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कुंडली मे कुछ चुने हुए योगों के नाम-

जिस प्रकार दो तत्वों के मेल से योग बनता है, उसी प्रकार दो ग्रहों के मेल से योग का निर्माण होता है। ग्रह योग बनने के लिए कम से कम किन्हीं दो ग्रहों के बीच संयोग, सहयोग अथवा सम्बन्ध बनना आवश्यक होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहों के बीच योग बनने के लिए कुछ विशेष स्थितियों का होना जैसे- दो या दो से अधिक ग्रह का दृष्टि सम्बन्ध, भाव विशेष में कोई अन्य ग्रह का संयोग, कारक तत्व की शुभ स्थिति, कारक ग्रह का अकारक ग्रह से सम्बन्ध, एक भाव का दूसरे भाव से सम्बन्ध, नीच ग्रहों से अथवा शुभ ग्रहों से मेल आदि। इन सभी स्थितियों में योग का निर्माण होता है।

जन्मकुंडली में शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग होते हैं। यदि शुभ योगों की संख्या अधिक है तो साधारण परिस्थितियों में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी धनी, सुखी और पराक्रमी बनता है, लेकिन यदि अशुभ योग अधिक प्रबल हैं तो व्यक्ति लाख प्रयासों के बाद भी हमेशा संकटग्रस्त ही रहता है। कुंडली में शुभ ग्रहों पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि या शुभ ग्रहों से अधिक प्रबल अशुभ ग्रहों के होने से दुर्योगों का निर्माण होता है।

अशुभ योगों के प्रकार

शकट योग

वैदिक ज्योतिष के अनुसार शकट योग को अशुभ योग माना जाता है। जब किसी कुंडली में शकट योग होता है तो जातक को गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ है। गज केसरी योग की भांति शकट योग भी किसी कुंडली में गुरु और चन्द्रमा के संयोग से ही बनता है किन्तु इस योग का प्रभाव शुभ न होकर अशुभ माना जाता है।

अंगारक योग

यदि किसी कुंडली में मंगल का राहु या केतु में से किसी के साथ स्थान अथवा दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए तो अंगारक योग का निर्माण हो जाता है। इसके कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातकों के अपने भाईयों, मित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ संबंध भी खराब हो जाते हैं।

दुर योग

यदि किसी कुंडली में दसवें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दुर योग बन जाता है। इससे व्यक्ति के व्यवसाय पर बहुत अशुभ प्रभाव पडता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है, व्यक्ति अनैतिक तथा अवैध कार्यों के माध्यम से धन कमाते हैं जिसके कारण इन जातकों का समाज में कोई सम्मान नहीं होता तथा ऐसे जातक अपने लाभ के लिए दूसरों को चोट पहुंचाने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते।

दरिद्र योग

यदि किसी कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दरिद्र योग बन जाता है। ऐसे में व्यक्ति के व्यवसाय तथा आर्थिक स्थिति पर बहुत अशुभ प्रभाव डाल सकता है। दरिद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवन भर खराब ही रहती है तथा ऐसे जातकों को अपने जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामाना करना पड़ता है।

ग्रहण योग

यदि किसी कुंडली में सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ राहु अथवा केतु में से कोई एक स्थित हो जाए या किसी कुंडली में यदि सूर्य अथवा चन्द्रमा पर राहु अथवा केतु में से किसी ग्रह का दृष्टि आदि से भी प्रभाव हो तब कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है। ग्रहण योग से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं पैदा होती है व्यक्ति की मानसिक स्थिति अत्यंत खराब रहती है, मस्तिष्क स्थिर नहीं रहता, कार्य में बार-बार बदलाव होता है, बार-बार नौकरी और शहर बदलना पड़ता है, पागलपन के दौरे तक पड़ सकते हैं।

नाग दोष

यदि किसी कुंडली में राहु अथवा केतु कुंडली के पहले घर में, चन्द्रमा के साथ अथवा शुक्र के साथ स्थित हों तो ऐसी कुंडली में नाग दोष बन जाता है जो कुंडली में इस दोष के बल तथा स्थिति के आधार पर जातक को विभिन्न प्रकार के कष्ट तथा अशुभ फल दे सकता है।

केमद्रुम योग

यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा के अगले और पिछले दोनों ही घरों में कोई ग्रह न हो तो या कुंडली में जब चंद्र द्वितीय या द्वादश भाव में हो और चंद्र के आगे और पीछे के भावों में कोई अपयश ग्रह न हो तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है। जिस कुंडली में यह योग होता है वह जीवनभर धन की कमी, निर्धनता अथवा अति निर्धनता, विभिन्न प्रकार के रोगों, मुसीबतों, व्यवसायिक तथा वैवाहिक जीवन में भीषण कठिनाईयों आदि का सामना करना पड़ता है।

कुज योग

यदि किसी कुंडली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुज योग बनता है। इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं। जिस स्त्री या पुरुष की कुंडली में कुज दोष हो उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधु की कुंडली मिलाना आवश्यक है। यदि दोनों की कुंडली में मांगलिक दोष है तो ही विवाह किया जाना चाहिए।

षड़यंत्र योग

षड़यंत्र योग यदि लग्नेश आठवें घर में बैठा हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह न हो तो षड्यंत्र योग का निर्माण होता है। यह योग अत्यंत खराब माना जाता है। जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग हो वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है जैसे धोखे से धन-संपत्ति का छीना जाना, विपरीत लिंगी द्वारा मुसीबत पैदा करना आदि।

भाव नाश योग

जब कुंडली में किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठे, आठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं और उससे भाव नाश योग केजते है। उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि मेष है और इसका स्वामी मंगल छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो धन स्थान के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।

अल्पायु योग

जब कुंडली में चंद्र पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है। जिस कुंडली में यह योग होता है उस व्यक्ति के जीवन पर हमेशा संकट मंडराता रहता है और उसकी आयु कम होती है।

चांडाल योग

चांडाल योग कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु का उपस्थित होना चांडाल योग का निर्माण करता है। इसके दुष्प्रभाव के कारण जातक का चरित्र भ्रष्ट हो सकता है, जातक अनैतिक अथवा अवैध कार्यों में संलग्न हो सकता है।
इस योग का सर्वाधिक प्रभाव शिक्षा और धन पर होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में चांडाल योग होता है वह शिक्षा के क्षेत्र में असफल होता है और कर्ज में डूबा रहता है। चांडाल योग का प्रभाव प्रकृति और पर्यावरण पर भी पड़ता है।

शुभ योगो के प्रकार

अष्टलक्ष्मी योग

किसी जातक की कुंडली में अगर राहु छठे भाव में स्थित होता है और उस कुंडली के केन्द्र में गुरु विराजमान होता है तो यहां अष्टलक्ष्मी नामक शुभ योग बनता है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में यह योग होता है वह व्यक्ति कभी धन के अभाव में नहीं रहता।

सरस्वती योग

सरस्वती जैसा महान योग जातक की कुंडली में तब बनता है जब शुक्र, बृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ में हों या फिर केंद्र में बैठकर युति या फिर दृष्टि किसी भी प्रकार से एक दूसरे से संबंध बना रहे हों। यह योग जिस जातक की कुंडली में होता है उस पर मां सरस्वती मेहरबान होती हैं। इसके कारण रचनात्मक क्षेत्रों में विशेषकर कला एवं ज्ञान के क्षेत्र में बड़ा नाम कमाते हैं जैसे कला, संगीत, लेखन एवं शिक्षा के क्षेत्र में आप ख्याति प्राप्त कर सकते है।

नृप योग

ये योग अपने नाम के अनुसार ही है। जातक की कुंडली में यह योग तभी बनता है जब तीन या तीन से अधिक ग्रह उच्च स्थिति में रहते हों। जिस जातक की कुंडली में यह योग बनता है उस जातक का जीवन राजा की तरह व्यतीत होता है। अगर व्यक्ति राजनीति में है तो वह इस योग के सहारे शिखर तक पहुंच सकता हैं।

अमला योग

जब जातक की जन्म पत्रिका में चंद्रमा से दसवें स्थान पर कोई शुभ ग्रह स्थित हो तो यह योग बनता है। अमला योग भी व्यक्ति के जीवन में धन और यश प्रदान करता है।

गजकेसरी योग

असाधारण योग की श्रेणी का योग है गजकेसरी। जब चंद्रमा से केंद्र स्थान में पहले, चौथे, सातवें या दसवें स्थान में बृहस्पति हो तो इस योग को गजकेसरी योग कहते हैं। इसके अलावा चंद्रमा और बृहस्पति का साथ हो तब भी इस योग का निर्माण होता हैं। पत्रिका के लग्न स्थान में कर्क, धनु, मीन, मेष या वृश्चिक के होने पर यह कारक प्रभाव माना जाता है। जिसकी जन्म कुंडली में यह योग बनता है वो व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली जातक होता है और वो कभी भी अभाव में जीवन व्यतीत नहीं करता।

पारिजात योग

जब कुंडली में लग्नेश जिस राशि में हो उस राशि का स्वामी यदि कुंडली में उच्च स्थान या फिर अपने ही घर में हो तो ऐसी दशा में पारिजात योग बनता है। इस योग वाले जातक अपने जीवन में कामयाब होते हैं और सफलता के शिखर पर भी पंहुचते हैं लेकिन रफ्तार धीमी रहती है। लगभग आधा जीवन बीत जाने के बाद इस योग के प्रभाव दिखाई देने लगते हैं।

चन्द्र मंगल योग

जब किसी कुंडली में चन्द्रमा तथा मंगल का संयोग बनता है तो चन्द्र मंगल योग बनता है। इससे जातक को चन्द्रमा तथा मंगल के स्वभाव, बल तथा स्थिति आदि के आधार पर विभिन्न प्रकार के शुभ अशुभ फल प्रदान कर सकता है।

पर्वत योग

किसी कुंडली में केन्द्र के प्रत्येक घर में यदि कम से कम एक ग्रह स्थित हो तो कुंडली में पर्वत योग बनता है जो जातक को उपर बताए गए शुभ फल प्रदान कर सकता है। वहीं पर कुछ अन्य वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि यदि किसी कुंडली में केन्द्र के प्रत्येक घर अर्थात 1, 4, 7 तथा 10वें घर में कम से कम एक ग्रह स्थित हो तथा कुंडली के 6 तथा 8वें घर में कोई भी ग्रह स्थित न हो तो कुंडली में पर्वत योग बनता है। किसी कुंडली में इस योग के बनने से जातक को धन, संपत्ति, प्रतिष्ठा तथा सम्मान आदि की प्राप्ति होती है।

पंचमहापुरुष योग – शश योग, हंस योग, मालव्य योग, रूचक योग एवम भद्र योग

शश योग

यह योग पंचमहापुरुष योग में से एक है। यदि किसी कुंडली में शनि लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात शनि यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में तुला, मकर अथवा कुंभ राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में शश योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को स्वास्थ्य, लंबी आयु, परिश्रम करने वाला स्वभाव, विशलेषण करने की क्षमता, निरंतर तथा दीर्घ समय तक प्रयास करते रहने की क्षमता, सहनशीलता, छिपे हुए रहस्यों का भेद जान लेने की क्षमता तथा कूटनीतिक क्षमता, विभिन्न प्रकार के कार्यक्षेत्रों में सफलता आदि प्रदान करता है।

हंस योग

यदि किसी कुंडली में बृहस्पति अर्थात गुरु लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात बृहस्पति यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में कर्क, धनु अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में हंस योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को सुख, समृद्धि, संपत्ति, आध्यात्मिक विकास तथा कोई आध्यात्मिक शक्ति भी मिल मिल सकती है।

मालव्य योग

यदि किसी कुंडली में शुक्र लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात शुक्र यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में वृष, तुला अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में मालव्य योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को साहस, पराक्रम, शारीरिक बल, तर्क करने की क्षमता तथा समयानुसार उचित निर्णय लेने की क्षमता प्रदान कर सकता है।

रूचक योग

यदि किसी कुंडली में मंगल लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात मंगल यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में मेष, वृश्चिक अथवा मकर राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में रूचक योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को शारीरिक बल तथा स्वास्थ्य, पराक्रम, साहस, प्रबल मानसिक क्षमता, समयानुसार उचित तथा तीव्र निर्णय लेने की क्षमता, व्यवसायिक क्षेत्रों में सफलता तथा प्रतिष्ठा आदि मिलती है।

भद्र योग

यदि किसी कुंडली में बुध लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात बुध यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में मिथुन अथवा कन्या राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में भद्र योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को युवापन, बुद्धि, वाणी कौशल, संचार कौशल, विशलेषण करने की क्षमता, परिश्रम करने का स्वभाव, चतुराई, व्यवसायिक सफलता, कलात्मकता तथा अन्य कई प्रकार के शुभ फल प्रदान होते है।

: { ललाट की रेखाएँ

हाथ की रेखाओं के अतिरिक्त आपके मस्तक की रेखाएं भी बहुत कुछ बोलती हैं। यह बात अलग है कि सामान्य तौर पर इन्हें नजर अंदाज कर दिया जाता है। अगर हाथ की रेखाओं के साथ मस्तिष्क(ललाट) रेखाओं का भी अध्ययन कर लिया जाए तो भविष्य जानने में और भी आसानी रहती है,तथा प्रामाणिकता भी असंदिग्ध रहती है। इसकी पहचान निम्न प्रकार से है।
👉1- ललाट में बालों के नीचे जो पहली रेखा है वह शनि रेखा है।
👉2-इसके नीचे वाली रेखा गुरु रेखा है।
👉3-तीसरी रेखा मंगल रेखा है।
👉4- चौथी रेखा का स्वामी सूर्य है जो मान-सम्मान और यश प्रदान करता है।
👉5-मस्तक की पांचवीं रेखा का स्वामी शुक्र है जो आपको जीवन के सारे सुख उपलब्ध कराता है।
👉6- छठी रेखा के स्वामी बुध हैं।
👉7- सातवीं रेखा जो इन सबके नीचे है ,वह चंद्र का स्थान है।
इन रेखाओं के अतिरिक्त दाहिने नेत्र के ऊपरी भाग में उठी हुई एक छोटी सी रेखा सूर्य रेखा कही जाती है और बाईं तरफ ऐसी ही रेखा चंद्र रेखा कही जाती है।
शनि रेखा- यदि शनि रेखा सीधी हो तो व्यक्ति बुद्धिमान होता है और अगर यह टेढ़ी-मेढ़ी हो तो चिड़चिड़े स्वभाव का होता है।
गुरु रेखा-यदि यह सीधी हो तो जातक ईमानदार होता है परंतु टेढ़ी या टूटी हो तो वह अनैतिक कार्य करने वाला होता है।
मंगल रेखा- यदि यह रेखा सीधी है तो व्यक्ति को सभी क्षेत्रों में सफलता मिलती है ,परंतु टेढी-मेढ़ी हो तो हर काम में असफलता का सामना करना पड़ता है।
सूर्य रेखा-यदि यह रेखा सीधी हो तो व्यक्ति बुद्धिमान तथा जीवन में सफलता प्राप्त करने वाला होता है। यदि यह टेढ़ी हो तो लोभी और कंजूस होता है।
चंद्र रेखा- यह रेखा सीधी है तो जातक बुद्धिमान,चतुर तथा सूक्ष्मदर्शी होता है,परंतु टेढ़ी-मेढ़ी हो तो कमजोर दिमाग वाला माना जाता है।
शुक्र रेखा-यह रेखा सीधी हो तो जातक सत्य पथ पर चलने वाला तथा समस्त प्रकार के सुखों को भोगने वाला होता है। इसके विपरीत रेखा छिन्न-भिन्न हो तो प्रेम के क्षेत्र में बदनाम होता है।
बुध रेखा- यदि बुध रेखा सीधी है तो व्यक्ति सफल भाषण देने वाला और सामने वाले को प्रभावित करने वाला होता है। यह रेखा टेढ़ी हो तो वह असत्यवादी तथा धोखेबाज होता है।

*अन्य चिन्ह*

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👉1-ललाट में त्रिशूल है तो व्यक्ति दीर्घायु होता है।
👉2- जिसके ललाट में सीप जैसा चिन्ह होता है वह अध्यापक तथा आदर्श व्यक्ति होता है।
👉3- ललाट पर नीली नसें दिखती हों तो वह व्यक्ति खोटी नीयत वाला होता है तथा भरोसेमंद नहीं होता।
👉4-मस्तक पर स्वास्तिक के चिन्ह वाले करोड़पति होते हैं।
👉5- छोटी ललाट वाले लोग मंदबुद्धि व धनहीन होते हैं।
👉6-ऊंचे मस्तक वाले राजा के समान जीवन व्यतीत करते हैं।
👉7- गोलाकार ललाट वाले कंजूस होते हैं।
👉8- जिनके माथे पर अर्द्धचंद्र हो वे प्रसिद्ध उद्योगपति होते हैं।
👉9- माथे पर वज्र या धनुष का चिन्ह स्पष्ट दिखाई दे तो व्यक्ति अतुल संपत्ति का स्वामी होता है।
👉10- त्रिशूल व शंख के चिन्ह वाला व्यक्ति अत्यंत सौभाग्यशाली होता हैं।।


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[ दांपत्य जीवन में आपसी तालमेल और प्रेम की कमी
आजीवन कुँवारा रहने का योग
अलगाव या जीवनसाथी की मृत्यु तक की संभावना
यह जरुरी नहीं कि धरती पर जो पैदा हुआ है उसका विवाह होगा ही क्योंकि जबतक आपकी भाग्य में किसी का साथ नहीं लिखा हो, यानी वैवाहिक जीवन का सुख नहीं हो तब तक लाख चाहने पर भी विवाह नहीं हो पाता है।
यही कारण है कि बहुत से धनवान और सफल व्यक्ति भी अविवाहित रह जाते हैं। और कई ऐसे व्यक्ति भी आपको मिल जाएंगे जो जीवन में बहुत अधिक सफल नहीं होते हुए भी सफल वैवाहिक जीवन जी रहे होते हैं।
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके मन में विवाह की इच्छा ही नहीं रहती है और परिवार वालों की लाख कोशिशों के बावजूद भी शादी नहीं करते हैं।
अगर विवाह हो भी जाए तो इनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहता और वैवाहिक जीवन के आनंद से वंचित रह जाते हैं। आइये देखें ऐसी विवाह रेखाओं को जिनसे होता है वैवाहिक जीवन का सुख बर्बाद👇🏼
दांपत्य जीवन में आपसी तालमेल और प्रेमी की कमी
विवाह रेखा हथेली में सबसे छोटी उंगली के पास होती है। जिनकी हथेली में यह रेखा हृदय रेखा की ओर बढ़ा हुआ होता है और आगे जाकर इस रेखा से दो तीन रेखाएं निकल रही होती है तो यह वैवाहिक जीवन के लिए सुखद नहीं होता है।
जिनकी हथेली में ऐसी रेखाएं होती है उन्हें वैवाहिक जीवन का सुख नहीं मिल पाता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति के दांपत्य जीवन में आपसी तालमेल और प्रेमी की कमी रहती है।
तब पति पत्नी का साथ जीवन भर नहीं रहता
समुद्रशास्त्र के अनुसार जिनकी हथेली में विवाह रेखा हृदय रेखा की ओर बहुत अधिक झुकी होती है उनका दांपत्य जीवन बहुत ही कष्टकारी होता है।
माना जाता है कि ऐसी विवाह रेखा लड़की की हथेली में होने पर पत्नी को पति का वियोग सहना पड़ता है। अगर लड़के की हथेली में ऐसी रेखा हो तो उन्हें जीवन भर पत्नी का साथ नहीं मिल पाता है।
आजीवन कुंवारा रहना पड़ता है।
विवाह रेखा अगर बढ़कर छोटी उंगली के तीसरे या दूसरे पोर तक पहुंच जाती है तो यह वैवाहिक जीवन के लिए बड़ा ही अशुभ माना जाता है।
इस तरह की विवाह रेखा बहुत कम लोगों की हथेली में पायी जाती है। लेकिन जिनकी हथेली में ऐसी विवाह रेखा होती है उन्हें आजीवन कुंवारा रहना पड़ता है।
ऐसे व्यक्ति में विवाह की इच्छा नहीं रहती है। अगर विवाह की इच्छा करें भी तो किसी न किसी कारण से विवाह का संयोग नहीं बन पाता है।
तब जीवनसाथी के जीवन पर संकट आता है।
हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार जिनकी हथेली में विवाह रेखा बीच में टूटी होती है उनका वैवाहिक जीवन लंबे समय तक नहीं चल पाता है।
ऐसी विवाह रेखा होने पर तलाक या जीवनसाथी की मृत्यु तक की संभावना रहती है। विवाह रेखा पर क्रास का चिन्ह होना भी कष्टकारी होता है।
ऐसी स्थिति में वैवाहिक जीवन का अंत बहुत ही दुखदायी होता है। अगर विवाह रेखा के साथ एक अन्य रेखा चल रही हो तब जीवनसाथी के अलावा भी व्यक्ति का अन्य किसी से संबंध होता है।

विषय–इसके अतिरिक्त हाथों के अन्य स्थानों में बने रेखाओं से भी उपरोक्त स्थिति का विश्लेषण करना चाहिए।

      

: {. बाधक ग्रह

*मेष लग्न के जातक के लिये शुक्र मारकेश होकर भी उसे मारता नही है लेकिन शनि और शुक्र मिलकर उसके साथ अनिष्ट करते है।

*वृष लग्न के लिये गुरु घातक है।

*मिथुन लग्न वाले जातकों के लिये चन्द्रमा घातक है लेकिन मारता नही है किंतु मंगल और गुरु अशुभ हैं।

*कर्क लग्न वाले जातकों के लिये सूर्य मारकेश होकर भी मारकेश नही है परन्तु शुक्र घातक है।

*सिंह लग्न वाले जातक के लिये शनि मारकेश होकर भी नही मारेगा लेकिन बुध मारकेश का काम करेगा

*कन्या लग्न के लिये सूर्य मारक है पर वह अकेला नही मारेगा मंगल आदि पाप ग्रह मारकेश के सहयोगी होंगे और मृत्यु का कारण बनेंगे।

*तुला लग्न के लिए मारकेश मंगल है पर अशुभ फ़ल गुरु और सूर्य ही देंगे

*वृश्चिक लग्न के लिए गुरु मारकेश होकर भी नही मारेगा जबकि बुध सहायक दूसरा मारकेश होकर पूर्ण मारकेश का काम करेगा

*धनु लग्न के लिए मारक शनि है पर अशुभ फ़ल शुक्र ही देग1

*मकर लग्न के लिये मंगल ग्रह घातक माना जाता है।

*कुंभ लग्न के लिये मारकेश गुरु है लेकिन घातक कार्य मंगल ही करेगा

*मीन लग्न के लिये मंगल मारक है और साथ में शनि भी मारकेश का काम करेगा।

छठे आठवें बारहवें भाव मे पडे राहु-केतु भी मारक ग्रह का काम करते हैं।

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