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चंद्र ग्रह से होती यह बीमारी:

  • चन्द्र में मुख्य रूप से दिल, बायां भाग से संबंध रखता है।
  • मिर्गी का रोग।
  • पागलपन।
  • बेहोशी।
  • फेफड़े संबंधी रोग।
  • मासिक धर्म गड़बड़ाना।
  • स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।
  • मानसिक तनाव और मन में घबराहट।
  • तरह-तरह की शंका और अनिश्चित भय।
  • सर्दी-जुकाम बना रहता है।
  • व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार बार-बार आते रहते हैं।
    : बुध ग्रह की बीमारी.:

*तुतलाहट।
*सूंघने की शक्ति क्षीण हो जाती है।
*समय पूर्व ही दांतों का खराब होना।
*मित्र से संबंधों का बिगड़ना।
*अशुभ हो तो बहन, बुआ और मौसी पर विपत्ति आना।
*नौकरी या व्यापार में नुकसान होना।
*संभोग की शक्ति क्षीण होना।
*व्यर्थ की बदनामी होती है।
*हमेशा घूमते रहना, ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में।
*कोने का अकेला मकान जिसके आसपास किसी का मकान न हो।
: सूर्य के बाद धरती के उपग्रह चन्द्र का प्रभाव धरती पर पूर्णिमा के दिन सबसे ज्यादा रहता है। जिस तरह मंगल के प्रभाव से समुद्र में मूंगे की पहाड़ियां बन जाती हैं और लोगों का खून दौड़ने लगता है उसी तरह चन्द्र से समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पत्न होने लगता है और लोगों के मन-मस्तिष्क में बैचेनी दौड़ने लगती है। जितने भी दूध वाले वृक्ष हैं सभी चन्द्र के कारण उत्पन्न हैं। चन्द्रमा बीज, औषधि, जल, मोती, दूध, अश्व और मन पर राज करता है। लोगों की बेचैनी और शांति का कारण भी चन्द्रमा है।

इसी तरह प्रत्येक ग्रह का हमारी धरती और हमारे शरीर सहित मन-मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है जिसके चलते हमें सामान्य या गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ता है। यदि वक्त के पहले हम सतर्क हो जाएं तो हम कई सारी बीमारियों से कुद को बचा सकते हैं। आओ जानते हैं कि कौन सा ग्रह देता है कौन सी बीमारी…
: सूर्य की बीमारी :

  • व्यक्ति अपना विवेक खो बैठता है।
  • दिमाग समेत शरीर का दायां भाग सूर्य से प्रभावित होता है।
  • सूर्य के अशुभ होने पर शरीर में अकड़न आ जाती है।
  • मुंह में थूक बना रहता है।
  • दिल का रोग हो जाता है, जैसे धड़कन का कम-ज्यादा होना।
  • मुंह और दांतों में तकलीफ हो जाती है।
  • बेहोशी का रोग हो जाता है।
  • सिरदर्द बना रहता है।
    : शुक्र की बीमारी :
  • घर की दक्षिण-पूर्व दिशा को वास्तु अनुसार ठीक करवाएं।
  • शरीर में गाल, ठुड्डी और नसों से शुक्र का संबंध माना जाता है।
  • शुक्र के खराब होने से वीर्य की कमी भी हो जाती है। इससे किसी भी प्रकार का यौन रोग हो सकता है या व्यक्ति में कामेच्छा समाप्त हो जाती है।
  • लगातार अंगूठे में दर्द का रहना या बिना रोग के ही अंगूठे का बेकार हो जाना शुक्र के खराब होने की निशानी है।
  • शुक्र के खराब होने से शरीर में त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न होने लगते हैं।
  • अंतड़ियों के रोग।
  • गुर्दे का दर्द
  • पांव में तकलीफ आदि।
    : मंगल देता यह बीमारी:
  • नेत्र रोग।
  • उच्च रक्तचाप।
  • वात रोग।
  • गठिया रोग।
  • फोड़े-फुंसी होते हैं।
  • जख्मी या चोट।
  • बार-बार बुखार आता रहता है।
  • शरीर में कंपन होता रहता है।
  • गुर्दे में पथरी हो जाती है।
  • आदमी की शारीरिक ताकत कम हो जाती है।
  • एक आंख से दिखना बंद हो सकता है।
  • शरीर के जोड़ काम नहीं करते हैं।
  • मंगल से रक्त संबंधी बीमारी होती है। रक्त की कमी या अशुद्धि हो जाती है।
  • बच्चे पैदा करने में तकलीफ। हो भी जाते हैं तो बच्चे जन्म होकर मर जाते हैं।
    : शनि की बीमारी :
  • शनि का संबंध मुख्‍य रूप से दृष्टि, बाल, भवें और कनपटी से होता है।
  • समय पूर्व आंखें कमजोर होने लगती हैं और भवों के बाल झड़ जाते हैं।
  • कनपटी की नसों में दर्द बना रहता है।
  • समय पूर्व ही सिर के बाल झड़ जाते हैं।
  • फेफड़े सिकुड़ने लगते हैं और तब सांस लेने में तकलीफ होती है।
  • हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, तब जोड़ों का दर्द भी पैदा हो जाता है।
  • रक्त की कमी और रक्त में बदबू बढ़ जाती है।
  • पेट संबंधी रोग या पेट का फूलना।
  • सिर की नसों में तनाव।
  • अनावश्यक चिंता और घबराहट बढ़ जाती है।
    : राहु की बीमारी :
  • गैस प्रॉब्लम।
  • बाल झड़ना
  • उदर रोग।
  • बवासीर।
  • पागलपन।
  • राजयक्ष्मा रोग।
  • निरंतर मानसिक तनाव बना रहेगा।
  • नाखून अपने आप ही टूटने लगते हैं।
  • मस्तिष्क में पीड़ा और दर्द बना रहता है।
  • राहु व्यक्ति को पागलखाने, दवाखाने या जेलखाने भेज सकता है।
  • राहु अचानक से भी कोई बड़ी बीमारी पैदा कर देता है और व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
    : 🌹🌹🌹🌹उत्तम मनचाही संतान प्राप्ति के लिए कुछ खास उपाय

यदि किसी दम्पति को संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है तो वह स्त्री शुक्ल पक्ष में अभिमंत्रित संतान गोपाल यंत्र को अपने घर में स्थापित करके लगातार 16 गुरुवार को ब्रत रखकर केले और पीपल के वृक्ष की सेवा करें उनमे दूध चीनी मिश्रित जल चड़ाकर धुप अगरबत्ती जलाये फिर मासिक धर्म से ठीक तेहरवीं रात्रि में अपने पति से रमण करें संतान सुख अति शीघ्र प्राप्त होगा ।

पति पत्नी गुरुवार का ब्रत रखें या इस दिन पीले वस्त्र पहने , पीली वस्तुओं का दान करें यथासंभव पीला भोजन ही करें …..अति शीघ्र योग्य संतान की प्राप्ति होगी ।

संतान सुख के लिए स्त्री गेंहू के आटे की 2 मोटी लोई बनाकर उसमें भीगी चने की दाल और थोड़ी सी हल्दी मिलाकर नियमपूर्वक गाय को खिलाएं …शीघ्र ही उसकी गोद भर जाएगी ।

शुक्ल पक्ष में बरगद के पत्ते को धोकर साफ करके उस पर कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर थोड़े से चावल और एक सुपारी रखकर सूर्यास्त से पहले किसी मंदिर में अर्पित कर दें और प्रभु से संतान का वरदान देने के लिए प्रार्थना करें …निश्चय ही संतान की प्राप्ति होगी ।

किसी भी गुरुवार को पीले धागे में पीली कौड़ी को कमर में बांधने से संतान प्राप्ति का प्रबल योग बनता है।

संतान प्राप्ति के लिए स्त्री पारद शिवलिंग का नियम से दूध से अभिषेक करें …उत्तम संतान की प्राप्ति होगी ।

हर गुरुवार को भिखारियों को गुड का दान देने से भी संतान सुख प्राप्त होता है।

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में आम की जड़ को लाकर उसे दूध में घिसकर पिलाने से स्त्री को अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है यह अत्यंत ही सिद्ध / परीक्षित प्रयोग है ।

रविवार को छोड़कर अन्य सभी दिन निसंतान स्त्री यदि पीपल पर दीपक जलाये और उसकी परिक्रमा करते हुए संतान की प्रार्थना करें उसकी इच्छा अति शीघ्र पूरी होगी ।

उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ लाकर सदैव अपने पास रखने से निसंतान दम्पति को संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है ।

नींबू की जड़ को दूध में पीसकर उसमे शुद्ध देशी घी मिला कर सेवन करने से पुत्र प्राप्ति की संभावना बड़ जाती है ।

माघ शुक्ल षष्ठी को संतानप्राप्ति की कामना से शीतला षष्ठी का व्रत रखा जाता है। कहीं-कहीं इसे ‘बासियौरा’ नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर मां शीतला देवी का षोडशोपचार-पूर्वक पूजन करना चाहिये। इस दिन बासी भोजन का भोग लगाकर बासी भोजन ग्रहण किया जाता है ।

उत्तम पुत्र प्राप्ति हेतु स्त्री को हमेशा पुरूष के बायें तरफ़ सोना चाहिये. कुछ देर बांयी करवट लेटने से दायां स्वर और दाहिनी करवट लेटने से बांया स्वर चालू हो जाता है. इस स्थिति में जब पुरूष का दांया स्वर चलने लगे और स्त्री का बांया स्वर चलने लगे तभी दम्पति को आपस में सम्बन्ध बनाना चाहिए. इस स्थिति में अगर गर्भादान हो गया तो अवश्य ही पुत्र उत्पन्न होगा. कौन सा स्वर चल रहा है इसकी जांच नथुनों पर अंगुली रखकरकर सकते है ।

योग्य कन्या संतान की प्राप्ति के लिये स्त्री को हमेशा पुरूष के दाहिनी और सोना चाहिये. इस स्थिति मे स्त्री का दाहिना स्वर चलने लगेगा और स्त्री के बायीं तरफ़ लेटे पुरूष का बांया स्वर चलने लगेगा. इस स्थिति में अगर गर्भ ठहरता है तो निश्चित ही सुयोग्य और गुणवान कन्या प्राप्त होगी ।

कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्बन्ध बनाने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या ।

गर्भाधान के लिए ऋतुकाल की आठवीं, दसवी और बारहवीं रात्रि सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इन रात्रियों में सम्बन्ध बनाने के बाद स्त्री के गर्भधारण करने से संतान की कामना रखने वाले दम्पतियों को श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति की सम्भावना बहुत बड़ जाती है ।

यदि आप अति उत्तम गुणवान संतान प्राप्त करना चाहते हैं,तो यहाँ दी गयी माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी का अवश्य ही ध्यान रखें ।

चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा हुए पुत्र की आयु कम होती है और उसे जीवन में धन के आभाव का सामना करना पड़ता है।

पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या को भविष्य में पुत्र रत्न की सम्भावना क्षीण होगी वह सिर्फ लड़की ही पैदा करेगी।

छठवीं रात्रि के गर्भ से पुत्र उत्पन्न होगा जो मध्यम आयु वाला होगा।

सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होती है, वह भविष्य में संतान को जन्म देने में असमर्थ होगी।

आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र धनी होता है, वह जीवन में समस्त ऐश्वर्य को प्राप्त करता है।

नौवीं रात्रि के गर्भ से उत्पन्न पुत्री धनवान होती है उसे अपने जीवन में समस्त ऐश्वर्य प्राप्त होते है।

दसवीं रात्रि के गर्भ से बुद्धिमान पुत्र जन्म लेता है।

ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री का जन्म होता है ।

बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।

तेरहवीं रात्रि के गर्भ से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।

चौदहवीं रात्रि के गर्भ से भाग्यशाली उत्तम पुत्र का जन्म होता है।

पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से अति सौभाग्यवती पुत्री जन्म लेती है।

सोलहवीं रात्रि के गर्भ से अपने कुल का नाम रोशन करने वाला सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।

अगर स्त्री किसी भी कारणवश गर्भ धारण नहीं कर पा रही हो तो पति पत्नी मंगलवार के दिन कुम्हार के घर जाकर उससे प्रार्थना कर मिट्टी के बर्तन बनाने वाला डोरा ले आएं।फिर उसे किसी गिलास में जल भरकर डाल दें। कुछ समय पश्चात उस डोरे को निकाल कर वह पानी पति-पत्नी दोनों पी लें। यह क्रिया केवल मंगलवार को ही करनी है और उस दिन पति-पत्नी अवश्य ही सम्बन्ध बनांये। गर्भ ठहरते ही उस डोरे को मंदिर में हनुमानजी के चरणों में रख दें और हनुमान जी से अपने सुरक्षित प्रसव के लिए प्रार्थना करें ।

अगर इच्छुक महिला रजोधर्म से मुक्ति पाकर लगातार तीन दिन चावल का धोवन यानी मांड में एक नीबू निचोड़कर पीने के बाद उत्साह से पति के साथ सम्बन्ध बनाये तो उसको निश्चित ही स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति होती है। गर्भ न ठहरने तक प्रतिमाह यह प्रयोग तीन दिन तक करें, गर्भ ठहरने के बाद नहीं करें।

गर्भाधान के दिन से ही स्त्री को चावल की खीर, दूध, भात, रात को सोते समय दूध के साथ शतावरी का चूर्ण, प्रातः मक्खन-मिश्री, जरा सी पिसी काली मिर्च मिलाकर ऊपर से ताजा कच्चा नारियल व सौंफ खाते रहना चाहिए, यह पूरे नौ माह तक करना चाहिए, इससे होने वाली संतान गोरी और पूर्ण स्वस्थ होती है।

गर्भिणी स्त्री ढाक (पलाश) का एककोमल पत्ता घोंटकर गौदुग्ध के साथ रोज़ सेवन करे | इससे बालक शक्तिशाली और गोरा होता है | माता-पीता भले काले हों, फिर भी बालक गोरा होगा |

सवि का भात और मुंग की दाल खाने से बाँझ पन दूर होता है और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है ।

गर्भ का जब तीसरा महीना चल रहा हो तो गर्भवती स्त्री को शनिवार को थोडा सा जायफल और गुड़ मिलाकर खिलाने से अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी ।

*पुराने चावल को धोकर भिगो दें बनाने से पहले उसके पानी को अलग करके उसमें नीबूं की जड़ को महीन पीसकर उस पानी को स्त्री पी कर अपने पति से सम्बन्ध बनाये वह स्त्री कन्या को जन्म देगी । 🌹🌹🌹🌹🌹
: इष्टवल से आत्मवल बढ़ता है और आत्मवल से किसी भी शक्ती को प्राप्त किया जा सकता है.आपके इष्ट देव कौन है

आपकी कुंडली मैं पंचम भाव का स्वामी ग्रह (पंचमेश ) आपके इष्ट देव है ! चाहे लाख दोष हो आपकी कुंडली मैं ..अच्छा फल नहीं दे रहे हो ….तो ! इष्टदेव की आराधना , उपासना , वंदना, पूजा करने से बहुत से परेशानी से मुक्ति मिलेगी।

मेष लग्न = ( सूर्य देवता, गायत्री देवी आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

वृषभ लग्न = ( बुध देवता, गणेश जी आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

मिथुन लग्न = ( शुक्र देवता , माँ दुर्गा आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

कर्क लग्न = ( मंगल देवता , हनुमान जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

सिंह लग्न = ( देव गुरु बृहस्पति, विष्णु जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

कन्या लग्न = (शनि देवता, शिव जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

तुला लग्न = शनि देवता, शिव जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

वृश्चिक लग्न= ( देव गुरु बृहस्पति, विष्णु जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

धनु लग्न = ( मंगल देवता, हनुमान जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

मकर लग्न = ( शुक्र देवता , माँ दुर्गा आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

कुम्भ लग्न = ( बुध देवता, गणेश जी आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )
मीन लग्न = (चंद्र देवता, शिव जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )
इस तरह अपने सही इष्ट को पहचान कर उसकी नित्य आराधना करने वाले को… आरोग्य, सौभाग्य, सम्मान, इष्टवल, एवं योग्यताकी प्राप्ती होती है.

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