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[दैनिक जीवन की समस्याएं और इनका समाधन
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कुंडली में कुछ लक्षण ऐसे होते हैं जिनका सीधा सम्बन्ध किसी ख़ास योग या ग्रह से होता है, जैसे कि अगर आपको अचानक धन हानि होने लगे ! आपके पैसे खो जाएँ, बरकत न रहे, दमा या सांस की बीमारी हो जाए, त्वचा सम्बन्धी रोग उत्पन्न हों, कर्ज उतर न पाए, किसी कागजात पर गलत दस्तखत से नुक्सान हो तो आप पर बुध ग्रह का कुप्रभाव चल रहा है ! इसके लिए बुधवार को किन्नरों को हरे वस्त्र दान करें और गाय को हरा चारा इसी दिन खिलाएं !

👉 अगर बुजुर्ग लोग आपसे बार बार नाराज होते हैं, जोड़ों मैं तकलीफ है, शरीर मैं जकरण या आपका मोटापा बढ़ रहा है, नींद कम है, पढने लिखने में परेशानी है किसी ब्रह्मण से वाद विवाद हो जाए अथवा पीलिया हो जाए तो समझ लेना चाहिए की गुरु का अशुभ प्रभाव आप पर पढ़ रहा है ! अगर सोना गम हो जाए पीलिया हो जाए या पुत्र पर संकट आ जाए तो निस्संदेह आप पर गुरु का अशुभ प्रभाव चल रहा है ! ऐसी स्थिति में केसर का तिलक वीरवार से शुरू करके 27 दिन तक रोज लगायें, सामान्य अशुभता दूर हो जाएगी किन्तु गंभीर परिस्थितियों में जैसे अगर नौकरी चली जाए या पुत्र पर संकट, सोना चोरी या गम हो जाए तो बृहस्पति के बीज मन्त्रों का जाप करें या करवाएं ! तुरंत मदद मिलेगी ! मंत्र का प्रभाव तुरंत शुरू हो जाता है !

👉 अगर आपको वहम हो जाए, जरा जरा सी बात पर मन घबरा जाए, आत्मविश्वास मैं कमी आ जाए, सभी मित्रों पर से विशवास उठ जाए, ब्लड प्रेशर की बीमारी हो जाए, जुकाम ठीक न हो या बार बार होने लगे, आपकी माता की तबियत खराब रहने लगे ! अकारण ही भय सताने लगे और किसी एक जगह पर आप टिक कर ना बैठ सकें, छोटी छोटी बात पर आपको क्रोध आने लगे तो समझ लें की आपका चन्द्रमा आपके विपरीत चल रहा है ! इसके लिए हर सोमवार का व्रत रखें और दूध या खीर का दान करें !

👉 अगर आपकी स्त्रियों से नहीं बनती, किसी स्त्री से धोखा या मान हानि हो जाए, किसी शुभ काम को करते वक्त कुछ न कुछ अशुभ होने लगे, आपका रूप पहले जैसा सुन्दर न रहे ! लोग आपसे कतराने लगें ! वाहन को नुक्सान हो जाए ! नीच स्त्रियों से दोस्ती, ससुराल पक्ष से अलगाव तथा शूगर हो जाए तो आपका शुक्र बुरा प्रभाव दे रहा है ! उपाय के लिए महालक्ष्मी की पूजा करें, चीनी, चावल तथा चांदी शुक्रवार को किसी ब्राह्मण की पत्नी को भेंट करें, बड़ी बहन को वस्त्र दें, 21 ग्राम का चांदी का बिना जोड़ का कड़ा शुक्रवार को धारण करें ! अगर किसी के विवाह में देरी या बाधाएं आ रही हों तो जिस दिन रिश्ता देखने जाना हो उस दिन जलेबी को किसी नदी मैं प्रवाहित करके जाएँ ! इन में से किसी भी उपाय को करने से आपका शुक्र शुभ प्रभाव देने लगेगा ! किसी सुहागन को सुहाग का सामन देने से भी शुक्र का शुभ प्रभाव होने लगता है ! ध्यान रहे, शुक्रवार को राहुकाल में कोई भी उपाय न करें !

👉 अगर आपके मकान मैं दरार आ जाए ! घर में प्रकाश की मात्रा कम हो जाए ! जोड़ों में दर्द रहने लगे विशेषकर घुटनों और पैरों में या किसी एक टांग पर चोट, रंग काला हो जाए, जेल जाने का डर सताने लगे, सपनों मैं मुर्दे या शमशान घात दिखाई दे, अंकों मैं मोतिया उतर आये, गठिया की शिकायत हो जाए, परिवार का कोई वरिष्ठ सदस्य गंभीर रूप से बीमार या मृत्यु को प्राप्त हो जाए तो आप पर शनि का कुप्रभाव है जिसके निवारण के लिए शनिवार को सरसों का तेल लोहे के कटोरे में डाल कर अपना मुह उसमे देख कर किसी काले वर्ण वाले ब्राह्मण को दान में दें ! ऐसा हर शनिवार करें ! बीमारी की अवस्था में किसी गरीब, बीमार व्यक्ति को दवाई दिलवाएं !

👉 अगर आपके बाल झड जाएँ और आपकी हड्डियों के जोड़ों मैं कड़क कड़क की आवाज आने लगे, पिता से झगडा हो जाए, मुकदमा या कोर्ट केस मैं फंस जाएँ, आपकी आत्मा दुखी हो जाए, आलसी प्रवृत्ति हो जाये तो आपको समझ लेना चाहिए की सूर्य का अशुभ प्रभाव आप पर हो रहा है ! ऐसी दशा मैं सबसे अच्छा उपाय है की हर सुबह लाल सूर्य को मीठा डालकर अर्ध्य दें ! इनकम टैक्स का भुगतान कर दें व् पिता से सम्बन्ध सुधरने की कोशिश करें !

👉 आपको खून की कमी हो जाए, बार बार दुर्घटना होने लगे या चोट लगने लगे, सर मैं चोट, आग से जलना, नौकरी मैं शत्रु पैदा हो जाएँ या ये पता न चल सके की कौन आपका नुक्सान करने की चेष्टा कर रहा है, व्यर्थ का लड़ाई झगडा हो, पुलिस केस, जीवन साथी के प्रति अलगाव नफरत या शक पैदा हो जाए, आपरेशन की नौबत आ जाए, कर्ज ऐसा लगने लगे की आसानी से ख़त्म नहीं होगा तो आप पर मंगल ग्रह क्रुद्ध हैं ! हनुमान जी की यथासंभव उपासना शुरू कर दें ! हनुमान जी के छार्नों मैं से तिलक लेकर माथे पर प्रतिदिन लगायें, अति गंभीर परिस्थितियों मैं रक्त दान करें तो जो रक्त आपका आपरेशन, चोट या दुर्घटना आदि के कारण निकलना है, नहीं होगा।
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[ज्योतिष और नेत्ररोग

जब भी किसी जातक के जन्मपत्र में दूसरे और बारहवें भाव में शुक्र का वर्ग हो या स्वयं शुक्र निर्बल बैठा हो अथवा शुक्र सूर्य के साथ किसी भी भाव में बैठा हो तो आंखों से संबंधित रोग होते हैं| ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आंखों की बीमारी का सीधा संबंध ग्रहों से होता है। जब हमारे ग्रह सही दिशा में नहीं चल रहे होते हैं और ग्रहों की स्थिति ठीक नहीं होती है तो ऐसे में हमारी आंखों में बीमारी होने की संभावना अधिक होती है।
ज्योतिष शास्त्र को वेदों का नेत्र कहा जाता है। अर्थात जो कार्य नेत्रों का होता है वही कार्य ज्योतिष विज्ञान का भी है । ज्योतिषाचार्य के अनुसार ज्योतिष में सूर्य और चंद्र को नेत्र कहा गया है। सूर्य दाहिनी आंख और चंद्र बायीं आंख हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य हो और बारहवें भाव में चंद्र हो तो गंभीर नेत्र रोग होता है। यहां तक कि व्यक्ति की आंख की रोशनी जा सकती है। सूर्य पित्त ग्रह है। आयुर्वेद में नेत्र रोगों का कारण पित्त को माना गया है। भृगु संहिता के अनुसार जन्मांग चक्र में सूर्य प्रथम भाव में हो तो व्यक्ति नेत्र रोगी होता है। इस घर में सूर्य नीच का होना भी गंभीर नेत्र रोगों का कारण बनता है। सूर्य का दूसरे भाव में उपस्थित होना भी गंभीर नेत्र रोग को दर्शाता है। सूर्य के साथ यदि इस भाव में मंगल हो तो व्यक्ति पूरी तरह ब्लाइंड हो सकता है। हम इस विशिष्ट ज्ञान से आने वाले कल में झांक सकते हैं। यहां तक कि गर्भस्थ शिशु जन्म के उपरांत कैसा होगा यह भी ज्ञात किया जा सकता है ।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार जन्म कुंडली में द्वितीय भाव से दाहिनी आंख और द्वादश भाव से बायीं आंख के रोगों का विचार किया जाता है, लेकिन मुख्यतः दोनों आंखों के रोगों का विचार द्वितीय भाव से ही किया जाता है। इसलिए द्वितीय भाव में मौजूद राशि और ग्रहों के आधार पर नेत्र रोगों का पता लगाया जाता है।

इसके साथ ही अगर मंगल सूर्य की युति अथवा दृष्टि, सूर्य नीचोंन्मुख होकर शनि से युत अथवा चंद्रमा या मंगल से दृष्ट हो तो नेत्र ज्योति क्षीण होती है। इसके साथ इन दशाओं में शारीरिक लापरवाही मोतियाबिंद अथवा रतौंधी संबंधी बीमारी का कारण बनता है। जिसमें चंद्रमा के होने से रतौंधी तथा शुक्र के होने से मोतियाबिंद होने का कारण होता है।

जिस मनुष्य के जन्म में षष्ठेश मंगल लग्र या षष्ठेश मेष या वृश्चिक को हो अथवा मंगल के साथ चंद्रमा या सूर्य बारहवें स्थान में हो या शनि 5, 7, 8, 9 स्थान में सिंह राशि का हो अथवा पापी ग्रहों के साथ नीच का हो जायें अथवा राहु से पापाक्रांत हो तो आंखों से पानी आना अथवा फुंसी होना जैसी बीमारी होती है। यदि सूर्य शनि की युति द्वितीय अथवा बारहवें स्थान में अथवा द्वितीयेश अथवा द्वादशेश होकर 6, 8, 12 स्थान में हो जाये तो आखों से पानी निकलता तथा रोशनी मंद होना संबंधित बीमारी होती है। यदि कुंडली में ये ग्रह छठे भाव के स्वामी के साथ संबंध बनायें और उनकी दशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा आये है तो उसी समय, उस दशानाथ से संबंधित बीमारी जन्म लेती है ।

यह एक शोध का विषय है कि समान डिग्री रखने वाले डॉक्टर की दवा समान रूप से लाभ क्यों नहीं देती ? एम बी बी एस, एम एस, एम डी, आदि सभी डिग्री सभी डॉक्टर्स के पास होतीं हैं । परंतु औषधि किसी की ही लिखी हुई लाभ देती है । आख़िर क्यों ? कारण ज्योतिष विज्ञान के पास है ।

कुंडली में चतुर्थ भाव के स्वामी की दिशा में उपस्थित डॉक्टर की दवा तत्काल लाभ देती है। यदि आपकी कुंडली में चतुर्थ का स्वामी सूर्य है तो, पूरब दिशा के किसी भी डॉक्टर को दिखा लें आप, एक खुराक में ही रोग पर असर दिख जायेगा ।

ज्योतिषाचार् के अनुसार ज्योतिष शास्त्र में ‘ सूर्य ‘ नामक ग्रह को दवा का कारक माना गया है। यदि कुंडली में सूर्य मज़बूत है तो इसका मतलब यह हुआ कि आप जल्दी बीमार नही पड़ेंगे। यदि आप का जन्म रविवार को दोपहर के समय में हुआ है तो भी सामान्यतया और तुलनात्मक दृष्टि से आप कम बीमार पड़ेंगे। क्यों कि आप के जीवन में सूर्य बेहद मज़बूत है। यदि आप आहार में नमक का सेवन कम करतें होंगे तो भी आप कम बीमार पड़ेंगे, क्योंकि यदि कुंडली में सूर्य मज़बूत है तो आप नमक कम खायेंगे ।

लग्नेश यदि बुध अर्थात 3-6 मंगल 1-8 की राशी में विराजमान होने से हमारी आंखों में बीमारी होने की जयादा सम्भावना होती है.
अष्टमेश व् लग्नेश जब एक साथ छटे भाव में विराजमान होते हैं तो हमारी बाई आंख में बीमारी हो जाती है.
ज्योतिषाचार्य के अनुसार छठे या आठवें में शुक्र के विराजमान होने से दायीं आंख में बीमारी होने की संभावना रहती है.
दसवें और छठे भावों के स्वामी द्वितीयेश के लग्न में विराजमान होने से व्यक्ति अपनी दृष्टि खो देता है.
ज्योतिषाचार्य के अनुसार मंगल के द्वादश भाव में स्थापित होने से बांयी आंख में चोट लग सकती है और शनि जब द्वितीय भाव में स्थापित हो तो दांये आंख में चोट लगने की जयादा संभावना होती है.
त्रिकोण में पाप ग्रहों में जब सूर्य स्थापित होता है तो व्यक्ति की आंखों में बीमारी हो जाती है और व्यक्ति को कम दिखाई देने लगता है अर्थात व्यक्ति की नजर कमजोर हो जाती है.
यदि सूर्य अथवा चंद्रमा मंगल के साथ पाप अथवा नीच स्थानों पर हो तो नेत्र में जाला बनना, मस्सा, गुहेरी अथवा घाव होने जैसी बीमारी इन दशाओं में होती है। व्ययेश अथवा धनेश होकर शुक्र सूर्य की युति में अथवा षष्ठम, अष्टम अथवा द्वादश स्थान में हो जाये अथवा राहु से दृष्ट हो तो नेत्र ज्योति क्षीण होने की आशंका होती है।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार धनेश-व्ययेश सूर्य शुक्र हो, युति बनाये अथवा दृष्टि हो, मंगल शनि की किसी भी प्रकार की दृष्टि इन ग्रहों पर हो, द्वितीयेश, व्ययेश, इन ग्रहों के छठे, आठवे अथवा बाहरवें स्थान में हो, क्रुर ग्रहों के प्रभाव में हो, तो नेत्र रोग अवश्य होता है। इन ग्रहों की दशाओं अथवा अंतरदशाओं में इन रोगों के होने की संभावना होती है।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार शुक्र की बुध के साथ समीपी 6, 8, 12 स्थानों में हो या त्रिक स्थानों में स्थिति हो तो रतौंधी रोग होता है।
यदि षष्ठेश मंगल लग्र में हो अथवा द्वितीयेश या द्वादशेश सूर्य राहु से पापाक्रांत होकर नीच स्थानों में हों तो आंखों के रोग बचपन में ही हो जाते हैं। कुण्डली के दूसरे अथवा बारहवें दोनों घरों में से जिसमें सूर्य अथवा शुक्र बैठा होता है उस आंख में तकलीफ होने की संभावना अधिक रहती है।
हमारा शुक्र जब छठे या आठवें भाव में उपस्थित होता है तो ऐसे में हमारी दाई आंख में बीमारी हो सकती है.
जिस व्यक्ति के 10वें और छठे भावों के स्वामी द्वितीयेश के साथ लग्न में उपस्थित हों वह व्यक्ति अपने जीवन में कभी भी अपनी आंखों की दृष्टि जरूर खोता है.
मंगल जब द्वादश भाव में उपस्थित होता है तो इससे व्यक्ति की बाई आंख में चोट लग सकती है और शनि जब द्वितीय भाव में उपस्थित हो तो ऐसे में व्यक्ति की दाई आंख में चोट लग सकती है.
ज्योतिषाचार्य के अनुसार पाप ग्रहों से द्रष्ट सूर्य जब त्रिकोण में उपस्थति होता है तो ऐसे में व्यक्ति की आंखों में बीमारी हो जाती है और व्यक्ति को बीमारी के कारण ठीक तरह से दिखाई नहीं देता है.
सूर्य के साथ केतु-दूसरे या 12वें भाव में सूर्य के साथ केतु बैठा हो तो व्यक्ति के मोतियाबिंद का ऑपरेशन होता है। छठे, आठवें या 12वें भाव में चंद्र के साथ मंगल की उपस्थिति भी नेत्र रोगों का कारण बनती है
ज्योतिषाचार्य के अनुसार ज्योतिषशास्त्र के ग्रंथ सारावली में बताया गया है कि जिनकी कुण्डली में सूर्य और चन्द्रमा एक साथ बारहवें घर में होते हैं उन्हें नेत्र रोग होता है। ये दोनों घर मंगल, शनि, राहु एवं केतु के अशुभ प्रभाव में होने पर भी आंखों की रोशनी प्रभावित होती है। इससे स्पष्ट होता है कि सूर्य, शुक्र और चंद्रमा जो कि ज्योतिकारक ग्रह हैं। धनेश और व्ययेश जोकि नेत्रस्थ ज्योति हैं और इसके अतिरिक्त दूसरा, लग्र और बारहवां स्थान नेत्र भाव का स्थान है यदि इन में से किसी का भी संबंध छठवे, आठवे अथवा बारहवें स्थानों से या उनके अधिपतियों से अथवा किसी भी प्रकार से बने अथवा शत्रु, नेष्ट, अस्त, नीच अथवा नीचास्त, पापी क्रूर ग्रहों से संबंध इन में से किसी भी ग्रहों का बनें तो नेत्र से संबंधित कष्ट देता है।

जीवन भर नेत्र रोग से पीड़ित होने का कारण, ज्योतिषाचार्य के अनुसार कमजोर सूर्य यदि छठे या 12वें भाव में हो तो व्यक्ति पूरी उम्र नेत्र रोग से पीड़ित रहता है।अनेक विद्वान मंगल और शनि ग्रह को भी नेत्र रोगों का कारण मानते हैं। उनके अनुसार यदि द्वितीय भाव में मंगल और द्वादश भाव में शनि हो तो व्यक्ति को आंखों के कारण सिरदर्द की समस्या बनी रहती है। ऐसे व्यक्ति को चश्मा लगाना पड़ता है।त्रिक स्थान यानी छठे, आठवें और 12वें भाव में पाप और कमजोर ग्रहों की उपस्थित के कारण व्यक्ति को आंखों का ऑपरेशन करवाने की नौबत आती है।द्वितीय या द्वादश भाव में शनि-मंगल एक साथ आने पर व्यक्ति अंधा होता है। किसी चोट, दुर्घटना की वजह से उसकी आंखों की रोशनी छिन जाती है।द्वितीय या द्वदाश भाव के स्वामी यदि मेष या सिंह राशि में हों तो व्यक्ति बचपन से नेत्र रोगों का शिकार बनता है।

नेत्र रोग मुख्यतः सूर्य के कारण होते हैं। नेत्र रोगों से बचाव के लिए सूर्य की उपासना अत्यंत आवश्यक है। प्रतिदिन सूर्य को जल चढ़ाएं। इस बात का ध्यान रखें कि सूर्य को जल प्रातः सूर्योंदय के समय अर्पित करें और जो जल की धारा आप छोड़ें उसके बीच से सूर्य को देखें। सामाजिक कार्य करें, खासकर ब्लाइंड बच्चों को अपनी मनपसंद वस्तुएं दान करते रहें। आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करने से नेत्र रोगों में आराम मिलता है।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार नेत्र रोग के कई योग ज्योतिषशास्त्र में बताये गये हैं। साथ ही बताया गया है कि मंत्रों एवं ग्रहों के उपायों से नेत्र रोग देने वाले अशुभ योगों के प्रभाव को कम किया जा सकता है। नेत्र रोग मुख्यतः सूर्य के कारण होते हैं। नेत्र रोगों से बचाव के लिए सूर्य की उपासना अत्यंत आवश्यक है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार प्रतिदिन सूर्य को जल चढ़ाएं। इनमें सबसे आसान उपाय है नियमित सूर्योदय के समय उगते सूर्य को तांबे के बर्तन में जल भरकर अर्पित करना। नियमित ऐसा करने से नेत्र रोग होने की संभावना कम रहती है। इस बात का ध्यान रखें कि सूर्य को जल प्रातः सूर्योदय के समय अर्पित करें और जो जल की धारा आप छोड़ें उसके बीच से सूर्य को देखें।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार सामाजिक कार्य करें, खासकर ब्लाइंड बच्चों को अपनी मनपसंद वस्तुएं दान करते रहें। आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करने से नेत्र रोगों में आराम मिलता है।

कृष्ण यजुर्वेद साखा का एक उपनिषद् है चाक्षुषोपनिषद। इस उपनिषद् में आंखों को स्वस्थ रखने के लिए सूर्य प्रार्थना का मंत्र दिया गया है। माना जाता है कि इस मंत्र का नियमित पाठ करने से नेत्र रोग से बचाव होता है। जिन लोगों की आंखों की रोशनी अल्पायु में ही कमज़ोर हो गयी है, उन्हें भी इस मंत्र के जप से लाभ मिलता है।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार सूर्य के गलत प्रभाव सामने आ रहे हों तो सूर्य के दिन यानी रविवार को उपवास तथा माणिक्य लालड़ी तामड़ा अथवा महसूरी रत्न को धारण किया जा सकता है। सूर्य को अनुकूल करने के लिए मंत्र-ऊस: सूर्याय नम: का एक लाख 47 हजार बार विधिवत जाप करना चाहिए। यह पाठ थोड़ा-थोड़ा करके कई दिन में पूरा किया जा सकता है।

सूर्य शांति पूजा करवाएं और सूर्य यंत्र धारण करें।

चाक्षुषी स्तोत्र का नियमित पाठ करें।

आंखों की ज्योति बढ़ाने में सूर्य का रत्न माणिक्य बहुत काम का है, लेकिन इसे धारण करने से पहले किसी ज्योतिषी से सलाह जरूर लें।

आंखों के रोग और प्रभावी मंत्र

ॐ शंखिनीभ्यां नम:।

इस मंत्र से जातक को मोतियाबिंद सहित रतौंधी, नेत्र ज्योति कम होने आदि की परेशानी में लाभ मिलता है।

सुबह उठकर अपने मुंह मे पानी भर ले और ठन्डे पानी से आंखों में छींटे मारना चाहिए। यह नेत्र ज्योति के लिए बहुत लाभदायक पाया गया है।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार गाजर और पालक की सब्जी (भाजी का जूस तो यदि संभव हो तो हर दिन एक कप पीना ही चाहिए यह आंखों के लिए बहुत लाभदायक रहा है। सुबह उठकर सूर्य भगवान को अर्घ्य भी देने का क्रम बना ले, भले ही इसकी उपयोगिता समझ में आज ना आये पर आखों कि ज्योति के अधिपति सूर्य, चंद्र हैं अत: सूर्य अर्घ्य से समस्या के समाधान में बहुत सहायता मिलाती है। दैनिक जीवन मे सुर्योपासना के महत्व को समझना चाहिए। सूर्य देव से संबंधित कोई भी मंत्र को अपने जीवन मे महत्व अवश्य दें, कम से कम 11 माला मंत्र जप तो करें।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार कई बार अनेकों उपाय करने के बाद भाई सफलता या नेत्र रोग या दोष दूर नहीं हो रहे होते हैं क्योंकि ग्रह वाधा या ग्रह दोष का बहुत प्रभाव जो कि किसी भी चिकित्सीय उपाय को सफल नहीं होने देता हैं इस अवस्था में सूर्य और चंद्र के तांत्रिक मंत्रों का जप करना, बहुत लाभदायक माना गया है।

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