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[ गर्मियों में क्यों पीना चाहिए मिट्टी के घड़े का पानी? जानिए बेहतरीन फायदे

1 मटके का पानी प्राकृतिक तौर पर ठंडा होता है, जबकि फ्रिज का पानी इलेक्ट्रिसिटी की मदद से। बल्कि एक बड़ा फायदा यह भी है कि इसमें बिजली की बचत भी होती है, और मटके बनाने वालों को भी लाभ होगा।

2 इसमें मृदा के गुण भी होते हैं जो पानी की अशुद्ध‍ियों को दूर करते हैं और लाभकारी मिनरल्स प्रदान करते हैं। शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त कर आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहती बनाने में यह पानी फायदेमंद होता है।

3 फ्रिज के पानी की अपेक्षा यह अधिक फायदेमंद है क्योंकि इसे पीने से कब्ज और गला खराब होने जसी समस्याएं नहीं होती। इसके अलावा यह सही मायने में शरीर को ठंडक देता है।

4 इस पानी का पीएच संतुलन सही होता है। मिट्टी के क्षारीय तत्व और पानी के तत्व मिलकर उचित पीएच बेलेंस बनाते हैं जो शरीर को किसी भी तरह की हानि से बचाते हैं और संतुलन बिगड़ने नहीं देते।

5 मिट्टी के घड़े का पानी पीना सेहत के लिए फायदेमंद है। इसका तापमान सामान्य से थोड़ा ही कम होता है जो ठंडक तो देता ही है, चयापचय या पाचन की क्रिया को बेहतर बनाने में मदद करता है। इसे पीने से शरीर में टेस्टोस्टेरॉन का स्तर भी बढ़ता है।

https://youtu.be/6tM2oMiPM4Q


[मंत्र क्या है ?क्या होती है मंत्र शक्ति ? भगवान राम ने भी शबरी को नवधाभक्ति का उपदेश देते समय कहा था,मंत्र जाप मम दृढ़ विस्वासा,आखिर क्या है ये मंत्र जप????????

मंत्र शब्दों का संचय होता है, जिससे इष्ट को प्राप्त कर सकते हैं और अनिष्ट बाधाओं को नष्ट कर सकते हैं । मंत्र इस शब्द में ‘मन्’ का तात्पर्य मन और मनन से है और ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है ।

अगले स्तर पर मंत्र अर्थात जिसके मनन से व्यक्ति को पूरे ब्रह्मांड से उसकी एकरूपता का ज्ञान प्राप्त होता है । इस स्तर पर मनन भी रुक जाता है मन का लय हो जाता है और मंत्र भी शांत हो जाता है । इस स्थिति में व्यक्ति जन्म-मृत्यु के फेरे से छूट जाता है ।

मंत्रजप के अनेक लाभ हैं, उदा. आध्यात्मिक प्रगति, शत्रु का विनाश, अलौकिक शक्ति पाना, पाप नष्ट होना और वाणी की शुद्धि।

मंत्र जपने और ईश्वर का नाम जपने में भिन्नता है । मंत्रजप करने के लिए अनेक नियमों का पालन करना पडता है; परंतु नामजप करने के लिए इसकी आवश्यकता नहीं होती । उदाहरणार्थ मंत्रजप सात्त्विक वातावरण में ही करना आवश्यक है; परंतु ईश्वर का नामजप कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है ।

मंत्रजप से जो आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है उसका विनियोग अच्छे अथवा बुरे कार्य के लिए किया जा सकता है । यह धन कमाने समान है; धन का उपयोग किस प्रकार से करना है, यह धन कमाने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है ।

मंत्र का मूल भाव होता है- मनन। मनन के लिए ही मंत्रों के जप के सही तरीके धर्मग्रंथों में उजागर है। शास्त्रों के मुताबिक मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।

यहां मंत्र जप से संबंधित कुछ जरूरी नियम और तरीके बताए जा रहे हैं, जो गुरु मंत्र हो या किसी भी देव मंत्र और उससे मनचाहे कार्य सिद्ध करने के लिए बहुत जरूरी माने गए हैं- – मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है।

  • मंत्र जप के लिए सही वक्त भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत यानी तकरीबन 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।
  • अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है।
  • मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय पर ही करें।
  • एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद बार-बार स्थान न बदलें। एक स्थान नियत कर लें। – मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है।
  • कुछ विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीव के मनकों की माला और किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए जप करने पर स्फटिक की माला का उपयोग करें।
  • किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए।
  • मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें। – मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें।
  • मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे- कोई मंदिर या घर का देवालय। – मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए। – माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली का उपयोग करें।
  • माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए। मंत्र क्या है …..

‘मंत्र’ का अर्थ शास्त्रों में ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ के रूप में बताया गया है, अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। वेदों में शब्दों के संयोजन से ऐसी ध्वनि उत्पन्न की गई है, जिससे मानव मात्र का मानसिक कल्याण हो। ‘बीज मंत्र’ किसी भी मंत्र का वह लघु रूप है, जो मंत्र के साथ उपयोग करने पर उत्प्रेरक का कार्य करता है। यहां हम यह भी निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बीज मंत्र मंत्रों के प्राण हैं या उनकी चाबी हैं

जैसे एक मंत्र-‘श्रीं’ मंत्र की ओर ध्यान दें तो इस बीज मंत्र में ‘श’ लक्ष्मी का प्रतीक है, ‘र’ धन सम्पदा का, ‘ई’ प्रतीक शक्ति का और सभी मंत्रों में प्रयुक्त ‘बिन्दु’ दुख हरण का प्रतीक है। इस तरह से हम जान पाते हैं कि एक अक्षर में ही मंत्र छुपा होता है। इसी तरह ऐं, ह्रीं, क्लीं, रं, वं आदि सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी हैं। हम यह कह सकते हैं कि बीज मंत्र वे गूढ़ मंत्र हैं, जो किसी भी देवता को प्रसन्न करने में कुंजी का कार्य करते हैं

मंत्र शब्द मन +त्र के संयोग से बना है !मन का अर्थ है सोच ,विचार ,मनन ,या चिंतन करना ! और “त्र ” का अर्थ है बचाने वाला , सब प्रकार के अनर्थ, भय से !लिंग भेद से मंत्रो का विभाजन पुरुष ,स्त्री ,तथा नपुंसक के रूप में है !पुरुष मन्त्रों के अंत में “हूं फट ” स्त्री मंत्रो के अंत में “स्वाहा ” ,तथा नपुंसक मन्त्रों के अंत में “नमः ” लगता है ! मंत्र साधना का योग से घनिष्ठ सम्बन्ध है……

मंत्रों की शक्ति तथा इनका महत्व ज्योतिष में वर्णित सभी रत्नों एवम उपायों से अधिक है।

मंत्रों के माध्यम से ऐसे बहुत से दोष बहुत हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं जो रत्नों तथा अन्य उपायों के द्वारा ठीक नहीं किए जा सकते।

ज्योतिष में रत्नों का प्रयोग किसी कुंडली में केवल शुभ असर देने वाले ग्रहों को बल प्रदान करने के लिए किया जा सकता है तथा अशुभ असर देने वाले ग्रहों के रत्न धारण करना वर्जित माना जाता है क्योंकि किसी ग्रह विशेष का रत्न धारण करने से केवल उस ग्रह की ताकत बढ़ती है, उसका स्वभाव नहीं बदलता।

इसलिए जहां एक ओर अच्छे असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनसे होने वाले लाभ भी बढ़ जाते हैं, वहीं दूसरी ओर बुरा असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनके द्वारा की जाने वाली हानि की मात्रा भी बढ़ जाती है। इसलिए किसी कुंडली में बुरा असर देने वाले ग्रहों के लिए रत्न धारण नहीं करने चाहिएं।

वहीं दूसरी ओर किसी ग्रह विशेष का मंत्र उस ग्रह की ताकत बढ़ाने के साथ-साथ उसका किसी कुंडली में बुरा स्वभाव बदलने में भी पूरी तरह से सक्षम होता है। इसलिए मंत्रों का प्रयोग किसी कुंडली में अच्छा तथा बुरा असर देने वाले दोनो ही तरह के ग्रहों के लिए किया जा सकता है।

साधारण हालात में नवग्रहों के मूल मंत्र तथा विशेष हालात में एवम विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए नवग्रहों के बीज मंत्रों तथा वेद मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।

मंत्र जाप- मंत्र जाप के द्वारा सर्वोत्तम फल प्राप्ति के लिए मंत्रों का जाप नियमित रूप से तथा अनुशासनपूर्वक करना चाहिए। वेद मंत्रों का जाप केवल उन्हीं लोगों को करना चाहिए जो पूर्ण शुद्धता एवम स्वच्छता का पालन कर सकते हैं।

किसी भी मंत्र का जाप प्रतिदिन कम से कम 108 बार जरूर करना चाहिए। सबसे पहले आप को यह जान लेना चाहिए कि आपकी कुंडली के अनुसार आपको कौन से ग्रह के मंत्र का जाप करने से सबसे अधिक लाभ हो सकता है तथा उसी ग्रह के मंत्र से आपको जाप शुरू करना चाहिए।

बीज मंत्र- एक बीजमंत्र, मंत्र का बीज होता है । यह बीज मंत्र के विज्ञान को तेजी से फैलाता है । किसी मंत्र की शक्ति उसके बीज में होती है । मंत्र का जप केवल तभी प्रभावशाली होता है जब योग्य बीज चुना जाए । बीज, मंत्र के देवता की शक्ति को जागृत करता है ।

प्रत्येक बीजमंत्र में अक्षर समूह होते हैं । उदाहरण के लिए – ॐ, ऐं,क्रीं, क्लीम्
उनको बोलते हैं बीज मंत्र |

उसका अर्थ खोजो तो समझ में नही आएगा लेकिन अंदर की शक्तियों को विकसित कर देते हैं | सब बिज मंत्रो का अपना-अपना प्रभाव होता है | जैसे ॐ कार बीज मंत्र है ऐसे २० दूसरे भी हैं |

ॐ बं ये शिवजी की पूजा में बीज मंत्र लगता है | ये बं बं…. अर्थ को जो तुम बं बं…..जो शिवजी की पूजा में करते हैं|

लेकिन बं…. उच्चारण करने से वायु प्रकोप दूर हो जाता है |
गठिया ठीक हो जाता है | शिव रात्रि के दिन सवा लाख जप करो

बं….. शब्द, गैस ट्रबल कैसी भी हो भाग जाती है |
खं…. हार्ट-टैक कभी नही होता है | हाई बी.पी., लो बी.पी. कभी नही

होता | ५० माला जप करें, तो लीवर ठीक हो जाता है | १०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का प्रभाव चला जाता है | खं शब्द |

ऐसे ही ब्रह्म परमात्मा का कं शब्द है | ब्रह्म वाचक | तो ब्रह्म परमात्मा के ३ विशेष मंत्र हैं | ॐ, खं और कं |

ऐसे ही रामजी के आगे भी एक बीज मंत्र लग जाता है – रीं रामाय नम:||

कृष्ण जी के मंत्र के आगे बीज मंत्र लग जाता है क्लीं कृष्णाय नम: ||

तो जैसे एक-एक के आगे, एक-एक के साथ शून्य लगा दो तो १० गुना हो गया |

ऐसे ही आरोग्य में भी ॐ हुं विष्णवे नम: | तो हुं बिज मंत्र है |

ॐ बिज मंत्र है | विष्णवे…, तो विष्णु भगवान का सुमिरन |

ये आरोग्य के मंत्र हैं |

महामृत्युंजय मंत्र : पूर्ण मंत्र एवम विधि

कहा जाता है कि यह मंत्र भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी असीम कृपा प्राप्त करने का माध्यम है… इस मंत्र का सवा लाख बार निरंतर जप करने से आने वाली अथवा मौजूदा बीमारियां तथा अनिष्टकारी ग्रहों का दुष्प्रभाव तो समाप्त होता ही है, इस मंत्र के माध्यम से अटल मृत्यु तक को टाला जा सकता है… हमारे चार वेदों में से एक ऋग्वेद में महामृत्युंजय मंत्र इस प्रकार दिया गया है… ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।

इस मंत्र को संपुटयुक बनाने के लिए के लिए इसका उच्चारण इस प्रकार किया जाता है…

ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।। ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ

इस मंत्र का अर्थ है : हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं… उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए… जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाए!!!

मंत्र, भगवन्नाम और गुरुमंत्र में क्या फर्क है ?

मंत्र, भगवन्नाम और गुरुमंत्र में क्या फर्क है ? कई प्रकार के मंत्र होते हैं। मनोरथपूर्ति के लिए भी कई तरह के मंत्र जपे जाते हैं और जरूरी नहीं है कि मंत्र भगवान का ही नाम हो। मानों, पाचन-तंत्र कमजोर है और खाना पचाना है तो यह मंत्र हैः

अगस्त्यं कुंभकर्णं च शनिं च वडवानलम्।
आहारपरिपाकार्थं स्मरेद भीमं च पंचमम्।।
इससे आपका खाना पचेगा, पक्की बात है।

नींद नहीं आती है तो सोने के समय ‘शुद्धे शुद्धे महायोगिनी महानिद्रे स्वाहा।‘ ऐसा जप करें तो नींद आ जायेगी। नींद की गोली ले-लेकर भी जिन्हें नींद नहीं आयी, उन्हें भी इस मंत्र से नींद आने लगी।

तो इस लोक अथवा परलोक की कुछ सुविधा पाने का मंत्र होता है। ऐसे ही शादी-विवाह का, विघ्न-बाधाओं को टालने का, कार्यसाफल्य, रोगनिवृत्ति, शत्रु-दमन व अकाल मृत्यु टालने का भी मंत्र होता है।

दूसरा होता है भगवन्नाम। मंत्र में तो जापक की श्रद्धा, मंत्र के आंदोलन और मंत्र जप की विधि काम करती है किंतु भगवन्नाम में इनके साथ-साथ भगवान की अहैतुकी करूणा-कृपा भी सहयोग करती है।

भगवन्नाम और मंत्र में यह फर्क है कि मंत्र जापक की मेहनत एवं श्रद्धा का फल लाता है तथा भगवन्नाम भगवान की कृपा से फल को सुहावना बनाता है। भगवन्नाम में भगवान की विशेष कृपा भी काम करती है।

अगर भगवन्नाम गुरु के द्वारा गुरूमंत्र के रूप में मिलता है और उसे अर्थसहित जपते हैं तो वह सारे अनर्थों की निवृत्ति तथा परम पद की प्राप्ति कराने में समर्थ होता है। गुरु जब मंत्रदीक्षा देते हैं तो अपने परब्रह्म-परमात्म स्वरूप में एकाकार होते हैं। जैसे रामकृष्ण परमहंस ने नरेन्द्र को कहाः “तुझे ईश्वर के प्रति रूचि है, ईश्वर को पाना ही है ?”

नरेन्द्र बोलेः “हाँ।” रामकृष्ण उन्हें कमरे में ले गये। बोलेः “कमीज उतार दो।” मंत्र दीक्षा देने के लिए कमीज उतरवाना कोई जरूरी नहीं है लेकिन नरेन्द्र दार्शनिक है, तार्किक है, इसमें श्रद्धा है कि नहीं देखने पड़ेगा।

कमीज उतारी। रामकृष्णदेव ने परखा कि श्रद्धा है तथा ध्यानस्थ होकर देख लिया कि कौन से केन्द्र में नरेन्द्र के मन और प्राण रहते हैं। वहाँ स्पर्श कर दिया और स्पर्श दीक्षा दे दी।

कुछ ही समय में नरेन्द्र को अलौकिक अनुभूतियाँ होने लगीं। वे घबराये और सोचा कि “इन पागल बाबा ने क्या कर दिया है ? कभी मुझे हँसी आती है, कभी रोना आता है, कभी क्रियाएँ होती हैं, कभी क्या-क्या होता है ! अब दुबारा दक्षिणेश्वर नहीं जाऊँगा।”

किंतु गुरु की स्पर्शदीक्षा का प्रभाव ऐसा कि न जाने का इरादा कराने वाले नरेन्द्र अपने को रोक नहीं पाये और स्वामी विवेकानन्द बनने तक की यात्रा कर ली। यह ईश्वरकृपा-गुरुकृपा का सुमेल है।

मरने के बाद भी तीन चीजें आपका पीछा नहीं छोड़तीं – पुण्य आपको स्वर्ग ले जाता है, पाप आपको नरक में ले जाता है और भगवन्नाम गुरुमंत्र जब तक भगवत्प्राप्ति नहीं हुई, तब तक मरने के बाद भी आपको यात्रा कराके भगवान तक ले जाता है।

यह गुरुमंत्र की महिमा है। मंत्रदीक्षा ली व जापक ने कुछ वर्ष या कुछ महीने मंत्र जपा और फिर किसी पाप से, किसी कुसंग से उसकी श्रद्धा टूटी एवं उसने मंत्र छोड़ दिया तो मंत्रत्यागात् दरिद्रता…. गुरुमंत्र का त्याग करने से दरिद्रता आती है।

देवाधीनं जगत्सर्वं मंत्राधीनश्च देवता।
‘समस्त जगत देव के अधीन है और देव मंत्र के अधीन है।’

गुरुमंत्र को साधारण न समझें। प्रीतिपूर्वक, आदरपूर्वक, अर्थसहित नियमित जपते जायें। यह आपको परमात्मदेव में, परमात्मसुख में प्रतिष्ठित कर देगा।

मंत्रसिद्धि की चार बातें जितने अंश में ठीक से पाली जायेंगी, ठीक से होंगी उतने ही अंश में उसका अलौकिक, चमत्कारिक लाभ महसूस होगा।

एक तो है शब्द-उच्चारण का ध्वनि विज्ञान। इस विज्ञान की जानकारी शिष्य को नहीं हो तो गुरु को होनी ही चाहिए। सामनेवाला भावप्रधान है, श्रद्धाप्रधान है या विचारप्रधान है यह देखना पड़ता है।

किसी की रूचि है शिवजी में और उसको मंत्र थमा दें ‘हरि ॐ’, किसी की रूचि है माता जी में और मंत्र थमा दें शिवजी का तो यह ध्वनि विज्ञान के विपरीत है। जिस देव में शिष्य की श्रद्धा प्रीति हो उनका मंत्र देने से उसको विशेष लाभ होगा। गुरुमंत्र-दीक्षा के समय मंत्र का अर्थ भी समझाने वाले को समझा देना चाहिए।

दूसरी बात हैः संयम, प्राणशक्ति, मानसिक एकाग्रता। जैसे अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी, पर्व आदि के दिनों में संसार व्यवहार करने से ज्यादा हानि होती है। बाकी के दिनों में भी एक दूसरे से शारीरिक सुखभोग करने का प्रयत्न करना यह असंयमी व्यक्ति की पहचान है।

तीसरी बात हैः उपासना की सामग्री – तुम्हारा यह भौतिक शरीर जितना स्वस्थ होगा, उतनी उपासना में बरकत आयेगी।

चौथी बात हैः भावना, श्रद्धा विश्वास और आपका लक्ष्य-उद्देश्य जितना ऊँचा होगा, उतना ही नाम-कमाई से ऊँचा फल आएगा। नाम तो भगवान का है लेकिन आप पुत्र को पास कराने के लिए जप रहे हैं तो फल छोटा आयेगा। यदि आप परमात्मप्राप्ति के उद्देश्य से भगवन्नाम मंत्र जपते हैं तो ऊँचा फल आयेगा।

दृढ़ता से लगे रहो तो अवश्य-अवश्य परमात्मप्राप्ति हो जायेगी। भगव्तप्राप्ति के उद्देश्य से किये हुए जप दोषों को मिटाते हैं। जप से धारणा भी होने लगती है, ध्यान भी होने लगता है, समाधान भी होने लगता है। परमात्म-तत्त्व का ज्ञान भी सहज उपदेशमात्र से स्थित हो जाता है।

ज्योतिष में बुध ग्रह का महत्व।

ग्रहों में बुध ग्रह का महत्व बड़ा ही व्यापक है. ज्योतिष के जानकारों की अगर मानें तो बुध ग्रह के कमजोर होने से इंसान की जिंदगी में कई सारी समस्याएं आ जाती हैं लेकिन अगर कुंडली में बुध बलवान हो तो इंसान को कई सारी खुशियों की सौगात मिल जाती है. तो आखिर बुध हमारे जीवन को किस तरह प्रभावित करता है. आइए जानते हैं…

बुध कहने को एक छोटा सा ग्रह है लेकिन ज्योतिष शास्त्र में बुध एक महत्वपूर्ण ग्रह के तौर पर गिना और देखा जाता है.

इसे देवताओं का राजकुमार भी कहते हैं. ज्योतिष में कहा गया है बुध सही तो सब शुद्ध यानि सबकुछ सही रहता है लेकिन अगर यही बुध अगर बिगड़ गया, नीच का हो गया या फिर उसने नजर फेर ली तो खुशियां बिगड़ जाती हैं.

बुध के अशुद्ध होने का असर

-तो इंसान की जिंदगी में मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है.

-इंसान बीमारियों के चंगुल में फंस जाता है. शरीर की आभा खत्म होने लगती है.

-कर्ज से परेशान रहने लगता है और आर्थिक तौर पर बुरी तरह प्रभावित रहता है.

-बुध खराब होने पर पद प्रतिष्ठा, मान सम्मान, यश बल सबसे गिरावट आने लगती है.

-इंसान शिक्षा में कमजोर हो जाता है, सूंघने की शक्ति घट जाती है, अपनी बातों के जरिए प्रभावशाली नहीं बन पाता है.

-बुद्धिवान होने के अंहकार से ग्रसित हो जाता है

इसीलिए कहा जाता है ग्रह कोई भी हो, छोटा हो बड़ा हो. उसका प्रभाव किसी भी दूसरे ग्रह से कमतर नहीं आंका जा सकता है. लेकिन अगर बुध सही हो तो जीवन में खुशियों की रौशनी फैली रहती है. दुखों का अंधकार दूर रहता है, मन प्रसन्न रहता है और जीवन में शांति बनी रहती है.

बुध के शुद्ध होने का प्रभाव

बुद्ध के शुद्ध होने से व्यक्ति सौंदर्यवान हो जाता है. उसकी आभा अनुपम हो जाती है, व्यक्ति अच्छा वक्ता होता है जिसकी बातों को लोग ध्यान से सुनना पसंद करते हैं, आमतौर पर कुंडली में बुध की स्थिति ही तय करती है कि इंसान कैसा बोलता है और कैसा व्यवहार करता है या फिर उसकी बुद्धि और व्यक्तित्व कैसा है.

बुध ग्रह से बलवान व्यक्ति अगर व्यापार करता है तो उसे खूब सफलता मिलती है. खासकर शेयर बाजार या रुपये से संबंधित कारोबार में विशेष लाभ मिलता है.

बुध आपके पक्ष में रहे तो आपको मालामाल कर देगा. आपको यश बल कीर्ति से आकाश की अनंत ऊंचाइयों तक पहुंचा देगा और अगर उसने नजर फेर ली तो आपको पाई पाई का मोहताज कर सकता है. ऐसे में हर इंसान यही चाहेगा कि उसका बुध हमेशा शुद्ध रहे. उस पर अपनी अच्छी नजर बनाए रखें. लेकिन कैसे आखिर क्या करें कि बुद्ध की शुद्ध दृष्टि ही हम पर पड़े या अगर बुध कमजोर हो तो फिर उसे कैसे मजबूत करके जीवन को संवारा जा सकता है. हर राशि के मुताबिक, हम आपको बताएंगे कि अगर बुध कमजोर हो तो किस राशि पर क्या असर पड़ सकता है और कैसे उस राशि पर बुध के कमजोर असर को कम करके जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है.

कुंडली में बुध अगर कमजोर हो तो समस्याएं व्यापक हो जाती हैं. बुध के कमजोर होने से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और वाणी में दोष आ जाता है. साथ ही बुध के कमजोर होने से इंसान की सुंदरता भी प्रभावित होती है लेकिन बुध के कमजोर होने से किन राशि पर क्या खास असर पड़ता है. चलिए अब आपको ये भी बता देते हैं…

चलिए अब आपको बताते हैं कि बुध ग्रह अगर कमजोर हो तो किस राशि पर क्या असर डालता है और उससे कैसे बचा जा सकता है, उसका असर कैसे कम किया जा सकता है…

मेष राशि: नौकरी में खूब समस्या आती है, नौकरी छूटने का भी डर रहता है, जीवन कर्जों और बीमारियों में घिर जाता है.

वृष राशि: बुध का खासा महत्व है. बिना अच्छे बुध के बिना जीवन सुखमय नहीं हो सकता.

मिथुन राशि: जीवन में संघर्ष बढ़ जाता है, नौकरी में परेशानियां हो सकती हैं.

कर्क राशि: स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है और यात्रा पर भी बुरा असर पड़ता है. चरित्र और बुद्धि बदल जाती है. जीवन में अपयश के योग बढ़ जाते हैं.

सिंह राशि: मजबूत बुध के बिना धन का योग नहीं है. एक-एक पैसे के लिए तरसना पड़ता है.

कन्या राशि: स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है और धन घटने लगता है. सौंदर्य घटने लगता है. करियर में बाधा उत्पन्न होने लगती है.

तुला राशि: भाग्य साथ नहीं देता है और मन चंचल हो जाता है. चरित्र कमजोर हो जाता है.

वृश्चिक राशि: योग्यता के बावजूद उपलब्धि नहीं मिलती. त्वचा या वाणी से संबधित विकार हो सकता है.

धनु राशि: शादी में परेशानी या शादी नहीं होगी, वैवाहिक जीवन में समस्याएं पैदा होने लगती हैं.

मकर राशि: इंसान कर्ज में डूब जाता है और नौकरी में बाधा आती है. भाग्य साथ नहीं देता है.

कुंभ राशि: बुद्धि की समस्या परेशान करती है. संतान पक्ष से समस्या के योग बन जाते हैं.

मीन राशि: जीवन में किसी भी प्रकार का सुख नहीं मिलता. वैवाहिक जीवन बरबाद हो जाता है. संपत्ति का नुकसान हो जाता है.
[ वेदों के विषय में सबसे अधिक प्रचलित अगर कोई शंका है तो वह हैं कि क्या वेदों में पशुबलि, माँसाहार आदि का विधान है? हम प्रश्न उत्तर शैली में आपकी शंका का समाधान करेंगे।

शंका 1 क्या वेदों में मांस भक्षण का विधान हैं?

उत्तर:- वेदों में मांस भक्षण का स्पष्ट निषेध किया गया हैं। अनेक वेद मन्त्रों में स्पष्ट रूप से किसी भी प्राणि को मारकर खाने का स्पष्ट निषेध किया गया हैं। जैसे

हे मनुष्यों ! जो गौ आदि पशु हैं वे कभी भी हिंसा करने योग्य नहीं हैं – यजुर्वेद १।१

जो लोग परमात्मा के सहचरी प्राणी मात्र को अपनी आत्मा का तुल्य जानते हैं अर्थात जैसे अपना हित चाहते हैं वैसे ही अन्यों में भी व्रतते हैं-यजुर्वेद ४०। ७

हे दांतों तुम चावल खाओ, जौ खाओ, उड़द खाओ और तिल खाओ। तुम्हारे लिए यही रमणीय भोज्य पदार्थों का भाग हैं । तुम किसी भी नर और मादा की कभी हिंसा मत करो।- अथर्ववेद ६।१४०।२

वह लोग जो नर और मादा, भ्रूण और अंड़ों के नाश से उपलब्ध हुए मांस को कच्चा या पकाकर खातें हैं, हमें उनका विरोध करना चाहिए- अथर्ववेद ८।६।२३

निर्दोषों को मारना निश्चित ही महापाप है, हमारे गाय, घोड़े और पुरुषों को मत मार। -अथर्ववेद १०।१।२९

इन मन्त्रों में स्पष्ट रूप से यह सन्देश दिया गया हैं कि वेदों के अनुसार मांस भक्षण निषेध हैं।
[जीवन में सुख भी आते हैं, दुख भी आते हैं। कभी सम्मान मिलता है , तो कभी ठोकरें भी मिलती हैं। ऐसा कोई व्यक्ति संसार में आज तक उत्पन्न नहीं हुआ, जिसने जीवन में दुख न भोगा हो, या ठोकर न खाई हो।
क्योंकि मनुष्य अल्पज्ञ है। इसलिए वह कहीं न कहीं , कुछ न कुछ गलती तो करता ही है, जिसके कारण उसे दुख भोगना पड़ता है। इसके अलावा अन्य लोग भी अल्पज्ञ हैं ।
वे भी कुछ न कुछ गलतियां करते हैं, कुछ अपने लिए , कुछ दूसरों के लिए। कुछ गलतियां जानबूझकर , कुछ अनजाने में । इस प्रकार से गलतियां होती ही रहती हैं। तो प्रत्येक व्यक्ति अपनी और दूसरों की गलतियों के कारण जीवन में अनेक दुख भोगता है। अपनी गलती हो, तो व्यक्ति सहन कर लेता है। पर जब दूसरे लोग उसे परेशान करते हैं, विशेष रुप से जानबूझकर तंग करते हैं , तब तो वह गुमसुम हो जाता है , मौन हो जाता है। तब उसके मौन को देखकर कुछ बुद्धिमान लोग तो यह समझ लेते हैं, कि लगता है इसने कुछ गंभीर चोट खाई है । परंतु कुछ ऐसे अज्ञानी लोग भी होते हैं , जो उसे अभिमानी समझते हैं । क्योंकि अभिमानी लोग भी प्रायः कम बोलते हैं , अधिकतर मौन रहते हैं ।
तो आप किसी व्यक्ति के मौन को देखकर जल्दी से निर्णय मत कर लीजिएगा , कि यह बहुत अभिमानी व्यक्ति है. हो सकता है, बेचारा ठोकर खाए हुए हो , इसलिए मौन हो।
: राहु के गुण दोष प्रायः शनि के समान ही होते हैं । शनि की भांति राहु काला , धीमी गति वाला , रोगप्रद , स्नायु रोग कारक , पृथकताजनक , लंबा , विदेश गमन , अधार्मिक मनुष्य , गंदगी , भ्रम , जादू , अंधकार प्रिय , भय ,कष्ट तथा त्रुटियों का कारक होता है । राहु अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के फल अचानक देता है । यह अचानक फल देने के लिए प्रसिद्ध है ।

राहु की तामसिक प्रवृत्ति के कारण वह चालाक है और व्यक्ति को भौतिकता की ओर पूर्णतया अग्रसर करता है । बहुत महत्वाकांक्षी व लालची बनाता है , जिसके लिए व्यक्ति साम-दाम-दंड-भेद की नीतियां अपनाकर जीवन में आगे बढ़ता है । इसी तरह यह व्यक्ति को भ्रमित भी रखता है। एक के बाद दूसरी इच्छाओं को जागृत करता है। इन्हीं इच्छाओं की पूर्ति हेतु वह विभिन्न धार्मिक कार्य व यात्राएं भी करता है। राहु प्रधान व्यक्ति में दिखावा करने की प्रवृत्ति विशेष रूप से पायी जाती है। राहु कार्य जाल में फंसाता है , जीवन में आकर्षण को बनाये रखता है , हार नहीं मानता है अर्थात इच्छा शक्ति को जागृत रखता है।

राहु धन भाव पंचम भाव या लाभ भाव में विराजमान होकर अचानक लाभ करवाता है बशर्ते इन भावों के स्वामी बलवान हो । राहु पर यदि कुंडली के राजयोग बनाए वाले ग्रह तथा शुभ ग्रहों की दृष्टि का प्रभाव पड़ता है तो राहु अपनी भुक्ति में उन शुभ ग्रहों के राजयोग का फल करता है ।
परंतु यदि अष्टमेश द्वादशेश आदि से युक्त दृष्ट हो तो धन हानि एवं दरिद्रता भी देता है । गलत तरीके से धन प्राप्त करने के लिए राहु ही प्रेरित करता है । जब राहु शनि के साथ विराजमान हो तो राहु में शनि के भी गुण समाहित हो जाते हैं जिसके कारण राहु की दृष्टि जहां पड़ती है वहां पृथकता आदि अनिष्ट फल देता है ।
संसार में जितने भी गलत एवं खतरनाक कार्य होते हैं जितने भी खतरनाक बीमारियां होती हैं उन सब में राहु का योगदान होता है । बिना राहु के योगदान से यह संभव नही है । राहू पर यदि शुभ प्रभाव एवं शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ जाए तो अच्छा फल भी देता है वरना समाज विरोधी और गलत कार्य करवाता है ।

राहु कभी भी पीड़ित नहीं होता है , बल्कि यह सभी ग्रहों को पीड़ित करता है । सूर्य सभी ग्रहों का राजा है सभी को प्रकाश देता है परंतु राहु की दृष्टि सूर्य पर पड़ जाए या राहु सूर्य के साथ बैठ जाए सूर्य भी पीड़ित हो जाता है । सूर्य पर शनि राहु की दृष्टि या युति के कारण ही पितृदोष बनता है । राहु सबसे ज्यादा पीड़ित सूर्य , चंद्रमा ,मंगल एवं गुरु को करता है । इन ग्रहों के साथ संबंध बनाकर कई प्रकार के रोग एवं परेशानी देता है ।
राहु किसी भी राशि का स्वामी नहीं होता है परंतु मिथुन राशि में उच्च का होता है और धनु राशि में नीच का माना जाता है । इसलिए अपने जीवन में होने वाले किसी भी कमी को पूरा करने के लिए राहु केतु को प्रबल करने के बजाय सूर्य , चंद्रमा , मंगल , बुध , गुरु , शुक्र , शनि इनमें से जो उस कमी वाले भाव के स्वामी हैं उन्हें प्रबल करना चाहिए ।

यदि राहु किसी शुभ ग्रह या किसी भाव को पीड़ित ना कर रहा हो एवं राहु पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तब बहुत अच्छे तरीके से विशेषण करने के बाद ही राहु से संबंधित रत्न धारण करना चाहिए ।

राहु जिन जिन ग्रहों के साथ संबंध बनाता है उन ग्रहों से संबंधित होने वाली बीमारी देता है ।
राहु से संबंधित बीमारी – डर , सर्पदंश , जहर फैलना , दवा से संक्रमण , पागलपन , मानसिक रोग , स्मृति नाश , दुर्घटना , शोक , आंखों के नीचे काले घेरे , नशेड़ी , मोटापा , वायु रोग , भूत , प्रेत , डायन , ऊपरी बाधा , कैंसर इत्यादि ।

🛡️राहु से होने वाले परेशानी से बचने के लिए राहु का दान एवं उपाय शनिवार या बुधवार को करना चाहिए । ( कुष्ठ रोगी या सफाई कर्मी को ) ।
दान – नीले काले वस्त्र , ( यव ) जौ , काली उड़द , जटा वाला नारियल , चाय पत्ती , तंबाकू , मूली , कोयला इत्यादि।
उपाय – कुष्ठ रोगी को भोजन कराएं जिसमें काले उड़द की एक सामग्री अवश्य होनी चाहिए । जौ कच्चे दूध से धोकर नदी में विसर्जित करें या पंछियों को खिलाएं । घर में या छत पर किसी भी प्रकार का बंद बिजली का सामान या कबाड़ ना रखें । पारद शिवलिंग स्थापित करके रुद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र का स्वयं जाप करें । रुद्राष्टाध्यायी ( पांचवें अध्याय के 16 मंत्र ) का पाठ करते हुए पारद शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करें ।
केतु के गुण दोष प्रायः मंगल के समान होते हैं । केतु भी मंगल की भांति अपने युति तथा दृष्टि के प्रभाव में आने वाले पदार्थों को चोट अथवा क्षति पहुंचाता है । राहु के सामान केतु भी अचानक फल देता है । मंगल की भांति यह भी बुद्धि एवं प्रभाव में तीव्र होता है । केतु शब्द का अर्थ वेद आदि ग्रंथों में झंडे के अर्थ में आया है अर्थात ऊंचाई क, उच्चता का , महानता के प्राचुर्य का , उत्कृष्टता का प्रतीक है । अतः केतु भी अपने भीतर उत्कृष्टता आदि गुण रखता है ।💠 केतु ने एक विशेष गुण यह है कि किसी स्वक्षेत्री ग्रह के साथ जब विराजमान होता है तो उसके फल में विशेष वृद्धि करता है । राहु से सर्वदा उल्टा होने से केतु में शुभता के कारण मोक्ष का कारक माना गया है।
केतु को भले ही शुभ ग्रह माना जाए परंतु इसपर राहु की दृष्टि भी होती है जिसके कारण राहु का प्रभाव भी समाहित हो जाता है । केतु की दृष्टि जहां भी पड़ती है चोट लगने की या आग लगने की संभावना भी रहती है ( यदि इसके साथ सूर्य एवं मंगल की भी युति हो तो )।
राहु की भांति केतु कभी पीड़ित नहीं होता बल्कि यह सभी ग्रहों को पीड़ित करता है या दूसरे ग्रहों के साथ युति बना कर उनके अंदर चोट लगने एवं आग लगने की संभावनाओं को बढ़ा देता है ।

केतु से संबंधित बीमारियां – चर्म रोग , फोड़े फुंशी , कुष्ट रोग , त्वचा रोग , आग से दुर्घटना , ऊंचाई से गिरना , शरीर पर चोट के निशान या दाग , मशीन से दुर्घटना , कुत्ता काटना इत्यादि ।

फलादेश के हिसाब से केतु यदि समस्या उत्पन्न कर रहा हो तो दान एवं उपाय करना चाहिए ।( मंगलवार या शनिवार को कुष्ठ रोगी या सफाईकर्मी को )

मंत्र – ।। ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः ।।

दान – चितकबरा कंबल , भूरा वस्त्र , सतनाजा , नारियल , काला – सफेद तिल , तिल का तेल , बकरा इत्यादि ।
उपाय – असगंध की जड़ धारण करें । काले एवं सफेद तिल के लड्डू गणेश जी को चढ़ा कर बांटें । कुत्ते को दूध एवं ब्रेड खिलाएं , प्रतिदिन कुत्ते को रोटी खिलाएं । सतनाजे की रोटी कुत्ते को खिलाएं ।
[🚩जन्म/लग्न कुंडली में बनने वाले अनूभूत-सिद्ध प्रबल ५३ विशेष राजयोग
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०१- मेष लग्न हो और लग्न में सुर्य हो गुरु ९ वे भाव में , मंगल १० वे भाव में, तथा शनि ११ वे भाव में होतो, प्रबल राजयोग होता है।

०२- मेष लग्न हो, सूर्य लग्न में मेष राशि का गुरु ४ थे भाव में कर्क राशि का शनि ७ वे भाव में तुला राशि का होतो, प्रबल राजयोग होगा।

०३- लग्न में सूर्य हो, तथा १० वे भाव में मंगल होतो, प्रबल राजयोग होगा।

०४- लग्न में सूर्य तथा चतुर्थ भाव में गुरु+चंद्रमा होतो, प्रबल राजयोग होगा।

०५- लग्न में सूर्य, चतुर्थ भाव में चंद्रमा तथा ७ वे भाव में शनि होतो प्रबल राजयोग होता है।

०६- मेष लग्न हो, और लग्न में उच्च राशि मेष का सूर्य हो, चंद्रमा ४ थे भाव में, तथा शनि ७ वे भाव में तुला राशि का होतो, प्रबल राजयोग होता है।

०७- मेष लग्न की कुंडली में लग्न में सूर्य मेष राशि का, ४ थे भाव में स्वराशि का चंद्रमा तथा १० वे भाव में उच्च राशि मकर का मंगल होतो , उच्च स्तरीय प्रबल राजयोग होगा।

०८- मेष लग्न हो और लग्न में सूर्य, २ रे भाव में चंद्रमा, ५ वे भाव में गुरु हो, ८ वे भाव में मंगल हो, तथा ११ वे भाव में शनि होतो, प्रबल राजयोग होता है।

०९- मेष लग्न हो और लग्न में सूर्य,३ रे भाव में बुध , ५ वे भाव में गुरु तथा ८ वे भाव में मंगल होतो, प्रबल राजयोग होता है।

१०- वर्षभ लग्न में सूर्य और बुध की युति ९ वे भाव में हो, तथा २ रे भाव में बलवान शनि हो साथ ही ११ वे भाव में शुक्र होतो, राजयोग होता है।

११- यदि वर्षभ लग्न हो और लग्न में उच्च राशि का चंद्रमा हो, दुसरे भाव में स्वराशी का बुध हो, ४ थे भाव में सिंह राशि का सूर्य हो तथा ७ वे भाव में स्वराशी का मंगल होतो यह उत्तम राजयोग होता है।

१२- यदि वर्षभ लग्न हो और लग्न में उच्च राशि का चंद्रमा , ५ वे भाव में सूर्य+बुध की युति हो ६ ठे भाव में शुक्र हो, तथा ३ रे भाव में गुरु हो , तथा ७ वे भाव में मंगल होतो यह प्रबल राजयोग होता है।

१३- यदि वर्षभ लग्न हो और लग्न में चंद्रमा, ७ वे भाव में गुरु, १० वे भाव में शनि तथा ४ थे भाव में सूर्य होतो , संघर्ष के बाद राजयोग का फल मिलता है।

१४- यदि लग्न में चंद्रमा , २ रे भाव में गुरु हो, ६ थे भाव में शनि तथा अन्य ग्रह ११ वे भाव में होतो, जातक को राजयोग का फल मिलता है।

१५- यदि मिथुन लग्न हो और ९ वे भाव में शनि हो तथा ११ वे भाव में सूर्य+बुध हो तो, राजयोग होता है।

१६- यदि मिथुन लग्न हो और ९ वे भाव में शनि हो तथा ११ वे भाव में चन्द्र+मंगल की युति होतो, यह एक राजयोग होता है।

१७- कर्क लग्न हो और ११ वे भाव में बुध, चंद्रमा, व शुक्र तीनों की युति हो तथा गुरु लग्न में हो तथा १० भाव वे में सूर्य हो तो , यह एक प्रबल राजयोग होता है।

१८- कर्क लग्न हो और लग्न भाव में गुरु हो, २ रे भाव में सूर्य तथा ७ वे भाव में मंगल होतो यह एक राजयोग होगा।

१९- यदि कर्क लग्न हो और लग्न में गुरु+चन्द्र की युति तथा १० वे भाव में सूर्य हो तो यह एक प्रबल राजयोग होगा।

२०- यदि कर्क लग्न हो और सूर्य मेष राशि का, गुरु कर्क राशि का शनि तुला राशि का तथा मंगल मकर राशि का होतो, जातक उच्च स्तरीय सरकारी पद पाता है।

२१- जिस जातक का कर्क लग्न हो और लग्न में गुरु उच्च राशि कर्क का हो, शनि चतुर्थ भाव में तुला राशि का हो, तथा सूर्य मेष राशि का १० वे भाव में होतो, ये उच्च स्तरीय राजयोग होगा।

२२- लग्न में गुरु कर्क राशि का १० वे भाव में मेष राशी का सूर्य, तथा ७ वे भाव में उच्च राशि मकर का होतो, प्रबल राजयोग होगा।

२३- कर्क लग्न में गुरु, ४ थे भाव में तुला का शनि तथा ७ वे भाव में मकर का मंगल हो तो यह भी राजयोग होगा।

२४- कर्क लग्न हो तथा लग्न में ही गुरु +चंद्रमा की युति हो तथा शनि ४ थे भाव में तुला राशी का हो तो, यह भी एक राजयोग है।

२५- कर्क लग्न हो तथा लग्न में चंद्रमा +गुरु की युति हो तथा ७ वे भाव में मकर राशि का मंगल तो यह प्रबल राजयोग होता है।

२६- कर्क लग्न हो और लग्न में उच्च राशि का गुरु हो तथा १० वे भाव में मेष राशि का मंगल हो तो, प्रबल राजयोग होगा।

२७- यदि कर्क लग्न हो और १० वे भाव में सूर्य+मंगल की युति तथा ९ वे भाव में गुरु+चन्द्रमा की युति हो तो प्रबल राजयोग होता है।

२८- कन्या लग्न हो और लग्न में बुध हो तथा ५ वे भाव में मंगल+शनि हो, तथा ४ थे भाव में गुरु+शुक्र+चंद्रमा की युति होतो यह प्रबल योग होता है।

२९- तुला लग्न हो तथा लग्न में शनि हो, ७ वे भाव सूर्य, तथा १० वे भाव में गुरु होतो यह प्रबल राजयोग होता है किन्तु काफी संघर्ष के बाद सुख मिलता है।

३०- तुला लग्न हो लग्न में शनि , चतुर्थ भाव में मंगल तथा ७ वे भाव सूर्य होतो , यह पब्ल राज योग होता है।

३१- तुला लग्न हो और ४ थे भाव में मंगल , १० वे भाव में गुरु हो तथा लग्न में शनि होतो, यह एक राज योग होगा।

३२- तुला लग्न हो और लग्न में शनि , ७ वे भाव में सूर्य हो तथा १० वे भाव में चंद्रमा होतो. भरपूर संघर्ष के बाद राजयोग होगा।

३३- लग्न में शनि तथा १० वे भाव में गुरु +चंद्रमा की युति हो तथा तुला लग्न होतो , यह एक राज योग होगा।

३४- तुला लग्न हो लग्न में शनि , ४ थे भाव में मगल तथा १० वे भाव में चंद्रमा होतो , बहुत मानसिक कष्ट के साथ ही यह एक प्रबल राजयोग है।

३५- तुला लग्न में शनि तथा १० वे भाव में स्वराशी का चंद्रमा होतो जातक जीवन में अवश्य ही उच्च पद प्राप्त करता है किन्तु दाम्पत्य जीवन बहुत कष्टमय होगा।

३६- यदि तुला लग्न हो और लग्न में शुक्र+शनि की युति तथा ७ वे भाव में मंगल हो, १० वे भाव में गुरु तथा १२ वे भाव में सूर्य +बुध की युति हो यह प्रबल राजयोग होता😢 है।

३७- तुला लग्न में शनि लग्न में उच्च राशि का ४ थे भाव में उच्च राशि मकर का मंगल तथा १० वे भाव में कर्क राशि का गुरु हो तो प्रबलतम राजयोग होता है।

३८- तुला लग्न में शनि ७ वे भाव में सूर्य, १० वे भाव गुरु हो तो, यह एक राजयोग होगा।

३९- मकर लग्न हो और ५ वे भाव में उच्च राशि का चंद्रमा हो, ९ वे भाव में गुरु तथा लग्न में बुध + शुक्र हो तो यह राजयोग होता है।

४०- मकर लग्न हो और ५ वे भाव में उच्च राशि का चंद्रमा हो और उसको गुरु देखता हो , साथ ही लग्न में बुध+शुक्र लग्न में हो तो यह एक राजयोग है।

४१- मकर लग्न हो और लग्न में मंगल तथा ४ थे भाव में सूर्य, व ७ वे भाव में गुरु हो तो यह एक विशेष राजयोग होगा।

४२- मकर लग्न में मंगल, ४ थे भाव में सूर्य, तथा १० वे भाव में शनी हो तो, प्रबल😢😢👍😢☺ राजयोग होगा।

४३- मकर लग्न में मंगल हो, ७ वे भाव में गुरु तथा १० वे भाव में शनि होतो, यह एक राजयोग होगा।

४४- यदि मकर लग्न में मंगल तथा ७ वे भाव में गुरु होतो यह भी राजयोग होगा।

४५- मकर लग्न में मंगल, तथा ७ वे भाव में चंद्रमा तथा ४ थे भाव में उच्च का सूर्य हो तो, यह प्रबल राजयोग होगा।

४६- मकर लग्न में लग्न में मंगल , १० वे भाव में शनि , तथा ७ वे भाव में चन्द्रमा होतो यह राज योग होता है।

४७- मकर लग्न में मंगल , तथा ७ वे भाव में चंद्रमा होतो, यह राजयोग होता है।

४८- मकर लग्न में मंगल+चंद्रमा हो तथा १२ वे भाव में सूर्य होतो, यह भी राजयोग होता है।

४९- मकर लग्न में शनि, ३ रे भाव में चंद्रमा, ६ थे भाव में मंगल , ९ वे भाव में बुध तथा १२ वे भाव में गुरु होतो, राजयोग होता है।

५०- मकर लग्न में शनि, ४ थे भाव में मंगल, ७ वे भाव में चंद्रमा, ८ वे भाव में सूर्य, ९ वे भाव में बुध, १० वे भाव में शुक्र होतो, प्रबल राजयोग होता है।

५१- कुम्भ लग्न हो और ४ थे भाव में शुक्र, होतो, यह एक राजयोग होता है।

५२- कुम्भ लग्न में शनि, ५ वे भाव में बुध, ७ वे भाव गुरु, १० वे भाव में मंगल होतो, यह राजयोग होता है।

५३- मीन लग्न में ३ रे भाव में चंद्रमा, ६ ठे भाव में सूर्य, ७ वे भाव में बुध, ८ वे भाव में शुक्र, १० वे भाव में गुरु, ११ वे भाव में मंगल तथा १२ भाव में शनि होतो, यह एक विशेष राजयोग होता है।

                     *-हरिःओउःम्🔔*

[: जितनी ऊर्जा, जितनी शक्तियाँ इंसानो में है, दुर्लभ ही किसी में हो शायद? अपनी ऊर्जा अपनी शक्तियों का भरपूर लाभ उठायें। उम्र तो बस माँ की कोख में बढ़ती है,बाकी पूरी जिंदगी में तो उम्र घटती ही है।इसलिए जिंदगी की वेलेडिटी भले कम हो,लेकिन इंसानियत का बैलेंस कम नहीं होना चाहिये।और एक बात पानी की बून्द का सम्मान करें, चाहे वो आसमान से टपके या आँखों से। आसमान से टपकनेवाली हरियाली देती है पर आँखों से टपकनेवाली बुँदे एहसास कराती है कोई है अपना इस जहाँन में। कदर करो ऐसे अपनों की। “विकल्प” बहुत है बिखरने के लिए,”सकल्प” एक ही काफ़ी है संवरने के लिए….।

जय श्री कृष्णा🙏🙏
[ बरगद एक लगाइये,पीपल रोपें पाँच।
घरघर नीम लगाइये,यही पुरातन साँच।।
यही पुरातन साँच,- आज सब मान रहे हैं।
भाग जाय प्रदूषण सभी अब जान रहे हैं।।
विश्वताप मिट जाये होय हर जन मन गदगद।
धरती पर त्रिदेव हैं- नीम पीपल औ बरगद।।

आप को लगेगा अजीब बकवास है किन्तु यह सत्य है.. .

पिछले 68 सालों में पीपल, बरगद और नीम के पेडों को सरकारी स्तर पर लगाना बन्द किया गया है

पीपल कार्बन डाई ऑक्साइड का 100% एबजार्बर है, बरगद 80% और नीम 75 %

अब सरकार ने इन पेड़ों से दूरी बना ली तथा इसके बदले विदेशी यूकेलिप्टस को लगाना शुरू कर दिया जो जमीन को जल विहीन कर देता है

आज हर जगह यूकेलिप्टस, गुलमोहर और अन्य सजावटी पेड़ो ने ले ली है

अब जब वायुमण्डल में रिफ्रेशर ही नही रहेगा तो गर्मी तो बढ़ेगी ही और जब गर्मी बढ़ेगी तो जल भाप बनकर उड़ेगा ही

हर 500 मीटर की दूरी पर एक पीपल का पेड़ लगाये तो आने वाले कुछ साल भर बाद प्रदूषण मुक्त हिन्दुस्तान होगा

वैसे आपको एक और जानकारी दे दी जाए
पीपल के पत्ते का फलक अधिक और डंठल पतला होता है जिसकी वजह शांत मौसम में भी पत्ते हिलते रहते हैं और स्वच्छ ऑक्सीजन देते रहते हैं।
वैसे भी पीपल को वृक्षों का राजा कहते है। इसकी वंदना में एक श्लोक देखिए-
मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु,
सखा शंकरमेवच।
पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम,
वृक्षराज नमस्तुते।
अब करने योग्य कार्य

*इन जीवनदायी पेड़ों को ज्यादा से ज्यादा लगायें तथा यूकेलिप्टस पर बैन लगाया
[ तुलसीदास जी द्वारा बताए गये ये सात गुण आपको हर पीड़ा से बचा सकतें हैं।
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व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में अपने स्वभाव के अनुरूप ही कार्य करता है।
जैसे संकट के समय वह दुखी होता है, खतरे की स्थिति हो तो वो डरता हे और परिस्थितियां उसके अनुकूल हों तो स्वाभाविक है वो सुखी और संतुष्ट रहेगा।

हर कोई व्यक्ति अपने जीवन में खुश रहना चाहता है, वह अपने जीवन को शांति से व्यतीत करना चाहता है। दुख-परेशानियां अपने जीवन में कोई नहीं चाहता कि दुःख का समय उसके सामने आएं। लेकिन उसके चाहने या ना चाहने से कुछ नहीं होता। खुशियां या आनंद लेना तो अच्छी बात है लेकिन दुःख और परेशानियों का शोक करने से हम और कमजोर होते जाते हैं।

शोक से दूर होने के लिए हमारे शास्त्र और पौराणिक ग्रंथ हमें आत्मबल प्रदान करने का काम करते हैं और उनमें अंकित आदर्शों का हमें अनुशरण करना चाहिए।

गोस्वामी तुलसीदास जी के एक दोहे में आपको अपनी हर समस्या का समाधान मिल सकता है।
इसमें 7 ऐसे गुणों की बात कही गई है जो हर व्यक्ति के चरित्र में उपस्थित हैं व्यक्ति को किसी भी संकट से घबराना नहीं चाहिए। विशवास करें की कोई भी पीड़ा उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकती।

दोहा इस प्रकार है…
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या, विनय, विवेक। साहस सुकृति सुसत्याव्रत राम भरोसे एक।।

भावार्थ…
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखित इस दोहे में कहा गया है कि जिस व्यक्ति के पास विद्या, विनय, विवेक, साहस, सदकर्म, सच और ईश्वर का साथ होता है उसे किसी भी परस्थिति में भयभीत नहीं होना चाहिए।

आइए जानें कैसे ये गुण व्यक्ति के लिए रक्षक बन सकते हैं?

1- पहला गुण हैं विद्या यानि ज्ञान, जिसके पास यह विशेष गुण होता है वह अपनी बुद्धिमता से किसी भी कष्ट से मुक्त होने का उपाय निकाल लेता है। उसे कोई भी दुःख हरा नहीं पाता है। वो दुखों का समाधान निकालने में सक्षम होता है।

2- दूसरा गुण है विनय यानि अच्छा व्यवहार, विनम्रता का गुण। यदि आप दूसरों के लिए विनम्र रहते हैं तो शत्रु भी आपके मित्र बन जाते हैं। आपको कष्ट में डालने से पहले या आपके लिए षड्यंत्र करने से पहले वो दस बार सोचता है। साथ ही यदि आप किसी आपदा में हैं भी तो आपका ये गुण अन्य लोगों को आपकी सहायता करने के लिए विवश कर देता है।

3- तीसरा गुण हे विवेक या बुद्धि, जो व्यक्ति सोचने-समझने की शक्ति रखता है, जिसमें यह क्षमता है वह कभी-भी अपने लिए विपदा खड़ी नहीं होने देता। वह अपनी बुद्धिमता से पहले से ही परस्थितियों का अनुमान लगाकर उससे मुक्त होने का प्रयत्न करने लगता है, इसलिए उसे कोई समस्या घेर नहीं पाती।

4- चोथा गुण हे साहस, यह एकमात्र ऐसा गुण है जो किसी भी व्यक्ति को कठिन से कठिन परिस्थिति में भी हार मानने नहीं देता। इसके आधार पर आप बड़ी से बड़ी कठिनाइयों को पार कर लेता हैं।

5- पांचवा गुण हे सुकृति यानि अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति को सदा शुभ फल मिलता है, ईश्वर भी उसका साथ देता है। जिसने कभी किसी का बुरा नहीं किया, जो सदा दूसरों के हित की सोचता है, उसे इसका शुभ परिणाम भले देर ही सही पर मिलता अवश्य है।

6- छठवा गुण हे सुसत्याव्रत यानि सच बोलने की आदत यह आदत व्यक्ति को सहज रूपसे खुला रखती है, उसके पास गुप्त रखने के लिए कुछ नहीं होता, इसलिए वह दुनिया के सामने जैसा है वैसा ही रहता है। यह उसके लिए प्रतिकूल परिस्थितियां नहीं बनने देता और अनेक प्रकार के दुखों से पहले ही बचा लेता है।

7- सातवा गुण हे राम भरोसे एक यानी ईश्वर के प्रति आस्था जिसे भी ईश्वर के प्रति आस्था हे उसको यह आदत हर मुश्किल से बचाती है। जब आप किसी ऐसी स्थिति में हों जहां से निकलना मुश्किल पड़ जाए तो सिर्फ ईश्वर के प्रति आपका विश्वास ही उसको बचाता है और उसे सही मार्ग पर ले जाता है।📚🖍🙏🙌

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[: व्यक्तित्व का विकास।
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अगर आप अपने जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना चाहते है, तो यह लेख अवश्य पढ़ें और समझें – हेमन्त मुनि

प्रत्येक व्यक्तित्व का विकास आवश्यक है। सभी एक केन्द्र में मिल जायेंगे। ‘ कल्पना प्रेरणा और समस्त विचार का आधार है। सभी पैगम्बर, कवि और अन्वेषक महती कल्पना-शक्ति सम्पन्न थे। प्रकृति की व्याख्या हमारे भीतर है; पत्थर बाहर गिरता है, लेकिन गुरुत्वाकर्षण का नियम हमारे भीतर है, बाहर नहीं। जो अति आहार करते हैं, जो उपवास करते हैं, जो अत्यधिक सोते हैं, वे योगी नहीं हो सकते।

अज्ञान, चंचलता, ईर्ष्या, आलस्य और अतिशय आसक्ति योग सिद्धि के महान शत्रु हैं।

योगी के लिए तीन बड़ी आवश्यकताएं हैं-

प्रथम- पवित्रता (Purity) : शारीरिक और मानसिक पवित्रता, प्रत्येक प्रकार के मलीनता तथा मन को पतन की ओर ढकेलने वाली सभी बातों का परित्याग आवश्यक है।

द्वितीय –धैर्य (Patience) : प्रारंभ में आश्चर्यजनक दृश्य प्रकट होंगे, पर बाद में वे सब अन्तर्हित हो जायेंगे। यह सबसे कठिन समय है। पर दृढ रहो, यदि धैर्य रखोगे तो अंत में सिद्धि सुनिश्चित है।

तृतीय- अध्यवसाय (Perseverance) : सुख-दुःख, स्वास्थ्य-अस्वास्थ्य सभी दशाओं में साधना में एक दिन भी नागा न करो।

साधना का सर्वोत्तम समय दिन और रात की संधि का समय है। यह हमारे शरीर की हलचल के शान्त रहने का समय है; दो अवस्थाओं के मध्य का शून्य-स्थल है। यदि इस समय न हो सके, तो उठने के बाद और सोने के पूर्व अभ्यास करो। नित्य स्नान -शरीर को अधिक से अधिक स्वच्छ रखना आवश्यक है।

स्नान के पश्चात बैठ जाओ। आसन दृढ रखो अर्थात ऐसी भावना करो कि तुम चट्टान की भाँति दृढ हो, कि तुम्हें कुछ भी विचलित करने में समर्थ नहीं है। कंधे, सिर और कमर एक सीध में रखो, पर मेरुदण्ड के उपर जोर न डालो, सारी क्रियाएं इसीके सहारे होती हैं, अतः इसको क्षति पहुँचाने वाला कोई कार्य नहीं होना चाहिये।

अब अपने पैर की अँगुलियों से प्रारंभ करके अपने शरीर के प्रत्येक अंग की स्थिरता की भावना करो। अपने उस अंग को मानसिक आँखों से देखो (योग-निद्रा?), और यदि चाहो तो प्रत्येक का स्पर्श भी करो। प्रत्येक को पूर्ण अर्थात उसमें कोई विकार नहीं है, सोचते हुए धीरे धीरे उपर चल कर सिर तक जाओ। तब समस्त शरीर के पूर्ण होने के भाव का चिन्तन करो, यह सोचते हुए कि मुझे साथ का साक्षात्कार के लिये ही भगवान ने मुझे इसे एक साधन के रूप में दिया है। यह वह नौका है, जिस पर सवार होकर हमें भवसागर पार करके अनन्त सत्य के तट पर पहुँचना है।

इस क्रिया के पश्चात अपनी नासिका के दोनों छिद्रों से एक दीर्घ श्वास लो फिर उसे बाहर छोड़ दो। इसके पश्चात् जितनी देर तक सरलता पूर्वक बिना श्वास लिए रुक सको, रहो। इस प्रकार के चार प्राणायाम करो। और फिर स्वाभाविक रूप से श्वास लो और भगवान से ज्ञान के प्रकाश के लिए प्रार्थना करो। “I meditate on the glory of that being who created this universe; may he illuminate my mind.” ‘ मैं उस सत्ता की महिमा का चिंतन करता हूँ, जिसने विश्व-ब्रह्माण्ड की रचना की है, वह मेरे मन को प्रबुद्ध करे।”-(गायत्री-मंत्र) बैठो और दस-पन्द्रह मिनट इस भाव का ध्यान करो।

अपनी अनुभूतियों को अपने गुरु के अतिरिक्त और किसी को न बताओ !

यथासम्भव कम से कम बात करो।

अपना चिन्तन इष्टदेव के सदगुणों पर एकाग्र करो; हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। पवित्र चिन्तन हमें अपनी समस्त मलिनताओं को भस्म करने में सहायता देता है।

जो योगी नहीं है, वह अपने मन का गुलाम है !

मुक्ति-लाभ हेतु एक एक करके सभी बन्धन काटने होंगे।

🌹 स्वामी विवेकानंद🌹

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तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु !

यजुर्वेद संहिता (अध्याय 34 मंत्र 1-6) में एक मंत्र आता है जिसका चौथा पाद है — ” तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु। “

अर्थात् मेरे मन का संकल्प शिव हो, शुभ हो, कल्याणकारी हो।
उसमें किसी व्यक्ति के प्रति पाप की भावना पैदा न हो।

मनीषियों का भी यही मत है कि मन के शुभ विचारों से सब प्रकार के घाव भरे जाते हैं। जैसे वर्षा के जल से अकालग्रस्त क्षेत्र नंदन वन की तरह लहलहाते हैं, वैसे ही मन की शक्ति में एकाग्रता, प्रसन्नता और शान्ति प्राप्त होती है।

प्रख्यात अमरीकी लेखक स्वेट मार्डन ने कहा है — ” यदि आप अस्वस्थ विचारों को मन में स्थान देंगे तो शरीर पर उनका बुरा प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा। ‘ जैसा बिम्ब में होगा वैसा ही प्रतिबिम्ब होगा। “

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#मनुष्य की #बेहोशी

मनुष्य बेहोशी में क्यों जी रहा है ,क्या चीज उसे बेहोश किये हुए है ,और होश में वह कैसे आ सकता है?

जीवन एक समझ है ,समझने की बात ज्यादा है ,करने की बहुत कम है ,जो भी मनुष्य जहाँ भी है ,जिस परिस्थिति में है ,वह अपने आस -पास तुलना करता रहता है ! कोई पद में आगे है ,तो कोई धन में आगे है ,कोई ज्ञान में आगे है ,तो कोई कला में आगे है ,कोई यश में आगे है ! हजारो दिशाओ में हजारो लोग उससे आगे है यह दिखाई पड़ता ही रहता है ! यह मन की तुलनात्मक प्रवृत्ति है , जिसके कारण मनुष्य का मन घायल हो जाता है और तब एक पागल दौड़ शुरू हो जाती है “शक्ति की खोज “की दौड़ सारी दुनिया एक खोज में संलग्न है वह है “शक्ति की खोज ” अब जिस मनुष्य का मन जिस चीज से घायल है, वह उसी की तलाश में भटकता रहता है ,कोई धन की तलाश में लगा है ,तो कोई पद की तलाश में लगा है ,तो कोई ज्ञान की खोज में लगा है ! हर आदमी किसी न किसी चीज की तलाश में लगा हुआ है ! शक्ति की खोज की तलाश में मनुष्य अपने से बाहर निकल आया है , जिसके कारण उसके भीतर एक गहरी बेहोशी है वह उसी बेहोशी में जी रहा है , शक्ति की खोज उसे बेहोश किये हुए है “होश में कैसे आ सकते है , जिसके पीछे बेहोश है ,उसे छोड़ना पड़ेगा ,शक्ति की खोज छोड़ना पड़ेगा मन तब तक खोजता रहता है ,जब तक वह असहाय है ,अपने आपको नही देख लेता है “मनुष्य अकेला ,अयोग्य व असहाय है ” जीवन का यही सास्वत सत्य है ,मनुष्य असहाय है ,क्या हमारे बस में है ,कब स्वास रुक जाएगी ,हमारा कोई बस नही है मन की आपा -धापी छोड़कर ,विश्राम में रुक कर जीवन का निरिक्षण करने पर ,व्यर्थ्य की भाग -दौड़ रुकने लगेगी और जो ध्यान चेतना बाहर की तरफ लगा हुआ है ,वह भीतर की तरफ लौटने लगेगा जिससे होश का जन्म होने लगेगा। मैं कौन हूं, मैं यहा क्यो हु जब ये प्रश्न अपने आपसे करोगे तो सत्य ज्ञात होगा ध्यान की गहराइयों में जाकर अपने आपको पहचानना होगा।
[💥कफ और खांसी…. सिर्फ दस मिनट में कफ और खांसी से पाये छुटकारा – How to Get Rid of a Cough Fast in 10 Minutes💥

दोस्तों आज हम बात करेंगे की 10 min में खासी Cough कैसे से कैसे छुटकारा पा सकते है | जो बहुत ही कारगर हे | अगर आपके गले और छाती में कफ (Cough) जमा हुआ है , खासी हो रही हे, नाक बहना तो ये सब जुकाम के लक्षण हे | सर्दी में खासी जुकाम की समस्या इतनी नहीं होती जितनी मौसम बदलने पर होती है | ऐसे में कई बार बिना सोचे समझे हम डॉक्टर से दवाई ले आते है जिनसे दिक्कत काम होने के बजाये और बढ़ जाती है | तो दोस्तों आज हम यहाँ एक ऐसा नुस्खा सीखेंगे जिससे सिर्फ 10 min में इन सब चीज़ो से छुटकारा पा सकते है |

मुद्रा के लिए आपको अपने बाये हाथ का अंगूठा सीधा खड़ा कर दायें हाथ और बाए हाथ को मिला कर आपस में जकड ले फिर अपनी बाये हाथ की इंडेक्स फिंगर से और अंगूठे से दये हाथ के अंगूठे को पकड़ ले
|

हमारे अंगूठे में अग्नि तत्व होता है इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर में गर्मी बढ़ने लगती हे | शरीर में जमा कफ(Cough) सूख कर निकल जाता हे | सर्दी,जुकाम ,खासी में ये बहुत लाभकारी होता है कभी यही सर्दी के दिनों में कफ(Cough) हो जाये और ठण्ड से शरीर कपकपाने लगे तो सिर्फ दस मिनट तक ये मुद्रा दोहराये | सिर्फ रोज़ दस मिनट इस मुद्रा को सुबह किरणों में बेथ कर करने से कभी जुकाम या कफ (Cough) नहीं होगा | इस मुद्रा के साथ साथ कुछ घरेलु नुस्खे जो में आगे बताऊंगा | इन नुस्खों से भी आप कफ (Cough) से राहत पा सकते है |

पहला हल्दी : खासी या जुकाम के लिए हल्दी सबसे इफेक्टिव मसाला है | ये एंटी-ऑक्सडेंट की तरह काम करता हे | यह प्राकर्तिक ऐंटी -सेप्टिक हमारे शरीर में बलगम पैदा करने वाले बैक्टीरिया को मारता है | इसमें ऐसे गुण होते हे जो शरीर की आंतरिक और बाहरी समस्याओ से राहत दिलाता है | तो इसके लिए एक गिलास गरम दूध में आधा चम्मच हल्दी मिला कर पिए | ऐसा करने से बलगम दूर हो जाता है |

दूसरा गरारे : एक गिलास गरम पानी में आधा चम्मच नमक मिला कर गरारे करने से आपको बहुत अच्छा महसूस होगा ऐसा करने से बलगम खुद ब खुद बहार आ जायेगा इसके अलावा आप छाछ में नमक का प्रयोग करके बलगम से छुटकारा पा सकते है

तीसरा काली मिर्च पाउडर और शहद : चार-पांच काली मिर्च को आग पर सके और फिर उनको पीस कर उनका पाउडर बना ले फिर आधा चम्मच में चुटकी भर काली मिर्च मिलाये और मिक्स करले और इस पेस्ट को सुबह लेने से सर्दी जुखाम से राहत मिलती है |
चौथा अदरक : अदरक के प्राकृतिक जीवाणु रोधक की वजह से इस्का इस्तेमाल कोल्ड और साइनस के उपचार में काम लिया गया हे | अदरक ऐसे गुणों के लिए भी जाना जाता है जो बलगम को तोड़ता है | इसे कच्चा खाने से ज़्यादा जल्दी असर होता है |

पांचवा पानी और लिक्विड टाइप : जुकाम और कफ में ज़्यादा से ज़्यादा तरल चीज़े लेने से फायदा होता है | ऐसे में गरम पानी और सूप लेने से लाभ मिलता हे | हायड्रेटेड ड्रिंक दूसरी बीमारियों के लिए भी इसमें भी हायड्रेटेड लेना बहुत ही ज़रूरी हे | दिन भर में ज़्यादा पानी पीने पर ये शरीर का बलगम निकालने में सहायता करता है |
छठा लहसुन : अदरक की तरह लहसुन भी काफी लाभ दायक हे | यह जीवाणुओं को मारने में और शरीर को बलगम युक्त करने में सहायता करता है | लहसुन की कच्ची कलियों को खाने से बलगम से निज़ात मिलती है |
[ घी के इस्तेमाल से पाएं बेहतरीन सेहत और सौन्दर्य लाभ

  1. एक चम्मच शुद्ध घी, एक चम्मच पिसी शकर, चौथाई चम्मच पिसी कालीमिर्च तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाटकर गर्म मीठा दूध पीने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।
  2. एक बड़े कटोरे में 100 ग्राम शुद्ध घी लेकर इसमें पानी डालकर हलके हाथ से फेंटकर पानी फेंक दें। यह एक बार घी धोना हुआ। ऐसे 10 बार पानी से घी को धोकर, कटोरे को थोड़ी देर के लिए झुकाकर रख दें, ताकि थोड़ा बहुत पानी बच गया हो तो वह भी निकल जाए। अब इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें और चौड़े मुंह की शीशी में भर दें। यह घी, खुजली, फोड़े फुंसी आदि चर्म रोगों की उत्तम दवा है।
    3 रात को सोते समय एक गिलास मीठे दूध में एक चम्मच घी डालकर पीने से शरीर की खुश्की और दुर्बलता दूर होती है, नींद गहरी आती है, हड्डी बलवान होती है और सुबह शौच साफ आता है। ठंड आने के पहले से ठंड खत्म होने तक यह प्रयोग करने से शरीर में बलवीर्य बढ़ता है और दुबलापन दूर होता है। 
    [ ❌एम्स ने कैंसर होने के कारण बताये हैं :-🔴🔴पालीथीन में गरम सब्जी कभी भी पैक न करवाऐं।❌1.चाय कभी भी प्लास्टिक के कप में न लें।❌2.कोई भी गरम चीज प्लास्टिक में न लें, खासकर भोजन।❌3. खाने की चीजों को माइक्रोवेव में प्लास्टिक के बर्तन में गर्म न करें।❌याद रखें जब प्लास्टिक गर्मी के संपर्क में आता है तो ऐसा रसायन उत्पन करता है जो 32 प्रकार के कैंसर का कारण है।❌इस प्रकार ये sms 100 फालतू के sms से बेहतर है।अपने मित्रों और रिश्तेदारों को सूचित करें ताकि वे ऐसे प्रभाव से दूर रहें। क्रपया शेयर जरूर करें। 💯✔
    🔴🔴🔴🔴🔴🔴🔴,
    👉 डा० हार्दिक शाह !
    मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) सामान्य अस्पताल
    ( Civil Hospital )
    मुम्बई
    यह संदेश भारत में कार्यरत डाक्टरों के समूह से है, जिसको आम जनता के हित में भेजा जा रहा है ।
    🔴🔴🔴🔴🔴🔴🔴
    1) कृपया APPY FIZZ का सेवन न करें, क्योंकि इसमें कैंसर
    पैदा करने वाले रसायन है ।
    🔴🔴🔴🔴🔴🔴🔴
    2) कोक या पेप्सी सेवन करने से पहले व बाद में मेन्टोस का सेवन न करें क्योंकि इसका सेवन करने से मिश्रण साईनाइड में बदल जाता है, जिससे सेवन करने वाले व्यक्ति की मौत
    हो सकती है ।
    🔴🔴🔴🔴🔴🔴🔴
    3) कुरकुरे का सेवन न करें क्योंकि इसमें प्लास्टिक की काफ़ी मात्रा होती
    है । इसकी पुष्टी के लिये कुरकुरे
    को जलायें तो देखेंगे कि प्लास्टिक पिघलने लगा है –टाइम्स
    आफ़ इण्डिया की रिपोर्ट
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    4) इन गोलियों का सेवन तुरन्त बन्द करें क्योंकि ये बहुत ख़तरनाक है:-
  • डी-कोल्ड /D-cold
  • Vicks Action-500
  • एक्टिफाइड/Actified
  • कोल्डारिन/Coldarin
  • कोसोम/Cosome
  • नाईस/Nice
  • निमुलिड़/Nimulid
  • सैट्रीजैट-डी/Cetrizet-D
    इन गोलियों में फिनाईल प्रोपेनोल- एमाइड पीपीए होता है
    जिससे ह्रदयाघात् होता है । इसलिये यह दवा अमेरिका में
    प्रतिबन्धित है ।
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    वाटस्ऐप पर आप मुफ़्त में महत्वपूर्ण सूचना से सभी को अवगत करा सकते हैं अत: इसे पढ़ें और सभी को सूचित करें ।
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    अमेरिका के डाक्टरों को व्यक्तियों में हो रहे नये प्रकार के कैंसर का पता चला है जोकि “सिल्वर नाइट्रो आक्साइड”के कारण पनप रहा है ।
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    मोबाइल चार्ज करने के लिये रीचार्ज कार्ड ख़रीदें तो कोड नम्बर के लिये कोड लाइन को नाख़ून से न खुर्चें,
    क्योंकि कोड को छुपाने में सिल्वर “नाइट्रो आक्साइड” नाम के रसायन
    की परत होती है, जिससे त्वचा का कैंसर होता है ।
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    महत्वपूर्ण स्वास्थ्य बातें:-
    सेलफ़ोन पर बातें करते समय बायें कान की तरफ़ रखें ।
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    ठण्डे पानी के साथ गोलियाँ न ले।
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    सांय पाँच बजे के बाद भारी भोजन का सेवन न करें ।
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    हमेशा! सुबह ज़्यादा पानी पीयें, व रात के समय कम।
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    सोने का सबसे अच्छा समय रात के दस बजे से सुबह चार बजे तक होता
    है ।
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    दवाईयां खाना लेने के बाद तुरन्त न लेवें।
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    जब भी बैटरी अंतिम बार पर हो, सेलफोन से बात न करें,क्योंकि तब ध्वनी तरेंगे एक हज़ार गुणा शक्तिशाली हो जाती है ।
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    अमेरिकी रसायन अनुसंधान केन्द्र
    के जाँच परिणाम के अनुसार:
    चाय को न तो प्लास्टिक के कपों में पीयें न ही प्लास्टिक पेपर पर भोजन करें । क्योंकि प्लास्टिक गरम होने पर इसमें रासायनिक परिवर्तन होने लगते
    हैं जिनसे 52 प्रकार के कैंसर होने का ख़तरा है ।
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    एक अच्छे संदेश से सभी को अवगत
    करवाना हँसी मज़ाक़ के 100 संदेश भेजने से अच्छा है ।
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    यह सभी के लिये उपयोगी है।
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    ज्ञान बड़ा महत्वपूर्ण है जितना
    बाटोगे उतना बढेगा ।
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कृपया अपने परिचितों ,दोस्तो ,रिशतेदारों को अवश्य अवगत कराये
[डकार क्यों आती है इसका रहस्य एवं महत्त्व

हमारा पाचन तंत्र मुँह से शुरु होता है। मुँह में हम चबा-चबाकर खाते हैं। इसके बाद हमारे पाचन तन्त्र में भोजन चलते-चलते हजम होता है और अन्त में गुदा द्वार से मल को बाहर निकाल दिया जाता है। हमारे पाचन तन्त्र में मात्र एक जगह है हमारा अमाशय, मेदा (Stomach)जहाँ पर भोजन लगभग 5-6 घंटे के लिये रुकता है और हाजमे का काम होता है। यह थैलीनुमा है, जब सुबह-सुबह हम खाली पेट होते हैं तो अमाशय सिकुड़-सा जाता है और इसमें कुछ शुद्ध वायु रहती है। हम भूख का एहसास होने पर भोजन लेते है, और मुख से चबा-चबा कर भोजन लेते हैं। हमारा अमाशय भोजन से आधा भर जाता है तो अमाशय की शुद्ध वायु हमारे मुँह में आती है। इसको कहा जाता है- ‘तृप्ति डकार’। इस तृप्ति डकार द्वारा हमारा अमाशय यह चेतावनी देता है कि अब तृप्ति हो गई। क्योंकि अमाशय को आधा तो भरना होता है भोजन से और अमाशय का 1/4% भाग पाचक रसों (Digestive Juices) द्वारा भरना होता है। शरीर का नियम है कि हम जिस तरह का भोजन लेते है, हमारा शरीर उस भोजन को पचाने के लिये उसी तरह के पाचकरस छोड़ता है।

तरह-तरह के तेजाब (पाचकरस) अमाशय में जाकर भोजन को हजम करने में मदद करते हैं। अमाशय का 1/4 % हिस्सा खाली रहना चाहिए, क्योंकि अमाशय में भोजन हजम करने के लिये मंथन क्रिया (Machanical Action) होती है जो भोजन हजम करने में मदद करती है। जैसे कि अगर हम मुख को पानी से पूरा भर लेगें तो कुल्ला नहीं कर सकते और मटके को दही से पूरा भर लेंगे तो दही का बिलौना नहीं कर सकते। ठीक ऐसे ही अगर हम अमाशय को खाली नहीं छोड़ेंगे तो अमाशय में मंथन क्रिया नहीं होगी। परन्तु हम अमाशय की इस तृप्ति डकार द्वारा दी गई चेतावनी की परवाह नहीं करते। हम और अधिक खाते हैं, और अधिक खाने से जब हमारा अमाशय भोजन द्वारा पूरा भर जाता है तो जो थोड़ी बहुत शुद्ध वायु शेष बची होती है वह हमारे मुँह में आती है। इसको कहा जाता है ‘पूर्ण डकार’ |

इस ‘पूर्ण डकार द्वारा हमारा अमाशय हमें यह चेतावनी देता है कि वह पूरा भर गया अब भोजन को हजम करने में वह कोई मदद नहीं कर सकता । लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। भोजन को हजम करने के लिये जो पाचक रस चाहिये थे, वे फिर भी निकलते हैं, क्योंकि यह शरीर का नियम है। उस तेजाब को। अमाशय में जाने के लिये जगह नहीं मिलती, क्येांकि अमाशय को तो हमने पहले ही पूरा भर लिया है। वह तेजाब अमाशय के ऊपर के भाग में भोजन नली में पड़ा रहता है। ऐसी अवस्था का व्यक्ति कहता रहता है कि उसको जलन (Acidity) होती है या उसके शरीर में तेजाब बनता है। बात आगे चलती है- अमाशय में जो भोजन ऊपर तक ठसाठस भर लिया उसकी दशा एक डिब्बीनुमा बर्तन में बन्द हो जाने जैसी हो जाती है। उस भोजन को पाचक रस नहीं मिलते और मंथन-क्रिया के लिये जगह भी नहीं मिलती। वह भोजन पड़ा—पड़ा सड़ना शुरु हो जाता है। भोजन जब सड़ता है तो उसमें गैस बनती है। गैस का कुछ भाग नीचे गुदा द्वार से बाहर निकलता है, जिसको हम पाद के रूप से अनुभव करते हैं और गैस का कुछ भाग अमाशय के ऊपर की तरफ मुँह से बाहर निकलता है। रास्ते में भोजन नली के अन्दर तेजाब पड़े होने के कारण गैस उस तेजाब के साथ मिलकर हमारे मुँह में आती है, जिसको हम कहते हैं ‘खट्टे डकार‘

खाते हम गुलाब जामुन हैं। हमें आने चाहियें मीठे डकार, किन्तु आ रहे हैं खट्टे डकार। जरा सोचिये..! अर्थात् अगर व्यक्ति | ‘तृप्ति डकार आते ही भोजन लेना बन्द कर दे तो उसे गैस और तेजाब का अनुभव नहीं होगा। अगर व्यक्ति तृप्ति डकार आने के बाद खाना बन्द नहीं करेगा तो जीवन भर गैस और तेजाब उसका पीछा नहीं छोड़ेगा! चाहे वह व्यक्ति जीवन भर ऐंटासिड (Antacid), चूर्ण वगैरह लेता रहे। संसार की लगभग 80% आबादी गैस और तेजाब के रोग से पीड़ित है।

उपरोक्त कहानी द्वारा तीन तरह की डकारों का वर्णन किया गया है। चौथे किस्म की डकार भी होती है जिसको कहा जाता है ‘भूख डकार’। भोजन लेने के लगभग पाँच-छ: घण्टे बाद हमारे अमाशय के द्वारा भोजन को नीचे छोटी आँत में धकेल दिया जाता है चाहे अमाशय में भोजन हजम हो या न हो। भोजन को पाँच-छ: घण्टे के अन्दर अमाशय से निकलना ही पड़ता है। जब हमारा अमाशय खाली हो जाता है तो वह दुबारा से सिकुड़ता है और उसमें से कुछ वायु हमारे मुँह में आती है। उसको कहा जाता है भूख डकार’ । इस भूख डकार की पहचान है इसमें किसी तरह की भी दुर्गन्ध या स्वाद नहीं होता। इसको अनुभव करते समय शरीर में विशेष किस्म का हल्कापन होता है। इसका नाम भूख डकार है, परन्तु इसका यह मतलब नहीं है कि डकार आने पर तुरन्त खाना शुरू कर दिया जाए । वास्तव में इस भूख डकार द्वारा हमारा अमाशय हमें यह कहना चाहता है कि आपने जो उसे हाजमें का काम दिया था उसको पूरा करके वह अभी-अभी खाली हुआ है। उसे अब कुछ समय के लिये आराम की आवश्यकता है। परिणाम स्वरूप भूख डकार आने के लगभग एक-दो घण्टे के बाद जब आपको कड़क भूख का एहसास हो तब खाना चाहिये।

संत तिरुवल्लुवर जी का अनुभव- “शरीर के लिये किसी भी दवाई की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। यदि हम इस बात का ध्यान रखें कि भोजन उसी समय किया जाए जब हमें निश्चित हो जाए कि पिछली बार का खाया हुआ भोजन अच्छी तरह से पच चुका है।”

उपरोक्त चार किस्म की डकारों में से दो तरह की डकारों (तृप्ति डकार और भूख डकार) का अनुभव हर एक स्वस्थ व्यक्ति को होना चाहिए अन्य दो तरह की डकारों (पूर्ण डकार और खट्टे डकार) का अनुभव बिलकुल नहीं होना चाहिए।

कुछ अभागे लोगों को तृप्ति डकार का अनुभव ही नहीं होता। आजकल ऐसा आमतौर पर देखा जाता है। सैद्धान्तिक रूप से हमें दिन में दो बार ही भोजन करना चाहिए । जब कि व्यक्ति दिन में तीन या चार बार भोजन लेता है या पूरे दिन बार-बार कुछ न कुछ खाता रहता है (Lunching & Munching all the time) | इस प्रकार उसका अमाशय चौबीस घण्टे फैला ही रहता है। उसको सिकुड़ने के लिये समय ही नहीं मिलता । परिणामस्वरूप उसके अमाशय की लचक (Elasticity) खत्म हो जाती है। ऐसी हालत में तृप्ति डकार का अनुभव नहीं होता

वास्तव में इस कहानी के माध्यम से यह बताया गया है कि हमें भोजन लेते समय थोड़ी भूख बाकी रख कर भोजन लेना बन्द कर देना चाहिए। जैसे कि जब हम भोजन लेना शुरु करते हैं तब शुरु–शुरु में हमें मालूम ही नहीं पड़ता कि पेट में कुछ जा रहा है। भोजन लेते समय जब पेट में मालूम पड़ना शुरु हो जाए, हल्का-सा भारीपन आ जाए तब तुरन्त भोजन छोड़ दें । हम अपने आपको भोजन की थाली से इस तरह अलग कर लें जैसे बछड़े को गाय के स्तनों से अलग किया जाता है।

डकारें रोकने के सबसे असरकारक घरेलु उपचार

  1. कत्था : कत्था लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम तक खुराक के रूप में लेने से डकारे आना बंद हो जाती हैं।
  2. अजवायन : अजवायन, सेंधानमक, संचरनमक, यवक्षार, हींग और सूखे आंवले का चूर्ण बराबर लेकर अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। 1 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ चाटने से खट्टी डकारे आना बंद हो जाती हैं।
  3. सोंठ : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम सोंठ का चूर्ण को देशी घी में भूनी हींग और कालानमक के साथ सुबह-शाम सेवन करने से डकार नहीं आती हैं।
  4. बाजरे : बाजरे के दाने के बराबर हींग लेकर गुड़ या केले के साथ खाने से डकार में आराम मिलता है।
  5. जीरा : 1 चम्मच पिसा हुआ जीरा सेंककर, 1 चम्मच शहद में मिलाकर खाना खाने के बाद चाटने से डकारों में लाभ होता है।
  6. ढाक : ढाक (पलास) की गोंद लगभग आधा ग्राम से लगभग 1 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
  7. कुलिंजन : कुलिंजन लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम तक के टुकड़ों को मुंह में रखने या चूसने से पाचन से संबधी बीमारियां दूर होती हैं और मुंह में सुगन्ध आती है।
  8. हींग : देशी घी में भुनी हुई हींग, कालानमक और अजवायन के साथ सुबह-शाम सेवन करने से डकार, गैस और भोजन के न पचने के रोगों में लाभ मिलता है।
  9. दालचीनी : दालचीनी का तेल 1 से 3 बूंद को बतासे या चीनी पर डालकर सुबह-शाम सेवन करने से डकार और पेट में गैस बनने में लाभ पहुंचता है।
  10. मरोड़फली : मरोड़फली के फल का चूर्ण लगभग 2 से 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से डकार, अफारा (पेट में गैस) और पेट के दर्द कम होकर लाभ देता है।
  11. नारियल : कड़वी नारियल की गिरी को खाना खाने के बाद खाने से खट्टी डकारें आना बंद हो जाती हैं।
  12. ताड़ : ताड़ के कच्चे गूदे का पानी पीने से वमन (उल्टी) और उबकाई आना बंद हो जाती है।
  13. पिस्ता : पिस्ता का सेवन करने से जी का मिचलाना और उल्टी में लाभ होता है।
  14. मिश्री : मिश्री की चासनी में बेर की मींगी (गूदा) और लौंग को मिलाकर खाने से जी के मिचलाने में लाभ होता है।
  15. धनिया : धनिया और भारंगी को पानी में पकाकर पिलाने से सूखी उल्टी आना रुक जाएगी।
  16. जस्ता-भस्म : जस्ता-भस्म लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग, मिश्री और जीरा के साथ खाने से उल्टी और जी का मिचलाना बंद हो जाता है।
  17. पोदीना : पोदीना और इमली को पीसकर उसमें सेंधानमक या शहद मिलाकर खाने से खट्टी डकारे और उल्टी आना शांत हो जाती है।
  18. धनिया : यह कोई रोग नहीं है परन्तु यदि कभी लगातार खट्टी डकारे आने लगती है तो रोगी को बेचैनी होने लगती है और वह शीघ्र ही घबरा जाता है। पेट में जलन होती है और जबान सूखने लगती है। बार-बार डकार आने से खुश्की दूर हो जाती है और वायु के कारण पेट में गर्मी सी महसूस होने लगती है। सीने में जलन, अकड़न और मीठा दर्द होने लगता है। ऐसी दशा में पाचक औषधि काम करती है। इसके लिए थोड़ा सा पुदीना और थोड़ा सा सूखा धनियां, बड़ी इलायची, अजवायन और कालानमक इन सबको पीसकर या तो टिकिया बना लेते हैं या चूर्ण बना लेते हैं फिर इसे 2 घंटे बाद गर्म पानी से लेना चाहिए। थोड़ी देर में डकारे बंद हो जाएंगी।
  19. मेथी : मेथी के हरे पत्ते उबालकर, दही में रायता बनाकर सुबह और दोपहर में खाने से खट्टी डकारे, अपच, गैस और आंव में लाभ होता है।
  20. नींबू : बिजौरे नींबू की जड़, अनार की जड़ और केशर पानी में घोटकर रोगी को पिलाने से डकार और जुलाब बंद हो जाते हैं।
  21. नौसादर : नौसादर, कालीमिर्च, 5 ग्राम इलायची दाना, 10 ग्राम सतपोदीना पीस लें, इसे आधा ग्राम लेकर प्रतिदिन 3 बार खुराक के रूप में पानी के साथ लेने पर खट्टी डकारे, बदहजमी, प्यास का अधिक लगना, पेट में दर्द, जी मिचलाना तथा छाती में जलन आदि रोगों से छुटकारा मिलता है।
  22. नागरमोथा : पीपल, कालीमिर्च, हरड़, बहेड़ा, आमला, शुंठी, बायविडंग, नागरमोथा, चंदन, चित्रक, दारूहल्दी, सोनामक्खी, पीपलामूल और देवदारू को 50-50 ग्राम लेकर पीसकर बारीक चूर्ण बना लें, फिर मण्डूर को 400 मिलीलीटर गाय के मूत्र में अच्छी तरह पका लें। जब मण्डूर 50 ग्राम शुद्ध रह जाये तो इसमें उपरोक्त चूर्ण को मिलाकर गूलर के फल के समान गोलियां बना लें। इन गोलियों को रोगी को देने से डकारें आना बंद हो जाती हैं।

बार बार डकार आना होम्योपैथिक दवा

नक्सवोमिका 3X, 30CH – डकार में कड़वा तथा खट्टा पानी आता है। खाने के बाद जी मिचलाता है, उल्टी करने की इच्छा होती है, पेट की वायु ऊपर की ओर आती है और छोटी पसलियों के नीचे से दबाव डालती है। इस औषधि के चरित्रगत लक्षण हैं – रोगी शीत-प्रकृति का होता है, ठण्ड सहन नहीं कर सकता, हरेक बात में मीन-मेख निकालने वाला (आर्सेनिक जैसा जो दीवार पर टंगी टेढ़ी पेंटिंग को तत्काल सीधा किए बिना चैन से नहीं रहता), बड़ा सावधान ओर ईर्ष्यालु, तनिक-सी बात पर क्रोधी हो जाने वाला, उत्तेजित हो जाना, नाराजगी, परेशान, दुखी । इसका रोगी प्रायः दुबला-पतला होता है और हर बात में जल्दबाजी करता है।

अर्जेन्टम नाइट्रिकम 3X, 30CH – ऊंचे-ऊंचे, अधिक मात्रा में, कष्ट-रहित डकार, फीके डकार। हर बार भोजन के बाद ऊंचे-ऊंचे डकार मानों पेट फूट जाएगा। पहले तो डकार अड़ा रहता है, अंत में डकार की वायु बड़े वेग से, बड़ी जोरदार आवाज से डकार में ही निकल पड़ती है। इस औषधि के चरित्रगत लक्षण हैं मीठे या मिठाइयों के लिए लिप्सा, हर काम में जल्दी; किसी बात की अप्रत्याशित आशंका कि कहीं ऐसा न हो जाए, कहीं वह आ न जाए इस तरह के विचित्र भय; ऊंची जगह से, मकान की मुंडेर पर खड़े होने से भय इत्यादि । रोगी ऊष्ण-प्रकृति का होता है। इन लक्षणों के साथ यदि पेट का अफारा हो, डकार आएं, तो यह औषधि लाभकर सिद्ध होगी।

पल्सेटिला 30CH, 200CH – संध्याकाल में पित्त के डकार आते हैं, ये कड़वे तथा खट्टे होते हैं, डकारों में पहले के खाये भोजन का स्वाद अनुभव होता है। इस औषधि का चरित्रगत लक्षण है। मुंह सूखा किंतु प्यास नहीं; रोगी को घी-चर्बी के पदार्थों के प्रति अरुचि होती है। वह मक्खन नहीं खा सकता । केक, पेस्ट्री, परांठा, रबड़ी, मलाई आदि खा ले तो पेट खराब हो जाता है। भूख नहीं, प्यास नहीं, कब्ज भी नहीं, सरल स्वभाव, बात कहने से झट मान जाता है, आसानी से रो पड़ता है, स्वभाव तथा लक्षण बदलते रहते हैं; ऊष्ण-प्रकृति का होता है, ठंडी तथा खुली वायु पसंद करता है, सबसे सहानुभूति चाहता है। हर काम को निश्चिंत होकर करता है और किसी भी काम में कभी जल्दबाजी नहीं करता।

कार्बो वेज 6X, 30CH, 200CH – रोगी का पेट इस हद तक गैस से भर जाता है कि पेट का ऊपर का हिस्सा फूल जाता है, पेट में जलन होती है, लगातार डकार आती रहती हैं, अपचन में डकारों के साथ पनीला आमाशय-रस मुंह में आ जाता है, अपच का रोगी होता है। रोगी घी-मक्खन, दूध पसंद नहीं करता, अर्जेन्ट नाइट्रिकम की तरह मीठा तथा नैट्रम म्यूर की तरह नमकीन पसंद करता है, उसे कॉफी की चाह अधिक होती है। इसका विशेष लक्षण यह है कि रोगी को डकारों से राहत मिलती है, यहां तक कि सिरदर्द, गठिया आदि का दर्द भी डकार आने से कम हो जाता है, रोगी हर समय डकारा करता है, जब देखो डकार । रोगी वायु का चाहने वाला होता है। इसका विलक्षण-लक्षण यह है कि रोगी अंदर से जलन महसूस करता है, किंतु बाहर त्वचा से उसे ठंड अनुभव होती है।

कार्बो एनीमैलिस 200CH – पेट के ऑपरेशन के बाद जब पेट वायु से फूल जाता है, तब औषधि की 200 शक्ति की एक मात्रा देने से ही जो चमत्कारी लाभ होता है, वह देखते ही बनता है। डॉ. क्लार्क का कथन है कि कार्बोवेज देने के बाद डकारों में यह औषधि लाभ पहुंचाती है; यदि वायु पेट से उठकर गले की नली में आ फंसे, तो इस से वायु डकार में निकल जाती है। कार्बोवेज के बाद का ऐनीमैलिस दिया जा सकता है।

सल्फर 30CH – भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े डकारों में आते हैं, जो अत्यंत खट्टे होते हैं, उसमें यह लाभकारी है।

चायना 30CH – इसमें भी पेट में, केवल ऊपर के हिस्से में नहीं, समूचे पेट में वायु भर जाती है, डकारें आती हैं। पेट से कड़वा पानी ऊपर उठ आता है, किंतु इसके डकारों में रोगी को आराम नहीं मिलता, हिचकियां आती हैं, फलों का पाचन नहीं होता, फल खाने से कष्ट बढ़ जाता है।

ऐसाफेटिडा 3X, 30CH – ऊंची-ऊंची डकारें; वायु से नहीं निकलतीं, सब ऊपर को चढ़ती हैं; पेट से वायु (डकार) ऐसे निकलती है, जैसे बम छूट रहे हों, लगभग हर क्षण इतनी वायु कहां पैदा होती है यह समझा नहीं आता।

इपिकाक 6X, 30CH – जी मिचलाने के साथ तेज डकार आते हैं और मुंह से सेलाइवा निकलता है, वमन आ जाता है, वमन के साथ जीभ बिल्कुल साफ रहती है, वमन आने पर भी रोगी को राहत नहीं मिलती। उल्टी आने पर भी जीभ साफ रहना इसका विशेष लक्षण है।

कैमोमिला 30CH – डकार आने से पेट-दर्द बढ़ जाता है जो स्वयं एक विचित्र-लक्षण है। साधारण रूप से डकार आने से पेट दर्द में आराम आना चाहिए, इसमें उल्टी बाते होती है। मुंह सेलाइवा से भर आता है, वायु पेट में अटक जाती है। जो लोग दर्द को आराम से सहन कर लेते हैं, उनके लिए यह औषधि उपयुक्त नहीं है। यदि निर्दिष्ट औषधियों से लाभ होता न दिखे, तो उनके मध्य में इसे देकर देखना चाहिए।

फास्फोरस 30CH, 200CH – इसमें भी फोके डकार आते हैं, कभी-कभी खाये हुए पदार्थ की उछाली आ जाती है, पेट में जलन होती है, तेज प्यास होती है, किंतु रोगी ठंडा (बर्फीला) पानी पीना चाहता है या इससे उल्टा लक्षण भी हो सकता है। कुछ रोगी पानी को देखना तक नहीं चाहते, पानी के नाम से ही जी मिचलाने लगता है, स्नान करते हुए पानी को न देखे, इसलिए वह आंखें बंद कर लेता है। पानी पेट में पड़ा-पड़ा जब गर्म हो जाता है, तब पेट उसे रखती नहीं, उल्टी कर देता है। पेट में ठंड की इतनी चाह होती है कि पेट दर्द भी आइसक्रीम खाने या ठंडा पेय लेने से ठीक हो जाता है।

बदहजमी में डकारों के साथ भोजन-नली में जलन और दर्द होता है। यह जलन पेट से ऊपर तक की भोजन-नली में होती है। इसका कारण पेट में अत्यधिक अम्ल का होना होता है इसकी कुछ प्रमुख औषधियां निम्नलिखित हैं :-

चायना 30CH – इसमें सारा पेट वायु से भरा रहता है, खूब डकारें आती हैं, ये डकारें खट्टी भी हो सकती हैं। पेट की वायु से दर्द होता है, किंतु डकार आने पर थोड़ा-सा हल्कापन भी महसूस होता है।

कार्बो वेज 30CH – इसमें बुसे खाने जैसे डकार आते हैं, खट्टी डकारों की भी भरमार रहती है। रोगी की पाचन-क्रिया अत्यंत शिथिल होती है। पेट में ऊपर के हिस्से में वायु भरी रहती है।

अर्जेन्टम नाइटिकम 6X – रोगी को डकारें आती हैं, जी मिचलाता है, पेट में वायू भरी होने के साथ-साथ दर्द भी रहता है, भोजन-नली और छाती में भी जलन होती है।

लाइकोपोडियम 30CH – छाती में जलन के साथ खट्टी डकारें आती हैं, पेट फूला हुआ-सा महसूस होता है।

पल्सेटिला 6X, 30CH – इसमें रोगी को पेट दर्द की शिकायत रहती है, पेट में गड़बड़ी से ही पनीली डकारें आती हैं, छाती में जलन रहती है।

नक्सवोमिका 6X – डकार आने में कठिनाई, भोजन-नली में जलन, पनीली और खट्टी डकार, सवेरे के समय बासी डकारों की अधिकता।

ब्रायोनिया 6X, 30CH – भोजन के बाद कड़वी तथा खट्टी डकारें आती रहना, अम्ल के कारण छाती में जलन होती है, भारी-भारी डकार आती हैं, ठंडा पानी पीने की अधिक इच्छा होती है।

निरोगी रहने हेतु महामन्त्र

मन्त्र 1 :-

• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें

• ‎रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें

• ‎विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)

• ‎वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)

• ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)

• ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें

• ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

मन्त्र 2 :-

• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)

• ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)

• ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये

• ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें

• ‎पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये

• ‎बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूणतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें


[ आर्थिक संघर्ष योग
हमारे हिन्दू धर्म की मान्यतानुसार चार प्रकार के पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष माने गए हैं।
जीवन के चार पुरुषार्थों में अर्थ प्राप्ति को महत्वपूर्ण पुरुष + अर्थ पुरुषार्थ के रूप में दर्शाया गया है ।

आर्थिक स्थिति हमारे जीवन का एक बड़ा महत्वपूर्ण अंग भी है। जीवन की छोटी बड़ी सभी आवश्यकतायें अर्थ अर्थात धन के आधार पर ही पूरी हो पाती हैं।

“ पहला सुख निरोगी काया ” वाली बात तो हम सबने सुनी है परन्तु यदि कोई रोगआपको जकड ले तो उसकी चिकित्सा भी बिना धन के नहीं करा सकते हैं। इससे ही आज के समय में धन का महत्व समझ में आता है।जहाँ कुछ व्यक्ति सरलता और थोड़े से प्रयासों से हीअच्छी आर्थिक स्थिति प्राप्त कर लेते हैं वहीँ कुछ व्यक्ति जीवन भर संघर्ष के बाद भी पर्याप्त धन अर्जित नहीं कर पाते वास्तव में यह सब हमारी जन्म कुंडली में बने ग्रह योगों पर ही निर्भर करता है किे हमारे जीवन में धन की स्थिति कैसी होगी।

हमारी कुंडली का “दूसरा भाव” स्थिर धन का प्रतिनिधित्व करता है।इसलिए इसे धन भाव भी कहते हैं ।इसके अलावा “ग्यारहवा भाव” हमारी आय या धन लाभ का कारक होता है यह हमें नियमित होने वाले धन लाभ को दर्शाता है। इसलिए इसे “ लाभ स्थान ” भी कहते हैं, इसके अतिरिक्त हमारी आर्थिक स्थिति को निश्चित करने में जिस एक ग्रह की महत्वपूर्ण भूमिका होती है वह है “शुक्र”। शुक्र को धन का नैसर्गिक कारक ग्रह माना गया है।

अतः धन भाव, धनेश, लाभस्थान, लाभेश और शुक्र हमारी कुंडली में कैसे हैं इस पर हमारी आर्थिक स्थिति निर्भर करती है।

अच्छी आर्थिक स्थिति के योग~

  • यदि धनेश धन भाव में ही बैठा हो तो आर्थिक स्थिति अच्छी होती
  • धनेश स्व या उच्च राशि में शुभ भावों में बैठा हो तो धन की स्थिति अच्छी होती है।
  • धनेश का केंद्र या त्रिकोण में मित्र राशि में होना भी पर्याप्त धन योग बनाता है ।
  • यदि लाभेश लाभ स्थान में ही बैठा हो या लाभेश की लाभ स्थान पर दृष्टिपढ़ती हो तो ऐसे व्यक्ति की नियमितआय बहुत अच्छी होती है।
  • यदि कुंडली में शुक्र स्व राशि वृष, तुला या उच्च राशि मीन में शुभ भावों में बैठा हो तो अच्छी आर्थिक स्थिति प्राप्त होती है।

आर्थिक संघर्ष के योग~

  • यदि धनेश पाप भाव ६, ८ या १२वें भाव में हो तो आर्थिक पक्ष संघर्षमय बना रहता है।
  • धनेश यदि अपनी नीच राशि में हो तो संघर्ष के बाद भी आर्थिक स्थिति दृढ नहीं हो पाती।
  • यदि धन भाव में कोई पाप योग जैसे गुरु चांडाल योग, ग्रहण योग आदि बना हो तो आर्थिक स्थिति की तरफ से व्यक्ति परेशान रहता है।
  • यदि लाभेश भी पाप भाव ६, ८ या १२वें में हो तो आर्थिक पक्ष को बाधित करता है।
  • शुक्र यदि अपनी नीच राशि कन्या में हो तो आर्थिक स्थिति कभी अच्छी नहीं बन पाती।
  • शुक्र का कुंडली के आठवें भाव में होना भी आर्थिक संघर्ष कराता है।
  • जब शुक्र केतु के साथ हो तो आर्थिक स्थिति हमेशा अस्थिर बनी रहती है।

आर्थिक स्थिति का अति संघर्ष व आवश्यकता हेतु भी धन का न होना तभी होता है जब कुंडली में धन भाव को नियंत्रित करने वाले सभी ग्रहयोग धन भाव, धनेश, लाभ स्थान, लाभेश व शुक्र कमजोर हों, परन्तु जब कोई एक ग्रह या योग कमजोर हो और बाकि ग्रह योग मजबूत हों तो पर्याप्त धन प्राप्ति होती रहती है।

यदि धन भाव और धनेश कमजोर होंपरन्तु शुक्र अच्छी स्थिति में हो तो आर्थिक स्थिति पर्याप्त मात्र अच्छी रहेगी।
यदि धनेश बहुत बली हो परन्तु शुक्र कमजोर या पीड़ित हो तो अति संघर्ष के बाद ही धन प्राप्त होता है।

धनभाव, धनेश या शुक्र पीड़ित हो परन्तु यदि बलवान बृहस्पति की दृष्टि इन पर पड़ रही हो तो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के लिए धन जुटा लेता है।जब कुंडली में धन भाव का स्वामी अर्थात धनेश बारहवे भाव में हो व्यक्ति के पास धन कभी स्थिर नहीं हो पाता किसी न किसी रूप में खर्च हो जाता है।

आर्थिक दृढ़ता के उपाय~

  • सर्वप्रथम आलस्य प्रमाद का त्याग करके अर्थप्राप्ति के लिये सुनियोजित कर्म का संकल्प लेवें।
  • अपनी कुंडली के धनेश ग्रह के मन्त्र का नित्य १०८ जाप करें।
  • शुक्रवार को कुँवारी कन्याओं को चावल की खीर खिलाएं।
  • ॐ श्रीम् श्रियै नमः मन्त्र का एक माला 108 मन्त्र नित्य जाप करें।
  • इसके साथ ही उत्तराभिमुख होकर गौधूलि वेला में संकल्पपूर्वक देवताओं के वित्तमंत्री श्री कुबेर जी की भी नियमित पूजा अर्चना करने के बाद पूर्ण मनोयोग से ” श्रीम् ह्रीम् वित्तेश्वराय नमः ” मन्त्र का १०८ बार जाप करने से आर्थिक समस्याओं से छुटकारा प्राप्त हो जाता है ।
  • श्री सूक्त का रोज पाठ करें। पांच मेवा, शुद्ध घी, गुड़, सूखे बेल का चूरा व अगर-तगर लकड़ी का चूरा मिलाकर नित्य न्यूनतम २७ आहुतियां प्रज्ज्वलित अग्नि को समर्पित करें।
    : ⭐🔔नवग्रहों के बीज मंत्र:🔔⭐
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    नवग्रहों के बीज मंत्र अधोलिखित हैं-

🌞सूर्य – ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:
🌝चन्द्र – ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्राय नम:
🔴मंगल – ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
🌳बुध – ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
☀गुरू – ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
⚪शुक्र – ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:
🔵शनि – ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:
👺राहु – ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
🐕केतु – ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:

🙏🌸
[: आज फिर से लाल किताब के अनुसार बात करते हैं।

लाल किताब में एक बहुत ही कारामद उपाय बताया गया है “गऊ-ग्रास”

इस उपाय को कैसे किया जाता है, आप को ये बताने का प्रयास किया जा रहा है।

आप अपने भोजन ग्रहण के वक़्त अपने भोजन में से हर पदार्थ के तीन भाग (हिस्से) अलग से निकाल कर रख दें। इन तीन हिस्सों को ही गऊ-ग्रास कहते हैं।

इन तीन हिस्सों में से एक हिस्सा गाय को,
एक हिस्सा कुत्ते को,
व एक हिस्सा कौए को (Crow)
को खिलाना ही गऊ-ग्रास है।

अब साथ ही ये उपाय किया क्यों जाता है इसे भी समझ लें।

गाय को शुक्कर से संबंधित माना गया है लाल किताब में। इंसान का भोजन या अनाज का एक हिस्सा गाय को देने का मतलब है, शुक्कर की मदद प्राप्त करना या शुक्कर को नेक करना।

औलाद के लिए केतु का उपाय करने के लिए कहा गया है। तो अपने भोजन का एक हिस्सा कुत्ते को देने से केतु की मदद पाने के लिए किया जाता है

धन दौलत की हानि के लिए कौए को अपनी खुराक का हिस्सा देना मतलब शनि की सहायता प्राप्त करना है।

तो इस प्रकार ये उपाय करने से तीन ग्रहों का फल प्राप्त किये जाने का उपाय बताया गया है लाल किताब।

देखने में ये उपाय साधारण सा लगता है, लेकिन इस उपाय को करके देखें। रिज़ल्ट आपको हैरान कर देंगे
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एक साधक ने प्रश्न पूछा ध्यान किसे कहते हैं ? ध्यान की परिभाषा क्या है⁉

🌞👉 आप जिस परिभाषा को जानना चाह रहे हैं , वैसे तो आप स्वयं बहुत ज्ञानी एवं ध्यानी हैं । आपको कुछ भी बताने या समझाने की आवश्यकता नहीं किंतु फिर भी जितना मुझे ज्ञान है, बताने का प्रयास करता हूंँ। मैं उस सत्य को स्पष्ट करके समझाता हूंँ ।प्रारंभ में कोई भी नया साधक जब ध्यान करता है तो वह किसी एक केंद्र बिंदु को लक्ष्य करके ध्यान के मार्ग पर आगे बढ़ता है जैसे कोई किसी मूर्ति या चित्र को लक्ष्य करके आगे बढ़ता है। दूसरा कोई प्रकाश बिंदु या सूर्य की आकृति को लक्ष्य करके आगे बढ़ता है । जब उसका मन एक केंद्र बिंदु पर टिक जाता है ,रुक जाता है ,स्थिर हो जाता है और निरंतर उसी आकृति या छवि को देखता रहता है अर्थात दृष्टा बनकर उस छवि को निहारता रहता है ,देखता रहता है तो उस छवि से ,उस आकृति से , उस प्रकाश बिंदु से वह अपने अंदर ऊर्जा ग्रहण करने लगता है ।जिस प्रकार की भी ऊर्जा का ,जिस प्रकार के भी व्यक्तित्व का उस साधक ने उस ध्यान के बिंदु में कल्पना के द्वारा अपने मस्तिष्क में खाका खींचा है ,उसी प्रकार के गुण साधक के अंदर उतरने लगते हैं ।जब उस बिंदु पर ,उस चित्र पर ध्यान करते करते साधक की चेतना अत्यंत गहराई युक्त हो जाती है तो धीरे-धीरे वह साधक अपने शरीर का भान खोने लगता है ।उसकी चेतना अनंत गहराई की ओर चली जाती है ।जब वह अस्तित्व बोध को खोने लगे ,अपने को भूलकर सिर्फ उसके मन मस्तिष्क में वही प्रकाश बिंदु , वही चित्र ,वही मूर्ति ,वही आकृति दिखाई देने लगे ,सिर्फ उसी का बोध हो ,उसके अलावा किसी भी वस्तु का बोध न रहे ,सतत यह स्थिति बनी रहे , बीच में कोई भी विचार बाधा नहीं पहुंचाए। बस उसी को देखता रहे, यही ध्यान है और जब इससे आगे बढ़ कर साधक स्वयं को और जिसका ध्यान कर रहा था उसको भी विस्मृत कर दे ,उसका भी अस्तित्व बोध ना रहे ।संपूर्ण अस्तित्व विलीन हो जाए ।गायब हो जाए ।अपने शरीर के साथ साथ जिसका ध्यान कर रहा था उसका भी ध्यान बिल्कुल शून्य हो जाए यह समाधि की अंतिम अवस्था निर्विकल्प स्थिति है और जिस ध्यान की अनंत गहराई का ध्यान के रूप में वर्णन किया है उसी को समाधि की प्रारंभिक अवस्था संप्रज्ञात समाधि कहा जा सकता है। संप्रज्ञात में ही जानने योग्य तत्वों को जाना जाता है , समझा जाता है ।जब मन एक केंद्र बिंदु पर पूर्णतया एकाग्र हो जाता है तो साधक जिस किसी भी बिंदु पर अपने मन को ले जाता है ,उसी वस्तु का ,उसी तत्व का आज्ञा चक्र की ऊर्जा सत्य सत्य ज्ञान साधक के समक्ष प्रकट करने लगती है ।आप जिस परिभाषा को पूछ रहे हैं ।
👏 मुझे पता है प्रभु अब आप कहेंगे कि ध्यान किया नहीं जाता ध्यान कुछ करने का नाम नहीं है !!? कुछ नहीं करने का नाम ध्यान है तो एक बात स्पष्ट रूप से समझ लीजिए 👉कुछ नहीं करने की स्थिति प्राप्त करने में वर्षों लग जाते हैं ।वहां पर पहुंचना ही तो लक्ष्य होता है किंतु उससे पूर्व बहुत कुछ करना पड़ता है ।आसन में बैठना भी पड़ता है , प्राणायाम भी करना पड़ता है , मुद्राओं को भी साधना पड़ता है । अब इन सब से गुजरते हुए ध्यान करते हुए ही कुछ नहीं करने तक साधक पहुंच पाता है ।इसलिए जो कुछ नहीं करने की स्थिति है । वह तो फल है लेकिन जो कुछ किया जाता है -वह अष्टांग योग है। योग के साथ चरणों को आप क्रियाविधि अर्थात करना कह सकते हैं और समाधि को वास्तविक ध्यान की स्थिति कह सकते हैं क्योंकि समस्त चरणों का अनुसरण करते हुए जो ध्यान की एकाग्रता प्राप्त होती है ।वह उस की गई क्रिया का फल है। आप सीधे फल पर जाकर स्थिर नहीं हो सकते ।यदि फल को प्राप्त करना है तो क्रियाओं से गुजरना ही पड़ेगा ।बिना क्रियाओं के आप सीधे फल को प्राप्त नहीं कर सकते ।यदि आपने आम का पेड़ लगाया ही नहीं है तो आप आम नहीं खा सकते ।आप सीधा आम की परिभाषा नहीं बता सकते कि आम डायरेक्ट ऐसे पैदा हुआ। उसके लिए पहले पौधे की पूरी संरचना को, उसके जीवनकाल को समझाना पड़ेगा और आम तो अंतिम अवस्था है। उसका मीठा रस बाद में ही पता चलेगा। यहां पर जिसने हमेशा बाजार से आम खाया है ।वह सीधा आम के फल का ही वर्णन करेगा क्योंकि आम के पेड़ का उसे कुछ भी ज्ञान नहीं है ।यहां पर बाजार से खरीदकर आम खाया जा सकता है किंतु धारणा ध्यान समाधि का विज्ञान ऐसा है जिसे खरीदकर नहीं खाया जा सकता ।यहां पर तो यह पेड़ स्वयं लगाना पड़ेगा ।लगाकर उस पेड़ को पानी खाद देकर सींचना पड़ेगा ।तभी जब यह पेड़ बड़ा हो जाएगा तभी वास्तविक रूप में ध्यान की स्थिति घठित होगी ।”जिसे कुछ नहीं करना कहते हैं ” वहां पर कुछ किया नहीं जाता बस हो जाता है किंतु उस होने के पहले बहुत कुछ करना पड़ता है! बहुत कुछ।
जय शिव गोरक्ष

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