Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

: 🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷

दान की महिमा – सर्वोत्तम कथा

एक समय की बात है । एक नगर में एक कंजूस राजेश नामक व्यक्ति रहता था । उसकी कंजूसी सर्वप्रसिद्ध थी । वह खाने, पहनने तक में भी कंजूस था । एक बात उसके घर से एक कटोरी गुम हो गई । इसी कटोरी के दुःख में राजेश ने 3 दिन तक कुछ न खाया । परिवार के सभी सदस्य उसकी कंजूसी से दुखी थे । मोहल्ले में उसकी कोई इज्जत न थी, क्योंकि वह किसी भी सामाजिक कार्य में दान नहीं करता था ।
एक बार उस राजेश के पड़ोस में धार्मिक कथा का आयोजन हुआ । वेदमंत्रों व् उपनिषदों पर आधारित कथा हो रही थी । राजेश को सद्बुद्धि आई तो वह भी कथा सुनने के लिए सत्संग में पहुँच गया । वेद के वैज्ञानिक सिद्धांतों को सुनकर उसको भी रस आने लगा क्योंकि वैदिक सिद्धान्त व्यावहारिक व् वास्तविकता पर आधारित एवं सत्य-असत्य का बोध कराने वाले होते है । कंजूस को ओर रस आने लगा । उसकी कोई कदर न करता फिर भी वह प्रतिदिन कथा में आने लगा । कथा के समाप्त होते ही वह सबसे पहले शंका पूछता । इस तरह उसकी रूचि बढती गई ।
वैदिक कथा के अंत में लंगर का आयोजन था इसलिए कथावाचक ने इसकी सूचना दी कि कल लंगर होगा । इसके लिए जो श्रद्धा से कुछ भी लाना चाहे या दान करना चाहे तो कर सकता है ।

अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार सभी लोग कुछ न कुछ लाए । कंजूस के हृदय में जो श्रद्धा पैदा हुई वह भी एक गठरी बांध सर पर रखकर लाया ।भीड़ काफी थी । कंजूस को देखकर उसे कोई भी आगे नहीं बढ़ने देता । इस प्रकार सभी दान देकर यथास्थान बैठ गए । अब कंजूस की बारी आई तो सभी लोग उसे देख रहे थे । कंजूस को विद्वान की ओर बढ़ता देख सभी को हंसी आ गई क्योंकि सभी को मालूम था कि यह महाकंजूस है । उसकी गठरी को देख लोग तरह-तरह के अनुमान लगते ओर हँसते । लेकिन कंजूस को इसकी परवाह न थी । कंजूस ने आगे बढ़कर विद्वान ब्राह्मण को प्रणाम किया । जो गठरी अपने साथ लाया था, उसे उसके चरणों में रखकर खोला तो सभी लोगों की आँखें फटी-की-फटी रह गई । कंजूस के जीवन की जो भी अमूल्य संपत्ति गहने, जेवर, हीरे-जवाहरात आदि थे उसने सब कुछ को दान कर दिया । उठकर वह यथास्थान जाने लगा तो विद्वान ने कहा, “महाराज! आप वहाँ नहीं, यहाँ बैठिये ।”
कंजूस बोला, “पंडित जी! यह मेरा आदर नहीं है, यह तो मेरे धन का आदर है, अन्यथा मैं तो रोज आता था और यही पर बैठता था, तब मुझे कोई न पूछता था।”
ब्राह्मण बोला, “नहीं, महाराज! यह आपके धन का आदर नहीं है, बल्कि आपके महान त्याग (दान) का आदर है । यह धन तो थोड़ी देर पहले आपके पास ही था, तब इतना आदर-सम्मान नहीं था जितना की अब आपके त्याग (दान) में है इसलिए आप आज से एक सम्मानित व्यक्ति बन गए है।

शिक्षा :- मनुष्य को कमाना भी चाहिए और दान भी अवश्य देना चाहिए । इससे उसे समाज में सम्मान और इष्टलोक तथा परलोक में पुण्य मिलता है ।

जय श्रीराधे कृष्णा

🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷
: दर्द निवारक मलम बनाए

यहाँ बताई गई सामग्री को मिला कर हल्दी का एक दर्द निवारक मलम बना लिजिये।

1 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर
1 छोटा चम्मच पीसी हुई चीनी, या बूरा या शहद
1 चुटकी चूना (जो पान में लगा कर खाया जाता है)
आवश्यकतानुसार पानी डाले..

इन सभी को अच्छी तरह मिला लीजिये। एक लाल रंग का गाढ़ा मलम (पेस्ट) बन जाएगा।

यह पेस्ट कैसे प्रयोग करें:-

सोने से पहले यह मलम अपने घुटनों पे लगाइए।
इसे सारी रात घुटनों पे लगा रहने दीजिये।

सुबह साधारण पानी से धो लिजिये।

कुछ दिनों तक प्रतिदिन इसका इस्तेमाल करने से सूजन, खिंचाव, चोट आदि के कारण होने वाला घुटनों का दर्द पूरी तरह ठीक : विटामिन डी

  1. विटामिन डी मस्तिष्क सहित शरीर के अधिकांश ऊतकों में पाया जाने वाला रिसेप्टर है।
  2. विटामिन डी द्वारा 2,000 से अधिक जीनों को भी विनियमित किया जा सकता है।
    सूर्य की सीधी किरणों के संपर्क में आने के 24 घंटों के भीतर, हम सैकड़ों जीनों की अभिव्यक्ति को बदल सकते हैं।
  • विटामिन डी वास्तव में एक हार्मोन है जो सूर्य के प्रकाश के संपर्क में हमारी त्वचा द्वारा निर्मित होता है। * हम सूरज की पर्याप्त मात्रा के साथ सभी डी बना सकते हैं।
  • डी केवल कैल्शियम विनियमन और हड्डी के स्वास्थ्य का एक हार्मोन नहीं है; यह प्रजनन क्षमता, प्रतिरक्षा और मस्तिष्क के कार्य का एक हार्मोन भी है। * अध्ययनों से पता चलता है कि विटामिन डी के सामान्य रक्त स्तर होने से हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह, ऑटोइम्यून बीमारियों और संक्रमण के जोखिम को कम किया जा सकता है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि मोटे लोग सूरज की रोशनी में अधिक विटामिन डी बना सकते हैं, क्योंकि उनके पास त्वचा की सतह का क्षेत्र अधिक है, लेकिन उनके लिए समान जोखिम का स्तर आधे से कम डी जैवउपलब्धता की ओर जाता है, क्योंकि यह विटामिन उनके शरीर की वसा में दूर हो जाता है । यही कारण है कि मोटे लोगों को सूरज के संपर्क की आवश्यकता हो सकती है जो सामान्य वजन वाले व्यक्तियों की तुलना में दो से तीन गुना अधिक है, हालांकि अगर वे अपना वजन कम करते हैं और इसे वापस अपने संचलन में जारी करते हैं तो उन्हें वापस मिल सकता है।
  • विटामिन जीवन सिंड्रोम से पीड़ित अमेरिका के 97.38% सबसे बड़े जीवन काल के साथ। *
    विटामिन डी के इस उभरते हुए महत्व ने आधा बिलियन डॉलर के विटामिन डी पूरक उद्योग को जन्म दिया है।
  • लेकिन प्रकृति ने हमें सूर्य – विटामिन डी का परम स्रोत – मुफ्त में दिया है। *
    : * वसायुक्त-पेट-में-पेट का उपाय * कई लोगों का वजन उनके खाने और पीने की आदतों के कारण बढ़ता है। वजन बढ़ने के कारण शरीर का आकार अजीब लगता है। फिर पेट कम करने, कमर बढ़ाने और पैरों पर चर्बी घटाने के लिए अलग-अलग व्यायाम किए जाते हैं। वजन बढ़ने के सभी के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। इसलिए, उपचार से पहले मोटापे के कारणों को जानना महत्वपूर्ण है। पेट और कंधों के आसपास का शरीर वसा जमा होने के कारण अजीब लगता है। यह कई बीमारियों के कारण भी होता है। यदि आप नियमित व्यायाम करते हैं, तो यह वसा कम हो सकती है। वजन बढ़ाने के लिए आवश्यक समय से वजन कम करने में अधिक समय लगता है। अगर आप कुछ टिप्स अपनाते हैं तो आप वजन कम करने के लिए इससे लाभान्वित हो सकते हैं। बदलती जीवन शैली के कारण आहार में जंक फूड का उपयोग बढ़ गया है। वजन बढ़ाने की आदतों से बचने के लिए देखभाल की जानी चाहिए। बाहरी पदार्थ में फैट अधिक होता है और यह भी सवाल है कि वे स्वास्थ्य के लिए कितने अच्छे हैं। यदि आप नियमित संतुलित आहार लेते हैं, तो वजन नियंत्रित रहता है। इसलिए, आपको विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए कि आहार को कैसे फिट रखा जाना चाहिए। बहुत सारे पैकेट आविष्कार हैं जो तुरंत तात्कालिक भोजन तैयार हैं। इस तरह के पेय बाजार में भी उपलब्ध हैं। लेकिन, पैकेट में रस के उपयोग के साथ, बच्चे भी बड़े हो जाते हैं। लेकिन ऐसे पैकेट वाले पेय शरीर के लिए हानिकारक होते हैं। रस का प्राकृतिक होना स्वाभाविक है। पैकेट के रस में चीनी की खपत बाजार में अधिक है, जिससे वजन बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। इसकी जीवन शैली के कारण शारीरिक गतिविधि कम हो गई है। ये परिणाम मोबाइल और टीवी शो पर दिखाई दे रहे हैं। पेट पर चर्बी अपने आप कम नहीं होती है, यह नियमित व्यायाम और चलने या अन्य गतिविधियों के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है। फिर से कई लोग फिर से भूखे हैं। वजन बढ़ाने के लिए लगातार खाना अधिक जोखिम भरा हो जाता है। थके हुए होने पर कुछ लोग अक्सर अधिक प्रसन्न होते हैं या अधिक खाते हैं। शरीर में हार्मोन निकलते हैं। जिससे भूख बढ़ती है।* 🔆🔅🔆🔅
    पथरी कैसे बनता है?

युरीक एसिड ज्यादा बनने से पथरी होता है।

जो भोजन खाएँ उसका हजम नहीं होने का परिणाम एसिड में रूपांतरण होता है।

जब भी भोजन करें भूख लगे तभी करें।बीना भूख से नाश्ता भी नहीं करें।
देरी रात्रि का भोजन हजम नहीं होता है तो उससे बचना चाहिए।

पानी कम पीने से एसिड क्षारीय रूप में होता है इसलिए पानी पीएं ज्यादा गमॅ में उपवास में जरूरी है पानी पीना।

क्षारीया चीजों का सेवन से पथरी को गलती है।

आयोडिन नमक एसिड बनाता हैं।🚫
फरालीनमक क्षरीय हैं।✅

सहजन , साटोडी पुनॅनवा ,कुलथी, लौकी कागजी नीबू का उपयोग ज्यादा करें।

    

: 🌹🎉🌹🎉🌹🎉🌹🎉🌹

👨🏻‍🦱👉🏿रात में भिगाए हुए ओट्स हैं ज्यादा सेहतमंद, तेजी से घटेगा वजन और मिलेंगे न्यूट्रिएंट्स👈🏿👩🏻

👩🏻1⃣👉🏿पकाकर नहीं, बल्कि रात में भिगाकर ओट्स खाना आपके लिए बहुत फायदेमंद होता है। भीगे हुए ओट्स खाने से वजन तेजी से कम होता है और कोलेस्ट्रॉल घटता है। नाश्ते में ओट्स खाना सेहतमंद होता है।

🌺2⃣👉🏿नाश्ते में ओट्स खाना आपको भी पसंद होगा। ओट्स हेल्दी होते हैं और वजन घटाने में मदद करते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि इन्हें आंच पर पकाने के बजाय रातभर भिगोने के बाद खाना ज्यादा सेहतमंद होता है। जी हां, अगर आप रात में भिगाकर ओट्स खाएं, तो ये आपके लिए ज्यादा फायदेमंद होंगे, क्योंकि इसमें न्यूट्रिएंट्स (पोषक तत्व) पकाए हुए ओट्स के मुकाबले बहुत ज्यादा होते हैं।

👩🏻3⃣आइए आपको बताते हैं कैसे बनाएं ये ओट्स और कितना फायदेमंद है ये ओट्स➖👇🏾

🌹1⃣👉🏿कैसे बनाएं ये ओट्स👈🏿 भिगोकर ओट्स बनाना बहुत आसान है। इसके लिए आप ओट्स को रात में अपने मनपसंद लिक्विड जैसे- दूध, पानी, अलमंड मिल्क, कोकोनट मिल्क, दही आदि किसी एक में भिगा कर रख दें। सुबह ये फूल जाएंगे। इसके बाद इसमें अपने मनपसंद फल (केला, अंगूर, अनार, पाइन एप्पल, कीवी, संतरा, बेरीज, स्ट्रॉबेरी) और नट्स (काजू, बादाम, पिस्ता, किशमिश, गरी, मखाना, अखरोट आदि) काटकर डालें और खाएं।

🌹2⃣👉🏿क्यों ज्यादा सेहतमंद हैं भीगे हुए ओट्स👈🏿 दूध, पानी या दही में भीगे हुए ओट्स, आंच में पकाए गए ओट्स से ज्यादा सेहतमंद होते हैं। रात में भिगाकर रखे गए ओट्स सुबह इतने मुलायम हो जाते हैं कि इन्हें खाया जा सके। इसके अलावा आंच में कोई भी खाद्य पदार्थ पकाने से उसके कई पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। रात में भिगाकर रखने से ओट्स बहुत धीरे-धीरे लिक्विड को सोखते हैं, जिससे ओट्स और लिक्विड दोनों के पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं। लंबे समय तक भीगने के कारण ओट्स में मौजूद सटार्च टूट जाते हैं, जिससे ओट्स में साइटिक एसिड कम हो जाता है। इससे ये आसानी से पच जाता है।

🌹3⃣👉🏿तेजी से वजन घटाते हैं भीगे हुए ओट्स👈🏿 रात में भिगाकर ओट्स खाने से आपका वजन तेजी से कम होता है। इसका कारण यह है कि ये ओट्स आंच में पकाए गए ओट्स के मुकाबले ज्यादा सुपाच्य और फाइबरयुक्त होता है। फाइबर ज्यादा होने के कारण आपका पेट देर तक भरा रहता है, आंतों की गंदगी साफ हो जाती है और आप ज्यादा चर्बी घटा सकते हैं। चूंकि इस ओट्स में स्टार्च की मात्रा कम हो जाती है, इसलिए ये शरीर में इंसुलिन की मात्रा भी बढ़ाता है।

🌹4⃣👉🏿कोलेस्ट्रॉल घटाए और दिल की बीमारियों से बचाए👈🏿 सुबह के नाश्ते में ओट्स खाना आपके लिए बहुत फायदेमंद होता है। ओट्स खाने से बैड कोलेस्ट्रॉल कम होता है और गुड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है। इसके अलावा ये हाई ब्लड प्रेशर और टाइप-2 डायबिटीज में भी फायदेमंद होता है। इसलिए दिल की बीमारियां ओट्स खाने से दूर रहती हैं।
: पेट की गर्मी की ऐसे करें पहचान?


हमारे पेट में गर्मी हो रही है, इस बात पता ऐसे लगाएं-

छाती या सीने में हर समय जलन होना

सांस लेने में तकलीफ होना

मुंह में खट्टा पानी और खट्टी डकारें आना

घबराहट और उल्टी जैसा महसूस होना

पेट में हर समय जलन और दर्द होना

गले में जलन होना

पेट का फूल जाना (पेट में अफ़ारा होना)

कब्ज होना

सिर दर्द होना

पेट में गैस का बनना

पेट को ठंडा रखने के लिए क्या खाएं?

पेट को ठंडा रखने के लिए हमें सबसे पहले अपने खान-पान के तरीकों में बदलाव लाना होगा. पेट को ठंडा रखने के लिए करें ये उपाय-

  1. केला खाएं

पेट की गर्मी को शांत करके उसे ठंडा रखने में केला बहुत मदद करता है. केले के पोटेशियम की मात्रा पेट में बनने वाले एसिड को नियंत्रित करती है और केले का पी एच तत्व एसिड को कम करता है. साथ ही केला, पेट में एक चिकनी पर्त बना देता है जिससे एसिडिटी में कमी आती है. केले का फाइबर पाचन तंत्र को भी दुरुस्त रखता है.

  1. तुलसी के पत्तों का सेवन

तुलसी के पत्तों का सेवन करने से पेट में पानी की मात्रा बढ़ जाती है जिससे पेट के अतिरिक्त ऐसिड में कमी आती है. इसे खाने से मिर्च-मसाले वाला खाना भी सरलता से पच जाता है. रोज खाने के बाद पाँच-छह तुलसी के पत्ते खाने से एसिडिटी नहीं होती है.

  1. ठंडा दूध पियें

दूध का कैल्शियम, पेट के एसिड को एब्जॉर्ब करके उसे बहुत आसानी से ख़त्म कर देता है. रोज सुबह एक कप ठंडा दूध पेट को ठंडा रखने का रामबाण इलाज है.

  1. सौंफ खाएं

खाना खाने के बाद सौंफ का सेवन इसलिए अच्छा माना जाता है क्योंकि सौंफ की तासीर ठंडी होती है जो पेट की जलन और गरमी को शांत करती है. इसलिए अगर एसिडिटी की शिकायत ज्यादा हो तो सौंफ को पानी में उबालकर उसका सेवन करें.

  1. इलायची खाएं

इलायची का स्वाद मीठा और तासीर ठंडी होती है, इस कारण यह पेट के अतिरिक्त एसिड को कम करके उसे ठंडा रखने में सहायक है.

  1. ज़ीरा खाएं

आयुर्वेद में ज़ीरे को पेट के लिए सर्वोत्तम माना गया है. इसकी सहायता से पेट में लार बनती है जिससे खाना पचने में मदद मिलती है और एसिड न बनने के कारण पेट भी ठंडा रहता है.

  1. पुदीने के पत्ते खाएं

पुदीने के पत्ते मुखवास के साथ ही पेट के एसिड को कम करके पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं. इसलिए पुदीने के पत्ते ऐसे ही खा लें या फिर पानी में उबाल कर लें.

  1. सूखी अदरक खाएं

अदरक, पाचन तंत्र को ठीक रखने के साथ शरीर को प्रोटीन भी देता है. इसके नियमित सेवन से अल्सर की गांठ नहीं होती और एसिड भी नहीं बनता है. पेट को ठंडा रखने के लिए सूखी अदरक उत्तम खाद्य पदार्थ है.

  1. लौंग का सेवन

लौंग के जूस से स्लाइवा बनता है जिससे खाना पचने में आसानी होती है और एसिडिटी भी नहीं होती है. खाना ठीक से पचने से पेट में आराम रहता है.

  1. आंवला का करें सेवन

विटामिन सी का उत्तम सोर्स होने के कारण आंवला पेट की परेशानियों में भी लाभकारी है. नियमित रूप से आंवला लेने से पेट में गर्मी नहीं होती है और पेट ठंडा रहता है.

पेट को ठंडा रखने के घरेलू नुस्खे

दादी-नानी के पिटारे से पेट को ठंडा रखने के चुनिन्दा घरेलू नुस्खे इस प्रकार हैं:

• मुलेठी का चूर्ण पेट की गर्मी को मारता है.

• त्रिफला का चूर्ण दूध के साथ पीने से पेट की जलन शांत होती है.

• दूध में मुनक्का डालकर पीने से पेट ठंडा रहता है.

• सौंफ, गुलाब और आंवला का चूर्ण, पेट की हर समस्या का रामबाण उपाय है.

इन सभी उपायों को अपनाने से पेट को ठंडा रखा जा सकता है…
: . हार्ट अटैक : सहज सुलभ उपाय


पीपल के 15 पत्ते लें जो कोमल गुलाबी कोंपलें न हों, बल्कि पत्ते हरे, कोमल व भली प्रकार विकसित हों। प्रत्येक का ऊपर व नीचे का कुछ भाग कैंची से काटकर अलग कर दें। पत्ते का बीच का भाग पानी से साफ कर लें। इन्हें एक गिलास पानी में धीमी आँच पर पकने दें। जब पानी उबल कर एक तिहाई रह जाए तब ठंडा होने पर साफ कपड़े से छान लें और उसे ठंडे स्थान पर रख दें, दवा तैयार।

इस काढ़े की तीन खुराकें बना कर प्रत्येक तीन घंटे बाद प्रातः लें। हार्ट अटैक के बाद कुछ समय हो जाने के पश्चात लगातार पंद्रह दिन तक इसे लेने से हृदय पुनः स्वस्थ हो जाता है और फिर दिल का दौरा पड़ने की संभावना नहीं रहती।

पीपल के पत्ते में दिल को बल और शांति देने की अद्भुत क्षमता है।

इस पीपल के काढ़े की तीन खुराकें सवेरे 8 बजे, 11 बजे व 2 बजे ली जा सकती हैं।

खुराक लेने से पहले पेट एक दम खाली नहीं होना चाहिए, बल्कि सुपाच्य व हल्का नाश्ता करने के बाद ही लें |

प्रयोगकाल में तली चीजें, चावल आदि न लें। मांस, मछली, अंडे, शराब, धूम्रपान का प्रयोग बंद कर दें। नमक, चिकनाई का प्रयोग बंद कर दें।

अनार, पपीता, आंवला, बथुआ, लहसुन, मैथी दाना, सेब का मुरब्बा, मौसंबी, रात में भिगोए काले चने, किशमिश, गुग्गुल, दही, छाछ आदि लें । ……

तो अब आप समझ गए होंगे, भगवान ने पीपल के पत्तों को हार्टशेप क्यों बनाया….!!
: मुलहठी


मुलहठी स्वाद में मधुर, शीतल, पचने में भारी, स्निग्ध और शरीर को बल देनेवाली होती है, इन गुणों के कारण यह बढ़े हुए तीनों दोषों को शांत करती है

  • खांसी, जुकाम में कफ को कम करने के लिए मुलहठी का ज्यादातर उपयोग किया जाता है.
  • बढ़े हुए कफ से गला, नाक, छाती में जलन हो जाने जैसी अनुभूति होती है, तब मुलहठी को शहद में मिलाकर चटाने से बहुत फायदा होता है.
  • बड़ों के लिए मुलहठी के चूर्ण का इस्तेमाल कर सकते हैं. शिशुओं के लिए मुलहठी के जड़ को पत्थर पर पानी के साथ 6-7 बार घिसकर शहद या दूध में मिलाकर दिया जा सकता है.
  • यह स्वाद में मधुर होने के कारण प्रायः सभी बच्चे बिना झिझक के इसे चाट लेते हैं.
  • मुलहठी बुद्धि को भी तेज करती है. अतः छोटे बच्चों के लिए इसका उपयोग नियमित रूप से कर सकते हैं.
  • यह हल्की रेचक होती है. अतः पाचन के विकारों में इसके चूर्ण को इस्तेमाल किया जाता है. विशेषतः छोटे बच्चों को जब कब्ज होती हैं, तब हल्के रेच के रूप में इसका उपयोग किया जा सकता है.
  • छोटे शिशु कई बार शाम को रोते हैं. पेट में गैस के कारण उन्हें शाम के वक्त पेट में दर्द होता है, उस समय मुलहठी को पत्थर पर घिसकर पानी या दूध के साथ पिलाने से पेटदर्द शांत हो जाता है.
  • मुलहठी की मधुरता से पित्त का नाश होता है. आमाशय की बढ़ी हुई अम्लता एवं अम्लपित्त जैसी व्याधियों में मुलहठी काफी उपयुक्त सिद्ध होती है.
  • आमाशय के अंदर हुए व्रण (अलसर) को मिटाने के लिए एवं पित्तवृद्धि को शांत करने के लिए मुलहठी का उपयोग होता है. मुलहठी को मिलाकर पकाए गए घी का प्रयोग करने से अलसर मिटता है.
  • यह कफ को आसानी से निकालता है. अतः खांसी, दमा, टीबी एवं स्वरभेद (आवाज बदल जाना) आदि फेफड़ों की बीमारियों में बहुत ही लाभदायक है.
  • कफ के निकल जाने से इन रोगों के साथ बुखार भी कम हो जाता है. इसके लिए मुलहठी का एक छोटा टुकड़ा मुंह में रखकर चबाने से भी फायदा होता है.
  • पेशाब की जलन मुलहठी के सेवन से कम होती है और पेशाब की रुकावट दूर होती है.
  • मुलहठी शरीर के भीतरी एवं बाहरी जख्मों को जल्दी भरता है, अतः जहां पर जख्म से रक्तस्राव होता है, उस पर मुलहठी का उपयोग फायदेमंद होता है.
  • केवल मुलहठी के चूर्ण के सेवन से गुदा से होनेवाला रक्तस्राव, वह चाहे जिस वजह से हो, बंद हो जाता है. जख्मों पर भी मुलहठी का लेप करें. इससे रक्तस्राव रुक जाता है और जख्म ठीक हो जाता है.
  • त्वचा रोगों में भी मुलहठी लाभकारी है. चेहरे के मुंहासों को दूर करने के लिए मुलहठी का लेप बनाकर इस्तेमाल किया जाता है. इससे त्वचा का रंग निखर आता है, त्वचा की जलन और सूजन दूर होती है.
  • यौवन को बनाए रखने के लिए इसका भीतरी एवं बाहरी प्रयोग काफी लाभदायी होता है.
  • गुदा से रक्तस्राव होने पर मुलहठी आधा ग्राम, काली मिट्टी एक ग्राम और शंखभस्म 250 मि.ग्राम एक साथ मिलाकर शहद और चावल के धोबन के साथ दिन में चार बार सेवन करने से लाभ होता है.
  • मुलहठी 1/2 ग्राम, पिपलामूल 1/2 गा्रम में गुड़, शहद और घी को स्वाद के अनुसार मिलाकर 3-4 बार सेवन करने से खांसी से राहत मिलती है.
  • आंखों की जलन दूर करने के लिए मुलहठी और पद्माख को जल के साथ घिसकर आंखों के ऊपर लेप करें.
  • मुलहठी, काला तिल, आंवला और पद्मकेशर के चूर्ण में शहद मिलाकर उसका लेप सिर पर करने से बाल मजबूत और काले होते है.
  • त्वचा के जख्म में जलन और पीड़ा हो रही हो तो जौ के आटे में मुलहठी और तिल का चूर्ण तथा घी मिलाकर पेस्ट जैसा बना लें. इसे जख्म पर लेप करने से घाव शीघ्र भर जाता हैं.

: हींग

त्वचा के लिए फायदेमंद

बहुत कम लोग इस बात से परिचित है लेकिन हींग त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद है| यदि आपकी त्वचा में दाद हो गया हो तो थोड़ी सी हींग पानी में घिसकर प्रभावित अंग पर लगाएं| इससे दाद की समस्या ठीक हो जाती है। हींग त्वचा की कई समस्याओं से निजात दिलाता है। आप शायद इस बात को नहीं जानते होंगे की बहुत से स्किन प्रोडक्ट में भी हींग का इस्तेमाल किया जाता है।

जुकाम ठीक करे

जुकाम होने पर भी हींग का प्रयोग कारगर है| जुकाम से निजाद पाने के लिए एक एक ग्राम मात्रा में हींग, सोंठ और मुलहठी को बारीक पीस लें। फिर इस मिश्रण में गुड़ या शहद मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। एक गोली सुबह और एक शाम के वक्त चूसें, जुकाम ठीक हो जाएगा।

शरीर के दर्द में राहत

हींग से कई तरह के दर्द में राहत मिलती है| इससे मासिक धर्म में होने वाला दर्द, दांत का दर्द, माइग्रेन का दर्द आदि ठीक किया जा सकता है? हींग में एंटीऑक्सीडेंट्स और दर्द निवारक तत्व मौजूद होते हैं, जिससे आपको दर्द से निजाद मिलती है| जब भी आपको दर्द हो तब एक गिलास गर्म पानी ले और उसमे एक चुटकी हींग मिलाकर पी जाये आपको राहत मिलेगी| यदि आपको दांत में दर्द हो तो हींग और नींबू के रस का पेस्ट दाँतो में लगाएं|

पेट के कीड़े खत्म करे

बहुत बार छोटे बच्चों के पेट में कीडे हो जाते है| उनसे निजाद पाने के लिए जरा सी हींग एक चम्मच पानी में घोले| फिर रूई के फाहे को उसमें डुबोकर बच्चे के पॉटी होल में रख दें| ऐसा करने से जब बच्चा पॉटी करेगा तो सारे कीड़े मर कर पॉटी के साथ निकल जाएंगे। अगर बड़ो को भी पेट में कीड़े पड़ गए है तो वो भी यह उपाय अपना सकते है|

रक्त में शर्करा का स्तर कम करे

जिन लोगो के रक्त में शर्करा का स्तर बहुत अधिक बढ़ गया हो उनके लिए भी हींग का सेवन लाभकारी है| रक्त से शर्करा की मात्रा को कम करने के लिए खाने में हींग जरूर मिलाना चाहिए। यह इन्सुलिन को नियंत्रित करता है और रक्त से शर्करा की मात्रा कम होती है|

उच्च रक्तचाप नियंत्रित करें

हींग में कोमरिन्स नामक तत्व मौजूद होता है| यह रक्त को पतला करता है और रक्त के प्रवाह को बढ़ाता है| इस कारणवश जो लोग हींग का सेवन करते है उनके खून में थक्के नहीं जमते है| यह बेड कोलेस्ट्रोल को कम करने में भी सहायक है| इसलिए दिल की सेहत के लिए यह फायदेमंद है|
: कब्ज का घरेलू उपचार

पुरानी कब्ज (old constipation)


बेल का गूदा – 100 ग्राम, सौंफ 100 ग्राम, इसबग़ोल की भूसी 100 ग्राम, छोटी इलायची 10 ग्राम ।

इन चारों का कूट पीसकर दरदरा चूर्ण बना लें । फिर उसमें 300 ग्राम देसी खाँड़ या बूरा मिलाकर किसी काँच की शीशी में सुरक्षित रख लें ।

दवा खाने की विधि –

10 ग्राम दवा सुबह नाश्ता के पहले ताजा पानी के साथ लें और शाम को खाना खाने के बाद 10 ग्राम दवा गुनगुने जल के साथ या दूध के साथ लें (यदि आवश्यकता समझें तो दोपहर को भी खाना खाने के बाद ताजा जल से दवा खा सकते हैं ) एक सप्ताह के बाद फायदा अवश्य होगा । करीब 45 दिन दवा खाकर छोड़ दें। यह दवा पेट के मल को साफ करेगी और पुरानी आवं या आंतों की सूजन (कोलाइटिस) जड़ से साफ कर देगी ।
“करें योग, रहें निरोग
: ग्रीष्म विशेष

गर्मीनाशक शरबतः जीरा, सौंफ, धनिया, काली द्राक्ष अथवा किशमिश व मिश्री समभाग लेके कूटकर मिला रखें। एक चम्मच मिश्रण एक ग्लास ठंडे पानी में भिगो दें। 2 घंटे बाद हाथ से मसलकर, छानकर पीयें। पीते ही शीतलता, स्फूर्ति व ताजगी आयेगी।

गर्मी एवं पित्तजन्य तकलीफों में- रात को दूध में एक चम्मच त्रिफला घृत (त्रिफला घृत आयुर्वेदिक विश्वसनीय जगह से लेना चाहिए) मिलाकर पीयें। पित्तजन्य दाह, सिरदर्द, आँखों की जलन में आराम मिलेगा।

 दोपहर को चार बजे एक चम्मच गुलकंद धीरे धीरे चूसकर खाने से भी लाभ होता है।

  लू से बचने हेतुः गुड़ (पुराना गुड़ मिले तो उत्तम) पानी में भिगोकर रखें। एक दो घंटे बाद छान कर पीयें। इससे लू से रक्षा होती है।

 प्याज और पुदीना मिलाकर बनायी हुई चटनी भी लू से रक्षा करती है।

  ग्रीष्म में शक्तिवर्धकः ठंडे पानी में जौ अथवा चने का सत्तू, मिश्री व घी मिलाकर पीयें। सम्पूर्ण ग्रीष्म में शक्ति बनी रहेगी।


: 👇👇”ग्रहों को active करने वाली कुछ बातें”👇👇

सुबह “ब्रह्म मुहूर्त” में उठे
निम्नलिखित कार्य करे उस दिन के लिए आप के सभी ग्रह अनुकूल हो जायेंगे और दिन भर एक दिव्य शक्ति की अनुभूति होती रहेगी

सुबह उठ कर सबसे पहले अपने “माँ बाबू जी ” के चरण सपर्श करे उस दिन के लिए “सूर्य चन्द्र” बहुत ही शुभ फल देंगे रोजाना शुभ फल चाहते हो तो रोज यह कार्य जरूर करें
|
एक गिलास गर्म पानी पियें जल(चन्द्र) का यह प्रवाह आपके शरीर की सारी नसों को खोल देगा
|
दांत साफ़ करके घर से निकल कर सैर करने जाए और घास पर नंगे पाँव चले इससे आप का “बुध” बलवान होगा
|
सैर पर आप अपनी पत्नी को भी ले जाएँ “पत्नी” साथ होगी तो सुबह की सैर का “लुत्फ़” ही कुछ और होगा (थोडा सा रोमानी हो जाए )दिन भर स्फूर्ति रहेगी तो “शुक्र” का रोमांस भी आप के साथ होगा
|
घर से जब चले तो साथ में कुछ खाने का सामान “Bread” वगैरह लेकर जाएँ कई बार रास्ते में आवारा “कुत्ते” मिलतें है उन्हें Bread खाने को दे जिससे आप का “केतु” भी अनुकूल होगा क्योंकि “कुत्ता जाति को माना गया है दरवेश ,इसकी प्रार्थना करती प्रभु के घर प्रवेश “
|
पन्द्रह बीस मिनट कसरत करें, जिम जाते हैं तो आप का “मंगल” आप को चुस्त दरुस्त रखेगा
|
नहाने से पहले सरसों के तेल की मालिश करें “शनि” की कमी भी दूर हो जायेगी
|
नहाने के बाद श्रद्धा अनुसार पूजा पाठ से “गुरु” भी active हो जायेंगे
|
भगवान् सूर्य को जल दे “राहू” के दोष भी शांत होते हैं
|
आज कल गर्मियाँ हैं गली मोहल्ले में सुबह सफाई कर्मचारी झाड़ू लगाने आता है उसे ठंडा पानी पिलाए या कुछ खिला दे “राहू” की आशीष भी मिल जायेगी
|
अगर आप यह प्रतिदिन “नियम” से करेंगे तो जीवन में एक “अनुशासन” आएगा तो समझ ले “सूर्य” भी अनुकूल हो गया क्योंकि वक़्त की पाबंदी सीखनी है तो “सूर्य” से सीखें,सूर्य सभी ग्रहों के दोषों को हर लेता है।

शनि ग्रह के बारे मै रोचक बातें

ज्योतिष में शनि ग्रह को भयानक ग्रहों में गिना जाता है। साढ़ेसाती, ढैय्या या शनि की महादशा आने पर जातक विचलित हो जाता है। सही बात भी हैं क्योंकि शनि का आना जीवन को अस्त व्यस्त कर देता है।

यदि #जूते टूटने लगे या आदतन ऐसा होने लगे कि शरीर की शेष स्वच्छता के बावजूद आपके पांवों में पहने जाने के साधन मलिन हो तो , आपकी कुंडली में शनि विकृत होता जा रहा है।

शनि और चन्द्रमा से प्रभावित व्यक्ति सबसे ज्यादा #मानसिक रूप से परेशान होते हैं और धीरे-धीरे यह मानसिक परेशानी उनके निर्णय में झलकने लगती है। शनि प्रभावी व्यक्ति #सोच विचारकर जिस नतीजे पर पहुंचता है अमूमन वह गलत होता है।

शनि की इन सारी बुराइयों के बीच शनि की कुछ खासियतें भी है कि शनि प्रधान व्यक्ति जितनी शीघ्रता से #सफलता की #सीढियों पर चढते है अन्य ग्रह की सकारात्मकता पर नहीं।

शनि यदि देने पर आये तो उसके समान कोई दाता नहीं है। ऐसे किसी शख्स की कहानी आपने सुनी हो जिसने #रंक से #राजा का सफर तय किया हो, उसकी कुंडली पर आपको स्पष्ट रूप से शनि का प्रभाव देखने को मिलेगा।

कुंडली में यदि शनि लग्न, धन, सुख अथवा भाग्येश होकर आय भाव में हो तो जातक को #उंचाइयों पर पहुंचा देता है। कितनी सफलता देगा ये शनि के अंशों और दूसरे ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है

कुंडली में तीन मित्र ग्रहों #खिलाड़ी ग्रह है — शनि, बुध और शुक्र। बोलचाल की भाषा में कहें तो इन तीन ग्रहों का कांबिनेशन ठीक हो तो कुंडली के #पंख लग जाते हैं। इन तीन ग्रहों में से जिन दो ग्रहों में नजदीकी हो, जातक को उस कार्यक्षेत्र में एक बार हाथ अवश्य आजमाना चाहिए। ना जाने भाग्य का कौनसा हल्का सा झोंका रंक से राजा बना दे।

पितृदोष की गूढ एवं विस्तृत व्याख्या

ज्योतिष में पितृदोष का प्रबल कारक राहू, केतु को माना गया है। यदि उनका संबंध सूर्य, चंद्र, मंगल, शनि, गुरु आदि से हो तो व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के पितृदोषों की संभावना रहती है।

सवार्थ चिंतामणि के अनुसार-

राहू-केतु समायुक्ते बाधा पैशाचकी स्मृता।

निम्र स्तर में राहू पिशाच बाधा, व्यभिचार, विष द्वारा मृत्यु, सर्प के आकार का आकस्मिक प्रभावकारी (विस्फोटक) निवास, सर्प की बांबी एवं अतिवृद्धावस्था, कपटी या षड्यंत्रकारी, असत्यवादी आचरण माना गया है। उच्च स्तर में राहू ध्यान, धारणा समाधि आदि का कारक है।

केतु-नागलोक, चर्मरोग, भयानक भूल, नीच आत्माओं से कष्ट, कुत्ते या मुर्गे का काटना आदि कार्यों का कारक माना जाता है। उच्च स्तर में मोक्ष प्राप्ति, ब्रह्मज्ञान, मंत्र शास्त्र, गणेश, शिव या विष्णु आदि का कारकत्व इसे प्राप्त है।

पितृशाप 10 प्रकार के हैं- (1) अनापत्य योग (नि:संतान योग), (2) सर्पशाप, (3) पितृशाप (4) मातृशाप, (5) भ्रातृशाप, (6) मामाशाप, (7) पत्नीशाप, (8)ब्रह्मशाप, (9) प्रेतशाप, (10) कुलदेव के शाप से पुत्रहीनता। संतान प्राप्ति के लिए इन शापों की विधिवत शांति जरूरी है।

पितृ दोष का कारण:-

  1. जन्म कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव पर पितृ कारक ग्रह सूर्य की राहु अथवा शनि के साथ युति हो तो जातक को पितृ दोष होता है।
  2. लग्न तथा चन्द्र कुंडली में नवां भाव, नवमेश अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो होता है।
  3. जन्म कुंडली में लग्नेश यदि त्रिक भाव (6,8 या 12) में स्थित हो तथा राहु लग्न भाव में हो तब भी पितृदोष होता है।
  4. अष्टमेश का लग्नेश, पंचमेश अथवा नवमेश के साथ स्थान परिवर्तन योग भी पितृ दोष का निर्माण करता है।
  5. दशम भाव को भी पिता का घर माना गया है अतः दशमेश छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो इसका राहु से दृष्टि या योग आदि का संबंध हो तो भी पितृदोष होता है।
  6. यदि आठवें या बारहवें भाव में गुरु-राहु का योग और पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि क्रूर ग्रहों की स्थिति हो तो पितृ दोष के कारण संतान कष्ट या संतान सुख में कमी रहती है।
  7. अगर कुंडली में पितृ कारक ग्रह सूर्य अथवा रक्त कारक ग्रह मंगल इन दोनों में से कोई भी नवम भाव में नीच का होकर बैठा हो और उस पर राहु/केतु की दृष्टि हो तो पितृ दोष का निर्माण हो जाता है॥
  8. यदि कुण्डली में में अष्टमेश राहु के नक्षत्र में तथा राहु अष्टमेश के नक्षत्र में स्थित हो तथा लग्नेश निर्बल एव पीड़ित हो तो जातक पितृ दोष एव भूत प्रेत आदि से शीघ्र प्रभावित होते है॥
  9. यदि जातक का जन्म सूर्य चन्द्र ग्रहण में हो तथा घटित होने वाले ग्रहण का का सम्बन्ध जातक के लग्न,षष्ट एव अष्टम भाव बन रहा हो तो ऐसे जातक पितृ दोष,भूत प्रेत,एव अतृप्त आत्माओं के प्रभाव से पीड़ित रहते है॥
  10. यदि लग्नेश जन्म कुण्डली में अथवा नवमांश कुण्डली में अपनी नीच राशि में स्थित हो तथा राहु ,शनि,मंगल के प्रभाव से युक्त हो तो जातक पितृ दोष,अतृप्त आत्माओं का शिकार होता है॥
  11. यदि जन्म कुण्डली में अष्टमेश पंचम भाव तथा पंचमेश अष्टम भाव में स्थित हो तथा चतुर्थेश षष्ठ भाव में स्थित हो और लग्न और लग्नेश पापकर्तरी योग में स्थित हो तो जातक मातृ शाप एव अतृप्त आत्माओं से प्रभावित होता है॥
  12. यदि चन्द्रमा जन्म कुण्डली अथवा नवमांश कुण्डली में अपनी नीच राशि में स्थित हो तथा चन्द्रमा एव लग्नेश का सम्बन्ध क्रूर एव पाप ग्रहो से बन रहा हो तो जातक पितृ दोष,प्रेतज्वर,एव अतृप्त आत्माओं से प्रभावित होता है॥
  13. यदि कुंडली में शनि एव चन्द्रमा की युति हो अथवा चन्द्रमा शनि के नक्षत्र में,अथवा शनि चन्द्रमा के नक्षत्र में स्थित हो तो जातक ऊपरी हवा,पितृदोष,एव अतृप्त आत्माओं से शीघ्र प्रभावित होता है॥
  14. यदि लग्नेश जन्म कुंडली में अपनी शत्रु राशि में निर्बल आव दूषित होकर स्थित हो तथा क्रूर एव पाप ग्रहो से युक्त हो तथा शुभ ग्रहो की दृस्टि लग्न भाव एव लग्नेश पर नहीं पड़ रही हो,तो जातक ऊपरी हवा,एव पितृ दोष से पीड़ित होता है॥
  15. यदि जातक का जन्म कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुक्ल पक्ष की सप्तमी के मध्य हुआ हो और चन्द्रमा अस्त,निर्बल,एव दूषित हो,अथवा चन्द्रमा पक्षबल में निर्बल हो,तथा राहु शनि से युक्त नक्षत्रिये परिवर्तन बना रहा हो तो जातक अद्रशय रूप से मानशिक उन्माद का शिकार होता है॥
  16. यदि जन्म कुंडली में चन्द्रमा राहु का नक्षत्रीय योग परिवर्तन योग बना रहा हो,तथा चन्द्रमा पर अन्य क्रूर अव पाप ग्रहो का प्रभाव एव लग्न एव लग्नेश भाव पर हो तो जातक अतृपत आत्माओं का का प्रभाव होता है॥
  17. यदि कुंडली में चन्द्रमा राहु के नक्षत्र में स्थित हो तथा अन्य क्रूर एव पाप ग्रहो का प्रभाव चन्द्रमा,लग्नेश,एव लग्न भाव पर हो तो जातक अतृप्त आत्माओं से प्रभावित होता है॥
  18. यदि कुंडली में गुरु का सम्बन्ध राहु से हो तथा लग्नेश एव लग्न भाव पापकर्तरी योग में हो तो जातक को अतृप्त आत्माए अधिक परेशान करती है॥
  19. यदि बुध एव राहु में नक्षत्रीय परिवर्तन हो तथा लग्नेश निर्बल होकर अष्टम भाव में स्थित हो साथ ही लग्न एव लग्नेश पर क्रूर एव पाप ग्रहो का प्रभाव हो तो जातक अतृप्त आत्माओं से परेसान रहता है और मनोरोगी बन जाता है॥
  20. यदि कुंडली में अष्टमेश लग्न में स्थित हो तथा लग्न भाव तथा लग्नेश पर अन्य क्रूर तथा पाप ग्रहो का प्रभाव हो तो जातक अतृपत आत्माओं का शिकार होता है॥
  21. यदि जन्म कुण्डली में राहु जिस राशि में स्थित हो उसका स्वामी निर्बल एव पीड़ित होकर अष्टम भाव में स्थित हो तथा लग्न एव लग्नेश पापकर्तरी योग में स्थित हो तो जातक ऊपरी हवा,प्रेतज्वर,और अतृप्त आत्माओं से परेशान रहता है।
    : मन्त्र की शक्ति
    〰️🔸🔸〰️🔸🔸〰️
    मंत्र क्या है ?क्या होती है मंत्र शक्ति ? भगवान राम ने भी शबरी को नवधाभक्ति का उपदेश देते समय कहा था। मंत्र जाप मम दृढ़ विस्वासा।

मंत्र शब्दों का संचय होता है, जिससे इष्ट को प्राप्त कर सकते हैं और अनिष्ट बाधाओं को नष्ट कर सकते हैं । मंत्र इस शब्द में ‘मन्’ का तात्पर्य मन और मनन से है और ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है ।

अगले स्तर पर मंत्र अर्थात जिसके मनन से व्यक्ति को पूरे ब्रह्मांड से उसकी एकरूपता का ज्ञान प्राप्त होता है । इस स्तर पर मनन भी रुक जाता है मन का लय हो जाता है और मंत्र भी शांत हो जाता है । इस स्थिति में व्यक्ति जन्म-मृत्यु के फेरे से छूट जाता है ।

मंत्रजप के अनेक लाभ हैं, उदा. आध्यात्मिक प्रगति, शत्रु का विनाश, अलौकिक शक्ति पाना, पाप नष्ट होना और वाणी की शुद्धि।

मंत्र जपने और ईश्वर का नाम जपने में भिन्नता है । मंत्रजप करने के लिए अनेक नियमों का पालन करना पडता है; परंतु नामजप करने के लिए इसकी आवश्यकता नहीं होती । उदाहरणार्थ मंत्रजप सात्त्विक वातावरण में ही करना आवश्यक है; परंतु ईश्वर का नामजप कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है ।

मंत्रजप से जो आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है उसका विनियोग अच्छे अथवा बुरे कार्य के लिए किया जा सकता है । यह धन कमाने समान है; धन का उपयोग किस प्रकार से करना है, यह धन कमाने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है ।

मंत्र का मूल भाव होता है- मनन। मनन के लिए ही मंत्रों के जप के सही तरीके धर्मग्रंथों में उजागर है। शास्त्रों के मुताबिक मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।

यहां मंत्र जप से संबंधित कुछ जरूरी नियम और तरीके बताए जा रहे हैं, जो गुरु मंत्र हो या किसी भी देव मंत्र और उससे मनचाहे कार्य सिद्ध करने के लिए बहुत जरूरी माने गए हैं- – मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है।

  • मंत्र जप के लिए सही वक्त भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत यानी तकरीबन 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।
  • अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है।
  • मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय पर ही करें।
  • एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद बार-बार स्थान न बदलें। एक स्थान नियत कर लें। – मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है।
  • कुछ विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीव के मनकों की माला और किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए जप करने पर स्फटिक की माला का उपयोग करें।
  • किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए।
  • मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें। – मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें।
  • मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे- कोई मंदिर या घर का देवालय। – मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए। – माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली का उपयोग करें।
  • माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए। मंत्र क्या है …..

‘मंत्र’ का अर्थ शास्त्रों में ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ के रूप में बताया गया है, अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। वेदों में शब्दों के संयोजन से ऐसी ध्वनि उत्पन्न की गई है, जिससे मानव मात्र का मानसिक कल्याण हो। ‘बीज मंत्र’ किसी भी मंत्र का वह लघु रूप है, जो मंत्र के साथ उपयोग करने पर उत्प्रेरक का कार्य करता है। यहां हम यह भी निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बीज मंत्र मंत्रों के प्राण हैं या उनकी चाबी हैं

जैसे एक मंत्र-‘श्रीं’ मंत्र की ओर ध्यान दें तो इस बीज मंत्र में ‘श’ लक्ष्मी का प्रतीक है, ‘र’ धन सम्पदा का, ‘ई’ प्रतीक शक्ति का और सभी मंत्रों में प्रयुक्त ‘बिन्दु’ दुख हरण का प्रतीक है। इस तरह से हम जान पाते हैं कि एक अक्षर में ही मंत्र छुपा होता है। इसी तरह ऐं, ह्रीं, क्लीं, रं, वं आदि सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी हैं। हम यह कह सकते हैं कि बीज मंत्र वे गूढ़ मंत्र हैं, जो किसी भी देवता को प्रसन्न करने में कुंजी का कार्य करते हैं

मंत्र शब्द मन +त्र के संयोग से बना है !मन का अर्थ है सोच ,विचार ,मनन ,या चिंतन करना ! और “त्र ” का अर्थ है बचाने वाला , सब प्रकार के अनर्थ, भय से !लिंग भेद से मंत्रो का विभाजन पुरुष ,स्त्री ,तथा नपुंसक के रूप में है !पुरुष मन्त्रों के अंत में “हूं फट ” स्त्री मंत्रो के अंत में “स्वाहा ” ,तथा नपुंसक मन्त्रों के अंत में “नमः ” लगता है ! मंत्र साधना का योग से घनिष्ठ सम्बन्ध है……

मंत्रों की शक्ति तथा इनका महत्व ज्योतिष में वर्णित सभी रत्नों एवम उपायों से अधिक है।

मंत्रों के माध्यम से ऐसे बहुत से दोष बहुत हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं जो रत्नों तथा अन्य उपायों के द्वारा ठीक नहीं किए जा सकते।

ज्योतिष में रत्नों का प्रयोग किसी कुंडली में केवल शुभ असर देने वाले ग्रहों को बल प्रदान करने के लिए किया जा सकता है तथा अशुभ असर देने वाले ग्रहों के रत्न धारण करना वर्जित माना जाता है क्योंकि किसी ग्रह विशेष का रत्न धारण करने से केवल उस ग्रह की ताकत बढ़ती है, उसका स्वभाव नहीं बदलता।

इसलिए जहां एक ओर अच्छे असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनसे होने वाले लाभ भी बढ़ जाते हैं, वहीं दूसरी ओर बुरा असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनके द्वारा की जाने वाली हानि की मात्रा भी बढ़ जाती है। इसलिए किसी कुंडली में बुरा असर देने वाले ग्रहों के लिए रत्न धारण नहीं करने चाहिएं।

वहीं दूसरी ओर किसी ग्रह विशेष का मंत्र उस ग्रह की ताकत बढ़ाने के साथ-साथ उसका किसी कुंडली में बुरा स्वभाव बदलने में भी पूरी तरह से सक्षम होता है। इसलिए मंत्रों का प्रयोग किसी कुंडली में अच्छा तथा बुरा असर देने वाले दोनो ही तरह के ग्रहों के लिए किया जा सकता है।

साधारण हालात में नवग्रहों के मूल मंत्र तथा विशेष हालात में एवम विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए नवग्रहों के बीज मंत्रों तथा वेद मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।

मंत्र जाप- मंत्र जाप के द्वारा सर्वोत्तम फल प्राप्ति के लिए मंत्रों का जाप नियमित रूप से तथा अनुशासनपूर्वक करना चाहिए। वेद मंत्रों का जाप केवल उन्हीं लोगों को करना चाहिए जो पूर्ण शुद्धता एवम स्वच्छता का पालन कर सकते हैं।

किसी भी मंत्र का जाप प्रतिदिन कम से कम 108 बार जरूर करना चाहिए। सबसे पहले आप को यह जान लेना चाहिए कि आपकी कुंडली के अनुसार आपको कौन से ग्रह के मंत्र का जाप करने से सबसे अधिक लाभ हो सकता है तथा उसी ग्रह के मंत्र से आपको जाप शुरू करना चाहिए।

बीज मंत्र- एक बीजमंत्र, मंत्र का बीज होता है । यह बीज मंत्र के विज्ञान को तेजी से फैलाता है । किसी मंत्र की शक्ति उसके बीज में होती है । मंत्र का जप केवल तभी प्रभावशाली होता है जब योग्य बीज चुना जाए । बीज, मंत्र के देवता की शक्ति को जागृत करता है ।

प्रत्येक बीजमंत्र में अक्षर समूह होते हैं।

उदाहरण के लिए – ॐ, ऐं,क्रीं, क्लीम्
उनको बोलते हैं बीज मंत्र।

उसका अर्थ खोजो तो समझ में नही आएगा लेकिन अंदर की शक्तियों को विकसित कर देते हैं। सब बीज मंत्रो का अपना-अपना प्रभाव होता है। जैसे ॐ कार बीज मंत्र है ऐसे २० दूसरे भी हैं।

ॐ बं ये शिवजी की पूजा में बीज मंत्र लगता है। ये बं बं…. अर्थ को जो तुम बं बं…..जो शिवजी की पूजा में करते हैं। इस बं के उच्चारण करने से वायु प्रकोप दूर हो जाता है। गठिया ठीक हो जाता है। शिव रात्रि के दिन सवा लाख जप करो तो इष्ट सिद्धि भी मिलती है। बं… शब्द उच्चारण से गैस ट्रबल कैसी भी हो भाग जाती है।

खं शब्द👉 खं…. हार्ट-टैक कभी नही होता है। हाई बी.पी., लो बी.पी. कभी नही होता ५० माला जप करें, तो लीवर ठीक हो जाता है। १०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का अशुभ प्रभाव चला जाता है।

ऐसे ही ब्रह्म परमात्मा का कं शब्द है। ब्रह्म वाचक। तो ब्रह्म परमात्मा के ३ विशेष मंत्र हैं। ॐ, खं और कं।

ऐसे ही रामजी के आगे भी एक बीज मंत्र लग जाता है – रीं रामाय नम:।।

कृष्ण जी के मंत्र के आगे बीज मंत्र लग जाता है क्लीं कृष्णाय नम:।।

जैसे एक-एक के आगे, एक-एक के साथ शून्य लगा दो तो १० गुना हो गया।

ऐसे ही आरोग्य में भी ॐ हुं विष्णवे नम:। तो हुं बिज मंत्र है।

ॐ बिज मंत्र है। विष्णवे विष्णु भगवान का सुमिरन है।

बीजमन्त्रों से स्वास्थ्य-सुरक्षा
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
बीजमन्त्र लाभ

कं           मृत्यु के भय का नाश, 
              त्वचारोग व रक्त विकृति में।

ह्रीं मधुमेह, हृदय की धड़कन में।

घं             स्वपनदोष व प्रदररोग में।

भं             बुखार दूर करने के लिए।

क्लीं पागलपन में।

सं             बवासीर मिटाने के लिए।

वं             भूख-प्यास रोकने के लिए।

लं            थकान दूर करने के लिए।


〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
: शनि के नाम से ही हर व्यक्ति डरने लगता है। शनि की दशा एक बार शुरू हो जाए तो साढ़ेसात साल बाद ही पीछा छोड़ती है। लेकिन हनुमान भक्तों को शनि से डरने की तनिक भी जरूरत नहीं। शनि ने हनुमान को भी डराना चाहा लेकिन मुंह की खानी पड़ी आइए जानें कैसे…महान पराक्रमी हनुमान अमर हैं। पवन पुत्र हनुमान रघुकुल के कुमारों के कहने से प्रतिदिन अपनी आत्मकथा का कोई भाग सुनाया करते थे।

उन्होंने कहा कि मैं एक बार संध्या समय अपने आराध्य श्री राम का स्मरण करने लगा तो उसी समय ग्रहों में पाप ग्रह, मंद गति सूर्य पुत्र शनि देव पधारे। वह अत्यंत कृष्ण वर्ण के भीषणाकार थे। वह अपना सिर प्रायः झुकाये रखते हैं। जिस पर अपनी दृष्टि डालते हैं वह अवश्य नष्ट हो जाता है। शनिदेव हनुमान के बाहुबल और पराक्रम को नहीं जानते थे। हनुमान ने उन्हें लंका में दशग्रीव के बंधन से मुक्त किया था। वह हनुमान जी से विनयपूर्वक किंतु कर्कश स्वर में बोले हनुमान जी ! मैं आपको सावधान करने आया हूं। त्रेता की बात दूसरी थी, अब कलियुग प्रारंभ हो गया है। भगवान वासुदेव ने जिस क्षण अपनी अवतार लीला का समापन किया उसी क्षण से पृथ्वी पर कलि का प्रभुत्व हो गया। यह कलियुग है। इस युग में आपका शरीर दुर्बल और मेरा बहुत बलिष्ठ हो गया है।

अब आप पर मेरी साढेसाती की दशा प्रभावी हो गई है। मैं आपके शरीर पर आ रहा हूं।

शनिदेव को इस बात का तनिक भी ज्ञान नहीं था कि रघुनाथ के चरणाश्रि्रतों पर काल का प्रभाव नहीं होता। करुणा निधान जिनके हृदय में एक क्षण को भी आ जाते हैं, काल की कला वहां सर्वथा निष्प्रभावी हो जाती है। प्रारब्ध के विधान वहां प्रभुत्वहीन हो जाते हैं। सर्व समर्थ पर ब्रह्म के सेवकों का नियंत्रण-संचालन-पोषण प्रभु ही करते हैं। उनके सेवकों की ओर दृष्टि उठाने का साहस कोई सुर-असुर करे तो स्वयं अनिष्ट भाजन होता है। शनिदेव के अग्रज यमराज भी प्रभु के भक्त की ओर देखने का साहस नहीं कर पाते। हनुमान जी ने शनिदेव को समझाने का प्रयत्न किया, आप कहीं अन्यत्र जाएं। ग्रहों का प्रभाव पृथ्वी के मरणशील प्राणियों पर ही पड़ता है। मुझे अपने आराध्य का स्मरण करने दें। मेरे शरीर में श्री रघुनाथजी के अतिरिक्त दूसरे किसी को स्थान नहीं मिल सकता।

लेकिन शनिदेव को इससे संतोष नहीं मिला। वह बोले, मैं सृष्टिकर्ता के विधान से विवश हूं। आप पृथ्वी पर रहते हैं। अतः आप मेरे प्रभुत्व क्षेत्र से बाहर नहीं हैं। पूरे साढे बाईस वर्ष व्यतीत होने पर साढ़े सात वर्ष के अंतर से ढाई वर्ष के लिए मेरा प्रभाव प्राणी पर पड़ता है। किंतु यह गौण प्रभाव है। आप पर मेरी साढ़े साती आज इसी समय से प्रभावी हो रही हो। मैं आपके शरीर पर आ रहा हूं। इसे आप टाल नहीं सकते।

फिर हनुमान जी कहते हैं, जब आपको आना ही है तो आइए, अच्छा होता कि आप मुझ वृद्ध को छोड़ ही देते’

फिर शनिदेव कहते हैं, कलियुग में पृथ्वी पर देवता या उपदेवता किसी को नहीं रहना चाहिए। सबको अपना आवास सूक्ष्म लोकों में रखना चाहिए जो पृथ्वी पर रहेगा। वह कलियुग के प्रभाव में रहेगा और उसे मेरी पीड़ा भोगनी पड़ेगी और ग्रहों में मुझे अपने अग्रज यम का कार्य मिला है। मैं मुख्य मारक ग्रह हूं। और मृत्यु के सबसे निकट वृद्ध होते हैं। अतः मैं वृद्धों को कैसे छोड़ सकता हूं।’

हनुमान जी पूछते हैं, आप मेरे शरीर पर कहां बैठने आ रहे हैं। शनिदेव गर्व से कहते हैं प्राणी के सिर पर। मैं ढाई वर्ष प्राणी के सिर पर रहकर उसकी बुद्धि विचलित बनाए रखता हूं। मध्य के ढाई वर्ष उसके उदर में स्थित रहकर उसके शरीर को अस्वस्थ बनाता हूं व अंतिम ढाई वर्ष पैरों में रहकर उसे भटकाता हूं।’

फिर शनिदेव हनुमान जी के मस्तक पर आ बैठे तो हनुमान जी के सिर पर खाज हुई। इसे मिटाने के लिए हनुमान जी ने बड़ा पर्वत उठाकर सिर पर रख लिया।

शनिदेव चिल्लाते हैं, यह क्या कर रहे हैं आप।’ फिर हनुमान जी कहते हैं, जैसे आप सृष्टिकर्ता के विधान से विवश हैं वैसे मैं भी अपने स्वभाव से विवश हूं। मेरे मस्तक पर खाज मिटाने की यही उपचार पद्धति है। और आप अपना कार्य करें और मैं अपना कार्य।’

ऐसा कहते ही हुनमान जी ने दूसरा पर्वत उठाकर सिर पर रख लिया। इस पर शनिदेव कहते हैं, आप इन्हें उतारिए, मैं संधि करने को तैयार हूं।’ उनके इतना कहते ही हनुमान जी ने तीसरा पर्वत उठाकर सिर पर रख लिया तो शनि देव चिल्ला कर कहते हैं, मैं अब आपके समीप नहीं आऊंगा। फिर भी हनुमान जी नहीं माने और चौथा पर्वत उठाकर सिर पर रख लिया। शनिदेव फिर चिल्लाते हैं, पवनकुमार ! त्राहि माम ताहि माम ! रामदूत ! आंजनेयाय नमः ! मैं उसको भी पीड़ित नहीं करूंगा जो आपका स्मरण करेगा। मुझे उतर जाने का अवसर दें।

हनुमान जी कहते हैं, बहुत शीघ्रता की। अभी तो पांचवां पर्वत (शिखर) बाकी है। और इतने में ही शनि मेरे पैरों में गिर गए, और कहा’ मैं सदैव आपको दिये वचनों को स्मरण रखूंगा।’

आघात के उपचार के लिए शनिदेव तेल मांगने लगे। हनुमान जी तेल कहां देने वाले थे। वही शनिदेव आज भी तेलदान से तुष्ट होते हैं।: 💥जय श्री कृष्णा 💥

🌹ज्योतिष मंथन🌹

ज्योतिष में नव ग्रह व 12 भाव है इन्हीं 12 भाव नौ ग्रहों से कुछ शुभ योग और कुछ अशुभ योग बनते हैं, इन्हीं अशुभ योगों में से एक योग गुरु चांडाल योग है, जिसके बारे में आज चर्चा करते हैं ।।

ज्योतिष में नकारात्मक योग भी है शुभ योग भी हैं, सबसे बड़े नकारात्मक योगों में से एक योग है गुरु चांडाल योग अगर किसी कुंडली में राहु बृहस्पति एक साथ हो तो यह योग बन जाता है इनके दृष्टि से ये योग नहीं बनता क्योकि राहु की दृष्टि नहीं होती।।

कुंडली में कहीं भी यह योग बनता है तो नुकसान ही करता है, कुंडली में अगर ये योग लग्न, पंचम या नवम भाव में बने तो विशेष नकारात्मक होता है, गुरु चांडाल योग का अगर समय पर उपाय न किया गया तो कुंडली के तमाम शुभ योग भंग हो जाते हैं ।।

प्रभाव:– गुरु चांडाल योग अगर कुंडली में बनता है तो ये व्यक्ति के शुभ गुणों को घटा देता है, और नकारात्मक गुण बढ़ा देता है, अक्सर ये योग होने पर व्यक्ति का चरित्र कमजोर होता है, इस योग के होने से व्यक्ति को पाचन तंत्र, लीवर की समस्या और गंभीर रोग होने की समस्या बनती है।।

कभी-कभी गुरु-राहु के कारण ये कैंसर का कारण भी बन जाता है ,साथ ही व्यक्ति धर्मभ्रष्ट हो जाता है, अपयश का सामना करना पड़ता है अगर किसी महिला की कुंडली में योग हो तो वैवाहिक जीवन नर्क बन जाता है।।

कुछ ऐसी भी दशाएं होते हैं जिसमें गुरु- राहु चांडाल योग काम नहीं करता है ये योग हैं- अगर बृहस्पति उच्च का हो (कर्क का ) गुरू राहु के साथ कोई अन्य ग्रह भी हो ,ताकत कम हो जाती है, अगर बृहस्पति अस्त या वक्री हो अगर किसी सद्गुरु की कृपा हो।।

उपाय:- अपनों से बड़ों का सम्मान धर्म स्थान या मंदिर में जाएं, व ध्यान पूजा करें, रोज सुबह गायत्री मंत्र का हल्दी की माला से एक माला जाप,,गले में सोने या पीतल का टुकड़ा धारण करें–पार्क,सड़क या मंदिर में पी�मंदिर में पीपल का पौधा लगायें–नानवेज से दूर रहे—

💥जय श्री कृष्णा💥: पीपल की पूजा करने से क्‍यों मिट जाता है शनि का प्रकोप
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
जब किसी इंसान पर शनिदेव की महादशा चल रही होती है तो उसे पीपल की पूजा का उपाय जरूर बताया जाता है। कई बार मन में यह सवाल उठता है कि ब्रम्‍हांड के सबसे शक्तिशाली और क्रूर ग्रह शनि का क्रोध मात्र पीपल वृक्ष की पूजा करने से कैसे शान्‍त हो जाता है।

आज हम आपको बताने जा रहे हैं शनि और पीपल से सम्‍बंधित वह पौराणिक कथा जिसके बारे में आपने शायद ही पहले कभी सुना हो।

पुराणों की माने तो एक बार त्रेता युग मे अकाल पड़ गया था । उसी युग मे एक कौशिक मुनि अपने बच्चो के साथ रहते थे । बच्चो का पेट न भरने के कारण मुनि अपने बच्चो को लेकर दूसरे राज्य मे रोज़ी रोटी के लिए जा रहे थे।

रास्ते मे बच्चो का पेट न भरने के कारण मुनि ने एक बच्चे को रास्ते मे ही छोड़ दिया था । बच्चा रोते रोते रात को एक पीपल के पेड़ के नीचे सो गया था तथा पीपल के पेड़ के नीचे रहने लगा था। तथा पीपल के पेड़ के फल खा कर बड़ा होने लगा था। तथा कठिन तपस्या करने लगा था।

एक दिन ऋषि नारद वहाँ से जा रहे थे । नारद जी को उस बच्चे पर दया आ गयी तथा नारद जी ने उस बच्चे को पूरी शिक्षा दी थी तथा विष्णु भगवान की पूजा का विधान बता दिया था।

अब बालक भगवान विष्णु की तपस्या करने लगा था । एक दिन भगवान विष्णु ने आकर बालक को दर्शन दिये तथा विष्णु भगवान ने कहा कि हे बालक मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूँ। आप कोई वरदान मांग लो।

बालक ने विष्णु भगवान से सिर्फ भक्ति और योग मांग लिया था । अब बालक उस वरदान को पाकर पीपल के पेड़ के नीचे ही बहुत बड़ा तपस्वी और योगी हो गया था।

एक दिन बालक ने नारद जी से पूछा कि हे प्रभु हमारे परिवार की यह हालत क्यो हुई है । मेरे पिता ने मुझे भूख के कारण छोड़ दिया था और आजकल वो कहा है।

नारद जी ने कहा बेटा आपका यह हाल शानिमहाराज ने किया है । देखो आकाश मे यह शनैश्चर दिखाई दे रहा है । बालक ने शनैश्चर को उग्र दृष्टि से देखा और क्रोध से उस शनैश्चर को नीचे गिरा दिया । उसके कारण शनैश्चर का पैर टूट गया । और शनि असहाय हो गया था।

शनि का यह हाल देखकर नारद जी बहुत प्रसन्न हुए। नारद जी ने सभी देवताओ को शनि का यह हाल दिखाया था। शनि का यह हाल देखकर ब्रह्मा जी भी वहाँ आ गए थे । और बालक से कहा कि मैं ब्रह्मा हूँ आपने बहुत कठिन तप किया है।

आपके परिवार की यह दुर्दशा शनि ने ही की है । आपने शनि को जीत लिया है। आपने पीपल के फल खाकर जीवंन जीया है । इसलिए आज से आपका नाम पिपलाद ऋषि के नाम जाना जाएगा।और आज से जो आपको याद करेगा उसके सात जन्म के पाप नष्ट हो जाएँगे।

तथा पीपल की पूजा करने से आज के बाद शनि कभी कष्ट नहीं देगा । ब्रह्मा जी ने पिपलाद बालक को कहा कि अब आप इस शनि को आकाश मे स्थापित कर दो। बालक ने शनि को ब्रह्माण्ड मे स्थापित कर दिया।

तथा पिपलाद ऋषि ने शनि से यह वायदा लिया कि जो पीपल के वृक्ष की पूजा करेगा उसको आप कभी कष्ट नहीं दोगे। शनैश्चर ने ब्रह्मा जी के सामने यह वायदा ऋषि पिपलाद को दिया था।

उस दिन से यह परंपरा है जो ऋषि पिपलाद को याद करके शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा करता है उसको शनि की साढ़े साती , शनि की ढैया और शनि महादशा कष्ट कारी नहीं होती है।

शनि की पूजा और व्रत एक वर्ष तक लगातार करनी चाहिए। शनि कों तिल और सरसो का तेल बहुत पसंद है इसलिए तेल का दान भी शनिवार को करना चाहिए। पूजा करने से तो दुष्ट मनुष्य भी प्रसन्न हो जाता है।

तो फिर शनि क्यो नहीं प्रसन्न होगा ? इसलिए शनि की पूजा का विधान तो भगवान ब्रह्मा ने दिया है।
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
: जीवन की सात मर्यादाओं का भंग न करो
〰️〰️🔸〰️〰️🔸🔸〰️〰️🔸〰️〰️
क्रान्तदर्शी विद्वानों ने व्यक्ति को पाप से बचाने के लिए सात मर्यादाओं का निर्माण किया है उन मर्यादाओं का उल्लंघन किसी को कभी भूलकर भी नहीं करना चाहिए यथा―

(१)स्तेय👉 चोरी न करना, मालिक की दृष्टि बचाकर उसकी वस्तु का अपने लिये उपयोग करना यह साधारण चोरी है। उसकी उपस्थिति में बलपूर्वक छीन लेना ‘लूट’ कहाता है, जो व्यापारी पूरे पैसे लेकर कम तोलता है, कम नापता है, बढ़िया पैसे माल के लेकर घटिया देता है, वस्तुओं में मिलावट करके बेचता है, पूरा वेतन लेकर कम काम करता है, जो अधिकारी या नौकर घूंस (रिश्वत) लेता है, जो आवश्यकता से अधिक संग्रह करता है वह चोर, डाकू, लुटेरा है। सब प्रकार की चोरी, डाका, लूट से बचना ही अस्तेय है। अर्थात् प्रत्येक प्रकार की शारीरिक , मानसिक चोरी का त्याग अस्तेय है।

(२)तल्पारोहण त्याग👉 किसी भी पराई स्त्री से भोग करना तल्पारोहण कहलाता है। परस्त्री सम्पर्क का दोष दर्शाते हुए नीतिकारों ने कहा है:―

बधो बन्धो धनभ्रंशस्तापः शोक कुलक्षयः ।
आयासः कलहो मृत्युर्लभ्यन्ते पर दारकै ।।

भावार्थ👉 पराई स्त्री से सहवास करने वालों को कतल होना, कैद में पड़ना, धन का नाश, सन्ताप प्राप्ति, शोकाकुलता, कुल का नाश, थकान का आना, कलह और मृत्यु से दो चार होना पड़ता है।अतः इससे बचना बहुत आवश्यक है।_

मनु महाराज ने भी कहा है―

न हीदृशमनायुष्यं लोके किञ्चन विद्यते ।
यादृशं पुरुषस्येह परदारोपसेवनम् ।।
―(मनु० ४।१३४)

अर्थात्👉 इस संसार में मनुष्य की आयु को क्षीण करनेवाला और कोई वैसा कार्य नहीं है, जैसा दूसरे की स्त्री का सेवन करना, [ अतः इसे सर्वथा त्याग देना चाहिए । ]

(३)भ्रूण हत्या का त्याग👉 अर्थात् गर्भपात से बचना अथवा अण्डे, माँस, आदि का न खाना, किसी कवि का वचन है

पेट भर सकती हैं तेरा जब सिर्फ दो रोटियाँ ।
किस लिये फिर ढूंढता है बे-जुबां की बोटियां ।
गर हिरस है तो हिरस का पेट भर सकता नहीं ।
दुनिया का सब कुछ मिले तो तृप्त कर सकता नहीं।

(४)मादक वस्तुओं का त्याग👉 सुरापान, भंग, चरस, अफीम,तम्बाकू, बीड़ी,सिगरेट आदि बुद्धिनाशक वस्तुओं का त्याग, नशीली वस्तुओं का प्रयोग बड़ा हानिकारक है। क्योंकि नशीले पदार्थों के सेवन से बुद्धि विकृत होकर चित्त में भ्रान्ति हो जाती है, चित्त के भ्रान्त होने पर मनुष्य पाप करता है, पाप करके दुर्गति को प्राप्त होता है।

(५) दुष्कृत कर्मों का त्याग:👉 बुरे कर्मों की बार-बार जीवन में आवृत्ति नहीं करनी चाहिए, बुरे कर्मों से सदा बचना चाहिए,

भलाई कर चलो जग में तुम्हारा भी भला होगा ।तुम्हारे कर्म का लेखा किसी दिन बरमला होगा ।

(६) ब्रह्महत्या से बचना:👉 अर्थात् भक्ति का त्याग न करना, भक्ति तीन प्रकार की होती है―जाति भक्ति, देश भक्ति,प्रभु भक्ति अथवा किसी ईश्वरभक्त, वेदपाठी सदाचारी विद्वान् की हत्या न करना या उसे किसी प्रकार से कष्ट न पहुँचाना।

(७) पाप करके उसे न छिपाना👉 पाप छिपाने से बढ़ता और प्रकट करने से घटता है। इसलिये बुद्धिमान को पाप करके छिपाना नहीं चाहिए।

जो उपरोक्त मर्यादाओं का पालन करता है वही श्रेष्ठ पुरुष है। उस पर पाप का कभी भी आक्रमण नहीं होता, वह सदा सुख की और अग्रसर होता है। वेद का सन्देश इस प्रकार है–

स॒प्त म॒र्यादा॑: क॒वय॑स्ततक्षु॒स्तासा॒मेका॒मिद॒भ्यं॑हु॒रो गा॑त् । आ॒योर्ह॑ स्क॒म्भ उ॑प॒मस्य॑ नी॒ळे प॒थां वि॑स॒र्गे ध॒रुणे॑षु तस्थौ ॥* – ऋग्वेद १०.५.६

भावार्थ👉 क्रान्तदर्शी विद्वानों ने सात मर्यादाएं बनाई हैं उनमें से एक को भी जो तोड़ता है वह पापी है। निश्चय से दीर्घायु की इच्छा वाले जितेन्द्रिय उत्पादक ईश्वर के आश्रय में रहते हुए और कुमार्गों का त्याग करके उत्तम लोकों को प्राप्त करते हैं उत्तम गति पाते हैं।

✏️✏️✏️
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
भूत-प्रेत की बाधा ( Problem with Ghost)

भूत-प्रेत की बीमारी का प्रधान कारण मन मस्तिष्क व नाडी़ मंडल की निर्बलता है यह बीमारी मनोवैज्ञानिक कारणों से होती है भूत-प्रेत का भय हमारे अर्धचेतन मन में प्रवेश कर जाता है जब आवेगों की प्रधानता हो जाती है तो अवचेतन की सक्रियता से मस्तिष्क व नाडी मंडल प्रभावित हो जाता है रोगी को हिस्टीरिया जैसा दौरा पड़ जाता है वह तरह-तरह की चेष्टा करता है अपने आप को किसी अमृत मृतत्मा की तरह प्रस्तुत करता है या ऐसी क्रियाएं करता है जिससे यह साबित हो कि उस पर किसी आत्मा का साया है संपूर्ण तंत्रिका तंत्र में अकड़न पैदा करता है जिससे रोगी के हाथ-पैर आंखों की मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है कभी रोगी बहुत अधिक क्रोध करता है कभी बहुत अधिक डरा हुआ प्रतीत होता है ।

संपूर्ण मनोरोगो के होने का कारण इंसान के नाडी तंत्र के संचालन केंद्रों पर अधिक दबाव पड़ना है जिससे नाडी तंत्र अव्यवस्थित हो जाता है भूत-प्रेत के 100 में से 90 प्रतिशत केस मानसिक होते हैं जब रोगी की दबी हुई मानसिकावनाओ कां आवेग बहुत तीव्रता से होता है । इस अवस्था में रोगी नई-नई कल्पना करने लगता है विचार आकृति उसे वास्तविक आकृति में दिखाई देने लगती है उसकी समस्त क्रियाएं व्यवहार ऐसा हो जाता है जैसे उस पर किसी आत्मा का साया है ज्ञान वाहीं नाडियो के कार्य में बाधा आने लगती है जिससे मस्तिष्क को आधी अधूरी जानकारी पहुंचती है और मस्तिष्क मैं डर संबंधित विचारों की अधिकता होने से मस्तिष्क उन्हें इसी तरह की कल्पना में बदल देता है ।

👉किसी भी तरह से जब रोगी को यह विश्वास हो जाता है कि अब उसके अंदर किसी आत्मा का साया नहीं है और वह पूर्ण सुरक्षित है तो रोगी ठीक हो जाता है । हिप्नोथेरेपी से ऐसे रोगियों का इलाज बहुत ही सरलता से संभव है

नाेट:- रोगी को अकेला ना छोड़ें विशेष कर रात में, उसे विश्वास दिलाएं कि अब वह पूर्ण सुरक्षित है रोगी मन ही मन इन शब्दों का अधिक से अधिक उच्चारण करें “मैं विघ्न विनाशक आत्मा हूं” । In supervision of Hypnotherapist


💐💐💐💐🙏🙏
: रोग होने का भ्रम ( Hypochondriacs)

👉कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिन्हें वास्तव में कोई रोग नहीं होता है फिर भी उन्हें ऐसा लगता है कि वह किसी बीमारी से पीड़ित है । ऐसे व्यक्ति रोगी नहीं होता, बल्कि रोग से पीड़ित होने का भ्रम उनके अवचेतन मन (Subconscious Mind) में घर कर लेता है जिसके परिणाम स्वरुप वह विभिन्न औषधियो के प्रयोग आदि से भी स्वस्थ नहीं हो पाते । यह बीमारी पूरी तरह से मानसिक है और अधिकांश पैसे वाले, सुख सुविधा संपन्न लोगों अथवा कमजोर मन वाले भावुक लोगों को होती है पहले तो रोगी इस बीमारी के बारे में सोचता है फिर धीरे-धीरे उस की अनुभूति गहरी होती चली जाती है और कालान्तर में बीमारी का भ्रम उनके मन में बैठ जाता है जिससे रोग के लक्षण भी प्रकट होने लगते हैं ।

👉केस :- कई ऐसे मानसिक केस अाये जो इस तरह की मानसिक बीमारी से ग्रसित थे ऐसे व्यक्ति कल्पना के धनी होते हैं छोटे से जुकाम को टी.बी बनाने की कला उनके पास होती है ऐसे रोगी का अधिकांश समय उस मानसिक बीमारी की जानकारियों की खोजबीन में चला जाता है ऐसे रोगी इंटरनेट पर बीमारियों के अलग अलग लक्षणों को ढूंढते रहते हैं और उस लक्षण को अपने अंदर खोजने की कोशिश करते हैं और एक समय बाद उस बीमारी के होने का भ्रम उसके मन में पक्का हो जाता है जिस बीमारी की वह कल्पना करता है ऐसे रोगी कई कई बार अपनी फुल बॉडी चेकअप करा लेते हैं लेकिन किसी भी तरह की बीमारी उसके अंदर होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता रिसर्च से पता चला है कि अकेले कोई भी एक मनोरोग किसी भी इंसान को मानसिक रुप से बीमार नहीं बना सकता कोई भी मानसिक बीमारी कभी भी अकेले नहीं आती मन के कमजोर होने पर इन सभी मनो रोगों का एक के बाद एक हमला होता चला जाता है इस रोग के होने का मुख्य कारण इंसान के अंदर उत्पन्न एक अंजाना डर है हमारा बाहय मन सुरक्षाकर्मी ( Antivirus) का काम करता है । वह अंतर्मन में नकारात्मक विचार का प्रवेश रोकता है जब बाहय मन लंबे समय से किसी समस्या से लड़ रहा होता है और वह हार कर उन नकारात्मक विचारों को स्वीकार कर लेता है तो मानसिक बीमारियां हमला कर देती है और वह अंतर्मन में प्रवेश कर जाती है इन नकारात्मक विचारों को अंतर्मन से बाहर निकालना इंसान के लिए बहुत कठिन है एक साइकोथेरेपीस्ट ही इन्हें निकाल सकता है

👉नाेट:- अपनी तुलना उन लोगों से करो जिनके पास सभी तरह का आभाव है ना धन है, न सुख सुविधा फिर भी वे स्वस्थ हैं कोई शक्ति हैं जो सभी की रक्षा कर रही है वही शक्ति हमारी भी रक्षा करेगी । अपने आप को सर्वे सर्वा न समझे परमात्मा पर विश्वास रखें “वह सब ठीक कर देगा” जैसे ही हम यह शब्द बोलते हैं हमारा बाहय मन दोबारा से पूर्ण शक्तिशाली होने लगता है।



💐💐💐💐🙏🙏

Recommended Articles

Leave A Comment