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कुण्डली मिलान

वर्ण मिलान

कुण्डली मिलान मे प्रथम कूट मिलान है वर्ण मिलान । वर्ण का साधरण अर्थ कास्ट। वर्ण को चार भावों मे विभाजित किया गया है जो इस प्रकार है
1) ब्राह्मण 2) क्षत्रिय 3) वैश्य 4) शुद्र

1) ब्राह्मण वर्ण – चंद्रमा जब जलीय राशी मे हो तो जातक को ब्राह्मण वर्ण माना जाता है। जलीय राशी तीन है कर्क राशि , वृश्चिक राशी, मीन राशि। जब जन्म समय चंद्रमा जलीय राशी मे हो तो ऐसा माना जाता है कि जातक भावुक और आध्यात्मिक होता है।जातक भावनात्मक रुप से काफी सक्रिय होते है।

2)क्षत्रिय वर्ण– चंद्रमा जब अग्नि प्रकृति वाले राशी मे हो तो तो जातक को क्षत्रिय वर्ण माना जाता है। अग्नि प्रकृति के राशी है मेष, सिंह और धनु राशी। जब चंद्रमा अग्नि प्रकृति के राशी मे हो तो जातक मानसिक रुप से उग्र प्रकृति के होते है। जातक मन से आक्रामक व्यवहार वाले होते है।

3) वैश्य वर्ण – चंद्रमा जब भू तत्व वाली राशी मे हो तो जातक को वैश्य माना जाता है। भू तत्व वाले राशी है वृष, कन्या , मकर । जब चंद्रमा भू तत्व वाली राशी मे हो तो व्यावहारिक जातक का संकेत मिलता है। वे लोग किसी कार्य को करने से पहले जो लाभ और हानि के बारे में सोचते है।साथ ही वे कुछ अड़ियल प्रवृति के होते है ।

4)शुद्र वर्ण – जब चंद्रमा जन्म समय वायु तत्व वाली राशी मे हो तो जातक को शुद्र वर्ण का माना जाता है। वायु तत्व की राशी है मिथुन , तुला, कुंभ राशी । जब चंद्रमा वायु तत्व वाली राशी मे हो तो जातक का मन वायु की तरह अस्थिर होता है। जातक मिलनसार होते है पर उनका व्यवहार अनिश्चित होता है।

कुण्डली वर्ण मिलान विधी –
अष्टकूट मिलान मे कुल अंक 36 होते है । वर्ण मिलान को 1 अंक आंवटित किया गया है ।

1) अगर जातक ब्राह्मण वर्ण का हो तो वर्ण मिलान इस प्रकार होता है

क) जातिका भी ब्राह्मण हो तो १ अंक
ख) जातिका क्षत्रिय हो तो १ अंक
ग) जातिका वैश्य वर्ण हो तो १ अंक
घ) जातिका शुद्र वर्ण हो तो १ अंक

2) अगर जातक क्षत्रिय वर्ण का हो तो वर्ण मिलान इस प्रकार होता है
क) जातिका ब्राह्मण वर्ण की हो तो ० अंक
ख) जातिका क्षत्रिय वर्ण की हो तो १ अंक
ग) जातिका वैश्य वर्ण की हो तो १ अंक
घ) जातिका शुद्र वर्ण की हो तो १ अंक

3) अगर जातक वैश्य वर्ण का हो तो वर्ण मिलान इस प्रकार होता है
क) जातिका ब्राह्मण वर्ण की हो तो ० अंक
ख) जातिका क्षत्रिय वर्ण की हो तो ०अंक
ग) जातिका वैश्य वर्ण की हो तो १ अंक
घ) जातिका शुद्र वर्ण की हो तो १ अंक

4)अगर जातक शुद्र वर्ण का हो तो वर्ण मिलान इस प्रकार होता है
क) जातिका ब्राह्मण वर्ण की हो तो ० अंक
ख) जातिका क्षत्रिय वर्ण की हो तो ०अंक
ग) जातिका वैश्य वर्ण की हो तो ० अंक
घ) जातिका शुद्र वर्ण की हो तो १ अंक


वर्गोत्तम ग्रह परिचय
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नवग्रहों में कोई भी ग्रह जब वर्गोत्तम होता है तब उस ग्रह की ताकत और शुभता में कही ज्यादा वृद्धि हो जाती है।वर्गोत्तम ग्रह उच्च ग्रह के समान बली और योगकारी ग्रह के समान शुभ होता है।कोई भी ग्रह जब लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में एक ही राशि में होता है मतलब जिस राशि में वह ग्रह लग्न कुंडली में है उसी राशि में नवमांश कुंडली में भी हो तब ऐसा ग्रह वर्गोत्तम ग्रह कहलाता है।वर्गोत्तम का मतलब होता है राशि और उत्तम का मतलब होता है वह ग्रह अपनी राशि अनुसार सामान्य स्थिति से अच्छा हो गया है।जो ग्रह अपनी जितनी अधिक बली राशि में वर्गोत्तम होगा उतना ही श्रेष्ठ फल देता है।वर्गोत्तम ग्रह के साथ कोई अन्य ग्रह साथ होने पर उस ग्रह को भी वर्गोत्तम ग्रह के बल और शुभता है थोडा बल और शुभता मिलती है।लग्न कुंडली और नवमांश वर्ग कुंडली के आलावा अन्य वर्ग कुंडलियो में भी ग्रह उसी राशि में होने पर श्रेष्ठवर्गोत्तम ग्रह की श्रेणी प्राप्त कर लेता है जितने ज्यादा से ज्यादा वर्ग चार्टों में ग्रह एक ही राशि में होगा वह् ग्रह उतना ही ज्यादा श्रेष्ठ फल देने वाला बन जाता है।वर्गोत्तम ग्रह लग्न कुंडली के अनुसार योगकारक होने पर बहुत श्रेष्ठ बन जाता है।वर्गोत्तम ग्रह की यह मुख खासियत होती है कि वह अपने कारक मतलब जिन चीजो का वह ग्रह कारक होता है उनके फलो में वृद्धि कर देता है।जैसे सूर्य मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, पिता सुख, सरकारी छेत्र से लाभ आदि का कारक है वर्गोत्तम होने पर सूर्य अपनी इन कारक सम्बंधित फलो में वृद्धि कर देता इसी तरह अन्य ग्रह भी वर्गोत्तम होने पर अपने कारक संबंधी विषयो में अधिक वृद्धि करेंगे।वर्गोत्तम ग्रह जिस भाव का स्वामी होता है उससे सम्बंधित भी श्रेष्ठ फल देता है।
जब कोई ग्रह अथवा लग्न दो वर्गो मे वर्गोत्तम होता हैं उसे पारिजातांश कहते हैं इसी प्रकार 3 वर्गो मे उत्तमांश,4 वर्गो मे गोपुरांश,5 वर्गो मे सिंहासनांश,6वर्गो मे पर्वतांश,7 वर्गो मे देवलोकांश,8 वर्गो मे ब्रह्मलोकांश,9 वर्गो मे एरावतांश,तथा 10 वर्गो मे गया ग्रह श्रीधामांश कहलाता हैं।

मेष राशि के अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण (0-3’20)का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं।

वृष राशि के रोहिणी नक्षत्र के दूसरे चरण (13’20-16’40) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं।

मिथुन राशि के पुनर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण (26’40-30’00) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं।

कर्क राशि के पुनर्वसु नक्षत्र के प्रथम चरण (00-3’20)का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं।

सिंह राशि के पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र के प्रथम चरण (13’20-16’40) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं।

कन्या राशि के चित्रा नक्षत्र के दूसरे चरण (26’40-30’00) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं।

तुला राशि के चित्रा नक्षत्र के तीसरे चरण (00-3’20)का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं।

वृश्चिक राशि के अनुराधा नक्षत्र के चतुर्थ चरण (13’20-16’40) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं।

धनु राशि के उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के प्रथम चरण (26’40-30’00) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं।

मकर राशि के उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के दूसरे चरण (00-3’20) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं।

कुम्भ राशि के शतभीषा नक्षत्र के तीसरे चरण (13’20-16’40) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं।

मीन राशि के रेवती नक्षत्र के अंतिम चरण (26’40-30’00) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं।

यहाँ ध्यान दे की नक्षत्र राशि मे गए ग्रह के अंशो के अनुसार लिए गए हैं। मेष व तुला राशि मे 0’0 से 2’00 अंश तक गया कोई भी ग्रह 10 मे से 10 वर्गो मे वर्गोत्तम हो जाएगा।


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