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कठिनतम और जटिलतम परिस्थितियों में भी धैर्य बना रहे इसी का नाम सज्जनता है। केवल फूल माला पहनने पर अभिवादन कर देना ही सज्जनों का का लक्षण नहीं। यह तो कोई साधारण से साधारण मनुष्य भी कर सकता है। मगर काँटों का ताज पहनने के बाद भी चेहरे पर सहजता का भाव बना रहे, बस यही सज्जनता व महानता का लक्षण है।
भृगु जी ने लात मारी और पदाघात होने के बाद भी भगवान विष्णु जी ने उनसे क्षमा माँगी। इस कहानी का मतलब यह नहीं कि सज्जनों को लात से मारो अपितु यह है कि सज्जन वही है जो दूसरों के त्रास को भी विनम्रता पूर्वक झेल जाए।
सज्जन का मतलब सम्मानित व्यक्ति नहीं अपितु सम्मान की इच्छा से रहित व्यक्तित्व है। जो सदैव शीलता और प्रेम रुपी आभूषणों से सुसज्जित है वही सज्जन है। जो हर परिस्थिति में प्रसन्न रहे और दूसरों को भी प्रसन्न रखे, वही सज्जन है।

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प्रेम शक्तिशाली संजीवनी है। प्रेम से अधिक कुछ भी गहरा नहीं जाता।। यह सिर्फ शरीर का ही नहीं, मन और आत्मा का भी उपचार करता है। शारीरिक स्वास्थ्य सतही घटना है, जिसके लिए आज विज्ञान बहुत सक्षम है।। लेकिन मन और आत्मा के मर्म केवल प्रेम से ही स्वस्थ हो सकता है। वे जो प्रेम का रहस्य जानते हैं, वे जीवन का महानतम रहस्य जानते हैं।। प्रेम आप पर यह सत्य प्रगट करता है कि आप शरीर नहीं हैं। शुद्ध चेतना हैं।। आपका कोई जन्म नहीं है, कोई मृत्यु नहीं है। यह अनुभव होते ही आप आनंद को उपलब्ध हो जाते हैं।।

     
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[जो यह कहे कि मुझ पर दुख भी न आवे और सुख भी उपलब्ध हो तो यह नहीं हो सकता। जब तक तुम दुःख को सुख नहीं समझोगे तब तक दुःख तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेंगे।। जब दुःख को मालिक की मौज से आया हुआ समझ कर प्रसन्न्ता से सहन कर लोगे तो थोड़े समय के पश्चात महा सुख प्राप्त करोगे। यदि लोगों की देन समझोगे तो दूसरों के प्रति वैमनस्य की भावना उतपन्न होगी। उन्हें दुःख देने के लिए सोचोगे तो सुख खोजने पर भी प्राप्त नहीं कर सकोगे। तुम शीघ्रता न करो, धैर्य धारण करो। सदा विश्वास रखो कि मालिक तुम्हारे कल्याण के लिए ही सब कुछ कर रहे हैं।। परमेश्वर से अधिक शक्तिमान कौन है। फिर तुम किसी से बदला लेने की क्यों सोच रहे हो।।
[अगर आप दुनिया की भीड़ से बचना चाहते हो बस एक काम करना, सच्चाई के रास्ते पर चलना शुरू कर देना। यहाँ बहुत कम भीड़ है और इस रास्ते पर चलने के लिए हर कोई तैयार नहीं होता।। यद्यपि व्यर्थ के लोगों से बचने के और भी कई तरीके हैं मगर सत्य पर चलने से व्यर्थ अपने आप छूट जाता है। और श्रेष्ठ प्राप्त हो जाता है।। गलत दिशा की ओर हजारों कदम चलने की अपेक्षा लक्ष्य की ओर चार कदम चलना कई गुना महत्वपूर्ण है। तुम सत्य को जितना जल्दी हो चुन लो ताकि परम सत्य भी तुम्हें चुन सके।। सत्य के मार्ग पर चलना ही सबसे बड़ा साहसिक कार्य है। सत्य के मार्ग पर चलने ही सृजन होता है।। सत्य के मार्ग पर चलने से ही आत्मा का कल्याण होता है, हो सकता है। सत्य से सत्ता ना मिले पर सच्चिनानंद अवश्य मिल जाता है।।

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