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💥श्री गणेशाय नमः 💥🙏🌷🌷🌷

समूह में उपस्थित सभी आचार्यों का सादर नमन आज ज्योतिष ज्ञान में बात कर रहे हैं, ज्योतिष के कुछ सूत्रों की ज्योतिष एक अगाध समुद्र की तरह है जिसमें ग्रह, राशियों,तत्व,युति, 12 भाव के आधार पर कुंडलियों का कुंडली विवेचना की जाती है।।

कुंडली विवेचना के साथ कुछ सूत्रों का भी खास ध्यान रखना पड़ता है जिसके कारण कुंडली का संपूर्ण और स्पष्ट फलादेश हो पाए, आज उन्हीं कुछ सूत्रों को आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं।।

फलादेश के 15 सूत्र—

1:- जो ग्रह अपनी उच्च अपनी या अपने मित्र ग्रह की राशि में स्थित हो शुभ फल देगा इसके विपरीत नीच राशि में या अपने शत्रु की राशि में ग्रह अशुभ फल देगा।

2:- जो ग्रह अपनी राशि पर दृष्टि डालता है वह देखे जाने वाले भाव के लिए शुभ फल देता है।।

3:-जो ग्रह अपने मित्र ग्रहों और शुभ ग्रहों के साथ या मध्य होगा शुभ फलदायक होता है, मध्य का अर्थ अगली व पिछली राशि में ग्रह।।

4:- जो ग्रह अपनी नीच राशि से उच्च राशि की ओर भ्रमण करें और वक्री ना हो।।

5:-जो ग्रह लग्नेश का मित्र हो।।

6:- त्रिकोण के स्वामी सदा शुभ फल देते हैं।।

7:- केंद्र का स्वामी ग्रह अपनी शुभता छोड़ देता है और अशुभ ग्रह अपनी अशुभता छोड़ देता है।।

8:- क्रूर भावों (3,6,11) के स्वामी सदा अशुभ फल देते हैं।।

9:-उपाच्य भावों (1,3,6,10,11) में ग्रह के कारकत्व में वृद्धि होती हैं।।

10:- दुष्ट स्थानों (6, 8, 12 )में ग्रह अशुभ फल देते हैं।।

11:- शुभ ग्रह केंद्र (1,4,7, 10) में शुभ फल देते हैं, पाप ग्रह केंद्र में अशुभ फल देते हैं ।।

12:-पूर्णिमा के पास का चंद्र शुभ फलदायक, और अमावस्या के पास का चंद्र अशुभ फलदायक होता है।।

13:- चंद्र की राशि उसकी अगली और पिछली राशि में जितने ज्यादा ग्रह होते हैं चंद्र उतना ही शुभ होता है।।

14:- बुध राहु और केतु जिस ग्रह के साथ होते हैं वैसा ही फल देते हैं।।

15:-सूर्य के निकट ग्रह अस्त हो जाते है��

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