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: इन घरेलू उपायों से करें जिद्दी टॉन्सिल का इलाज

टॉन्सिल हालांकि जानलेवा बीमारी नहीं है, लेकिन काफी कष्टप्रद है। यह बीमारी खाने में आयोडीन की कमी की वजह से होती है। टॉन्सिल होने पर गले के दोनों ओर सूजन आ जाती है। शुरुआत में मुंह के अंदर गले के दोनों ओर दर्द महसूस होता है और बार-बार बुखार भी आता है। टॉन्सिल्स सामान्य से ज्यादा लाल हो जाते हैं और रोगी को खाने-पीने में काफी दिक्कत होने लगती हैं। लेकिन इसका इलाज आयुर्वेद में दिया गया है।

टॉन्सिल के दर्द से रोगी को बेहद परेशानी तो होती ही है, साथ ही घबराहट, दर्द, बोल चाल न कर पाना, सही तरह से खाना न खा पाना आदि लक्षण भी होते हैं। टॉन्सिल के कारण शरीर में अन्य प्रकार की समस्याएं भी पैदा होती हैं।

मुंह से बदबू आना – टॉन्सिल ग्लैंड दरारों से भरा होता है जहां बैक्टीरिया और डेड सेल्स अटक जाते हैं और इनके कारण मुंह से बदबू आने लगती है।

खर्राटों की समस्या – गले में बढ़े हुए टॉन्सिल के कारण आपको खर्राटों की समस्या हो सकती है। बार-बार होने वाले संक्रमण के कारण टॉन्सिल का आकार बढ़ने लगता है तो गले में हवा के बहाव में रुकावट आने लगती है।

साइनस इन्फेक्शन – बढ़े हुए टॉन्सिल से साइनस और कान में इन्फेक्शन की समस्या हो सकती है। ऐसा नाक और कान को जोड़ने वाली नली बंद हो जाने से होता है। कान के पर्दे के पीछे पानी जमा हो जाता है।

सिरदर्द की समस्या – बढ़े हुए टॉन्सिल के कारण सोते समय सांस लेने में भी परेशानी होती है। ब्रेन तक सही मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती और इसकी कमी से रक्त-वाहिनियों का आकार बढ़ जाता है और सिरदर्द होने लगता है।

क्या हैं आयुर्वेदिक उपचार
• गरम पानी में लहसुन को बारीक पीसकर मिला लें और इस पानी से कुछ दिनों तक लगातार गरारे करने से टान्सिल की बीमारी ठीक हो जाएगी।
• गन्ने के जूस के साथ हरड़ का चूर्ण लेकर पीने से गला दर्द और टान्सिल जल्दी ठीक हो जाते हैं।
• सिंघाड़े में आयोडीन की प्रचुर मात्रा होती है। इसलिए नियमित रूप से सिंघाड़े खाने से गले को लाभ मिलता है और टान्सिल से मुक्ति।
• नियमित गाजर का रस पीते रहने से गले का दर्द और टान्सिल खत्म हो जाता है।
• पानी में चाय की पत्तियों को उबालकर उसका गरारे करने से भी टान्सिल का रोग ठीक हो जाता है।
• गले में दर्द, सूजन और टान्सिल को दूर करने के लिए गरम पानी में नमक डालकर गरारे करें।
• अनानास के सेवन करने से थोड़े ही दिनों में टान्सिल खत्म हो जाते हैं।
• फिटकरी और नमक को गरम पानी में डालकर गरारे करते रहने से टान्सिल ठीक हो जाते हैं।
उपचार के दौरान करें इन चीजों से परहेज
• साफ सफाई का ध्यान रखें। भोजन करने के बाद और पहले हाथों को अच्छे से साफ करें।
• जुकाम और खांसी से पीड़ित व्यक्तियों से दूरी बनाकर रखें।
• कोल्ड ड्रिंक, सोडा और अन्य ठंडे पेय चीजें गले में संक्रमण पैदा करती है, इनसे दूर रहें।
• धूम्रपान और शराब से पूरी तरह दूर रहें।
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: चुना लगाओ मत बल्कि खाओ ,और 70 बीमारियाँ भगाओ

🌺ध्यान रहे पथरी के रोगीओ के लिए चूना वर्जित है🌺
चूना जो आप पान में खाते है वो सत्तर बीमारी ठीक कर देते है ।

जैसे किसी को पीलिया हो जाये माने जोंडिस उसकी सबसे अच्छी दवा है चूना ; गेहूँ के दाने के बराबर चूना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी पीलिया ठीक कर देता है । और ये ही चूना नपुंसकता की सबसे अच्छी दवा है – अगर किसी के शुक्राणु नही बनता उसको अगर गन्ने के रस के साथ चूना पिलाया जाये तो साल डेढ़ साल में भरपूर शुक्राणु बनने लगेंगे; और जिन माताओं के शरीर में अन्डे नही बनते उनकी बहुत अच्छी दावा है ये चूना । छात्रों के लिए चूना बहुत अच्छा है जो लम्बाई बढ़ाता है – गेहूँ के दाने के बराबर चूना रोज दही में मिलाके खाना चाहिए, दही नही है तो दाल में मिलाके खाओ, दाल नही है तो पानी में मिलाके पियो – इससे लम्बाई बढने के साथ साथ स्मरण शक्ति भी बहुत अच्छा होता है । जिन बच्चो की बुद्धि कम काम करती है मतिमंद बच्चे उनकी सबसे अच्छी दवा है चूना, जो बच्चे बुद्धि से कम है, दिमाग देर में काम करता है, देर में सोचते है हर चीज उनकी स्लो है उन सभी बच्चे को चूना खिलाने से अच्छे हो जायेंगे ।

बहनों को अपने मासिक धर्म के समय अगर कुछ भी तकलीफ होती हो तो उसका सबसे अच्छी दावा है चूना । और हमारे घर में जो माताएं है जिनकी उम्र पचास वर्ष हो गयी और उनका मासिक धर्म बंध हुआ उनकी सबसे अच्छी दावा है चूना; गेहूँ के दाने के बराबर चूना हर दिन खाना दाल में, लस्सी में, नही तो पानी में घोल के पीना ।

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जब कोई माँ गर्भावस्था में है तो चूना रोज खाना चाहिए,गर्भवती माँ को सबसे ज्यादा कैल्शियम की जरुरत होती है और चूना कैल्सियम का सब्से बड़ा भंडार है । गर्भवती माँ को चूना खिलाना चाहिए अनार के रस में – अनार का रस एक कप और चूना गेहूँ के दाने के बराबर ये मिलाके रोज पिलाइए नौ महीने तक लगातार दीजिये तो चार फाईदे होंगे – पहला फाईदा होगा के माँ को बच्चे के जनम के समय कोई तकलीफ नही होगी और नोर्मल डेलीभरी होगा, दूसरा बच्चा जो पैदा होगा वो बहुत हस्टपुष्ट और तंदरुस्त होगा , तीसरा फ़ायदा वो बच्चा जिन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चूना खाया , और चौथा सबसे बड़ा लाभ है वो बच्चा बहुत होशियार होता है बहुत Intelligent और Brilliant होता है उसका IQ बहुत अच्छा होता है ।

चूना घुटने का दर्द ठीक करता है , कमर का दर्द ठीक करता है , कंधे का दर्द ठीक करता है, एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis वो चुने से ठीक होता है । कई बार हमारे रीड़ की हड्डी में जो मनके होते है उसमे दुरी बड़ जाती है Gap आ जाता है – ये चूना ही ठीक करता है उसको; रीड़ की हड्डी की सब बीमारिया चुने से ठीक होता है । अगर आपकी हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे जादा चुने में है । चूना खाइए सुबह को खाली पेट ।

अगर मुह में ठंडा गरम पानी लगता है तो चूना खाओ बिलकुल ठीक हो जाता है , मुह में अगर छाले हो गए है तो चुने का पानी पियो तुरन्त ठीक हो जाता है । शारीर में जब खून कम हो जाये तो चूना जरुर लेना चाहिए , अनीमिया है खून की कमी है उसकी सबसे अच्छी दावा है ये चूना , चूना पीते रहो गन्ने के रस में , या संतरे के रस में नही तो सबसे अच्छा है अनार के रस में – अनार के रस में चूना पिए खून बहुत बढता है , बहुत जल्दी खून बनता है – एक कप अनार का रस गेहूँ के दाने के बराबर चूना सुबह खाली पेट ।

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भारत के जो लोग चुने से पान खाते है, बहुत होशियार लोग है पर तम्बाकू नही खाना, तम्बाकू ज़हर है और चूना अमृत है .. तो चूना खाइए तम्बाकू मत खाइए और पान खाइए चुने का उसमे कत्था मत लगाइए, कत्था कैंसर करता है, पान में सुपारी मत डालिए सोंट डालिए उसमे , इलाइची डालिए , लोंग डालिए. केशर डालिए ; ये सब डालिए पान में चूना लगाके पर तम्बाकू नही , सुपारी नही और कत्था नही ।

अगर आपके घुटने में घिसाव आ गया और डॉक्टर कहे के घुटना बदल दो तो भी जरुरत नही चूना खाते रहिये और हाड़सिंगार के पत्ते का काड़ा खाइए घुटने बहुत अछे काम करेंगे । राजीव भाई कहते है चूना खाइए पर चूना लगाइए मत किसको भी ..ये चूना लगाने के लिए नही है खाने के लिए है ; आजकल हमारे देश में चूना लगाने वाले बहुत है पर ये भगवान ने खाने के लिए दिया है
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🌹इस गर्मी के लिए १ योग टिप
*इस गर्मी में अपने आप को चिलचिलाती गर्मी से बचाने के
लिए🌹
घर से बाहर निकलने से पहले रूई से दाहिने कान (Right Ear) को बंद कर लें। कुछ ही मिनटों में, बाईं नासिका अधिक सक्रिय हो जाएगी और क्योकि यह चंद्रनाडी है, यह आपको भीतर से ठंडा रखेगा। आप हीटस्ट्रोक, हाई बीपी, पित्त, माइग्रेन और गर्मी के कारण होने वाली अन्य समस्याओं से बच जाएंगे।
🌷🌷विशाल बोधि🌷🌷
: *लहसुन का पेस्ट दूर कर सकता है त्वचा की कई समस्याएं, आप भी जानिए कैसे…*

  1. लहसुन के रस को मुंहासों पर लगाएं और 5 मिनट तक छोड़ दे। इसके बाद अपने चेहरे को धो लिजीए। ऐसा नियमित करने से चेहरे के दाग-धब्बे हटाने लगते है।
  2. लहसुन की एक कली को पीसकर, आधे टमाटर के साथ मिलाइए और इसका पेस्ट बना लें। अब इस पेस्ट को चेहरे पर 10 मिनट तक लगाकर रखे फिर चेहरा धो ले। इससे आपके स्किन के रोम छिद्र खुलते हैं और त्वचा साफ होती है।
  3. लहसुन के रस और जैतून के तेल को मिलाकर हल्का गर्म करें। अब इस तेल को स्ट्रेच मार्क पर लगाएं। ऐसा नियमित करने से कुछ दिनों में आप देखेंगे कि आपके स्ट्रेच मार्क कम होते जाएंगे।
  4. जिन लोगों की त्वचा पर लाल-लाल धब्बे हैं, यदि वे भी लहसुन का पेस्ट अपने निशानों पर लगाएंगे तो उन्हें इन धब्बों से छुटकारा मिल सकता है।
  5. यदि आपके चेहरे व गर्दन पर झुर्रियां आ रही हैं, तो आप लहसुन को शहद और नींबू के साथ मिलाकर सेवन करें। ऐसा करने से झुर्रियां जल्दी नहीं आती हैं।
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    : ऐसे साफ करें कान का मैल, जानें 4 टिप्स

1. गरम पानी: – पानी को हल्का-सा गुनगुना करें और रूई की सहायता से कान के अंदर डालें। कुछ समय तक कान को ऐसे ही रहने दें और कुछ सेकंड बाद कान से उलटकर पानी को बाहर निकाल दें। यह कान की सफाई का सबसे आसान तरीका है।

2. तेल :- जैतून, मूंगफली या सरसों के तेल में थोड़ा सा लहसुन डालकर तड़का लें। अब इस तेल को गुनगुना रहने पर रूई की सहायता से कान में डालें और ढंक लें। ऐसा करने से कान का मैल असानी से बाहर आ जाएगा।

3. प्याज का रस :- प्याज को भाप में पकाकर या भूनकर इसका रस निकाल लें। अब प्याज के रस को ड्रॉपर या रूई की सहायता से कुछ बूंद कान के अंदर डालें। इससे कान का मैल आसानी से बाहर आ जाएगा।

4. नमक का पानी :- गरम पानी में नमक मिलाकर इसका घोल तैयार करें। अब इस घोल की कुछ बूंदे रूई की सहायता से कान में डालें और बाद में कान को उलटकर बाहर निकाल लें। लेकिन ध्यान रहे कि कान में दर्द या कोई खरोंच व घाव होने पर यह तरीका न अपनाएं।



https://youtu.be/6tM2oMiPM4Q



: कुंडली मिलान ओर ज्योतिष शास्त्र
✍🏻आजकल लोग अपने बच्चों की शादी के लिए कुंडली मिलान करने हेतु किसी साफ्टवेयर की सहायता से कुंडली का मिलान कर लेते हैं, और जब पता चलता है कि मिलान में 20, 22, 25, 28, 30, 34 गुण मिल रहे है, तो शादी कर देते हैं, लेकिन जब शादी के बाद जीवन अच्छा नहीं चलता तो पंडित को दोष या कुंडली मिलान उनकी नज़र में फालतू की चीज़ होता है। वैसे लोगों को मेरी सलाह होगा कि कभी भी गुण पर जा कर शादी मत कीजिए किसी जानकार ज्योतिषी से मिलकर दोनों बच्चों जिनकी शादी करने जा रहे हैं उनके ग्रहों के मैत्री को दिखलाइये उनकी आयु, रोजगार, रोग, संतान सुख, पारिवारिक सुख विचार कैसा रहेगा अगर ये सारी चीज मिल रही हैं और गुण कम भी मिल रहा है तो शादी कीजिए। याद रखिए कोई कम जानकर है ओर किसी कुंडली को देख कर बोले एकाधिपत्य कुंडली है दोनों के राशिष एक ही ग्रह हैं इसलिए इन बातों में बिल्कुल न पड़े क्योंकि अगर दोनों की राशि एक हो तो गोचर में कोई भी ग्रह जब किसी भी भाव को पीड़ित करेंगें तो उसका असर दोनों पर समान रूप से प्रभावी होगा जो काफी बुरा होगा। उसी तरह दोनों के राशि एक होने से संभव है कि दशा भी एक ही हो अगर दशा भी समान होगा और बुरा हो तो जीना मुश्किल हो सकता है इसलिए किसी जानकार ज्योतिषी का सहारा ले। इसी कड़ी में एक बात कहना चाहता हूँ कि बहुत लोग मंगली दोष मानते हैं, तो बोलते हैं कि मांगलिक कि शादी मांगलिक से ही करना चाहिए लेकिन ये पाया जाता है कि जो लोग मांगलिक है और उनकी शादी बिना मांगलिक बच्चों से की जाती है फिर भी उनके जीवन में कोई परेशानी नहीं है क्यों की उसका कारण है ग्रहों की मैत्री..इत्यादि..!!
“कुंडली परामर्श के लिए संपर्क करें:-
: शनि की दशा का प्रभाव और फल

वृषभ और तुला लग्‍न में शनि कारक होता है। लघु पाराशरी सिद्धांत के अनुसार किसी भी कुण्‍डली में एक केन्‍द्र और एक त्रिकोण का अधिपति ग्रह उस कुण्‍डली का कारक ग्रह होता है। दूसरी ओर लीगल सेक्‍शन में शनि ही ऐसा ग्रह होता है जो कि लाभदायक सिद्ध होता है।

शनि की महादशा में शनि का अंतर छिद्र दशा की तरह होता है। इस अवस्‍था में अधिकांश जातकों को खराब समय ही भोगना होता है। हालांकि बहुत बड़े नुकसान अब तक मैंने नहीं देखे हैं, लेकिन साख और व्‍यापार में कुछ नुकसान अवश्‍य आता है।

ऐसा क्‍यों होता है ?

यह समझने के लिए हमें पहले शनि से ठीक पूर्व आई गुरु की दशा की प्रकृति और खुद शनि की प्रकृति को समझना होगा। वृषभ लग्‍न में गुरू अकारक होता है, लेकिन अपनी पूर्ववर्ती राहू की दशा की तुलना में कहीं अधिक बेहतर होता है। चूंकि वृषभ और तुला लग्‍नों में गुरू अकारक होता है, ऐसे में यह जातक के विकास में तो योगदान देता है, लेकिन अपेक्षित स्थिरता नहीं आ पाती है। ऐसे में जातक आगे बढ़ते हुए काफी सारे लूप होल्‍स छोड़ता हुआ चलता है।

गुरू की दशा के आखिर में आती है गुरू में राहू की अंतरदशा, अगर राहू की स्थिति अच्‍छी हो तो यह अंतरदशा अच्‍छी जाती है, वरना गुरू की महादशा का सबसे खराब दौर सिद्ध होता है। हम अगर यह मान लें कि राहू अपेक्षाकृत ठीक है तो गुरू की दशा अंत तक कमोबेश विकास वाली और अनिश्चिताएं बढ़ाने वाली सिद्ध होती है। इसके ठीक बाद आती है शनि की महादशा।

अब गौर करें तो वृषभ और तुला लग्‍नों में शनि की दशा चूंकि कारक है, अत: यह स्थिरता देगी, जातक को कुछ धीमा कर देगी, जहां बिना व्‍यवस्‍था के काम चल रहा है, वहां व्‍यवस्‍थाएं बनाएगी, जो काम अब तक छूटे हुए चल रहे हैं, उन्‍हें पूरा करने का दबाव बनाएगी।

कुल मिलाकर शनि अपनी प्रकृति में आने लगता है। यहां शनि जितना अधिक शक्तिशाली होगा, व्‍यवस्‍था उतनी तेजी से बनेगी, इसका परिणाम यह होता है कि पहले तो विकास बाधित होता है, जो गुरू की दशा के दौरान चल रहा होता है। चाहे वह सीखने के रूप में हो, चाहे वह सोशल कनेक्‍शन के कारण हो या फिर घूमने फिरने के कारण। पहले से चल रही व्‍यवस्‍था और स्थितियां बदलती हैं। गुरू की महादशा के दौरान जिस चिंतारहित मुक्‍त विचरण का दौर चल रहा होता है, शनि के आते ही वह दौर बदल जाता है। परिणाम यह होता है कि जातक खुद को फंसा हुआ महसूस करने लगता है।

वास्‍तव में यह Blessing in disguise है। यानी दुरावस्‍था में सौभाग्‍य। सोलह साल से चल रही व्‍यवस्‍था में हो रहा स्‍थाई परिवर्तन जातक के लिए कभी अनुकूल तो कभी पीड़ादायी सिद्ध होता है। यही कारण है कि शनि की महादशा में शनि का अंतर आने के साथ ही जातक को एकबारगी लगता है कि कहीं खराब समय तो नहीं शुरू हो गया है। इसी कारण शनि की महादशा में शनि के अंतर को छिद्र दशा कहा गया है।

छिद्र दशा का अर्थ है एक महादशा से दूसरी महादशा में ट्रांजिशन। इस दौर में जातक सहज नहीं रह पाता है। पहले से बनाए सिस्‍टम कई बार ताश के पत्‍तों के महल की तरह ढहने लगते हैं। इससे परेशान जातक यह तय नहीं कर पाता है कि समय अच्‍छा आया है या खराब।

लगभग यही स्थिति व्‍यापार के मामले में भी होती है। सर्विस सेक्‍टर के लोगों को गुरू की महादशा से शनि की महादशा में संचरण के दौरान सर्वाधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है, क्‍योंकि पहले जो सेवा कार्य व्‍यवहार और मुस्‍कुराहट से मिल रहा होता है, बाद में वही काम जिम्‍मेदारी और शिकायतों के निपटारे की ओर बढ़ने लगता है। ट्रेडिंग से जुड़े लोगों के पुराने संबंध खत्‍म होते हैं और नए स्‍थाई प्रगाढ़ संबंध बनते हैं और उत्‍पादन क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए उत्‍पादन इकाइयों में स्‍थाई और बड़े परिवर्तन का दबाव सामने आता है।

ये सभी परिवर्तन शुरू में पीड़ादायी सिद्ध होते हैं, लेकिन आगे की 19 साल की शनि की महादशा ज्‍यों ज्‍यों आगे बढ़ती चली जाती है, समय बताता है कि शनि की शुरूआती दौर में किए गए बड़े परिवर्तन ही उन्‍हें स्‍थाई उन्‍नति और स्‍थाई लाभ दिला रहे हैं।

वृषभ और तुला लग्‍नों में तो शनि सदैव ही अनुकूल परिणाम देता है, चाहे वह किसी भी स्थिति में हो, लाभदायक ही सिद्ध होता है। बहुत कम योग अथवा बहुत कम ऐसी स्थितियां होती हैं कि शनि नुकसान कर जाए। परिणाम में जल्‍दी अथवा देरी हो सकती है, लेकिन अनुकूल परिणाम मिलेंगे जरूर।

मकर और कुंभ लग्‍नों के लिए शनि चूंकि लग्‍नेश होता है, ऐसे में शनि को परिणाम देने के लिए शनि की महादशा में शुक्र की अंतरदशा आने का इंतजार करना पड़ता है। ऐसे जातकों की कुण्‍डली में शनि की महादशा में शुक्र का अंतर जातकों के जीवन स्‍तर तक को बदलने वाला सिद्ध होता है।

अन्‍य शेष सभी लग्‍नों के लिए शनि की महादशा मिश्रित फलदाई साबित होती है। शनि में शनि तो पीड़ादायी अथवा खराब जाएगा ही, संबंधित लग्‍न के कारक ग्रह एवं उसके शनि से संबंध के अनुरूप ही अंतरदशा का परिणाम आता है, ऐसे में यह पूरी तरह कुण्‍डली देखकर ही तय किया जा सकता है कि मिश्रित फलों में अनुकूल फल कब और प्रतिकूल फल कब मिलेंगे
: ★★ ज्योतिष-झरोखा – 👍🏻

☆☆ सूर्य के सात घोड़े

•• सूर्य की रोशनी में सात रंग शामिल हैं .. और इन सब रंगो के अपने अपने गुण और लाभ है ।

•• काँच की एक बोतल लें – उसे साफ पीने के पानी से भरकर सात दिन तक धूप में रखें और चाहे तो किसी सूती कपड़े से उसका मुँह बाँध लें ।
अब – जिस रंग की काँच की बोतल आप उपयोग में लायेंगे – उसमे सूर्य के उस रंग का गुण अथवा लाभ आ जायेगा ।

•• लाल रंग की काँच की बोतल – यह पानी ज्वर, दमा, खाँसी, मलेरिया, सर्दी, ज़ुकाम, सिर दर्द और पेट के विकार आदि में लाभ कारक है ।

•• हरे रंग की काँच की बोतल .- यह पानी स्नायुरोग, नाडी संस्थान के रोग, लिवर के रोग, श्वास रोग को दूर करने में सहायक है ।

•• पीले रंग की काँच की बोतल – यह पानी – चोट ,घाव रक्तस्राव, उच्च रक्तचाप, दिल के रोग, अतिसार आदि में फ़ायदा करता है ।

•• नीले रंग की काँच की बोतल – यह पानी – दाह, अपच, मधुमेह आदि में लाभकारी है ।

•• बैंगनी रंग की काँच की बोतल – यह पानी – श्वास रोग, सर्दी, खाँसी, मिर्गी ..दाँतो के रोग में सहायक है ।

•• नारंगी रंग की काँच की बोतल – यह पानी – वात रोग, अम्लपित्त, अनिद्रा, और कान के रोग दूर करता है ।

•• आसमानी रंग की काँच की बोतल – यह पानी – स्नायु रोग, यौनरोग, सरदर्द, सर्दी- जुकाम आदि में सहायक है ।

नोट :- कुछ दिन तक ये पानी थोड़ा-थोड़ा करके पियें – चाहें तो फिर से एक नई बोतल पानी से भरकर रखें ।
: मित्रो आज चिंतन करते है की गरीबी कैसे दूर हो गरीब होना बहूत बड़ी त्रासदी है सबसे पहले कारण ज्ञात कीजिए की गरीबी क्यो है बहूत सारी मेहनत करते है फ़िर भी इतनी मेहनत के बावजूद आर्थिक बदहाली बनीं रहती है जन्म कुण्डली औऱ चलित कुण्डली मे चेक करें की कही दूसरे भाव सें 12 वा भाव बलवान तो नहीं दूसरे भाव औऱ अष्टम चौथे दशम अथवा दूसरे भाव पति चौथे भाव पति अष्टम भाव पति दशम भाव पति निगेटिव ऊर्जा प्रदान करने वाले सें युति अथवा द्रष्टि पात तो नहीँ कही दूसरे भाव पति औऱ चौथे भाव पति नवम भाव पति लाभ भाव पति पीड़ित मतलब नीच के अथवा क्रूर ग्रहो सें युति या दृष्टी पात तो नहीं जो भाव पति पीड़ित हो तो उस भाव पति के स्वामी के सामने संकल्प लेकर कारण जो भी हो संकल्प मे कारण बताकर उसकी जो भी कुण्डली मे बनें हो उसकी निवारण के लिए उसके मंत्र जाप या स्तोत्र क़ो बोलकर करना चाहिए इसके बाद फ़िर उसके दिन जो हो धरती पर अग्नि का वास हो तो संकल्प निवारण का बोलकर हवन करना चाहिए लगातार करते रहने सें 100% गरीबी सें मुक्ति मिलेगी संयम औऱ द्रढ विश्वास के साथ करें उम्र भर करें एक घंटे अगर करेगे तो आगे चलकर जीवन मे मजदूर इस लायक बन जाएगा की वो लोगो सें मजदूरी कराए मित्रो ध्यान देना अपनी कुण्डली मत डाले पोस्ट मे मेरी विनती है आप लोगो सें कुण्डली फलित कराए किसी astrologer सें मेरे पास इतना समय नहीँ होता औऱ उपाए करें औऱ इसी विश्वास के साथ अपने कल्याण के लिए मेहनत जो पैसा कमाने के लिए करते हो एक घंटे अपनी बिगड़ी बनाने मे कीजिए तो तो भविष्य का निर्माण होंगा अगर 14/ 15 साल के बच्चे हो जाए तो उनकी कुण्डली मे जो प्रॉब्लम हो तो उसके निवारण के लिए शुरू करवा दे तो 100% बच्चे का भविष्य बनेगा ये मेरा दावा है उपाए करने के बाद।
: सिद्धियाँ कैसे प्राप्त होती हैं ?


पूजा -पाठ रोज करोड़ों लोग करते हैं और विश्व परिप्रेक्ष्य में देखें तो अरबों लोग रोज कहीं न कहीं पूजा आराधना करते हैं भले उनके आराध्य ईश्वर अलग हों |सभी अपने ईश्वर से अपनी मनोकामना कहते हैं और अधिकतर चाहते हैं की उनकी इच्छा उनका ईश्वर सुने और पूर्ण करे किन्तु बहुत ही कम लोगों की इच्छाएं पूर्ण होती हैं क्योकि वह लेने की तकनीक ही नहीं जानते |कुछ लोग ईश्वर को अपने पास बुलाना चाहते हैं और चाहते हैं की उन्हें उनके आराध्य की शक्ति मिले ,सिद्धि मिले |साधना तो हजारों हजार करते हैं पर सबको सफलता नहीं मिलती ,केवल कुछ को सफलता मिलती है उनमे भी कुछ को ही वास्तविक सिद्धि प्राप्त हो पाती है ,अन्य के कुछ काम हो जाते हैं और वह उसी आत्म संतुष्टि में खुद को सिद्धि का भी कभी कभी स्वामी मान लेता है |सिद्धि का अर्थ है सम्बंधित विषय से सम्बंधित शक्ति का साधक के नियंत्रण में आ जाना अथवा वशीभूत हो जाना ,यह बहुत कम होता है और इसकी अपनी एक तकनिकी है |इसका आडम्बर आदि से कोई लेना देना नहीं होता |इसमें सबसे मुख्य भूमिका मष्तिष्क की होती है ,अवचेतन मन की होती है ,अन्य सभी माध्यम सम्बंधित ऊर्जा उत्पन्न करने अथवा बढाने का काम करते हैं |

आप जब साधना करें तो यह बात हमेशा याद रखें की आप किसी शक्ति को नहीं साध सकते ,आप तो हाथ जोड़े खड़े हैं ,कोई भी शक्ति आपसे बड़ी है ,अधिक क्षमता वान है तभी तो आप उसकी साधना कर रहे हैं ,तो आप उसे कैसे साध सकते हैं |आप उसकी साधना में खुद को साध रहे हैं |खुद को साधना है आपको और ऐसा बनाना है की वह शक्ति आपमें समाहित हो सके ,आपमें आ सके तभी आपको सिद्धि मिलेगी ,आपकी साधना सफल होगी और आपको उस शक्ति की शक्ति प्राप्त हो पाएगी |खुद को साधने के क्रम में खुद को उस शक्ति के गुण ,स्वभाव ,आचरण के अनुकूल आपको अपने शरीर और भाव को बनाना होता है तभी आप उससे तालमेल बना पाते हैं और आपके पुकारने पर वह शक्ति जब आपको और आपके शरीर को अपने अनुकूल पाती है तभी वह आपके पास आती है और आपमें समाहित होती है ,आपका शरीर और आसपास का वातावरण उसकी ऊर्जा से संतृप्त होता है |आपको अनुकूल न पाने पर या तो वह शक्ति आएगी ही नहीं और आ भी गयी तो वापस चली जायेगी या उसकी उर्जा एकत्र नही हो पाएगी और बिखर जायेगी |याद कीजिये कि विष्णु ,सरस्वती की पूजा -उपासना में पवित्रता ,सुचिता ,शुद्धता के लिए क्यों कहा जाता है ,जबकि कर्ण पिशाचिनी ,श्मशानिक शक्तियों आदि की उपासना में क्यों तामसिक वातावरण में साधना को निर्देशित किया जाता है |कारण है की जिस तरह की शक्ति की उपासना कर रहे उसके अनुकूल वातावरण ,पूजा का तरीका ,चढ़ाए जाने वाले सामान और आपका भाव होना चाहिए तभी वह आ पाएगी और जुड़ पाएगी |विपरीत भाव ,विपरीत वस्तुएं और विपरीत पद्धति शक्ति को प्रतिकर्षित कर देती है |

किसी एक भाव में डूबिये ,उद्देश्य के अनुसार भाव बनाइये ,यदि वह किसी देवी-देवता का भाव है |अपने उद्देश्य के अनुसार देवी-देवता का चुनाव करें और खूब अच्छी तरह उसे समझें -जानें ,उसके कर्म-गुण-भाव के अनुसार अपना भाव बनाएं [उग्र शक्ति हेतु उग्र भाव और सौम्य शक्ति हेतु सौम्य भाव ],उसके प्रति अपने मन में भाव उत्पन्न करें की आप किस रूप में उस शक्ति का अपने लिए आह्वान कर रहे हैं |अब उस भाव में डूबकर विधिवत निश्चित समय ,दिशा ,सामग्री ,हवन समिधा आदि के द्वारा विधि पूर्वक प्रत्येक तकनिकी और पूजा पद्धति को अपनाकर उसी में लींन हो जाएँ ,डूब जाएँ |५ मिनट की स्मृति विहीनता प्राप्त हो जाए तो आप कोई भी देवता ,कोई भी मंत्र सरलता से सिद्ध कर सकते हैं |यह ठीक उसी प्रकार है ,जैसा बस के ड्राइवर को ट्रक ड्राइविंग का अभ्यास करना पड़े |यह केवल वाहन बदलना है और उसकी तीब्रता को नियंत्रित करने जैसा है |हां इसके लिए पहले तो आपको बस चलाना ,उसके पहले हलके वाहन और उसके पहले छोटा वाहन चलाना आना ही चाहिए ,|अचानक तो बस या ट्रक जान ले लेगा |अतः सर्व प्रथम तो एकाग्रता का अभ्यास ही होना चाहिए और छोटी-छोटी क्रियाएं ,तकनीकियाँ आनी चाहिए |

वाम मार्ग की तकनीकियों में संयम की कठोरता इतनी नहीं है |इसमें साधक के लिए ,साधना के समय संयम रखने के लिए केवल काली ,भैरव आदि की साधना में विशेष आवश्यकता पड़ती है |इसमें तकनिकी ,तंत्र -सामग्री ,शरीर के अंगों आदि का महत्व है ,जिन्हें अभ्यासित करना पड़ता है |इससे शक्ति उत्पन्न होती है |साधक को उस शक्ति को नियंत्रित करने भर का अभ्यास करना होता है |इस नियंत्रण के लिए ही तंत्र साधना की जाती है ,खुद को साधा जाता है |जैसे काम भाव जाग्रत कीजिये पर स्खलन किये बिना समाधिस्थ हो जाइए |इसमें पहले रीढ़ की हड्डी से होकर ऊर्जा उपर खींचा जाता है |यह सब तकनीकियाँ हैं |इन्ही तकनीकियों के लिए गुरु की आवश्यकता पड़ती है |कैसे क्या क्रिया करनी चाहिए ,यह जाने बिना सफलता नहीं मिल सकती |इसीलिए तंत्र साधना बिना गुरु के नहीं हो सकती |

सिद्धि की विधि कोई हो ,मार्ग कोई हो ,यदि सफलता चाहिए तो मानसिक शक्ति की तीब्रता ,दृढ़ता ,भाव को स्थिर किये रहने की क्षमता का विकास ही उद्देश्य होता है |जिसने इसे प्राप्त कर लिया उसके लिए सभी सिद्धियाँ आसान हैं |विधि और मार्ग के अनुसार केवल कुछ तकनीकियाँ बदलती हैं मूल सूत्र यथावत रहते हैं |मानसिक एकाग्रता और भाव के बिना कोई सिद्धि या साधना सफल नहीं हो सकती |तकनिकी और सामग्री ऊर्जा उत्पन्न करते या बढाते हैं और उसे नियंत्रित करने का तरीका बताते हैं पर मूल शक्ति का आकर्षण और नियंत्रण मानसिक बल से ही होता है |मानसिक बल ,आत्मबल ,साहस ,धैर्य ,अट्टू निष्ठां और खुद पर विश्वास के साथ जब भाव गहन हो ,एकाग्रता हो तो कोई भी शक्ति सिद्ध की जा सकती है ,इन गुणों को विकसित करना ही तो खुद को साधना है जो आप साधते हैं |इनके बल पर ही शक्तियाँ आती हैं और वशीभूत ,आकर्षित होती हैं ,उनकी ऊर्जा आपमें और आसपास संघनित होती है |मानसिक बल से से ,मानसिक तरंगों की क्रिया से ही यह उर्जा काम करती है जिसे सिद्धि कहते हैं |

………………………………………………………..हर-हर महादेव
: राधे राधे ॥ आज का भगवद चिन्तन
🌤 दूसरों को अपनी बात मानने के लिये बाध्य करना सबसे बड़ी अज्ञानता है। यहाँ हर आदमी एक दूसरे को समझाने में लगा हुआ है। हम सबको यही बताने में लगे हैं कि तुम ऐसा करो, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिये था। तुम्हारे लिये ऐसा करना ठीक रहेगा।
🌤 ये सब अज्ञानी की अवस्थायें हैं ज्ञानी की नहीं। ज्ञानी की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह किसी को सलाह नहीं देता, वह मौन रहता है, मस्ती में रहता है, वह अपनी बात को मानने के लिए किसी को बाध्य नहीं करता है।
🌤 इस दुनिया की सबसे बड़ी समस्या ही यही है कि यहाँ हर आदमी अपने आपको समझदार और चतुर समझता है और दूसरे को मूर्ख। सम्पूर्ण ज्ञान का एक मात्र उद्देश्य अपने स्वयं का निर्माण करना ही है। बिना आत्म सुधार के समाज सुधार किंचित संभव नहीं है। “” हम सुधरेंगे युग सुधरेगा “”
: परमार्थ के निमित्त

★ इक संत कहे मे इक अनकहे मे, वो सदा लाभ मे ही रहेगा जो संत कहे मे रहेगा

• बहुत समय पहले की बात है वत्स एक गाँव मे दो परिवार रहते थे एक का मुखिया रामप्रकाश और दुसरे का मुखिया जेठामल था! एक बार गाँव मे बाहर से कोई संत आये और गाँव मे प्रवचन हुआ तो एक दिन संत श्री कह रहे थे की सच्चा और अच्छा जीवन त्याग और तपस्या मे है! आप जो भी कमाओ अथवा तो आपको जो भी मिले उस मेसे परमार्थ के लिये कुछ न कुछ भाग जरूर निकालना!

• यदि आप साधना भी करते हो तो उस साधना मेंसे भी अपनी श्रध्दानुसार परमार्थ के लिये कुछ न कुछ जरूर निकालना ताकि आपके आगे का मार्ग बने और आप धर्म-पथ पे सहजता से चल सको!

• बहूत समय बीत गया और एक दिन रामप्रकाश और जेठामल की एक कार दुर्घटना मे एक साथ मृत्यु हो गई संयोगवश दोनो का ही बीमा था तो दोनो के ही परिवारों को पाँच पाँच लाख रुपये मिले दोनो के ही घर मे चार चार सन्तानें थी तो जेठामल के परिवार ने सवा सवा लाख रुपया आपस मे बाट लिया और रामप्रकाश के परिवार ने उस पाँच लाख में से एक लाख परमार्थ के निमित्त निकाला और एक एक लाख आपस मे बाट लिये!

• रामप्रकाश के पुत्र बड़े संस्कारी थे और उन्होंने परमार्थ का एक अलग ही डिब्बा बना लिया और रोज अपनी श्रद्धानुसार उसमें कुछ न कुछ डालते थे! फिर भाग्य ने ऐसी करवट बदली की एक समय वो आया की वो दाने दाने को मोहताज हो गये अर्थ न था पर वो सभी रोज साधना का कुछ भाग अपनी श्रद्धानुसार परमार्थ के लिये जरूर निकालते थे!

• फिर भाग्य ने करवट बदली और एक दिन जेठामल और रामप्रकाश के घर मे सफाई का कार्य चल रहा था तो वहाँ उन्हे पाँच पाँच सोने की ईंटें मिली! और कुछ सालो बाद रामप्रकाश का परिवार एक बहुत ऊँचे ओहदे पर पहुँच गया और उधर जेठामल का पुरा परिवार तबाही के सागर मे समा गया!

• जब उन पाँच ईंटों का बँटवारा चल रहा था तो रामप्रकाश के परिवार वालों की बड़ी ईच्छा थी कई वर्ष हो गये परमार्थ के निमित्त कुछ निकला नही तो रामप्रकाश के परिवार ने एक ईंट परमार्थ के निमित्त निकाल दी और उधर जेठामल के परिवार वालों ने एक एक ईंट तो ले ली पर बची उस एक ईंट के चक्कर मे उनमें आपस मे विवाद हो गया और फिर चारों भाई आपस मे लड़ने लगे और विवाद इतना बड़ा की चारों कोर्ट कचहरियों के चक्कर मे उलझ गये और कई सालो तक वो आपस मे कोर्ट कचहरी मे लड़ते रहे और जो कुछ भी उनके पास था सब कुछ कोर्ट कचहरी के चक्कर मे चला गया!

• यदि उन्होंने विवेक से काम लिया होता तो सबकुछ बर्बाद न होता! संत श्री ने तो दोनो को ही समझाया था की परमार्थ के निमित्त कुछ न कुछ निकालते रहना! पर एक संत के कहे मे रहा और दुसरा स्वार्थ के घेरे मे! आज यहाँ इंसान एक एक इंच जमीन के चक्कर मे अपनी अनमोल मानव देह को बर्बाद कर रहा है!

• इसलिये नित्य प्रतिदिन अपनी श्रद्धानुसार चाहे धन चाहे तप चाहे जप अथवा तो कुछ भी परमार्थ के निमित्त कुछ न कुछ जरूर निकालते रहे ताकि तुम्हारा आगे का मार्ग प्रशस्त हो और ये बहुत जरूरी भी है क्योंकि इसी से भाग्य के पत्थर हटेंगे और आगे की राह खुलेगी!

• परमार्थ के निमित्त निकाला हुआ कभी व्यर्थ नही जाता देर सवेर वो हमारे ही काम आता है!…

🙏 आजका सदचिंतन 🙏
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पद के बिना भी सेवा हो सकती है
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मान प्रतिष्ठा और ख्याति की महत्वाकांक्षा भी धन की तरह संसार में भारी विपत्ति उत्पन करने वाली सिद्ध होती है। पद, प्रतिष्ठा, सत्ता और अधिकार के लोभ में उतने ही अनर्थ होते हैं जितने धन – लिप्सा से होते हैं। सच बात यह है कि बिना पदाधिकारी बने कोई भी व्यक्ति किसी संस्था की अधिक ठोस सेवा कर सकता है, पर लोगों को सेवा की नहीं प्रतिष्ठा की भूख रहती है, फलस्वरूप सेवा संस्थान और सार्वजनिक संगठनों को कलह का अखाड़ा बनाते और दुर्गतिग्रस्त होते आए दिन देखा जाता है।

      *विचार क्रांति अभियान*

🙏 सबका जीवन मंगलमय हो 🙏
: 🔴 “दान के प्रकार”

🔴 “सात्विक दान”
हे अर्जुन!! दान देना ही कर्तव्य है- ऐसे भाव से जो दान देश तथा काल ( जिस देश-काल में जिस वस्तु का अभाव हो, वही देश-काल उस वस्तु द्वारा प्राणियों की सेवा करने के लिए योग्य समझा जाता है) और पात्र ( भूखे, अनाथ, दुःखी, रोगी और असमर्थ तथा भिक्षुक आदि तो अन्न, वस्त्र और औषधि एवं जिस वस्तुका जिसके पास अभाव हो, उस वस्तु द्वारा सेवा करने के लिए योग्य पात्र समझे जाते हैं और श्रेष्ठ आचरणों वाले विद्वान ब्राह्मणजन धनादि सब प्रकार के पदार्थों द्वारा सेवा करने के लिए योग्य पात्र समझे जाते हैं।) के प्राप्त होनेपर उपकार न करने वाले के प्रति दिया जाता है, वह दान सात्विक कहा गया है।
🔴 “राजस दान”
किन्तु जो दान क्लेशपूर्वक(जैसे आजकल चंदे चिठ्ठे आदि में धन दिया जाता है) तथा प्रत्युपकार के प्रयोजन से अथवा फल को दृष्टि में रखकर( अर्थात मान, बड़ाई, प्रतिष्ठा और स्वर्गादि की प्राप्ति के लिए अथवा रोगादि की निवृत्ति के लिए) दिया जाता है, वह दान राजस कहा गया है।
🔴 “तामस दान”
हे अर्जुन!! जो दान बिना सत्कार के अथवा तिरस्कारपूर्वक अयोग्य देश-काल में और कुपात्र के प्रति दिया जाता है, वह दान तामस कहा गया है।”

  • भगवान श्रीकृष्ण
    श्रीमद्भगवदगीता अध्याय १७, श्लोक २०-२१-२२
    🙏🙏🙏🙏🙏
    “जो देता है, वह देवता कहलाता है।”
    🙏🙏🙏🙏🙏
    “अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है।”
    : , 🙏श्री गणेशाय नम:🙏 : , "ॐ साई राम "

जानिए जन्म कुंडली के पंचम भाव से शिक्षा और संतान के विषय मे कैसे लें जानकारी

किसी भी जातक की जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों के आधार पर यह जाना जा सकता है कि बच्चा किस क्षेत्र में अपना करियर बनाएगा। वह नौकरी करेगा या कोई बिजनेस। हाल ही में कई परीक्षाओं के परिणाम जारी हुए हैं। ऐसे में अभिभावकों और बच्चों के लिए करियर संबंधी यह ज्योतिषीय जानकारी बेहद मायने रखती है। जन्मकुंडली से बच्चे की शिक्षा और रोजगार के संबंध में सटीक जानकारी हासिल की जा सकती है।*
आइये सबसे पहले देखते हैं शिक्षा के बारे में क्या कहती है। किसी भी जातक की जन्म कुंडली के पंचम भाव से शिक्षा का विचार किया जाता है। पंचम भाव एवं पंचमेश की स्थिति जितनी अच्छी होगी, बच्चे की शिक्षा भी अच्छी होगी।
पंचम भाव में शुभ ग्रह हो, पंचम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो, पंचमेश शुभ भाव में बैठा हो, पंचम भाव का कारक ग्रह भी पंचम भाव या किसी भी केंद्र या त्रिकोण में हों तो बच्चे की शिक्षा भी उतनी ही उच्च दर्जे की होती है। इसके विपरीत यदि पंचम भाव में पाप ग्रह मौजूद हों, पंचम भाव पाप ग्रहों से घिरा हो, पंचमेश पाप प्रभाव में या छठे, आठवें, 12वें भाव में हो तो विद्या में बाधा आती है।

पंचम भाव से जानें अपने बच्चे का भविष्य-

ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार किसी भी भाव का स्वामी यदि व्यय भाव में बैठ जाए तो उस भाव के गुणों की हानि होती है। इसी के अनुसार यदि पंचम भाव का स्वामी व्यय भाव यानी 12वें भाव में बैठ जाए तो शिक्षा में कमी रहती है। हालांकि शिक्षा का विचार करते समय गुरु की स्थिति भी देख लेना चाहिए। यदि पंचम भाव में गुरु उच्च का होकर वक्री हो गया हो तो उसका उच्चत्व समाप्त हो जाता है और वह साधारण हो जाता है।

अब देखते हैं बिजनेस और सर्विस के योग-
बच्चे ने जैसे-तैसे शिक्षा तो ग्रहण कर ली लेकिन वह व्यापार करेगा या नौकरी, यह दूसरी चिंता होती है। कुंडली में दशम भाव से व्यापार और नौकरी का विचार किया जाता है।
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दशम भाव में जो ग्रह मौजूद हो उनके स्वभाव के अनुसार व्यापार करने से लाभ होता है। यदि कोई ग्रह नहीं है तो दशमेश के अनुसार व्यापार का चयन किया जाना चाहिए।

उदाहरण के लिए यदि दशम भाव में मंगल है तो व्यक्ति साहसिक कार्य करेगा।
जैसे सेना, पुलिस में जाएगा या व्यापार करेगा तो भूमि, संपत्ति, कृषि कार्यों में लाभ प्राप्त करेगा। यदि दशमेश बुध हो तो व्यक्ति व्यापार में लाभ उठाता है, लेकिन गोचर में बुध किस घर में बैठा हुआ है वह देखना भी जरूरी है।
बुध व्यापार का प्रतिनिधि ग्रह है। साझेदारी में व्यापार करना हो तो सप्तम भाव से तथा स्वतंत्र व्यापार करना हो तो दशम भाव से विचार किया जाता है। बुध, संबंधित भाव एवं भावेश की स्थिति अनुकूल होने पर व्यापार से लाभ होता है। द्वितीय भाव तथा द्वितीयेश की स्थिति अच्छी होना और भी अच्छा होता है बुध का दशम भाव से संबंध व्यापार के क्षेत्र में सफलता दिलाता है।

नौकरी संबंधी जानकारी सूर्य और मंगल की स्थिति देखकर पता की जाती है। दशम भाव में उच्च का मंगल हो तो अच्छा जॉब मिलता है। मंगल बली होकर किसी भी केंद्र या त्रिकोण में हो, अष्टम भाव को छोड़कर मंगल किसी भी भाव में उच्च का हो तो श्रेष्ठ जॉब मिलता है।

दशम भाव में सूर्य या गुरु उच्च राशि, स्वराशि या मित्र क्षेत्रीय हो तो जातक नौकरी में उच्च पद तक पहुंचता है।
विद्वान मित्रों, जन्म कुंडली के पंचम भाव से सन्तान का विचार किया जाता हैं। ऐसा क्यों होता है? ये सब ग्रहों की वजह से होता है। यहाँ पर हम ऐसी बातों को जानने और समझने का प्रयास करेंगें की आप भी जान सकें कि संतान होगी या नहीं।???

जन्म कुंडली मे पंचम स्थान संतान का होता है। वही विद्या का भी माना जाता है। पंचम स्थान कारक गुरु और पंचम स्थान से पंचम स्थान (नवम स्थान) पुत्र सुख का स्थान होता है। पंचम स्थान गुरु का हो तो हानिकारक होता है, यानी पुत्र में बाधा आती है।पंचम भाव का स्वामी सूर्य और कारक वही गुरु को बनाया गया क्यों की सूर्य रुपी प्रकाश द्वारा ही हम पंचम रुपी विद्या ग्रहण करते हैं और इसके संतान कारक होने का कारण भी यही है के संतान ही अपने माता पिता का नाम रौशन करती है , इसी पंचम से हर व्यक्ति की मानसिकता भी देखी जाती है तो उन कारकों की पोजीशन के अनुसार ही हम कोई निर्णय ले सकते हैं।

पंचम स्थान का अधिपति छठे में हो तो दत्तक पुत्र लेने का योग बनता है। पंचम स्थान में मीन राशि का गुरु कम संतान देता है। पंचम स्थान में धनु राशि का गुरु हो तो संतान तो होगी, लेकिन स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। गुरु का संबंध पंचम स्थान पर संतान योग में बाधा देता है। सिंह, कन्या राशि का गुरु हो तो संतान नहीं होती। इस प्रकार तुला राशि का शुक्र पंचम भाव में अशुभ ग्रह के साथ (राहु, शनि, केतु) के साथ हो तो संतान नहीं होती।

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: ||#गुरुचांडालयोगकीदशा|| गुरु चांडाल योग सबसे एक अशुभ योग होता है इस योग में जन्मे जातक के लिए राहु की महादशा या अन्तर्दशा होने पर ठीक स्थिति नही होती।गुरुचंडाल योग गुरु राहु या गुरु केतु की युति से बनता है।टॉपिक इस विषय पर है की गुरु चांडाल योग की दशा और गुरु चांडाल योग में राहु की दशा आना सबसे ज्यादा ख़राब स्थिति होती है क्योंकि राहु की महादशा होने पर यह 18साल जातक को अपने इशारे पर नाचायेगा फिर इस राहु के बाद गुरु की ही महादशा या राहु के बाद गुरु की ही अन्तर्दशा आती है और गुरु भी राहु या केतु के साथ गुरु चांडाल योग में होता है तो गुरु चांडाल के फल बहुत ज्यादा ख़राब मिलेंगे क्योंकि राहु की दशा-अन्तर्दशा और राहु के बाद तुरंत बृहस्पति गुरु की दशा अन्तर्दशा आती है इस तरह से लम्बे समय तक जातक गुरु चांडाल योग के फल भोगता है।कुंडली में एक मात्र यही योग है राहु और गुरु से बनने वाला जिसकी दशा क्रम से आती है मतलब जो दो ग्रह राहु गुरु अशुभ गुरुचंडाल योग बना रहे है इन दोनों ग्रहो की दशा का भोग जातक को करना होता है जबकि अन्य अशुभ योगो जैसे सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण में सूर्य राहु केतु या चन्द्र राहु केतु की दशा लगातार क्रम से नही आती।। उदारहण अनुसार:- मेष लग्न की कुंडली के दसवे भाव में गुरु राहु की युति होने से गुरु चांडाल योग बनेगा यदि अब राहु की अन्तर्दशा या महादशा आएगी तो इस योग के फल भोगेगा जातक राहु की दशा तक लेकिन जैसे ही राहु की दशा खत्म होगी तुरंत बृहस्पति की दशा शुरू हो जायेगी जो की बृहस्पति राहु/केतु के प्रभाव है तो फिर वही गुरु चांडाल योग के फल भोगने को मिलेंगे।अब गुरु राहु के साथ मेष लग्न के दसवे भाव में भाग्य का स्वामी होकर गुरु नीच का हो गया है तो अब इस योग के अशुभ फलो का प्रभाव जातक के भाग्य और कार्य छेत्र(रोजगार) पर पड़ेगा।जो की लम्बे समय के लिए समय ख़राब रहेगा यदि राहु की दशा जातक पर आ जाती है तब क्योंकि राहु की दशा ख़त्म होते ही तुरंत गुरु की दशा चालू हो जायेगी ओर गुरु खुद गुरुचंडाल योग बना रहा है।इस तरह से गुरु चांडाल योग की दशा के दुष्प्रभाव लम्बे समय तक के लिए होते है हालांकि दुष्प्रभाव कम मात्र में होंगे या ज्यादा मात्रा में होंगे यह सब कुंडली में गुरु राहु/केतु की स्थिति पर निर्भर करेंगे।इसी तरह मंगल राहु से बनने वाला अंगारक योग की दशा का प्रभाव होता है यदि उसमे मंगल की दशा आती है तो मंगल के बाद तुरंत राहु की दशा आएगी जो इसी गुरु चांडाल के समान लम्बे समय तक अशुभ फल देगी, मंगल योगकरक या कारक होकर शुभ हुआ या मंगल राहु की युति शुभ स्थिति में हुई तब शुभ फल भी मिल सकते है ऐसे ही गुरु चांडाल योग में गुरु कारक हुआ और सही भाव में गुरु राहु/केतु युति हुई तब इसके फल भी शुभ मिल सकते है निर्भर करेगा कुंडली में इस योग की स्थिति क्या और कैसी है?.
: संसार में प्रत्येक व्यक्ति का कोई न कोई सहयोगी होता है, तथा कोई न कोई विरोधी भी होता है । सहयोगी और विरोधी की सही पहचान करें ।
जो व्यक्ति सहयोगी और विरोधी की पहचान ठीक तरह से कर लेता है , और उसके अनुसार यथा योग्य व्यवहार करता है , वह जीवन में कभी असफल नहीं होता ।
जो आपके विरोधी हैं,वे आपके शिक्षक हैं। वे आपके दोष ढूंढ ढूंढ कर आपको या दूसरों को बताते हैं । उनकी बात पर ध्यान देना चाहिए।
यदि उनकी बात में सत्य है, तो उसे प्रेम पूर्वक स्वीकार करना चाहिए, तथा अपने उन दोषों को दूर करना चाहिए। ऐसा करने से आपकी उन्नति होगी । आपके दोष कम होते जाएंगे , आपका दुख घटता जाएगा। यदि आप इस प्रकार से सोचें , तो आपको अपने विरोधियों से द्वेष नहीं होगा । यदि उनकी बात झूठ है , तो उनकी झूठी बातों की परवाह न करें ।
यदि उनकी झूठी बातों से समाज में भ्रांति फैलती हो, तो समाज के बुद्धिमान लोगों को अपना स्पष्टीकरण सुना देवें, कि अमुक व्यक्ति ने मुझ पर जो आरोप लगाया है, वह झूठा है । जिसको मेरी परीक्षा करनी हो , वह परीक्षा कर सकता है । ऐसा सोचने और करने से आप न तो दुखी होंगे, न उस व्यक्ति के प्रति आपको द्वेष होगा , और न ही समाज में भ्रांति फैलेगी।

दूसरी बात – जब आपके अंदर कुछ गुण बढ़ेंगे, तो आपमें अभिमान भी उत्पन्न होगा । वह आप का शत्रु है । उससे बचकर रहें। अभिमान को उत्पन्न न होने दें । हो जाए, तो सब कुछ विद्या तथा सम्पत्ति ईश्वर की है, ऐसा सोचें। इससे अभिमान का नाश हो जाएगा।
तीसरी बात – जो आपने पढ़ा सीखा, उससे जो वास्तविक ज्ञान उत्पन्न हुआ , वह आपका मित्र है। उसी को विवेक या विज्डम कहते हैं, उसे सदा अपने साथ रखें । वही आपका सच्चा मित्र है, वही आपके सुखों को बढ़ाएगा । उस विवेक के अनुसार उत्तम आचरण करें , यही आपका कल्याण करेगा ।
: लोगों को स्वर्ग प्राप्ति की बहुत इच्छा है। ऐसा उनके व्यवहार से पता चलता है। धार्मिक क्षेत्र में आप देखें , प्रतिदिन सब लोग अपने अपने धर्म स्थानों पर जाते हैं। उन स्थानों पर जाकर अपने अपने ढंग से पूजा-अर्चना करते हैं। उनके मन में कहीं ना कहीं स्वर्ग प्राप्ति की कामना है। दिन भर बहुत से काम भी करते हैं, परंतु क्या उन्हें स्वर्ग मिल पाता है ? नहीं। क्योंकि वे लोग स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग नहीं जानते। स्वर्ग प्राप्ति के काम नहीं करते।
ईश्वर को ठीक प्रकार से नहीं जानते । ईश्वर के आदेश को नहीं समझते। अपने व्यवहार को शुद्ध नहीं रखते । झूठ छल कपट धोखा बेईमानी चालाकी ठगी इत्यादि गलत कामों से कभी भी स्वर्ग नहीं मिलता। यदि आप भी स्वर्ग चाहते हों, तो सेवा परोपकार नम्रता दान दया बड़ों का आदर सम्मान अनुशासन आदि उत्तम कर्मों को अपने जीवन में धारण करें। यही है सही पासवर्ड , जो आपके स्वर्ग के दरवाजे को खोलेगा . –
: लोगों को स्वर्ग प्राप्ति की बहुत इच्छा है। ऐसा उनके व्यवहार से पता चलता है। धार्मिक क्षेत्र में आप देखें , प्रतिदिन सब लोग अपने अपने धर्म स्थानों पर जाते हैं। उन स्थानों पर जाकर अपने अपने ढंग से पूजा-अर्चना करते हैं। उनके मन में कहीं ना कहीं स्वर्ग प्राप्ति की कामना है। दिन भर बहुत से काम भी करते हैं, परंतु क्या उन्हें स्वर्ग मिल पाता है ? नहीं। क्योंकि वे लोग स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग नहीं जानते। स्वर्ग प्राप्ति के काम नहीं करते।
ईश्वर को ठीक प्रकार से नहीं जानते । ईश्वर के आदेश को नहीं समझते। अपने व्यवहार को शुद्ध नहीं रखते । झूठ छल कपट धोखा बेईमानी चालाकी ठगी इत्यादि गलत कामों से कभी भी स्वर्ग नहीं मिलता। यदि आप भी स्वर्ग चाहते हों, तो सेवा परोपकार नम्रता दान दया बड़ों का आदर सम्मान अनुशासन आदि उत्तम कर्मों को अपने जीवन में धारण करें। यही है सही पासवर्ड , जो आपके स्वर्ग के दरवाजे को खोलेगा . –
: सब लोग प्रसन्न रहना चाहते हैं , दुखी होना कोई भी नहीं चाहता। फिर भी चारों तरफ का वातावरण, परिस्थितियां , अलग-अलग लोगों का अलग-अलग स्वभाव , उनके विचारों की भिन्नता, शारीरिक रोग , मानसिक चिंताएं इत्यादि कारणों से लोग प्रसन्न नहीं रह पाते। यदि आप भी इन कारणों से चिंतित परेशान या दुखी रहते हों, तो इन समस्याओं का समाधान तो अवश्य ढूंढें, परंतु चिंता ना करें, तनाव में ना रहें।
चिंता करने से तो समस्याएं और अधिक बढ़ती हैं, कम नहीं होती।
इसलिए समाधान पूरा ढूंढें। समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रयत्न पूरा करें । फिर परिणाम जो भी हो , उसे खुशी से स्वीकार करें। ऐसी मानसिकता और ऐसा आचरण करने से आप प्रसन्न रह सकते हैं। तो प्रसन्न रहने का अभ्यास बनाएं , चिंतित रहने का नहीं ।

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