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आयुर्वेदिक उपचार
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गाजर 🥕🥕

गाजर प्रकृति की बहुत ही कीमती देन है जो शक्ति का भण्डार है। गाजर फल भी है और सब्जी भी तथा इसकी पैदावार पूरे भारतवर्ष में की जाती है। मूली की तरह गाजर भी जमीन के अन्दर पैदा होती है।
गाजर के सेवन से शरीर मुलायम और सुन्दर बना रहता है तथा शरीर में शक्ति का संचार होता है और वजन भी बढ़ता है। बच्चों को गाजर का रस पिलाने से उनके दांत आसानी से निकलते हैं और दूध भी ठीक से पच जाता है। बवासीर, क्षयरोग पित्त आदि में गाजर का सेवन करना बहुत ही उपयोगी है। गाजर का रस दिमाग के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। गाजर के सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है तथा शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है। इसके उपयोग से गुदा की जलन भी दूर हो जाती है।

विभिन्न में रोग मे गाजर का उपयोग :

. बांझपन: बांझ स्त्री को गाजर के बीजों की धूनी इस प्रकार दें कि उसका धुंआ रोगिणी की बच्चेदानी तक चला जाए। जलते हुए कोयले पर गाजर के बीज डालें। इससे धुंआ होने लगेगा। इसी धूनी को रोगिणी को दें तथा रोजाना उसे गाजर का रस पिलायें।
. गर्भावस्था: गर्भावस्था में गाजर का रस पीते रहने से सैप्टिक रोग नहीं होता तथा शरीर में कैल्शियम की भी कमी नहीं रहती है। बच्चों को दूध पिलाने वाली माताओं को नियमित रूप से गाजर के रस का सेवन करना चाहिए। इससे उसके दूध की गुणवत्ता बढ़ती है।

. दस्त:
गाजर का सेवन करने से पुराने दस्त, अपच और संग्रहणी रोग ठीक हो जाते हैं। गाजर का अचार बनाकर सेवन करने से बढ़ी हुई तिल्ली कम हो जाती है।
आधे कप गाजर के रस में थोड़ी-सा सेंधा नमक मिलाकर 1 दिन में लगभग 4 बार चाटने से दस्त ठीक हो जाता है।

. यकृत रोग: यकृत के रोग से पीड़ित रोगी को गाजर का रस, गाजर का सूप या गाजर का गर्म काढ़ा सेवन कराने से लाभ मिलता है।

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