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: राहू -केतू का प्रभाव-

राहु-केतु दोनों ही छाया ग्रह हैं। कुंडली में यह सूर्य एवं चंद्र के साथ ग्रहण योग बनाते हैं। राहु भ्रम और केतु चिंताओं एवं कुल की वृद्धि का सूचक है। कुंडली में इनकी स्थिति जातक के जीवन को बहुत प्रभावित करती है। यह दोनों ग्रह सदैव पीड़ा करक नहीं होते। कुंडली में कुछ भावों और ग्रहों के साथ यह जातक को विशेष शुभ फल प्रदान करते हैं। आइए जानते हैं कैसे राहु और केतु की स्थिति जातक के जीवन को प्रभावित करती है।

राहू की बिभिन्न ग्रहों से युति के विशेष फल-

राहू-बुध की युति – संकुचित सोच और झूठ बोलने की प्रवृति।

राहू-शुक्र की युति – अति कामुक।

राहू-शनि से युति – तंत्र मंत्र का जानकार किन्तु दरिद्र।

राहू-गुरू से युति – हठ योगी या योग अभ्यास में कुशल।

राहू-मंगल से युति – खतरनाक कार्यों को करने वाला।

राहू-सूर्य – खराब आचरण वाला।

राहू-चन्द्रमा से युति – जीवनभर मानसिक तनावों से परेशान रहने वाला।

केतु की बिभिन्न ग्रहों से युति के विशेष फल-

केतु-बुध की युति – लाइलाज बीमारी देता है। पागल, सनकी, चालाक, कपटी, चोर एवं धर्म विरुद्ध आचरण बनाता है।

केतु-शुक्र की युति – जातक दूसरों की स्त्रियों या पर पुरुष के प्रति आकर्षित होता है।

केतु-शनि से युति – आत्महत्या करना तथा आतंकवादी प्रवृति बनाना। अगर बृहस्पति की दृष्टि हो तो अच्छा योगी होता है।

केतु-गुरू से युति – परंपरा विरोधी बनाता है। यह योग किसी शुभ भाव में हो तो जातक ज्योतिष शास्त्र में रुचि रखता है।

केतु-मंगल से युति – जातक को हिंसक बना देता है।

केतु-सूर्य – व्यवसाय, पिता की सेहत, मान-प्रतिष्ठा, आयु, सुख आदि पर बुरा प्रभाव डालता है।

केतु-चन्द्रमा से युति – जातक मानसिक रोग, वातरोग, पागलपन आदि का शिकार होता है।

विभिन्न भावों में राहु-केतु का प्रभाव-

यदि लग्न में राहू और ७वें भाव में केतू हो तो राहु जातक को जीवन भर किसी ना किसी प्रकार का मानसिक कष्ट बना रहता है और केतु के कारन जातक अपने जीवन साथी को धोखा देने का प्रयास कर सकता है।

यदि २ भाव में राहू हो और ८वें भाव में केतू हो तो राहु के कारन जातक की मृत्यु और धन हानी जीवन में अचानक होती है और केतु के कारन जातक को मरने के बाद शांति मिलती है तथा जीवन में एक से अधिक बार धन लाभ होता है।

यदि ३ भाव में राहू और ९वें भाव में केतू हो तो जातक को ४० से ४२ साल की उम्र तक खूब परिश्रम करने के बाद ही जीवन यापन हो पाता है उसके बाद सफलताएं मिलने लगती है।

यदि ४ भाव में राहू और १०वें भाव में केतू हो तो जातक निश्चित ही राजनीती में प्रवेश करेगा और सफलता प्राप्त करेगा किन्तु फिर अचानक ही पतन होने लगेगा।

यदि ५ भाव में राहू तथा केतु ११वें भाव में हो तो राहु के कारन जातक को बड़ी संतान से विशेष कष्ट होगा, साथ ही आय प्राप्ति में भी बाधाओं का सामना करना पड़ता है और केतु के कारन जातक अपनी प्रेमिका को धोखा देता है या धोखे का शिकार हो जाता है (ये जरूरी नहीं कि धोखा देने वाली प्रेमिका ही हो किसी से भी धोखे का शिकार होना पड़ता है)।

यदि ६वें स्थान में राहु और १२वें में केतु हो तो राहु के कारन जातक शत्रुओ को नष्ट कर देता है। छठे भाव का राहु मनुष्य का बल बुद्धि पराक्रम और अन्तःकरण स्थिर रहता है। ऐसे जातक को अपने चाचा मामा आदि से सुख की प्राप्ति नहीं होती है और केतु के कारन जातक उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की मिजाज होता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घायु तथा शत्रुओ पर विजय पाने वाला होता है। जातक परस्त्रीगामी होता है। इन्हे अपने जीवन काल में मुकदमों का सामना करना पड़ता है। शत्रु निरंतर इसके विरूद्ध षड्यंत्र करते ही रहते हैं।

यदि ७ भाव में राहू तथा लग्न में केतू हो तो राहु के कारन जातक मतिभृम का शिकार होता है तथा अपनी उम्र से बड़ी अथवा अपने समाज से अलग स्त्रियों का दीवाना होता है तथा उसका दाम्पत्य जीवन शर्मनाक हो सकता है और केतकेतु के कारन सदा ही किसी ना किसी प्रकार मानसिक कष्ट बना रहता है।

यदि राहू ८ भाव में तथा केतु धन भाव में हो तो राहु के कारन जातक को अचानक धन लाभ होता है, किन्तु इस धन से जातक सुख शान्ति से दूर होता चला जाता है , साथ ही अचानक स्वास्थ संबंधित समस्याओं के कारण मृत्यु तुल्य कष्ट भोगने के लिए मज़बूर रहता है। यदि किसी स्त्री की कुंडली में ८वें भाव में राहू हो तो उस स्त्री का विवाह बहुत सोच समझकर करना चाहिए, इस राहू के कारण जातिका के पति को शादी के पश्चात् अचानक स्वास्थ संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है या मृत्यु तुल्य कष्ट भोगने के लिए मज़बूर होना पड़ता है और केतु के कारन जातक राजभीरू, विरोधी होता है।

यदि ९ भाव में राहू तथा सहज भाव में केतु हो तो राहु के कारन जातक दुःसाहसी होता है जिससे वह सदा ही अनावश्यक मुसीबतों में फंसता रहता है। इस जातक का भग्योदय ३६ से ४२ वर्ष की आयु में होता है और केतु के कारन जातक चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी होता है।

यदि १०वें भाव में राहु और सुख भाव में केतु हो तो राहु के कारन जातक समाज में किसी न किसी रूप में जाना जाता है। ऐसा जातक राजनीति में माहिर होता है और केतु के कारन जातक चंचल, वाचाल, निरुत्साही होता है।

यदि ११वें भाव में राहु और ५वें भाव में केतु हो तो राहु के कारन जातक अपने भाई बहनो में या तो बड़ा या सबसे छोटा होता है। जिस मनुष्य के लाभ स्थान में राहु है तो वैसे जातक को धन की कमी नही होती है। वह अभिमानी तथा सेवको को साथ लेकर चलने वाला होता है। उसे एक पुत्र संतति अवश्य होता है। उसे राजाओ से मान और सुख प्राप्त होता है। इस स्थान में राहु मनुष्य को बहुत बड़ा आदमी नही बनने देता है। ऐसा जातक अपने इन्द्रियों को दमन करने वाला होता है और केतु के कारन जातक कुबुद्धि एवं वात रोगी होता है।

यदि १२वें भाव में राहु और ६वें स्थान में केतु हो तो राहु के कारन जातक जितना भी काम करेगा उसे उतना नहीं मिलता है बल्कि उसके काम बिगड़ते रहते है। उसे नेत्र रोग तथा पैर में जख्म जरूर होता है। ऐसा मनुष्य झगड़ा करने वाला तथा इधर उधर घूमने वाला होता है। यह व्यक्ति अपने पैतृक निवास को छोड़कर अन्यत्र रहता है। इसे देर रात तक नींद नही आती है और केतु के कारन जातक वात विकारी, झगड़ालु, मितव्ययी होता है।

जिस भाव में केतू किसी स्वग्रही ग्रह के साथ बैठता है उसके अच्छे या बुरे फल को चार गुना बड़ा देता है , जैसे-यदि 2 रे भाव में कोई स्वग्रही ग्रह है और उसके साथ केतू होगा तो जातक बड़ा परिवार वाला और बड़ा धनवान होगा।

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: नवग्रह दोष और उनके अचूक उपाय :

ज्योतिष की मानें तो हर कोई किसी न किसी ग्रह दोष से ग्रस्त रहता है. कई बार उसे पता नहीं चलता कि किस वजह से उसकी जिंदगी में तूफान थमने का नाम नहीं ले रही. किस वजह से जीना मुहाल हो रहा है. तो क्या हैं नवग्रह दोष के लक्षण और उससे निजात पाने के उपाय. अगर बिना बात घर में कलह क्लेश हो, हर काम बनते-बनते बिगड़ जाते हैं, शत्रु अकारण परेशान कर रहे हों, सेहत नहीं दे रही साथ, मान सम्मान का हो रहा हो नाश, बच्चे की बुद्धि का नहीं हो रहा विकास तो आप नवग्रह दोषों से ग्रस्त हैं. फिर तो आप जान लीजिए वो 9 उपाय जो खत्म करेगा 9 ग्रहों के दोष. आपको आज हम यह उपाय बता रहे हैं यदि अपको किसी भी प्रकार की अधिक समस्या है तो आप हमसे इस पेज एस्ट्रो पंडित वी एम के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं।

सूर्य दोष के लक्षण :

असाध्य रोगों के कारण परेशानी, सिरदर्द, बुखार, नेत्र संबंधी कष्ट, सरकार के कर विभाग से परेशानी, नौकरी में बाधा ।

उपाय :

भगवान विष्णु की आराधना करें [ ऊं नमो भगवते नारायणाय ] मंत्र का 1 माला लाल चंदन की माला से जाप करें गुड़ खाकर पानी पीकर कार्य आरंभ करें बहते जल में 250 ग्राम गुड़ प्रवाहित करें सवा पांच रत्ती का माणिक तांबे की अंगूठी में बनवायें रविवार को सूर्योंदय के समय दाएं हाथ की मध्यमा अंगूली में धारण करें मकान के दक्षिण दिशा के कमरे में अंधेरा रखें पशु-पक्षियों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करें घर में मां, दादी का आशीर्वाद जरूर लें।

चंद्रमा दोष के लक्षण :

जुखाम, पेट की बीमारियों से परेशानी, घर में असमय पशुओं की मत्यु की आशंका, अकारण शत्रुओं का बढ़ना, धन का हानि
उपाय:- भगवान शिव की आराधना करें [ ऊं नम: शिवाय ] मंत्र का रूद्राक्ष की माला से 11 माला जाप करें बड़े बुजुर्गों, ब्रह्मणों, गुरूओं का आशीर्वाद लें सोमवार को सफेद कपड़े में मिश्री बांधकर जल में प्रवाहित करें चांदी की अंगूठी में चार रत्ती का मोती सोमवार को जाएं हाथ अनामिका में धारण करें शीशे की गिलास में दूध, पानी पीने से परेहज करें 28 वर्ष के बाद विवाह का निर्णय लें लाल रंग का रूमाल हमेशा जेब में रखें माता-पिता की सेवा से विशेष लाभ।

मंगल दोष के लक्षण :

घर में चोरी होने का डर, घर-परिवार में लड़ाई-झगड़े की आशंका, भाई के साथ संबंधों में अनबन, दांपत्य जीवन में तनाव, अकाल मृत्यु की आशंका।

उपाय :

भगवान हनुमान की आराधना करें [ ऊं हं हनुमते रूद्रात्मकाय हुं फट कपिभ्यो नम: ] का 1 माला जाप करें हनुमान चालीसा या बजरंगबाण का रोज पाठ करें त्रिधातु की अंगुठी बाएं हाथ की अनामिका अंगूली में धारण करें 400 ग्राम चावल दूध से धोकर 14 दिन तक पिवत्र जल में प्रवाहित करें घर में नीम का पौधा लगायें बहन, बेटी, मौसी, बुआ, साली को मीठा खिलायें बहन, बुआ को कपड़े भेंट न दें तंदूर की बनी रोटी कुत्तों को खिलायें।

बुध दोष के लक्षण :

स्वभाव में चिड़चिड़ापन, जुए-सट्टे के कारण धन की बड़ी हानि, दांत से जुड़े रोगों के कारण परेशानी सिर दर्द. अधिक तनाव की स्थिति।

उपाय :

मां दुर्गा की आराधना करें ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मंत्र का 5 माला जाप करें देवी के सामने अखंड घी का दीया जलायें घर की पूर्व दिशा में लाल झंडा लगायें सोने के आभूषण धारण करें, हरे रंग से परहेज करें खाली बर्तनों को ढ़ककर न रखें चौड़े पत्ते वाले पौधे घर में लगायें, मुख्य द्वार पंचपल्लव का तोरण लगायें 100 ग्रíम चावल, चने की दाल बहते जल में प्रवाहित करें।

गुरू दोष के लक्षण :

सोने की हानि, चोरी की आशंका उच्च शिक्षा की राह में बाधाएं झूठे आरोप के कारण मान-सम्मान में कमी पिता को हानि होने की आशंका।

उपाय :

परमपिता ब्रह्मा की आराधना करें बहते पानी में बादाम, तेल, नारियल प्रवाहित करें माथे पर केसर का तिलक लगायें सोने की अंगूठी में सवा पांच रत्ती का पुखराज गुरूवार को दाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें पूजा स्थल की नियमित रूप से सफाई करें पीपल के पेड़ पर 7 बार पीला धागा लेपटकर जल दें 600 ग्राम पीले चने मंदिर में दान दें जुए-सट्टे की लत न पालें, मांसाहार-मद्यपान से परहेज करें कारोबार में भाई का साथ लाभकारी संबंध मधुर बनायें रखें।

शुक्र दोष के लक्षण :

बिना किसी बीमारी के अंगूठे, त्वचा संबंधी रोगों से परेशानी, राजनीति के क्षेत्र में हानि, प्रेम व दापंत्य संबंधों में अलगाव जीवनसाथी के स्वास्थ्य को लेकर तनाव।

उपाय :

मां लक्ष्मी की आराधना करें. [ ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसिद प्रसिद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम: ] रोज रात में मंत्र का 1 माला जाप करें मां लक्ष्मी को कमल के पुष्पों की माला चढ़ायें मंदिर में आरती पूजा के लिए गाय का घी दान करें 2 किलो आलू में हल्दी या केसर लगाकर गाय को खिलायें चांदी या मिटटी के बर्तन में शहद भरकर घर की छत पर दबा दें आडू की गुटली में सूरमा भरकर घास वाले स्थान पर दबा दें शुक्रवार के दिन मंदिर में कांसे के बर्तन का दान करें लाल रंग के गाय की सेवा करें, 800 ग्राम जिमीकंद मंदिर में दान करें।

शनि दोष के लक्षण :

पैतृक संपत्ति की हानि, हमेशा बीमारी से परेशानी मुकदमे के कारण परेशानी बनते हुए काम का बिगड़ जाना।

उपाय :

भगवान भैरव की आराधना करें [ ऊं प्रां प्रीं प्रौं शं शनिश्चराय नम: ] मंत्र का 1 माला जाप करें शनिदेव का 1 किलो सरसों के तेल से अभिषेक करें सिर पर काला तेल लगाने से परहेज करें 43 दिन तक लगातार. शनि मंदिर में जाकर नीले पुष्प चढ़ायें कौवे या सांप को दूध, चावल खिलायें किसी बर्तन में तेल भरकर अपना चेहरा देखें, बर्तन को जमीन में दबा दें शनिवार 800 ग्राम दूध, उड़द जल में प्रवाहित करें जल में दूध मिलाकर लकड़ी या पत्थर पर बैठकर स्नान करें घर की छत पर साफ-सफाई का ध्यान रखें 12 नेत्रहीन लोगों को भोजन करायें।

राहु दोष के लक्षण :

मोटापेके कारण परेशानी अचानक दुर्घटना, लड़ाई-झगड़े की आशंका हर तरह के व्यापार में घाटा।

उपाय :

मां सरस्वती की आराधना करें [ ऊं ऐं सरस्वत्यै नम: ] मंत्र का 1 माला जाप करें तांबेके बर्तन में गुड़, गेहूं भरकर बहते जल में प्रवाहित करें माता से संबंध मधुर रखें 400 ग्राम धनिया, बादाम जल में प्रवाहित करें घर की दहलीज के नीचे चांदी का पत्ता लगायें सीढ़ियों के नीचे रसोईघर का निर्माण न करवायें रात में पत्नी के सिर के नीचे 5 मूली रखें, सुबह मंदिर में दान कर दें मां सरस्वती के चरणों में लगातार 6 दिन तक नीले पुष्प की माला चढ़ायें चांदी की गोली हमेशा जेब में रखें लहसुन, प्याज, मसूर के सेवन से परहेज करें।

केतु दोष के लक्षण :

बुरी संगत के कारण धन का हानि जोड़ों के दर्द से परेशानी संतान का भाग्योदय न होना, स्वास्थ्य के कारण तनाव।

उपाय :

भगवान गणेश की आराधना करें [ ऊं गं गणपतये नम:] मंत्र का 1 माला जाप करें गणेश अथर्व शीर्ष का पाठ करें कुंवारी कन्याओं का पूजन करें, पत्नी का अपमान न करें घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ तांबे की कील लगायें पीले कपड़े में सोना, गेहूं बांधकर कुल पुरोहित को दान करें दूध, चावल, मसूर की दाल का दान करें बाएं हाथ की अंगुली में सोना पहनने से लाभ 43 दिन तक मंदिर में लगातार केला दान करें काले व सफेद तिल बहते जल में प्रवाहित करें.आजतक ब्यूरो।

राहु की महादशा में नवग्रहों की अंतर्दशाओं का फल एवं उपाय अशोक शर्मा राहु मूलतः छाया ग्रह है, फिर भी उसे एक पूर्ण ग्रह के समान ही माना जाता है। यह आद्र्रा, स्वाति एवं शतभिषा नक्षत्र का स्वामी है। राहु की दृष्टि कुंडली के पंचम, सप्तम और नवम भाव पर पड़ती है। जिन भावों पर राहु की दृष्टि का प्रभाव पड़ता है, वे राहु की महादशा में अवश्य प्रभावित होते हैं। राहु की महादशा 18 वर्ष की होती है।

राहु में राहु की अंतर्दशा का काल 2 वर्ष 8 माह और 12 दिन का होता है। इस अवधि में राहु से प्रभावित जातक को अपमान और बदनामी का सामना करना पड़ सकता है। विष और जल के कारण पीड़ा हो सकती है। विषाक्त भोजन, से स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। इसके अतिरिक्त अपच, सर्पदंश, परस्त्री या पर पुरुष गमन की आशंका भी इस अवधि में बनी रहती है। अशुभ राहु की इस अवधि में जातक के किसी प्रिय से वियोग, समाज में अपयश, निंदा आदि की संभावना भी रहती है। किसी दुष्ट व्यक्ति के कारण उस परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है।

उपाय :

भगवान शिव के रौद्र अवतार भगवान भैरव के मंदिर में रविवार को शराब चढ़ाएं और तेल का दीपक जलाएं। शराब का सेवन कतई न करें। लावारिस शव के दाह-संस्कार के लिए शमशान में लकड़िया दान करें। अप्रिय वचनों का प्रयोग न करें।

राहु में बृहस्पति :

राहु की महादशा में गुरु की अंतर्दशा की यह अवधि दो वर्ष चार माह और 24 दिन की होती है। राक्षस प्रवृत्ति के ग्रह राहु और देवताओं के गुरु बृहस्पति का यह संयोग सुखदायी होता है। जातक के मन में श्रेष्ठ विचारों का संचार होता है और उसका शरीर स्वस्थ रहता है। धार्मिक कार्यों में उसका मन लगता है। यदि कुंडली में गुरु अशुभ प्रभाव में हो, राहु के साथ या उसकी दृष्टि में हो तो उक्त फल का अभाव रहता है।

उपाय :

किसी अपंग छात्र की पढ़ाई या इलाज में सहायता करें। शैक्षणिक संस्था के शौचालयों की सफाई की व्यवस्था कराएं। शिव मंदिर में नित्य झाड़ू लगाएं। पीले रंग के फूलों से शिव पूजन करें।

राहु में शनि :

राहु में शनि की अंतदर्शा का काल 2 वर्ष 10 माह और 6 दिन का होता है। इस अवधि में परिवार में कलह की स्थिति बनती है। तलाक भाई, बहन और संतान से अनबन, नौकरी में या अधीनस्थ नौकर से संकट की संभावना रहती है। शरीर में अचानक चोट या दुर्घटना के दुर्योग, कुसंगति आदि की संभावना भी रहती है। साथ ही वात और पित्त जनित रोग भी हो सकता है। दो अशुभ ग्रहों की दशा-अंतर्दशा कष्ट कारक हो सकती है।

उपाय :

भगवान शिव की शमी के पत्रों से पूजा और शिव सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र के जप स्वयं, अथवा किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से कराएं। जप के पश्चात् दशांश हवन कराएं जिसमें जायफल की आहुतियां अवश्य दें। नवचंडी का पूर्ण अनुष्ठान करते हुए पाठ एवं हवन कराएं। काले तिल से शिव का पूजन करें।

राहु में बुध:

राहु की महादशा में बुध की अंतर्दशा की अवधि 2 वर्ष 3 माह और 6 दिन की होती है। इस समय धन और पुत्र की प्राप्ति के योग बनते हैं। राहु और बुध की मित्रता के कारण मित्रों का सहयोग प्राप्त होता है। साथ ही कार्य कौशल और चतुराई में वृद्धि होती है। व्यापार का विस्तार होता है और मान, सम्मान यश और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

उपाय :

भगवान गणेश को शतनाम सहित दूर्वाकुंर चढ़ाते रहें। हाथी को हरे पत्ते, नारियल गोले या गुड़ खिलाएं। कोढ़ी, रोगी और अपंग को खाना खिलाएं। पक्षी को हरी मूंग खिलाएं।

राहु में केतु :

राहु की महादशा में केतु की यह अवधि शुभ फल नहीं देती है। एक वर्ष और 18 दिन की इस अवधि के दौरान जातक को सिर में रोग, ज्वर, शत्रुओं से परेशानी, शस्त्रों से घात, अग्नि से हानि, शारीरिक पीड़ा आदि का सामना करना पड़ता है। रिश्तेदारों और मित्रों से परेशानियां व परिवार में क्लेश भी हो सकता है।

उपाय :

भैरवजी के मंदिर में ध्वजा चढ़ाएं। कुत्तों को रोटी, ब्रेड या बिस्कुट खिलाएं। कौओं को खीर-पूरी खिलाएं। घर या मंदिर में गुग्गुल का धूप करें।

राहु में शुक्र :

राहु की महादशा में शुक्र की प्रत्यंतर दशा पूरे तीन वर्ष चलती है। इस अवधि में शुभ स्थिति में दाम्पत्य जीवन में सुख मिलता है। वाहन और भूमि की प्राप्ति तथा भोग-विलास के योग बनते हैं। यदि शुक्र और राहु शुभ नहीं हों तो शीत संबंधित रोग, बदनामी और विरोध का सामना करना पड़ सकता है।

उपाय :

सांड को गुड़ या घास खिलाएं। शिव मंदिर में स्थित नंदी की पूजा करें और वस्त्र आदि दें। एकाक्षी श्रीफल की स्थापना कर पूजा करें। स्फटिक की माला धारण करें।

राहु में सूर्य :

राहु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा की अवधि 10 माह और 24 दिन की होती है, जो अन्य ग्रहों की तुलना में सर्वाधिक कम है। इस अवधि में शत्रुओं से संकट, शस्त्र से घात, अग्नि और विष से हानि, आंखों में रोग, राज्य या शासन से भय, परिवार में कलह आदि हो सकते हैं। सामान्यतः यह समय अशुभ प्रभाव देने वाला ही होता है।

उपाय :

इस अवधि में सूर्य को अघ्र्य दें। उनका पूजन एवं उनके मंत्र का नित्य जप करें। हरिवंश पुराण का पाठ या श्रवण करते रहें। चाक्षुषोपनिषद् का पाठ करें। सूअर को मसूर की दाल खिलाएं।
राहु में चंद्र: एक वर्ष 6 माह की इस अवधि में जातक को असीम मानसिक कष्ट होता है। इस अवधि में जीवन साथी से अनबन, तलाक या मृत्यु भी हो सकती है। लोगों से मतांतर, आकस्मिक संकट एवं जल जनित पीड़ा की संभावना भी रहती है। इसके अतिरिक्त पशु या कृषि की हानि, धन का नाश, संतान को कष्ट और मृत्युतुल्य पीड़ा भी हो सकती है।

उपाय :

राहु और चंद्र की दशा में उत्पन्न होने वाली विषम परिस्थितियों से बचने के लिए माता की सेवा करें। माता की उम्र वाली महिलाओं का सम्मान और सेवा करें। प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का शुद्ध दूध से अभिषेक करें। चांदी की प्रतिमा या कोई अन्य वस्तु मौसी, बुआ या बड़ी बहन को भेंट करें। राहु में मंगल: राहु की महादशा में मंगल की अंतर्दशा का यह समय एक वर्ष 18 दिन का होता है। इस काल में शासन व अग्नि से भय, चोरी, अस्त्र शस्त्र से चोट, शारीरिक पीड़ा, गंभीर रोग, नेत्रों को पीड़ा आदि हो सकते हंै। इस अवधि में पद एवं स्थान परिवर्तन तथा भाई को या भाई से पीड़ा की संभावना भी रहती है।

आप सभी पर भगवान शिव की कृपा सदैव बनी रहे। तथा ईश्वर की कृपा से आप सभी इन बाधाओं से दूर और सुरक्षित रहें

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