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: ज्योतिष रोग और उपाय*

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हर बीमारी का समबन्ध किसी न किसी ग्रह से है जो आपकी कुंडली में या तो कमजोर है या फिर दुसरे ग्रहों से बुरी तरह प्रभावित है | यहाँ सभी बीमारियों का जिक्र नहीं करूंगा केवल सामान्य रोग जो आजकल बहुत से लोगों को हैं उन्ही का जिक्र संक्षेप में करने की कोशिश करता हूँ | यदि स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है तो आज धनवान कोई नहीं है | हर व्यक्ति की कोई न कोई कमजोरी होती है जहाँ आकर व्यक्ति बीमार हो जाता है | हर व्यक्ति के शरीर की संरचना अलग होती है | किसे कब क्या कष्ट होगा यह तो डाक्टर भी नहीं बता सकता परन्तु ज्योतिष इसकी पूर्वसूचना दे देता है कि आप किस रोग से पीड़ित होंगे या क्या व्याधि आपको शीघ्र प्रभावित करेगी |
सूर्य से रोग
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सूर्य ग्रहों का राजा है इसलिए यदि सूर्य आपका बलवान है तो बीमारियाँ कुछ भी हों आप कभी परवाह नहीं करेंगे | क्योंकि आपकी आत्मा बलवान होगी | आप शरीर की मामूली व्याधियों की परवाह नहीं करेंगे | परन्तु सूर्य अच्छा नहीं है तो सबसे पहले आपके बाल झड़ेंगे | सर में दर्द अक्सर होगा और आपको पेन किलर का सहारा लेना ही पड़ेगा |
चन्द्र से मानसिक रोग
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चन्द्र संवेदनशील लोगों का अधिष्ठाता ग्रह है | यदि चन्द्र दुर्बल हुआ तो मन कमजोर होगा और आप भावुक अधिक होंगे | कठोरता से आप तुरंत प्रभावित हो जायेंगे और सहनशक्ति कम होगी | इसके बाद सर्दी जुकाम और खांसी कफ जैसी व्याधियों से शीग्र प्रभावित हो जायेंगे | सलाह है कि संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में न आयें क्योंकि आपको भी संक्रमित होते देर नहीं लगेगी | चन्द्र अधिक कमजोर होने से नजला से पीड़ित होंगे | चन्द्र की वजह से नर्वस सिस्टम भी प्रभावित होता है |
सुस्त व्यक्ति और मंगल
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मंगल रक्त का प्रतिनिधित्व करता है परन्तु जिनका मंगल कमजोर होता है रक्त की बीमारियों के अतिरिक्त जोश की .कमी होगी | ऐसे व्यक्ति हर काम को धीरे धीरे करेंगे | आपने देखा होगा कुछ लोग हमेशा सुस्त दिखाई देते हैं और हर काम को भी उस ऊर्जा से नहीं कर पाते | अधिक खराब मंगल से चोट चपेट और एक्सीडेंट आदि का खतरा रहता है |
बुध से दमा और अन्य रोग
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बुध व्यक्ति को चालाक और धूर्त बनाता है | आज यदि आप चालाक नहीं हैं तो दुसरे लोग आपका हर दिन फायदा उठाएंगे | भोले भाले लोगों का बुध अवश्य कमजोर होता है | अधिक खराब बुध से व्यक्ति को चमड़ी के रोग अधिक होते हैं | साँस की बीमारियाँ बुध के दूषित होने से होती हैं | बेहद खराब बुध से व्यक्ति के फेफड़े खराब होने का भय रहता है | व्यक्ति हकलाता है तो भी बुध के कारण और गूंगा बहरापन भी बुध के कारण ही होता है |
मोटापा और ब्रहस्पति
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गुरु यानी ब्रहस्पति व्यक्ति को बुद्धिमान बनता है परन्तु पढ़े लिखे लोग यदि मूर्खों जैसा व्यवहार करें तो समझ लीजिये कि व्यक्ति का गुरु कुंडली में खराब है | गुरु सोचने समझने की शक्ति को प्रभावित करता है और व्यक्ति जडमति हो जाता है | इसके अतिरिक्त गुरु कमजोर होने से पीलिया या पेट के अन्य रोग होते हैं | गुरु यदि दुष्ट ग्रहों से प्रभावित होकर लग्न को प्रभावित करता है तो मोटापा देता है | अधिकतर लोग जो शरीर से काफी मोटे होते हैं उनकी कुंडली में गुरु की स्थिति कुछ ऐसी ही होती है |
शुक्र और शुगर
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शुक्र मनोरंजन का कारक ग्रह है | शुक्र स्त्री, यौन सुख, वीर्य और हर प्रकार के सुख और सुन्दरता का कारक ग्रह है | यदि शुक्र की स्थिति अशुभ हो तो जातक के जीवन से मनोरंजन को समाप्त कर देता है | नपुंसकता या सेक्स के प्रति अरुचि का कारण अधिकतर शुक्र ही होता है | मंगल की दृष्टि या प्रभाव निर्बल शुक्र पर हो तो जातक को ब्लड शुगर हो जाती है | इसके अतिरिक्त शुक्र के अशुभ होने से व्यक्ति के शरीर को बेडोल बना देता है | बहुत अधिक पतला शरीर या ठिगना कद शुक्र की अशुभ स्थिति के कारण होता है |
लम्बे रोग और शनि
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शनि दर्द या दुःख का प्रतिनिधित्व करता है | जितने प्रकार की शारीरिक व्याधियां हैं उनके परिणामस्वरूप व्यक्ति को जो दुःख और कष्ट प्राप्त होता है उसका कारण शनि होता है | शनि का प्रभाव दुसरे ग्रहों पर हो तो शनि उसी ग्रह से सम्बन्धित रोग देता है | शनि की दृष्टि सूर्य पर हो तो जातक कुछ भी कर ले सर दर्द कभी पीछा नहीं छोड़ता | चन्द्र पर हो तो जातक को नजला होता है | मंगल पर हो तो रक्त में न्यूनता या ब्लड प्रेशर, बुध पर हो तो नपुंसकता, गुरु पर हो तो मोटापा, शुक्र पर हो तो वीर्य के रोग या प्रजनन क्षमता को कमजोर करता है और राहू पर शनि के प्रभाव से जातक को उच्च और निम्न रक्तचाप दोनों से पीड़ित रखता है | केतु पर शनि के प्रभाव से जातक को गम्भीर रोग होते हैं परन्तु कभी रोग का पता नहीं चलता और एक उम्र निकल जाती है पर बीमारियों से जातक जूझता रहता है | दवाई असर नहीं करती और अधिक विकट स्थिति में लाइलाज रोग शनि ही देता है |
ब्लड प्रेशर और राहू
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राहू एक रहस्यमय ग्रह है | इसलिए राहू से जातक को जो रोग होंगे वह भी रहस्यमय ही होते हैं | एक के बाद दूसरी तकलीफ राहू से ही होती है | राहू अशुभ हो तो जातक की दवाई चलती रहती है और डाक्टर के पास आना जाना लगा रहता है | किसी दवाई से रिएक्शन या एलर्जी राहू से ही होती है | यदि डाक्टर पूरी उम्र के लिए दवाई निर्धारित कर दे तो वह राहू के अशुभ प्रभाव से ही होती है | वहम यदि एक बीमारी है तो यह राहू देता है | डर के मारे हार्ट अटैक राहू से ही होता है | अचानक हृदय गति रुक जाना या स्ट्रोक राहू से ही होता है |
प्रेत बाधा और केतु
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केतु का संसार अलग है | यह जीवन और मृत्यु से परे है | जातक को यदि केतु से कुछ होना है तो उसका पता देर से चलता है यानी केतु से होने वाली बीमारी का पता चलना मुश्किल हो जाता है | केतु थोडा सा खराब हो तो फोड़े फुंसियाँ देता है और यदि थोडा और खराब हो तो घाव जो देर तक न भरे वह केतु की वजह से ही होता है | केतु मनोविज्ञान से सम्बन्ध रखता है | ओपरी कसर या भूत प्रेत बाधा केतु के कारण ही होती है | असफल इलाज के बाद दुबारा इलाज केतु के कारण होता है
स्वस्तिक के टोटके एवं उपाय
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स्वस्तिक और वास्तु :वास्तुशास्त्र में स्वस्तिक को वास्तु का प्रतीक मान गया है। इसकी बनावट ऐसी होती है कि यह हर दिशा से एक समान दिखाए देता है। घर के वास्तु को ठीक करने के लिए स्वस्तिक का प्रयोग किया जाता है।
घर के मुख्य द्वार के दोनों और अष्ट धातु और उपर मध्य में तांबे का स्वस्तिक लगाने से सभी तरह का वस्तुदोष दूर होता है।
पंच धातु का स्वस्तिक बनवा के प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद चौखट पर लगवाने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। चांदी में नवरत्न लगवाकर पूर्व दिशा में लगाने पर वास्तु दोष दूर होकर लक्ष्मी प्रप्ति होती है।
पहला उपाय 👉 वास्तुदोष दूर करने के लिए 9 अंगुल लंबा और चौड़ा स्वस्तिक सिंदूर से बनाने से नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मकता में बदल जाती है।
दूसरा उपाय 👉 मांगलिक, धार्मिक कार्यों में बनाएं स्वस्तिक :धार्मिक कार्यों में रोली, हल्दी या सिंदूर से बना स्वस्तिक आत्मसंतुष्टी देता है। त्योहारों पर द्वार के बाहर रंगोली के साथ कुमकुम, सिंदूर या रंगोली से बनाया गया स्वस्तिक मंगलकारी होता है। इसे बनाने से देवी और देवता घर में प्रवेश करते हैं। गुरु पुष्य या रवि पुष्य में बनाया गया स्वस्तिक शांति प्रदान करता है।
तीसरा उपाय 👉 व्यापार वृद्धि हेतु :यदि आपके व्यापार या दुकान में बिक्री नहीं बढ़ रही है तो 7 गुरुवार को ईशान कोण को गंगाजल से धोकर वहां सुखी हल्दी से स्वस्तिक बनाएं और उसकी पंचोपचार पूजा करें। इसके बाद वहां आधा तोला गुड़ का भोग लगाएं। इस उपाय से लाभ मिलेगा। कार्य स्थल पर उत्तर दिशा में हल्दी का स्वस्तिक बनाने से बहुत लाभ प्राप्त होता है।
चौथा उपाय 👉 स्वस्तिक बनाकर उसके ऊपर जिस भी देवता की मूर्ति रखी जाती है वह तुरंत प्रसन्न होता है। यदि आप अपने घर में अपने ईष्टदेव की पूजा करते हैं तो उस स्थान पर उनके आसन के उपर स्वस्तिक जरूर बनाएं।
पांचवां उपाय 👉 देव स्थान पर स्वस्तिक बनाकर उसके ऊपर पंच धान्य या दीपक जलाकर रखने से कुछ ही समय में इच्छीत कार्य पूर्ण होता है। इसके अलावा मनोकामना सिद्धी हेतु मंदिर में गोबर या कंकू से उलटा स्वस्तिक बनाया जाता है। फिर जब मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वहीं जाकर सीधा स्वस्तिक बनाया जाता है।
छठा उपाय 👉 सुख की नींद सोने हेतु :यदि आप रात में बैचेन रहते हैं। नींद नहीं आती या बुरे बुरे सपने आते हैं तो सोने से पूर्व स्वस्तिक को तर्जनी से बनाकर सो जाएं। इस उपाय से नींद अच्छी आएगी।
सातवां उपाय 👉 संजा में स्वस्तिक :पितृ पक्ष में बालिकाएं संजा बनाते समय गोबर से स्वस्तिक बनाती है। इससे घर में शुभता, शांति और समृद्धि आती है और पितरों की कृपा भी प्राप्त होती है।
आठवां उपाय धनलाभ हेतु 👉 प्रतिदिन सुबह उठकर विश्वासपूर्वक यह विचार करें कि लक्ष्मी आने वाली हैं। इसके लिए घर को साफ-सुथरा करने और स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद सुगंधित वातावरण कर दें। फिर भगवान का पूजन करने के बाद अंत में देहली की पूजा करें।
देहली के दोनों ओर स्वस्तिक बनाकर उसकी पूजा करें। स्वस्तिक के ऊपर चावल की एक ढेरी बनाएं और एक-एक सुपारी पर कलवा बांधकर उसको ढेरी के ऊपर रख दें। इस उपाय से धनलाभ होगा।
नौवां उपाय 👉 बेहद शुभ है लाल और पीले रंग का स्वस्तिक :अधिकतर लोग स्वस्तिक को हल्दी से बनाते हैं। ईशान या उत्तर दिशा की दीवार पर पीले रंग का स्वस्तिक बनाने से घर में सुख और शांति बनी रहती है। यदि कोई मांगलिक कार्य करने जा रहे हैं तो लाल रंग का स्वस्तिक बनाएं। इसके लिए केसर, सिंदूर, रोली और कुंकुम का इस्मेमाल करें।
नौ ग्रह बीज मंत्र
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नवग्रह न केवल जातक के भविष्य का निर्धारण करते हैं बल्कि जातक के जीवन में अच्छे और बुरे का पल-प्रतिपल आदान-प्रदान भी करते हैं। ग्रह जातक के पूर्व कृत कर्म के आधार पर रोग, शोक, और सुख, ऐश्वर्य का भी प्रबंध करते हैं।
पीड़ित जातक को चाहिए कि वह पीड़ित ग्रह के दंड को पहचान कर उक्त ग्रह की अनुकूलता हेतु उक्त ग्रह का रत्न धारण करें और संबंधित ग्रह के मंत्र को जपें तो जातक सुखी बन सकता है। साथ में जातक संबंधित ग्रह के क्षेत्र का दान और उस ग्रह के रत्न की माला से जप करें तो जातक प्रसन्न व संपन्न होगा।
जानिए नवग्रहों के रत्न, धातु, मंत्र और जाप की संख्या के बारे में, जिसके आधार पर प्रत्येक ग्रह के दोष को आसानी से दूर कर उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है –
1 सूर्य – सूर्य को नवग्रहों में राजा माना गया है। सूर्य का प्रमुख रत्न माणिक्य है जो गहरे लाल-गुलाबी रंग का होता है। इसका उपरत्न लाल-रक्तमणि माना जाता है। सूर्य की प्रमुख धातु ताम्र यानि तांबा और अनाज गेहूं है। अत: सूर्य को प्रसन्न करने के लिए विशेषज्ञ की सलाह से माणिक्य या रक्तमणि पहना जाता है। तांबा धातु पहनना एवं गेहूं का दान करना शुभ होता है।
सूर्य की शुभता के लिए सूर्योदय के समय इसके मंत्र – ॐ हृां हीं सः सूर्याय नमः का 7000 बार जाप करना फलदायक होता है।
2 चंद्रमा – चंद्रमा का प्रमुख रत्न श्वेत मोती है और इसकी धातु चांदी है। अनाज में चावल को चंद्रमा का कारक माना जाता है। चंद्रमा के लिए ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्राय नमः का जाप शाम के समय 11000 बार किए जाने का विधान है।
3 मंगल – मंगल का प्रमुख रत्न मूंगा है और जिसे तांबे में पहनना शुभ माना जाता है। अनाज में लाल मसूर की दाल को मंगल का कारक माना जाता है। मंगल को प्रसन्न करने के लिए इसके मंत्र – ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मंत्र का जाप – 2 घटी-10000 बार किया जाना चाहिए।
4 बुध – बुध ग्रह का प्रमुख रत्न पन्ना है और इसकी धातु कांसे को माना जाता है। हरी मूंग, हरा रंग, व हरिल वस्तुएं बुध की कारक हैं। बुध को शुभ बनाने के लिए – ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः का जाप -5 घटी- 9000 बार करना चाहिए।
5 गुरु – गुरु का प्रमुख रत्न पुखराज है। इसके अलावा सोना,चनादाल,पीला रंग, पीली हल्दी को भी गुरु का कारक माना गया है। गुरु की शुभता के लिए – ॐ ग्रां ग्रीं ग्रों सः गुरुवै नमः का शाम के समय कुल 19000 बार जाप किया जाना चाहिए।
6 शुक्र – शुक्र ग्रह का प्रमुख रत्न हीरा है। चांदी, चावल, श्वेत स्फटिक एवं सफेद रंग को शुक्र का कारक माना जाता है। शुक्र को शुभ बनाने के लिए – ॐ द्रां द्रीं द्रों सः शुक्राय नम: का जाप सूर्योदय के समय कुल 16000 बार किया जाना चाहिए।
7 शनि – शनि ग्रह का प्रमुख रत्न नीलम है और लोहा, उड़ददाल, काला-नीलमणि आदि को शनि का कारक माना जाता है। शनि को प्रसन्न करने के लिए – ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनैश्चराय नम: मंत्र का जाप, संध्या समय कुल 23000 बार किया जाना चाहिए।
8 राहु – राहु के लिए गोमेद रत्न धारण किया जाता है। इसके साथ ही सीसा, तिल, काले रंग को राहु का कारक माना गया है। राहु की शांति के लिए – ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मंत्र का जाप रात्रि में कुल 18000 बार किए जाने का विधान है।
9 केतु – केतु का रत्न लहसुनिया माना गया है और लोहा, सफेद तिल, ध्रूमवर्ण, नौरंगी को इसका कारक माना गया है। केतु की शुभता के लिए – ॐ स्रां स्रीं स्रों सः केतवे नमः मंत्र का जाप रात्रि के समय कुल 17000 बार किया जाना चाहिए।

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राहु की दशा

राहु एक छाया ग्रह है,इसकी परिमाप नही है। आसमान की ऊंचाइयां है,केवल नीले रंग में आभासित होता है लेकिन इसका कोई ठिकाना नही है कि यह है कहां तक है शाम और सुबह का इसका समय है,शाम को इसका समय नकारात्मक होता है और सुबह का समय इसका सकरात्मक होता है। ब्रह्म में इसे विराट रूप मिला है,महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने विराट रूप को प्रदर्शित किया था। वैसे राहु के बारे में बहुत सी मिथिहासिक कहानिया मिलती है,एक कहानी समुद्र मंथन के समय की मिलती है कि देवताओं और दैत्यों ने अमृत प्राप्त करने के लिये समुद्र मंथन किया था,देवताओं के बीच में बैठ कर राहु ने चालाकी से अमृत का पान कर लिया कर लिया था लेकिन सूर्य और चन्द्र ने उसकी चालाकी को देखकर भगवान विष्णु से शिकायत कर दी थी,उन्होने अपने सुदर्शन चक्र से इसके सिर को धड से अलग कर दिया था,लेकिन अमृत गले से नीचे उतरने के कारण धड और सिर अमर हो गये थे,धड को केतु और सिर को राहु नाम से जाना जाता है,तब से सूर्य और चन्द्र के साथ राहु केतु की दुश्मनी मानी जाती है,और समय समय पर यह दोनो सूर्य और चन्द्र को ग्रहण दिया करते है। इसके साथ ही राहु का प्रभाव माता पिता और बच्चे पर अधिक पडता है। राहु के लिये कहा जाता है कि वह आकाशीय पिंड नही है,केवल चन्द्रमा का उत्तरी कटाव बिन्दु है,जिसे पश्चिमी लोग North Node के नाम से जानते है। भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु को अन्य ग्रहों के समान महत्व दिया है,पाराशर ने राहो तमो अर्थात अंधकार युक्त ग्रह की परिभाषा दी है,उनके अनुसार धूम्रवर्णी जैसा नीलवर्णी राहु वनचर भयंकर वात प्रकृति प्रधान तथा बुद्धिमान होता है,नीलकंठ ने राहु का स्वरूप शनि जैसा बताया है। शनि जडता देता है,राहु नशा देता है,और केतु नकारात्मक प्रभाव देता है,बिना राहु के केतु पूर्ण नही है और बिना केतु के राहु भी पूर्ण नही है। राहु केतु के लिये कोई राशि नही बताई गयी है केवल नक्षत्रों का आधिपत्य दिया गया है। नारायण भट्ट ने कन्या राशि को राहु के लिये बताया है,उनके अनुसार राहु मिथुन राशि में उच्च का और धनु राशि में नीच का होता है। राहु के नक्षत्रों में आर्द्रा स्वाति और शतभिषा हैं। राहु का वर्ण नीलमेघ के समान है,यह सूर्य से १९००० योजन नीचे है,तथा सूर्य के चारों ओर नक्षत्र की भांति घूमता रहता है,शरीर में इसे पेट और पिंडलियों में इसे स्थान मिला है,जब जातक विपरीत कर्म करने लगता है,जो राहु उसे सुधारने के लिये अनिद्रा पेट के रोग दिमागी रोग पागलपन आदि भयंकर रोग देता है,जिस प्रकार से अपने निदनीय कर्मों से दूसरे को पीडा जातक पहुचाता है,उसी प्रकार से राहु जातक को दुख देने के लिये अपने रोग प्रदान करता है। अगर जातक के कर्म शुभ होते है तो यह पलक झपकते ही ऊचाइयों तक पहुंचा देता है,अतुलित धन सम्पत्ति और राजकाज देने में इसे देर नही लगती है,इसलिये अगर जीवन के अन्दर कोई गलत काम हो गये हों तो राहु की दशा शुरु होने से पहले ही राहु की शरण में चले जाना चाहिये। राहु की पूजा पाठ जप दान आदि द्वारा यह प्रसन्न होता है,गोमेद इसकी इसकी मणि है,तथा पूर्णिमा इसका दिन है,अभ्रक इसकी धातु है।

कुंडली के बारह भावों में राहु का स्थान
पहले भाव मे राहु शत्रुनाशक होता है लेकिन जातक को अकेला बैठा रहने और काम के अन्दर मन नही लगने की बात भी देता है,सिर के अन्दर अनगिनत विचार आते और जाते रहते है,जब भी जातक को कोई कष्ट या चिन्ता होती है तो वह फ़ौरन घबडा जाता है,राहु के सिर पर होने के कारण उसे घर के अन्दर अपने जीवन साथी के द्वारा किये गये कृत्य समझ में नही आते है,वह दिमागी हलचल के बीच घर की स्थिति को समझ नही पाता है और अपने अनुसार कार्य करने के उपरान्त उसके जीवन साथी के द्वारा पिता और माता का अपमान किया जाता है जातक का पूजा पाठ में मन नही लगता है और किसी न किसी प्रकार के नशे का वह आदी हो जाता है। अक्सर वह सिर दर्द का मरीज होता है और आंखों की रोशनी भी उसकी समय से पहले ही कम हो जाती है,उसे प्रेम प्यार के मामले में एक प्रकार का नशा चढता है,वह जल्दी से धन कमाने वाले मामलों में अपने को जब भी ले जाता है तो उसके शरीर में एक विचित्र सी हलचल हुआ करती है। अक्सर उसकी संतान कम ही होती है और अगर अधिक होती है तो कम से कम एक संतान उसकी अवैद्य जरूर होती है चाहे वह किसी प्रकार से किसी की संतान को पालने के रूप में हो या सहायता करने के रूप में हो। जातक दिमाग का रोगी अवश्य होता है कब क्या करेगा किसी को पता नही होता है घर में या बाहर जब भी उसे कोई क्लेश होता है तो सिर को पटकने की आदत बन जाती है,उसका जीवन साथी उसकी इस प्रकार की दशा से लाभ उठाता है और अपनी चालाकी से जातक को अपने कामो से अन्धेरे में रखता है। लगन का राहु व्यक्ति को स्वार्थी बना देता है और अपना काम बनता भाड में जाये जनता के जैसी आदत का बन जाता है जब तक खुद का स्वार्थ पूरा नही होता है तब तक को पैरो में पडे रहने की आदत होती है लेकिन जैसे ही अपना काम पूरा हुआ लगन के राहु वाले का पता नही चलता है कि वह कहां गया। अक्सर इस प्रकार के राहु वाले की सिफ़्त नौकर की होती है वह या तो नौकर बन कर रहता है या नौकरी वाले काम करने के बाद अपने जीवन को पालने के काम करता है लगन का राहु वाला व्यक्ति झूठ बोलने वाला भी होता है और कपट आदि उसके अन्दर भरे होते है किसी भी काम को निकालने के लिये वह अपने को किसी भी रूप में सामने कर सकता है और भेद लेने के बाद खुद तो बाहर होजाता है और दूसरे को फ़ंसाकर चला जाता है।दूसरे भाव में विराजमान राहु अपने ही कुटुम्ब का नाशक होता है धन के मामले में जातक को दिखाई तो बहुत देता है लेकिन सामने कुछ नही होता है उसके अन्दर शराब आदि नशे करने की आदत होती है और अपने को बहुत ही बलवान समझने के कारण अक्सर भले स्थानों में उसकी बे इज्जती होती है। धन भाव में होने के कारण पिता के परिवार को जल्द से जल्द समाप्त करने वाला होता है,और माता के लिये अक्सर जान का दुश्मन ही बना रहता है,घर के पानी वाले साधनों में भी राहु अपना असर देता है और किसी प्रकार के कैमिकल इफ़ेक्ट से घर के पानी को दूषित करता है,वाहन के लिये भी यह राहु खतरनाक ही होता है,अक्सर इस भाव का जातक नशे में गाडी चलाने का आदी होता है,और नशे में गाडी चलाने के कारण या तो अपने शरीर को तोडता है अथवा किसी अन्य को अपने नशे की आदतों के कारण जान से हाथ तक धोना पडता है,इस स्थान के राहु वाले से अपने स्वसुर से कभी नही बनती है,और बनती भी है तो केवल स्वार्थ की पूर्ति के लिये ही बनती है,जीवन साथी का कोई ठिकाना नही होता है कब दुनियां से कूच कर जाये या अपने मायके जाकर बैठ जाये,इसके अलावा अगर वह पुरुष जातक है तो उसका भी ठिकाना नही होता है कि कब और कहां वह अपने शरीर को नष्ट कर लेगा या किसी अन्य बेकार की स्त्री के साथ अपना सम्बन्ध बनाकर बैठ जायेगा।

दूसरे भाव के जातक झूठ बोलने में बहुत ही माहिर होते है उनकी बातों में लगभग झूठ ही मिलती है,वे अपने अपमान जानजोखिम के कामो को और खोजबीन करने वाले कामों कभी भी किसी प्रकार की भी झूठ बोल सकते है,अधिक चालाकी और ठगी करने की आदत होती है,तथा अगर वह मोबाइल आदि अधिक प्रयोग करता है तो उसके मोबाइल अधिकतर खोते ही रहते है,वह किसी भी कमन्यूकेशन के काम को पलक झपकते ही बरबाद कर सकता है,अथवा वह अपने साले भान्जे या मामा के घर के लिये आफ़त भी बन सकता है,जो भी इस प्रकार के जातक से चलकर दुश्मनी लेता है इस भाव के राहु वाला जातक उसे किसी न किसी बहाने ठिकाने लगा ही देता है।
तीसरे भाव के राहु वाला जातक विवेक से काम लेने वाला होता है किसी भी कार्य को वह अपने हठ से पूरा करने की क्षमता रखता है उसे गाने बजाने और संगीत के साधन रखने का बडा शौक होता है अक्सर उसे टीवी या फ़िल्म देखने का बडा शौक होता है उसे परफ़्यूम लगाने का और घर के अन्दर खुशबू रखने का भी शौक होता है,जहरीली दवाइयों को हजम करने की भी आदत होती है,अधिक मिर्च मसाले खाना नानवेज की तरफ़ मन का जाना आदि मिलता है,अक्सर उससे मिलने वाले लोग कम्पयूटर या इसी प्रकार की शिक्षा वाले लोग होते है जो लोग फ़िल्म लाइन में अपना कैरियर संगीन सीन के अन्दर बनाते है वे राहु के तीसरे भाव के कारण ही ऐसा कर पाते है,उनके अन्दर जोखिम लेने की बडी आदत होती है,और उनका मिलान भी इसी प्रकार के लोगों से होता है घर की या बाहर की एन्टिक चीजें बेचने और उन्हे कलेक्ट करने की भी आदत होती है,जब भी कोई चान्स मिलता है तो दोस्ती के अन्दर वे अपने को प्रभावित करने मे नही चूकते हैं। उनका काम दवाइयो का या नशे वाले प्रोडक्ट का अथवा मल्टी मार्केटिंग का होता है,अक्सर इस भाव के राहु का प्रभाव शिक्षात्मक रूप में अधिक होता है,जातक लोगों को सिखाने का काम आसानी से कर सकता है।

राहु को विराट रूप मे जाना जाता है और जितने भी ग्रह है सबकी शक्ति को अपने अन्दर सोख लेने की ताकत केवल राहु में है.राहु को समझना भी भारी हैराहु अपनी चलाने के चक्कर में ग्रह और भावों को गलत बताकर भय देने के बाद पूंछने वाले से धन या औकात को छीनने का कार्य करता है.
वैसे राहु की देवी सरस्वती है और अपने समय पर व्यक्ति को सत्यता भी देती है लेकिन सरस्वती और लक्ष्मी में बैर है,जहां सरस्वती होती है वहां लक्ष्मी नही और जहां लक्ष्मी होती है वहां सरस्वती नही.जो लोग दोनो को इकट्ठा करने के चक्कर में होते है वे या तो कुछ समय तक अपने झूठ को चलाकर चुप हो जाते है या फ़िर सरस्वती खुद उन्हे शरीर धन और समाज से दूर कर देती है,अथवा किसी लक्ष्मी के कारण से उन्हे खुद राहु के साये में जैसे जेल या बन्दी गृह में अपना जीवन निकालना पडता है.
राहु अलग अलग भावों में अपनी अलग अलग शक्ति देता है,अलग अलग राशि से अपना अलग अलग प्रभाव देता है,तुला राशि के दूसरे भाव में अगर राहु विद्यमान है तो इस राशि वाला जातक विष जैसी वस्तुओं को आराम से सेवन कर सकता है,और मृत्यु भी इसी प्रकार के कारकों से होती है,उसके बोलने पर गालियों का समिश्रण होता है,मतलब जो भी बात करता है वह बिच्छू के जहर जैसी लगती है,अगर गुरु या कोई सौम्य ग्रह सहायता में नही है तो अक्सर इस प्रकार के लोग शमशान के कारकों के लिये मशहूर हो जाते है, राहु चौथे भाव में स्वभाव से क्रूर कम बोलने वाला असंतोषी और माता को कष्ट देने वाला होता है। शक की बीमारी को देता है रहने वाले स्थान को सुनसान रखने के लिये माना जाता है,मन के अन्दर आशंकाये हमेशा अपने प्रभाव को बनाये रखती है,यहां तक कि रोजाना के किये जाने वाले कामों के अन्दर भी शंका होती है,जो भी काम किया जाता है उसके अन्दर अपमान मृत्यु और जान जोखिम का असर रहता है,बडे भाई और मित्र के साथ कब अपघात कर दे कोई पता नही होता है,जो भी लाभ के साधन होते है उनके लिये हमेशा शंका वाली बातें ही होती है,माता के लिये अपमान और जोखिम देने वाला घर में रहते हुये अपने प्रयासों से कोई न कोई आशंका को देते रहना उसका काम हो जाता है,लेकिन बाहर रहकर अपने को अपने अनुसार किये जाने वाले कामों में वह सुरक्षित रखता है पिता के लिये कलंक देने वाला होता है.
पंचम भाव का राहु मित्रों राहु का सम्बन्ध दूसरे और पांचवें स्थान पर होने पर जातक को सट्टा लाटरी और शेयर बाजार से धन कमाने का बहुत शौक होता है,राहु के साथ बुध हो तो वह सट्टा लाटरी कमेटी जुआ शेयर आदि की तरफ़ बहुत ही लगाव रखता है,अधिकतर मामलों में देखा गया है कि इस प्रकार का जातक निफ़्टी और आई.टी. वाले शेयर की तरफ़ अपना झुकाव रखता है। अगर इसी बीच में जातक का गोचर से बुध अस्त हो जाये तो वह उपरोक्त कारणों से लुट कर सडक पर आजाता है,और इसी कारण से जातक को दरिद्रता का जीवन जीना पडता है,उसके जितने भी सम्बन्धी होते है,वे भी उससे परेशान हो जाते है,और वह अगर किसी प्रकार से घर में प्रवेश करने की कोशिश करता है,तो वे आशंकाओं से घिर जाते है। कुन्डली में राहु का चन्द्र शुक्र का योग अगर चौथे भाव में होता है तो जातक की माता को भी पता नही होता है कि वह औलाद किसकी है,पूरा जीवन माता को चैन नही होता है,और अपने तीखे स्वभाव के कारण वह अपनी पुत्र वधू और दामाद को कष्ट देने में ही अपना सब कुछ समझती है। पंचम भाव में राहु संतान और बुद्धि को बरबार रखता है,जल्दी से जल्दी हर काम को करने के चक्कर में वह अपनी विद्या को बीच में तोड लेता है,नकल करने की आदत या चोरी से विद्या वाली बातों को प्रयोग करने के कारण वह बुद्धि का विकास नही कर पाता है,जब भी कभी विद्या वाली बात को प्रकट करने का अवसर आता है कोई न कोई बहाना बनाकर अपने को बचाने का प्रयास करता है पत्नी या जीवन साथी के प्रति वह प्रेम प्रदर्शित नही कर पाता है और आत्मीय भाव नही होने से संतान के उत्पन्न होने में बाधा होती है.
छठा राहु बुद्धि के अन्दर भ्रम देता है,लेकिन उसके मित्रों या बडे भाई बहिनो के प्रयास से उसे मुशीबतों से बचा लिया जाता है,अपमान लेने में उसे कोई परहेज नही होता है,कोई भी रिस्क को ले सकता है,किसी भी कुये खाई पहाड से कूदने में उसे कोई डर नही लगता है,वह किसी भी कार्य को करने के लिये भूत की तरह से काम कर सकता है और किसी भी धन को बडे आराम से अपने कब्जे में कर सकता है,गूढ ज्ञान के लिये वह अपने को आगे रखता है,बाहरी लोगों से और पराशक्तियों के प्रति उसे विश्वास होता है,अपने खुद के परिवार के लिये आफ़तें और शंकाये पैदा करता रहता है.
राहु को दवाइयों के रूप में भी माना जाता है,जो दवाइयां शरीर में एल्कोहल की मात्रा को बनाती है और जो दवाइयां दर्द आदि से छुटकारा देती है वे राहु की श्रेणी में आती है.
राहु की आशंका कभी कभी बहुत बडा कार्य कर जाती है जैसे कि अपना प्रभाव फ़ैलाने के लिये कोई झूठी अफ़वाह फ़ैला कर अपना काम बना ले जाना.
धर्म स्थान पर राहु का रूप साफ़ सफ़ाई करने वाले व्यक्ति के रूप में होता है,धन के स्थान में राहु का रूप आई टी फ़ील्ड की सेवाओं के रूप में माना जाता है,जहां असीमित मात्रा की गणना होती है वहां राहु का निवास होता है.
अब आगे सातवें भाव की वात करते हैं। सातवाँ भाव गृहस्थी का कारक है। वैवाहिक और दाम्पत्य सम्बन्ध इसमें समाहित होते है।

जातक जीविका उपार्जन करने के लिए किस प्रकार के धंधे करेगा? उसे कितनी आय की प्राप्ति होगी? जीवन निर्वाह आसान होगा या कठिन? गृहस्थ जीवन सुखमय होगा या दुःख भरा? पति पत्नी, जातक के माता पिता, भाई बहन, बाल बच्चे की क्या स्थति होगी? इन बातों का विचार सातवें भाव से किया जाता है। लाल किताब में सातवें भाव को ‘गृहस्थी की चक्की ‘ कहा है – आकाश जमीन दो पत्थर सातवें रिज्क अकल की चक्की हो”भाव सात अगर देखें काल पुरुष की कुंडली में शुक्र की तुला राशि है इस राशि का महत्व जीवन साथी साझेदार जीवन मे लडी जाने वाली जंग तथा सेवा आदि से प्राप्त आय सेवा के प्रति समाप्त करने वाले कारण सन्तान की हिम्मत और सन्तान कैसी है किस प्रकार के आचार विचार उसके अन्दर है वह अपने को समाज मे किस प्रकार के क्षेत्र से जुडकर अपने को संसार मे दिखायेगी माता के घर और माता की मानसिक स्थिति को पिता के कार्य को और कार्यों से जुडे धन आदि की समीक्षा करने के लिये अपनी क्रिया को करेगी. राहु को वैसे छाया ग्रह कहा जाता है,इसके साथ ही राहु के बारे मे कहा जाता है कि ऐसा कोई भी कारक नही है जो आसमान से नही जुडा है चाहे वह अच्छा हो या बुरा सभी की शक्ति को समेटने के लिये राहु का प्रभाव बहुत ही बडे रूप मे या आंशिक रूप से समझना जानना जरूरी है। तुला राशि का राहु मानसिक रूप से अपने को हमेशा उपरोक्त कारणो से जोड कर रखता है और इस राहु का प्रभाव घर के सदस्यों में अच्छे और बुरे रूप से भी देखा जाता है। जिस दिन इस राहु के साथ जन्म होता है उसके अठारह महिने पहले से ही घर के बुजुर्ग सदस्यों पर असर को देखा जाने लगता है। राहु का प्रभाव पिता के बडे भाई पर पहले पडता है इसके बाद यह प्रभाव बडे भाई या बहिन पर पडता है फ़िर इसका प्रभाव छोटे भाई बहिन पर भी पडता है । इसके साथ ही जातक की आमदनी के क्षेत्र पर जातक एके भेषभूषा पर भी पर इसका असर पडता है इस राहु के कारण पैदा होने वाले जातक अक्सर सबसे पहले बायें हाथ से लिखने पढने वाले या इस हाथ से काम करने के लिये पहले ही अपने को उद्धत करते है अक्सर यह भी देखा जाता है कि इस राशि मे राहु वाले व्यक्ति अपने को जीवन साथी के भरोसे ही रखते है उनके लिये कोई भी काम करना मुश्किल होता है जबतक कि वे अपनी भावना को आशंका को अपने जीवन साथी से न बता दें,यह भी देखा गया है कि इस राशि का राहु पति पत्नी के बीच मे एक प्रकार का आशंकाओं का जाल भी बुन देता है और दोनो के बीच मे वाकयुद्ध कारण अक्सर घर का माहौल तनाव वाला बन जाता है और कुछ समय के लिये ऐसा लगता है कि पति पत्नी मे एक ही रहेगा। इस भाव के राहु वाला व्यक्ति पैदा होने के बाद एक प्रकार से आवारगी का जीवन बिताने के लिये भी माना जाता है वह कहां जा रहा है किसके लिये जा रहा है,उसे खुद पता नही होता है। इसके अलावा भी कई शास्त्रो ने अपने अपने अनुसार कथन किये है जो आज के युग मे कम ही फ़लीभूत होते देखे गये है।कहा जाता है कि सप्तम का राहु व्यक्ति के अन्दर अधिक कामुकता को देता है और कामुकता के कारण व्यक्ति का सम्बन्ध कई व्यक्तियों से होता है। यह बात मेरे अनुसार तभी मानी जाती है जब राहु शुक्र या गुरु पर अपना असर दे रहा हो तो शुक्र पर असर होने के कारण पति के प्रति कई स्त्रियों से सम्बन्ध बनाने के लिये और पत्नी पर अपने को सजाने संवारने के प्रति अधिक देखा जाता है जब यह जीवन की जद्दोजहद मे आजाता है तो व्यक्ति एक से अधिक कार्य करने साझेदारी और इसी प्रकार के कामो से अपने को आगे बढाने के लिये भी देखा जाता है। राहु शुक्र के घर मे होने से और व्यवसाय के प्रति अपनी सोच रखने के कारण व्यक्ति को हर मामले मे बडी सोच देकर व्यवसाय के लिये अपनी समझ को देता है। अक्सर इस असर के कारण ही कई लोग तो आसमान की ऊंचाइयों मे चले जाते है और कई लोग अपने पूर्वजो के धन को भी अपनी समझ से बरबाद करने के बाद शराब आदि के आदी होकर अपने जीवन को तबाह कर लेते है। जिन लोगो ने विक्रम बेताल की कथा को पढा होगा उन्हे इस राहु का पूरा असर समझ मे आ गया होगा,यह राहु एक भूत की तरह से व्यक्ति के ऊपर सवार होता है और अपनी क्रिया से जीवन की वह बाते सामने ला देता है जिन्हे हर कोई अपनी बुद्धि से सामने नही ला सकता है जैसे ही व्यक्ति अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है यह राहु का नशा अपने आप ही पता नही कहां चला जाता है। इस राहु का नशा एक प्रकार से या तो बहुत ही भयंकर हो जाता है और उतारने के लिये व्यक्ति पुलिस स्टेशन लाया जाता है,या इस राहु के नशे को उतारने के लिये अस्पताल काम मे आते है या इस राहु का नशा उतारने के लिये धर्म स्थान अपना काम करते है इसके अलावा इसका नशा तब और भी खतरनाक उतरता है जब व्यक्ति अपनी धुन मे चलने के कारण सडक या किसी अन्य प्रकार के कारण से दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है।

काल पुरुष की कुंडली में आठवें भाव में वृश्चिक राशि मंगल की सकारात्मक राशि है। भावनात्मक राशि के लिये मेष को जाना जाता है। राहु को ग्रहों में छाया ग्रह के रूप मे जाना जाता है,लेकिन विस्तार की नजर से इस छाया ग्रह का वही प्रभाव वही सामने आता है जैसे कडक धूप के अन्दर छाया का आनन्द आता है,या सादा से दिखने वाले तार में बिजली का करण्ट झटका मारता है या एक बुद्धू से दिखाई देने वाले व्यक्ति के अन्दर से असीम ज्ञान का भण्डार उमड पडता है। इस राहु के बारे में कहा जाता है कि बारह साल में रुडी के दिन भी घूम जाते है,या बेकार से लोग राख से साख पैदा कर देते है अथवा बडी बडी दवाइयों के फ़ेल होने के बाद भी सादा सी भभूत काम कर जाती है। वैसे सादा व्यक्ति के लिये इस राशि का राहु बहुत ही खतरनाक माना जाता है,इस राहु के जन्म समय मे वृश्चिक राशि में होने के समय मे राहु की दशा या राहु के गोचर के समय जिस जिस भाव में जिस जिस ग्रह पर अपना प्रभाव डालता है वह भाव ग्रह अपने अपने अनुसार समाप्त होता जाता है।आठवें घर का संबध शनि और मंगल ग्रह से होता है। इसलिए इस भाव का राहू अशुभ फल देता है। जातक अदालती मामलों में बेकार में पैसे खर्च करता है।परिवारिक जीवन भी प्रतिकूलता से प्रभावित होता है। यदि मंगल ग्रह शुभ हो तो जातक को घनी भी वनाता हैं अष्टम भाव काअशुभ राहु का धोखा अक्सर किये जाने वाले कामो से देखने को मिलते है,पहले आशा लगी रहती बस है कि इस काम को करने के बाद बहुत लाभ होगा और एक समय ऐसा आता है कि पूरी मेहनत भी लग चुकी होती है पास का धन भी चला गया होता है पता चलता है कि काम का मूल्य ही समाप्त हो चुका है,इसी प्रकार का धोखा अधिकतर मंत्र तंत्र और यंत्र बनाने वाले अद्भुत चीजो का व्यापार करने वाले शमशान सिद्धि का प्रयोग करने वाले भी करते है जब राहु का स्थान किसी के अष्टम मे होता है या अष्टम का स्वामी किसी प्रकार से राहु केतु शनि के घेरे मे होता है तो वह इन्ही लोगो के द्वारा धोखा खाने वाला माना जाता है यह कारण दशा के अन्दर भी देखा जाता है जैसे धनेश और राहु की दशा मे या अष्टमेश और राहु की दशा मे इसी प्रकार की धोखे वाली बात होती देखी जाती है.अक्सर इसी प्रकार के धोखे शीलहरण के लिये स्त्रियों मे भी देखे जाते है जब भी कोई अपनी रसभरी बातो को कहता है या अपने प्रेम जाल मे ले जाने के लिये चौथे भाव या बारहवे भाव की बातो को प्रदर्शित करता है तो उन्हे समझ लेना चाहिये कि उनके लिये कोई बडा धोखा केवल उनके शील को हरने के लिये किया जा रहा है,इस धोखे के बाद उनका मन मस्तिष्क और ईश्वरीय शक्तिओं से भरोसा उठना भी माना जा सकता है,इस भाव का धोखा उन लोगो के लिये भी दिक्कत देने वाला होता है जो डाक्टरी काम करते है वह अपने धोखे के अन्दर आकर किसी बीमारी को समझ कर कोई दवाई दे देते है और उस दवाई को देने के बाद मरीज बजाय बीमारी से ठीक होने के ऊपर का रास्ता पकड लेता है। यही बात इन्जीनियर का काम करने वाले लोगो के साथ भी होता है वह धोखे मे आकर अपनी रिपेयर करने वाली चीज मे या तो अधिक वोल्टेज की सप्लाई देकर उसे बजाय ठीक करने के फ़ूंक देते है या सोफ़्टवेयर को गलत रूप से डालकर पूरे प्रोग्राम ही समाप्त कर लेते है मित्रों कालपुरुष की कुंडली में वृश्चिक राशि बनती हैइस राशि वाला जातक विष जैसी वस्तुओं को आराम से सेवन कर सकता है,और मृत्यु भी इसी प्रकार के कारकों से होती है,उसके बोलने पर गालियों का समिश्रण होता है,मतलब जो भी बात करता है वह बिच्छू के जहर जैसी लगती है,अगर गुरु या कोई सौम्य ग्रह सहायता में नही है तो अक्सर इस प्रकार के लोग शमशान के कारकों के लिये मशहूर हो जाते है,राहु खून की बीमारियां और इन्फ़ेक्सन भी देता है,जैसे मंगल नीच के साथ अगर राहु अष्टम है तो जातक को लो ब्लड प्रेसर की बीमारी होगी,वही बात अगर उच्च के मंगल के साथ युति है तो हाई ब्लड प्रेसर की बीमारी होगी,और मंगल राहु के साथ गुरु भी कन्या राशि के साथ या छठे भाव के मालिक के साथ मिल गया है तो शुगर की बीमारी भी साथ में होगी. अष्टम भाव में राहु गुप्त विद्या गूढ ज्ञान के लिये वह अपने को आगे रखता है,बाहरी लोगों से और पराशक्तियों के प्रति उसे विश्वास होता है,अपने खुद के परिवार के लिये आफ़तें और शंकाये पैदा करता रहता है.
राहु को दवाइयों के रूप में भी माना जाता है,जो दवाइयां शरीर में एल्कोहल की मात्रा को बनाती है और जो दवाइयां दर्द आदि से छुटकारा देती है वे राहु की श्रेणी में आती है.
राहु की आशंका कभी कभी बहुत बडा कार्य कर जाती है जैसे कि अपना प्रभाव फ़ैलाने के लिये कोई झूठी अफ़वाह फ़ैला कर अपना काम बना ले जाना राहु को कचडा अगर माना जाये तो यह राहु कबाडी का काम करने वाले लोगों को और मौत को पेशा के रूप में अपनाने वाले लोगों के लिये भी माना जाना जाता है। इस राहु का कारण अगर व्यक्ति स्थान या नाम के लिये लिया जाता है तो आम आदमी के अन्दर भय का वातावरण पैदा करने के लिये और डरने के लिये भी माना जाता है। जाति से इस राहु का प्रभाव मुस्लिम जाति के लिये भी माना जाता है जो लोग खतरनाक स्थानों में निवास करते है,समुदाय बनाकर हत्या और डराकर राज करने वाले लोगों के लिये भी यह राहु अपने अनुसार कार्य करने वाला माना जाता है। जो लोग दक्षिण पश्चिम दिशा में घर के संडास को बना लेते है उनकी कुंडली में राहु इस राशि में किसी न किसी प्रकार से आकस्मिक हादसे देने का कारक बन जाता है। इस राशि में राहु के होने से केतु का स्थान धन की राशि में होना वास्तविक है,केतु का स्थान धन की राशि में होने से नकारात्मक प्रभाव भी माना जाता है,साथ ही इस राशि में राहु के होने से भोजन आदि के लिये भी सहायक साधनों का इन्तजाम करना पडता है। या तो भोजन को किसी अन्य व्यक्ति की सहायता से खाना पडता है या भोजन के लिये अलग से चम्मच या इसी प्रकार के औजारों से भोजन करना पडता है,दाहिने अंग में लकवा जैसी बीमारी को पैदा करने के लिये इसी राहु का असर माना जाता है। जननांगो में इन्फ़ेक्सन जैसी बीमारियों के लिये भी इसी राहु को दोषी ठहराया जाता है। बायो गैस प्लांट भी इसी स्थान की उत्पत्ति मानी गयी है,साथ ही शमशानी कार्य करना और शमशान आदि की देखभाल करना नगर पालिका जैसे कार्य करना आदि भी इसी राशि के राहु की देन मानी जाती है।
[जन्मकुंडली में चंद्र पर राहु-केतु का प्रभाव एवं उपाय

जन्मकुंडली में यदि चंद्र पर राहु-केतु या शनि का प्रभाव होता है तो जातक मातृ-ऋण से पीड़ित होता है। चंद्रमा मन का प्रतिनिधि ग्रह है, अतः ऐसे जातक को निरंतर मानसिक अशांति से भी पीड़ित होना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को मातृ-ऋण से मुक्ति के पश्चात् ही जीवन में शांति मिलनी संभव होती है।

पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान-प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट, संतानाभाव, संतान का स्वास्थ्य खराब होने या संतान का सदैव बुरी संगति जैसी स्थितियों में रहना पड़ता है। यदि संतान अपंग, मानसिक रूप से विक्षिप्त या पीड़ित है तो व्यक्ति का संपूर्ण जीवन उसी पर केंद्रित हो जाता है।

जन्म-पत्री में यदि सूर्य पर शनि, राहु, केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ-ऋण की स्थिति मानी जाती है।
ज्योतिष के अनुसार देव ऋण अर्थात देवताओं के ऋण से भी हम पीड़ित होते हैं। हमारे लिए सर्वप्रथम देवता हैं हमारे माता-पिता परंतु हमारे इष्टदेव का स्थान भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है। व्यक्ति भव्य व शानदार बंगला बना लेता है, अपने व्यावसायिक स्थान का भी विस्तार कर लेता है, किंतु उस जगत स्वामी के स्थान के लिए सबसे अंत में सोचता है या सोचता ही नहीं है जिसकी अनुकंपा से समस्त ऐश्वर्य, वैभव व सकल पदार्थ प्राप्त होता है। उसके लिए घर में कोई स्थान नहीं होगा, तो व्यक्ति को देव-ऋण से पीड़ित होना पड़ेगा। नई पीढ़ी की विचारधारा में परिवर्तन हो जाने के कारण न तो कुल देवता पर आस्था रही है और न ही लोग भगवान को मानते हैं। फलस्वरूप ईश्वर भी अपनी अदृश्य शक्ति से उन्हें नाना प्रकार के कष्ट प्रदान करते हैं।

ज्योतिष के अनुसार ऋषि-ऋण के विषय में भी लिखना आवश्यक है। जिस ऋषि के गोत्र में हम जन्मे हैं, उसी का तर्पण करने से हम वंचित हो जाते हैं। हम लोग अपने गोत्र को भूल चुके हैं। अतः हमारे पूर्वजों की इतनी उपेक्षा से उनका श्राप हमें पीढ़ी-दर पीढ़ी परेशान करेगा। इसमें कतई संदेह नहीं करना चाहिए। जो लोग इन ऋणों से मुक्त होने के लिए उपाय करते हैं, वे प्रायः अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो जाते हैं। उनके परिवार में ऋण नहीं है, रोग नहीं है, गृह क्लेश नहीं है, पत्नी-पति के विचारों में सामंजस्य व एकरूपता है, संताने माता-पिता का सम्मान करती हैं, परिवार के सभी लोग परस्पर मिल-जुल कर प्रेम से रहते हैं। अपने सुख-दुख बांटते हैं, अपने अनुभव एक दूसरे को बताते हैं। ऐसा परिवार ही सुखी परिवार होता है। पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान-प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट, संतानाभाव, संतान का स्वास्थ्य खराब होने या संतान का सदैव बुरी संगति जैसी स्थितियों में रहना पड़ता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि संतान अपंग, मानसिक रूप से विक्षिप्त या पीड़ित है तो व्यक्ति का संपूर्ण जीवन उसी पर केंद्रित हो जाता है। दूसरी ओर कोई-कोई परिवार तो इतना शापित होता है कि उसे मनहूस परिवार की संज्ञा दी जाती है। सारे के सारे सदस्य तीर्थ यात्रा पर जाते हैं अथवा कहीं सैर सपाटे पर भ्रमण के लिए निकल जाते हैं और गाड़ी की दुर्घटना में सभी एक साथ मृत्यु को प्राप्त करते हैं।

मनुष्य को पितृ ऋण उतारने का सतत प्रयास करना चाहिए। जिस परिवार में कोई दुखी होकर आत्म-हत्या करता है या उसे आत्महत्या के लिए विवश किया जाता है, तो इस परिवार का बाद में क्या हाल होगा? इस पर विचार करें। आत्म हत्या करना सरल नहीं है, अपने जीवन को कोई यूं ही तो नहीं मिटा देता, उसकी आत्मा तो वहीं भटकेगी। वह आप को कैसे चैन से सोने देगी, थोड़ा विचार करें।

राहु-सूर्य पिता का दोष,
राहु-चंद्र माता का दोष,
राहु-बृहस्पति दादा का दोष,
राहु-शनि सर्प और संतान का दोष होता है।

इन दोषों के निराकरण के लिए सर्वप्रथम जन्मकुंडली का उचित तरीके से विश्लेषण करें और यह ज्ञात करने की चेष्टा करें कि यह दोष किस-किस ग्रह से बन रहा है। उसी दोष के अनुरूप उपाय करने से आपके कष्ट समाप्त हो जायेंगे।

हमारे वेदों में कहा गया है

चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत ।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ॥
नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत ।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकान् अकल्पयन् ॥ यजु० ३१।१२-१३ ॥

चन्द्रमा का मन से घनिष्ठ सम्बन्ध है. इसीलिए समस्त प्राणियों के लिए मानसिक सुख शान्ति का प्रभाव कारक ग्रह चन्द्रमा माना गया है. चन्द्रमा एक जलीय ग्रह है. चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी है. यह वृष राशि में शुभ और वृश्चिक राशि में अशुभ फल देता है
यदि यह अशुभ ग्रहों कि युति में है तो मन में अनेक विध्वंसक विचार जन्म लेते है. यदि शुभ ग्रहों के साथ है तो शुभ विचारों की उत्पत्ति होती है.
चन्द्र ग्रह उत्तर-पश्चिम दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है. चन्द्र का भाग्य रत्न मोती है. चन्द्र ग्रह का रंग श्वेत, चांदी माना गया है.
चन्द्र का शुभ अंक २, ११, २० है.

ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में चन्द्रमा यदि अपनी ही राशि में या मित्र, उच्च राशि षड्बली ,शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो चन्द्रमा की शुभता में वृद्धि होती है. जन्म कुण्डली में चंद्रमा यदि मजबूत एवं बली अवस्था में हो तो व्यक्ति समस्त कार्यों में सफलता पाने वाला तथा मन से प्रसन्न रहने वाला होता है. पद प्राप्ति व पदोन्नति, जलोत्पन्न, तरल व श्वेत पदार्थों के कारोबार से लाभ मिलता है.

चन्द्र का प्रभाव

ज्योतिषानुसार यह शरीर में बाईं आंख, गाल, मांस, रक्त बलगम, वायु, स्त्री में दाईं आंख, पेट, भोजन नली, गर्भाशय, अण्डाशय, मूत्राशय. चन्द्र कुण्डली में कमजोर या पिडित हो, तो व्यक्ति को ह्रदय रोग, फेफडे, दमा, अतिसार, दस्त गुर्दा, बहुमूत्र, पीलिया, गर्भाशय के रोग, माहवारी में अनियमितता, चर्म रोग, रक्त की कमी, नाडी मण्डल, निद्रा, खुजली, रक्त दूषित होना, फफोले, ज्वर, तपेदिक, अपच, बलगम, जुकाम, सूजन, जल से भय, गले की समस्याएं, उदर-पीडा, फेफडों में सूजन, क्षयरोग. चन्द्र प्रभावित व्यक्ति बार-बार विचार बदलने वाला होता है.

चन्द्रमाँ की दान योग्य वस्तु

चावल, दूध, चांदी, मोती, दही, मिश्री, श्वेत वस्त्र, श्वेत फूल या चन्दन. इन वस्तुओं का दान सोमवार के दिन सायंकाल में करना चाहिए. जिनकी कुंडली में चन्द्र अशुभ हो ऐसे लोग चंद्र की शुभता लेने के लिए माता, नानी, दादी, सास एवं इनके पद के समान वाली स्त्रियों का आशीर्वाद ले

सभी भावों के अनुसार उपाय

प्रथम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय
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1:- वट बृक्ष की जड़ में पानी डालें.
2:- चारपाई के चारो पायो पर चांदी की कीले लगाऎं
3:-शरीर पर चाँदी धारण करें.
4:-व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए।
5:-पूर्णिमा के दिन शिव जी को खीर का भोग लगाएँ,

द्वितीय भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय
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1:- मकान की नीव में चॉदी दबाएं.
2:- माता का आशीर्वाद लें.

तृतीय भाव में स्थित चन्द्रमा का उपाय
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1:- चांदी का कडा धारण करें.
2: पानी ,दूध, चावल का दान करे़.

चतुर्थ भाव में स्थित चन्द्रमा का उपाय
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1:- चांदी, चावल व दूध का कारोबार न करें.
2:- माता से चांदी लेकर अपने पास रखे व माता से आशिर्वाद लें.
3:-घर में किसी भी स्थान पर पानी का जमाव न होनें पाए।

पचंम भाव में स्थित चन्दमा के उपाय
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1:- ब्रह्मचर्य का पालन करें.
2:- बेईमानी और लालच ना करें, झूठ बोलने से परहेज करें.
3:-11 सोमवार नियमित रूप से 9 कन्यावों को खीर का प्रसाद दें।
4:- सोमवार को सफेद कपडे में चावल, मिशरी बांधकर बहते पानी में प्रवाहित करें.

छटे भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय
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1:- श्मशान में पानी की टंकी या हैण्डपम्प लगवाएं.
2:- चांदी का चोकोर टुकडा़ अपने पास रखें.
3:- रात के समय दूध ना पीयें.
4:- माता -सास की सेवा करें.

सप्तम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय
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1:- पानी और दूध का व्यापार न करें.
2:- माता को दुख ना पहुचाये.

अष्टम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय
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1) श्मशान के नल से पानी लाकर घर मे रखें.
2) छल-कपट से परहेज करें.
3) बडे़-बूढो का आशीर्वाद लेते रहें.
4) श्राद्ध पर्व मनाते रहे.
5) कुएं के उपर मकान न बनाएं.
6) मन्दिर में चने की दाल चढायें.
7) व्यभिचार से दूर रहे.

नवम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय
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1:- धर्म स्थान में दूध और चावल का दान करे
2:- मन्दिर में दर्शन हेतु जाएं.
3:-बुजुर्ग स्त्रियों से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।

दशम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय
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1:- रात के समय दूध का सेवन न करें.
2:- मुफ्त में दवाई बांटें.
3:- समुद्र, वर्षा या नदी का पानी घर में रखें.

एकादश भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय
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1:- भैरव मन्दिर में दूध चढायें.
2:- सोने की सलाई गरम करके उसको दूध में ठण्डा करके उस दूध को पियें.
3:- दूध का दान करें.

द्वादश भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय
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1:- वर्षा का पानी घर में रखें.
2:- धर्म स्थान या मन्दिर में नियमित सर झुकाए .

क्या न करें ….

ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार चन्द्रमा कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को रात्रि में दूध नहीं पीना चाहिए. सफ़ेद वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए और चन्द्रमा से सम्बन्धित रत्न नहीं पहनना चाहिए.
जब चन्द्र की दशा में अशुभ फल प्राप्त हो तो चन्द्रमा के मन्त्रों का जाप करे या जाप कराये :-

 चन्द्रमाँ का बीज मंत्र 

ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: चन्द्रमासे नम: (जप संख्या ११०००)

चन्द्रमाँ का वैदिक मंत्र 

” ॐ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम । भाशिनं भवतया भाम्भार्मुकुट्भुशणम।। ”

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