पानी(उदक) के घटक विज्ञान और वेद :~~~~
वर्तमान विज्ञान में जल के घटक क्या हैं आप सब जानते है H2O. अब हम बात करतें हैं वेद के अनुसार उदक(पानी) का घटक क्या है । तो इसके लिए हम पहले एक समीकरण रखतें हैं यथा :–
【(मित्र +वरुण =मैत्रावरुण) ]+【 उर्वशी 】= वशिष्ठ
निरुक्त निघण्टु में मित्र और वरुण या मैत्रावरुण को वायु कहा गया है , वर्तमान विज्ञान के H ( हाइड्रोजन) O (ऑक्सिजन)
इन्हीं दोनों को वेदों में प्रकरण के आनुसा मित्र और वरुण कहा है । इसी निरुक्त में इन्हें जल का करक भी कहा है । आगे ऋग्वेद में भी कुछ इस प्रकार कहा है ,
मित्रंहुवेपूतदक्षंवरुणंच_रिशादसम।
धियंघृताचींसाधन्ता। । (ऋग्वेद १.२.७)
अर्थ :(पूतदक्षं मित्रम्) पवित्र करने में दक्ष मित्र (रिशादशं वरुणं च) और ख़राब करने वाले वरुण को भी मैं ग्रहण करूँ, (घृताचीं धियं साधन्ता) चे दोनों पानी का निर्माण या प्रमाण करते हैं।
उतासिमैत्रावरुणोवशिष्ठोर्वश्याब्रह्मन्मनसोअधिजातः।
#द्रप्संस्कन्नंब्रह्मणादैव्येनविश्वेदेवाः #पुष्करे_त्वादद्रन्त। ।(ऋग्वेद ७.३३.११)
अर्थात् (वसिष्ठ उत मैत्रावरुणः असि) हे वासकतम जल, तू मित्र-वरुण का है या उनसे बना है, (ब्रह्मन् उर्वश्याः मनसः अधिजातः) अन्नदाता! तू विद्युत के सामर्थ्य से उत्पन्न हुआ है (द्रप्सं स्कन्नं त्वा) जल के रूप में परिणत, तुझको विद्वानों के अन्न हेतु सूर्यकिरणें अंतरिक्ष में धारण करती हैं।
अब क्रमशः तीनों मैत्रावरुण इसी को पुरुरवा भी कहतें है अर्थात मित्र और वरुण एवं उर्वशी को देखतें हैं –
मैत्रावरुण जब घना होता है तो उसे पुरुरवा कहते
शतपथ ब्राह्मण १/८/३/१२ मैं कहा कि प्राण वायु और उदान वायु ही मित्र और वरुण हैं #प्राणोदानौवैमित्रावरुणौ एवं उर्वशी को विद्युत कहते हैं ऋग्वेद के इस मंत्र १०/१५/१० पर भाष्यकार स्कन्द का कथन है कि विद्युत के समान याविद्युत रूप स्तनयित्नु लक्षणा वाणी का अधिदेवता उर्वशी है – #विद्युदिवयाउर्वशीस्तनयित्नुलक्षणयावाचोअधिदेवता’।
अब हम आधुनिक विज्ञान पर दृष्टि डालते हैं। विज्ञान से आज सिद्ध है कि आक्सीजन एवं हाइड्रोजन नामक दो गैसों में विद्युत संचार कराने पर जल का निर्माण होता है। इस वैज्ञानिक।सत्य के साथ जब हम उपरोक्त उर्वशी तथा मित्र वरूण की तुलना करते हैं तो पाते हैं कि उर्वशी विद्युत का स्थान लेती है और मित्र-वरुण क्रमशः ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन के स्थान पर आते हैं। उर्वशी पहले ही विद्युत सिद्ध हो चुकी है और शतपथ ब्राह्मण से मित्र-वरूण क्रमशः प्राणवायु एवं उदानवायु सिद्ध होते हैं। प्राण वायु ऑक्सीजन है और विज्ञान एवं।वैदिक साहित्य से प्राप्त गुण-साम्य के कारण उदान वायुहाइड्रोजन सिद्ध होता है, क्योंकि विज्ञान भी हाइड्रोजन को ऊपर।उठने वाली हल्की गैस कहता है और योग-दर्शन के व्यास-भाष्य में भी उदानवायु को ऊपर उठने वाला कहा गया है – ” #उन्नयनात्_उदानः (व्यास भाष्य-३/३६)। तब वशिष्ठ वृद्धि जल ही होगा, क्योंकि निरुक्त कार कहते हैं कि “नित्य पक्षे तु उर्वशी विद्युतवशिष्ठोऽप्याच्छादित उदक संघातः ” (निरुक्त-५/१४) ।
निष्कर्ष :–
प्राण वायु / मित्र= (o) oxygen
उदान वायु / वरुण=(H) hydrogen
इन दोनों को उचित अनुपात में संयोग करवा ने बाले का नाम उर्वशी या विद्युत है
【H2 + O2 = H2O】+ electricity = water
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【(मित्र +वरुण =मैत्रावरुण) ]+【 उर्वशी 】= वशिष्ठ