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बार-बार मिल रही नाकामयाबी

से कही बार मन करता है कि

अब छोड़ दूँ यह सब , हार ही मान लूँ , यह सब अब मेरे बस का नहीं

तब एक बात याद रखना

हार मान लेने से कुछ भी हासिल नहीं होगा

लेकिन एक और कोशिश आपको सफलता दिला सकती है, एक और कोशिश आपको अपने सपनों का जीवन दे सकती है,. एक और प्रयास आपकी सारी मेहनत, बलिदान और संघर्ष की कीमत चुका सकता है

इस लिए अपने जीवन में कभी हार मत मानो और बार बार प्रयास करते रहो । रुक जाना नहीं तू कहीं हार के, कांटों पे चल के मिलेंगे साये बहार के।

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏

जीवन में कुछ भी दुर्भाग्य नहीं है, बाधायें ही सीढ़ियां भी बन सकती हैं। और सीढियां बाधा।। आपका सौभाग्य और दुर्भाग्य दोनों आपके हाथ में हैं। जीवन एक तटस्थ अवसर है।। चलते चलते राह में एक बड़ा पत्थर आ गया। आप वहीं अटक कर बैठ सकते हैं।। कि अब आगे कैसे जाना हो पत्थर आ गया आप उस पत्थर पर चढ़ भी सकते हैं। तब आप पाते हैं।। कि पत्थर ने आपकी दृष्टि का विस्तार कर दिया। अब आप दूर तक देख सकते हैं।। जो पत्थर के बिना संभव नहीं था। यहाँ पत्थर सीढ़ी हो गया।।

          *!! !!*

जिसके भीतर नाशवान धन सम्पत्ति आदि का आश्रय है, आदर है और जिसके भीतर अधर्म है, अन्याय है, दुर्भाव है, उसके भीतर वास्तविक बल नहीं होता ।

वह भीतर से खोखला होता है और वह कभी निर्भय नहीं होता । परन्तु जिसके भीतर अपने धर्म का पालन है और भगवान का आश्रय है, वह कभी भयभीत नहीं होता । उसका बल सच्चा होता है । वह सदा निश्चिन्त और निर्भय रहता है ।

अतः अपना कल्याण चाहने वाले साधकों को अधर्म, अन्याय आदि का सर्वथा त्याग करके और एकमात्र भगवान का आश्रय लेकर भगवत्प्रीत्यर्थ अपने धर्म का अनुष्ठान करना चाहिए ।

जय श्री कृष्ण🙏🙏

ऋषियों ने कहा है कि संसार में शुद्ध ज्ञान सबसे पवित्र वस्तु है। जितना सुख, शुद्ध ज्ञान से मिलता है, इतना और भौतिक पदार्थों से नहीं मिलता। महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने तो अपनी पुस्तक ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में एक स्थान पर लिखा है, संसार के उत्तम उत्तम भौतिक पदार्थों से जो सुख मिलता है, वह विद्या प्राप्ति से होने वाले सुख के 1000वें अंश के समतुल्य भी नहीं हो सकता।
इससे पता चलता है कि ज्ञान कितनी ऊंची पवित्र एवम् सुखदायक वस्तु है। इसलिए लोग ज्ञान प्राप्ति के लिए, अपने घर परिवार और यहाँ तक कि अपना देश भी छोड़ कर विदेश में दूर तक जाते हैं।
दूसरी बात – यह है कि, ज्ञान अथवा विद्या को प्राप्त करके एक रोग भी उत्पन्न होता है, जिसका नाम है अभिमान। आपने यदि यह अभिमान उत्पन्न कर लिया, तब तो वह ज्ञान विष के तुल्य हो जाएगा और विनाशक होगा। यदि कोई तपस्वी बुद्धिमान पुरुषार्थी व्यक्ति, विद्या अथवा ज्ञान को प्राप्त करके अभिमान को उत्पन्न न होने दे, उसके स्थान पर नम्रता भाव को उत्पन्न कर ले, बस फिर तो उसके लिए वह ज्ञान अमृत के समान है। इसलिए ज्ञान प्राप्त अवश्य करें , उसके बाद अभिमान को उत्पन्न न होने दें, नम्रता को धारण करें। वह ज्ञान आपके लिए वरदायक सिद्ध होगा..!!
🙏🏼🙏🏻🙏🏾जय जय श्री राधे🙏🙏🏽🙏🏿

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