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यह कलियुग है, कल माने मशीनरी; इसलिये इसे मशीनरी युग भी कहा जा सकता है। और इन्हीं मशीनों के कारण ही गौ माता का महत्व कम हो गया है। गौ को माता भी इसीलिये कहा जाता है कि कुछ समय पहले माँ के बाद हमारा पालन-पोषण करनेवाला अगर कोई था तो वह गौ ही थी।
हम सभी माँ के दूध को छोड़ने के बाद गौ माता का ही दूध पीते थे और गौ माता के बछड़ों से ही खेती करके अन्न आदि पैदा करके अपनी छुधा को तृप्त करते थे, गौ माता के गोबर से ही खेती की उपज बढ़ाते थे, गौबर से ही घर-मकानों की सफाई करते थे और गोबरसे बने गोसों, उपलों व कण्डोंसे ही खाना आदि पकाते थे, इसीलिये गोबर को गोबरधन भी कहते थे क्योंकि हमारे पास धन हमारी फसलों से ही होता था और फसलोंकी उपज गोबर से ही बढ़ती थी। गौ माता का मूत्र भी कई विषैले कीटाणुओं का नाशक बताया जाता है तथा गौ माता के दूध और दूधसे आधा घी, घी से आधा गौ माता का ही दही, दहीसे आधा गौ माता का मूत्र व मूत्रसे आधा गौ माता का गोबर मिलाने से पंचगव्य तैयार हो जाता है, यह पंचगव्य शरीरमें मालिश करके धूप लेकर नहाने से तथा थोड़ा-सा पीने से खूनको शुद्ध करके चर्म रोगों को दूर कर देता है।
देवता उन्हें कहते हैं जो अपने स्वाभाविक गुणों से सभी को निःस्वार्थ भाव से समान रूपसे भेदभाव से रहित होकर अपने गुणोंका लाभ देते ही रहते हैं। इस संसार रूपी प्रकृति की प्रत्येक क्रियाएं भी देवताओं से ही सम्पन्न होनेवाली ही होती हैं, अगर ये देवता न हों तो फिर कोई भी क्रिया सम्पन्न हो ही नहीं सकती है।
वैसे तो प्रत्येक शरीरोंमें कर्मेन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों तथा अन्तःकरणके ये देवता स्वामी तो होते ही हैं; इसीलिये ही इन देवताओं का वास भी प्रत्येक शरीर में होता ही है। गौ माता में विशेषकर इन देवताओं का वास इसीलिये कहा जाता है कि देवताओं के समान ही गौ माता का भी भेदभाव से रहित होकर हम सभी को निःस्वार्थ भावसे अपने गुणोंका लाभ देने का ही स्वभाव होता है।
जय जय श्री राम

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