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सरस्वतीकीखोज_में

2002

वैज्ञानिकों के अनुसार सरस्वती के बारे में नए प्रमाण मिले हैं

सरस्वती नदी के बारे में भारत में कई युगों से कहानियाँ चली आ रही हैं.

वेद पुराणों में सरस्वती को कोटि-कोटि जनों की जीवन धारा बताया गया है और नदी की स्तुति में श्लोक लिखे गए.

सरस्वती को विद्या की देवी कहा जाता है.

अब टेलीविज़न की जानी-मानी हस्ती मधुर जाफ़री ने एक रेडियो कार्यक्रम में सरस्वती नदी के मिथक का जायज़ा लिया है.

साथ ही इन चौंका देने वाले नए प्रमाणों की जाँच-परख की है कि शायद यह मिथक नहीं बल्कि एक वास्तविकता थी.

ऐसा माना जाता है कि विशाल और विस्मयकारी पवित्र सरस्वती नदी का उद्गम-स्रोत हिमालय पर्वत है.

वहाँ से शुरू हो कर सरस्वती नदी का जल सागर में जा मिलने से पहले नदी के किनारों के आस-पास की ज़मीन की प्यास बुझाता जाता है.

लेकिन जैसे-जैसे सदियाँ बीतती गईं और कोई भी सरस्वती नदी का पता नहीं लगा पाया तो मिथक, आस्था तथा धार्मिक विश्वास की मिली-जुली भावना हावी हो गई और सरस्वती नदी भारतीय मिथक का अंग बन गई.

नदी या मिथक?

अब भारत के अधिकांश लोग इसे एक मिथक नदी समझते हैं.

कुछ लोगों का ऐसा भी विश्वास है कि यह एक अदृश्य नदी है और यह अब भी भूमिगत बहती है.

एक अन्य आम धारणा यह है कि सरस्वती नदी किसी समय पर उत्तरी भारत के इलाहाबाद नगर से हो कर बहती थी, जहाँ गंगा और यमुना नदियों से इसका संगम होता था.

इन तीनों नदियों के संगम को, जो सामान्य आँख से दिखाई नहीं पड़ता, भारत के सबसे पावन स्थलों में समझा जाता है.

अधिकांश भारतवासी सरस्वती नाम को विद्या की देवी, सरस्वती की पूजा से जोड़ कर देखते हैं.

सरस्वती-पूजा का उत्सव फ़रवरी के महीने में आता है.

सरस्वती उत्सव

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में सरस्वती-पूजा का उत्सव बहुत ही शानौ-शौकत के साथ मनाया जाता है.

नगर के हर गली मोहल्ले में सरस्वती-पूजा के लिए अस्थायी उपासना-स्थल बनाए जाते हैं.

उत्सव का समापन हुगली नदी के जल में सरस्वती देवी की हज़ारों प्रतिमाओं के अर्पण के साथ होता है जहाँ वे हमेशा-हमेशा के लिए नदी के जल में अमर हो जाती हैं.

सरस्वती देवी का जल से सम्बन्ध उसी रहस्य और मिथक का अंग है जो सरस्वती नदी से जुड़ा हुआ है.

लेकिन जैसे-जैसे कुछ चौंका देने वाला वैज्ञानिक प्रमाण सामने आ रहा है, सरस्वती नदी के अस्तित्व का रहस्य हमेशा एक पहेली बन कर नहीं रह सकता.

उपग्रह प्रमाण

वैज्ञानिकों को रेगिस्तान में जल खोजने की उम्मीद
उपग्रह से लिए गए चित्रों के माध्यम से वैज्ञानिकों ने एक ऐसी विशाल नदी के प्रवाह-मार्ग का पता लगा लिया है जो किसी समय पर भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में बहती थी.

उपग्रह से लिए गए चित्र दर्शाते हैं कि कुछ स्थानों पर यह नदी आठ किलोमीटर चौड़ी थी और कि यह चार हज़ार वर्ष पूर्व सूख गई थी.

जोधपुर में सुदूर संवेदी उपग्रह केन्द्र के अध्यक्ष डा. जे आर शर्मा का विश्वास है कि सरस्वती नदी सम्भवतः एक भीषण भूकंप के कारण सूख गई थी.

उनके अनुसार, भूगर्भीय पट्टियों की गतिविधि के कारण सरस्वती नदी में पानी की आपूर्ति बन्द हो गई थी.

डा. शर्मा और उनके खोजी-दल का विश्वास है कि उन्हें सरस्वती नदी मिल गई है और वे इस बात के प्रति काफ़ी उत्साही हैं कि इस खोज के भारत के लिए क्या मायने हो सकते हैं.

जल स्रोत

वे पानी के सम्भावित स्रोत के तौर पर इसकी खोज-परख करना चाहते हैं.

जल इंजीनियर राजस्थान के रेगिस्तानी इलाक़े के प्राचीन प्रवाह-मार्गों या भूमिगत जलाशयों को खोजने के काम में लगे हुए हैं.

अगर वे इस काम में कामयाब हो जाते हैं, तो उनकी इस खोज से हज़ारों की संख्या में उन स्थानीय लोगों को भारी राहत मिलेगी जिन्हें पीने के पानी के भारी अभाव का सामना करना पड़ रहा है.

राजस्थान राज्य भूमिगत बोर्ड के केएस श्रीवास्तव का विश्वास है कि इन दबे हुए प्राचीन जलमार्गों में से एक सरस्वती नदी हो सकती है.

उनका कहना है कि कार्बन डेटिंग से यह तथ्य सामने आया है कि इस इलाक़े के प्राचीन जल-मार्गों में उन्हें जो पानी मिल रहा है, वह चार हज़ार साल पुराना है.

प्राचीन सभ्यता

इसका मतलब यह है कि यह पानी सरस्वती नदी के काल का ही है.

किसी प्रमुख नदी के किनारे पर रहने वाली एक विशाल प्रागैतिहासिक सभ्यता की खोज ने इस प्रबल होते आधुनिक विश्वास को और पुख़्ता कर दिया है कि सरस्वती नदी अन्ततः मिल गई है.

इस नदी के प्रवाह-मार्ग पर एक हज़ार से भी अधिक पुरातात्त्विक महत्व के स्थल मिले हैं और वे ईसा पूर्व तीन हज़ार वर्ष पुराने हैं.

इनमें से एक स्थल उत्तरी राजस्थान में प्रागैतिहासिक शहर कालीबंगन है.

इस स्थल से कांस्य-युग के उन लोगों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का ख़ज़ाना मिला है जो वास्तव में सरस्वती नदी के किनारों पर रहते थे.

पुरातत्त्वविदों ने पाया है कि इस इलाक़े में पुरोहित, किसान, व्यापारी तथा कुशल कारीगर रहा करते थे.

इस क्षेत्र में पुरातत्त्वविदों को बेहतरीन क़िस्म की मोहरें भी मिली हैं जिन पर लिखाई के प्रमाण से यह संकेत मिलता है कि ये लोग साक्षर थे.

लेकिन दुर्भाग्यवश इन मोहरों की गूढ़-लिपि का अर्थ नहीं निकाला जा सका है.

शायद इन मोहरों पर हुई लिखाई से एक दिन यह गुत्थी खुल सके कि सरस्वती नदी का क्या हश्र हुआ और कि क्या सरस्वती नदी फिर से मिल गई है?
[: सात शरीर व सात चक्र

ईश्वर,परमात्मा,ब्रह्म,तत्व(जो भी नाम आप देना चाहें) से साक्षात्कार के दो ही मार्ग हैं-ध्यान और प्रेम(भक्ति)। शेष सब सामाजिक व्यवस्थाएं मात्र हैं।

हमारे देश में बड़े-बड़े ध्यान योगी और भक्त हुए हैं। जिन्होंने ब्रह्म साक्षात्कार किया है। सभी ने अपने-अपने अनुभव अपने शिष्यों को बताएं भी है।
सभी योगी इस बात पर एकमत है कि मानव का स्थूल शरीर ही एकमात्र शरीर नहीं है अन्य शरीर भी हैं। कोई तीन शरीरों की बात कहते हैं, कोई पांच तो कोई सात। सन्तो ने सात शरीरों की चर्चा करते हैं।
यह ज़्यादा सटीक मालूम पड़ता हैं क्योंकि कुण्डलिनी जागरण के साधक इस बात को जानते हैं कि कुण्डलिनी सात चक्रों से होकर सहस्रार तक पहुंचती हैं। सन्तो के अनुसार हर शरीर एक चक्र से संबंधित होता है। ये सात शरीर और सात चक्र हैं-
१. स्थूल शरीर (फ़िज़िकल बाडी)- मूलाधार चक्र
२. आकाश या भाव शरीर (इथरिक बाडी)-स्वाधिष्ठान चक्र
३. सूक्ष्म या कारण शरीर (एस्ट्रल बाडी)-मणिपुर चक्र
४. मनस शरीर (मेंटल बाडी)-अनाहत चक्र
५. आत्मिक शरीर (स्प्रिचुअल बाडी)-विशुद्ध चक्र
६. ब्रह्म शरीर (कास्मिक बाडी)-आज्ञा चक्र
७. निर्वाण शरीर (बाडीलेस बाडी)-सहस्रार
सामान्य मृत्यु में केवल हमारा स्थूल शरीर ही नष्ट होता है। शेष छः शरीर बचे रहते हैं जिनसे जीवात्मा अपनी वासनानुसार अगला जन्म प्राप्त करती है किंतु महामृत्यु में सभी छः शरीर नष्ट हो जाते हैं फ़िर पुनरागमन संभव नहीं होता। इसे ही अलग-अलग पंथों में मोक्ष,निर्वाण,कैवल्य कहा जाता है।
[🌹🌹🌹🌹🌹हर दीन इस शिव मंत्र का जाप करे परिवार वालों को मुसीबतों से बचाएगा 🌹🌹🌹🌹🌹🕉
शिव, रात के नियंत्रक देवता माने जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रात्रि यानी अंधकार का वक्त बुरी शक्तियों या भावनाओं के हावी होने का समय भी होता है, जो प्रतीक रूप में भूत, पिशाच, डाकिनी या शाकीनी के रूप में भी प्रसिद्ध है। इन बुरी ताकतों पर शिव का नियंत्रण माना गया है, जिससे वह भूतभावन महाकाल भी कहें जाते हैं।

वास्तव में, प्रतीकात्मक तौर पर संकेत है कि बुराइयों, दोष या विकारों के कारण जीवन में दु:ख और संताप रूपी अंधकार से मुक्ति पानी है तो शिव भक्ति के रूप में अच्छाइयों के रक्षा कवच को पहनकर जीवन को सुखी और सफल बना सकते हैं| इसके लिए शास्त्रों के अनुसार शाम के वक्त विशेष तौर पर आज प्रदोष तिथि या प्रतिदिन शिव का ध्यान घर-परिवार की मुसीबतों से रक्षा करने वाला माना गया है।

  • शाम को शिव की पंचोपचार पूजा गंध, अक्षत, आंकड़े के फूल, बिल्वपत्र व धतुरा चढ़ाकर कर करें।
  • शिव पूजा के बाद यथाशक्ति मौसमी फल जैसे केले या गाय के दूध से बनी मिठाई का भोग चढ़ा कर धूप व घी का दीप लगाएं।

शंकराय नमस्तुभ्यं नमस्ते करवीरक।
त्र्यम्बकाय नमस्तुभ्यं महेश्वरमत: परम्।।
नमस्तेस्तु महादेव स्थावणे च तत: परम्।
नम: पशुपते नाथ नमस्ते शम्भवे नम:।।
नमस्ते परमानन्द नम: सोमर्धधारिणे।
नमो भीमाय चोग्राय त्वामहं शरणं गत:।।

  • शिव पूजा, मंत्र स्मरण के बाद आरती करें।
  • आरती के बाद अशुभ या अनिष्ट से रक्षा की प्रार्थना करें और प्रसाद ग्रहण करें।बिल्कुल सफलता मिलेगी✍आचार्य श्री अखिलेश्व़र कुमार पाण्डेय🙏🙏🙏🙏🙏
    : जो लोग में कर्ज फंसे हुए हैं – ज्योतिष शास्त्र में कर्ज के कारण और उपाय –
  1. ऋण या क़र्ज़ दो तरह का होता है – जो आपने लिया हुआ है, या फिर जो पैसा आपने दूसरों को दिया हुआ है.
    रोज़मर्रा की जिंदगी और घर-गृहस्ती के कामों के लिए इंसान कमोबेश ऋण लेता रहता है. यह कर्ज तब तक भार नहीं लगता है, जब तक वह चुकता रहता है. लेकिन समस्या तब बढ़ जाती है, जब कर्ज लेकर कर्जा चुकाएं या कर्जे पर कर्जा बढ़ता चला जाए. ऐसा क्यों होता है और ज्योतिष की दृष्टी से इसके कारण निवारणों पर ध्यान दिया जाए, तो यह पता चलता है, कि इस तरह के कुछ योग होते हैं, जिनमे कर्ज चुकने में ही नहीं आता है.
  2. हमने पिछले कई दिनों में कुछ उपाय लिखे थे, जो आपको क़र्ज़ से मुक्त कर सकें, या फिर आपका फँसा/डूबा हुआ पैसा वापिस आ जाए. एक वीडियो भी हमने यूट्यूब पर इसी विषय पर लोड किया हुआ है. पर, हमेशा की तरह वही बात, हमें वोह प्रतिक्रिया नहीं मिली, जो हम चाहते थे. फिर भी, हम इस विषय पर गहराई से लिख रहे हैं.
  3. ऋण या क़र्ज़ दो तरह का होता है – जो आपने लिया हुआ है, या फिर जो पैसा आपने दूसरों को दिया हुआ है.
    जीवन में वास्तविक और बहुत आवश्यकताओं को छोड़ कर, जैसे कि बिमारी, घर बनाना, कन्या की शादी, व्यापार आदि को छोड़कर, क़र्ज़ के मुख्यता दो कारण होते हैं :

i. आलस्य :
सही समय पर काम न करना, काम को टालना, हर बात को शक की नज़र से देखना और जरुरत से अधिक सोचना, सिक्के के केवल नकारात्मक पहलू को देखना, आदि.

ii. बहुत अधिक लालच :
ऐसी जगह पैसा लगाना जहाँ एक के दो और दो के चार होते हों, ऐसी जितनी स्कीम होती हैं, धोखे वाली होती हैं.

iii. जुआ, शेयर मार्किट में ट्रेडिंग :
लालच ही व्यक्ति को जुआ खेलने पर मजबूर करता है. युधिष्ठर जैसे अपना राज-पाठ हार गए, अपनी पत्नी तक जुए में हार गए.
‘यह एक ऐसा गड्डा है, जिसमें व्यक्ति थोड़ा सा फंस जाये, तो फिर फँसता ही जाता है’.
शेयर मार्किट में ट्रेडिंग भी एक किस्म का जुआ ही है. अगर बाल्टी में छेद हो, तो बाल्टी कभी नहीं भर सकती. व्यक्ति मेहनत से इधर-उधर से काम कर लाता है, और जुए/शेयर मार्किट में झोंकता जाता है.
अब वैसे तो जुए में कोई जीत नहीं सकता, कुछ देर के लिए भले ही लाभ मिल जाये. फिर वोह शायद शहद में चिपकी मक्खी की तरह फँसता जाता है.

  1. हल :
    इनका हल है, कि जिस कारण से आपका पैसा डूब रहा है, उस कारण को रोकें. आज ही जुआ, शेयर ट्रेडिंग से तौबा करें. अगर बीस-तीस बार, या सौ बार में कुछ नहीं मिला, तो एक सौ एकवीं बार में मिलने की आशा करना मृगतृष्णा है, जो कभी पूरी नहीं हो सकती.
    फिर, अगर सोच-समझकर रिस्क लेना ही है, तो जहाँ हज़ारों/लाखों रुपया आप दांव पर लगा रहे हैं, तो चार पैसे खर्च करके ढंग की ज्योतिषीय सलाह लें और उस सलाह के अनुसार उपाय करें और रत्न पहनें.
  2. उपाय :
  3. मंगलवार को कर्ज लेना निषेध माना गया है। वहीं बुधवार को कर्ज देना अशुभ है क्योंकि बुधवार को दिया गया कर्ज कभी नही मिलता। मंगलवार को कर्ज लेने वाला जीवनभर कर्ज नहीं चुका पाता तथा उस व्यक्ति की संतान भी इस वजह परेशानियां उठाती हैं।
  4. जन्म कुंडली के छठे भाव से रोग, ऋण, शत्रु, ननिहाल पक्ष, दुर्घटना का अध्ययन किया जाता है. ऋणग्रस्तता के लिए इस भाव के आलावा दूसरा भाव जो धन का है, दशम-भाव जो कर्म व रोजगार का है, एकादश भाव जो आय का है एवं द्वादश भाव जो व्यय भाव है, का भी अध्ययन किया जाता है.
  5. इसके आलावा ऋण के लिए कुंडली में मौजूद कुछ योग जैसे सर्प दोष व वास्तु दोष भी इसके कारण बनते हैं. इस भाव के कारक ग्रह शनि व मंगल हैं.
  6. जहाँ तक ज्योतिष का सम्बन्ध है, हम नीचे दो उपाय लिख रहे हैं, हो सके तो इन्हें आजमाएं :
    i. पांच दाने काली मिर्च के ले. घर से निकलते समय इन्हें घर के मुख्या द्वार के बाहिर रखें और दाहिने पैर से मसलते हुए आगे बढ़ जाएं. जिस काम के लिए जा रहे हैं, उसमें सफलता मिलेगी और कर्ज का बोझ बढ़ना बंद हो जायेगा. अगर लाभ मिले तो हर सप्ताह करें, या फिर नए काम पर जाते समय हर बार करें. आप यह किसी भी वार को कर सकते हैं., अगले सप्ताह उसी वार में करना आवश्यक नहीं है.

ii. हनुमान जी के मंदिर में किसी मंगलवार को जाएँ और लड्डू का भोग लगाएं. ऐसा 18 मंगलवार करें.
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वेद के ६ अंग हैं== शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष और कल्प।

१. शिक्षा ~~ इसमें वेद का शुद्ध पाठ करने के लिये ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत, उदात्त, अनुदात्त, समाहार, स्वरित्,अनुनासिक आदि भेद से शिक्षा दी गई है, क्योंकि उच्चारणज्ञान के न होने से अनर्थ की प्राप्ति होती है। सर्ववेदों के लिए साधारण शिक्षा को श्री पाणिनी मुनि ने “अथ शिक्षां प्रवक्ष्यामि” इत्यादि से आरंम्भ करके नौ खंडों में प्रकाशित किया है और प्रत्येक वेद के लिए भिन्न-भिन्न शिक्षायें ‘प्रातिशाख्य’ नाम से अन्यान्य ऋषियों ने बनाई है।

२. व्याकरण ~~ वैदिक मंत्रों के शुद्ध उच्चारण के लिये, व्याकरण का मुख्य प्रयोजन है। प्राचीन काल में आठ प्रकार के व्याकरण थे। इनका पाणिनि ऋषि ने सारांश अपने अष्टाध्यायी व्याकरण में दिया है। इसके आरम्भ में भगवान् शङ्कर के डमरू से निकले १४ सूत्रों का वर्णन है। अष्टाध्यायी के सूत्रों पर कात्यायन ऋषि का वार्तिक है तथा पतञ्जलि ऋषि का महाभाष्य है। इन तीनों पर कैय्यट ऋषि ने विस्तार से टीका की है।

सूत्र, वार्तिक तथा भाष्य के लक्षण इस प्रकार से हैं~~

“अल्पाक्षरसन्दिग्धम् सारवद् विश्वतोमुखम्।
अस्तोभमनवद्यं च सूत्रं सूत्रविदो विदुः।।”
जिसमें बहुत थोड़े अक्षर हों, किन्तु अर्थ सन्देह रहित हो, विश्वतोमुखी अर्थ (गागर में सागर भरा हुआ) सूत्र के विशेषज्ञों ने उसे सूत्र कहा है।

वार्तिक ~~ “उक्तानुक्त दुरुक्तानां चिन्ता यत्र प्रवर्तते।
तं ग्रँथं वार्तिकं प्राहु: वार्तिकज्ञा: मनीषिणः।।”
मूल में कही हुई बात, न कही हुई बात तथा कठिन कही हुई बात की चिंता जहां होती है, वार्तिक के मर्म जानने वाले विद्वानों ने उसे वार्तिक कहा है।

भाष्य ~~ “सूत्रार्थो वर्ण्यते यत्र वाक्यै: सूत्रानुकारिभि:।
स्वपदानि च वर्ण्यन्ते भाष्यं भाष्यविदोविदुः।।”
सूत्रकार के वाक्यों के अनुसार जहां अर्थ किया जाता है तथा अपने द्वारा कहे शब्दों की व्याख्या की जाती है, भाष्य के जानने वाले विद्वानों ने उसे भाष्य कहा है।

३. निरुक्त ~~ शिक्षा, व्याकरण से वर्णों का शुद्ध उच्चारण होने पर भी वैदिक मंत्रों का अर्थ जानने की इच्छा से जो ग्रन्थ रचा जाता है, उसे निरुक्त कहते हैं। भगवान् यास्काचार्य ने १३ अध्यायों में निरुक्त की रचना की है। निरुक्त दो प्रकार का है= लौकिक निरुक्त, वैदिक निरुक्त ; दोनों रचना इन्ही की है। लौकिक निरुक्त में महाभारत, पुराण, रामायण आती है, वैदिक निरुक्त में वैदिक देवता, द्रव्यपदार्थ के पर्यायवाची शब्दों का निरूपण है, इसको वैदिक निघण्टु भी कहते हैं। यह ५ अध्यायों में है। यास्काचार्य के अतिरिक्त अमरकोष, मेदिनी कोष आदि भी निरुक्त के अंतर्गत ही आते हैं।

४. छन्द ~~ इसके कर्ता पिंगल ऋषि हैं। यह शास्त्र भी दो प्रकार का है — लौकिक, वैदिक।
वैदिक छन्दों में गायत्री, उष्णिग्, अनुष्टुप्, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती आदि सात छन्द हैं। लौकिक छन्दों में शार्दूलविक्रीड़ित सृग्धरा, विराट् आदि अनेक छन्द हैं।

५. ज्योतिष ~~ वैदिक काल के काल ज्ञान के लिए ; गर्गाचार्यादि अनेक ऋषियों ने अनेक प्रकार से इस शास्त्र से सम्बंधित ग्रन्थ लिखें हैं।

६. कल्प ~~ शास्त्रीय गुणों के उपसंहार में वैदिक अनुष्ठान का क्रमानुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिए कल्प-सूत्रों की रचना हुई है। चारों वेदों के भिन्न-भिन्न कल्पसूत्र हैं। अथर्ववेद से सम्बंधित के लिए बौधायन, आपस्तम्ब, कात्यायन आदि के सूत्र हैं तथा सामवेदी प्रयोगों के लिए लाटायन-ब्रिहियायन आदि सूत्र हैं।

ये वेद के ६ अंग हुये। जैसे हमारे शरीर में मुख, नासिका, नेत्र, पैर, श्रोत्र आदि अंग हैं, वैसे ही व्याकरण भगवान् वेद का मुख, शिक्षा नासिका, निरुक्त चरण, छन्द श्रोत्र, कल्प हाथ, ज्योतिष नेत्र हैं।

              ~~~~ पूज्य गुरुदेव भगवान् प्रणीत "गुरुवंश पुराण" के सत्ययुग खण्ड के प्रथम परिच्छेद के चतुर्थ अध्याय के आधार पर

[ जय श्री कृष्ण

ब्रह्मा कृष्ण के नश्वर शरीर में विराजमान थे और जब कृष्ण की मृत्यु हुई तब पांडवों ने उनके शरीर का दाह-संस्कार कर दिया लेकिन कृष्ण का दिल (पिंड) जलता ही रहा। ईश्वर के आदेशानुसार पिंड को पांडवों ने जल में प्रवाहित कर दिया। उस पिंड ने लट्ठे का रूप ले लिया।

राजा इन्द्रद्युम्न, जो कि भगवान जगन्नाथ के भक्त थे, को यह लट्ठा मिला और उन्होंने इसे जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर स्थापित कर दिया। उस दिन से लेकर आज तक वह लट्ठा भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर है। हर 12 वर्ष के अंतराल के बाद जगन्नाथ की मूर्ति बदलती है लेकिन यह लट्ठा उसी में रहता है।

इस लकड़ी के लट्ठे से एक हैरान करने वाली बात यह भी है कि यह मूर्ति हर 12 साल में एक बार बदलती तो है लेकिन लट्ठे को आज तक किसी ने नहीं देखा। मंदिर के पुजारी जो इस मूर्ति को बदलते हैं, उनका कहना है कि उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और हाथ पर कपड़ा ढक दिया जाता है। इसलिए वे ना तो उस लट्ठे को देख पाए हैं और ही छूकर महसूस कर पाए हैं। पुजारियों के अनुसार वह लट्ठा इतना सॉफ्ट होता है मानो कोई खरगोश उनके हाथ में फुदक रहा है।

पुजारियों का ऐसा मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस मूर्ति के भीतर छिपे ब्रह्मा को देख लेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। इसी वजह से जिस दिन जगन्नाथ की मूर्ति बदली जानी होती है, उड़ीसा सरकार द्वारा पूरे शहर की बिजली बाधित कर दी जाती है। यह बात आज तक एक रहस्य ही है कि क्या वाकई भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में ब्रह्मा का वास है।

जय श्री जगन्नाथ भगवान

शनि ग्रह।

शनि का नाम सुनकर ही जातक भयभीत/चिंताग्रस्त हो जाते हैं, जबकि ऐसा सोचना हमेशा सत्य नहीं होता। शनि देव को भगवान शिव ने न्यायाधीश का पद दिया है और उसका दायित्व शनिदेव पूर्ण निष्ठा से व बिना किसी दुराग्रह के संपादित करते हैं। साढ़ेसाती व ढैय्या के समय जरूर कष्ट प्रदान करते हैं परंतु पूर्ण समय तक नहीं, उसमें भी प्रभाव मित्र राशि में है या शत्रु राशि में तथा उन पर किसी शुभ ग्रह का प्रभाव है या अशुभ ग्रह का, तदनुसार शुभ-अशुभ फल प्राप्त होते हैं।

शनि से बनने वाले विभिन्न योगों का क्रमानुसार वर्णन इस प्रकार हैः

  1. शशयोग: अगर शनि देव केंद्र स्थानों में स्वराशि का होकर बैठे हां (मकर, कुंभ) तो यह योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला जातक नौकरों से अच्छी तरह काम लेता है, किसी संस्थान समूह या कस्बे का प्रमुख और राजा होता है एवं वह सब गुणों से युक्त सर्वसंपन्न होता है।
  2. राजयोग: अगर वृष लग्न में चंद्रमा हो, दशम में शनि हो, चतुर्थ में सूर्य तथा सप्तमेश गुरु हो तो यह योग बनता है। ऐसा जातक सेनापति/पुलिस कप्तान या विभाग का प्रमुख होता है।
  3. दीर्घ आयु योग: लग्नेश, अष्टमेश, दशमेश व शनि केंद्र त्रिकोण या लाभ भाव में (11वां भाव) हो तो दीर्घ आयु योग होता है।
  4. रवि योग: अगर सूर्य दशम भाव में हो और दशमेश तीसरे भाव में शनि के साथ बैठा है तो यह योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला जातक उच्च विचारों वाला और सामान्य आहार लेने वाला होता है। जातक सरकार से लाभान्वित, विज्ञान से ओतप्रोत, कमल के समान आंखों व भरी हुई छाती वाला होता है।
  5. पशुधन लाभ योग: यदि चतुर्थ में शनि के साथ सूर्य तथा चंद्रमा नवम भाव में हो, एकादश स्थान में मंगल हो तो गाय भैंस आदि पशु धन का लाभ होता है।
  6. अपकीर्ति योग: अगर दशम में सूर्य व श्न हो व अशुभ ग्रह युक्त या दृष्ट हो तो इस योग का निर्माण होता है। इस प्रकार के जातक की ख्याति नहीं होती वरन् वह कुख्यात होता है।
  7. बंधन योग: अगर लग्नेश और षष्टेश केंद्र में बैठे हों और शनि या राहु से युति हो तो बंधन योग बनता है। इसमें जातक को कारावास काटना पड़ता है।
  8. धन योग: लग्न से पंचम भाव में शनि अपनी स्वराशि में हो और बुध व मंगल ग्यारहवें भाव में हों तो यह योग निर्मित होता है। इस योग में जन्म लेने वाला जातक महाधनी होता है। अगर लग्न में पांचवे घर में शुक्र की राशि हो तथा शुक्र पांचवे या ग्यारहवें भाव में हो तो धन योग बनता है। ऐसा जातक अथाह संपत्ति का मालिक होता है।
  9. जड़बुद्धि योग: अगर पंचमेश अशुभ ग्रह से दृष्ट हो या युति करता हो, शनि पंचम में हो तथा लग्नेश को शनि देखता हो तो इस योग का निर्माण होता है। इस योग में जन्म लेने वाले जातक की बुद्धि जड़ होती है।
  10. कुष्ठ योग: यदि मंगल या बुध की राशि लग्न में हो अर्थात मेष, वृश्चिक, मिथुन, कन्या लग्न में हो एवं लग्नेश चंद्रमा के साथ हो, इनके साथ राहु एवं शनि भी हो तो कुष्ठ रोग होता है। षष्ठ स्थान में चंद्र, शनि हो तो 55वें वर्ष में कुष्ठ की संभावना रहती है।
  11. वात रोग योग: यदि लग्न में एवं षष्ठ भाव में शनि हो तो 59 वर्ष में वात रोग होता है। जब बृहस्पति लग्न में हो व शनि सातवें में हो तो यह योग बनता है।
  12. दुर्भाग्य योग: (क) यदि नवम में शनि व चंद्रमा हो, लग्नेश नीच राशि में गया हो तो मनुष्य भीख मांग कर गुजारा करता है। (ख) यदि पंचम भाव में तथा पंचमेश या भाग्येश अष्टम में नीच राशिगत हो तो मनुष्य भाग्यहीन होता है।
  13. पापकर्म से धनार्जन योग: यदि द्वादश भाव में शनि-राहु के साथ मंगल हो तथा शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं हो तो पाप कार्यों से धन लाभ होता है।
  14. अंगहीन योग: दशम में चंद्रमा हो सप्तम में मंगल हो सूर्य से दूसरे भाव में शनि हो तो यही योग बनता है। इस योग में जातक अंगहीन हो जाता है।
  15. सदैव रोगी योग: यदि षष्ठभाव तथा षष्ठेश दोनों ही पापयुक्त हां और शनि राहु साथ हांे तो सदैव रोगी होता है।
  16. मतिभ्रम योग: शनि लग्न में हो मंगल नवम पंचम या सप्तम में हो, चंद्रमा शनि के साथ बारहवं भाव में हों एवं चंद्रमा कमजोर हो तो यह योग बनता है।
  17. बहुपुत्र योग: अगर नवांश में राहु पंचम भाव में हो व शनि से संयुक्त हो तो इस योग का निर्माण होता है। इस योग में जन्म लेने वाले जातक के बहुत से पुत्र होते हैं। 18. युद्धमरण योग: यदि मंगल छठे या आठवें भाव का स्वामी होकर छठे, आठवें या बारहवें भाव में शनि या राहु से युति करे तो जातक की युद्ध में मृत्यु होती है।
  18. नरक योग: यदि 12वें भाव में शनि, मंगल, सूर्य, राहु हो तथा व्ययेश अस्त हो तो मनुष्य नरक में जाता है और पुनर्जन्म लेकर कष्ट भोगता है।
  19. सर्प योग: यदि तीन पापग्रह शनि, मंगल, सूर्य कर्क, तुला, मकर राशि में हो या लगातार तीन केंद्रों में हो तो सर्पयोग होता है। यह एक अशुभ योग है।
  20. दत्तक पुत्र योग: शनि-मंगल यदि पांचवें भाव में हों तथा सप्तमेश 11वें भाव में हो, पंचमेश शुभ हो तो यह योग बनता है। नवम भाव में चर राशि में शनि से दृष्ट हो, द्वादशेश बलवान हो, तो जातक गोद जायेगा। यदि पांचवें भाव में ग्रह हो तथा पंचमेश व्यय स्थान में हो, लग्नेश व चंद्र बली हो तो जातक को गोद लिया पुत्र होगा।
    : शास्त्र ज्ञान – ये 9 काम करने से रहती है घर में खुशहाली –
    हमारे शास्त्रों में कई ऐसे काम बताएं गए है जिनका पालन यदि किसी परिवार में किया जाए तो वो परिवार पीढ़ियों तक खुशहाल बना रहता है। आइए जानते है शास्त्रों में बताएं गए 9 ऐसे ही काम।
  21. कुलदेवता पूजन और श्राद्ध –
    जिस कुल के पितृ और कुल देवता उस कुल के लोगों से संतुष्ट रहते हैं। उनकी सात पीढिय़ां खुशहाल रहती है। हिंदू धर्म में कुल देवी का अर्थ है कुल की देवी। मान्यता के अनुसार हर कुल की एक आराध्य देवी होती है। जिनकी आराधना पूरे परिवार द्वारा कुछ विशेष तिथियों पर की जाती है। वहीं, पितृ तर्पण और श्राद्ध से संतुष्ट होते हैं। पुण्य तिथि के अनुसार पितृ का श्राद्ध व तर्पण करने से पूरे परिवार को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
    2.जूठा व गंदगी से रखें घर को दूर –
    जिस घर में किचन मेंं खाना बिना चखें भगवान को अर्पित किया जाता है। उस घर में कभी अन्न और धन की कमी नहीं होती है। इसलिए यदि आप चाहते हैं कि घर पर हमेशा लक्ष्मी मेहरबान रहे तो इस बात का ध्यान रखें कि किचन में जूठन न रखें व खाना भगवान को अर्पित करने के बाद ही जूठा करें। साथ ही, घर में किसी तरह की गंदगी जाले आदि न रहे। इसका खास ख्याल रखें।
  22. इन पांच को खाना खिलाएं –
    खाना बनाते समय पहली रोटी गाय के लिए निकालें। मछली को आटा खिलाएं। कुत्ते को रोटी दें। पक्षियों को दाना डालें और चीटिंयों को चीनी व आटा खिलाएं। जब भी मौका मिले इन 5 में से 1 को जरूर भोजन करवाएं।
  23. अन्नदान –
    दान धर्म पालन के लिए अहम माना गया है। खासतौर पर भूखों को अनाज का दान धार्मिक नजरिए से बहुत पुण्यदायी होता है। संकेत है कि सक्षम होने पर ब्राह्मण, गरीबों को भोजन या अन्नदान से मिले पुण्य अदृश्य दोषों का नाश कर परिवार को संकट से बचाते हैं। दान करने से सिर्फ एक पीढ़ी का नहीं सात पीढिय़ों का कल्याण होता है।
  24. वेदों और ग्रंथों का अध्ययन –
    सभी को धर्म ग्रंथों में छुपे ज्ञान और विद्या से प्रकृति और इंसान के रिश्तों को समझना चाहिए। व्यावहारिक रूप से परिवार के सभी सदस्य धर्म, कर्म के साथ ही उच्च व्यावहारिक शिक्षा को भी प्राप्त करें।
  25. तप –
    आत्मा और परमात्मा के मिलन के लिए तप मन, शरीर और विचारों से कठिन साधना करें। तप का अच्छे परिवार के लिए व्यावहारिक तौर पर मतलब यही है कि परिवार के सदस्य सुख और शांति के लिए कड़ी मेहनत, परिश्रम और पुरुषार्थ करें।
  26. पवित्र विवाह –
    विवाह संस्कार को शास्त्रों में सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। यह 16 संस्कारों में से पुरुषार्थ प्राप्ति का सबसे अहम संस्कार हैं। व्यवहारिक अर्थ में गुण, विचारों व संस्कारों में बराबरी वाले, सम्माननीय या प्रतिष्ठित परिवार में परंपराओं के अनुरूप विवाह संबंध दो कुटुंब को सुख देता है। उचित विवाह होने पर स्वस्थ और संस्कारी संतान होती हैं, जो आगे चलकर कुल का नाम रोशन करती हैं।
  27. इंद्रिय संयम –
    कर्मेंन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों पर संयम रखना। जिसका मतलब है परिवार के सदस्य शौक-मौज में इतना न डूब जाए कि कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को भूलने से परिवार दु:ख और कष्टों से घिर जाए।
  28. सदाचार –
    अच्छा विचार और व्यवहार। संदेश है कि परिवार के सदस्य संस्कार और जीवन मूल्यों से जुड़े रहें। अपने बड़ों का सम्मान करें। रोज सुबह उनका आशीर्वाद लेकर दिन की शुरुआत करे ताकि सभी का स्वभाव, चरित्र और व्यक्तित्व श्रेष्ठ बने। स्त्रियों का सम्मान करें और परस्त्री पर बुरी निगाह न रखें। ऐसा करने से घर में हमेशा मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
    [उन सवालों के जवाब हैं जो हर ज्योतिषी के मन में उठते हैं

प्रश्न: लग्न कुंडली और चलित कुंडली में क्या अंतर है?

उत्तर : लग्न कुंडली का शोधन चलित कुंडली है, अंतर सिर्फ इतना है कि लग्न कुंडली यह दर्शाती है कि जन्म के समय क्या लग्न है और सभी ग्रह किस राशि में विचरण कर रहे हैं और चलित से यह स्पष्ट होता है कि जन्म समय किस भाव में कौन सी राशि का प्रभाव है और किस भाव पर कौन सा ग्रह प्रभाव डाल रहा है।

प्रश्न: चलित कुंडली का निर्माण कैसे करते हैं ?

उत्तर: जब हम जन्म कुंडली का सैद्धांतिक तरीके से निर्माण करते हैं तो सबसे पहले लग्न स्पष्ट करते हैं, अर्थात भाव संधि और भाव मध्य के उपरांत ग्रह स्पष्ट कर पहले लग्न कुंडली और उसके बाद चलित कुंडली बनाते हैं। लग्न कुंडली में जो लग्न स्पष्ट अर्थात जो राशि प्रथम भाव मध्य में स्पष्ट होती है उसे प्रथम भाव में अंकित कर क्रम से आगे के भावों में अन्य राशियां अंकित कर देते हैं और ग्रह स्पष्ट अनुसार जो ग्रह जिस राशि में स्पष्ट होता है, उसे उस राशि के साथ अंकित कर देते हैं। इस तरह यह लग्न कुंडली तैयार हो जाती है। चलित कुंडली बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किस भाव में कौन सी राशि भाव मध्य पर स्पष्ट हुई अर्थात प्रथम भाव में जो राशि स्पष्ट हुई उसे प्रथम भाव में और द्वितीय भाव में जो राशि स्पष्ट हुई उसे द्वितीय भाव में अंकित करते हैं। इसी प्रकार सभी द्वादश भावों मे जो राशि जिस भाव मध्य पर स्पष्ट हुई उसे उस भाव में अंकित करते हैं न कि क्रम से अंकित करते हैं। इसी तरह जब ग्रह को मान में अंकित करने की बात आती है तो यह देखा जाता है कि भाव किस राशि के कितने अंशों से प्रारंभ और कितने अंशों पर समाप्त हुआ। यदि ग्रह स्पष्ट भाव प्रारंभ और भाव समाप्ति के मध्य है तो ग्रह को उसी भाव में अंकित करते हैं। यदि ग्रह स्पष्ट भाव प्रारंभ से पहले के अंशों पर है तो उसे उस भाव से पहले वाले भाव में अंकित करते हैं और यदि ग्रह स्पष्ट भाव समाप्ति के बाद के अंशों पर है तो उस ग्रह को उस भाव के अगले भाव में अंकित किया जाता है। उदाहरण के द्वारा यह ठीक से स्पष्ट होगा। मान लीजिए भाव स्पष्ट और ग्रह स्पष्ट इस प्रकार हैं:
भाव स्पष्ट और ग्रह स्पष्ट से चलित कुंडली का निर्माण करते समय सब से पहले हर भाव में राशि अंकित करते हैं। उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत चलित कुंडली में प्रथम भाव मध्य में मिथुन राशि स्पष्ट हुई है। इसलिए प्रथम भाव में मिथुन राशि अंकित होगी। द्वितीय भाव में भावमध्य पर कर्क राशि स्पष्ट है, द्वितीय भाव में कर्क राशि अंकित होगी। तृतीय भाव मध्य पर भी कर्क राशि स्पष्ट है। इसलिए तृतीय भाव में भी कर्क राशि अंकित की जाएगी। चतुर्थ भाव में सिंह राशि स्पष्ट है इसलिए चतुर्थ भाव में सिंह राशि अंकित होगी। इसी प्रकार यदि उदाहरण कुंडली में देखें तो पंचम भाव में कन्या, षष्ठ में वृश्चिक, सप्तम में धनु, अष्टम में मकर, नवम में फिर मकर, दशम में कुंभ, एकादश में मीन और द्वादश में वृष राशि स्पष्ट होने के कारण ये राशियां इन भावों में अंकित की जाएंगी। लेकिन लग्न कुंडली में एक से द्वादश भावों में क्रम से राशियां अंकित की जाती हैं। राशियां अंकित करने के पश्चात भावों में ग्रह अंकित करते हैं। लग्न कुंडली में जो ग्रह जिस भाव में अंकित है, चलित में उसे अंकित करने के लिए भाव का विस्तार देखा जाता है अर्थात भाव का प्रारंभ और समाप्ति स्पष्ट।
उदाहरण लग्न कुंडली में तृतीय भाव में गुरु और चंद्र अंकित हैं पर चलित कुंडली में चंद्र चतुर्थ भाव में अंकित है क्योंकि जब तृतीय भाव का विस्तार देखकर अंकित करेंगे तो ऐसा होगा। तृतीय भाव कर्क राशि के 150 32‘49’’ से प्रारंभ होकर सिंह राशि के 120 21‘07’’ पर समाप्त होता है। गुरु और चंद्र स्पष्ट क्रमशः सिंह राशि के 080 02‘12’’ और 220 55‘22‘‘ पर हैं। यहां यदि देखें तो गुरु के स्पष्ट अंश सिंह 080 02‘12’’, तृतीय भाव प्रारंभ कर्क 150 32‘49’’ और भाव समाप्त सिंह 210 21‘07’’ के मध्य हैं, इसलिए गुरु तृतीय भाव में अंकित होगा। चंद्र स्पष्ट अंश सिंह 220 55‘22’’ भाव मध्य से बाहर आगे की ओर है, इसलिए चंद्र को चतुर्थ भाव में अंकित करेंगे। इसी तरह सभी ग्रहों को भाव के विस्तार के अनुसार अंकित करेंगे। उदाहरण कुंडली में सूर्य, बुध एवं राहु के स्पष्ट अंश भी षष्ठ भाव के विस्तार से बाहर आगे की ओर हैं, इसलिए इन्हें अग्र भाव सप्तम में अंकित किया गया है।

प्रश्न: चलित कुंडली में ग्रहों के साथ-साथ राशियां भी भावों में बदल जाती हैं, कहीं दो भावों में एक ही राशि हो तो इससे फलित में क्या अंतर आता है?

उत्तर: हर भाव में ग्रहों के साथ-साथ राशि का भी महत्व है। चलित कुंडली का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि हमें भावों के स्वामित्व का भली-भांति ज्ञान होता है। लग्न कुंडली तो लगभग दो घंटे तक एक सी होगी लेकिन समय के अनुसार परिवर्तन तो चलित कुंडली ही बतलाती है। जैसे ही राशि भावों में बदलेगी भाव का स्वामी भी बदल जाएगा। स्वामी के बदलते ही कुंडली में बहुत परिवर्तन आ जाता है। कभी योगकारक ग्रह की योगकारकता समाप्त हो जाती है तो कहीं अकारक और अशुभ ग्रह भी शुभ हो जाता है। ग्रह की शुभता-अशुभता भावों के स्वामित्व पर निर्भर करती है। इसलिए फलित में विशेष अंतर आ जाता है। उदाहरण लग्न कुंडली में एक से द्वादश भावों के स्वामी क्रमशः बुध, चंद्र, सूर्य, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, शनि, गुरु, मंगल और शुक्र और चलित में एक से द्वादश भावों के स्वामी क्रमशः बुध, चंद्र, चंद्र, सूर्य, बुध, मंगल, गुरु, शनि, शनि, शनि, गुरु और शुक्र हैं। इस तरह से देखें तो लग्न कुंडली में मंगल अकारक है लेकिन चलित में वह अकारक नहीं रहा। सूर्य लग्न में तृतीय भाव का स्वामी होकर अशुभ है लेकिन चलित में चतुर्थ का स्वामी होकर शुभ फलदायक हो गया है। शुक्र, जो शुभ है, सिर्फ द्वादश का स्वामी होकर अशुभ फल देने वाला हो गया है। इसलिए भावों के स्वामित्व और शुभता-अशुभता के लिए भी चलित कुंडली फलित में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रश्न: चलित में ग्रह जब भाव बदल लेता है तो क्या हम यह मानें कि ग्रह राशि भी बदल गई?

उत्तर: ग्रह सिर्फ भाव बदलता है, राशि नहीं। ग्रह जिस राशि में जन्म के समय स्पष्ट होता है उसी राशि में रहता है। ग्रह उस भाव का फल देगा जिस भाव में चलित कुंडली में वह स्थित होता है। जैसे कि उदाहरण लग्न कुंडली में सूर्य, बुध, राहु वृश्चिक राशि में स्पष्ट हुए लेकिन चलित में ग्रह सप्तम भाव में हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि वे धनु राशि के होंगे। ये ग्रह वृश्चिक राशि में रहते हुए सप्तम भाव का फल देंगे।

प्रश्न: क्या चलित में ग्रहों की दृष्टि में भी परिवर्तन आता है?

उत्तर: ग्रहों की दृष्टि कोण के अनुसार होती है। अतः लग्नानुसार दृष्टि का विचार करना चाहिए। लेकिन जो ग्रह चलित में भाव बदल लेते हैं उनकी दृष्टि लग्नानुसार करना ठीक नहीं है और न ही चलित कुंडली के अनुसार। अतः दृष्टि के लिए ग्रहों के अंशादि का विचार करना ही उत्तम है।

प्रश्न: निरयण भाव चलित और चलित कुंडली में क्या अंतर है?

उत्तर: चलित कुंडली में भाव का विस्तार भाव प्रारंभ से भाव समाप्ति तक है और भावमध्य भाव का स्पष्ट माना जाता है। लेकिन निरयण भाव में लग्न को ही भाव का प्रारंभ माना जाता है अर्थात जो भाव चलित कुंडली में भाव मध्य है, निरयण भाव चलित में वह भाव प्रारंभ या भाव संधि है। इस प्रकार एक भाव का विस्तार भाव प्रारंभ से दूसरे भाव के प्रारंभ तक माना जाता है। वैदिक ज्योतिष मे चलित को ही महत्व दिया गया है। कृष्णमूर्ति पद्धति में निरयण भाव को महत्व दिया गया है।

प्रश्न: जन्मपत्री लग्न कुंडली से देखनी चाहिए या चलित कुंडली से?

उत्तर: जन्मपत्री चलित कुंडली से देखनी चाहिए क्योंकि चलित में ग्रहों और भाव राशियों की स्पष्ट स्थिति दी जाती है।

प्रश्न: क्या भाव संधि पर ग्रह फल देने में असमर्थ हैं?

उत्तर: कोई ग्रह उसी भाव का फल देता है जिस भाव में वह रहता है। जो ग्रह भाव संधि में आ जाते हैं वे लग्न के अनुसार भाव के फल न देकर चलित के अनुसार भाव फल देते हैं, लेकिन वे फल कम देते हैं ऐसा नहीं है। वे चलित भाव के पूरे फल देते हैं।

प्रश्न: चलित कुंडली में दो भावों में एक राशि कैसे आ जाती है?

उत्तर: हां, ऐसा हो सकता है। यदि दोनों भावों में भाव मध्य पर एक ही राशि स्पष्ट हो जैसे द्वितीय भाव में कर्क 20 08‘40’’ पर है और तृतीय भाव में कर्क 280 56‘58’’ पर स्पष्ट हुई तो दोनों भावों, द्वितीय और तृतीय में कर्क राशि ही अंकित की जाएगी।

प्रश्न: यदि चलित कुंडली में ग्रह उस भाव में विचरण कर जाए जहां पर उसकी उच्च राशि है तो क्या उसे उच्च का मान लेना चाहिए?

उत्तर: नहीं। ग्रह उच्च राशि में नजर आता है। वास्तव में ग्रह ने भाव बदला है, राशि नहीं। इसलिए वह ग्रह उच्च नहीं माना जा सकता है।

प्रश्न: चलित कुंडली को बनाने में क्या अंतर है ?

उत्तर: चलित कुंडली दो प्रकार से बनाई जाती है – एक, जिसमें भाव की राशियों को दर्शित कर ग्रहों को भावानुसार रख देते हैं। दूसरे, दो भावों के मध्य में भाव संधि बना दी जाती है एवं जो ग्रह भाव बदलते हैं उन्हें भाव संधि में रख दिया जाता है। उदाहरणार्थ निम्न कुंडली दी गई है।

प्रश्न: यदि मंगल लग्न कुंडली में षष्ठ भाव में है और चलित में सप्तम भाव में तो क्या कुंडली मंगली हो जाती है?

उत्तर: चलित कुंडली में ग्रह किस भाव में है इसका महत्व है और मंगली कुंडली भी मंगल की भाव स्थिति के अनुसार ही मंगली कही जाती है। इसलिए यदि चलित में मंगल सप्तम में है तो कुंडली मंगली मानी जाएगी।

प्रश्न: यदि मंगल सप्तम भाव में लग्न
कुंडली में और चलित कुंडली में अष्टम भाव में हो तो क्या कुंडली को मंगली मानें?

उत्तर: मंगल की सप्तम और अष्टम दोनों स्थितियों से कुंडली मंगली मानी जाती है, इसलिए ऐसी स्थिति में मंगल दोष भंग नहीं होता।

प्रश्न: ग्रह किस स्थिति में चलायमान होता है?

उत्तर: यदि ग्रह के स्पष्ट अंश भाव के विस्तार से बाहर हैं तो ग्रह चलायमान हो जाता है।

प्रश्न: किन स्थितियों में चलित में ग्रह और राशि बदलती है?

उत्तर: यदि लग्न स्पष्ट प्रारंभिक या समाप्ति अंशों पर हो तो चलित में ग्रह का भाव बदलने की संभावनाएं अधिक हो जाती हैं क्योंकि किसी भी भाव के मध्य राशि के एक छोर पर होने के कारण यह दो राशियों के ऊपर फैल जाता है। अतः दूसरी राशि में स्थित ग्रह पहली राशि में दृश्यमान होते हैं।

प्रश्न: ग्रह चलित में किस स्थिति में लग्न जैसे रहते हैं?

उत्तर: यदि लग्न स्पष्ट राशि के मध्य में हो और ग्रह भी अपनी राशि के मध्य में अर्थात 5 से 25 अंश के भीतर हों तो ऐसी स्थिति में लग्न और चलित एक से ही रहते हैं।
[कॅरियर चयन में विचारणीय भाव

जन्मपत्रिका से आजीविका निर्णय की बात आते ही सहसा ध्यान कुण्डली के कर्म भाव की ओर आकृष्ट हो जाता है| मस्तिष्क दशम भाव तथा दशमेश की स्थिति को परखने लगता है| अन्तत: परिणाम यह निकलता है कि मस्तिष्क किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच पाता है, क्योंकि दशम भाव तथा दशमेश जिस कार्यक्षेत्र को बता रहे हैं, उक्त व्यक्ति का कार्यक्षेत्र उससे भिन्न है| ऐसा अनुभव जीवन में अनेक जन्मपत्रिकाओं का अध्ययन करने पर मिलता है|
वास्तव में कॅरियर का विचार सिर्फ कर्म भाव से नहीं किया जा सकता है| दशम भाव व्यक्ति के परिश्रम तथा कर्म को दर्शाता है| उस कर्म से मिलने वाले फल को तथा धनागम को द्वितीय तथा लाभ भाव दर्शाते हैं|
कर्म करने के लिए व्यक्ति में सामर्थ्य होना चाहिए| उसी सामर्थ्य से कोई भी जातक कर्म करता हुआ आजीविका प्राप्त करता है, अत: व्यक्ति के सामर्थ्य को लग्न भाव दर्शाता है| उपर्युक्त तथ्यों को समझते हुए ही प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् कल्याण वर्मा ने अपनी प्रसिद्ध रचना सारावली के ३३वें अध्याय के अन्तर्गत अन्तिम श्‍लोक में धन- लाभ विचार की पद्धति बताते हुए लिखा है कि लग्न, द्वितीय तथा लाभ भाव में स्थित ग्रहों से अथवा इन भावेशों से धनलाभ का विचार होता है|
आचार्य वराहमिहिर बृहज्जातक में लिखते हैं कि इन भावों में शुभ ग्रह हों, तो सरलतापूर्वक धनलाभ होता हैतथा पापग्रह हों, तो परिश्रमपूर्वक धनलाभ होता है|
गार्गी कहते हैं कि इन भावों में ग्रह न हों, तो राशि की शुभाशुभता एवं ग्रहों की दृष्टि से धनलाभ का विचार करना चाहिए|
उपर्युक्त शास्त्रीय प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि आजीविका विचार के लिए सिर्फ दशम भाव का ही विचार नहीं करना चाहिए| उपर्युक्त भावों के अतिरिक्त पञ्चम भाव का भी आजीविका विचार में विशेष महत्त्व है|
वर्तमान समय में किसी भी नौकरी को प्राप्त करने अथवा व्यवसाय में सफल होने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है| यदि व्यक्ति उच्च शिक्षा ग्रहण कर लेता है, तो उसे आजीविका निर्वहण में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होती है| इन सभी तथ्यों से यह बात सिद्ध होती है कि आजीविका विचार के लिए दशम भाव के साथ ही लग्न, द्वितीय, पञ्चम तथा एकादश भाव भी विशेष विचारणीय है|
प्रश्‍न यह उठता है कि इन सभी भावों से किस प्रकार कार्यक्षेत्र का विचार किया जाए|
कार्यक्षेत्र का विचार करते समय सर्वप्रथम दशम भाव तथा दशमेश की स्थिति को ही देखना चाहिए| यदि कर्मेश अथवा कर्म भाव निर्बल हो, तो व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र के लिए परिश्रम नहीं कर पाएगा|
दशम भाव के पश्‍चात् लग्न भाव कर्मक्षेत्र हेतु विचारणीय द्वितीय महत्वपूर्ण भाव है| लग्न भाव से व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं रुचि को देखा जाता है| इस भाव अथवा भावेश के निर्बल होने पर व्यक्ति को उत्तम स्वास्थ्य न होने के कारण कार्यक्षेत्र में सफलता नहीं मिलती है अथवा कई बार अपनी रुचि के अनुसार कॅरियर की प्राप्ति नहीं होती है|
लग्न के पश्‍चात् द्वितीय भाव महत्त्वपूर्ण है| द्वितीय भाव से स्थायी धन-सम्पत्ति का विचार किया जाता है| साथ ही कुटुम्बजनों के सहयोग को भी देखा जाता है| यदि द्वितीय भाव अथवा द्वितीयेश निर्बल हुआ, तो व्यक्ति अच्छे कार्यक्षेत्र के होते हुए भी स्थायी धन-सम्पत्ति नहीं बना पाता है अथवा उसे अपने कौटुम्बिकजनों का सहयोग न मिलने के कारण कार्यक्षेत्र में उच्च सफलता प्राप्त नहीं होती है|
द्वितीय भाव के पश्‍चात् पञ्चम भाव का भी विचार करें| पञ्चम भाव से विद्या, बुद्धि तथा आत्मविश्‍वास का विचार किया जाता है और इन तीनों के बिना कोई भी व्यक्ति श्रेष्ठ आजीविका प्राप्त नहीं कर सकता है| पञ्चम भाव अथवा पञ्चमेश निर्बल होने पर व्यक्ति अथाह परिश्रम करने के पश्‍चात् भी अपने कॅरियर में आत्मविश्‍वास की कमी अथवा विद्या अल्प रहने के कारण सफलता प्राप्त नहीं कर पाता है|
पञ्चम भाव के पश्‍चात् लाभ भाव भी विचारणीय है| लाभ भाव का कॅरियर विचार में विशेष रूप से महत्त्व है| इसकी महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि यह कर्म भाव की समग्र उपलब्धि को दर्शाता है| लाभ भाव से आय के स्रोतों का ज्ञान होता है| कोई भी व्यक्ति किसी कार्य से कितना लाभ प्राप्त करेगा यह विचार इस भाव से किया जाता है| यदि किसी व्यक्ति के पास श्रेष्ठ बुद्धि है, वह आत्मविश्‍वासी है, उसे अपने कौटुम्बिकजनों का पूर्ण सहयोग प्राप्त हो रहा है, वह स्वस्थ है तथा अपने कार्य के लिए अत्यन्त परिश्रमी भी है, फिर भी लाभ अथवा लाभेश के निर्बल होने पर उसे अपने कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं होगी|
उपर्युक्त पॉंचों भावों का उत्तम सम्बन्ध तथा भाव और भावेशों की बली स्थिति जिन व्यक्तियों की जन्मपत्रिका में स्थित हों, उन्हें निश्‍चित रूप से श्रेष्ठ कार्यक्षेत्र की प्राप्ति होती है|
यदि इनमें से कोई एक या दो भाव अथवा भावेश निर्बल हों, तो व्यक्ति के कॅरियर में उस भाव से सम्बन्धित फलों की कमी रह जाती है| जैसे; लग्न अथवा लग्नेश बलहीन होने पर व्यक्ति अपनी शारीरिक समस्याओं से परेशान रहेगा अथवा उसे अपनी रुचि के अनुसार कार्यक्षेत्र की प्राप्ति नहीं होगी| वह अन्य कार्यक्षेत्र से चाहे कितना भी धनार्जन कर ले, परन्तु उसे सन्तुष्टि प्राप्त नहीं होती|
इन भावों और भावेशों का अन्य भाव और भावेशों से सम्बन्ध को समझते हुए ही किसी भी व्यक्ति के कॅरियर का निर्धारण करना चाहिए, क्योंकि इन भावों के अतिरिक्त भी शेष भावों का कॅरियर चयन में महत्त्व है| हालांकि वह महत्त्व इतना अधिक प्रभावशाली नहीं है, फिर भी कार्यक्षेत्र को ये भाव प्रभावित करते हैं| इन्हें समझने के लिए प्रत्येक भाव से सम्बन्धित फलों को जानना होगा|
कार्यक्षेत्र के उपर्युक्त प्रमुख भावेश यदि किसी एक ही भाव में आकर सम्बन्ध बना लें, अथवा इनमें से कोई तीन या चार भावेश किसी एक निश्‍चित भाव से सम्बन्ध बना लें, तो जातक का कार्यक्षेत्र उसी से सम्बन्धित हो जाता है|
[ आपका होने वाला पति कैसा होगा?

विवाह योग्य होती कन्याएं अक्सर यह कल्पना करती हैं कि उनका होने वाला पति कैसा होगा? जो घोडी पर चढकर आयेगा और उन्हें ले जायेगा जहां उनका नया घर संसार शुरू होगा. हर लडकी की इच्छा होती है कि उसका एक सुखी गॄहस्थ जीवन हो, प्यार देने वाला पति हो और जीवन में सुख ऐश्वर्य हो.

पर क्या सभी कन्याओं के सपने पूर्ण हो पाते हैं? एक तरफ़ ऐसा पति मिलता है जो बडा व्यापारी या ओहदेदार अफ़्सर है, अपनी पत्नि पर जान छिडकता है, उसकी सुख सुविधा के लिये अच्छा घर मकान नौकर चाकर जुटाता है तो दूसरी तरफ़ ऐसे भी पति होते हैं जो दिन रात घर में कलह किये रहते हैं. अब्बल तो वो खुद कमाने में अक्षम होकर पत्नि से दूसरों के घर झाडू बुहारी का काम करवाते हैं, बच्चों व पत्नि से मारपीट करना अपना धर्म समझते हैं. और कुछ ऐसे भी पति पाये जाते हैं जो अच्छा व्यापार, धन या अफ़सर होते हुये भी पत्नि और बच्चों को सिवाय गाली गलौच और मारपीट के कुछ नही देते, घर मे चौबीसों घंटे कलह मचाये रहते हैं. जब तक वो घर में रहते हैं, बच्चे और पत्नि यही प्रार्थना करते रहते अहिं कि कब ये घर से आफ़िस जाये और थोडी देर के लिये शांति मिले.

यानि कुछ ऐसी खुशनसीब पत्निया होती हैं जो यहां स्वर्गिक आनंद उठा रही होती हैं वही कुछ ऐसी होती हैं जो यहां साक्षात नर्क भोगती है. आईये इस बात को ज्योतिषिय दॄश्टिकोण से समझने का प्रयत्न करते हैं.

जन्म समय में जो ग्रहों की स्थिति होती है उस अनुसार विद्या, बुद्धि, धन, कुटुंब, भाग्य, सुख इत्यादि का अनुमान जन्म्कुंडली से लग जाता है इसी प्रकार किसी लडकी का दांपत्य जीवन कैसा रहेगा, इसका पता भी जन्मकुंडली स्थित ग्रहों को देखकर लग जाता है.

जनम्कुंडली का सातवां भाव जीवन साथी का होता है और गुरू पति सुख का कारक ग्रह होता है. मंगल की भुमिका यहां स्त्री के काम (यौन) सुख एवम रज से संबंधित होती है. अत: किसी स्त्री का का पति कैसा होगा और उसका भावी दांपत्य जीवन कैसा होगा? इसके लिये बहुत गहराई से स्त्री की जन्मकुंडली के सातवें भाव, सप्तमस्थ राशि, सप्तमस्थ स्थित ग्रह, सप्तम पर दॄष्टि डालने वाले अन्य भावाधिपति, वॄहस्पति ग्रह स्थित और उस पर अन्य भावाधिपतियों के प्रभाव का अध्ययन करना पडेगा. वॄहस्पति के साथ ही मंगल का भी विशेष रूप से अध्ययन कर लेना चाहिये. स्त्रियों की कुंडली का अध्ययन करते समय विशेष रूप से नवमांश कुंडली के साथ ही साथ द्रेषकाण और त्रिशांश का भलिभांति अवलोकन कर लेना चाहिये.

अब हम आपको कुछ वो योग बता रहे हैं जो किसी स्त्री की कुंडली में विद्यमान हों तो उसे दामफ्त्य सुख प्रदान करने वाले पति की प्राप्ति सहज रूप से होती है.

१. सप्तम भाव में सप्तमेष स्वग्रही हो
२. सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दॄष्टि ना होकर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो अथवा स्वयं सप्तमेश सप्तम भाव को देखता हो.
३. सप्तमस्थ कोई नीच ग्रह ना हो यदि सप्त भाव में कोई उच्च ग्रह हो तो अति सुंदर योग होता है.
४. सप्तम भाव में कोई पाप ग्रह ना होकर शुभ ग्रह विद्यमान हों और षष्ठेश या अष्टमेश की उपस्थिति सप्तम भाव में कदापि नही होनी चाहिये.
५. स्वयं सप्तमेश को षष्ठ, अष्टम एवम द्वादश भाव में नहीं होना चाहिये. सप्तमेश के साथ कोई पाप ग्रह भी नही होना चाहिये साथ ही स्वयं सप्तमेश नीच का नही होना चाहिये.
६. सप्तमेश उच्च राशिगत होकर केंद्र त्रिकोण में हो.
७. वॄहस्पति भी स्वग्रही या उच्च का होकर बलवान हो, दु:स्थानगत ना हो, उस पर पाप प्रभाव ना हो तो अति श्रेष्ठ दांपत्य सुख प्राप्त होता है.
८ मंगल भी बलवान हो. मंगल पर राहु शनि की युति अथवा दॄष्टि प्रभाव नही होना चाहिये.
🌻🍀टाइफाइड के घरेलू इलाज :

🌻🍀गिलोय का काढ़ा 1 तोला को आधा तोला शहद में मिलाकर दिन में 2-3 बार पिलाना लाभकारी है । 

🌻🍀अजमोद का चूर्ण 2 से 4 ग्राम तक शहद के साथ सुबह शाम चाटने से लाभ होता है।

🌻🍀नीम के बीज पीसकर 2-2 घंटे के बाद पिलाने से आन्त्रिक ज्वर उतर जाता है । यह योग मल निकालता है। शरीर में ताजा खून बनाता है, नयी शक्ति का संचार करता है । यदि मलेरिया बुखार से टायफाइड बना हो तो नीम जैसी औषधि के अतिरिक्त अन्य कोई सस्ता और सहज शर्तिया उपचार नहीं है ।

🌻🍀 जीरे को जल के साथ महीन पीसकर 4-4 घंटे के अंतर से ओष्ठों (होंठ के किनारों पर लेप करने से ज्वर उतरने के पश्चात् ज्वरजन्य ओष्ठ-प्रकोप बुखार का मूतना) अर्थात् होठों का पकना व फूटना ठीक हो जाता है ।

🌻🍀जीरा सफेद 3 ग्राम 100 मि. ली. उबलते जल में डाल दें । इसे 15-20 मिनट के बाद छानकर थोड़ी शक्कर मिलाकर रोगी को दें। 10-15 दिनों तक निरन्तर प्रात:काल में पीने से ज्वर उतरने के पश्चात् आने वाली कमजोरी व अग्निमान्द्य नष्ट होकर भूख खुलकर लगने लगती है।

🌻☘️टाइफाइड के बाद सावधानी :

1- पहले लक्षण दिखलायी देने के 8 सप्ताह तक रोगी को दूसरे स्वस्थ एवं निरोगी व्यक्तियों से अलग रखना चाहिए।

2- रोगी के सम्पर्क में आने वालों को टीका लगवायें, दूध और पानी उबाल कर दें, कच्चे फल एवं शाक आदि न दें तथा रोगी द्वारा छुई हुई (पकड़ी या प्रयोग में लाई गई) प्रत्येक वस्तु का शुद्ध करना चाहिए।

3- रोगी को पूर्ण विश्राम दें। 2-घूमने-फिरने न दें।

4- रोगी के बिस्तर एवं कमरे में स्वच्छता बनाये रखें। विशेषतः रोगी का बिस्तर 1-1 दिन बाद बदलवा दें तथा रोगी द्वारा प्रयोग में लाया गया बिस्तर को पूरे दिन की धूप दिखला दें। रोगी के कमरे में सूर्य का प्रकाश (रोशनी) एवं शुद्ध वायु आनी जरूरी है।

5-रोगी को अकेला न छोड़ें किन्तु उसके कमरे में अधिक भीड़-भाड़ भी न हो ।

6- रोगी के पेट, मल-मूत्र, पीठ, नाड़ी, तापमान तथा दिन में पिये जल की मात्रा का पूर्ण विवरण बनाये रखें। 7-रोगी का मुख खूब अच्छी तरह कुल्ले करवाकर शुद्ध रखना चाहिए।

8- मुँह आने और होंठ पकने पर ‘बोरो गिलेसरीन’ लगावें। रोगी की अन्तड़ियों का वायु से बहुत अधिक फूल जाना इस रोग का बुरा लक्षण है।

9- तारपीन का तेल 5 मि.ली. सवा किलो गरम पानी में मिला कर इसमें फलालेन का कपड़ा (टुकड़ा) भिगो एवं निचोड़कर गद्दी बनाकर पेट पर बाँध दें। रोगी को आराम मिलेगा।

10- दालचीनी का तेल 2-3 बूंद पेट फूलने, पेट में दर्द तथा पेट में वायु पैदा होने के लिए अत्यन्त लाभकारी है।

11- केओलिन पाउडर (चीनी मिट्टी का पिसा छना बारीक चूर्ण) या एन्टी फ्लोजेस्टिन की गर्म-गर्म पुल्टिस पूरे पेट पर फैलाकर ढंक देने से भी पेट फूलने को आराम आ जाता है।

12- घर के दरवाजे एवं खिड़कियाँ बन्द करवाकर रोगी का शरीर खौले हुए मामूली गर्म पानी से पोंछवा दें। अधिक दिनों तक लगातार शैय्या पर रहने के कारण रोगी को जो ‘शैय्या क्षत’ (बिस्तर के घाव) कमर, पीठ, कूल्हों आदि में हो जाते हैं, वे न होने पायें, इसका ध्यान रखें।

🌻🍀टाइफाइड में क्या खाएं क्या न खाए :

1- रोगी को तरल, पुष्टिकर, लघुपाकी, आहार जैसे गाय के दूध में ग्लूकोज मिलाकर दें।

2- पेट बहुत अधिक फूल जाने पर तथा समय से सही चिकित्सा न करने पर रक्त में विषैले प्रभाव फैल जाने या अन्तड़ियों में छेद हो जाने का डर उत्पन्न हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में-कम मात्रा में भोजन खिलायें। 3-दही का मट्ठा पानी में घोलकर दूध के स्थान पर दें।

4- मीठे सेव का रस पिलायें।

5- दूध के स्थान पर दही का मट्ठा थोड़ी मात्रा में बार-बार पिलाते रहने से दस्तों में भी आराम आ जाता है।

6- तीन-चार बूंद दालचीनी का तेल’ ग्लूकोज आदि में मिलाकर रोगी को 2-2 घन्टे बाद खिलाते रहने से दस्तों की बदबू, पेट की वायु और कई दूसरे कष्ट दूर हो जाते है।

7- रोगी को रोग की प्रथमावस्था में सादा सुपाच्य भोजन दें।

8- यदि पतले दस्त न हों तो दूध दें।

9- अफारा हो तो ग्लूकोज दें।

10-रोगी को किसी भी कड़ी वस्तु का पथ्य न दें।

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🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉 🌹बल व भूखवर्धक एवं स्वास्थ्य-संरक्षक फल – बेल

🌹बेल आँव, मरोड़, संग्रहणी आदि पेट के रोग तथा उलटी, बवासीर, मधुमेह, वातरोग, पीलिया, सूजन, कान के रोग, बुखार आदि में लाभदायी है | यह कमजोर पाचनशक्ति व पेट की खराबी से बार-बार होनेवाले दस्त, खुनी बवासीर एवं आँतों के घाव को दूर कर आँतों की कार्यशक्ति बढ़ाता है | पके बेल की अपेक्षा कच्चा बेल विशेष गुणकारी होता है |

🌹कच्चे बेल के गुदे से बनाये गये ‘बेल चूर्ण’ का सेवन कर बेल से होनेवाले स्वास्थ्य-लाभ प्राप्त कर सकते हैं |

🌹बेल चूर्ण की सेवन-विधि : २ से ५ ग्राम चूर्ण आधा या १ गिलास पानी में मिला के दिन में १ या २ बार ले सकते हैं |

🌹बेल-पत्र के लाभ :

🌹बेल के पत्ते ह्रदय के लिए हितकर, वायुशामक तथा सूजन, बुखार, कफ व शरीर की दुर्गंध को दूर करते हैं | ये रक्तस्राव को रोकने तथा पेशाब की शर्करा व गर्भाशय की सूजन कम करने में लाभदायी हैं |

🌹बेल-पत्तों से जो गंध निकलती है वह अजीर्ण को, मंदाग्नि को ठीक करती है | बेल-पत्ते छाया में सुखा दिये व कूट के उनका चूर्ण बना दिया | ५० ग्राम यह चूर्ण तथा ५०-५० ग्राम धनिया व सौंफ का चूर्ण – सबको मिला के रख दिया | रात को ५ – ७ ग्राम चूर्ण भिगा दिया, सुबह जरा हिला के पी लिया | आँखें जलती हों, नींद नहीं आती हो, मधुमेह हो तो ये तकलीफें ठीक हो जायेंगी |

🌹लड़का –लडकी ठिंगने हैं तो उन्हें रोज पिलाओ, कद्दावर हो जायेंगे | अथवा बच्चे प्रतिदिन ६ बेल-पत्र और १-२ काली मिर्च चबाकर खायें तो कद बढ़ेगा |

🌹ध्यान दें : १] बेल के पके फल भारी तथा दोषकारक होते हैं, इनका अधिक मात्रा में तथा बवासीर में अधिक उपयोग नहीं करना चाहिए |

🌹२] पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है |

🌹३] चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति और सोमवार को तथा दोपहर के बाद बिल्वपत्र न तोड़ें | बिल्वपत्र छ: मास तक बासी नहीं माने जाते |

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🌹तिल्ली (प्लीहा) बढ़ने के लक्षण, कारण और घरेलू नुस्खे

🌻 जब कोई व्यक्ति सरसों के साग, उड़द, कुल्थी और भैंस के दूध से बनी दही और खट्टी चीजों का सेवन करता है तो कफ और रक्त दूषित हो जाता है जिससे प्लीहा अपने स्वभाविक आकार से बढ़ जाता है।

🌻जब कोई व्यक्ति आवश्यकता से अधिक चिकने पदार्थों का सेवन करते हैं तो हो सकता है कि आपकी तिल्ली बढ़ जाए।

🌹तिल्ली बढ़ने के लक्षण :

🌻1. पेट दर्द होना : जब किसी व्यक्ति को तिल्ली के बढने की समस्या हो जाती है तो व्यक्ति को पेट में दर्द की समस्या हो सकती है।

🌻2. खून की कमी होना : प्लीहा की शिकायत होने पर आपके शरीर में खून की कमी ज्यादा हो जाती है जिसकी वजह से चक्कर जैसी समस्या हो जाती है।

🌻3. थकान होना : जब किसी को प्लीहा हो जाता है तो उसे किसी भी छोटे से काम में बहुत थकान महसूस होती है।

🌻4. बार-बार संक्रमण होना :प्लीहा की समस्या होने पर व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली पर बहुत प्रभाव पड़ता है जिसकी वजह से वह बार-बार संक्रमण से ग्रस्त हो जाता है।

🌻5. आसानी से रक्तस्त्राव होना :जब किसी व्यक्ति को तिल्ली बढने की समस्या हो जाती है तो उसे आसानी से रक्तस्त्राव होता है।

🌻6. शरीर का रंग बदलना :तिल्ली बढने पर व्यक्ति के शरीर में खून की कमी हो जाती है जिसकी वजह से उसके शरीर का रंग बदल जाता है।

🌻7. जलन होना : जब व्यक्ति को प्लीहा की समस्या होती है तो उसकी छाती में जलन भी हो सकती है।

🌹प्लीहा या तिल्ली (Spleen )बढ़ने का इलाज

🌻1. थोडा सा आम का रस लें और उसमें शहद मिला लें और प्रतिदिन तीन सप्ताह तक पीने से तिल्ली की सूजन और घाव ठीक हो जाते हैं। इस दवाई का सेवन करते समय एक बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि इसके सेवन में खटाई का सेवन नहीं करना चाहिए।

🌻2. अजवाइन के चूर्ण में आधा ग्राम सेंधा नमक मिलाकर चूर्ण बना लें और इसका भोजन करने के बाद गर्म पानी से कुछ दिन तक सेवन करें इससे आपकी तिल्ली का आकार कम हो जाएगा।

🌻3. गिलोय के दो चम्मच रस में थोड़ी सी छोटी पीपल का चूर्ण मिला लें। अब इसमें एक या दो चम्मच शहद मिला लें और इसे चाटें। इस मिश्रण को चाटने से तिल्ली का विकार दूर हो जाता है।

🌻4. दो अंजीर को जामुन के सिरके में डुबोकर प्रतिदिन सुबह के समय खाएं इससे आपकी तिल्ली की समस्या ठीक हो जाएगी।

🌻5.गुड और बड़ी हरड के छिलके ले लें और कूट-पीसकर गोलियां बना लें।(हरड़ रसायन) अब इन गोलियों को दिन में दो बार हलकर गर्म पानी से एक महीने तक सेवन करें इससे आपकी बढ़ी हुई तिल्ली ठीक हो जाएगी।

🌹प्लीहा में क्या खाएं

🌻अगर किसी व्यक्ति को प्लीहा की समस्या है तो उसे फालसे, खजूर, बथुआ, छोटी मूली, सहजना, दाख, बकरी का दूध, लाल चावल, पुराने चावल, गाय का दूध, हींग, हरड, परवल, गोमूत्र, बैंगन, केले के फूल, सेंधा नमक, पक्षियों का मांस, शोरबा, नींबू, आम, पपीता, गाजर, अजवाइन, गिलोय, अंजीर, त्रिफला, राई, भांगरे, करेला, बैंगन, सहजन की जड़, कुटकी, अदरक, गुरूच, मदार, जलमाला, धाय, सप्तपर्ण, शरपुंखा, ग्वारपाठा, अलसी, लहसुन, सुहागा, अपराजिता, एरंड, खिचड़ी दलिया, साबूदाना, सेब, अनार, अमरुद, आंवला, नारियल, मौसमी, लौकी, धनिया, ब्रोकली, अखरोट, सूरजमुखी के बीज, पालक, चुकंदर आदि का सेवन करना चाहिए।

🌹प्लीहा में क्या न खाएं

🌻जिन लोगों को प्लीहा की समस्या है उन्हें मछली, सूखा साग, सूखा मांस, मैथुन, हल्दी, शराब, चावल, पास्ता, चाय, मैगी, चौमीन, कॉफी, डबलरोटी, बर्गर, जंक फूड, मैदा, सोडा, कोला, एनर्जी ड्रिंक, प्रोसेस्ड फूड आदि से दूर ही रहना चाहिए।

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🌹बवासीर के घरेलु उपचार

🌻15 ग्राम काले तिल पिसकर, 10-15 ग्राम मख्खन के साथ मिलाकर सुबह सुबह खा लो । कैसा भी बवासीर हो मिट जाता है

🌻नारियल की जटा लीजिए। उसे माचिस से जला दीजिए। जलकर भस्म बन जाएगी। इस भस्म को शीशी में भर कर ऱख लीजिए। कप डेढ़ कप छाछ या दही के साथ नारियल की जटा से बनी भस्म तीन ग्राम खाली पेट दिन में तीन बार सिर्फ एक ही दिन लेनी है। ध्यान रहे दही या छाछ ताजी हो खट्टी न हो। कैसी और कितनी ही पुरानी पाइल्स की बीमारी क्यों न हो, एक दिन में ही ठीक हो जाती है।

🌻बड़ी इलायची को पचास ग्राम की मात्रा में तवे पर भून लें। और जब यह ठंडी हो जाए तब इसे कूट कर इसका चूर्ण बना लें। रोज सुबह पानी के साथ इस चूर्ण का सेवन करें। इस घरेलू उपचार से आपको बवासीर से राहत मिलेगी।

🌻करीब दो लीटर ताजी छाछ लेकर उसमें 50 ग्राम जीरा पीसकर एवं थोड़ा-सा नमक मिला दें। जब भी पानी पीने की प्यास लगे तब पानी की जगह पर यह छाछ पी लें। पूरे दिन पानी के बदले में यह छाछ ही पियें। चार दिन तक यह प्रयोग करें। मस्से ठीक हो जायेंगे। चार दिन के बदले सात दिन प्रयोग जारी रखें तो अच्छा है।

🌻छाछ में सोंठ का चूर्ण, सेंधा नमक, पिसा जीरा व जरा-सी हींग डालकर सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।

🌻नीम का तेल मस्सों पर लगाने से एवं 4-5 बूँद रोज पीने से लाभ होता है।

🔹विशेष :- ” अच्युताय हरिओम हिंगादी चूर्ण “ सभी प्रकार की बवासीर मे चमत्कारिक लाभ पहुचाता हैं .

🌹बवासीर में क्या खाये :

1.करेले का रस, लस्सी, पानी।

  1. दलिया, दही चावल, मूंग दाल की खिचड़ी, देशी घी।

3.खाना खाने के बाद अमरुद खाना भी फायदेमंद है।

  1. फलों में केला, कच्चा नारियल, आंवला, अंजीर, अनार, पपीता खाये।
  2. सब्जियों में पालक, गाजर, चुकंदर, टमाटर, तुरई, जिमीकंद, मूली खाये।

🌹बवासीर में परहेज क्या करे:

  1. तेज मिर्च मसालेदार चटपटे खाने से परहेज करे।
  2. मांस मछली, उडद की दाल, बासी खाना, खटाई ना खाएं।
  3. डिब्बा बंद भोजन, आलू, बैंगन,
    शराब, तम्बाकू, जादा चाय और कॉफ़ी के सेवन से भी बचे।
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: 🌹मधुमक्खी /दतैया काटने के घरेलु आयुर्वेदिक उपचार :

🌹१. तुलसी : तुलसी के पत्तों को नमक के साथ पिस कर डंक लगे स्थान पर मलना चाहिये |जहर तुरंत उतर जायेगा।

🌹२.मिटटी का तेल : ततैया के काटने के बाद आप मिटटी के तेल का उपयोग भी कर सकते हैं| मिटटी के तेल का प्रयोग करने से ततैया के काटने के बाद जिस स्थान पर ततैया ने काटा हैं उस स्थान की सूजन खत्म हो जाती हैं. मिटटी के तेल को लगाने से सूजन के साथ – साथ तथा जलन भी दूर हो जाती हैं| मिटटी के तेल को ततैया के काटने के तुरंत बाद जिस भाग पर ततैया ने काटा हैं उस भाग पर लगा लेना चाहिए| जल्दी ही घाव में आराम हो जायेगा |

🌹३.नींबू : ततैया के काटने पर उस स्‍थान पर नींबू का रस लगाएं। सूजन और दर्द चला जाएगा।

🌹४.सोडा : मधुमक्‍खी के डंक पर सोडा और सेंधा नमक को चटनी बनाकर लेप करने से दर्द दूर हो जाता है।

🌹५.आक: जिस जगह पर ततैया ने काटा है वहां पर आक के पत्ते का दूध मलने से आराम मिलता है।

🌹६. लोहे : ततैया के काटने के तुरंत बाद जिस जगह पर डंक लगा है वहां पर लोहे की कोई भी चीज हो उसे रगड़ दें और उसके ऊपर से गीले चूने का रस लगा देंगे तो जहर उतर जायेगा।

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[🌹स्वास्थ्य टिप्स – पेट के रोगों में लाभदायी व बल – वीर्यवर्धक मिश्रण

🌹घी में भुनी हुई छोटी हरड का चूर्ण १०० ग्राम, घी में भुनी ५० ग्राम सौंफ व ५० ग्राम कच्ची सौंफ लेकर सभीको मिला लें | अब इसमें ४०० ग्राम बूरा व २०० ग्राम शुद्ध घी मिलायें | इस मिश्रण को काँच के बर्तन में भर लें |

🌹२ – २ चम्मच चूर्ण सुबह – शाम गर्म दूध के साथ लें | २ घंटे पूर्व व बाद तक कुछ न खायें | इसे १५ दिन तक लेने से पेट की शुद्धि होती है | पुराने कब्ज में भी लाभ होता है | आँतों को बल मिलता है, जिससे भोजन का सम्यक पाचन होने में मदद मिलती है | यह बल, वीर्य व नेत्रज्योति वर्धक तथा ह्रदय को बल देनेवाला है |

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[ छटाई रिश्तों की

 लड़का और लड़की की शादी तो हो चुकी थी परंतु दोनों में बन नहीं रही थी। पंडित ने कुंडली के 36 गुण मिला कर शादी का नारियल फुड़वाया था, पर शादी के साल भर बाद ही चिकचिक शुरू हो गई थी।
 पत्नी अपने ससुराल वालों के उन अवगुणों का भी पोस्टमार्टम कर लेती जिन्हें कोई और देख ही नहीं पाता था। लगता था कि अब तलाक हुआ कि हुआ। पूरा घर तबाह होता नज़र आ रहा था। 

सबने कोशिश कर ली कि किसी तरह यह रिश्ता बच जाए। दो परिवार तबाही के दंश से बच जाएं,परंतु सारी कोशिशें व्यर्थ थीं। जो भी घर आता, पत्नी अपने पति की ढेरों खामियां गिनाती और कहती कि उसके साथ रहना असम्भव है। वो कहती कि इसके साथ तो एक मिनट भी नहीं रहा जा सकता। दो बच्चे हो चुके हैं और बच्चों की खातिर किसी तरह ज़िंदगी कट रही है।
उनके कटु रिश्तों की यह कहानी पूरे मुहल्ले में चर्चा का विषय बनी हुई थी। ऐसे में एक दिन एक आदमी सब्जी बेचता हुआ उनके घर आ पहुंचा। उस दिन घर में सब्जी नहीं थी।
ऐ सब्जी वाले, तुम्हारे पास क्या-क्या सब्जियां हैं?
बहन, मेरे पास आलू, बैंगन, टमाटर, भिंडी और गोभी है।
जरा दिखाओ तो सब्जियां कैसी हैं?
सब्जी वाले ने सब्जी की टोकरी नीचे रखी। महिला टमाटर देखने लगी। सब्जी वाले ने कहा, बहन आप टमाटर मत लो। इस टोकरी में जो टमाटर हैं, उनमें दो चार खराब हो चुके हैं। आप आलू ले लो।
अरे, चाहिए टमाटर तो आलू क्यों ले लूं? तुम टमाटर इधर लाओ, मैं उनमें से जो ठीक हैं उन्हें छांट लूंगी।
सब्जी वाले ने टमाटर आगे कर दिए। महिला खराब टमाटरों को किनारे करने लगी और अच्छे टमाटर उठाने लगी। दो किलो टमाटर हो गया। फिर उसने भिंडी उठाई। सब्जी वाला फिर बोला, बहन भिंडी भी आपके काम की नहीं। इसमें भी कुछ भिंडी खराब हैं। आप आलू ले लीजिए। वो ठीक हैं।
बड़े कमाल के सब्जी वाले हो तुम। तुम बार-बार कह रहे हो आलू ले लो, आलू ले लो। भिंडी, टमाटर किसके लिए हैं? मेरे लिए नहीं है क्या?
मैं सारी सब्जियां बेचता हूं। पर बहन, आपको टमाटर और भिंडी ही चाहिए। मुझे पता है कि मेरी टोकरी में कुछ टमाटर और कुछ भिंडी खराब हैं, इसीलिए मैंने आपको मना किया और कोई बात नहीं।
पर मैं तो अपने हिसाब से अच्छे टमाटर और भिंडियां छांट सकती हूं। जो ख़राब हैं, उन्हें छोड़ दूंगी। मुझे अच्छी सब्जियों की पहचान है।
बहुत खूब बहन। आप अच्छे टमाटर चुनना जानती हैं। अच्छी भिंडियां चुनना भी जानती हैं। आपने ख़राब टमाटरों को किनारे कर दिया। ख़राब भिंडियां भी छांट कर हटा दीं परंतु आप अपने रिश्तों में एक अच्छाई नहीं ढूंढ पा रहीं। आपको उनमें सिर्फ बुराइयां ही बुराइयां नज़र आती हैं। बहन जैसे आपने टमाटर छांट लिए, भिंडी छांट ली, वैसे ही रिश्तों से अच्छाई को छांटना सीखिए। जैसे मेरी टोकरी में कुछ टमाटर ख़राब थे, कुछ भिंडी खराब थीं पर आपने अपने काम लायक छांट लिए वैसे ही हर आदमी में कुछ न कुछ अच्छाई होती है। उन्हें छांटना आता, तो आज मुहल्ले भर में आपके ख़राब रिश्तों की चर्चा न चल रही होती।”
सब्जी वाला तो चला गया.. पर उस दिन महिला ने रिश्तों को परखने की विद्या सीख ली थी। उस शाम घर में बहुत अच्छी सब्जी बनी। सबने खाई और कहा, बहू हो तो ऐसी हो।
रिश्तों को बनाने और बिगाडने के ज़िम्मेदार हम खुद हैं इसीलिए रिश्तो को समझो…..!

सब को मेरी राम राम …💐💐🙏🙏
[ मुझे कहाँ मालूम था कि …
सुख और उम्र की आपस में बनती नहीं…
कड़ी महेनत के बाद सुख को घर ले आया..
तो उम्र नाराज होकर चली गई….

आज दिल कर रहा था, बच्चों की तरह रूठ ही जाऊँ,पर,
फिर सोचा, उम्र का तकाज़ा है, मनायेगा कौन।।

एक “उम्र” के बाद “उस उम्र” की बातें “उम्र भर” याद आती हैं..
पर “वह उम्र” फिर “उम्र भर” नहीं आती..ll*

“छोटे थे।” हर बात ‘भुल’ जाया करते थे।
दुनिया कहती थी कि,
“याद” रखना सीखो..

“बड़े हुए” अब हर बात ‘याद’ रहती हैं। तो दुनिया कहती है कि,
“भूलना” सीखो….!!
[ अभी बहुत दूर की बात नहीं जब कोई झूठ बोलता था, जब कोई धोखा देता था, जब कोई छ्ल कपट करता था, जब कोई रिश्वत मांगता था, जब कोई मिलावट करता था, जब कोई विश्वासघात करता था, जब कोई कसम खाता था, तो स्वभाविक रूप से प्रायः मुंह से निकल जाता था कि ‘” अरे भाई, कुछ तो भगवान से डरो !”
लेकिन महा आश्चर्य ! आज तथाकथित एक शिक्षित-अशिक्षित, पढ़ा-लिखा, अनपढ़, विद्वान-मूर्ख, मुल्ला-मौलवी, पंडा-पुजारी, नेता-मंत्री, अधिकारी- चपरासी, मालिक-नोकर, भक्त, पाठी-नमाज़ी, चाहे और कोई भी हो, परमात्मा को मानते, मंदिरों-मस्जिदों में पूजा पाठ व उठक बैठक करते हुए भी उस सर्व शक्तिमान, सर्व व्यापक, सर्व अन्तर्यामी, न्यायकारी का किसी को किंचित मात्र भी भय नहींवत रहा ! वर्तमान स्थिति में तो कभी लगता है कि इस काले माथे के मनुष्य ने भगवान को तो जाने, किसी भी प्रकार के डर और शर्म के सिवाय, भगवान, खुदा अथवा गॉड को ही अपने जेब में रख दिया है और बिंदास हो उलटे सीधे कार्यों में अपने आप को लिप्त कर बैठा है ! क्या हालात हो गए हैं मेरे भगवन ! मनुष्य परमात्मा के बनाए हुए इन संसारी मनुष्यों से तो यह डरता है, घबराता है, छिपता फिरता है और दुनिया भर के कुकर्म, पाप, अत्याचार, अनीति, भ्रष्टाचार के खुले आम कृत्य करते हुए भी अपने आप को धार्मिक व नमाजी कहता है ! मंदिरों मस्जिदों को तो छोड़ो, यहां तक कि रास्तों पर बैठ कर संविधान की धज्जियां उड़ाते, नॉटंकी, राजनीति करते परमात्मा का ही नाम लेते परमात्मा का किसी को कोई भय अथवा शर्म हयाय नहीं !
क्या कर रहे हैं हम, किधर जा रहे हैं हम ? जिस मालिक की संतान हो उसके भी तो कुछ नियम हैं, उसके भी कुछ आदेश हैं, उसका भी एक संविधान है, भगवान के बनाए गये प्राणियों के प्रति भी तो कोई हमारी नैतिक जिम्मेदारी है ! उसकी तो ज़रा लाज रखो ! याद रखो ! जब तक मनुष्य परमात्मा के पाप फल के भय को ह्रदयंगम नहीं करेगा तब तक किसी प्रकार का सुधार सम्भव नहीं, कभी नहीं, किसी का भी नहीं ! चाहे कोई कितना ही धर्म, पंथ, मत, सम्प्रदाय, मज़हब का आकर्षक चोला अथवा लिबास धारण कर ले, चाहे कैसी भी कारीगरी अथवा चालाकी कर ले !
: सिय राम मय सब जग जानी!

तुलसीदास जी जब “रामचरितमानस” लिख रहे थे, तो उन्होंने एक चौपाई लिखी:

सिय राम मय सब जग जानी,
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ।।

अर्थात
पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए।

चौपाई लिखने के बाद तुलसीदास जी विश्राम करने अपने घर की ओर चल दिए। रास्ते में जाते हुए उन्हें एक लड़का मिला और बोला

अरे महात्मा जी, इस रास्ते से मत जाइये आगे एक बैल गुस्से में लोगों को मारता हुआ घूम रहा है। और आपने तो लाल वस्त्र भी पहन रखे हैं तो आप इस रास्ते से बिल्कुल मत जाइये।

तुलसीदास जी ने सोचा – ये कल का बालक मुझे चला रहा है। मुझे पता है – सबमें राम का वास है। मैं उस बैल के हाथ जोड़ लूँगा और शान्ति से चला जाऊंगा।

लेकिन तुलसीदास जी जैसे ही आगे बढे तभी बिगड़े बैल ने उन्हें जोरदार टक्कर मारी और वो बुरी तरह गिर पड़े।

अब तुलसीदास जी घर जाने की बजाय सीधे उस जगह पहुंचे जहाँ वो रामचरित मानस लिख रहे थे। और उस चौपाई को फाड़ने लगे, तभी वहां हनुमान जी प्रकट हुए और बोले -श्रीमान ये आप क्या कर रहे हैं?

तुलसीदास जी उस समय बहुत गुस्से में थे, वो बोले-ये चौपाई बिल्कुल गलत है। ऐसा कहते हुए उन्होंने हनुमान जी को सारी बात बताई।

हनुमान जी मुस्कुराकर तुलसीदास जी से बोले-श्रीमान, ये चौपाई तो शत प्रतिशत सही है। आपने उस बैल में तो श्री राम को देखा लेकिन उस बच्चे में राम को नहीं देखा जो आपको बचाने आये थे। भगवान तो बालक के रूप में आपके पास पहले ही आये थे लेकिन आपने देखा ही नहीं।

ऐसा सुनते ही तुलसीदास जी ने हनुमान जी को गले से लगा लिया।

दोस्तों हम भी अपने जीवन में कई बार छोटी छोटी चीज़ों पर ध्यान नहीं देते और बाद में बड़ी समस्या का शिकार हो जाते हैं। ये किसी एक इंसान की परेशानी नहीं है बल्कि ऐसा हर इंसान के साथ होता है। कई बार छोटी छोटी बातें हमें बड़ी समस्या का संकेत देती हैं आप उन पर विचार करिये फिर आगे बढ़िए।

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