जीवन ,मृत्यु और ज्योतिष
जन्म कुण्डली में आठवां भाव आयु स्थान कहा गया है। आठवें से आठवां यानी तीसरा भाव आयु की अवधि के लिए माना गया है। किसी भी भाव से बारहवां स्थान उस भाव का
हरण करता है। ऐसे में आठवें का बारहवां यानी सातवां तथा तीसरे का बारहवां यानी दूसरा भाव जातक कुण्डली में मारक बताए गए हैं। इन भावों में स्थित राशियों के अधिपति की दशा, अंतरदशा, सूक्ष्म आदि जातक के जीवन के लिए कठिन साबित होते हैं।
साथ ही बाधक भावो की स्थिति जातक के जीवन में रुकावट उतपन्न करती है , जब किसी जातक की कुंडली मे शनि,राहु,केतु के साथ उक्त परिस्थितियों में किसी ग्रह की दशा चल रही होगी वह समय जातक के जीवन काल का अत्यंत कष्टकारी होता है , साथ शनि, राहु, केतु की स्थियी यदि 6,8,12 भावो के साथ प्रकट हो तो ये ग्रह अपने समय काल रोग या litigation जैसी कुछ न कुछ समस्याएं अवश्य देते है साथ ही साथ यदि संयोग बहुत प्रबल हो तो जातक के जीवन का ग्रास भी कर लेते है , यह सत्य है कि घटना को टाल पाना किसी विद्वान, ज्योतिष अथवा तांत्रिक के वश में नही फिर भी लोग जातक से ऐसा संकल्प लेते -देते है कि हम उनकी इस घटना का पूर्ण हरण कर लेंगे, जबकि वास्तव में ऐसा सम्भव नही। हा ये जरूर है कि कुछ उपाय के माध्यम से घटना की दर को कम किया जा सकता है , जिससे जातक को कष्ट का अनुभव कम हो, तथा वह उस घटना को आसानी से सहन कर सके, यह ठीक उसी प्रकार होता है जैसे श्रीराम ने बाण का सन्धान किया था रत्नाकर के लिए परन्तु जब विनम्र आग्रह किया गया तो बाण की दिशा श्रीराम ने उत्तरांचल पर्वत पर कर दी और बाण से घटने वाली घटना दर को कम कर दिया परन्तु सन्धान किये गए बाण को नष्ट नही किया जा सका।