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वेद विज्ञान में सूर्य (रश्मि विज्ञान )

बैज्ञानिक पृथ्वी को कई रेखाओं में बिभक्त कर रखा है। दोनों अंत विन्दु को ध्रुव तथा कल्पना के आधार पर ” मना जैसे ” सपोज , एज ईट से गणित को हल करता है। मना क़ि” पर खगोलशास्त्र खगोल क़ि जानकारी दे रहा है।संभवतया के आधार पर मौसम क़ि जानकारी देता है लेकिन “भूकंप ” के सम्बन्ध में वैज्ञानिक अटकलवाजी भी नहीं लगा पा रही है।

उपरोक्त अवधारणा को पश्चिम के वैज्ञानिक ने वेद को चुरा कर स्थापित किया है।
लेकिन वेद में कंही किन्तु – परन्तु नहीं है उसमे सब कुछ स्पष्ट है।

सप्तवर्णी रश्मियों जैसे सात अश्वो से नियोजित रथ में सुशोभित है ” सर्व द्रष्टा सूर्य ! तेजस्वी रश्मियों से युक्त तू दिव्यता को धारण करता है ( 50 वाँ सूक्त , श्लोक – 8 / ऋग्वेद खंड -1 )

—— सूर्य को स्वर्ग में स्थापित कर दिया , जिससे सब उसके दर्शन कर सके —-( 52 वाँ सूक्त श्लोक -8 ऋग्वेद खंड -१)

सूर्य को आकाश में इसलिए स्थापित किया क़ि मानव मात्र दर्शन कर सके।

सूर्य का अस्त नहीं होता है।सूर्य का दिखायी देना है उदय है और न दिखाई देना है अस्त है।

सूर्य के तीन पुरियां है इन्द्र , यम, वरुण और कुबे, इसमें से किसी एक पूरी में उदित होकर शेष तीन पूरियो और कोनो को प्रकाशित करते है

सूर्य की किरणों में सात रंग हैं। जिन्हें वेदों में सात रश्मियां कहा गया है- ” सप्तरश्मिरधमत् तमांसि। ”

-ऋग्वेद 4-50-4 अर्थात-सूर्य की सात रश्मियां हैं। सूर्य की इन रश्मियों के सात रंग हैं- बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल।

इन्हें तीन भागों में बांटा गया है- गहरा, मध्यम और हल्का। इस प्रकार सात गुणित तीन से 21 प्रकार की किरणें हो जाती हैं। अथर्ववेद में कहा गया है-

”ये त्रिषप्ता: परियन्ति विश्वा रुपाणि बिभ्रत:। ”

अथर्ववेद 1-1-1 अर्थात यह 21 प्रकार की किरणें संसार में सभी दिशाओं में फैली हुई हैं तथा इनसे ही सभी रंग-रूप बनते हैं। वेदों के अनुसार संसार में दिखाई देने वाले सभी रंग सूर्य की किरणों के कारण ही दिखाई देते हैं। सूर्य किरणों से मिलने वाली रंगों की ऊर्जा हमारे शरीर को मिले इसके लिए ही सूर्य को अघ्र्र्य देने का धार्मिक विधान है।

       

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