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कुण्डली के 12 भावों की महादशा –

कुण्डली के प्रत्येक भाव की महादशा भिन्न भिन्न फल प्रदान करने वाली होती है. बारह भावों में स्थित शुभ और अशुभ प्रभाव जातक के जीवन को पूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं. प्रत्येक भाव अनुसार महादशा के प्रभावों का वर्णन इस प्रकार से जातक को प्रभावित कर सकता है.

लग्नेश की दशा

शारीरिक सुख, स्वास्थ्य, धन, बल की वृद्धि करने वाली होती है. यदि लग्नेश अष्टमस्थ हो तो शारीरिक पीडा़ हो सकती है. यदि लग्नेश में शनि की अन्तर्दशा से धन की हानि एवं कुंटुंब से विरोध हो सकता है.

द्वितीयेश की दशा

शारीरिक कष्ट एवं पीडा़ मिल सकती हैं पर यह धन संपदा में वृद्धि करने वाली भी होती है. द्वितीयेश पाप ग्रह से युक्त हो तो मानहानि, धनहानि, स्वजनों से विरोध को भी सहना पड़ सकता है. द्वितीयेश की महादशा में शनि, मंगल, सूर्य, राहु जैसे ग्रहों की अन्तर्दशा में धन की हानि हो सकती है. पाप ग्रह द्वितीयेश होकर द्वितीयेश होने पर अपनी दशा में राज भय देता है. धन हानि एवं देश निकाल दे सकता है.

यदि द्वितीय भाव में शुभ ग्रह हों तथा धनेश भी शुभ ग्रह से युक्त हो तो द्वितीयेश की दशा में जातक अच्छी उन्नती प्राप्त करता है.

तृतीयेश की महादशा

तृतीयेश शुभ ग्रहों से युक्त हो अथवा शुभ ग्रह के साथ स्थित हो तो तृतीयेश की दशा एवं अन्तर्दशा में अत्साह, साहस एवं पराक्रम की वृद्धि होती है. भाई बहनों का प्रेम प्राप्त होता है.

तृतीयेश यदि पाप ग्रहों से युक्त हो तो पाप ग्रह की अन्तर्दशा में भाई बंधुओं से मतभेद उत्पन्न हो सकता है. पापी तृतीयेश होने पर अशुभ प्रभाव अधिक देखने को मिलते हैं. यह शत्रुओं की वृद्धि करती है धन नाश, शस्त्राघात की पीडा़ देती है.

चतुर्थेश की महादशा

चतुर्थेश यदि पाप ग्रहों से युक्त हो तो पाप ग्रहों की अन्तर्दशा आने पर भू-संपदा की हानि, मानसिक कलेश, वाद विवाद एवं माता के सुख में कमी आती है.

चतुर्थेश यदि शुभ ग्रहों से युक्त हो तो इसकी दशा में भूमि, भवन का सुख प्राप्त होता है, वाहन का सुख एवं माता का सुख मिलता है.

पंचमेश की महादशा

पंचमेश में यदि शुभ ग्रह हों तो इसकी दशा में धन का लाभ होता हे संतान का सुख एवं उससे सम्मान की प्राप्ति होती है. राजसम्मान तथा लोगों से स्नेह प्राप्त होता है. पंचमेश की दशा धन धान्य, विद्या सुबुद्धि प्रदान करती है. व्यक्ति के मान सम्मान में वृद्धि होती है. परंतु पंचमेश माता के लिए मारकेश होने से माता को कष्ट, पीडा़ भी प्राप्त हो सकती है.

पंचमेश की महादशा में पाप ग्रह की अन्तर्दशा होने पर भय, दुख, संतान पर कष्ट जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.

षष्ठेश की महादशा

षष्ठेश की महादशा में रोग, शत्रु का भय लग सकता हे. संतान को कष्ट हो सकता है. षष्ठेश की दशा में पाप ग्रहों की अन्तर्दशा राज्य से तिरस्कार कोप भाजन का शिकार बना सकती है. कारावास, मुकदमा या व्याधि को भी झेलना पड़ सकता है.

सप्तमेश की महादशा

सप्तमेश की दशा में शोक, शारीरिक कष्ट मिल सकता है. सप्तमेश पाप ग्रह हो तो इसकी दशा में स्त्री को कष्ट प्राप्त हो सकता है. वैवाहिक जीवन में तनाव एवं अलगाव भी उत्पन्न हो सकता है. सप्तमेश में पाप ग्रह की अन्तर्दशा होने पर जातक को स्त्री सुख से वंचित रहना पड़ सकता है.

किंतु शुभ ग्रहों से युक्त होने पर यह दांपत्य सुख प्रदान करने में सहायक होता है तथा सांसारिक सुख प्रदान करने में सक्षम होता है.

अष्टमेश की महादशा

अष्टमेश की दशा में पाप ग्रह की अन्तर्दशा शत्रु से भय, धन का क्षय करा सकती है. इसकी पाप ग्रहों की दशा स्त्री, मित्रों, भाई बंधुओं के सुख में कमी आती है. अष्टमेश आयु स्थान है अत: इसकि अच्छी दशा दिर्घायु प्रदान करने में भी सहायक होती है.

नवमेश की महादशा

नवमेश की दशा में धार्मिक प्रवृत्ति देखी जा सकती है. जातक दान., पुण्य, तीर्थ यात्राओं करने की इच्छा रखने वाला होता है. शुभ ग्रहों से युक्त होने पर बुद्धि, प्रतिष्ठा में उन्नती देने वाला होता है.

नवमेश की दशा में पाप ग्रह का अन्तर्दशा होने पर पिता को कष्ट हो सकता है, धार्मिकता का पतन हो सकता है तथा धन का नाश एवं बंधन प्राप्त हो सकता है.

दशमेश की महादशा

दशमेश की दशा में धन और मान सम्मान की प्राप्ति होती है. राज सम्मान की प्राप्ति हो सकती है. दशमेश पाप या नीच ग्रहों से युक्त होने पर प्रियजनों को संताप देता है, अपमान, कार्य में रूकावट देता है, अवनती और पदच्युति प्रदान करता है. यदि कोई ग्रह दशम में उच्च या शुभ का हो तो उक्त ग्रह की दशा में भाग्योदय, मान सम्मान की प्राप्ति होती है.

एकादशेश की महादशा

एकादशेश भाव लाभ का स्थान कहलाता है अत: इसकी दशा में लाभ प्राप्ति की संभावना देखी जा सकती है. जातक व्यापार एवं व्यवसाय से अच्छा लाभ पाता है. उसे सम्मान एवं यश की प्राप्ति होती है.

यदि लाभेश पाप ग्रहों से युक्त हो तो इसकी दशा रोग प्रदान कर सकती है. इसमें पाप ग्रहों की अन्तर्दशा राजभय, हानि, दुख प्रदान कर सकती है तथा व्यर्थ के खर्चों को बढा़ सकती है.

द्वादशेश की महादशा

द्वादशेश भाव व्यय भाव कहलाता है. व्ययेश की दशा में आर्थिक कष्ट, रोग, चिंता प्रदान करने वाला हो सकता है. द्वादशेश की दशा में शनि, सूर्य अथवा मंगल की अन्तर्दशा स्त्री एवं संतान से मतभेद प्रदान कर सकती है.

द्वादशेश की महादशा में राहु की अन्तर्दशा चोर, विष या अग्नि का भय प्रदान कर सकती है.
[ज्योतिष ज्ञान
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कर्क राशि/लग्न के जातकों का प्रेम-वैवाहिक जीवन एवँ अनुकूल साथी चुनाव
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कर्क राशि/लग्न के जातक/जातिका प्रेम के संबंध में अत्यंत भावुक एवं संवेदनशील होते है। ये जिसके साथ प्रेम या प्यार करेंगे पूरी निष्ठा एवं हृदय से करेंगे परंतु ये प्रेम के संबंध में परिवर्तन व नवीनता की अभिलाषा भी रखते है। ये जातक अपनी पत्नी बच्चों व परिवार के प्रति पूर्ण समर्पित होते है। परंतु चर एवं परिवर्तनशील प्रकृति के कारण कई बार गलतफहमी का शिकार भी हो जाते हैं। और अपने पार्टनर द्वारा अक्सर गलत समझ लिये जाते हैं।

कर्क जातक अपनी उन्मुक्त भावुकता एवं अमर्यादित आकांक्षाओं को नियंत्रित करके व्यवहार करने की कला सीख लें तो इनका वैवाहिक व सामाजिक जीवन आनदपूर्ण हो सकता हैं।

अनुकूल साथी का चुनाव
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कर्क लग्न/राशि जल तत्व प्रधान होने से इस लग्न के जातक/जातिका को जल तत्त्व और पृथ्वी तत्त्व प्रधान राशियो के जीवन साथी के साथ परस्पर विवाह संबंध करना अनुकूल एवं लाभदायक होता हैं। अतः कर्क जातक को मेष, वृष, कर्क, कन्या, तुला, वृश्चिक एवं मीन राशि वाली जातिकाओ को जीवन साथी के रूप में चुनना शुभ व लाभकारी होगा।
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ज्योतिष कक्षा
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नव ग्रहो का दह से परिचय पुनः
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सूर्य🌅- सूर्य प्रकाश और प्रभाव से सम्बंधित ग्रह है।इसलिए जन्म कुंडली में सूर्य जिस स्थान का स्वामी है और जहाँ बैठा होगा और जहाँ देख रहा होगा वहां से प्रकाश और प्रभाव प्राप्त करेगा।

चन्द्रमा🌘- चंद्र मन की शक्ति से सम्बंधित ग्रह है।इसलिए जन्म पत्री में चंद्र जिस स्थान का स्थाई स्वामी है, और जहाँ बैठा है और जहाँ देख रहा है उन स्थानों पर मनोयोग का काम करता है।

मंगल🌋- मंगल खून और शक्ति का संबंधी ग्रह है।इसलिए जन्म पत्री में मंगल जिस स्थान का स्थाई स्वामी है व् जहाँ बैठा है और जिस स्थान को देख रहा है वहां अपनी शक्ति और तेजी का कार्य करता है।

बुध🍀- बुध ग्रह विवेक शक्ति का स्वामी है।इसलिए जन्म कुण्डली में जिस-जिस स्थान का स्वामी है और जहाँ बैठा है एवं जिन स्थानों को देखता है,उन सभी में विवेक शक्ति के सहित कार्य करता है।

गुरु🌻- गुरु ह्रदय की शक्ति का स्वामी है, ये जन्म कुंडली में जिन स्थानों का स्वामी है और जिस स्थान पर बैठा है व् जहाँ देख रहा है उन स्थानों में ह्रदय की शक्ति के योग से कार्य करता है।

शुक्र🌈- शुक्र महान चतुराई का स्वामी है।इसलिए जन्म पत्री में जिन स्थानों का स्वामी है एवं जिस स्थान में बैठा है और जिस स्थान को देख रहा है, वहां वहां महान् चतुराई के योग से कार्य करता है।

शनि☀- शनि महान दृढ़ता शक्ति का अधिकारी है। इसलिए यह जन्म पत्री में जिन स्थानों का स्वामी है, और जहाँ बैठ है तथा जिन स्थानों को देखता है उन स्थानों में दृढ़ता शक्ति के साथ काम करता है।

राहु👥- राहु गुप्त युक्ति बल तथा कमी और कष्टनके अधिकारी है। ये जन्म कुंडली में जिस स्थान पर बैठते है वहां गुप्त युक्तिबल का प्रयोग तथा कमी और कष्ट का कार्य करते है।

केतु👥- केतु गुप्त शक्तिबल,कठिन कर्म और कमी व् भय के अधिपति है। ये जन्म कुण्डली में जिस स्थान पर बैठते है वहां कठिन कर्म शक्ति, कमी व् भय की प्राप्ति का कार्य करते है।और जन्म कुण्डली या गोचर में जिस ग्रह के सामने केतु आ रहे है वह ग्रह भी भय युक्त हो जाता है।

ध्यान योग्य जानकारी- उपरोक्त ग्रहो का हर संबंधो में विचार करके ही फलादेश करना श्रेयस्कर है।

          

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ज्योतिष में शुक्र शुभ, अशुभ लक्षण और उपाय –

शुक्र ग्रह यह सुंदर जीवन साथी, सुख सुविधाओं युक्त जिवन और भोग विलास का कारक है।

शुक्र एक नम ग्रह हैं तथा ज्योतिष में इन्हें स्त्री ग्रह माना जाता है। शुक्र मीन राशि में स्थित होकर सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं। मीन राशि के अतिरिक्त शुक्र वृष तथा तुला राशि में स्थित होकर भी बलशाली हो जाते हैं जो कि इनकी अपनी राशियां हैं।

ज्योतिष में शुक्र को मुख्य रूप से पति या पत्नी अथवा प्रेमी या प्रेमिका का कारक माना जाता है। कुंडली धारक के दिल से अर्थात प्रेम संबंधों से जुड़ा कोई भी मामला देखने के लिए कुंडली में इस ग्रह की स्थिति देखना अति आवश्यक हो जाता है। कुंडली धारक के जीवन में पति या पत्नी का सुख देखने के लिए भी कुंडली में शुक्र की स्थिति अवश्य देखनी चाहिए। शुक्र को सुंदरता की देवी भी कहा जाता है और इसी कारण से सुंदरता, ऐश्वर्य तथा कला के साथ जुड़े अधिकतर क्षेत्रों के कारक शुक्र ही होते हैं, जैसे कि फैशन जगत तथा इससे जुड़े लोग, सिनेमा जगत तथा इससे जुड़े लोग, रंगमंच तथा इससे जुड़े लोग, चित्रकारी तथा चित्रकार, नृत्य कला तथा नर्तक-नर्तकियां, इत्र तथा इससे संबंधित व्यवसाय, डिज़ाइनर कपड़ों का व्यवसाय, होटल व्यवसाय तथा अन्य ऐसे व्यवसाय जो सुख-सुविधा तथा ऐश्वर्य से जुड़े हैं।

शुक्र शुभ फलादेश –

जन्म कुंडली में शुक्र शुभ अवस्था में हो तो जातक को शारीरिक रूप से सुंदर और आकर्षक बना देता है तथा उसकी इस सुंदरता और आकर्षण से सम्मोहित होकर लोग उसकी ओर खिंचे चले आते हैं तथा विशेष रूप से विपरीत लिंग के लोग। शुक्र के शुभ प्रभाव वाले जातक शेष सभी ग्रहों के जातकों की अपेक्षा अधिक सुंदर होते हैं। शुक्र के शुभ प्रभाव वालीं महिलाएं अति आकर्षक होती हैं तथा जिस स्थान पर भी ये जाती हैं, पुरुषों की लंबी कतार इनके पीछे पड़ जाती है। शुक्र के शुभ प्रभाव वाले जातक आम तौर पर फैशन जगत, सिनेमा जगत तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्रों में सफल होते हैं जिनमें सफलता पाने के लिए शारीरिक सुंदरता को आवश्यक माना जाता है।

शुक्र जन्म कुंडली में शुभ स्थित हो तो जातक को कुशाग्र बुद्धि व् आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी बनाता है। ऐसे जातक कुशल वक्ता होते हैं। इन गुणों से दुसरे लोग सहज ही इनकी ओर आकर्षित हो जाते हैं। शुक्र की शुभ स्थिति मान सम्मान में इजाफा करवाती है व् ऐसे जातक अच्छे मित्र, व्यापारी व् साझेदार साबित होते हैं। अच्छा खान पान , बड़ी गाड़ियां, ब्रांडेड कपडे, शूज, नए आकर्षक स्थलों की सैर, महंगे होटलों में रहना जैसी जीवनशैली शुक्र शुभ के प्रभावित जातक के जीवन में सहज ही देखने को मिल जाती है। ऐसे जातक नृत्य कला के शौक़ीन, कुशल अभिनेता और राजनीतिज्ञ होते हैं।

शुक्र अशुभ फलादेश –

शुक्र के अशुभ होने पर वैवाहिक जीवन में कलह की स्थिति उत्पन्न होने लगती है और इस कलह से अलगाव या तलाक की नौबत भी आ सकती है।
शुक्र अशुभ होने पर जीवन में धन संपत्ति, सुख – साधन सभी वस्तुओं का सुख नहीं मिल पाता है।
यदि यह सब होने पर भी किसी भी कारण वश आप इन सभी के उपभोग का सुख न ले पाए तो यह भी शुक्र के खराब होने के लक्षण है। परिवार में स्त्री के कारण किसी भी प्रकार से धन की हानि हो रही हो तो यह भी खराब शुक्र के लक्षण को दर्शाता है.

व्यक्ति को वैवाहिक जीवन का निजी सुख न मिल पाए, पति-पत्नी के संबंधों में मधुरता न रहे या दोनों में से किसी की कमी उनकी इच्छा की पूर्ति करने में सक्षम न हो रही हो यह भी शुक्र का ही अशुभ प्रभाव होने का लक्षण है। स्त्री को गर्भाश्य से संबंधित रोग परेशान करें या संतति संबंधी परेशानि हो तो यह भी शुक्र की अशुभता का संकेत देते हें।

शुक्र के पीड़ित होने के कारण व्यक्ति गुप्त रोगों से पीड़ित होने लगता है. शरीर में हमेशा आलस्य भरा रहता है. व्यक्ति किसी भी कार्य को पूरा ही नहीं कर पाता. शरीर में जोश की कमी रहती है तो यह सब शुक्र के अशुभ होने के लक्षण को दर्शाता है। अंगूठे में दर्द का रहना या बिना रोग के ही अंगूठा बेकार हो जाता है। यह भी शुक्र के अशुभ होने के लक्षण है।

शुक्र को शुभ करने के उपाय –

शुक्र को शुभ करने के लिए प्रतिदिन घर की पहेली रोटी गाय को अवश्य खिलाए।

स्वयं को और घर को साफ-सुथरा रखें और हमेशा साफ कपड़े पहनें। नित्य नहाएं। शरीर को जरा भी गंदा न रखें।

नित्य सुगन्धित इत्र या सेंट का उपयोग करें।

मंत्र : ॐ शुं शुक्राय नम:। नित्य 108 बार जाप करें।

स्त्री एवं अपनी पत्नी का कभी भी अपमान या निरादर नहीं करना चाहिए उन्हें सदैव आदर और सम्मान देने का प्रयास करना चाहिए।

हर शुक्रवार के दिन गाय को हरा चारा खिलाना चाहिए। और कुछ समय गौमाता के पास अवश्य बिताए ताकि उनमे से निकलने वाली शुक्र की सकारात्मक उर्जा आपको मिले।

शुक्र की अशुभता दूर करने के लिए सामर्थ्य अनुसार रुई और दही को मंदिर में दान करना चाहिए।

गरीबो मे बने बनाए कपड़ों का दान करना चाहिए।

 

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