्योतिषियों द्वारा बनाया गया एक हौआ ?
👉साढ़ेसाती, ढैय्या एवं शनि दशा के प्रभाव 👉कब कष्टदायी होती है साढ़ेसाती ?
क्या राजयोग भी देती हैं साढ़े साती ?

वास्तविकता, या भ्रम ?
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आज से 50-60 वर्ष पहले तक, शनि के बारे में लोग इतने भयभीत नहीं थे. पुराने शास्त्रों में भी इसका बहुत कम उल्लेख है. पर इन वर्षों में जगह- 2 शनि महाराज के मंदिर खुल गए हैं और इन मंदिरों में भीड़ भी बढ़ गई है. इस का एक प्रमुख कारण कुछ ज्योतिषियों द्वारा किया गया भ्रामक प्रचार है, जो उपायों, या कुछ यन्त्रों को बेचने के उद्देश्य से किया जाता है. आजकल सरसों/तिल आदि तेल भी बहुत महँगे हैं और उडद की (काली) दाल के दाम तो मोदी जी की सर्कार को बदनाम कर रहे हैं. ऐसे में जगह-२ शनि देव महाराज की मूर्तियां रख कर तेल और उडद बेच कर भी खूब कमाई कई लोग करते हैं.

पर इसका अर्थ यह भी नहीं, कि साढ़ेसाती और ढैय्या होती ही नहीं, जैसे कि कई अन्य ज्योतिषी कहते हैं.
दोनों ही वास्तविकता से दूर है – इसके प्रभाव को हौआ बताने वाले और इसके अस्तित्व को नकारने वाले !

शनि का प्रभाव👉 जैमिनी ऋषि के अनुसार कलियुग में शनि का सबसे ज्यादा प्रभाव है। शनि ग्रह स्थिरता का प्रतीक है। कार्यकुशलता, गंभीर विचार, ध्यान और विमर्श शनि के प्रभाव में आते हैं। यह शांत, सहनशील, स्थिर और दृढ़ प्रवृत्ति का होता है। उल्लास, आनंद, प्रसन्नता में गुण स्वभाव में नहीं है।
शनि को यम भी कहते हैं। शनि की वस्तुएं नीलम, कोयला, लोहा, काली दालें, सरसों का तेल, नीला कप़डा, चम़डा आदि है। यह कहा जा सकता है कि चन्द्र मन का कारक है तथा शनि बल या दबाव डालता है।

मेष राशि जहां नीच राशि है, वहीं शत्रु राशि भी और तुला जहां मित्र राशि है वहीं उच्च राशि भी है। शनि वात रोग, मृत्यु, चोर-डकैती मामला, मुकद्दमा, फांसी, जेल, तस्करी, जुआ, जासूसी, शत्रुता, लाभ-हानि, दिवालिया, राजदंड, त्याग पत्र, राज्य भंग, राज्य लाभ या व्यापार-व्यवसाय का कारक माना जाता है।

शनि की दृष्टि👉 शनि जिस राशि में स्थित होता है उससे तृतीय, सप्तम और दशम राशि पर पूर्ण दृष्टि रखता है। ऐसा भी माना जाता है, कि शनि जहाँ बैठता है, वहां तो हानि नहीं करता, पर जहाँ-२ उसकी दृष्टि पड़ती है, वहां बहुत हानि होती है (हालाँकि वास्तविकता में यह भी देखना पड़ता है, कि बैठने/दृष्टि का घर शनि के मित्र ग्रह का है, या शत्रु ग्रह, आदि)

साढ़ेसाती और ढैय्या कब और इनका जीवन पर प्रभाव प्रभाव ?👉 विश्व के 25 प्रतिशत व्यक्ति शनि की साढ़ेसाती और 16.66 प्रतिशत व्यक्ति इसकी ढैया के प्रभाव में सदैव रहते हैं। तो क्या 41.66 प्रतिशत व्यक्ति हमेशा शनि की साढ़ेसाती या ढैया के प्रभाव से ग्रस्त रहते हैं ?
क्या उन लोगों पर जो न शनि की साढ़ेसाती और न ही उनकी ढैया के प्रभाव में होते हैं कोई विशेष संकट नहीं आते ?

शनि की साढ़ेसाती तब शुरू होती है जब शनि गोचर में जन्म राशि से 12वें घर में भ्रमण करने लगता है, और तब तक रहती है जब वह जन्म राशि से द्वितीय भाव में स्थित रहता है। वास्तव में शनि जन्म राशि से 45 अंश से 45 अंश बाद तक जब भ्रमण करता है तब उसकी साढ़ेसाती होती है।
इसी प्रकार चंद्र राशि से चतुर्थ या अष्टम भाव में शनि के जाने पर ढैया आरंभ होती है। सूक्ष्म नियम के अनुसार जन्म राशि से चतुर्थ भाव के आरंभ से पंचम भाव की संधि तक और अष्टम भाव के आरंभ से नवम भाव की संधि तक शनि की ढैया होनी चाहिए।
नोट : साढ़ेसाती और ढैय्या हमेशा राशि – यानि कि जिस राशि में जन्म कुण्डली में चन्द्रमा स्थित होता है, उस से देखी जाती हैं.

भ्रम👉 शनि की साढ़े साती की शुरूआत को लेकर जहां कई तरह की विचारधाराएं मिलती हैं वहीं इसके प्रभाव को लेकर भी हमारे मन में भ्रम और कपोल कल्पित विचारों का ताना बाना बुना रहता है। जन-मानस में इसके बारे में बहुत सारे भ्रम भी व्याप्त हैं। यह किसी भी प्राणी को अकारण दंडित नहीं करता है। लोग यह सोच कर ही घबरा जाते हैं कि शनि की साढ़े साती शुरू हो गयी तो कष्ट और परेशानियों की शुरूआत होने वाली है। ज्योतिषशास्त्री कहते हैं जो लोग ऐसा सोचते हैं वे अकारण ही भयभीत होते हैंवास्तव में अलग अलग राशियों के व्यक्तियों पर शनि का प्रभाव अलग अलग होता है।

लक्षण और उपाय

लक्षण👉 जिस प्रकार हर पीला दिखने वाला धातु सोना नहीं होता उस प्रकार जीवन में आने वाले सभी कष्ट का कारण शनि नहीं होता। आपके जीवन में सफलता और खुशियों में बाधा आ रही है तो इसका कारण अन्य ग्रहों का कमज़ोर या नीच स्थिति में होना भी हो सकता है। आप अकारण ही शनिदेव को दोष न दें फिर शनि के प्रभाव में कमी लाने हेतु आवश्यक उपाय करें।
ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या आने के कुछ लक्षण हैं जिनसे आप खुद जान सकते हैं कि आपके लिए शनि शुभ हैं या प्रतिकूल।
जैसे घर, दीवार का कोई भाग अचानक गिर जाता है। घर के निर्माण या मरम्मत में व्यक्ति को काफी धन खर्च करना पड़ता है।
घ्रर के अधिकांश सदस्य बीमार रहते हैं, घर में अचानक अग लग जाती है, आपको बार-बार अपमानित होना पड़ता है। घर की महिलाएं अक्सर बीमार रहती हैं, एक परेशानी से आप जैसे ही निकलते हैं दूसरी परेशानी सिर उठाए खड़ी रहती है। व्यापार एवं व्यवसाय में असफलता और नुकसान होता है। घर में मांसाहार एवं मादक पदार्थों के प्रति लोगों का रूझान काफी बढ़ जाता है। घर में आये दिन कलह होने लगता है। अकारण ही आपके ऊपर कलंक या इल्ज़ाम लगता है। आंख व कान में तकलीफ महसूस होती है एवं आपके घर से चप्पल जूते गायब होने लगते हैं, या जल्दी-जल्दी टूटने लगते हैं। इसके अलावा अकारण ही लंबी दूरी की यात्राएं करनी पड़ती है।
नौकरी एवं व्यवसाय में परेशानी आने लगती है। मेहनत करने पर भी व्यक्ति को पदोन्नति नहीं मिल पाती है। अधिकारियों से संबंध बिगड़ने लगते हैं और नौकरी छूट जाती है।
व्यक्ति को अनचाही जगह पर तबादला मिलता है। व्यक्ति को अपने पद से नीचे के पद पर जाकर काम करना पड़ता है। आर्थिक परेशानी बढ़ जाती है। व्यापार करने वाले को घाटा उठाना पड़ता है।
आजीविका में परेशानी आने के कारण व्यक्ति मानसिक तौर पर उलझन में रहता है। इसका स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
व्यक्ति को जमीन एवं मकान से जुड़े विवादों का सामना करना पड़ता है।
सगे-संबंधियों एवं रिश्तेदारों में किसी पैतृक संपत्ति को लेकर आपसी मनमुटाव और मतभेद बढ़ जाता है। शनि महाराज भाइयों के बीच दूरियां भी बढ़ा देते हैं।
शनि का प्रकोप जब किसी व्यक्ति पर होने वाला होता है तो कई प्रकार के संकेत शनि देते हैं। इनमें एक संकेत है व्यक्ति का अचानक झूठ बोलना बढ़ जाना।

उपाय👉 शनिदेव भगवान शंकर के भक्त हैं, भगवान शंकर की जिनके ऊपर कृपा होती है उन्हें शनि हानि नहीं पहुंचाते अत: नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा व अराधना करनी चाहिए। पीपल में सभी देवताओं का निवास कहा गया है इस हेतु पीपल को आर्घ देने अर्थात जल देने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। अनुराधा नक्षत्र में जिस दिन अमावस्या हो और शनिवार का दिन हो उस दिन आप तेल, तिल सहित विधि पूर्वक पीपल वृक्ष की पूजा करें तो शनि के कोप से आपको मुक्ति मिलती है। शनिदेव की प्रसन्नता हेतु शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए।
शनि के कोप से बचने हेतु आप हनुमान जी की आराधाना कर सकते हैं, क्योंकि शास्त्रों में हनुमान जी को रूद्रावतार कहा गया है। आप साढ़े साते से मुक्ति हेतु शनिवार को बंदरों को केला व चना खिला सकते हैं। नाव के तले में लगी कील और काले घोड़े का नाल भी शनि की साढ़े साती के कुप्रभाव से आपको बचा सकता है अगर आप इनकी अंगूठी बनवाकर धारण करते हैं। लोहे से बने बर्तन, काला कपड़ा, सरसों का तेल, चमड़े के जूते, काला सुरमा, काले चने, काले तिल, उड़द की साबूत दाल ये तमाम चीज़ें शनि ग्रह से सम्बन्धित वस्तुएं हैं, शनिवार के दिन इन वस्तुओं का दान करने से एवं काले वस्त्र एवं काली वस्तुओं का उपयोग करने से शनि की प्रसन्नता प्राप्त होती है।

साढ़े साती के कष्टकारी प्रभाव से बचने हेतु आप चाहें तो इन उपायों से भी लाभ ले सकते हैं👇

👉 शनिवार के दिन शनि देव के नाम पर व्रत रख सकते हैं।
👉 नारियल अथवा बादाम शनिवार के दिन सर से 11 बार उत्तर कर जल में प्रवाहित कर सकते हैं।
👉 नियमित 108 बार शनि की तात्रिक मंत्र का जाप कर सकते हैं स्वयं शनि देव इस स्तोत्र को महिमा मंडित करते हैं।
👉 महामृत्युंजय मंत्र काल का अंत करने वाला है आप शनि की दशा से बचने हेतु किसी योग्य पंडित से महामृत्युंजय मंत्र द्वारा शिव का अभिषेक कराएं तो शनि के फंदे से आप मुक्त हो जाएंगे।
👉 किसी शनिवार की शाम जूते का दान करें।

साढ़े साती शुभ👉
शनि की ढईया और साढ़े साती का नाम सुनकर बड़े बड़े पराक्रमी और धनवानों के चेहरे की रंगत उड़ जाती है। लोगों के मन में बैठे शनि देव के भय का कई ठग ज्योतिषी नाज़ायज लाभ उठाते हैं। विद्वान ज्योतिषशास्त्रियों की मानें तो शनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुत से लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभ-सम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है। कुछ लोगों को शनि की इस दशा के दौरान काफी परेशानी एवं कष्ट का सामना करनाहोता है। देखा जाय तो शनि केवल कष्ट ही नहीं देते बल्कि शुभ और लाभ भीप्रदान करते हैं। हम विषय की गहराई में जाकर देखें तो शनि का प्रभाव सभी व्यक्ति परउनकी राशि कुण्डली में वर्तमान विभिन्न तत्वों व कर्म पर निर्भर करता है. अत: शनि के प्रभाव को लेकर आपको भयग्रस्त होने की जरूरत नहीं है। आइये हम देखे कि शनि किसी के लिए कष्टकर और किसी के लिए सुखकारी तो किसी को मिश्रित फल देने वाला कैसे होता है।

शनि की स्थिति का आंकलन भी जरूरी होता है। अगर आपका लग्न वृष,मिथुन, कन्या, तुला, मकर अथवा कुम्भ है, तो शनि आपको नुकसान नहीं पहुंचाते हैं बल्कि आपको उनसे लाभ व सहयोग मिलता है. उपरोक्त लग्न वालों केअलावा जो भी लग्न हैं उनमें जन्म लेने वाले व्यक्ति को शनि के कुप्रभाव कासामना करना पड़ता है। ज्योतिर्विद बताते हैं कि साढ़े साती का वास्तविकप्रभाव जानने के लिए चन्द्र राशि के अनुसार शनि की स्थिति ज्ञात करने केसाथ लग्न कुण्डली में चन्द्र की स्थिति का आंकलन भी जरूरी होता है।

यह ज्योतिष का गूढ़ विषय है जिसका उत्तर कुण्डली में ढूंढा जा सकता है। साढ़े साती केप्रभाव के लिए कुण्डली में लग्न व लग्नेश की स्थिति के साथ ही शनि और चन्द्र की स्थिति पर भी विचार किया जाता है। ग
[: वैवाहिक जीवन से सम्बंधित शुभ अशुभ योग।

सुखी वैवाहिक जीवन के योग

यदि सप्तमेश की स्थिति केंद्र या त्रिकोण भाव में हो या सप्तमेश एकादश भाव में स्थित हो तथा विवाह के कारक ग्रह गुरु और शुक्र शुभ भाव में स्थित हों तो जातक का वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है।

सप्तम भाव तथा सप्तमेश पर शुभ ग्रहों की दृष्टि जातक को खुशहाल वैवाहिक जीवन प्रदान करती है।

यदि जन्म कुंडली में सप्तमेश लग्न या पंचम भाव में हो तो ऐसे जातक का जीवनसाथी उसे दिल से प्यार करता है।

यदि नवमांश कुंडली में लग्न कुंडली के सप्तमेश की स्थिति अच्छी हो तथा नवमांश कुंडली का सप्तमेश नवमांश कुंडली में शुभ भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति का वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है।

यदि वर की कुंडली के सप्तम भाव में वृषभ या तुला राशि होती है तो उसे सुंदर पत्नी मिलती है।

यदि कन्या की कुंडली में चन्द्र से सप्तम स्थान पर शुभ ग्रह बुध, गुरु, शुक्र में से कोई भी हो तो उसका पति राज्य में उच्च पद प्राप्त करता है तथा धनवान होता है।

जब सप्तमेश सौम्य ग्रह होता है तथा स्वग्रही होकर सप्तम भाव में ही उपस्थित होता है तो जातक को सुंदर, आकर्षक, प्रभामंडल से युक्त एवं सौभाग्यशाली पत्नी प्राप्त होती है।

जब सप्तमेश सौम्य ग्रह होकर भाग्य भाव में उपस्थित होता है तो जातक को शीलयुक्त, रमणी एवं सुंदर पत्नी प्राप्त होती है तथा विवाह के पश्चात जातक का निश्चित भाग्योदय होता है।

जब सप्तमेश एकादश भाव में उपस्थित हो तो जातक की पत्नी रूपवती, संस्कारयुक्त, मृदुभाषी व सुंदर होती है तथा विवाह के पश्चात जातक की आर्थिक आय में वृद्धि होती है या पत्नी के माध्यम से भी उसे आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं।

जिस कन्या की जन्मकुंडली के लग्न में चन्द्र, बुध, गुरु या शुक्र उपस्थित होता है, उसे धनवान पति प्राप्त होता है।

जिस कन्या की जन्मकुंडली के लग्न में गुरु उपस्थित हो तो उसे सुंदर, धनवान, बुद्धिमान पति व श्रेष्ठ संतान मिलती है।

भाग्य भाव में या सप्तम, अष्टम और नवम भाव में शुभ ग्रह होने से ससुराल धनाढच्य एवं वैभवपूर्ण होती है।

कन्या की जन्मकुंडली में चन्द्र से सप्तम स्थान पर शुभ ग्रह बुध, गुरु, शुक्र आदि में से कोई उपस्थित हो तो उसका पति राज्य में उच्च पद प्राप्त करता है तथा उसे सुख व वैभव प्राप्त होता है।

कुंडली के लग्न में चंद्र हो तो ऐसी कन्या पति को प्रिय होती है और चंद्र व शुक्र की युति हो तो कन्या ससुराल में अपार संपत्ति एवं समस्त भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त करती है।

कन्या की कुंडली में वृषभ, कन्या, तुला लग्न हो तो वह प्रशंसा पाकर पति एवं धनवान ससुराल में प्रतिष्ठा प्राप्त करती है।कन्या की कुंडली में जितने अधिक शुभ ग्रह गुरु, शुक्र, बुध या चन्द्र लग्न को देखते हैं या सप्तम भाव को देखते हैं, उसे उतना धनवान एवं प्रतिष्ठित परिवार एवं पति प्राप्त होता है।

कन्या की जन्मकुंडली में लग्न एवं ग्रहों की स्थिति की गणनानुसार त्रिशांश कुंडली का निर्माण करना चाहिए तथा देखना चाहिए कि यदि कन्या का जन्म मिथुन या कन्या लग्न में हुआ है तथा लग्नेश गुरु या शुक्र के त्रिशांश में है तो उसके पति के पास अटूट संपत्ति होती है तथा कन्या सदैव ही सुंदर वस्त्र एवं आभूषण धारण करने वाली होती है।

कुंडली के सप्तम भाव में शुक्र उपस्थित होकर अपने नवांश अर्थात वृषभ या तुला के नवांश में हो तो पति धनाढच्य होता है।सप्तम भाव में बुध होने से पति विद्वान, गुणवान, धनवान होता है, गुरु होने से दीर्घायु, राजा के संपत्ति वाला एवं गुणी तथा शुक्र या चंद्र हो तो ससुराल धनवान एवं वैभवशाली होता है।

एकादश भाव में वृष, तुला राशि हो या इस भाव में चन्द्र, बुध या शुक्र हो तो ससुराल धनाढच्य और पति सौम्य व विद्वान होता है।हर पुरुष सुंदर पत्नी और स्त्री धनवान पति की कामना करती है।

जातक की कुंडली में सप्तमेश केंद्र में उपस्थित हो तथा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि होती है, तभी जातक को गुणवान, सुंदर एवं सुशील पत्नी प्राप्त होती है।

पुरुष जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में शुभ ग्रह बुध, गुरु या शुक्र उपस्थित हो तो ऐसा जातक सौभाग्यशाली होता है तथा उसकी पत्नी सुंदर, सुशिक्षित होती है और कला, नाट्य, संगीत, लेखन, संपादन में प्रसिद्धि प्राप्त करती है। ऐसी पत्नी सलाहकार, दयालु, धार्मिक-आध्यात्मिक क्षेत्र में रुचि रखती है।

चन्द्रमा मन का कारक है,और वह जब बलवान होकर सप्तम भाव या सप्तमेश से सम्बन्ध रखता हो तो चौबीसवें साल तक विवाह करवा ही देता है।

असफल वैवाहिक जीवन के योग

यदि सप्तमेश छठे, आठवें, द्वितीय या द्वादश भाव में स्थित हो तथा शादी का कारक ग्रह गुरु या शुक्र अशुभ भाव में स्थित हों तथा पाप ग्रहों से दृष्ट हों तो जातक का वैवाहिक जीवन अत्यधिक तनावपूर्ण रहता है।

यदि सप्तमेश वक्री हो तो जातक का वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं होता।

यदि सूर्य और शुक्र पंचम, सप्तम तथा नवम भाव में स्थित हों तो ऐसे जातक का वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं होता।

यदि केतु लग्न, चतुर्थ, पंचम या दशम भाव में स्थित हों तो ऐसे जातक शकी होने के कारण वैवाहिक जीवन का सुख नहीं ले पाते।

यदि सप्तमेश अशुभ भाव (2,6,8,12) में स्थित हों तथा षष्ठेश वक्री हो, तो जातक उम्र भर तलाक को लेकर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ता है, लड़ाई लड़ने के बाद भी उसको तलाक में सफलता नहीं मिलती।

यदि सप्तमेश द्वादश भाव में शुक्र के साथ स्थित हो तो ऐसे जातक का चरित्र संदेहजनक होता है, जिसके कारण उसका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता।

यदि चंद्रमा 6,8,12 में स्थित हो, तो जातक मानसिक स्तर पर हमेशा विचलित रहता है जिसके कारण उसका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहता।

जन्म कुंडली में राहु की स्थिति लग्न, द्वितीय या अष्टम भाव में हो, तो ऐसा जातक जिद्दी स्वभाव का होने के कारण अपना वैवाहिक जीवन नष्ट कर डालता है।

यदि जन्मकुंडली में चंद्रमा और सूर्य पाप ग्रहों की राशि में (सूर्य, मंगल, शनि) हो तो ऐसे जातक कलहप्रिय होते हैं जिसके कारण उनका वैवाहिक जीवन शुभ नहीं होता।

यदि जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में सूर्य हो तो उसकी पत्नी शिक्षित, सुशील, सुंदर एवं कार्यो में दक्ष होती है, किंतु ऐसी स्थिति में सप्तम भाव पर यदि किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो दाम्पत्य जीवन में कलह और सुखों का अभाव होता है।

जातक की जन्मकुंडली में स्वग्रही, उच्च या मित्र क्षेत्री चंद्र हो तो जातक का दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है तथा उसे सुंदर, सुशील, भावुक, गौरवर्ण एवं सघन केश राशि वाली रमणी पत्नी प्राप्त होती है। सप्तम भाव में क्षीण चंद्र दाम्पत्य जीवन में न्यूनता उत्पन्न करता है।

जिनकी मंगल एवं शुक्र एक साथ बैठे हों उनके वैवाहिक जीवन में अशांति और परेशानी बनी रहती है. ग्रहों के इस योग के कारण पति पत्नी में अनबन रहती है.

शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि दोनों ही पाप ग्रह दूसरे विवाह की संभावना पैदा करते हैं.

राहु, सूर्य, शनि व द्वादशेश पृथकतावादी ग्रह हैं, जो सप्तम (दाम्पत्य)और द्वितीय (कुटुंब) भावों पर विपरीत प्रभाव डालकर वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते हैं। दृष्टि या युति संबंध से जितना ही विपरीत या शुभ प्रभाव होगा उसी के अनुरूप वैवाहिक जीवन सुखमय या दुखमय होगा।

राहु की दशा में शादी हो,या राहु सप्तम को पीडित कर रहा हो,तो शादी होकर टूट जाती है,यह सब दिमागी भ्रम के कारण होता है।

अष्टकूट मिलान(वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी) आवश्यक है और ठीक न हो तो भी वैचारिक मतभेद रहता है।

सप्तम भाव में स्थित राशि के अनुसार जीवन साथी का स्वाभाव

यदि जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में वृषभ या तुला राशि होती है तो जातक को चतुर, मृदुभाषी, सुंदर, सुशिक्षित, संस्कारवान, तीखे नाक-नक्श वाली, गौरवर्ण, संगीत, कला आदि में दक्ष, भावुक एवं चुंबकीय आकर्षण वाली, कामकला में प्रवीण पत्नी प्राप्त होती है।

यदि जातक की जन्मकुंडली में सप्तम भाव में मिथुन या कन्या राशि उपस्थित हो तो जातक को कोमलाङ्गी, आकर्षक व्यक्तित्व वाली, सौभाग्यशाली, मृदुभाषी, सत्य बोलने वाली, नीति एवं मर्यादाओं से युक्त बात करने वाली, श्रृंगारप्रिय, कठिन समय में पति का साथ देने वाली तथा सदैव मुस्कुराती रहने वाली पत्नी प्राप्त होती है। उन्हें वस्त्र एवं आभूषण बहुत प्रिय होते हैं।

जिस जातक के सप्तम भाव में कर्क राशि स्थित होती है, उसे अत्यंत सुंदर, भावुक, कल्पनाप्रिय, मधुरभाषी, लंबे कद वाली, छरहरी तथा तीखे नाक-नक्श वाली, सौभाग्यशाली तथा वस्त्र एवं आभूषणों से प्रेम करने वाली पत्नी प्राप्त होती है।

यदि किसी जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में कुंभ राशि स्थित हो तो ऐसे जातक की पत्नी गुणों से युक्त धार्मिक, आध्यात्मिक कार्यो में गहरी अभिरुचि रखने वाली एवं दूसरों की सेवा और सहयोग करने वाली होती है।

सप्तम भाव में धनु या मीन राशि होने पर जातक को धार्मिक, आध्यात्मिक एवं पुण्य के कार्यो में रुचि रखने वाली, सुंदर, न्याय एवं नीति से युक्त बातें करने वाली, वाक्पटु, पति के भाग्य में वृद्धि करने वाली, सत्य का आचरण करने वाली और शास्त्र एवं पुराणों का अध्ययन करने वाली पत्नी प्राप्त होती है।

मांगलिक विचार
मंगल उष्ण प्रकृति का ग्रह है.इसे पाप ग्रह माना जाता है. विवाह और वैवाहिक जीवन में मंगल का अशुभ प्रभाव सबसे अधिक दिखाई देता है. मंगल दोष जिसे मंगली के नाम से जाना जाता है इसके कारण कई स्त्री और पुरूष आजीवन अविवाहित ही रह जाते हैं.इस दोष को गहराई से समझना आवश्यक है ताकि इसका भय दूर हो सके.
वैदिक ज्योतिष में मंगल को लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में दोष पूर्ण माना जाता है.इन भावो में उपस्थित मंगल वैवाहिक जीवन के लिए अनिष्टकारक कहा गया है.जन्म कुण्डली में इन पांचों भावों में मंगल के साथ जितने क्रूर ग्रह बैठे हों मंगल उतना ही दोषपूर्ण होता है जैसे दो क्रूर होने पर दोगुना, चार हों तो चार चार गुणा.मंगल का पाप प्रभाव अलग अलग तरीके से पांचों भाव में दृष्टिगत होता है

जैसे: लग्न भाव में मंगल (Mangal in Ascendant ) लग्न भाव से व्यक्ति का शरीर, स्वास्थ्य, व्यक्तित्व का विचार किया जाता है.लग्न भाव में मंगल होने से व्यक्ति उग्र एवं क्रोधी होता है.यह मंगल हठी और आक्रमक भी बनाता है.इस भाव में उपस्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि सुख सुख स्थान पर होने से गृहस्थ सुख में कमी आती है.सप्तम दृष्टि जीवन साथी के स्थान पर होने से पति पत्नी में विरोधाभास एवं दूरी बनी रहती है.अष्टम भाव पर मंगल की पूर्ण दृष्टि जीवनसाथी के लिए संकट कारक होता है.
द्वितीय भाव में मंगल (Mangal in Second Bhava) भवदीपिका नामक ग्रंथ में द्वितीय भावस्थ मंगल को भी मंगली दोष से पीड़ित बताया गया है.यह भाव कुटुम्ब और धन का स्थान होता है.यह मंगल परिवार और सगे सम्बन्धियों से विरोध पैदा करता है.परिवार में तनाव के कारण पति पत्नी में दूरियां लाता है.इस भाव का मंगल पंचम भाव, अष्टम भाव एवं नवम भाव को देखता है.मंगल की इन भावों में दृष्टि से संतान पक्ष पर विपरीत प्रभाव होता है.भाग्य का फल मंदा होता है.

चतुर्थ भाव में मंगल (Mangal in Fourth Bhava) चतुर्थ स्थान में बैठा मंगल सप्तम, दशम एवं एकादश भाव को देखता है.यह मंगल स्थायी सम्पत्ति देता है परंतु गृहस्थ जीवन को कष्टमय बना देता है.मंगल की दृष्टि जीवनसाथी के गृह में होने से वैचारिक मतभेद बना रहता है.मतभेद एवं आपसी प्रेम का अभाव होने के कारण जीवनसाथी के सुख में कमी लाता है.मंगली दोष के कारण पति पत्नी के बीच दूरियां बढ़ जाती है और दोष निवारण नहीं होने पर अलगाव भी हो सकता है.यह मंगल जीवनसाथी को संकट में नहीं डालता है.

सप्तम भाव में मंगल (Mangal in Seventh Bhava) सप्तम भाव जीवनसाथी का घर होता है.इस भाव में बैठा मंगल वैवाहिक जीवन के लिए सर्वाधिक दोषपूर्ण माना जाता है.इस भाव में मंगली दोष होने से जीवनसाथी के स्वास्थ्य में उतार चढ़ाव बना रहता है.जीवनसाथी उग्र एवं क्रोधी स्वभाव का होता है.यह मंगल लग्न स्थान, धन स्थान एवं कर्म स्थान पर पूर्ण दृष्टि डालता है.मंगल की दृष्टि के कारण आर्थिक संकट, व्यवसाय एवं रोजगार में हानि एवं दुर्घटना की संभावना बनती है.यह मंगल चारित्रिक दोष उत्पन्न करता है एवं विवाहेत्तर सम्बन्ध भी बनाता है.संतान के संदर्भ में भी यह कष्टकारी होता है.मंगल के अशुभ प्रभाव के कारण पति पत्नी में दूरियां बढ़ती है जिसके कारण रिश्ते बिखरने लगते हैं.जन्मांग में अगर मंगल इस भाव में मंगली दोष से पीड़ित है तो इसका उपचार कर लेना चाहिए.

अष्टम भाव में मंगल (Mangal in Eigth Bhava) अष्टम स्थान दुख, कष्ट, संकट एवं आयु का घर होता है.इस भाव में मंगल वैवाहिक जीवन के सुख को निगल लेता है.अष्टमस्थ मंगल मानसिक पीड़ा एवं कष्ट प्रदान करने वाला होता है.जीवनसाथी के सुख में बाधक होता है.धन भाव में इसकी दृष्टि होने से धन की हानि और आर्थिक कष्ट होता है.रोग के कारण दाम्पत्य सुख का अभाव होता है.ज्योतिष विधान के अनुसार इस भाव में बैठा अमंलकारी मंगल शुभ ग्रहों को भी शुभत्व देने से रोकता है.इस भाव में मंगल अगर वृष, कन्या अथवा मकर राशि का होता है तो इसकी अशुभता में कुछ कमी आती है.मकर राशि का मंगल होने से यह संतान सम्बन्धी कष्ट देता है।

द्वादश भाव में मंगल (Mangal in Twelth Bhava) कुण्डली का द्वादश भाव शैय्या सुख, भोग, निद्रा, यात्रा और व्यय का स्थान होता है.इस भाव में मंगल की उपस्थिति से मंगली दोष लगता है.इस दोष के कारण पति पत्नी के सम्बन्ध में प्रेम व सामंजस्य का अभाव होता है.धन की कमी के कारण पारिवारिक जीवन में परेशानियां आती हैं.व्यक्ति में काम की भावना प्रबल रहती है.अगर ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हो तो व्यक्ति में चारित्रिक दोष भी हो सकता है..

भावावेश में आकर जीवनसाथी को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं.इनमें गुप्त रोग व रक्त सम्बन्धी दोष की भी संभावना रहती है.

प्रेम विवाह के योग
जब दो कुंडली के मिलान में ग्रहों का माकूल साथ हो तो प्रेम भी होगा और प्रेम विवाह भी। ज्योतिष की मानें तो चंद्र और शुक्र का साथ किसी भी व्यक्ति को प्रेमी बना सकता है और यही ग्रह अगर विवाह के घर से संबंध रखते हों तो इस प्रेम की परिणति विवाह के रूप में तय है। ऐसा नहीं कि प्रारब्ध को मानने से कर्म की महत्ता कम हो जाती है लेकिन इतना तय है कि ग्रहों का संयोग आपके जीवन में विरह और मिलन का योग रचता है। किसी भी व्यक्ति के प्रेम करने के पीछे ज्योतिषीय कारण भी होते हैं। कुंडली में शुक्र और चंद्र की प्रबलता है तो किसी भी जातक का प्रेम में पड़ना स्वाभाविक है। कुंडली में पाँचवाँ घर प्रेम का होता है और सातवाँ घर दाम्पत्य का माना जाता है। लग्न, पंचम, सप्तम या एकादश भाव में शुक्र का संबंध होने से प्रेम होता है। जब पाँचवें और सातवें घर में संबंध बनता है तो प्रेम विवाह में तब्दील हो जाता है।शुक्र या चंद्र के अलावा वृषभ, तुला और कर्क राशि के जातक भी प्रेम करते हैं। शुक्र और चंद्र प्रेम विवाह करवाते हैं तो सूर्य की मौजूदगी संबंधों में विच्छेद का कारण भी बनती है। सूर्य और शुक्र या शनि का आपसी संबंध जोड़े को अलग करने में मुख्य भूमिका निभाता है। सप्तम भाव का संबंध यदि सूर्य से हो जाए तो भी युवा प्रेमी युगल का नाता लंबे समय तक नहीं चलता। इनकी युति तलाक तक ले जाती है। अब आँखें चार हों तो कुंडली देख लें, संभव है शुक्र और चंद्र का साथ आपको प्रेमी बना रहा हो।
[कुंडली मिलान और शादी
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क्या सम्पूर्ण दाम्पत्य सुख का आधार कुंडली में गुण मिलान ही है ?

मित्रों ज्योतिष में वैवाहिक जीवन में सफलता के लिये अक्सर कुंडली मिलान का सहारा लिया जता है। कुंडली मिलान में 36 गुण लिए जाते है और ये माना जाता है की जितने अधिक गुण मिलते है उतना ही ज्यादा दाम्पत्य में सुख जातक जातिका को मिलता है। इन गुणों में कम से कम 18 गुण मिलने आवश्यक हो जाते है । मेलापक में वर्ण , वैश्य , तारा , योनी , ग्रह मैत्री , गण, भकूट और नाडी का मिलान किया जाता है और यदि ये गुण मिलते है तो फिर शादी के लिये आगे बढ़ा जाता है । कुंडली मिलान जातक और जातिका की राशि के आधार पर किया जाता है लेकिन हमारे सामने अक्सर ये समस्या आती है की कुंडली मिलान के बाद भी विवाह में अलग अलग होने की नोबत आ जाती है और फिर अभिभावक ये पूछते है की हमने तो कुंडली मिलान के बाद विवाह किया था फिर भी ऐसा क्यों हो रहा है तो आज उसी के कारण पर मै प्रकाश डाल रहा हूँ । आजकल के समय लोग इंटरनेट से कुंडली मिलान कर लेते है और जो गुण सॉफ्टवेयर दिखाता है उसी के आधार पर शादी के लिये आगे बढ़ जाते है । लेकिन सॉफ्टवेयर आपको कभी भी कुंडली के गुण दोष नही बताता है इसिलिये हमेशा किसी विद्वान से ही कुंडली मिलान आपको करवाना चाहिए और उनसे आगे लिखित शंकाओं का समाधान अवश्य कर लें।

मित्रों जब भी आप कुंडली मिलान करवाते है तो सामने वाले से ये सबसे पहले पूछे की जिसके साथ आप कुंडली मिलान करवा रहे है उसके जीवन में वैवाहिक जीवन का सुख कैसा है? कई बार वैवाहिक सुख के अभाव के योग कुंडली में होते है लेकिन कुंडली मिलान में उनको नजरअंदाज कर दिया जाता है इसिलिये सबसे पहले इस बात का अवश्य पता करे ।

इसके बाद आपको ये पता होना चाहिए की जिसके साथ आपके बच्चे की शादी होनी है उसका स्वास्थ्य कैसा है । कुंडली में ग्रह योग अच्छे औऱ खराब स्वास्थ्य की तरफ इशारा कर रहे होते है इसिलिये उसकी जानकारी अवश्य लें।

इसके बाद आती है सन्तान के बारे में पूछने की क्योंकि बिना सन्तान के दाम्पत्य जीवन को सफल नही माना जाता है इसिलिये कुंडली मिलान करते समय कुंडली में सन्तान सुख अवश्य देखें।

इन सबके साथ ये अवश्य देखें की कुंडली में चरित्र कैसा दिखा रहा है , जातक या जातिका का अच्छा चरित्र होना भी दाम्पत्य सुख के लिय आवश्यक हो जाता है ।

इन सबसे बाद ये देखें की कुंडली में दरिद्र योग तो नही है क्योंकि इन सबसे साथ जीवन का आधार धन की स्थिति है ।

मध्यम आयु योग :- वैसे तो आयु का अनमान लगाना मुश्किल होता है लेकिन हमारे विद्वानों से कुछ योग ऐसे बताये है जिसने किसी की की आयु अल्पायु मध्यम आयु या दीर्घायु आदि के बारे अनुमान लगता है इसिलिये ये जानना आवश्यक है की जिसके साथ आप रिश्ता जोड़ रहे है उसकी कुंडली में मध्यम आयु के योग तो नही है ।

इन सबके साथ यदि जातक और जातिका के भाग्य के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर ली जाए तो ये सोने पर सुहागे वाली बात होगी।

साथ ही ये भी ध्यान रखना आवश्यक है की अल्प बुद्धि के योग न हो क्योंकि कई बार दिमागी कमजोरी सामने आती है जो बाद में वैवाहिक जीवन को दुश्वार बना देती है ।

इसिलिय मेरे कहने का अभिप्राय है की जिस भी जातक या जातिका के साथ आप अपनी सन्तान की शादी कर रहे है उसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी अवश्य हासिल कर लें ताकि आपको बाद में समस्या का सामना न करना पड़े ।

इसिलिय निष्कर्ष ये है की केवल गुण मिलान के आधार पर शादी का निर्यण न लें अन्य शंकाओं का समाधान अवश्य कर लें।

ये सर्वविदित है की सम्पूर्ण गुण किसी में नही मिलते इसिलिये इनमे से अधिकतर गुण जिसमे मिले उसके साथ आगे बढना चाहिए और यदि कुंडली में कोई ऐसा दोष हो जिसका निवारण हो सकता है तो फिर उस दोष के निवारण के बाद शादी के लिये आगे बढ़े।

जय श्री राम
[भकूट दोष


विवाह के लिये अष्टकूट गुण मिलान
भकूट को 7 अंक प्राप्त है ।
भकूट दोष बनता केसे है ?
भकूट दोष का निर्णय वर वधू की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा की किसी राशि में उपस्थिति के कारण बन रहे संबंध के चलते किया जाता है। यदि वर-वधू की कुंडलियों में चन्द्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 12-2 राशियों में स्थित हों तो भकूट मिलान के 0 अंक होते है ।
इसके परिणाम क्या होते है ?
शास्त्रानुसार 6-8 होने पर पति या पत्नी मे से एक कि अकाल मृत्यु , 9-5 होने पर संतानोत्पत्ति मे बाधा ,तथा 2-12 होने पर जीवन मे दरिद्रता देखनी पडती है ।
इसका परिहार केसे होता है ?
यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो भकूट दोष खत्म हो जाता है। जैसे कि मेष-वृश्चिक तथा वृष-तुला राशियों के एक दूसरे से छठे-आठवें स्थान पर होने के पश्चात भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि मेष-वृश्चिक दोनों राशियों के स्वामी मंगल हैं तथा वृष-तुला दोनों राशियों के स्वामी शुक्र हैं। इसी प्रकार मकर-कुंभ राशियों के एक दूसरे से 12-2 स्थानों पर होने के पश्चात भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों राशियों के स्वामी शनि हैं।
यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों के स्वामी आपस में मित्र हैं तो भी भकूट दोष का प्रभाव कम हो जाता है जैसे कि मीन-मेष तथा मेष-धनु में भकूट दोष निर्बल रहता है क्योंकि इन दोनों ही उदाहरणों में राशियों के स्वामी गुरू तथा मंगल हैं जो कि आपसे में मित्र माने जाते हैं।
प्राचीन ज्योतिष शास्त्र मे केवल भकूट दोष के आधार पर “”पति-पत्नी”” मे से एक कि मृत्यु , संतानोत्पत्ति मे बाधा, तथा दरिद्रता जैसे फल बताये गये है ।
आधुनिक तथा व्यवहारिक ज्योतिष मे भकूट दोष के परिणाम:–
अगर भकूट दोष के होते वर वधु का विवाह कर दिया जाये तो जीवन मे पति ओर पत्नी दोनों को 100% अत्यंत बुरा समय एक साथ देखना होगा, इस बुरे समय मे उनके साथ किसी भी प्रकार कि बुरी घटना घटित हो सकती है । तथा इस बुरे समय मे उन्हे कहीं से भी किसी भी प्रकार कि सहायता प्राप्त नही होगी । भाग्य साथ छोडकर दुर्भाग्य साथ पकड लेगा ।
अगर भकूट दोष ना हो तथा जीवन मे पति का खराब समय आ जाये तो पत्नी के ग्रह पति के बुरे समय मे उसकी रक्षा करते है , तथा किसी ना किसी प्रकार से समस्या का समाधान हो ही जाता है । आजकल ज्योतिष मे छोटी छोटी बातों पर ध्यान न देकर बहुत बडी गलती कर दी जाती है, जिसका परिणाम विवाह के बाद दम्पत्ति को भुगतना पडता है । कुछ घटनाये जीवन मे अवश्यंभावी होती है, उनका घटना 100% निश्चित होता है, अतः उसी के अनुसार मनुष्य कि बुद्धि हो जाती है ।
[विवाह में ७ फेरे

यह भांवर(७फेरे)केवल भ्रममात्र हैं।सार्वजनिक रुप से ४ फेरे ही होने चाहिए -आज कल विवाह में कहीं तो 7 फेरों का प्रचलन है, तो कहीं 4 का , इस विषय पर बहुत विवाद सुनने में आ रहा है। राजस्थान, गुजरात और मिथिला आदि प्रान्तों में कई स्थानों में 4 फेरों की परम्परा है और उत्तर प्रदेश आदि कुछ प्रान्तों के कतिपय स्थलों में 7 फेरों की परम्परा। ।

यहाँ सप्रमाण यह तथ्य प्रस्तुत हैं, कि “फेरे कितने होने चाहिए ।

यहाँ एक बात ध्यान में अवश्य रखनी है कि सभी बातें शास्त्रों में ही उपलब्ध नहीं होती हैं । जैसे — वर वधू का मंगलसूत्र पहनाना,गले में माला धारण करवाना, वर वधू के वस्त्रों में ग्रन्थि लगाना ( गांठ बांधना ),वर के हृदय पर दही आदि का लेपन, ऐसे बहुत से कार्य हैं जो गृह्यसूत्रों में उपलब्ध नही हैं ।

इन सब कार्यों में कौन प्रमाण है ?

इसका उत्तर है –”अपने अपने कुल की वृद्ध महिलायें ;क्योंकि वे अपने पूर्वजों से किये गये सदाचारों
का स्मरण रखती हैं । इसलिए विवाहादि कार्यों में इनकी बात मानने का विधान शास्त्रों ने किया है ।शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन और काण्व शाखा इन दोनों का प्रतिनिधित्व करता है-महर्षि पारस्कर प्रणीत ” पारस्करगृह्यसूत्र”
महर्षि कहते हैं”ग्रामवचनं च कुर्युः”- ॥ 11 ॥

“विवाहश्मशानयोर्ग्रामं प्राविशतादिति वचनात् ‘ ॥ 12 ॥

“तस्मात्तयोर्ग्रामः प्रमाणमिति श्रुतेः ॥ 13 ॥

प्रथमकाण्ड, अष्टम कण्डिका । यहां 11वें सूत्र का अर्थ “हरिहरभाष्य”में किया गया है कि
“विवाह और श्मशान सम्बन्धी कार्यों में(ग्रामवचनं= स्वकुलवृद्धानां स्त्रीणां वाक्यं कुर्युः)अपने कुल की वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्य करना चाहिए ।

“गदाधरभाष्यकार”भी यही अर्थ किये हैं । इनमें कुछ बातें जैसे “मंगलसूत्र आदि” इनका उल्लेख
इसी भाष्य के आधार पर मैने किया है! सूत्र 11में ‘च’ शब्द आया है।उससे “देशाचार,कुलाचार और जात्याचार”का ग्रहण है ।
“चकारोऽनुक्तसमुच्चयार्थकः –च शब्द जो बातें नहीं कहीं गयी हैं -उनका संकेतक माना जाता है ।

अत एव ” च शब्दाद्देशाचारोऽपि ” –ऐसा भाष्य श्रीगदाधर जी ने लिखा । यहां ” अपि ” शब्द कैमुत्यन्याय से कुलाचार और जात्याचार का बोधक है ;क्योंकि विवाहादि कार्यों में जाति और कुल के अनुसार भी आचार में भिन्नता कहीं कहीं देखने को मिलती है ।

ग्रामवचन का अर्थ “भर्तृयज्ञ ” जो कात्यायन श्रौतसूत्र के व्याख्याता हैं उन्होने लोकवचन किया है –
ऐसा गदाधर जी ने अपने भाष्य में संकेत किया है । इसे लोकमत या शिष्टाचार — सदाचार कहते हैं । यह भी हमारे यहां प्रमाणरूप से अंगीकृत है । पूर्वमीमांसा में सर्वप्रथम प्रमाणों की ही विशद चर्चा हुई है । इसलिए उस अध्याय का नाम ही “प्रमाणाध्याय “रख दिया गया है । इसमें शिष्टाचार को प्रमाण माना गया है। शिष्ट का लक्षण वहां निरूपित है ।

” वेदः स्मृतिः सदाचारः ” –मनुस्मृति,2/12, तथा “श्रुतिःस्मृतिः सदाचारः“ –याज्ञवल्क्य स्मृति-आचाराध्याय,7, इन दोनों में सदाचार को धर्म में प्रमाण माना है । किन्तु धर्म में परम प्रमाण भगवान् वेद ही हैं । उनसे विरुद्ध समृति या सदाचार प्रमाण नही हैं । पूर्वमीमांसा में वेदैकप्रमाणगम्य धर्म को बतलाया गया –जैमिनिसूत्र-1/1/2/2,
पुनः ” स्मृत्यधिकरण “-1/3/1/2, से वेदमूलक स्मृतियों को धर्म में प्रमाण माना गया ।

यदि कोई स्मृति वेद से विरुद्ध है तो वह धर्म में प्रमाण नही हो सकती –यह सिद्धान्त “विरोधाधिकरण” 1/3//2/3-4,से स्थापित किया गया । इसी अधिकरण में सदाचार की प्रामाणिकता को लेकर यह निश्चित किया गया कि सदाचार स्मृति से विरुद्ध होने पर प्रमाण नही है ।

जैसे दक्षिण भारत में मामा की लड़की के साथ भांजे का विवाह आदि ;क्योंकि यह सदाचार
“मातुलस्य सुतामूढ्वा मातृगोत्रां तथैव च । समानप्रवरां चैव त्यक्त्वा चान्द्रायणं चरेत् ॥
इस शातातप स्मृति से विरुद्ध है ।

भागवत के 10/61/23-25 श्लोकों द्वारा इस विवाहरूपी कार्य को अधर्म बतलाया गया है ॥
तात्पर्य यह कि सदाचार से उसकी ज्ञापक स्मृति का अनुमान किया जाता है और उस स्मृति से तद्बोधक श्रुति का अनुमान । जब आचार की विरोधिनी स्मृति बैठी है तो उससे वह बाधित हो जायेगा ।
इसी प्रकार स्मृति भी स्वतः धर्म में प्रमाण नही है अपितु वेदमूलकत्वेन ही प्रमाण है ।

स्मृति से श्रुति का अनुमान किया जाता है । जब स्मृति विरोधिनी श्रुति प्रत्यक्ष उपलब्ध है तो उससे स्मृति बाधित हो जायेगी –
“विरोधे त्वनुपेक्षं स्यादसति ह्यनुमानम् “पूर्वमीमांसा,1/3/2/3,
सदाचार से स्मृति और स्मृति से श्रुति का अनुमान होता है । इन तीनों में श्रुति से स्मृति और स्मृति से सदाचार रूपी प्रमाण दुर्बल है ।

निष्कर्ष यह कि स्मृति या वेदविरुद्ध आचार प्रमाण नही है ।

अब हम यह देखेंगे कि विवाह में जो फेरे पड़ते हैं 4 या 7,
इनमें किसको स्मृति या वेद का समर्थन प्राप्त है और कौन इनसे विरुद्ध है ?यहां यह बात ध्यान में रखनी है कि स्मृति का अर्थ केवल मनु या याज्ञवल्क्य आदि महर्षियों
से प्रणीत स्मृतियां ही नहीं अपितु सम्पूर्ण धर्मशास्त्र है”श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्रं तु वै स्मृतिः” 2/10, धर्मशास्त्र के अन्तर्गत स्मृतियां ,पुराण,इतिहास,कल्पसूत्र आदि आते हैं!

यह मीमांसकों का सिद्धान्त है –स्मृत्यधिकरण,1/3/1/1-2,
इसी से 4 या 7 फेरों का निश्चय हो जायेगा । विवाह में 4 कर्म ऐसे हैं जिनसे फेरों का सम्बन्ध है । अर्थात् उन चारों का क्रमशः सम्पादन करने के बाद फेरे( परिक्रमा या भांवर ) का क्रम आता है । वे निम्नलिखित हैं !1-लाजा होम— इसमें कन्या को उसका भाई शमी के पल्लवों से मिश्रित धान के लावों को अपनी अञ्जलि से कन्या के अञ्जलि में डालता है । कन्या उस समय खड़ी रहती है । यदि कन्या के भाई न हो तो यह कार्य उसके चाचा ,मामा का लड़का ,मौसी का पुत्र या फुआ
( बुआ -फूफू अर्थात् पिता की बहन ) का पुत्र आदि भी कर सकते हैं– यह तथ्य श्रीगदाधर जी ने बहवृचकारिका को उद्धृत करके अपने भाष्य में दर्शाया है ।

पारस्करगृह्यसूत्र के प्रथम काण्ड की छठी कण्डिका में “कुमार्या भ्राता “1 में इसका कथन है ।

कन्या के अञ्जलि में लावा है । वर भी खड़ा होकर उसके दोनों हाथों से अपने हाथ लगाये रहता है
और कन्या खड़ी होकर ही उन लावों को मिली हुइ अञ्जलि से होम करती है –अर्यमणं देवं –
इत्यादि मन्त्रों से ।

ये तीनों मन्त्र बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । अतः इनका अर्थ प्रस्तुत किया जा रहा है – 1-अर्यमणं देवं– सूर्य देव, जो ,अग्निं –अग्निस्वरूप हैं ,उनकी वरप्राप्ति के लिए, अयक्षत –पूजा की है,स–वे,अर्यमा देवः–भगवान् सूर्य, नो–हमें,इतः–इस पितृकुल से , प्रमुञ्चतु –छुड़ायें, किन्तु ,
पत्युः –पति से ,मा –न छुड़ायें , स्वाहा — इतना बोलकर कन्या होम करती है । आज इस पद्धति का विधिवत् आचरण न करने का परिणाम इतना भयंकर दिख रहा है कि पति या तो पत्नी को छोड़ देता है अथवा पत्नी पति को ।

2-मन्त्र –” आयुष्मानस्तु मे पतिरेधन्तां ज्ञातयो मम स्वाहा।
अर्थ– मे पतिः –मेरे पति, आयुष्मानस्तु –दीर्घायु हों,और मम– मेरे ,ज्ञातयो– बन्धु बान्धव,
एधन्तां –बढ़ें ,स्वाहा बोलकर पुनः होम । विवाह में इस मन्त्र के छूट जाने का पहला परिणाम “पति असमय ही किसी भी कारण से अकालमृत्यु को प्राप्त होता है।या मृत्यु जैसे कष्टकारी रोगों से आक्रान्त हो जाता है । और पत्नी के पतिगृह पहुंचने के कुछ समय बाद ही बंटवारे की नौबत भी आ जाती है।जो आजकल का
तथाकथित सभ्य समाज भुगत रहा है ।

3 मन्त्र-“इमाँल्लाजानावपाम्यग्नौ समृद्धिकरणं तव ।मम तुभ्य च संवननं तदग्निरनुमन्यतामियं स्वाहा। हे स्वामिन् ! , तव –तुम्हारी , समृद्धिकरणं –समृद्धि करने के लिए, इमाँल्लाजान् –इन लावों को , अग्नौ –अग्नि में , आवपामि –मैं डाल रही हूं । मम तुभ्य च — हमारा और तुम्हारा , जो, संवननं – पारस्परिक प्रेम है , तत् –उसका , ये, अग्निः–अग्नि देव, अनुमन्यन्ताम्—अनुमोदन करें अर्थात् सदृढ करें , और, इयं –अग्नि की पत्नी स्वाहा भी , स्वाहा –बोलकर पुनः होम ।

इस मन्त्र से होम किया जाता है कि दाम्पत्य जीवन सदा प्रेम से संसिक्त रहे । पर आज जो पण्डित आधे घण्टे में विवाह करा दे उसे कई शहरों में बहुत अच्छा मानते हैं ।

इस मन्त्र से होम न करने का परिणाम है –दाम्पत्य जीवन का कलहमय होना । अतः विवाहोपरान्त भविष्य में आने वाले इन सभी संकटों को रोकने के लिए हमारे ऋषियों ने हमें जो कुछ दिया । उसकी अवहेलना का परिणाम आज घर घर में किसी न किसी रूप में दिख रहा है ।

अतः वेदों के इन पद्धतियों की वैज्ञानिकता और आदर्श समाज की रचना के इन अद्भुत प्रयोगों हमें पुनः अपनाना होगा ।

2-सांगुष्ठग्रहण–यह कर्म लाजा होम के बाद वर द्वारा किया जाता है । वह वधू का दांया हाथ अंगूठे सहित पकड़ता है । और”गृभ्णामि से शरदः शतम् “तक मन्त्र पढ़ता है। इस मन्त्र से वर वधू में देवत्व का आधान होता है । तथा बहुत से पुत्रों के प्राप्ति की प्रार्थना की गयी है । पुत्र वही है जो पुत् नामक नरक से तार दे -पुत् नामकात् नरकात् त्रायते इति पुत्रः ।

इस मन्त्र के छूटने का परिणाम यह है कि आज कल लड़के अपने माता पिता का जीवन नरकमय बना रहे है । तारना तो दूर की बात है ।

3-अश्मारोहण–अग्निकुण्ड के उत्तर की ओर रखे हुए “पत्थर”
( लोढ़ा आदि) के समीप जाकर
वर वधू के दायें पैर को पकड़कर उस पर रखता है। श्रीगदाधर ने अपने भाष्य मे सप्रमाण इसका उल्लेख किया है । और मिथिला मे यह आज भी वर
द्वारा किया जाता है |

इस समय वर स्वयं मन्त्र पढ़ता है–”आरोहे से लेकर पृतनायत ” तक । इस मन्त्रका अर्थ है कि कन्ये !तुम इस पत्थर पर आरूढ होकर इस प्रस्तर की भांति दृढ़ हो जाओ । और कलह चाहने वालों को दबाकर स्थिर रहो । और उन शत्रुओं को दूर हटा दो।यह कर्म कन्या द्वारा आज भी U.P आदि में देखा जाता है । कन्या उस लोढ़े को पैर के अंगूठे से प्रहार करके फेंक देती है।यह कर्म अद्भुत भाव से ओतप्रोत है । यह कन्या को हर विषम परिस्थितियों में अविचल भाव देने के साथ ही शत्रुदमन की अदम्य ऊर्जा भी प्रदान करता है ।
4-गाथागान-इसमें एक मन्त्र का गान वर करता है जिसमें नारी के उदात्त व्यक्तित्व की सुन्दर झलक है ।

5- परिक्रमा या फेरे — अब वर वधू अग्नि की परिक्रमा करते हैं । इस समय वर-“तुभ्यमग्रे से लेकर प्रजया सह ” तक 1 मन्त्र बोलता है ।

1परिक्रमा (फेरा ) अब पूर्ण हुई |

इसी प्रकार पुनः पूर्ववत् लाजाहोम, सांगुष्ठग्रहण,अश्मारोहण, गाथागान और 1 परिक्रमा करनी है।तत्पश्चात् पुनः वही लाजाहोम से लेकर 1 परिक्रमा तक पूर्वकी भांति सभी कर्म करना है । इसका संकेत प्रथम काण्ड की सप्तमी कण्डिका में शुक्लयजुर्वेद के सूत्रकार महर्षि पारस्कर अपने गृह्यसूत्रमें करते हैं “एवं द्विरपरं लाजादि ” इसका अर्थ ” हरिहरभाष्य और गदा धरभाष्य ” दोनो में यही किया गया कि
“कुमार्या भ्राता”जहां से लाजाहोम आरम्भ है वहां से परिक्रमा पर्यन्त कर्म होता है । अब यहां हमारे समक्ष लाजा होम से लेकर परिक्रमा पर्यन्त सभी कर्मों का ३ बार अनुष्ठान सम्पन्न हुआ ।

जिनमें 9 बार लावों की आहुति पड़ी ;क्योंकि १ -१ लाजाहोम में ३ –३ बार कन्या ने पूर्वोक्त मन्त्रों से आहुति दिया है।3 बार सांगुष्ठग्रहण,3 बार अश्मारोहण,3 बार गाथागान और 3परिक्रमा (फेरे ) सम्पन्न हो चुकी है।अब चौथी बार केवल लाजा होम और परिक्रमा ही करनी है।

पर इस चौथे क्रम में पहले से कुछ भिन्नता है!महर्षि पारस्कर स्वयं सूत्र द्वारा दिखाते हैं-“चतुर्थं शूर्पकुष्ठयासर्वाँल्लाजानावपति” भगाय स्वाहेति -पारस्करगृह्यसूत्र, प्रथमकाण्ड,सप्तमीकण्डिका।

5,कन्या का भाई शूर्प में जो भी लावा बचा है वह सब सूप के कोने वाले भाग से कन्या के अञ्जलि में दे दे और कन्या सम्पूर्ण लावों को ” भगाय स्वाहा “बोलकर अग्नि में होम कर दे । इसके बाद मौन होकर वर और वधु अग्नि की परिक्रमा करते हैं –इसमें “सदाचार “ही प्रमाण है।

देखें हरिहरभाष्यकार लिखते है –”ततः समाचारात्तूष्णीं चतुर्थं परिक्रमणं वधूवरौ कुरुतः” इसे सर्वसम्मत पक्ष बतलाते हुए गदाधर भाष्य में “वासुदेव,गंगाधर,
हरिहर और रेणु दीक्षित जैसे
भाष्यकारों के नाम का उल्लेख श्रद्धापूर्वक किया गया है। –प्रथम काण्ड ,सप्तमी कण्डिका,६ इस प्रकार शुक्लयजुर्वेद के महर्षि पारस्कररचित ” पारस्करगृह्यसूत्र” के अनुसार विवाह में 4 फेरे
(परिक्रमा )ही प्रमाणसिद्ध है ।

7 फेरे केवल भ्रममात्र हैं । वाराणसी से छपी पण्डितप्रवर श्रीवायुनन्दन मिश्र जी की विवाहपद्धति तथा राजस्थान के महापण्डित चतुर्थीलाल जी की पुस्तक में भी 4 फेरों का ही उल्लेख है । और 4 फेरे कई प्रान्तों मे पहले बताये भी जा चुके हैं । अतः यही मान्य और शास्त्रसम्मत है । यदि कोई कहे कि 7 फेरों का सदाचार हमारी परम्परा में चला आ रहा है और सदाचार का प्रामाण्य सभी ने स्वीकार किया है ।
अतः यह ठीक है । तो मैं उस व्यक्ति से यही कहूंगा कि सदाचार तभी तक प्रमाण है जब तक उसके विरुद्ध कोई स्मृति या श्रुति न हो ।
पर यहां तो साक्षात् 4 फेरों की सिद्धि शुक्लयजुर्वेद के “पारस्करगृह्यसूत्र”से ही हो रही है ।

अतः इसके विपरीत 7 फेरों वाला सदाचार प्रमाण नही है ।
[: विवाह के प्रकार
🔸🔸🔹🔸🔸
१👉 ब्रह्म विवाह
दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोज्ञ वर से कन्या का विवाह निश्चित कर देना ‘ब्रह्म विवाह’ कहलाता है। सामान्यतः इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है। आज का “व्यवस्था विवाह” ‘ब्रह्म विवाह’ का ही रूप है।

२👉 दैव विवाह
किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना ‘दैव विवाह’ कहलाता है।

३👉 आर्श विवाह
कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना ‘अर्श विवाह’ कहलाता है।

४👉 प्रजापत्य विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना ‘प्रजापत्य विवाह’ कहलाता है।

५👉 गंधर्व विवाह
परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना ‘गंधर्व विवाह’ कहलाता है। दुष्यंत ने शकुन्तला से ‘गंधर्व विवाह’ किया था। उनके पुत्र भरत के नाम से ही हमारे देश का नाम “भारतवर्ष” बना।

६👉 असुर विवाह
कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना ‘असुर विवाह’ कहलाता है।

७👉 राक्षस विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना ‘राक्षस विवाह’ कहलाता है।

८👉 पैशाच विवाह
कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना ‘पैशाच विवाह’ कहलाता है।
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जय श्री राम
[#शादीकेलिएगुणमिलनाहीकाफी_नही जब भी जातक-जातिका की जन्मकुंडली शादी के लिए मिलायी जाती है तब उसमे सिर्फ गुण मिलान कर दिया जाता है यदि गुण 18 से ऊपर मिल जाते है तब शादी के लिए मंजूरी दे दी जाती है लेकिन केवल गुण मिलना ही काफी नही गुणों के साथ-साथ कुंडली में सप्तम भाव, सप्तम भाव के स्वामी साथ ही विवाह कारक शुक्र गुरु की स्थिति भी देखी जाती है।ज्यादातर हो यह रहा या तो जातक/जातिका कुंडली सॉफ्टवेयर से खुद गुण मिला लेते है या किसी ज्योतिष पंडित या ज्योतिष के जानकर से कुंडली मिलवाते समय केवल यह पूछते गुण कितने मिल रहे है? गुण चाहे 18 या 18 से ऊपर भी मिल जाये मिल जाए लेकिन जब तक कुंडली में सप्तम भाव, सप्तम भाव के स्वामी और विवाह कारक लड़के की कुंडली में शुक्र, लड़की कुंडली में गुरु की स्थिति अच्छी नही होगी तो शादी ठीक नही चल सकती चाहे गुण पुरे मिले हो।यदि सप्तम भाव, सप्तमेश और गुरु/शुक्र की स्थिति शुभ है यह भाव भावेश पाप ग्रहो से पीड़ित नही है तब और विवाह संबंधी भाव भावेश और ग्रहो की स्थिति ठीक है तब विवाह सही चलता है यदि ऐसी स्थिति में गुण भी अच्छे से मिल जाए मतलब ज्यादा संख्या में मिले जैसे 25, 30 आदि तब और भी शुभ स्थिति और अच्छा वैवाहिक जीवन रहे इसके लिए होती है।लेकिन यदि सप्तमेश सप्तम भाव और शुक्र/ गुरु की स्थिति ख़राब है यह भाव भावेश और ग्रह अशुभ भावो में हो, पीड़ित हो, अस्त होकर कमजोर हो तब गुण मिल जाने पर भी वैवाहिक जीवन अच्छा नही रहता दिक्कते होती है।इसी कारण कुंडली शादी के लिए जब भी मिलान की जाए तब उसमे गुणों के साथ-साथ जैसे #राशि, #भकूट, #वर्ण, #गण, #नक्षत्र, #नाड़ी, #राशि स्वामी, इन गुणों के मिलान के साथ सप्तम भाव, सप्तमेश, शुक्र(लड़के की कुंडली)/गुरु(लड़की की कुंडली) इनकी शुभ-अशुभ स्थिति भी देखी जाती है यदि गुण मिलान के साथ भाव भावेश और कारक ग्रहो की स्थिति ठीक है तब वैवाहिक जीवन अच्छा रहता है।एक खुशहाल और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कुंडली में चोथे भाव(गृहस्थी है), दूसरा भाव(परिवार और धन है)और बारहवा भाव(शैय्या सुख है यदि शैय्या सुख में बाधाए हो तब भी वैवाहिक जीवन में तनाब रह सकता है) अच्छा होना पूरी तरह वैवाहिक जीवन को सुखी और अच्छा बनाएगा साथ ही शादी के बाद संतान सुख की इच्छा हर पति-पत्नी को होती है जिसके लिए पंचम भाव/ भावेश की स्थिति भी बढ़िया हो तब संतान सुख अच्छा होने से वैवाहिक जीवन खुशहाल बनता है क्योंकि यदि संतान सुख या संतान होने में दिक्कते हो तब पति-पत्नी संतान न होने आदि के कारण भी चिंता में रहते है या यह कहु मानसिक रूप से दुःखी रहते है जो कही न कही वैवाहिक जीवन में भी तनाब बनेगा ही।इस तरह कुंडली मिलान में गुणों के साथ-साथ विवाह संबंधी ग्रहो और विवाह सुख संबंधी भाव/ भावेशों की स्थिति अच्छा होना और इन सभी ग्रह योगो का दोनों कुंडलियो में अच्छा मिलान होना एक अच्छा और संपन्न वैवाहिक जीवन मिलता है।।
[: 😳स्ट्रेच के पोइन्ट😳

   स्ट्रेस दूर करने के लिए 

हम सभी जानते हैं कि स्ट्रेस हमारे शरीर के साथ-साथ हमारे मन पर भी घहरा असर डालता है | ये बीमारी आजकल आम हो गई है जो हर किसी में पाई जाने लगी है

😳😖😳
इससे बचना नामुमकिन सा होने लगा है यदि आप भी स्ट्रेस का शिकार हैं तो इस सुजोक उपचार को ज़रूर ट्रायकरें |
डो उस दर्दी को नींद की
दवा दे दे के पूरे शरीर का
सन्तुलन बिगाड़ देते है
ये सूजोक पोइन्ट से दर्द
एक दम नॉर्मल हो जाता है
ये जरूर अपनाये ओर
दूसरे का भी भला करे ये
पुस्तको आगे सेर करे
👇👇पोइन्ट करे 👇 दिनमे 3 बार अपनी उंगली से प्रेस करे 1 मिनिट 2 नो
पंजो में
👇👇👇👇👇👇👇सुजोक & पथरी
👁👁
👉
पथरी या किडनी स्टोन होना आम बात हो गई है पथरी होने का सबसे बड़ा कारण हो सकता है किडनी और मूत्राशय में में यूरिक एसिड, फास्फोरस ,कैल्शियम और ओक्सालिक एसिड का मिलना
👉जिनके मूत्र में कैल्शियम आता हैं उनकी पथरी अधिक बनती है
👉लक्षण* – इस रोग में पेशाब करते समय दर्द होता है। पेशाब रुक-रुक कर आता है। मूत्र के साथ अलब्यूमिन या कभी-कभी खून भी आता है। लिंग के अगले हिस्से में दर्द हाता है। पथरी जब गुर्दे से मूत्राशय में उतर आती है तब बहुत ही तड़पने वाला दर्द होता है। दर्द के कारण रोगी का जी मिचलाना उल्टी आदि होती है। पेशाब करते समय और पेशाब के बाद लिंग मुण्ड में दर्द, जलन होने के साथ बार-बार थोड़ा-थोड़ा सा पेशाब आता है।. उपाय*

  • अंगूर के ताजे पत्ते को आधे नींबू के रस में खरल करके मरीज को खिलाने से पथरी में फायदा होता है।
  • तीन ग्राम अजमोद, पानी से प्रतिदिन लेकर मूली का रस पीने से पथरी रोग में फायदा होता है।
  • फिटकरी का फूला तीन ग्राम को, दो सौ पचास मि.लि. छाछ में डालकर प्रतिदिन दो बार पीने से पथरी रोग में फायदा होता हैं।
    👇🏼आपको पोइन्ट से जल्द
    फायदा होगा
    दिनमे 3 बार प्रेस करे
    1 मिनीट 2 नो पँजे में
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    [ बार-बार यूरिन आने की प्रॉब्लम दूर करेंगे ये 8 घरेलू नुस्खे

कई लोगों को बार-बार यूरिन आने की प्रॉब्लम होती है और इसके कारण उन्हें परेशानी भी उठानी पड़ती है. सांची बौद्ध और भारतीय ज्ञान विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अखिलेश सिंहका कहना है कि ज्यादा यूरिन आने की प्रॉब्लम के पीछे कई कारण हो सकते हैं और इसे इग्नोर नहीं करना चाहिए. कई बार कुछ सीरियस बीमारियों के कारण भी यूरिन प्रॉब्लम हो सकती है.

क्या है बार-बार यूरिन आने की वजह?

ओवरएक्टिव ब्लैडर होने की वजह से बार-बार यूरिन आने की प्रॉब्लम हो सकती है,  ब्लैडर का साइज छोटा होने की वजह से बार-बार यूरिन आने की प्रॉब्लम हो सकती है,  ठंडे मौसम के कारण ब्लैडर सिकुड़ता है और बार-बार यूरिन आने की प्रॉब्लम हो सकती है,  ज्यादा पानी पीने के कारण ब्लैडर फूल जाता है और बार-बार यूरिन आने की प्रॉब्लम हो सकती है,  डायबिटीज और किडनी की बीमारी के कारण बार-बार यूरिन आने की प्रॉब्लम हो सकती है, यूरिनरी ट्रैक्ट में इन्फेक्शन के कारण बार-बार यूरिन आने की प्रॉब्लम हो सकती है,  प्रोस्टेट ग्लैंड बढ़ा होने के कारण बार-बार यूरिन आने की प्रॉब्लम हो सकती है, क्या है बार-बार यूरिन आने की प्रॉब्लम का इलाज?

यूरिन प्रॉब्लम होने पर डॉक्टर को जरूर दिखाएं और उसकी सलाह से ही ट्रीटमेंट लें. हालांकि साधारण वजहों से यूरिन प्रॉब्लम होने पर कुछ घरेलू उपाय आजमाने से फायदा मिल सकता है.

भुने हुए चने – रोज मुठी भर चने थोड़े से गुड के साथ खाएं. इसमें मौजूद कैल्शियम, आयरन, पोलिफिनोक्स और एंटी ऑक्सीडेंटस बार-बार यूरिन आने की प्रॉब्लम दूर करने में हेल्पफुल हैं.

अनार के छिलके – अनार के छिलके का पेस्ट बना लें. चुटकी भर पेस्ट दिन में दो बार शहद के साथ लें. इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंटस और विटामिन्स ब्लैडर को ठंडा रखते हैं और यूरिन प्रॉब्लम में रहत दिलाते है.

तिल और गुड – रोज थोड़े से तिल एक गुड की डली के साथ खाएं. इसमें मौजूद विटामिन्स, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंटस बार-बार यूरिन आने की प्रॉब्लम से राहत दिलाते है.

अजवाइन – काली तिल और अजवाइन को पीसकर थोडा सा गुड मिलाकर लड्डू बना लें. रोज इसे खाएं. बार-बार यूरिन आने की प्रॉब्लम दूर करने के लिए ये काफी इफेक्टिव है.

मैथी दाना – थोड़े से मैथी दाने पानी में भिगोकर रोज खाएं. इसकी डाइयुरेटिक क्वालिटी यूरिन प्रॉब्लम को दूर करने में हेल्पफुल है.

सौंठ – थोड़ी से सौंठ, अजवाइन और मैथी दाने को पीस लें, इसको दिन में दो बार शहद के साथ लें. ये कॉम्बिनेशन यूरिन रिलेटेड प्रॉब्लम दूर करने में काफी फायदेमंद है.

नारियल पानी – नारियल पानी और पालक का जूस मिलाकर पीयें. इसमें मौजूद एलेक्ट्रलाइटस और न्यूट्रीयंट्स बॉडी में फ्लूइड बैलेंस करते है. यूरिन प्रॉब्लम दूर होती है.

पालक – डिनर में उबलती हुई पालक खाएं. इसमें मौजूद आयरन, कैल्शियम जैसे न्यूट्रीयंट्स यूरिन प्रॉब्लम दूर करने में हेल्पफुल हैं.
: गठिया का कारण लक्षण और इलाज |
गठिया के कारण :

रक्त में यूरिक एसिड नामक पदार्थ पैदा होकर गाँठों में जमा हो जाता है और | फिर यही दर्द का मूल कारण बन जाता है।

गठिया के लक्षण :

प्राय: यह रोग अधिक उम्र वालों को होता है। शरीर के जोड़ों में दर्द का होना, | सूजन आ जाना तथा बुखार व बेचैनी बने रहना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं।

गठिया का देसी आयुर्वेदिक इलाज :
1-  सरसों के तेल में सेंधा नमक मिलाकर गठिया के दर्द वाले स्थान पर मालिश करने से लाभ होता है। 

2- पीपल के छाल के काढ़े में शहद मिलाकर पीने से गठिया रोग में आराम मिलता है।

3 – बरगद के मोटे पत्तों को चिकनी तरफ गरम किया हुआ तिल का तेल चुपड़कर गरम-गरम ही गठिया वाले स्थान पर बांध दें। दो चार माह नियमित करने से गठिया रोग जाता रहेगा।

4- कपूर 100 ग्राम, तिल का तेल 400 ग्राम-दोनों को शीशी में भरकर दृढ़ कार्क लगाकर धूप में रख दें। जब दोनों वस्तुएं मिल जायें तो गठिया दर्द के स्थान पर मालिश करें।

5- गर्म पानी में दस ग्राम शहद घोल लें। इसमें पांच बूंदें कागजी नींबू की मिलाकर पी लें। गठिया वाले रोगी को शहद का भरपूर सेवन करना चाहिए

6- आधा किलो बथुए का रस 20 ग्राम की मात्रा में रोगी को पिलाते रहें। थोड़ी देर बाद दो बड़े-बड़े लाल टमाटर काटकर सेंधा नमक और कालीमिर्च बुरककर खिलायें । बथुए का रस निकालने के बाद बथुए को आटे में गूंध कर रोटी बनाकर रोगी को खिलायें।

7- सोंठ और गिलोय को बराबर भाग लेकर मोटा-मोटा सा कूट लें और दो कप पानी में डालकर उबाल लें, जब आधा कप पानी बचे तब उतारकर ठण्डा कर लें और इस पानी को छानकर पी लें। यह प्रयोग लाभ न होने तक प्रतिदिन भोजन के घण्टे भर बाद सेवन करें। यह आमवात नामक व्याधि दूर करने के लिये सर्वोत्तम है।

8- हींग को घी में मिलाकर मालिश करें तो दर्द दूर होता है। हाथ, पैर और जोड़ों के दर्द में इसकी मालिश से आराम मिलता है। यह तेल स्नायुओं को मजबूत एवं शक्ति शाली बनाता है।

9- लहसुन का रस आधी चम्मच और एक चम्मच शुद्ध घी मिलाकर कुछ दिन तक लगातार प्रात:काल पीना चाहिए, इससे आमवात नष्ट होता है।

8 – गिलोय को सोंठ चूर्ण के साथ लेने से आमवात मिटता है। 

9- वायु रोगों पर आमवात, कटिशूल, पार्श्वशूल में हरी मिर्च का स्थानीय लेप करने से आराम मिलता है।

10- अश्वगंधा चूर्ण दो भाग, सोंठ एक भाग तथा मिश्री तीन भाग अनुपात में मिलाकर सुबह-सायं भोजनोपरांत गर्म जल से सेवन करें। यह अनुप्रयोग आमवात, संधिवात, विवन्ध, गैस तथा उदर के अन्यान्य विकारों में लाभप्रद पाया गया है।

11 – गूलर के पत्तों का रस पीने से वातविकार, हदयविकार, यकृत दोष आदि नष्ट होते हैं।

12 – पत्तागोभी, चुकन्दर और फूलगोभी के सेवन से जोड़ों का दर्द दूर होता है

13- वात तथा कफ मिश्रित गठिया में 25-25 ग्राम सौंठ, कालीमिर्च, पीपल, लहसुन सफेद जीरा व तीनों नमक, पाँच ग्राम हींग, घी में भूनकर पिसे चूर्ण का तीन चार ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार अदरक रस शहद के साथ चाटने से लाभ होगा।

14- 25 ग्राम सौंठ, सौ ग्राम हरड़ और 15 ग्राम अजमोद, 10 ग्राम सेंधा नमक के साथ चूर्ण के रूप में तीन ग्राम सुबह-शाम गर्म पानी के साथ सेवन करने से गठिया रोग दूर हो जाता है।

15- गठिया या वात रोगों में अडूसा के पत्तों को गर्म करके सेंकना सूजन और दर्द में गुणकारी होता है।

17 – लहसुन के रस में कपूर मिलाकर मालिश करने से गठिया तथा वात रोग ठीक हो जाता है।

निरोगी रहने हेतु महामन्त्र

मन्त्र 1 :-
• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें
• ‎रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें
• ‎विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)
• ‎वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)
• ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)
• ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें
• ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

मन्त्र 2 :-
• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)
• ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)
• ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये
• ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें
• ‎पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये
• ‎बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूणतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें

आयुर्वेद में आरोग्य जीवन हेतु 7000 सूत्र हैं आप सब सिर्फ इन सूत्रों का पालन कर 7 से 10 दिन में हुए बदलाव को महसूस कर अपने अनुभव को अपने जानकारों तक पहुचाये
स्वस्थ व समृद्ध भारत निर्माण हेतु
[7/15, 02:27] Op Singh Rajeev Dekshit: चेहरे से तील हटाने टिप्स

अगर आप के चेहरे पर उम्र के साथ साथ कई तिल उभर आए हैं तो उन्‍हें साफ करने का घरेलू उपचार भी मौजूद है।

फूलगोभी
घर में इसका रस तैयार करें और रोज तिल वाली जगह पर लगाएं। इससे कुछ ही दिनों में पुरानी त्‍वचा धीरे धीरे साफ होने लगेगी और तिल गायब हो जाएगा।

धनिया
धनिया की पत्‍ती का पेस्‍ट बना कर उसे अपने तिल पर लगाए। इसमें आपको थोड़ा समय लगेगा पर यह आप के तिल को हमेशा के लिए मिटा देगा।

लहसुन
लहसुन के पेस्‍ट को रोज रात में सोने से पहले तिल पर लगाएं और पेस्‍ट लगाने के बाद उस स्‍थान पर बैंडेज लगा कर छोड दें। सुबह उस त्‍वचा को हल्‍के गरम पानी से धो लें। कुछ दिनों तक इस प्रक्रिया को कुछ दिन दोहराने से चेहरे के तिल निकल जाते हैं।

अरेंड़ी का तेल
घर पर अरेंड़ी के तेल से मसाज करने पर भी तिल को मिटाने में काफी राहत मिलती है। इससे तिल धीरे धीरे पर हमेशा के लिए गायब हो जाता है।

अनानास
अनानास के छोटे टुकड़े को काट कर अपने तिल पर रखें और उस पर बैंडडेज लगा लें। कुछ घंटे के बाद इसे निकाल लें। या फिर ½ कप अनानास का रस और 1/4 कप सेंधा नमक मिक्‍स कर के चेहरे को स्‍क्रब करें। इससे धीरे धीरे कर के तिल की त्‍वचा साफ हो जाएगी और तिल हल्‍का पड़ जाएगा।

शहद और सन बीज
थोडा सा शहद और सन बीज के तेल को मिलाए और रोज 5 मिनट के लिए तिल पर लगा कर रगड़े। इससे ना सिर्फ त्‍वचा चमक उठेगी बल्कि तिल भी खायब हो जाएगा।

बेकिंग सोडा और रेंड़ी का तेल
थोड़ा सा बेकिंग सोडा और कुछ बूंद रेंड़ी का तेल मिक्‍स कर के तिल पर लगाएं। रातभर ऐसे ही रखें और रोजाना ऐसा ही करें जब तक कि तिल गायब ना हो जाए।

प्‍याज का रस
कुछ बूंद प्‍याज के रस में कुछ बूंद सेब के सिरके की मिक्‍स करें और तिल पर लगाएं। इसे रात भर ऐसे ही रहने दें और कुछ महीनों तक तिल गायब होने तक करें।

विटामिन सी टैबलेट
आप चाहें तो विटामिन सी की एक गोली को पीस कर आपने तिल वाले भाग पर लगा सकती हैं। इसे लगाने के बाद उस जगह को बैंडेज से ढॅक लें। बेहतर होगा कि यह काम आप रात में ही करें।

मूली
मूली की एक पतली स्‍लाइस काट कर उसे तिल पर कुछ हफ्तों तक रखें। या फिर मूली घिस कर लगाएं। इसे दिन में 2-3 बार लगाएं।

केले का छिलका
केले के छिलके का एक छोटा भाग काट लें और उसके अंदर का भाग अपने तिल पर रखें। फिर इसे टेप या बैंडडेज से चिपका लें। रातभर ऐसे ही रखें और जब तक तिल गायब ना हो जाए तब तक यह विधि करें।

कच्चा आलू

चेहरे से तिल हटाने के लिए आप कच्चे आलू का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए आप एक आलू का स्लाइस लें और फिर इस स्लाइस को अपने चेहरे पर रगड़ें। ऐसा करने से आपको बहुत जल्दी फर्क दिखने लग जाएगा।

तिल हटाने के नुस्खे में करें चकोतरा के बीज का उपयोग

सामग्री

एक से दो बूँद चकोतरा बीज का जूस
बैंडेज।
विधि

अब इस जूस को तिल पर सीधा लगाएं और फिर इसे बैंड एड से ढक लें।
कुछ घंटे बाद बैंड एड को हटा दें।
चकोतरा के बीज का इस्तेमाल कब तक करें –

इस प्रक्रिया को पूरे दिन में दो से तीन बार दोहराएं।

चकोतरा के बीज के फायदे

चकोतरा के बीज के जूस में एस्ट्रिजेंट होते हैं और साथ ही इसमें एंटीऑक्सीडेंट भी होते हैं जैसे विटामिन ई। इसकी एस्ट्रिजेंट गुण तिल को अंत में गिरा देते हैं और एंटीऑक्सीडेंट गुण त्वचा का इलाज करते हैं।

इस बात का रखें ख्‍याल
इन नुस्‍खों के अलावा आप जितना हो सके धूप से बचें। हो सके तो सुबह 10 से 4 बजे तक बिल्‍कुल भी बाहर ना निकले क्‍योकि अल्‍ट्रावाइलेट किरणें आप की त्‍वचा पर और भी बुरा प्रभाव डाल सकती हैं

यह कुछ ऐसे घरेलु नुस्‍खे हैं जिनको आप बिना किसी महंगे खर्च के अपना सकती हैं और बेदाग त्‍वचा पा सकती हैं।
: दांतों का दर्द

अमरूद की कोमल पत्तियों को चबाने से दांतों की पीड़ा (दर्द) नष्ट हो जाती है।

अमरूद के पत्तों को दांतों से चबाने से आराम मिलेगा।
अमरूद के पत्तों को जल में उबाल लें। इसे जल में फिटकरी घोलकर कुल्ले करने से दांतों की पीड़ा (दर्द) नष्ट हो जाती है।
अमरूद के पत्तों को चबाने से दांतों की पीड़ा दूर होती है। मसूढ़ों में दर्द, सूजन और आंतों में दर्द होने पर अमरूद के पत्तों को उबालकर गुनगुने पानी से कुल्ले करें।
[राधे राधे🙏🏻🎋

आधाशीशी (आधे सिर का दर्द)

आधे सिर के दर्द में कच्चे अमरूद को सुबह पीसकर लेप बनाएं और उसे मस्तक पर लगाएं।

सूर्योदय के पूर्व ही सवेरे हरे कच्चे अमरूद को पत्थर पर घिसकर जहां दर्द होता है, वहां खूब अच्छी तरह लेप कर देने से सिर दर्द नहीं उठने पाता, अगर दर्द शुरू हो गया हो तो शांत हो जाता है। यह प्रयोग दिन में 3-4 बार करना चाहिए।
शिलाजीत से भी ज्यादा ताकत होती है इस पौधे की पत्तियों में, जानिए इसका नाम और अद्भुत फायदे

दांतों और त्वचा के लिए

आयुर्वेद की माने तो सुबह बासी मुंह इसकी पत्तियां चबाने से दांतों में कीड़े नही लगते है और दांत मजबूत होते है, तुलसी में थाईमोन नाम का तत्व होता है, जो हमारी त्वचा के लिए बहुत अच्छा होता है, इनकी पत्तियों को पीसकर कील मुंहासों पर लगाने से वो जल्दी ही ठीक हो जाते हैं, तुलसी की पत्तियों को नियमित खाने से चेहरे पर चमक बढ़ती है।
: लोगों की सबसे बड़ी समस्या शायद पेट की चर्बी है। इससे छुटकारा पाने के लिए सबसे कठिन प्रकार के वसा में से एक है, इस लेख में, हम आपको एक उपाय दिखाने जा रहे हैं जो आपको केवल पांच दिनों में पेट की चर्बी को खत्म करने में मदद करेगा! यह अविश्वसनीय लगता है, लेकिन यह वास्तव में सच है! तेजी से वजन घटाने के लिए ककड़ी का रस

इस उपचार को रात में करना चाहिए क्यों कि रात में आपका शरीर तनावग्रस्त नहीं रहता है।

सामग्री

👉🏻 धनिया की एक शाखा

👉🏻 एक ककड़ी

👉🏻 एक चम्मच शहद

👉🏻 एक चम्मच नींबू का रस

👉🏻 एक चम्मच एलोवेरा जेल

👉🏻 एक चम्मच पिसी हुई अदरक

👉🏻 आधा गिलास पानी

सभी सामग्री को मिक्स करके 45 मिनट रखने के बाद मिक्सर में ग्राइंड करके जूस तैयार करें। रात में सोने से पहले यह जूस पीजिये, 5 वें दिन से असर दिखना शुरू हो जाएगा।
[ किडनी के रोगियों के लिए 3 रामबाण प्रयोग:-

किडनी के रोगी चाहे उनका डायलासिस चल रहा हो या अभी शुरू होने वाला हो, चाहे उनका क्रिएटिनिन या यूरिया कितना भी बढ़ा हो, और अगर डॉक्टर्स ने भी उनको किडनी ट्रांसप्लांट के लिए बोल दिया हो, ऐसे में उन रोगियों के लिए विशेष 3 रामबाण प्रयोग हैं, जो उनको इस प्राणघातक रोग से छुटकारा दिला सकते हैं।

1. गोखरू काँटा काढ़ा:-
250 ग्राम गोखरू कांटा (ये आपको पंसारी से मिल जायेगा) लेकर 4 लीटर पानी मे उबालिए जब पानी एक लीटर रह जाए तो पानी छानकर एक बोतल मे रख लीजिए और गोखरू कांटा फेंक दीजिए। इस काढे को सुबह शाम खाली पेट हल्का सा गुनगुना करके 100 ग्राम के करीब पीजिए। शाम को खाली पेट का मतलब है दोपहर के भोजन के 5, 6 घंटे के बाद। काढ़ा पीने के एक घंटे के बाद ही कुछ खाइए और अपनी पहले की दवाई ख़ान पान का रोटिन पूर्ववत ही रखिए।

2. गेंहू के जवारो और गिलोय का रस:-
गेंहू के जवारे (गेंहू घास) का रस
गिलोय(अमृता) का रस।

गेंहू के जवारों का रस 50 ग्राम और गिलोय (अमृता की एक फ़ीट लम्बी व् एक अंगुली मोटी डंडी) का रस निकालकर – दोनों का मिश्रण दिन में एक बार रोज़ाना सुबह खाली पेट निरंतर लेते रहने से आशातीत लाभ होता है।
इस मिश्रण को रोज़ाना ताज़ा सुबह खाली पेट थोड़ा थोड़ा घूँट घूँट करके पीना है। इसको लेने के बाद कम से कम एक घंटे तक कुछ नहीं खाएं।

3.नीम और पीपल की छाल का काढ़ा:-
नीम की छाल – 10 ग्राम
पीपल की छाल – 10 ग्राम

3 गिलास पानी में 10 ग्राम नीम की छाल और 10 ग्राम पीपल की छाल लेकर आधा रहने तक उबाल कर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को दिन में 3-4 भाग में बाँट कर सेवन करते रहें। इस प्रयोग से मात्र सात दिन में ही आराम आ जाता हैं।

25- 30 दिन के अंदर अभूतपूर्व परिवर्तन आ जाता हैं।
[★★★★ रात्रि कहानी ★★★★

😴🌝🌘⭐💫✨

Motivational Story

👉👉एक दस वर्षीय लड़का रोज अपने पिता के साथ पास की पहाड़ी पर सैर को जाता था।
एक दिन लड़के ने कहा, “पिताजी चलिए आज हम दौड़ लगाते हैं, जो पहले चोटी पे लगी उस झंडी को छू लेगा वो रेस जीत जाएगा!”
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पिताजी तैयार हो गए।
दूरी काफी थी, दोनों ने धीरे-धीरे दौड़ना शुरू किया।

कुछ देर दौड़ने के बाद पिताजी अचानक ही रुक गए।

“क्या हुआ पापा, आप अचानक रुक क्यों गए, आपने अभी से हार मान ली क्या?”, लड़का मुस्कुराते हुए बोला।
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“नहीं-नहीं, मेरे जूते में कुछ कंकड़ पड़ गए हैं, बस उन्ही को निकालने के लिए रुका हूँ।”, पिताजी बोले।

लड़का बोला, “अरे, कंकड़ तो मेरे भी जूतों में पड़े हैं, पर अगर मैं रुक गया तो रेस हार जाऊँगा…”, और ये कहता हुआ वह तेजी से आगे भागा।
पिताजी भी कंकड़ निकाल कर आगे बढे, लड़का बहुत आगे निकल चुका था, पर अब उसे पाँव में दर्द का एहसास हो रहा था, और उसकी गति भी घटती जा रही थी। धीरे-धीरे पिताजी भी उसके करीब आने लगे थे।
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लड़के के पैरों में तकलीफ देख पिताजी पीछे से चिल्लाये,” क्यों नहीं तुम भी अपने कंकड़ निकाल लेते हो?”

“मेरे पास इसके लिए टाइम नहीं है !”, लड़का बोला और दौड़ता रहा।

कुछ ही देर में पिताजी उससे आगे निकल गए।

चुभते कंकडों की वजह से लड़के की तकलीफ बहुत बढ़ चुकी थी और अब उससे चला नहीं जा रहा था, वह रुकते-रुकते चीखा, “पापा, अब मैं और नहीं दौड़ सकता!”
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पिताजी जल्दी से दौड़कर वापस आये और अपने बेटे के जूते खोले, देखा तो पाँव से खून निकल रहा था। वे झटपट उसे घर ले गए और मरहम-पट्टी की।
जब दर्द कुछ कम हो गया तो उन्होंने ने समझाया,” बेटे, मैंने आपसे कहा था न कि पहले अपने कंकडों को निकाल लो फिर दौड़ो।”

“मैंने सोचा मैं रुकुंगा तो रेस हार जाऊँगा !”,बेटा बोला।
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“ ऐसा नही है बेटा, अगर हमारी लाइफ में कोई प्रॉब्लम आती है तो हमे उसे ये कह कर टालना नहीं चाहिए कि अभी हमारे पास समय नहीं है। दरअसल होता क्या है, जब हम किसी समस्या की अनदेखी करते हैं तो वो धीरे-धीरे और बड़ी होती जाती है और अंततः हमें जितना नुक्सान पहुंचा सकती थी उससे कहीं अधिक नुक्सान पहुंचा देती है। तुम्हे पत्थर निकालने में मुश्किल से 1 मिनट का समय लगता पर अब उस 1 मिनट के बदले तुम्हे 1 हफ्ते तक दर्द सहना होगा। “ पिताजी ने अपनी बात पूरी की।
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😊 Friends, हमारी life ऐसे तमाम कंकडों से भरी हुई है, शुरू में ये समस्याएं छोटी जान पड़ती है और हम इन पर बात करने या इनका समाधान खोजने से बचते हैं, पर धीरे-धीरे इनका रूप बड़ा हो जाता है।
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😲🤞समस्याओं को तभी पकडिये जब वो छोटी हैं वर्ना देरी करने पर वे उन कंकडों की तरह आपका भी खून बहा सकती हैं।

❤💙❤💙❤💙❤💙❤💙❤
[प्रकृति अपने नियम से कभी नहीं चूकती। अगर पौधे को आप पानी देते हैं तो वह स्वत: हरा भरा रहेगा और यदि आपने उसकी उपेक्षा शुरू की तो उसे मुरझाने में भी वक्त नहीं लगने वाला है। जिन लोगों ने इस दुनियाँ को स्वर्ग कहा उनके लिए यही प्रकृति उनके अच्छे कार्यों से स्वर्ग बन गई और जिन लोगों ने गलत काम किये उनके लिए यही प्रकृति, यही दुनियाँ नरक बन गई।

      *यहाँ खुशबू उनके लिए स्वत:मिल जाती है जो लोग फूलों की खेती किया करते हैं और यहाँ मीठे फल उन्हें स्वत: मिल जाते हैं जो लोग पेड़ लगाने भर का परिश्रम कर पाते हैं।* 

        *अत: यहाँ चाहने मात्र से कुछ नहीं प्राप्त होता जो भी और जितना भी आपको प्राप्त होता है वह निश्चित ही आपके परिश्रम का और आपके सदकार्यों का पुरूस्कार होता है।*


    *सुभप्रभात*💐💐

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Positive Thinking

एक महिला की आदत थी, कि वह हर रोज सोने से पहले, अपनी दिन भर की खुशियों को एक
काग़ज़ पर, लिख लिया करती थीं…. एक रात उन्होंने लिखा :

मैं खुश हूं, कि मेरा पति पूरी रात, ज़ोरदार खर्राटे लेता है. क्योंकि वह ज़िंदा है, और मेरे पास है. ये ईश्वर का, शुक्र है..

मैं खुश हूं, कि मेरा बेटा सुबह सबेरे इस बात पर झगड़ा करता है, कि रात भर मच्छर – खटमल सोने नहीं देते. यानी वह रात घर पर गुज़रता है, आवारागर्दी नहीं करता. ईश्वर का शुक्र है..

मैं खुश हूं, कि, हर महीना बिजली, गैस, पेट्रोल, पानी वगैरह का, अच्छा खासा टैक्स देना पड़ता है. यानी ये सब चीजें मेरे पास, मेरे इस्तेमाल में हैं. अगर यह ना होती, तो ज़िन्दगी कितनी मुश्किल होती ? ईश्वर का शुक्र है..

मैं खुश हूं, कि दिन ख़त्म होने तक, मेरा थकान से बुरा हाल हो जाता है. यानी मेरे अंदर दिन भर सख़्त काम करने की ताक़त और हिम्मत, सिर्फ ईश्वर की मेहर से है..

मैं खुश हूं, कि हर रोज अपने घर का झाड़ू पोछा करना पड़ता है, और दरवाज़े -खिड़कियों को साफ करना पड़ता है. शुक्र है, मेरे पास घर तो है. जिनके पास छत नहीं, उनका क्या हाल होता होगा ? ईश्वर का, शुक्र है..

मैं खुश हूं, कि कभी कभार, थोड़ी बीमार हो जाती हूँ. यानी मैं ज़्यादातर सेहतमंद ही रहती हूं. ईश्वर का, शुक्र है..

मैं खुश हूं, कि हर साल त्यौहारो पर तोहफ़े देने में, पर्स ख़ाली हो जाता है. यानी मेरे पास चाहने वाले, मेरे अज़ीज़, रिश्तेदार, दोस्त, अपने हैं, जिन्हें तोहफ़ा दे सकूं. अगर ये ना हों, तो ज़िन्दगी कितनी बेरौनक हो..? ईश्वर का, शुक्र है..

मैं खुश हूं, कि हर रोज अलार्म की आवाज़ पर, उठ जाती हूँ. यानी मुझे हर रोज़, एक नई सुबह देखना नसीब होती है. ये भी, ईश्वर का ही करम है..

जीने के इस फॉर्मूले पर अमल करते हुए, अपनी और अपने लोगों की ज़िंदगी, सुकून की बनानी चाहिए. छोटी या बड़ी परेशानियों में भी, खुशियों की तलाश करिए, हर हाल में, उस ईश्वर का शुक्रिया कर, जिंदगी खुशगवार बनाए..,!!!!

Think Positive in each & every situation.

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ॐ का रहस्य क्या है?

मन पर नियन्त्रण करके शब्दों का उच्चारण करने की क्रिया को मन्त्र कहते है। मन्त्र विज्ञान का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे मन व तन पर पड़ता है। मन्त्र का जाप एक मानसिक क्रिया है। कहा जाता है कि जैसा रहेगा मन वैसा रहेगा तन। यानि यदि हम मानसिक रूप से स्वस्थ्य है तो हमारा शरीर भी स्वस्थ्य रहेगा।

मन को स्वस्थ्य रखने के लिए मन्त्र का जाप करना आवश्यक है। ओम् तीन अक्षरों से बना है। अ, उ और म से निर्मित यह शब्द सर्व शक्तिमान है। जीवन जीने की शक्ति और संसार की चुनौतियों का सामना करने का अदम्य साहस देने वाले ओम् के उच्चारण करने मात्र से विभिन्न प्रकार की समस्याओं व व्याधियों का नाश होता है।

सृष्टि के आरंभ में एक ध्वनि गूंजी ओम और पूरे ब्रह्माण्ड में इसकी गूंज फैल गयी। पुराणों में ऐसी कथा मिलती है कि इसी शब्द से भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा प्रकट हुए। इसलिए ओम को सभी मंत्रों का बीज मंत्र और ध्वनियों एवं शब्दों की जननी कहा जाता है।

इस मंत्र के विषय में कहा जाता है कि, ओम शब्द के नियमित उच्चारण मात्र से शरीर में मौजूद आत्मा जागृत हो जाती है और रोग एवं तनाव से मुक्ति मिलती है।

इसलिए धर्म गुरू ओम का जप करने की सलाह देते हैं। जबकि वास्तुविदों का मानना है कि ओम के प्रयोग से घर में मौजूद वास्तु दोषों को भी दूर किया जा सकता है।
ओम मंत्र को ब्रह्माण्ड का स्वरूप माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से माना जाता है कि ओम में त्रिदेवों का वास होता है इसलिए सभी मंत्रों से पहले इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है जैसे
ओम नमो भगवते वासुदेव, ओम नमः शिवाय।

आध्यात्मिक दृष्टि से यह माना जाता है कि नियमित ओम मंत्र का जप किया जाए तो व्यक्ति का तन मन शुद्घ रहता है और मानसिक शांति मिलती है। ओम मंत्र के जप से मनुष्य ईश्वर के करीब पहुंचता है और मुक्ति पाने का अधिकारी बन जाता है।

: वैदिक साहित्य इस बात पर एकमत है कि ओ३म् ईश्वर का मुख्य नाम है. योग दर्शन में यह स्पष्ट है. यह ओ३म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है- अ, उ, म. प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है. जैसे “अ” से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है. “उ” से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है।

“म” से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है. ये तो बहुत थोड़े से उदाहरण हैं जो ओ३म् के प्रत्येक अक्षर से समझे जा सकते हैं. वास्तव में अनंत ईश्वर के अनगिनत नाम केवल इस ओ३म् शब्द में ही आ सकते हैं, और किसी में नहीं.

१. अनेक बार ओ३म् का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनावरहित हो जाता है।

२. अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ओ३म् के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं!

३. यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।

४. यह हृदय और खून के प्रवाह को संतुलित रखता है।

५. इससे पाचन शक्ति तेज होती है।

६. इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।

७. थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।

८. नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है. रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चित नींद आएगी।

९ कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मजबूती आती है.
इत्यादि!

ॐ के उच्चारण का रहस्य?

ॐ है एक मात्र मंत्र, यही है आत्मा का संगीत
ओम का यह चिन्ह ‘ॐ’ अद्भुत है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। बहुत-सी आकाश गंगाएँ इसी तरह फैली हुई है। ब्रह्म का अर्थ होता है विस्तार, फैलाव और फैलना। ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है।

ॐ को ओम कहा जाता है। उसमें भी बोलते वक्त ‘ओ’ पर ज्यादा जोर होता है। इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं। यही है √ मंत्र बाकी सभी × है। इस मंत्र का प्रारंभ है अंत नहीं। यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है। अनाहत अर्थात किसी भी प्रकार की टकराहट या दो चीजों या हाथों के संयोग के उत्पन्न ध्वनि नहीं। इसे अनहद भी कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है।

तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में सुना की कोई एक ऐसी ध्वनि है जो लगातार सुनाई देती रहती है शरीर के भीतर भी और बाहर भी। हर कहीं, वही ध्वनि निरंतर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और आत्मा शांती महसूस करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम दिया ओम।

साधारण मनुष्य उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है। फिर भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में होना जरूरी है। जो भी उस ध्वनि को सुनने लगता है वह परमात्मा से सीधा जुड़ने लगता है। परमात्मा से जुड़ने का साधारण तरीका है ॐ का उच्चारण करते रहना।

*त्रिदेव और त्रेलोक्य का प्रतीक :
ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है।

*बीमारी दूर भगाएँ : तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि। इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं।

सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।

*उच्चारण की विधि : प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं।

*इसके लाभ : इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा। इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं। काम करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं। इसके उच्चारण में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है।

*शरीर में आवेगों का उतार-चढ़ाव :
प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि से श्रोता और वक्ता दोनों हर्ष, विषाद, क्रोध, घृणा, भय तथा कामेच्छा के आवेगों को महसूस करते हैं। अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मस्तिष्क में उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से दिल की धड़कन तेज हो जाती है जिससे रक्त में ‘टॉक्सिक’पदार्थ पैदा होने लगते हैं। इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमृत की तरहआल्हादकारी रसायन की वर्षा करती है।

कम से कम 108 बार ओम् का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव रहित हो जाता है। कुछ ही दिनों पश्चात शरीर में एक नई उर्जा का संचरण होने लगता है। । ओम् का उच्चारण करने से प्रकृति के साथ बेहतर तालमेल और नियन्त्रण स्थापित होता है। जिसके कारण हमें प्राकृतिक उर्जा मिलती रहती है। ओम् का उच्चारण करने से परिस्थितियों का पूर्वानुमान होने लगता है।

ओम् का उच्चारण करने से आपके व्यवहार में शालीनता आयेगी जिससे आपके शत्रु भी मित्र बन जाते है। ओम् का उच्चारण करने से आपके मन में निराशा के भाव उत्पन्न नहीं होते है।

आत्म हत्या जैसे विचार भी मन में नहीं आते है। जो बच्चे पढ़ाई में मन नहीं लगाते है या फिर उनकी स्मरण शक्ति कमजोर है। उन्हें यदि नियमित ओम् का उच्चारण कराया जाये तो उनकी स्मरण शक्ति भी अच्छी हो जायेगी और पढ़ाई में मन भी लगने लगेगा।
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👉🏿आज हमारे अंदर सुख-शांति कहा है ??

यह सब हमारे विचारों पर ही निर्भर करते है हमारे विचारे जितने ज्यादा नेगटिव ,उतने ज्यादा दुख और जितने लंबे समय नेगटिव उतने बड़े मानसिक/शारीरिक बीमारीयों की उत्पत्ति जितने अच्छे और शुद्ध विचार उतने खुश और शांति से सम्पन्न और जितने ज्यादा सात्विक उतने अधिक शांतिपन का अनुभव यह बात कोई शास्त्रों में नही लिखी है, बल्कि प्रैक्टिकल दुनिया के हालात और अनेक प्रकार के हुए रिसर्च के अनुसार बता रहे हैं।

आज हरेक नेगटिव विचार के अलग-अलग प्रकार की बीमारियां होती है आज तो बीमारियों से छूटने के उपाय विचार में सकारात्मकता को लाना तथा उनसे उनके विचार को पूछकर यह ट्रीटमेंट करना चाहिए कि आप ऐसे विचार के बजाय, ऐसे विचार करो तो इतने दिन में ठीक हो जाएंगे।

अर्थात किसी भी नेगटिव बात को पॉजिटिव कैसे सोचना है यह हमें बताये और सिखाये।

अपने बीमारियों को ठीक करने के लिये लाख रुपये खर्चे के लिये तैयार है लेकिन फिर भी ठीक नही होते क्योकि जिन नेगेटिव विचारों के कारण आपको बीमारियां है उसे तो आपने ठीक किया नही ,लेकिन सिर्फ शरीर के बीमारी को ठीक करने का प्रयास किया।

शरीर को जवान और खूबसूरत रखने के लिये अनेक प्रकार के महेंगे फेस क्रीम, बॉडी लोशन क्रीम अनेक प्रकार के प्रोटीन विटामिन से भरपूर फल-फ्रूट और ac में आरामदायक जीवन जी रहे ।लेकिन विचारों की नेगटिव से जो बुढ़ापा जल्दी आता है शायद उस ज्ञान रोशनी से तो आप अनभिज्ञ है।

हमे कहा बदलाव लाना चाहिए और कहा बदलाव लाते हैं।
कहा पर समय देना चाहिए और कहा पर समय देते हैं।
यह हम सबके लिए एक प्रश्न है जैसे आजकल AC होटल या AC शॉप होते हैं न वस्तु वही होती है लेकिन उसे AC के शो रूम से खरीदते हैं तो उसके दाम अलग होते हैं और उसे सामान्य दुकान से खरीदते हैं तो उसके मूल्य कुछ कम में मिलते हैं।
लेकिन यहाँ तो ऐसा भी नही है यहाँ तो अपने विचारों की बात चल रही है जो किसी शॉप में नही मिल सकती, सिवाय स्वयम मेहनत कर राजयोग के माध्यम से हम अपने जीवन में होने वाले विचारों के अच्छे-बुरे प्रभाव के महत्व को समझ पाएंगे ,क्योकि कोई तोआधार,सहारा,सहयोग,गाइडेंस चाहिए ताकि हम इन सभी बातों को समझ सके।

जीवन मे हम अपने सकारात्मक विचार से हर सम्बन्ध और हर बीमारी को ठीक कर सकते हैं बस इसके लिये बहुतकाल का अभ्यास चाहिये।
क्योकि सकारात्मक विचार कुछ दिन और महीने रखने की नही या 90 प्रतिशत सकारात्मक और 20 प्रतिशत नकारात्मक रख ले तो चलेगा ऐसा भी नही ।

इसके निरंतर बढ़ना चाहिये, अपने अंदर सम्पूर्ण बदलाव लाने हेतु।
जब हम यह पूरी तरह समझ ले कि और कोई रास्ता नही है अपने को बदलने का, तब हम इस पथ पर चल सकेंगे।

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👉🏿कर्म भोग_जरा ध्यान से पढ़े 👇🏽

एक गाँव में एक किसान रहता था उसके परिवार में उसकी पत्नी और एक लड़का था। कुछ सालों के बाद पत्नी की मृत्यु हो गई उस समय लड़के की उम्र दस साल थी।
किसान ने दूसरी शादी कर ली। उस दूसरी पत्नी से भी किसान को एक पुत्र प्राप्त हुआ।किसान की दूसरी पत्नी की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई।

किसान का बड़ा बेटा जो पहली पत्नी से प्राप्त हुआ था जब शादी के योग्य हुआ तब किसान ने बड़े बेटे की शादी कर दी।

फिर किसान की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई। किसान का छोटा बेटा जो दूसरी पत्नी से प्राप्त हुआ था और पहली पत्नी से प्राप्त बड़ा बेटा दोनों साथ साथ रहते थे।

कुछ समय बाद किसान के छोटे लड़के की तबियत खराब रहने लगी। बड़े भाई ने कुछ आस पास के वैद्यों से इलाज करवाया पर कोई राहत ना मिली। छोटे भाई की दिन ब दिन तबियत बिगड़ती जा रही थी और बहुत खर्च भी हो रहा था।

एक दिन बड़े भाई ने अपनी पत्नी से सलाह की कि यदि ये छोटा भाई मर जाए तो हमें इसके इलाज के लिए पैसा खर्च ना करना पड़ेगा।

और जायदाद में आधा हिस्सा भी नहीं देना पड़ेगा। तब उसकी पत्नी ने कहा कि क्यों न किसी वैद्य से बात करके इसे जहर दे दिया जाए किसी को पता भी ना चलेगा किसी रिश्तेदारी में भी कोई शक ना करेगा कि बीमार था बीमारी से मृत्यु हो गई।

बड़े भाई ने ऐसे ही किया एक वैद्य से बात की कि आप अपनी फीस बताओ ऐसा करना मेरे छोटे बीमार भाई को दवा के बहाने से जहर देना है !

वैद्य ने बात मान ली और लड़के को जहर दे दिया और लड़के की मृत्यु हो गई।उसके भाई भाभी ने खुशी मनाई की रास्ते का काँटा निकल गया अब सारी सम्पत्ति अपनी हो गई।

उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। कुछ महीनों पश्चात उस किसान के बड़े लड़के की पत्नी को लड़का हुआ !

उन पति पत्नी ने खूब खुशी मनाई, बड़े ही लाड़ प्यार से लड़के की परवरिश की। कुछ ही गिने वर्षों में लड़का जवान हो गया। उन्होंने अपने लड़के की भी शादी कर दी!

शादी के कुछ समय बाद अचानक लड़का बीमार रहने लगा। माँ बाप ने उसके इलाज के लिए बहुत वैद्यों से इलाज करवाया। जिसने जितना पैसा माँगा दिया सब कुछ दिया ताकि लड़का ठीक हो जाए ।

अपने लड़के के इलाज में अपनी आधी सम्पत्ति तक बेच दी पर लड़का बीमारी के कारण मरने की कगार पर आ गया। शरीर इतना ज्यादा कमजोर हो गया की अस्थि-पिंजर शेष रह गया था।

एक दिन लड़के को चारपाई पर लेटा रखा था और उसका पिता साथ में बैठा अपने पुत्र की ये दयनीय हालत देख कर दुःखी होकर उसकी ओर देख रहा था!

तभी लड़का अपने पिता से बोला कि भाई अपना सब हिसाब हो गया बस अब कफन और लकड़ी का हिसाब बाकी है उसकी तैयारी कर लो।

ये सुनकर उसके पिता ने सोचा की लड़के का दिमाग भी काम नहीं कर रहा है बीमारी के कारण और बोला बेटा मैं तेरा बाप हूँ भाई नहीं!

तब लड़का बोला मैं आपका वही भाई हूँ जो आप ने जहर खिलाकर मरवाया था । जिस सम्पत्ति के लिए आप ने मरवाया था मुझे अब वो मेरे इलाज के लिए आधी बिक चुकी है आपकी शेष है हमारा हिसाब हो गया !

तब उसका पिता फ़ूट-फूट कर रोते हुए बोला कि मेरा तो कुल नाश हो गया। जो किया मेरे आगे आ गया। पर तेरी पत्नी का क्या दोष है जो इस बेचारी को जिन्दा जलाया जाएगा ।
(उस समय सतीप्रथा थी जिसमें पति के मरने के बाद पत्नी को पति की चिता के साथ जला दिया जाता था)
तब वो लड़का बोला की वो वैद्य कहाँ है, जिसने मुझे जहर खिलाया था। तब उसके पिता ने कहा की आप की मृत्यु के तीन साल बाद वो मर गया था।
तब लड़के ने कहा कि ये वही दुष्ट वैद्य आज मेरी पत्नी रूप में है मेरे मरने पर इसे जिन्दा जलाया जाएगा ।
हमारा जीवन जो उतार-चढ़ाव से भरा है इसके पीछे हमारे अपने ही कर्म होते हैं। हम जैसा बोएंगे, वैसा ही काटना पड़ेगा।

कर्म करो तो फल मिलता है,
आज नहीं तो कल मिलता है।
जितना गहरा अधिक हो कुआँ,
उतना मीठा जल मिलता है।
जीवन के हर कठिन प्रश्न का,
_जीवन से ही हल मिलता है।

🍂🍂ओम शांती🍃🍃🍃
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👉🏿परिस्तिथियों को स्व-स्तिथि से ठीक करो ना कि …….
यह सोचो कि परिस्तिथियाँ ठीक होंगी तो स्व-स्तिथि का अभ्यास करेंगे।

मनुष्य का स्वभाव है कि वह आज की बात को कल पर टाल देता है और सोचता है कि अमुक परिस्तिथि पार हो जाने पर अमुक कार्य अथवा पुरुषार्थ करूँगा।यह गलत है।

हमे चाहिए कि “अभी नही तो कभी नही”इस बात को सदा स्मृति में रखें।

कल से योग लगाएंगे, ऐसा नही सोचो।बल्कि हम अभी से ईश्वरीय याद में स्थित होंगे ऐसा विचार करो।परिस्तिथियों को स्व-स्तिथि से ठीक करो ना कि यह सोचो कि परिस्तिथियाँ ठीक होंगी तो स्व-स्तिथि का अभ्यास करेंगे। यह नही सोचो कि व्यवहार ठीक होगा तो हम परमार्थ में लगेंगे बल्कि यह सोचो कि हम परमार्थ में लग जाएंगे तो व्यवहार में भी अवश्य ईश्वरीय सहायता मिलेगी।

इस प्रकार ज्ञान मन्थन करते हुए पुरुषार्थ में लग जाओ । बाबा कहते हैं।अब ऐसा समय आ गया है कि जितना समय व्यवहार,व्यापार करते हो उससे भी अधिक समय ईश्वरीय याद तथा ईश्वरीय सेवा में दो।यदि ऐसा नही भी कर सकते तो कम से कम उतना समय तो अवश्य दो जितना समय व्यापार या धंधा करते हो।वरना पीछे रह जाओगे और पछताना पड़ेगा।

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[दुःख से भरा संसार है ओर जब संसार ही दुःख से भरा है तो सुख की चाह रखना संसार से मूर्खता होगी या अज्ञानता होगी।
सुख वो सुख जो दुःख का कारण भी बनती है लेकिन उसी सुख के लिए मानव न चाहते हुए भी गलत कर्म कर बैठते है
सुख किसे मानते है संसार के लोग बड़े-बड़े गाड़ियों में घूमना, बड़े-बड़े मकान बनाना, आराम से घर पर बैठे टीवी देखना ओर सबसे अधिक पैसा कमाना जितना भी कमाओ कम ही लगता है।
ये सुख के साधन है लेकिन अधिक कामना की इच्छा के लिए आगे बढ़ते है तो यही दुःख के कारण बन जाते है।
धन कमाना गलत नही है मकान बनाना गलत नही है गाड़ी खरीदना गलत नही है लेकिन कामनाएँ जो गलत कर्म करने पर मजबूर कर दे वो कामनाएं अधिक रखना गलत है।

!!Զเधे Զเधे!!🙏🙏महामृत्युंजय के 12 सिद्ध प्रयोग जो दिलायंगे साक्षात महाकाल का आशीर्वाद

महामृत्युंजय तंत्र के इन प्रयोगों के द्वारा महादेव शिव शीघ्र प्रसन्न होते है तथा उनके आशीर्वाद स्वरूप अकाल मृत्यु से मुक्ति प्राप्त होती है, रोग्य (पूर्ण स्वस्थ शरीर) की प्राप्ति, ग्रह-नक्षत्र दोष, नाड़ी दोष, मांगलीक दोष, शत्रु षडाष्टक दोष, विधुरदोष, वैधव्य दोष, अधिक कष्ट देने वाले असाध्य रोग और मृत्यु तुल्य मानसिक और शारिरिक कष्टों का निवारण होता है.

और प्रारब्धकर्म, संचित कर्म अौर वर्तमान कर्मो का नाश होता है. आज हम महमृत्युंज्य तंत्र के उन 12 सिद्ध मंत्र को जानेंगे जिनका प्रयोग बहुत ही सरल है तथा इन मंत्रो दवारा अति शीघ्र फल की प्राप्ति होती है.

1 सूर्य ग्रह शान्ति, सुख समृद्धि तथा ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए

रविवार को एक ताम्बे के पात्र में जल लेकर उसमे गुड और लाल चंदन मिलाकर उस जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करें तथा महामृत्युंजय मन्त्र का जाप करें. इस प्रयोग से आपके घर में सुख समृद्धि आएगी, ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी, लक्ष्मी का वास होगा तथा सूर्य ग्रह शांत होंगे.

2 मनोकामना पूर्ति के लिए :-

महादेव शिव को शिव रात्रि के दिन 108 नीबुओं की माला बनाकर पहनाए तथा अमावश्या के दिन उस नीबुओं की माला को उतारकर नीबुओं को अलग-अलग कर दे. महामृत्युंजय के मन्त्र के साथ नीबुओं का हवन करने से को एक मनोकामना की पूर्ति होती है.

3 अचानक आये संकट के नाश के लिए :-

महामृत्युंजय का जाप के साथ जायफल की आहुति देने से सभी रोगों का नाश होता है और अचानक आई हुई विपदा का निवारण होता है.

4 सभी रोगों के नाश और उत्तम स्वास्थ प्राप्ति के लिए :-

यदि कोई व्यक्ति भयंकर रोग से ग्रसित हो तो उसे इस रोग से मुक्ति दिलाने के लिए महामृत्युंजय मन्त्र का जाप करते हुए भगवान शिव के पारद शिवलिंग का प्रतिदिन सवा घंटे तक जलाभिषेक करना चाहिए तथा उसके बाद अभिषेक किये हुए जल का थोड़ा सा पानी हर रोज रोगी को पिलाना चाहिए. इस प्रयोग से रोगी का बहुत ही पुराना रोग या मृत्यु के समान कष्ट देने वाला रोग भी समाप्त हो जाता है

5 स्वास्थ लाभ के लिए :-

सर्व प्रथम आप तांत्रिक महा मृत्युञ्जय के 1,37,500 मंत्र जाप का अनुष्ठान करके मंत्र सिद्धि प्राप्त करें तत्पश्चात जब कभी कोई , नजर दोष से पीडित बच्चे , टोने टोटकों से या तांत्रिक क्रिया से परेशान कोई व्यक्ति आए तो उसे मोर पंख से झाड़ा (झाड़नी) देने से समस्त समस्याओं का समाधान हो जाएगा.

6 धन लाभ की प्राप्ति, व्यापार में लाभ, उत्तम विद्या की प्राप्ति तथा तीव्र बुद्धि की प्राप्ति के लिए :-

प्रत्येक बुधवार को कांसे का पात्र लेकर उसमे जल के साथ दही, शक्कर तथा घी मिलाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करने से असीम धन के प्राप्ति होती है, व्यापार में लाभ होता है , उत्तम विद्या की प्राप्ति होती है व बुद्धि तीव्र होती है.

7 पुत्र प्राप्ति, सभी प्रकार के सुखो की प्राप्ति के लिए :-

प्रति मंगलवार को ताँबे के पात्र में जल में गुड मिलाकर लाल फुल डालकर मृत्युञ्जय मंत्र जाप करते हुए शिव लिंग पर चढ़ानें से सभी प्रकार के सुखो की प्राप्ति,पुत्र की प्राप्ति और स्वास्थ्य लाभ व शत्रुओं का नाश तथा मंगल ग्रह की शांति होती है.

8 विवाह, संतान तथा भौतिक सुख शांति प्राप्ति के लिए :-

प्रत्येक शुक्रवार को चांदी या स्टील के बर्तन में जल, दूध, दही, घी, मिश्री व शक़्कर आदि मिलाकर महामृत्युंजय का जाप करते शिव को अर्पित करने से तुरंत विवाह का योग बनता है, संतान की प्राप्ति होती है तथा भौतिक सुख प्राप्त होता है.

9 उत्तम विद्या, धनधान्य और पुत्र पौत्र सुख और मनोंकामना की पुर्ति के लिए :-

प्रति गुरू वार को काँसे या पीतल के पात्र में जल में हल्दी मिला कर मृत्युञ्जय मंत्र जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ानें से उत्तम विद्या की प्राप्ति, धनधान्य तथा पुत्र पौत्र आदि की प्राप्ति अौर बृहस्पति (गुरू) ग्रह की शांति होती हैं.

10 रोगी के स्वास्थ्य लाभ के लिए :-

शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग के पास आसन लगाकर कर बैठे तथा अपने समीप जल से भरा एक ताम्बे का पात्र रखे. तथा पांच माला महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें. प्रत्येक माला के जाप के बाद उस जल से भरे ताम्बे के कलश में फुक मारते जाए इस तरह पांच बार माला जाप के साथ उस जल से भरे ताम्बे के पात्र में पांच बार फुक मारे इसके बाद उस जल को रोगी को पिलाए. यह अचूक उपाय है तथा इस के द्वारा रोगी के स्वास्थ में आश्चर्यजनक लाभ होगा.

11 मानसिक कष्ट, शत्रु भय,आर्थिक संकट निवारण और धनधान्य, व्यापार की वृद्धि राज्य प्राप्ति के लिए:

शनिवार को बादाम तेल और जैतुन तेल मे गुलाब और चंदन इत्र मिलाकर एक करके चोमुखी(चार बत्ती वाला) दीपक शिव मन्दिर मे जलाकर लोहे या स्टील के पात्र में सरसो के तेल भरकर मृत्युञ्जय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ानें से मानसिक कष्ट का निवारण होता है, शत्रुओं का नाश होता हैं, व्यापार मे उन्नति या नौकरी में उन्नति होती है, धनधान्य की वृद्वि होती है, अपने कार्य क्षेत्र में राज्य की प्राप्ति होती है .

12 मानसिक शांति और मनों कामना की पूर्ति के लिए :

प्रति सोमवार को चाँदी अथवा स्टील के पात्र में जल में दूध, सफेद तिल्ली और शक्कर मिलाकर मृत्युञ्जय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ानें से मानसिक शांति और मनोंकामना की पूर्ति तथा चन्द्र ग्रह की शांति होती हैं.
★★★★★सीताराम सभी को ★★★★★

राशियां और उनके गुण धर्म स्वभाव।

मेष —– मेष लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्ति क्रोधी ,
स्वाभिमानी , धनवान , सही आचरण करने वाले होते है |
उनकी अपने लोगो से विसंगति बनी रहती है | मगर वैभव
शाली , पराक्रमी होते है | उन्हें जमीन के कार्यों में लाभ
होता है | वे विदेशी भ्रमण करने वाले होते है |
उन्हें व्यापार में खनिज , गैस , जमीन के कार्यों में तथा
निर्माण में भवन , रोड , आकाश से सम्बंधित कार्यों में
लाभ होता है |
वृष — वृष लग्न वाले लोग बुद्धिमान प्रिय बोलने वाले शांत
प्रकृति के , सभी के कार्यो को एक भाव में लेने वाले ,
संगीत प्रेमी मगर स्वाभिमानी तथा ज्यादा गंभीरता
रखने वाले और लोगो को प्रभावित करने वाले तथा भोग
की वस्तुओ पर कम ध्यान देने वाले होते है |
व्यापार में भोग विलासिता की वस्तुओ , खाद्यान्न और
सफ़ेद वस्तुओ के व्यापार में (जैसे दूध , दही , शक्कर , चावल )
लाभ होता है | पानी के व्यापार में भी लाभ होता है |
काली वस्तुओ का लाभ होता है |
मिथुन — मिथुन लग्न वाले कूटनीति का भरपूर लाभ लेने
वाले , चतुर , होशियार , राजपक्ष से कार्यों में लाभ पाने
वाले , विवादों से ज्यादा उलझने वाले , सभी को अच्छा
मानने वाले ,सेना का गठन करने वाले , लोगो का आदर
करने वाले रहते है |
व्यापार में लोहे व् खनिज के व्यापार में तथा राजनीती
में कुशल , सुन्दरता में और भोग के कार्यों में ज्यादा लिप्त
होते है | पैसो को इकठ्ठा करने वाले होते है | झूठ का
ज्यादा सहारा लेने वाले तथा मौके का लाभ पाने वाले
रहते है |
कर्क लग्न — कर्क लग्न वाले मन में ज्यादा विचार करने
वाले , क्षणिक विचार देने वाले , क्रोधित , अस्थिर ,
दूसरों का हित करने वाले , चंचल , बुद्धिमान , संपत्ति को
पाने वाले , सुख का भोग नहीं करने वाले चिंता युक्त होते
है |
व्यापार — लोहे का व्यापार करने वाले , दूध , दही , शक्कर
, सफ़ेद वस्त्र का व्यापार करने वाले , शिक्षा में उन्नति
करने वाले होते है | विदेश की यात्रा से लाभ उठाने वाले
होते है | उन्हें पानी के पास निवास करने से ज्यादा लाभ
होता है |
सिंह लग्न — सिंह लग्न वाले व्यक्तियों को एक सूत्र में
बांधने वाले , अच्छे विचार वाले , अच्छी शिक्षा देने वाले
, प्रतापी , स्वाभिमानी , नेतृत्व करने वाले , प्रशासनिक
कार्यों में पूर्ण दक्षता का लाभ पाने वाले और परिवार में
सभी का ध्यान रखने वाले , अपने अनुसार कार्यों को करने
वाले रहते है |
व्यापार में लाभ –राजनीती में काफी लाभ लेने वाले
जमीन के कार्यों में , खनिज , रेट गिट्टी , स्टेशनरी ,
बिजली , लोहे के उत्पादन , कम्पूटर में अग्रणी , सम्पूर्ण
जीवन में सुखी रहते है | पैसो की ज्यादा चाह होने से
परिश्रम २४ घंटे करते है |
कन्या लग्न — कन्या लग्न में जन्म लेने मेल शास्त्रों में कुशल
भोग विलासिता में हमेशा लिप्त रहने वाले , स्त्रियों से
ज्यादा सम्बन्ध रखने वाले , भाग्यशाली सभी गुणों से
ओतप्रोत रहते है | सुन्दर , प्रिय बोलने वाले , कुशल ,
राजनितिज्ञ , झूठ बोलने में माहिर , चतुर होशियार होते
है |
व्यापार — मेडिकल से सम्बंधित व्यापार में सफल , विदेश
का पैसा लेने में कुशल , सौन्दर्य से ज्यादा पैसा कमाने
वाले , लोहे से विशेष लाभ पाने वाले , टेक्नीकल शिक्षा से
भी व्यापार में लाभ लेने में सक्षम होते है | पत्रकारिता के
क्षेत्र में सफलता पाने वाले रहते है |
तुला लग्न – – इस में उत्पन्न व्यक्ति बुद्धिमान , अच्छे कार्यों
से जीवन को सक्षम रखते हुए योग्यता में पूर्ण सभी कलाओं
में कुशल होते है | बिजली और लोहे के कार्यों में काफी
तरक्की पाने वाले जिस क्षेत्र में रहते है अपनी अलग पहचान
बनाते रहते है | ये पानी के पास से ज्यादा तरक्की पाते है |
टेक्नीकल शिक्षा में पूर्ण लाभ पाते है | राजनीती में पूर्ण
पद को पाने वाले रहते है |
व्यापार — लोहा ,खनिज , बिजली , जमीन में विशेष लाभ
पाते है | आकर्षित करके कार्यों को निकालने में सक्षम
होते है | विदेश में ज्यादा व्यापार करते है |
वृश्चिक लग्न — इस लग्न में जन्म लेने वाले पराक्रमी , शत्रुओं
से विजय पाने वाले , सदैव आगे रहने वाले , चाहे जो क्षेत्र
हो अपने परिवार में नाम कमाने वाले , चतुर , चाणक्य ,
राजनीती , शिक्षा , प्रशासन में प्रभाव रखने वाले , पति
पत्नी का सुख पाने वाले रहते है |
व्यापार — इन्हें शिक्षा में , लोहे के कार्यों में , पानी का
व्यापार करने वाले , भवन का निर्माण , भोग के कार्यों में
लाभ होता है | वे राजनीती में लाभ पाने वाले , चाणक्य
जैसी कूटनीति का हमेशा लाभ पाने वाले , कागज से पूर्ण
लाभ पाने वाले रहते है |
धनु लग्न — इस में जन्म लेने वाले व्यक्ति महान , बुद्धिमान ,
निति और सलाह कार लोगो को विशेष लाभ देने वाले ,
संसार में पूज्य और सम्मान पाने वाले , अपने परिवार में
श्रेष्ठ , कोमल वाणी , परिवार का पालन करने वाले ,
राजनितिज्ञ ज्यादा होते हुए भी विद्वान् , सभी प्रकार
की जानकारी रखने वाले , स्वयं पर विश्वास करने वाले
रहते है |
व्यापार — शिक्षा , लोहा , सलाहकार में लाभ पाने वाले
, धार्मिक कार्यों से लाभ पाने वाले , खनिज उत्पादन
करने वाले , विदेश से पैसा कमाने वाले होते है |
मकर लग्न — इसमें जन्म लेने वाले सुख से दूर रहते है , मन में
ज्यादा क्रोध बना रहता है | स्वाभिमान के कारण
वैवाहिक सुख नहीं मिलता है | अपने अनुसार कार्यों को
करते है | संतान से सुख नहीं मिलता है | आलसी होते है ,
दूसरो का अच्छा नहीं सोचते है , खर्च ज्यादा करते है ,
दिखावा ज्यादा करते है , मगर स्वयं के कार्य में पूर्ण दक्ष
होते है |
व्यापार — लोहे में उत्पादन , घर का सुख मिलता है | खनिज
से लाभ होता है | राजनीती में लाभ नहीं मिलता है |
आकाश से सम्बंधित कार्यो में लाभ होता है | उसमे सक्षम
भी होते है | बिजली के व्यापार में लाभ हमेशा मिलता है
|
कुम्भ –इस लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के दूसरी
स्त्रियों से सम्बन्ध रहते है | बुद्धिमान साहसी , ज्ञानी ,
दयालु होते है | प्रसन्न रहते है इसलिए हमेशा सुखी रहते है |
भोग विलासिता में ज्यादा ध्यान रहता है | जो चाहे
वैसा कार्य कर सकते है इतना पावर रहता है |
व्यापार में लाभ — लोहा , पानी , खाद्यान्न , होटल के
व्यापार से काफी लाभ , शिक्षा में टेक्नीकल से लाभ ,
सौन्दर्य से भी लाभ होता है |
मीन — मीन लग्न में जन्म लेने वाले सुवर्ण के शौक़ीन होते है |
परिवार का सहयोग हमेशा करने वाले होते है | ज्यादा
सोचने वाले व् चिंता करने वाले होते है इसलिए देरी भी हो
जाती है | पति पत्नी का पूर्ण सुख लेने वाले भी होते है |
संतानों का सुख हमेशा रहता है | दानी होते है | परोपकार
में ज्यादा विश्वास करने वाले होते है | कम आयु होती है |
व्यापार में लाभ — शिक्षा में ज्यादा लाभ होता है |
लोहे के कार्यों में भी लाभ होता है | खनिज , उर्जा ,
बिजली , कोयले से भी पूर्ण लाभ होता है | कोई भी
कार्य में पूर्ण दक्ष होते है |
मेष राशि का स्वामी ग्रह मंगल माना जाता है।
भगवान श्री गणेश को मेष राशि का आराध्य देव
माना जाता है।
शुभ रत्न: मूंगा , शुभ रुद्राक्ष: तीन मुखी रुद्राक्ष,
वृषभ का राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है। इस
राशिवालों के लिए शुभ दिन शुक्रवार और बुधवार
होते हैं। कुलस्वामिनी को वृषभ राशि का आराध्य
माना जाता है।
शुभ रत्न: हीरा, शुभ रुद्राक्ष: छह मुखी रुद्राक्ष,
मिथुन राशि का स्वामी ग्रह बुध होता है। इस राशि
के जातक बेहद समझदार होते हैं। मिथुन राशि के
आराध्य देव कुबेर होते हैं।
शुभ रत्न: पन्ना, शुभ रुद्राक्ष: चार मुखी रुद्राक्ष ,
कर्क राशि का स्वामी ग्रह चंद्रमा है। भगवान शंकर
को कर्क राशि का आराध्य देव माना जाता है।
शुभ रत्न: मोती, शुभ रुद्राक्ष: दो मुखी रुद्राक्ष ,
सिंह राशि का स्वामी ग्रह सूर्य है। इस राशि के लोग
किसी के सामने झुकना नहीं पसंद नहीं करते हैं। सिंह
राशि के आराध्य देव भगवान सूर्य होते हैं।
सिंह राशि के लिए शुभ रत्न: माणिक्य , शुभ रुद्राक्ष:
एक मुखी रुद्राक्ष,
कन्या राशि के जातक बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के होते
हैं। मान्यता है कि कन्या राशि के आराध्य देव कुबेर
जी होते हैं। शुभ रत्न: पन्ना, शुभ रुद्राक्ष: चार मुखी
रुद्राक्ष,
तुला राशि के जातक भोले स्वभाव के होते हैं।
कुलस्वामिनी को तुला राशि का आराध्य माना
जाता है।
शुभ रत्न: हीरा, शुभ रुद्राक्ष: छह मुखी रुद्राक्ष,
वृश्चिक राशि का स्वामी ग्रह मंगल है। वृश्चिक
राशि के जातकों के आराध्य देव गणेश जी होते हैं।
शुभ रत्न: माणिक्य , शुभ रुद्राक्ष: तीन मुखी रुद्राक्ष,
धनु राशि का स्वामी ग्रह “गुरु” को माना जाता है।
धनु राशि के आराध्य देव “दत्तोत्रय” होते हैं।
शुभ रत्न: पुखराज, शुभ रुद्राक्ष: पांच मुखी रुद्राक्ष,
मकर राशि का स्वामी ग्रह शनि होता है। भगवान
शनि देव और हनुमान जी को मकर राशि का आराध्य
देव माना जाता है।
शुभ रत्न: नीलम, शुभ रुद्राक्ष: सात मुखी रुद्राक्ष,
कुंभ राशि के जातक बेहद गुस्सैल किस्म के होते हैं।
भगवान शनि देव और हनुमान जी को कुंभ राशि का
आराध्य देव माना जाता है।
शुभ रत्न: नीलम, शुभ रुद्राक्ष: सात मुखी रुद्राक्ष,
मीन राशि के जातक बेहद शांत स्वभाव के और मेहनती
होते हैं। मीन राशि के आराध्य देव “दत्तोत्रय” होते हैं।
शुभ रत्न: पुखराज , शुभ रुद्राक्ष: पांच मुखी रुद्राक्ष।
खून की कमी को दूर करेंगे ये फल-सब्जियां, बढ़ेगी रोग प्रतिरोधक क्षमता

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‘एनीमिया’ यानी मानव के रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा मानक से कम होने की समस्या गर्भवती महिलाओं में सबसे अधिक पाया जाती है। आपको पसीना ज्यादा आता हो, पैरों और हाथों में सूजन हो, घबराहट के साथ सांस लेने में दिक्कत, थोड़ा चलने पर ज्यादा थकान होता हो या पिफर सुस्ती ज्यादा आती हो तो समझ लें कि यह हीमोग्लोबिन की कमी की वजह से ही हो रहा है। अगर आप हीमोग्लोबिन की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं तो इन उपायों को आजमाइएं। इससे हीमोग्लोबिन की कमी दूर होगी।

हीमोग्लोबिन एक प्रोटीन है जो लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cells) में पाया जाता है। ये कोशिकाएं शरीर के चारों ओर ऑक्सीजन ले जाने का कार्य करती हैं। ऑक्सीजन के परिवहन के अलावा, हीमोग्लोबिन कोशिकाओं और फेफड़ों में कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालता है। कार्बन डाइऑक्साइड व्यक्ति द्वारा निकाली जाने वाली एक गैस है। हीमोग्‍लोबिन शरीर के लिए बहुत जरूरी है, इसकी कमी से शरीर में ऑक्‍सीजन को वहन करने की क्षमता कम हो जाती है। जिसके कारण शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्‍या कम हो जाती है और एनीमिया होने की संभावना बढ़ जाती है। किडनी की ज्‍यादातर समस्‍यायें हीमोग्‍लोबिन की कमी के कारण ही होती हैं।

हीमोग्‍लोबिन की कमी (How to increase hemoglobin) को आहार के जरिये दूर किया जा सकता है। भोजन में अनेक पोषक तत्व होते हैं जो शरीर का विकास करते हैं, उसे स्वस्थ रखते हैं और शक्ति प्रदान करते हैं। हमें अपने आहार में हीमोग्लोबिन बढ़ाने वाले फल और सब्जियों को शामिल करना चाहिए। हीमोग्लोबिन को बढ़ाने के लिए संतुलित आहार, व्यायाम, भोजन में हरी सब्जियां, दालें, अनार आदि फल की जरूरत होती है। हीमोग्‍लोबिन को बढ़ाने और शरीर में खून की कमी को दूर करने के लिए निम्‍नलिखित खाद्य पदार्थों को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं।
हीमोग्‍लोबिन को बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ

1. चुकंदर:- चुकंदर से प्राप्त उच्च गुणवत्ता का लोह तत्व रक्त में हीमोग्लोबिन का निर्माण व लाल रक्तकणों की सक्रियता के लिए बेहद प्रभावशाली है। खून की कमी यानी एनीमिया की शिकार महिलाओं के लिए चुकंदर रामबाण के समान है। चुकंदर के अलावा चुकंदर की हरी पत्तियों का सेवन भी बेहद लाभदायी है। इन पत्तियों में तीन गुना लौह तत्व अधिक होता है।

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2. अंजीर का करें सेवन:- तीन से पांच अंजीर को दूध में उबालकर या अंजीर खाकर दूध पीने से हीमोग्लोबिन की मात्रा तेजी से बढती है |

3. आंवला:- विटामिन सी की कमी हो जाने के कारण भी हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है। जब शरीर में विटामिन सी की कमी होती है तो इस कारण आपका शरीर सही मात्रा में आयरन को सोख नहीं पाता। इसीलिए विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थों के सेवन से आप हीमोग्लोबिन का स्तर सही कर सकते हैं। विटामिन सी की कमी पूरी करने का सबसे अच्छा श्रोत आंवला है | इसका चटनी, मुरब्बा या रस के रूप में नियमित सेवन करना भी काफी लाभकारी है।

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4. अंगूर:- अंगूर में भरपूर मात्रा में आयरन पाया जाता है। जो शरीर में हीमोग्लोबिन बनाता है, और हीमोग्लोबिन की कमी संबंधी बीमारियों को ठीक करने में सहायक होता है। अंगूर में मौजूद विटामिन सी बढ़ती उम्र को रोकता है। यह पेट के लिए काफी फायदेमंद है।

5. सेब:- सेब एनीमिया जैसी बीमारी में लाभकारी होता है। सेब खाने से शरीर में हीमोग्लोबिन बनता है। इसके अलावा सेब में कई ऐसे विटामिन हैं जो शरीर में खून को बढ़ाते हैं। यह पेट की समस्‍याओं में लाभकारी है।

6. अमरूद:- अमरूद जितना ज्यादा पका हुआ होगा, उतना ही पौष्टिक होगा। पके अमरूद को खाने से शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी नहीं होती। इसलिए महिलाओं के लिए यह और भी लाभदायक हो जाता हैl

7. सब्जियां:- शरीर में हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जियां को अपने भोजन में शामिल करना चाहिए। हरी सब्जियों में हीमोग्लोबिन बढ़ाने वाले तत्व ज्यादा मात्रा में पाये जाते है।

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8. नारियल:- नारियल शरीर में उत्तकों, मांसपेशियों और रक्त जैसे महत्वपूर्ण द्रव्यों का निर्माण करता है, यह संक्रमण का सामना करने के लिए इन्जाइम और रोग प्रतिकारक तत्वों के विकास में सहायक होता है।

9. तुलसी:- तुलसी रक्त की कमी को कम करने के लिए रामबाण है। तुलसी के नियमित सेवन से शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ती है।

10. आम:- आम में कई तरह के पोषक तत्‍व मौजूद हैं, इसमें आयरन की अधिकता होती है, जो रक्‍त में हीमोग्‍लोबिन की कमी को दूर करते हैं। आम खाने से हमारे शरीर में रक्ति अधिक मात्रा में बनता है, एनीमिया में यह लाभकारी होता है।

11. तिल:- तिल हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा को बढ़ाता है। तिल खाने से रक्ताअल्पता की बीमारी ठीक होती है।

12. पालक:- सूखे पालक में आयरन काफी मात्रा होती है। जो शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी को ठीक करता है।

13. गुड़ :- गुड़ में अधिक खनिज लवण होते है। जो हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन बढ़ाने में मदद करता है।

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