Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

पितृदोष के संकेत और सरल उपाय ======

1.घर के सभी सदस्य आपस में झगड़ते हैं।

2.सभी तरह से सम्पनता के बावजूद कष्ट मिलना।

3.मेहमान घर से कभी संतुष्ट होकर नहीं जाते हैं।

4.परिवार के मुखिया का बार बार बीमार होना

5.संतान होने में दिक्कत या संतान से सम्बन्ध ख़राब होना।

6.पेड़ पौधा घर में सुख जाना या उसका विकास नहीं होना।

7.सारी सम्पनता के बाबजूद विवाह होने में दिक्कत होना या उसका सुख नहीं मिलना।

8.परिवार धीरे धीरे छोटा होना।

9.कारोबार या नौकरी में योग्यता के वाबजूद उसका रिजल्ट नहीं मिलना।

10.घर में असमय किसी का मृत्यु होना या दुर्घटना होना ।

अगर आपके साथ ये सब समस्या हैं तो किसी योग्य ज्ञानी से अपने कुंडली को दिखवाये और उनसे कहे उपाय कुछ वर्षो तक करें तब ही पितृदोष खत्म होगा वैसे में दोष को दूर करने का साधारण उपाय आपको बताता हूँ ••••••••••••••••••••

1अमावस्या को घर के आंगन में ईशान कोण में घी का दीपक जलावे शाम को 6:00 से 8:00 बजे के बीच में••••••••••••••••••

2.. जब भी घर में कोई श्राद्ध हो तब तर्पण जरूर करवाएं••••••••••••••••••

3.. अमावस्या को गौ सेवा जरूर करे•••••••••••

.4 दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके प्रार्थना करें नित्य स्नान के बाद प्रार्थना हे पितृ देवता मुझे क्षमा करें।

●● विशेष ●● प्रत्येक अमावस्या को, घर मे खीर बनायें : गाय की पहली रोटी को छोड़कर, दूसरी या तीसरी रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े कर, अच्छी तरह से, खीर मे मिला दें, इसके बाद पितरो को भोग लगाकर, कौओं को खिलाये, सकारात्मक परिणाम मिलेंगे,
: शनि महादशा में विभिन्न अन्तर्दशा के फल–

ज्योतिष में माना जाता है कि पूर्व जन्म के पाप-पुण्य का फल वर्तमान के ग्रहों की दशादि से प्रकट होता है। एेसे में अनिष्ट को रोकने एवं अच्छे फल के लिए दशाभुक्ति का ज्ञान होना जरूरी है। ज्योतिष ग्रन्थ जातक पारिजात के अनुसार किसी व्यक्ति के जीवन में मिलने वाले फल दशाआें से उसी प्रकार निर्धारित होते हैं, जैसे वर्ण व्यवस्था में भोग व्यवस्था होती है। ज्योतिष ग्रन्थ सारावली के अनुसार सभी ग्रह अपनी दशा मे अपने गुण-दोष के आधार पर शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं। ऐसे में पापग्रह माने जाने वाले शनि की दशाआें का विवेचन ज्योतिषियों ने गहन शोध एवं अनुभव के आधार पर किया है। एेसा इसलिए कि शनि अनुकूल होने पर सुख की झडी लगा देता है, तो प्रतिकूल होने पर भयंकर कष्ट देता है।

शनि की साढेसाती, ढैैैैया, कंटक, महादशा, अंतर्दशा और यहां तक कि प्रत्यंतर्दशा भी घातक होती है। शनि के प्रकोप से ही राजा विक्रमादित्य को भयंकर कष्ट भोगने पडे। भगवान राम को वनवास भोगना पडा। वैसे, शनि को न्याय का देवता कहा जाता है। अत: इसकी दशा इत्यादि में अच्छे ज्योतिष से परामर्श लेकर उचित उपाय किए जाएं तो शनिदेव का कोप कुछ शांत भी किया जा सकता है।

शनि की महादशा के अन्तर्गत शनि, बुध, केतु, शुक्र, सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, राहु एवं बृहस्पति की अन्तर्दशाएं आती हैं। देखते हैं इन अन्तर्दशाआें के परिणाम-

शनि में शनि की अन्तर्दशा – शनि महादशा में शनि की अन्तर्दशा में जातक पर दु:खों यानी कष्टों का पहाड टूट पडता है। उसको बार-बार अनादर यानी अपमान का सामना करना पडता है। वह समाज विरोधी और घूमंतु हो जाता है। उसके कारण पत्नी-पुत्र दु:खी होते हैं। जातक लंबी बीमारियों से भी परेशान रहता है।

शनि में बुध की अन्तर्दशा – शनि महादशा में जब बुध क अन्तर्दशा आती है, तब जातक के भाग्य मेें वृद्धि होती है। सुख-संपत्ति और सम्मान में बढोतरी होती है। वह आनंद का अनुभव करता है। जातक सदाचार की ओर प्रवृत्त होता है। चित्तवृत्ति कोमल निर्मल हो जाती है।

शनि में केतु की अन्तर्दशा – शनि महादशा में केतु की अन्तर्दशा में पत्नी और सन्तान से वैचारिक मतभेद उभरते हैं। जातक के मन में भय बढता है। पित्त एवं वातजनित बीमारियों से वह परेशान रहता है। बुरे-बुरे सपने देखता है और अनिद्रा का शिकार होता है। यानी उसे पूरी नींद नहीं आती। रातभर बुरे भाव मन में आते रहते हैं और आशंकाएं उभरती रहती हैं।

शनि में शुक्र की अन्तर्दशा – शनि महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा में व्यक्ति के दु:खों का अंत होकर सुख मिलने लगता है। उसके संपर्क में उसके हित में सोचने वाले आते हैं। यश और सम्मान की प्राप्ति होती है। शत्रुआें का शमन होता है। पुत्र एवं कार्यक्षेत्र यानी प्रोफेशन एवं नौकरी से सुख प्राप्त होता है।

शनि में सूर्य की अन्तर्दशा – शनि महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा आने पर जातक को विभिन्न प्रकार के संकटों का सामना करता पडता है। पत्नी, पुत्र, सम्मान, यश, संपत्ति एवं आत्मविश्वास का नाश होता है। नेत्र एवं उदर रोग परेशान करते हैं। दरअसल, शनि और सूर्य घोर शत्रुु माने गए हैं। इसलिए शनि में सूर्य की अंतर्दशा कष्टकारी रहती है।

शनि में चन्द्रमा की अन्तर्दशा – शनि महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा में सुखों का क्षरण होता है यानी सुख में कमी आती है। जातक को पत्नी वियोग झेलना पड सकता है। आत्मीयजनों से संबंध विच्छेद की स्थितियां बनती हैं। व्यक्ति को वातजन्य बीमारी घेरती है। हालांकि धनागम होता है यानी पैसा आता है।

शनि में मंगल की अन्तर्दशा – शनि महादशा में मंगल की अन्तर्दशा जातक को स्थानांतरण करवाती है। दूसरे शब्दों में पत्नी, पुत्र, मित्र इत्यादि से दूर जाना पडता है। जातक भयभीत और आशंकति-सा रहता है। यश में कमी आती है।

शनि में राहु की अन्तर्दशा – शनि महादशा में राहु की अन्तर्दशा में स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होती है यानी यह अंतर्दशा रोग लाती है। सरकार और शत्रु से परेशानी होती है। संपत्ति एवं यश की हानि होती है। हर काम में बाधा आती है।

शनि में बृहस्पति की अन्तर्दशा -शनि महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा आमतौर पर श्रेष्ठ फल प्रदान करती है। जातक का गृहस्थी सुख बढता है। स्थाई संपत्ति में वृद्धि होती है। पदोन्नति होती है एवं सम्मानजनक पद की प्राप्ति होती है। इस दशा में जरूरत पडने पर जातक को सत्ता का संरक्षण भी मिलता है।जातक के मन में वरिष्ठजनों एवं धर्म के प्रति आदरभाव बढता है।वैसे, शनि महादशा मेें विभिन्न ग्रहों की अन्तर्दशाआें के उपरोक्त फल जन्मकुंडली मेें ग्रहाेें के पारस्परिक संबंधों पर निर्भर है।इसलिए जन्मकुंडली में यह देखकर ही फलादेश किया जाना चाहिए।

शनि के प्रकोप से बचने के उपाय :

शनि की साढे साती, ढैया, महादशा एवं अन्तर्दशा में शनि के प्रकोप से बचने के लिए कई उपाय किए जाते हैं। निम्नलिखित उपायों में से अपनी श्रद्धा एवं क्षमतानुसार कोई उपाय करके शनिदेव को शान्त करने का प्रयास किया जा सकता है :

1. किसी शु्क्ल पक्ष के शनिवार से शुरू कर वर्षभर हर शनिवार को बन्दरों और काले कुत्तों को लड्डू खिलाएं।

2. शनिवार को काली गाय के मस्तक पर रोली का तिलक लगा, सींगों पर मौळी बांधकर पूजन करने के बाद गाय की परिक्रमा कर उसे बूंदी के चार लड्डू खिलाएं।

3. हर शनिवार बन्दरों को मीठी खील, केला, काले चने एवं गुड खिलाएं।

4. हर शनिवार को काले कुत्ते को तेल से चुपडी रोटी मिठाई सहित खिलाएं।

5. शनिवार को व्रत रखें। नमक रहित भोजन से व्रत खोलें। सूर्यास्त के बाद हनुमान जी का पूजन दीपक में काले तिल डालकर तेल का दीपक प्रज्वलित करके करें।

6. शनिवार को पीपल के वृक्ष के चारों ओर सात बार परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत लपेटें। इस दौरान ॐ शं शनैश्चाराय नमः: मंंत्र का उच्चारण करते रहें।

7. शनिवार को कच्चे दूध में काले तिल डालकर शिवलिंग पर अभिषेक करें।

8. रोजाइन दसनामों का उच्चारण करना चाहिए-

कोणस्थ, पिंंगल, बभ्रु, कृष्ण:, रौद्रान्तक:, यम:, शौरि:, शनैश्चर:, मन्द:, पिप्पलादेव संस्तुत:।

9. सूर्यास्त के बाद पीपल के वृक्ष के नीचे ॐ शं शनैश्चाराय नमः:मंत्र का जप करते हुए सरसों के तेल में काले तिल डाल आटे का चौमुखा दीपक प्रज्वलित कर पीपल क सात परिक्रमा करें।

10. झूठ न बोलें, चरित्र सही रखें और मांस अाैैैर मदिरा का सेवन न करें।

11. मंगलवार का व्रत करें। प्रत्येक मंगलवार को हनुमान मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति के आगे के पैैैर पर लगेे सिंंदूर का तिलक कर 11 बार बजरंग बाण का पाठ करें।
उपाय काम क्यू नही करते।
क्यों की करने वाला इसे अलग अलग समय करता
बीच में एक आधे दिन का गैप भी हो जाता है
जो उपाय दिए होते है उनमें से सभी पूरे नहीं करता
उपाय केसे करे
लगातार कम से कम 2 महीने
एक निश्चित समय पर
सभी उपाय करने पर
जब आप उपाय करते है तो नेगेटिविटी देने वाले ग्रह व्यवधान उत्तपन कर सकते है लेकिन फिर भी आप को उपाय पूरे करने है
श्रद्धा रखे
ज्योतिष कोई चमत्कार नहीं है केवल रास्ता सही रास्ता दिखाने का कार्य करता है
आपका फायदा आपकी श्रद्धा विश्वास और भाव पर होता है बाकी फल देने वाला परमात्मा ही ही है हम केवल माध्यम है
[ काम वासना और ज्योतिष

मनुष्य में काम वासना एक जन्मजात प्रवृति और वह इससे आजीवन प्रभावित -संचालित होता है। किसी व्यक्ति में इस भावना का प्रतिशत कम हो सकता है किसी में ज्यादा हो सकता है । ज्योतिष के विश्लेषण के अनुसार यह पता लगाया जा सकता है की व्यक्ति में काम भावना किस रूप में विद्यमान है और वह उसका प्रयोग किन क्षत्रों में कितने अंशों में कर रहा है ।

  लग्न / लग्नेश 
~~~~~~~~~~
1👉  यदि लग्न और बारहवें भाव के स्वामी एक हो कर केंद्र /त्रिकोण में बैठ जाएँ या एक दूसरे से केंद्रवर्ती हो या आपस में स्थान परिवर्तन कर रहे हों तो पर्वत योग का निर्माण होता है । इस योग के चलते जहां व्यक्ति भाग्यशाली , विद्या -प्रिय ,कर्म शील , दानी , यशस्वी , घर जमीन का अधिपति होता है वहीं अत्यंत कामी और कभी कभी पर स्त्री गमन करने वाला भी होता है ।

2👉 यदि लग्नेश सप्तम स्थान पर हो ,तो ऐसे व्यक्ति की रूचि विपरीत सेक्स के प्रति अधिक होती है । उस व्यक्ति का पूरा चिंतन मनन ,विचार व्यवहार का केंद्र बिंदु उसका प्रिय ही होता है ।

3👉 यदि लग्नेश सप्तम स्थान पर हो और सप्तमेश लग्न में हो , तो जातक स्त्री और पुरुष दोनों में रूचि रखता है , उसे समय पर जैसा साथी मिल जाए वह अपनी भूख मिटा लेता है । यदि केवल सप्तमेश लग्न में स्थित हो तो जातक में काम वासना अधिक होती है तथा उसमें रतिक्रिया करते समय पशु प्रवृति उत्पन्न हो जाती है और वह निषिद्ध स्थानों को अपनी जिह्वा से चाटने लगता है ।

4👉 यदि लग्नेश ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो जातक अप्राकृतिक सेक्स और मैस्टरबेशन आदि प्रवृतियों से ग्रसित रहता है और ये क्रियाएँ उसे आनंद और तृप्ति प्रदान करती हैं ।

5👉 लग्न में शुक्र की युति 2 /7 /6 के स्वामी के साथ हो तो जातक का चरित्र संदिग्ध ही रहता है ।

6👉 मीन लग्न में सूर्य और शुक्र की युति लग्न/चतुर्थ भाव में हो या सूर्य शुक्र की युति सप्तम भाव में हो और अष्टम में पुरुष राशि हो तो स्त्री , स्त्री राशि होने पर पुरुष अपनी तरक्की या अपना कठिन कार्य हल करने के लिए अपने साथी के अतिरिक्त अन्य से सम्बन्ध स्थापित करते हैं ।

सप्तम भाव और तुला राशि 

1👉 सातवें भाव में मंगल , बुद्ध और शुक्र की युति हो इस युति पर कोई शुभ प्रभाव न हो और गुरु केंद्र में उपस्थित न हो तो जातक अपनी काम की पूर्ति अप्राकृतिक तरीकों से करता है ।

2👉 मंगल और शनि सप्तम स्थान पर स्थित हो तो जातक समलिंगी {होमसेक्सुअल } होता है , अकुलीन वर्ग की महिलाओं के संपर्क में रहता है । अष्टम /नवम /द्वादश भाव का मंगल भी अधिक काम वासना उत्पन्न करता है , ऐसा जातक गुरु पत्नी को भी नही छोड़ पाता है ।

3👉 तुला राशि में चन्द्रमा और शुक्र की युति जातक की काम वासना को कई गुणा बड़ा देती है । अगर इस युति पर राहु/मंगल की दृष्टि भी तो जातक अपनी वासना की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकता है ।

4👉 तुला राशि में चार या अधिक ग्रहों की उपस्थिति भी पारिवारिक कलेश का कारण बनती है ।

5👉 दूषित शुक्र और बुद्ध की युति सप्तम भाव में हो तो जातक काम वासना की पूर्ति के लिए गुप्त तरीके खोजता है ।

शुक्र 
1👉 यदि शुक्र स्वक्षेत्री ,मूलत्रिकोण राशि या अपने उच्च राशि का हो कर लग्न से केंद्र में हो तो मालव्य योग बनता है । इस योग में व्यक्ति सुन्दर,गुणी , संपत्ति युक्त ,उत्साह शक्ति से पूर्ण , सलाह देने या मंत्रणा करने में निपुण होने के साथ साथ परस्त्रीगामी भी होता है । ऐसा व्यक्ति समाज में अत्यंत प्रतिष्ठा से रहता है तथा आपने ही स्तर की महिला/पुरुष से संपर्क रखते हुए भी अपनी प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देता है । समाज भी सब कुछ जानते हुए उसे आदर सम्मान देता रहता है ।

2👉 सप्तम भाव में शुक्र की उपस्थिति जातक को कामुक बना देती है ।

3👉 शुक्र के ऊपर मंगल /राहु का प्रभाव जातक को काफी लोगों से शरीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए उकसाता है ।

4👉 शुक्र तीसरे भाव में स्थित हो और मंगल से दूषित हो , छठे भाव में मंगल की राशि हो और चन्द्रमा बारहवें स्थान पर हो तो व्यभिचारी प्रवृतियां अधिक होती है ।

5👉 शुक्र के ऊपर शनि की दृष्टि/युति /प्रभाव जातक में अत्याधिक मैस्टरबेशन की प्रवृति उत्पन्न करते हैं 

     गुरु 

1👉 गुरु लग्न/चतुर्थ /सप्तम/दशम स्थान पर हो या पुरुष राशि में छठे भाव में हो या द्वादश भाव में हो , जातक अपनी वासना की पूर्ति के लिए सभी सीमाओं को तोड़ डालता है

2👉 छठे भाव में गुरु यदि पुरुष राशि में बैठा हो तो जातक काम प्रिय होता है

शनि
1👉 यदि शनि स्वक्षेत्री ,मूलत्रिकोण राशि या अपनी उच्च राशि का होकर लग्न से केंद्रवर्ती हो तो शशः योग बनता है । ऐसा व्यक्ति राजा ,सचिव, जंगल पहाड़ पर घूमने वाला ,पराये धन का अपहरण करने वाला ,दूसरों की कमजोरियों को जानने वाला ,दूसरों की पत्नी से सम्बन्ध स्थापित करने की इच्छा करने वाला होता है ।कभी कभी अपने इस दुराचार के लिए उसकी प्रतिष्ठा कलंकित हो सकती है , वह दूसरों की नज़रों में गिर सकता है और समाज में अपमानित भी हो सकता है ।

2👉 शनि लग्न में हो तो जातक में वासना अधिक होती है,पंचम भाव में शनि अपनी से बड़ी उम्र की स्त्री से आकर्षण , सप्तम में होने से व्यभिचारी प्रवृति,चन्द्रमा के साथ होने पर वेश्यागामी, मंगल के साथ होने पर स्त्री में और शुक्र के साथ होने पर पुरुष में कामुकता अधिक होती है ।

3👉 दशम स्थान का शनि विरोधाभास उत्पन्न करता है , जातक कभी कभी ज्ञान वैराग्य की बात करता है तो कभी कभी कामशास्त्र का गंभीरता से विश्लेषण करता है , काम और सन्यास के बीच जातक झूलता रहता है ।

4👉 दूषित शनि यदि चतुर्थ भाव में उपस्थित हो तो जातक की वासना उसे इन्सेस्ट की और अग्रसर करती है ।

5👉 शनि की चन्द्रमा/शुक्र/मंगल के साथ युति जातक में काम वासना को काफी बड़ा देती है ।

    चंद्र
~~~~~~
1👉 चन्द्रमा बारहवें भाव में मीन राशि में हो तो जातक अनेकों का उपभोग करता है ।

2👉 नवम भाव में दूषित चन्द्रमा की उपस्थिति गुरु/ शिक्षक /मार्गदर्शक के साथ व्यभिचार करने के उकसाते हैं ।

3👉 सप्तम भाव में क्षीण चन्द्रमा किसी पाप ग्रह के साथ बैठा हो तो जातक विवाहित स्त्री से आकर्षित होता है ।

4👉 नीच का चन्द्रमा सप्तम स्थान पर हो तो जातक आपने नौकर /नौकरानी से शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं ।

   मंगल 
~~~~~~
1👉 मंगल की उपस्थिति 8 /9 /12 भाव में हो तो जातक कामुक होता है 

2👉 मंगल सप्तम भाव में हो और उसपर कोई शुभ प्रभाव न हो तो जातक नबालिकों के साथ सम्बन्ध बनाता है ।

3👉 मंगल की राशि में शुक्र या शुक्र की राशि में मंगल की उपस्थित हो तो जातक में कामुकता अधिक होती है ।

4👉 जातक कामांध होकर पशु सामान व्यवहार करता है यदि मंगल और एक पाप ग्रह सप्तम में स्थित हो या सूर्य सप्तम में और मंगल चतुर्थ भाव हो या मंगल चतुर्थ भाव में और राहु सप्तम भाव में हो या शुक्र मंगल की राशि में स्थित होकर सप्तम को देखता हो ।

Recommended Articles

Leave A Comment