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ग्रहसमागम —
संयोग दो प्रकार का होता है — दृष्टि अथवा योग। पापग्रह की दृष्टि फलदायक है। शुभग्रहों का संयोग शुभफलदायक है। राहु तथा केतु को छोड़ कर शेष ग्रह यदि सूर्य के साथ हों तो अच्छा समागम कहलाता है और वे बलवान हो जाते हैं। निम्नलिखित समागम उत्तम कहलाते हैं १- मंगल को छोड़ कर किसी और ग्रह के साथ बृहस्पति, २- सूर्य, चन्द्रमा अथवा बुध के साथ शुक्र, ३- चन्द्रमा के साथ सूर्य, ४- सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ बुध। शेष समागम प्राय: शुभ नहीं होते हैं। यदि कोई ग्रह उच्च अथवा स्वक्षेत्री आदि हो तो अशुभ समागम का फल कुछ अच्छा हो जाता है। मान लीजिए तुला में सूर्य, शनि बैठे हैं तो एक उच्च का एक नीच का ग्रह है, अत: शुभ-अशुभ फल मिश्रित होगा।
अस्तलक्षण—
जब ग्रह सूर्य के साथ हो तो उसका अस्त हो जाता है, अर्थात वह नहीं दिखलाई देता है। जब ग्रह सूर्य से पृथक राशि में हो तो उदित हो जाता है। सूर्य के साथ एक राशि में १२ अंश भीतर ग्रह अस्त हो जाता है। १२ अंश से आगे बढ़ने पर उसका उदय हो जाता है। यदि कोई ग्रह सूर्य से ५ अंश के भीतर हो तो वह पूरा अस्त है, यदि वह, १० अंश के भीतर हो तो उतना अशुभ फल नहीं होता है, यदि १५ अंशों से अधिक दूरी पर हो तो अधिक हानिकारक नहीं है।
वक्री आदि ग्रहज्ञान –
राहु तथा केतु सदा वक्री होते हैं अर्थात उलटी चाल चलते हैं, सूर्य तथा चन्द्रमा शीघ्र चलने वाले हैं। ग्रह जब सूर्य से पृथक हो जाते हैं तो उनका उदय हो जाता है, सूर्य से दूसरे स्थान में ग्रहों की चाल शीघ्र हो जाती है, तीसरे घर में सम रहते हैं, चौथे स्थान में उनकी गति मन्द हो जाती है, पांचवें तथा छठे स्थानों में वक्री हो जाते हैं, सातवें तथा आठवें घर में अतिवक्री हो जाते हैं, नवें तथा दसवें स्थानों में मार्गी हो जाते हैं, ग्यारहवें तथा बारहवें स्थानों में शीघ्र हो जाते हैं। इस प्रकार ग्रह सौम्य, अतिसौम्य, उग्र, अतिपाप, शीघ्र और स्वाभाविक कहलाते हैं।
उदयास्तज्ञान —
(१) जो ग्रह सूर्य से अल्पगति हो तथा सूर्य से अंशों में भी कम हो उसका पूर्व में उदय होता है। (२) जो ग्रह सूर्य से अधिक हो तथा सूर्य से अंशों में भी अधिक हो, उसका पश्चिम में उदय होता है। (३) जो ग्रह सूर्य से अंशों में अधिक हो परन्तु सूर्य से लघुगति हो, उसका पश्चिम में अस्त होता है। (४) जो ग्रह सूर्य से अधिक गति हो परन्तु सूर्य से अंशों में कम हो, उसका पूर्व में अस्त होता है।
वक्रादिज्ञान —
पूर्व में अस्त होने के पश्चात पश्चिम में बुध का उदय होता है, फिर वह वक्री होता है, फिर अस्त होता है, फिर पूर्व में उदय होता है, फिर पूर्व में अस्त होने के पहिले मार्गी हो जाता है। उसके दिन इस प्रकार से हैं – ३२, ३२, ४, १६, ४, ३२।
शुक्र के दिन इस प्रकार है – ७५, २४०, २३, ९, २३, २४०। मंगल अस्त होने के उपरान्त उदयी होता है, फिर वक्री होता है, फिर मार्गी होता है, तब अस्त होता है। इसी क्रम से मास इस प्रकार हैं – ४, १०, २, १०। बृहस्पति के मास इस प्रकार हैं – १, ४, ४, ३। शनि के मास इस प्रकार हैं – १, ३, ४, ३।
वक्र ग्रहफल —
व्रूâर ग्रह जब वक्री होते हैं तो उनका फल बड़ा व्रूâर होता है, परन्तु सौम्य ग्रह वक्री हों तो अतिशुभ फल देने वाले होते हैं।
ग्रहों का दोष परिहार —
राहु के दोष को बुध मार देता है, राहु और बुध दोनों के दोषों को शनि मार देता है, राहु, बुध और शनि इन तीनों के दोषों को मङ्गल दबा देता है, चारों के दोषों को शुक्र हर लेता है, पांचों के दोषों को बृहस्पति दूर कर देता है, छ: ग्रहों के दोषों को चन्द्रमा नाश कर देता है, पूर्वोक्त सातों ग्रहों के दोषों को सूर्य नष्ट कर देता है, विशेषत: उत्तरायण में।
ग्रहों की दृष्टि —
ग्रह ३, १० स्थानों को एकपाद दृष्टि से, ५।९ स्थानों को द्विपाद दृष्टि से, ४।८ स्थानों को त्रिपाद दृष्टि से और सप्तम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। दशम तथा तृतीय स्थानों में एकपाद दृष्टि होती है, नवम तथा पंचम स्थानों में द्विपाद दृष्टि होती है, चतुर्थ तथा अष्टम स्थानों में त्रिपाद दृष्टि होती है एवं एकत्र अर्थात् समराशि में तथा सप्तम स्थान में पूर्ण दृष्टि होती है। शनि ३, १० स्थानों को, बृहस्पति त्रिकोण को, मंगल चतुरस्र को और सूर्य तथा चन्द्रमा सप्तम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। शनि तीसरे और दसवें स्थान को, मंगल ४,८ स्थानों को, बृहस्पति ५, ९ स्थानों को तथा सब ग्रह सप्तम स्थान को पूर्णदृष्टि से, चरणवृद्धि से देखते हैं।
होरारत्न नामक ग्रन्थ में लिखा है कि ‘मंगल आदि ग्रहों की सप्तम स्थान में पूर्ण दृष्टि नहीं होती है’ ऐसा जो लोग कहते हैं उनकी भूल है। इस पर विचार करना चाहिए। अन्यथा मुनिलोगों के वचनों के साथ विरोध पड़ेगा। सप्तम स्थान में सभी ग्रहों की पूर्ण दृष्टि होती है। विशेष यह है कि बृहस्पति की ५।९ स्थानों में, मंगल की ४।८ स्थानों में और शनि की ३।१० स्थानों में भी पूर्ण दृष्टि होती है। १, २, ६, ११, १२ स्थानों में ग्रहों की दृष्टि जातक में नहीं होती है। सूर्य, बुध, चन्द्रमा तथा शुक्र त्रिदश, त्रिकोण, चतुरष्टम तथा सप्तम स्थान को चरण वृद्धि से देखते हैं। बृहस्पति चतुरष्टम, सप्तम, त्रिदश तथा त्रिकोण को चरण वृद्धि से देखता है। शनि त्रिकोण, चतुरष्टम, सप्तम तथा त्रिदश को चरण वृद्धि से देखता है। मंगल सप्तम, त्रिदश, त्रिकोण तथा चतुरस्र को चरण वृद्धि से देखता है।
राहु एवं केतु की दृष्टि —
राहु-केतु की दृष्टि— पंचम तथा सप्तम स्थानों में राहु की पूर्ण दृष्टि होती है। तीसरे और छठे स्थान में एकचरण दृष्टि होती है। द्वितीय और दशम स्थान में आधी दृष्टि होती है। अपने घर में त्रिपाद दृष्टि होती है। ऐसी ही केतु की दृष्टि जाननी चाहिये। कोई आचार्य कहते हैं कि ५, ७, ९, १२ स्थानों में राहु की पूर्ण दृष्टि होती है, २।१० स्थानों में त्रिपाद दृष्टि होती है। ३।६।४।८ स्थानों में अर्धदृष्टि होती है। जिस स्थान में स्थित हो उसमें तथा ११वें स्थान में राहु की दृष्टि नहीं होती है। किन्हीं आचार्यो का मत है कि ५।९।१२ स्थानों में राहु की दृष्टि होती है। केतु दृष्टिहीन अर्थात अन्धा है। किन्हीं के मत से राहु के समान केतु की भी दृष्टि है। कोई आचार्य कहते हैं कि केतु जिस स्थान में स्थित हो उसी स्थान को देखता है।
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व्यक्ति के चरित्र और स्वभाव
पर वारो एवं जन्मतिथि का प्रभाव

वारो का जातक के स्वभाव पर प्रभाव-

सप्ताह में कुल सात दिन या सात वार होते है। हम सभी लोगों का जन्म इन सातों वारों में से किसी एक वार को हुआ है। ज्योतिषशास्त्र कहता हैं, वार का हमारे व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारा जन्म जिस वार में होता है उस वार के प्रभाव से हमारा व्यवहार और चरित्र भी प्रभावित होता है। आइये देखें कि किस वार में जन्म लेने पर व्यक्ति का स्वभाव कैसा होता है।
1 रविवार को पैदा हुये जातक
रविवार सप्ताह का प्रथम दिन होता है. इसे सूर्य का दिन माना जाता है. इस दिन जिस व्यक्ति का जन्म होता है वे व्यक्ति तेजस्वी, गर्वीले और पित्त प्रकृति के होते है . इनके स्वभाव में क्रोध और ओज भरा होता है. ये चतुर और गुणवान होते हैं. इस तिथि के जातक उत्साही और दानी होते हैं. अगर संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाए तो उसमें पूरी तकत लगा देते हैं.
2 सोमवार को पैदा हुये जातक
सोमवार यानी सप्ताह का दूसरा दिन, इस वार को जन्म लेने वाला व्यक्ति बुद्धिमान होता है . इनकी प्रकृति यानी इनका स्वभाव शांत होता है. इनकी वाणी मधुर और मोहित करने वाली होती है. ये स्थिर स्वभाव वाले होते हैं सुख हो या दु:ख सभी स्थिति में ये समान रहते हैं. धन के मामले में भी ये भाग्यशाली होते हैं. इन्हें सरकार व समाज से मान सम्मान मिलता है
3 मंगलवार को पैदा हुये जातक
मंगलवार को जिस व्यक्ति का जन्म होता है वह व्यक्ति जटिल बुद्धि वाला होता है, ये किस भी बातको आसानी से नहीं मानते हैं और सभी बातों में इन्हें कुछ न कुछ खोट दिखाई देता है. ये युद्ध प्रेमी और पराक्रमी होते हैं. ये अपनी बातो पर कायम रहने वाले होते हैं. जरूरत पड़ने पर इस तिथि के जातक हिंसा पर भी उतर आते हैं. इनके स्वभाव की एक बड़ी विशेषता है कि ये अपने कुटुम्बों का पूरा ख्याल रखते हैं.
4 बुध को पैदा हुये जातक
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार बुधवार को जन्म लेने वाले व्यक्ति मधुर वचन बोलने वाले होते हैं . इस तिथि के जातक पठन पाठन में रूचि लेते हैं और ज्ञानी होते हैं. ये लेखन में रूचि लेते हैं और अधिकांशत: इसे अपनी जीवका बनाते हैं. ये अपने विषय के अच्छे जानकार होते हैं. इनके पास सम्पत्ति होती है परंतु ये धोखा देने में भी आगे होते हैं.
5 बृहस्पतिवार को पैदा हुये जातक
बृहस्पतिवार सप्ताह का पांचवा दिन होता है. इसे गुरूवार भी कहा जाता है. इस तिथि को जिनका जन्म होता है, वे विद्या एवं धन से युक्त होता है अर्थात ये ज्ञानी और धनवान होते हैं. ये विवेकशील होते हैं और शिक्षण को अपना पेशा बनाना पसंद करते हैं. ये लोगों के सम्मुख आदर और सम्मान के साथ प्रस्तुत होते हैं. ये सलाहकार भी उच्च स्तर के होते हैं.
6 शुक्रवार को पैदा हुये जातक
जिस व्यक्ति का जन्म शुक्रवार को होता है वह व्यक्ति चंचल स्वभाव का होता है . ये सांसारिक सुखों में लिप्त रहने वाले होते हैं. ये तर्क करने में निपुण और नैतिकता में बढ़ चढ कर होते हैं. ये धनवान और कामदेव के गुणों से प्रभावित रहते हैं . इनकी बुद्धि तीक्ष्ण होती है. ये ईश्वर की सत्ता में अंधविश्वास नहीं रखते हैं.
7 शनिवार को पैदा हुये जातक
जिस व्यक्ति का जन्म शनिवार को होता है उस व्यक्ति का स्वभाव कठोर होता है . ये पराक्रमी व परिश्रमी होते हैं. अगर इनके ऊपर दु:ख भी आये तो ये उसे भी सहना जानते हैं. ये न्यायी एवं गंभीर स्वभाव के होते हैं. सेवा करना इन्हें काफी पसंद होता है।

जन्मतिथि का प्रभाव-

प्रतिपदा से लेकर अमावस तक तिथियों का एक चक्र होता है जैसे अंग्रेजी तिथि में 1 से 30 या 31 तारीख का चक्र होता है। ज्योतिषशास्त्र में सभी तिथियों का अपना महत्व है। सभी तिथि अपने आप में विशिष्ट होती है। हमारे स्वभाव और व्यवहार पर तिथियों का काफी प्रभाव पड़ता है ऐसा ज्योतिषशास्त्री मानते हैं। हमारा जन्म जिस तिथि में होता है उसके अनुसार हमारा स्वभाव होता है। आइये तिथिवार व्यक्ति के स्वभाव के विषय में जानकारी प्राप्त करें।
1.प्रतिपदा:
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति का जन्म प्रतिपदा तिथि में होता है वह व्यक्ति अनैतिक तथा कानून के विरूद्ध जाकर काम करने वाला होता है इन्हें मांस मदिरा काफी पसंद होता है, यानी ये तामसी भोजन के शौकीन होते हैं। आम तौर पर इनकी दोस्ती ऐसे लोगों से रहती है जिन्हें समाज में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता अर्थात बदमाश और ग़लत काम करने वाले लोग।
2.द्वितीया तिथि:
ज्योतिषशास्त्र कहता है, द्वितीया तिथि में जिस व्यक्ति का जन्म होता है, उस व्यक्ति का हृदय साफ नहीं होता है। इस तिथि के जातक का मन किसी की खुशी को देखकर आमतौर पर खुश नहीं होता, बल्कि उनके प्रति ग़लत विचार रखता है। इनके मन में कपट और छल का घर होता है, ये अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए किसी को भी धोखा दे सकते हैं। इनकी बातें बनावटी और सत्य से दूर होती हैं। इनके हृदय में दया की भावना बहुत ही कम रहती है, यह किसी की भलाई तभी करते हैं जबकि उससे अपना भी लाभ हो। ये परायी स्त्री से लगाव रखते हैं जिससे इन्हें अपमानित भी होना पड़ता है।
3.तृतीया तिथि:
तृतीया तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से अस्थिर होता है अर्थात उनकी बुद्धि भ्रमित होती है। इस तिथि का जातक आलसी और मेहनत से जी चुराने वाला होता है। ये दूसरे व्यक्ति से जल्दी घुलते मिलते नहीं हैं बल्कि लोगों के प्रति इनके मन में द्वेष की भावना रहती है। इनके जीवन में धन की कमी रहती है, इन्हें धन कमाने के लिए काफी मेहनत और परिश्रम करना होता है।
4.चतुर्थी तिथि:
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार जिस व्यक्ति का जन्म चतुर्थी तिथि को होता है वह व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली होता है। इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति बुद्धिमान एवं अच्छे संस्कारों वाला होता है। ये मित्रों के प्रति प्रेम भाव रखते हैं। इनकी संतान अच्छी होती है। इन्हें धन की कमी का सामना नहीं करना होता है और ये सांसारिक सुखों का पूर्ण उपभोग करते हैं।
5.पंचमी तिथि:
पंचमी तिथि बहुत ही शुभ होती है। इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति गुणवान होता है। इस तिथि में जिस व्यक्ति का जन्म होता है वह माता पिता की सेवा को धर्म समझता है, इनके व्यवहार में सामाजिक व्यक्ति की झलक दिखाई देती है। इनके स्वभाव में उदारता और दानशीलता स्पष्ट दिखाई देती है। ये हर प्रकार के सांसारिक भोग का आनन्द लेते हैं और धन धान्य से परिपूर्ण जीवन का मज़ा प्राप्त करते हैं।
6.षष्टी तिथि:
षष्टी तिथि को जन्म लेने वाला व्यक्ति सैर सपाटा पसंद करने वाला होता है। इन्हें देश-विदेश घुमने का शौक होता है अत: ये काफी यात्राएं करते हैं। इनकी यात्राएं मनोरंजन और व्यवसाय दोनों से ही प्रेरित होती हैं। इनका स्वभाव कुछ रूखा होता है और छोटी छोटी बातों पर लड़ने को तैयार हो जाता हैं।
7.सप्तमी:
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति का जन्म सप्तमी तिथि को होता है वह व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली होता है। इस तिथि का जातक गुणवान और प्रतिभाशाली होता है, ये अपने मोहक व्यक्तित्व से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की योग्यता रखते हैं। इनके बच्चे गुणवान और योग्य होते हैं। धन धान्य के मामले में भी यह काफी भाग्यशाली होते हैं। ये संतोषी स्वभाव के होते हैं इन्हें जितना मिलता है उतने से ही संतुष्ट रहते हैं।
8.अष्टमी:
अष्टमी तिथि को जिनका जन्म होता है वह व्यक्ति धर्मात्मा होता है। मनुष्यों पर दया करने वाला तथा गुणवान होता है। ये कठिन से कठिन कार्य को भी अपनी निपुणता से पूरा कर लेते हैं। इस तिथि के जातक सत्य का पालन करने वाले होते हैं यानी सदा सच बोलने की चेष्टा करते हैं। इनके मुख से असत्य तभी निकलता है जबकि किसी मज़बूर को लाभ मिले।
9.नवमी:
नवमी तिथि को जन्म लेने वाला व्यक्ति भाग्यशाली एवं धर्मात्मा होता है। इस तिथि का जातक धर्मशास्त्रों का अध्ययन कर शास्त्रों में विद्वता हासिल करता है। ये ईश्वर में पूर्ण भक्ति एवं श्रद्धा रखते हैं। धनी स्त्रियों से इनकी संगत रहती है इनके पुत्र गुणवान होते हैं।
10.दशमी:
देशभक्ति तथा परोपकार के मामले में दशमी तिथि के जातक श्रेष्ठ होते हैं। देश व दूसरों के हितों मे लिए ये सर्वस्व न्यौछावर करने हेतु तत्पर रहते हैं। इस तिथि के जातक धर-अधर्म के बीच अंतर को अच्छी तरह समझते हैं और हमेशा धर्म पर चलने वाले होते हैं।
11.एकादशी:
एकादशी तिथि को जन्म लेने वाला व्यक्ति धार्मिक तथा सौभाग्यशाली होता है। मन, बुद्धि और हृदय से ये पवित्र होते हैं। इनकी बुद्धि तीक्ष्ण होती और लोगों में बुद्धिमानी के लिए जाने जाते है। इनकी संतान गुणवान और अच्छे संस्कारों वाली होती है, इन्हें अपने बच्चों से सुख व सहयोग मिलता है। समाज के प्रतिष्ठित लोगों से इन्हें मान सम्मान मिलता है।
12.द्वादशी:
द्वादशी तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव अस्थिर होता है। इनका मन किसी भी विषय में केन्द्रित नहीं हो पाता है बल्कि हर पल इनका मन चंचल रहता है। इस तिथि के जातक का शरीर पतला व कमज़ोर होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से इनकी स्थिति अच्छी नहीं रहती है। ये यात्रा के शौकीन होते हैं और सैर सपाटे का आनन्द लेते हैं।
13.त्रयोदशी:
त्रयोदशी तिथि ज्योतिषशास्त्र में अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है। इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति महापुरूष होता है। इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति बुद्धिमान होता है और अनेक विषयों में अच्छी जानकारी रखता है। ये काफी विद्वान होते हैं। ये मनुष्यों के प्रति दया भाव रखते हैं तथा किसी की भलाई करने हेतु तत्पर रहते हैं। इस तिथि के जातक समाज में काफी प्रसिद्धि हासिल करते हैं।
14.चतुर्दशी:
जिस व्यक्ति का जन्म चतुर्दशी तिथि को होता है वह व्यक्ति नेक हृदय का एवं धार्मिक विचारों वाला होता है। इस तिथि का जातक श्रेष्ठ आचरण करने वाला होता है अर्थात धर्म के रास्ते पर चलने वाला होता है। इनकी संगति भी उच्च विचारधारा रखने वाले लोगों से होती है। ये बड़ों की बातों का पालन करते हें। आर्थिक रूप से ये सम्पन्न होते हैं। देश व समाज में इन्हें मान प्रतिष्ठा मिलती है।
15.पूर्णिमा:
जिस व्यक्ति का जन्म पूर्णिमा तिथि को होता है वह व्यक्ति पूर्ण चन्द्र की तरह आकर्षक और मोहक व्यक्तित्व का स्वामी होता है। इनकी बुद्धि उच्च स्तर की होती है। ये अच्छे खान पान के शौकीन होते हैं। ये सदा अपने कर्म में जुटे रहते हैं। ये परिश्रमी होते हैं और धनवान होते हैं। ये परायी स्त्रियो पर मोहित रहते हैं।
16.अमावस:
अमावस्या तिथि को जन्म लेने वाला व्यक्ति चतुर और कुटिल होता है। इनके मन में दया की भावना बहुत ही कम रहती है। इनके स्वभाव में ईर्ष्या अर्थात दूसरों से जलने की प्रवृति होती है। इनके व्यवहार व आचरण में कठोरता दिखाई देती है। ये दीर्घसूत्री अर्थात किसी भी कार्य को पूरा करने में काफी समय लेने वाले होते हैं। ये झगड़ा करने में भी आगे रहते हैं
योनि गुण एवं स्वभाव

१. अश्व योनि

स्वेच्छाचारी, साहसी, प्रभावशाली, ओजस्वी, दमदार आवाज इत्यादि

२. गज योनि

बलवान, शक्तिशाली, उत्साही एवं सम्मानित लोगों से प्रतिष्ठित।

३. गौ योनि

सदा उत्साहित और आशावादी, मेहनती, परिश्रम से पीछे न हटने वाले, बात करने में निपुण, स्त्रियों को विशेष रुप से प्रिय, कम आयु।

४. सर्प योनि

अत्यंत क्रोधी स्वभाव, अनियंत्रित क्रोध, रूखा स्वभाव, दया और ममता की कमी, मन अस्थिर और चंचल, गम्भीरता से नहीं सोच पाना, खाने और व्यंजन के शौकीन, नुगरे।

५. श्वान योनि

बहादुर और साहसी, उत्साही और जोश से परिपूर्ण, मेहनती और परिश्रमी, माता-पिता के सेवक, दूसरों के सहायक, भाई बंधुओं से छोटी-छोटी बात पर लड़ जाने वाले।

६. मार्जार योनि

निडर, बहादुर और हिम्मत वाले, दूसरों के प्रति दुष्ट भाव रखना, समस्त कार्य करने में कुशल, मीठे के शौकिन।

७. मेष योनि

पराक्रमी और महान योद्धा, मेहनती, धन-दौलत से परिपूर्ण ऐश्वर्यशाली, भोगी तथा दूसरों पर उपकार करने वाले।

८. मूषक योनि

काफी बुद्धिमान और चतुर, अपने काम में तत्पर और सजग, काफी सोच विचार कर और समझदारी से आगे बढने वाले, सदैव सचेत एवं आसानी से किसी पर विश्वास नहीं करने वाले, काफि धनी।

९. सिंह योनि

धर्मात्मा, स्वाभिमानी, नेक और सरल आचरण व व्यवहार, इरादों के पक्के, अत्यंत साहस और हिम्मत, कुटुम्ब का ख्याल रखने वाले।

१०. महिष योनि

कम बुद्धि वाले, युद्ध में इन्हें सफलता, काम के प्रति बहुत अधिक उत्साही, कई संताने, वात रोगी।

११. व्याघ्र योनि

सभी प्रकार के काम में कुशल, स्वतंत्र रूप से काम करने वाले, अपनी प्रशंसा स्वयं करने वाले।

१२. मृग योनि

कोमल हृदय, नम्र और प्रेमपूर्ण व्यवहार, शान्त मन, सत विचार एवं सत्य वाचक, आस्थावान, स्वतंत्र विचारों के, लड़ाई-झगड़े दूर रहने वाले, भाई बंधुओं से प्रेम करने वाले।

१३. वानर योनि

चंचल स्वभाव, युद्ध के लिये सदा तत्पर, काफी बहादुर और हिम्मत वाले, कामो उत्तेजक, धन व्यस्नी, संतान से सुखी।

१४. नकुल योनि

हर काम में पारंगत एवं कुशलता पूर्वक करने में सक्षम, अत्यंत परोपकारी, विद्या के धनी, माता पिता के भक्त।

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