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जन्म कुण्डली के विभिन्न भावों में स्थित शुभाशुभ ग्रहों का सामान्य प्रभाव निम्नानुसार होता हैं ।
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प्रथम भाव में शुभ ग्रह फल -👇

जातक का शरीरिक कद ऊँचा होता हैं अन्य प्रभाव होते हैं प्रबल मानसिक, शक्ति, शान्त, प्रकृति, सौन्दर्य, आरोग्य रोग विनाश, सुबुद्धि, सदृगुण, सुख प्रतिष्ठा, यश, ऐश्वर्य आदि।

प्रथम भाव में पाप ग्रह फल-👇

कुरुपता, मानसिक, चिन्ताऐं आलस्य, रोग, शरीरिक कष्ट ,दुर्बुद्धि, दुर्गुण ,अंहकार ,दुःख आदि।

द्वितीय भाव में शुभ ग्रह फल👇

शुम ग्रह👉 धनी-कुल में जन्म धन संचय की प्रवृत्ति आप्तवर्ग पर प्रेम सौभाग्य बुहकुटुंब सुवक्ता आदि

द्वितीय भाव में पाप ग्रह फल👇
👉दृष्टि विकार द्रव्य नाश निर्धनता कपट व्यवहार आपत्तिजनों और विरोध नेत्र पीड़़ा वाणी दोष विपत्ति मिथ्याभाषी आदि।

तृतीय भाव में शुभ ग्रह फल👇

👉भाई बहिन तथा मित्रों का सुख, साहस तथा पराक्रम में वृद्धि उत्तम लेख, प्रवास में सुख एवं धन का लाभ, धर्म पर श्रद्धा, उघोगी ,परिश्रमी, विध्या में रूचि मिष्ठान भोजन प्रियता शुत्र नाश यश प्राप्ति आदि।

तृतीय भाव में पाप ग्रह फल👇

👉भाई बहिन एंव मित्रादि का सामान्य सुख कार्य में बाधा तामसी स्वभाव प्रवास में कष्ट कलह प्रियता सुख एंव धन में कमी।

चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह फल👇

👉भूमि भवन वाहन, सेवक तथा स्थावर सम्पत्ति का लाभ एवं सुख, मातृ सुख स्वकुलीभमानी, कुल, पालक, दयालुता, सन्तोष धन, ऐश्वर्य, यश तथा कीर्ति का लाभ आराम तथा सुख।

चतुर्थ भाव में पाप ग्रह फल👇

👉कुटुम्बियों से विरोध मातृ सुख में कमी भूमि भवन सेवक तथा वाहनदि के सुख एवं लाभ में कमी वाहन से अपघात, स्वभाव में चंचलता मन में संशय सन्तान सम्बन्धी दुःख कार्य सिद्धि में न्यूनता बुद्धि विपर्यय चिन्ता एवं स्वस्भाव में चंचलता आदि।

पंचम भाव में शुम ग्रह फल👇

👉सन्तान-सुख विधा-बुद्धि का लाभ धन सम्मान तथा यश का लाभ गहन समस्याओं को सुलझाने में पटुता चातुय्र कन्तिमत्ता उच्चधिकार प्रप्ति सुख एवं राज दरबार से प्रतिब्ठा का लाभ कुूलदीपक आदि।

पष्चम भाव में पाप ग्रह फल👇

👉बुद्धि विपर्यय विद्या लाभ में विध्न मिथ्र्याभमान चिन्ता अपयश एंव दुःख चंचल वृत्ति सन्तान सुख में कमी आदि।

षष्ठ भाव में शुभ ग्रह फल👇

👉ननसाल में सुख उघमी स्वजन विरोध शत्रुओं द्धारा हानि उदार एवं परोपकारी स्वभाव अशक्त प्रकृति लोगों को अनुकूल बनाने में कुशल आरोग्य आदि।

षष्ठ भाव में पाप ग्रह फल👇

👉तामसी प्रकृति गुप्त शत्रु हानि एवं त्रास परन्तु शत्रु जयी उग्रस्वभाव धन का व्यय रोगी स्वार्थी आदि।

सप्तम भाव में शुभ ग्रह फल👇

👉उच्च कुल में विवाह रूपवती गुणवती एंव शीलवती पत्नी अथवा पति स्त्री पति का सुख प्रवास में सुख दीवानी मामलों में विजय वाद विवाद में प्रवीणता दैनिक आजीविका का लाभ साझेदारी के व्यवसाय में लाभ क्रय विक्रय में लाभ लघु यात्राए सुखुद।

सप्तम भाव में पाप ग्रह फल👇

👉स्त्री या पति को अरिष्ट स्त्री या पति के सुख में कमी पत्नी या पति के कलह अदालती मामलों में हानि बहु पत्नी योग परस़्त्री रत व्र्याभचारी व्यवसाय में हानि प्रवास में कष्ट दुःख पश्चाताप सांसरिक सुख की चिन्ता साझेदारी में हानि छोटी यात्राऐ सुखद नहीं आदि।

अष्टम भाव में शुम ग्रह फल👇

👉विवाहोपरान्त स्थावर सम्पति का लाभ उत्तराधिकार में धन लाभ स्त्री की जायदाद आधिकार प्रप्ति स़्त्री धन का लाभ आकस्मिक लाभ गढे धन का लाभ श्वसुर की आर्थित स्थिति श्रेष्ठ दीर्धायु आदि।

अष्टम भाव में पाप ग्रह फल👇

👉ग्रह कलेश धन हानि व्यवसाय में हानि अपकीर्ति ऋण ग्रसतता लोगों में वैमनस्य परिवरिक तथा राजकीय संकट पुरातत्व की हानि व्यसन पर पर -द्रव्य-अपहरण, दारूण प्रंसग आदि।

नवम भाव में शुभ ग्रह फल👇

👉तीर्थ यात्रा धर्मिक रूचि यश, कीर्तन पुण्य तथा सौभग्य की वृद्धि यश-लाभ कुटुंबियो से सुख स्वदेश में भाग्योदय दूर देशों की यात्रा भाई बहनों की अनुकूलता धन ऐश्वय्र सुख तथा सम्मान की प्रप्ति कार्य -सिद्धि आदि।

नवम भाव में पाप ग्रह फल👇

👉आर्थिक स्थिति में निरन्तर परिवर्तन कार्य में अपयश परदेश में भाग्योदय भाई-बहिन के सुख में कमी दुर्भाग्य विपत्ति विरोध मनस्पात धर्मिक कार्ये में अरूचि आदि।

दशम भाव में शुभ ग्रह फल👇

👉राज्यश्रम एवं राज्य द्धारा प्रतिष्ठा तथा धन का लाभ स्वयपराक्रम द्वारा धन सामाजिक नेतृव्य एवं यश का लाभ उघोग व्यवसाय एवं नौकरी द्वारा लाभ सेवक वाहन आदि का सुख पिता द्धारा लाभ एवं पितृ सुख पदोन्नति स्वपराक्रम द्धारा धन एवं कीर्ति का लाभ सब प्रकार में सुख साधनों की उपलब्धि आदि।

दशम भाव में पाप ग्रह👇

👉पिृत सुख की हानि राजा एंव राज्याधिकारियों से विरोध तथा हानि आजीविका के विषय में चिन्ता व्यवसाय में परिवर्तन निम्न स्थिति चिन्ता सुख नाश हनि अपयश कष्ट आदि।

एकादश भाव में शुभ ग्रह फल👇

👉नियमित आय व्ययसाय अथवा नौकरी में लाभ उच्चाधिकार प्राप्ति मित्र वाहन सेवक स्त्री पुत्र कुटुम्ब आदि का सुख दृढ़ निश्चयी राजा तथा बड़े लोगों से सुख धन यश कीर्ति उत्साह तथा पराक्रम में वृद्धि आदि।

एकादश भाव में पाप ग्रह फल👇

👉कुटुम्ब, सन्तान तथा मित्र सुख में कमी बड़े भाई को आनिष्ट, असत-कार्यो द्धारा धन का उत्तम लाभ सामान्य भाग्योदय नौकारों से त्रास कलह धन लाभ हेतु पाप पुण्य का विचार न करना आदि।

द्वादश भाव में शुभ ग्रह फल👇

👉रोग एवं शत्रु का नाश, संकट नाश सत्कार्मो में घन का व्यय अधिकार प्राप्ति में विघ्न मानसिक तथा अर्थिक चिन्ताऐं नानिहाल पक्ष में सुख लाभ दुःखों से संघर्ष करके पुनः पूर्व स्थिति का लाभ लम्बी यात्राऐं तथा उनमें लाभ आदि।

द्वादश भाव में पाप ग्रह फल👇

👉शारीरक रोग एव पीड़ा धन सम्बन्धी एव अन्य अनेक प्रकार की चिन्ताऐं बुरे कामों में धन का व्यय आयु की हानि अधिकारी की प्रतिकुलता कारावास दण्ड ऋण ग्रस्तता अनके प्रकार के सकंट आयु क्षीणता, अविचारी पत्नी आदि।


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कई लोगो के जीवन में सम्बन्ध या विवाह का योग सिर्फ एक ही नहीं होता बल्कि एक से अधिक और कई बार अनेक होता है . कई बार ऐसा देखने में आता है कि व्यक्ति एक सम्बन्ध टूटने के बाद दुसरे सम्बन्ध में पड़ता है परन्तु कई बार तो ऐसी स्थिति होती है कि व्यक्ति एक साथ ही एक से अधिक रिश्तों में रहता है . क्यों होती हैं ऐसी स्थितियां ? कौन से ग्रह और उनकी स्थितियां हैं इसके लिए जिम्मेदार आइये देखते हैं –
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  1. यदि सप्तमेश अपनी नीच की राशी में हो तो जातक की दो पत्नियां/सम्बन्ध होती हैं.
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  2. यदि सप्तमेश , पाप ग्रह के साथ किसी पाप ग्रह की राशी में हो और जन्मांग या नवांश का सप्तम भाव शनि या बुध की राशी में हो तो दो विवाह की संभावनाएं होती हैं.
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  3. यदि मंगल और शुक्र सप्तम भाव में हो या शनि सप्तम भाव में हो और लग्नेश अष्टम भाव में हो तो जातक के तीन विवाह या सम्बन्ध संभव हैं.
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  4. यदि सप्तमेश सबल हो , शुक्र द्विस्वभाव राशि में हो जिसका अधिपति ग्रह उच्च का हो तो व्यक्ति की एक से अधिक पत्नियां या बहुत से रिश्ते होंगे .
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  5. सप्तमेश उच्च का हो या वक्री हो अथवा शुक्र लग्न भाव में सबल एवं स्थिर हो तो जातक की कई पत्नियां/सम्बन्ध होंगी.
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  6. यदि सप्तम भाव में पाप ग्रह हो, द्वितीयेश पाप ग्रह के साथ हो और लग्नेश अष्टम भाव में हो तो जातक के दो विवाह होंगे.
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  7. यदि शुक्र जन्मांग या नवांश में किसी पाप ग्रह की युति में अपनी नीच की राशि में हो तो व्यक्ति के दो विवाह निश्चित हैं.
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  8. यदि सप्तम भाव और द्वितीय भाव में पाप ग्रह हों और इनके भावेश निर्बल हों तो जातक पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह कर लेता है.
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  9. यदि सप्तम भाव और अष्टम भाव में पाप ग्रह हों मंगल द्वादश भाव में हो और सप्तमेश की सप्तम भाव पर दृष्टि न हो तो जातक की पहली पत्नी की मृत्यु हो जाती है और वह दूसरा विवाह करता है.
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  10. यदि सप्तमेश और एकादशेश एक ही राशि में हों अथवा एक दुसरे पर परस्पर दृष्टि रखते हों या एक दूसरे से पंचम नवम स्थान में हों तो जातक के कई विवाह होते हैं.
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  11. यदि सप्तमेश चतुर्थ भाव में हो और नवमेश सप्तम भाव में हो अथवा सप्तमेश और एकादशेश एक दुसरे से केंद्र में हो तो जातक के एक से अधिक विवाह होंगे.
    यदि द्वितीय भाव और सप्तम भाव में पाप ग्रह हों तथा सप्तमेश के ऊपर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो पति/पत्नी की मृत्यु के कारण जातक को तीन या उससे भी अधिक बार विवाह करना पड़ सकता है .
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  12. ——जानिए की शादी तय होकर भी क्यों टूट जाती है?—–
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    (१)- यदि कुंडली में सातवें घर का स्वामी सप्तमांश कुंडली में किसी भी नीच ग्रह के साथ अशुभ भाव में बैठा हो तो शादी तय नहीं हो पाती है.
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    (२)- यदि दूसरे भाव का स्वामी अकेला सातवें घर में हो तथा शनि पांचवें अथवा दशम भाव में वक्री अथवा नीच राशि का हो तो शादी तय होकर भी टूट जाती है.
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    (३)- यदि जन्म समय में श्रवण नक्षत्र हो तथा कुंडली में कही भी मंगल एवं शनि का योग हो तो शादी तय होकर भी टूट जाती है.
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    (४) यदि मूल नक्षत्र में जन्म हो तथा गुरु सिंह राशि में हो तो भी शादी तय होकर टूट जाती है. किन्तु गुरु को वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए.
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    (५) यदि जन्म नक्षत्र से सातवें, बारहवें, सत्रहवें, बाईसवें या सत्ताईसवें नक्षत्र में सूर्य हो तो भी विवाह तय होकर टूट जाता है.
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  13. ====तलाक क्यों हो जाता है?- —
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    (१)- यदि कुंडली मांगलीक होगी तो विवाह होकर भी तलाक हो जाता है. किन्तु ध्यान रहे किसी भी हालत में सप्तमेश को वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए.
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    (२)- दूसरे भाव का स्वामी यदि नीचस्थ लग्नेश के साथ मंगल अथवा शनि से देखा जाता होगा तो तलाक हो जाएगा. किन्तु मंगल अथवा शनि को लग्नेश अथवा द्वितीयेश नहीं होना चाहिए.
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    (३) यदि जन्म कुंडली का सप्तमेश सप्तमांश कुंडली का अष्टमेश हो अथवा जन्म कुंडली का अष्टमेश सप्तमांश कुंडली का लग्नेश हो एवं दोनों कुंडली में लग्नेश एवं सप्तमेश अपने से आठवें घर के स्वामी से देखे जाते हो तो तलाक निश्चित होगा.
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    (४)- यदि पत्नी का जन्म नक्षत्र ध्रुव संज्ञक हो एवं पति का चर संज्ञक तो तलाक हो जाता है. किन्तु किसी का भी मृदु संज्ञक नक्षत्र नहीं होना चाहिए.
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    (५)- यदि अकेला राहू सातवें भाव में तथा अकेला शनि पांचवें भाव में बैठा हो तो तलाक हो जाता है. किन्तु ऐसी अवस्था में शनि को लग्नेश नहीं होना चाहिए. या लग्न में उच्च का गुरु नहीं होना चाहिए.
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  14. ===पति पत्नी का चरित्र—–
    .(१)- यदि कुंडली में बारहवें शुक्र तथा तीसरे उच्च का चन्द्रमा हो तो चरित्र भ्रष्ट होता है.
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    (२)- यदि सातवें मंगल तथा शुक्र एवं पांचवें शनि हो तो चरित्र दोष होता है.
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    (३)- नवमेश नीच तथा लग्नेश छठे भाव में राहू युक्त हो तो निश्चित ही चरित्र दोष होता है.
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    (४)- आर्द्रा, विशाखा, शतभिषा अथवा भरनी नक्षत्र का जन्म हो तथा मंगल एवं शुक्र दोनों ही कन्या राशि में हो तो अवश्य ही पतित चरित्र होता है.
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    (५)- कन्या लग्न में लग्नेश यदि लग्न में ही हो तो पंच महापुरुष योग बनता है. किन्तु यदि इस बुध के साथ शुक्र एवं शनि हो तो नपुंसकत्व होता है.
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    (६)- यदि सातवें राहू हो तथा कर्क अथवा कुम्भ राशि का मंगल लग्न में हो तो या लग्न में शनि-मंगल एवं सातवें नीच का कोई भी ग्रह हो तो पति एवं पत्नी दोनों ही एक दूसरे को धोखा देने वाले होते है.
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  15. ——-विवाह नही होगा अगर—–
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    —–यदि सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है।
    —-यदि सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है।
    —–यदि सप्तमेश नीच राशि में है।
    —-यदि सप्तमेश बारहवें भाव में है,और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा है।
    —-जब चन्द्र शुक्र साथ हों,उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान हों।
    —-जब शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों।
    —-जब शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों।
    —-जब शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो।
    —-जब कभी शुक्र, बुध, शनि ये तीनो ही नीच हों।
    —–जब पंचम में चन्द्र हो,सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक पापग्रह हों।
    –जब सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो।
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  16. शुभ ग्रह हमेशा शुभ नहीं होते(पति पत्नी में अलगाव के ज्योतिषीय कारण )—
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    ज्योतिषीय नियम है कि कुंडली में अशुभ ग्रहों से अधिष्ठित भाव के बल का ह्वास और शुभ ग्रहों से अधिष्ठित भाव के बल की समृद्धि होती है। जैसे, मानसागरी में वर्णन है कि केन्द्र भावगत बृहस्पति हजारों दोषों का नाशक होता है। किन्तु, विडंबना यह है कि सप्तम भावगत बृहस्पति जैसा शुभ ग्रह जो स्त्रियों के सौभाग्य और विवाह का कारक है, वैवाहिक सुख के लिए दूषित सिद्ध हुआ हैं।
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    यद्यपि बृहस्पति बुद्धि, ज्ञान और अध्यात्म से परिपूर्ण एक अति शुभ और पवित्र ग्रह है, मगर कुंडली में सप्तम भावगत बृहस्पति वैवाहिक जीवन के सुखों का हंता है। सप्तम भावगत बृहस्पति की दृष्टि लग्न पर होने से जातक सुन्दर, स्वस्थ, विद्वान, स्वाभिमानी और कर्मठ तथा अनेक प्रगतिशील गुणों से युक्त होता है, किन्तु ‘स्थान हानि करे जीवा’ उक्ति के अनुसार यह यौन उदासीनता के रूप में सप्तम भाव से संबन्धित सुखों की हानि करता है। प्राय: शनि को विलंबकारी माना जाता है, मगर स्त्रियों की कुंडली के सप्तम भावगत बृहस्पति से विवाह में विलंब ही नहीं होता, बल्कि विवाह की संभावना ही न्यून होती है।
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    यदि विवाह हो जाये तो पति-पत्नी को मानसिक और दैहिक सुख का ऐसा अभाव होता है, जो उनके वैवाहिक जीवन में भूचाल आ जाता हैं। वैद्यनाथ ने जातक पारिजात, अध्याय 14, श्लोक 17 में लिखा है, ‘नीचे गुरौ मदनगे सति नष्ट दारौ’ अर्थात् सप्तम भावगत नीच राशिस्थ बृहस्पति से जातक की स्त्री मर जाती है। कर्क लग्न की कुंडलियों में सप्तम भाव गत बृहस्पति की नीच राशि मकर होती है। व्यवहारिक रूप से उपयरुक्त कथन केवल कर्क लग्न वालों के लिए ही नहीं है, बल्कि कुंडली के सप्तम भाव अधिष्ठित किसी भी राशि में बृहस्पति हो, उससे वैवाहिक सुख अल्प ही होते हैं।
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    एक नियम यह भी है कि किसी भाव के स्वामी की अपनी राशि से षष्ठ, अष्टम या द्वादश स्थान पर स्थिति से उस भाव के फलों का नाश होता है। सप्तम से षष्ठ स्थान पर द्वादश भाव- भोग का स्थान और सप्तम से अष्टम द्वितीय भाव- धन, विद्या और परिवार तथा उनसे प्राप्त सुखों का स्थान है। यद्यपि इन भावों में पाप ग्रह अवांछनीय हैं, किन्तु सप्तमेश के रूप में शुभ ग्रह भी चंद्रमा, बुध, बृहस्पति और शुक्र किसी भी राशि में हों, वैवाहिक सुख हेतु अवांछनीय हैं। चंद्रमा से न्यूनतम और शुक्र से अधिकतम वैवाहिक दुख होते हैं। दांपत्य जीवन कलह से दुखी पाया गया, जिन्हें तलाक के बाद द्वितीय विवाह से सुखी जीवन मिला।
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    पुरुषों की कुंडली में सप्तम भावगत बुध से नपुंसकता होती है। यदि इसके संग शनि और केतु की युति हो तो नपुंसकता का परिमाण बढ़ जाता है। ऐसे पुरुषों की स्त्रियां यौन सुखों से मानसिक एवं दैहिक रूप से अतृप्त रहती हैं, जिसके कारण उनका जीवन अलगाव या तलाक हेतु संवेदनशील होता है। सप्तम भावगत बुध के संग चंद्रमा, मंगल, शुक्र और राहु से अनैतिक यौन क्रियाओं की उत्पत्ति होती है, जो वैवाहिक सुख की नाशक है।
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    ‘‘यदि सप्तमेश बुध पाप ग्रहों से युक्त हो, नीचवर्ग में हो, पाप ग्रहों से दृष्ट होकर पाप स्थान में स्थित हो तो मनुष्य की स्त्री पति और कुल की नाशक होती है।’’सप्तम भाव के अतिरिक्त द्वादश भाव भी वैवाहिक सुख का स्थान हैं। चंद्रमा और शुक्र दो भोगप्रद ग्रह पुरुषों के विवाह के कारक है। चंद्रमा सौन्दर्य, यौवन और कल्पना के माध्यम से स्त्री-पुरुष के मध्य आकर्षण उत्पन्न करता है।
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    दो भोगप्रद तत्वों के मिलने से अतिरेक होता है। अत: सप्तम और द्वादश भावगत चंद्रमा अथवा शुक्र के स्त्री-पुरुषों के नेत्रों में विपरीत लिंग के प्रति कुछ ऐसा आकर्षण होता है, जो उनके अनैतिक यौन संबन्धों का कारक बनता है। यदि शुक्र -मिथुन या कन्या राशि में हो या इसके संग कोई अन्य भोगप्रद ग्रह जैसे चंद्रमा, मंगल, बुध और राहु हो, तो शुक्र प्रदान भोगवादी प्रवृति में वृद्धि अनैतिक यौन संबन्धों की उत्पत्ति करती है।
    ऐसे व्यक्ति न्यायप्रिय, सिद्धांतप्रिय और दृढ़प्रतिज्ञ नहीं होते बल्कि चंचल, चरित्रहीन, अस्थिर बुद्धि, अविश्वासी, व्यवहारकुशल मगर शराब, शबाब, कबाब, और सौंदर्य प्रधान वस्तुओं पर अपव्यय करने वाले होते हैं। क्या ऐसे व्यक्तियों का गृहस्थ जीवन सुखी रह सकता है? कदापि नहीं। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि कुंडली में अशुभ ग्रहों की भांति शुभ ग्रहों की विशेष स्थिति से वैवाहिक सुख नष्ट होते हैं। - {सुगंध द्वारा ग्रह शांति:—

सुगंध द्वारा ग्रह शांति इस प्रकार हैं-

सूर्य: ——— केसर तथा गुलाब का इत्र या सुगंध का उपयोग करने से सूर्य प्रसन्न होते हैं।

चंद्र: ———- चमेली और रातरानी का इत्र या सुगंध चंद्रमा की पीड़ा को कम करते हैं।

मंगल: ——— लाल चंदन का इत्र, तेल अथवा सुगंध मंगल को प्रसन्न करते हैं।

बुध: ————- इलायची तथा चंपा की सुगंध बुध को प्रिय होती है- चंपा का इत्र तथा तेल का प्रयोग बुध की दृष्टि से उत्तम है।

गुरू: ————- पीले फूलों की सुगंध, केसर और केवड़े का इत्र गुरू की कृपा प्राप्ति के लिए उत्तम है।

शुक्र: ———— सफेद फूल, चंदन और कपूर की सुगंध लाभकारी होती है। चंपा, चमेली और गुलाब की तीक्ष्ण खुशबू से शुक्र नाराज हो जाते हैं।हल्की खुशबू के परफ्यूम ही काम में लेने चाहिए।

शनि: ————कस्तुरी, लोबान तथा सौंफ की सुगंध शनि देव को पसंद है।

राहु और केतु: —-काली गाय का घी व कस्तुरी का इत्र इन्हें पसंद है।
[ कुंडली में अष्टम भाव

यह एक गुप्त भाव है I गुप्त विद्या , गुप्त ज्ञान , तंत्र मंत्र , गुप्तचर , गुप्त धन ,आयु , मृत्यु , खानदानीक वसीयत , धरती के नीचे का चीज जैसे पेट्रोलियम , गैस खनिज , पत्नी के रिश्तेदार , यह जितनी भी चीजें हैं सब इन्हीं भाव से देखा जाता है I
अगर यह भाव बलवान हो तो ऐसे लोग अच्छे गुप्तचर जासूस बन सकते हैं क्योंकि उन्हें गढ़ा हुआ मुर्दा उखाड़ने मैं महारत हासिल होता है I सीबीआई ,आईबी, रा , क्राइम विभागों में इनका अहम रोल होता है और सफल भी होते हैं I इस भाव का संबंध अगर दशमेश से हो तो निश्चित जातक इसी क्षेत्र में जाते हैं I
किसी भी विषय पर शोध करना , वैज्ञानिक , रसायन शास्त्र का ज्ञाता इस भाव के बलवान होने से ही बनता है I
गुप्त विद्या जैसे ज्योतिष , तंत्र मंत्र साधना , गुप्त ज्ञान अगर आपको है तो समझ जाइए कि आपका अष्टम भाव जरूर बलवान है I
जैसे अष्टम भाव और पंचम भाव का योग युति या दृष्टि एक अच्छा ज्योतिषी बनाता है I
यह भाव हमारे वसीयत, गुप्त धन को भी निर्धारित करता है I जैसे दादा परदादा के कोई खानदानिक़ संपत्ति हो वसीयत हो जिसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं रहती है और वह हमें अचानक से मिलता है l
बलवान अष्टमेश जातक को पेट्रोलियम , नेचुरल गैस , धरती के नीचे के खनिज संपदाओं जैसे कोयला आदि का व्यापार भी देता है I
अगर अष्टमेश निर्बल हो तो यह हमें ऋण कर्ज़ , दिवालियापन भी ला सकता है I चतुर्थएस के साथ संबंध भ्रष्टाचार में लिप्त बना देता है और उसे जेल भी जानी पड़ती है I
इस भाव को हम आयु मृत्यु से भी जोड़कर देखते हैं I अकाल मृत्यु या किस प्रकार से मृत्यु होगी यह द्वादश और अष्टम ही मिलकर तय करते हैं I शारीरिक क्षति भी इसी भाव से जाना जाता है I
जैसे इस भाव में बैठा राहु मस्तक में लगे चोट को दर्शाता है I
इस भाव से संबंधित मंगल शारीरिक अपंगता लाता है I
जिस प्रकार ग्रह के स्वभाव होंगे I उसी प्रकार से मृत्यु भी निश्चित की जाती है I जैसे वायु कारक शनि और राहु पंखे से लटकना, छत से कूदना या जहर खाकर मरना से देखा जाता है लेकिन कोई जरूरी नहीं है कि मृत्यु के लिए यही भाव निर्णायक रहता है इसके लिए द्वादश को भी आप देखें I

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