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: इंसान की कुंडली में 12 भाव यानी 12 खाने होते हैं। वे सभी अलग-अलग ग्रह और राशि से संबंध रखते हैं जिनका व्यक्ति के जीवन से सीधा संबंध होता है।
कुंडली के सप्तम भाव से व्यक्ति के विवाह, जीवन साथी, ससुराल से धन प्राप्ति, विदेश यात्रा आदि बातों पर विचार किया जाता है। यहां पत्रिका कुंडली के सप्तम भाव के आधार पर किसी व्यक्ति का वैवाहिक जीवन कैसा हो सकता है, ये सब बताया जा रहा है।
ये होना चाहिए कुंडली में
1- यदि कुंडली के सप्तम भाव पर स्व राशि अथवा उच्च राशि का शुक्र विराज मान हो तो ऐसे व्यक्ति का जीवन साथी सुख समृद्धि धन एश्वर्य आदि से परिपूर्ण होता है। तथा कला जगत में अपना नाम रोशन करने वाला होता है।
2- यदि सप्तम भाव या सप्तमेश पर उच्च राशि में सूर्य का प्रभाव हो तो ऐसे जातक का जीवन साथी राज्य अधिकार प्राप्त करने वाला तथा ख्याति प्राप्त करने वाला मनुष्य होता है।
3- जिस व्यक्ति की कुंडली में सातवें भाव या सप्तमेश पर स्व राशि या उच्च राशि का प्रभाव होता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन साथी राजनीति, कला, मनोविज्ञान एवं खाद्य एवं पेय पदार्थों के कामों में रूचि लेने वाले तथा विशेष रूप से धन एवं नाम प्राप्त करने वाले होते है।
4- जिस जातक की कुंडली के सातवें भाव पर स्व राशि एवं उच्च राशि पर मंगल का प्रभाव होता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन साथी लड़ाकू, क्रोधी, आवेशी, जिद्दी एवं हटी होने के साथ-साथ पुलिस, सेना, मलेट्री आदि में विशेष नाम यश एवं क्रीति प्राप्त करते है।
5- जिस व्यक्ति की कुंडली के सांतवे भाव पर स्व राशि अथवा उच्च राशि पर बुध का प्रभाव होता है वह व्यक्ति का जीवन साथी कानून ज्ञाता होता है।
6- जिस व्यक्ति के सांतवे भाव पर स्व राशि अथवा उच्च राशि पर गुरु का प्रभाव होता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन साथी धार्मिक क्षेत्रों में नाम कमाता है।
7- जिस व्यक्ति के सातवे भाव पर स्व राशि अथवा उच्च राशि पर शनि का प्रभाव होता है। ऐसे का व्यक्ति जीवन साथी बड़े दांत वाला, मोटी जांघों वाला, भूमि-भवन से विशेष लगाव रखने वाला और जीवन में प्राप्त करने वाला होता है।

  1. यदि कुंडली में अष्टम भाव का स्वामी अष्टम में हो तथा लग्न भाव का स्वामी शुक्र के साथ हो तो व्यक्ति की शादी 25वें वर्ष में होती है।
    ये ग्रह बनाते है शुभ
  • यदि व्यक्ति की कुंडली कुंभ लग्न की हो और सूर्य पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो विवाह अमीर घराने में होता है।
  • यदि कुंडली के सप्तम भाव में वृष राशि हो और शुक्र तथा चंद्र सम राशियों में हो तो व्यक्ति को सुंदर जीवन साथी मिलता है।
  • यदि सप्तम भाव पर सप्तम भाव के स्वामी, शुक्र पर चतुर्थ भाव के स्वामी और चंद्र का प्रभाव हो तो व्यक्ति का विवाह माता पक्ष यानी ननिहाल के किसी रिश्तेदार से होने की संभावना होती है।
  • यदि सप्तम भाव के स्वामी पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो और शुक्र अपनी उच्च राशि में या स्वराशि में हो तो व्यक्ति की शादी 18, 19 या 20 की उम्र में हो जाती है।
  • कुंडली में सूर्य सप्तम भाव में हो और सप्तम भाव का स्वामी शुक्र के साथ हो तो व्यक्ति की शादी कम आयु में हो जाती है।
  • यदि शुक्र लग्न से केंद्र में हो और शुक्र से शनि सप्तम भाव में तो व्यक्ति का विवाह 22 से 28 वर्ष के बीच होता है।
  • यदि सप्तम भाव के स्वामी और लग्न भाव के स्वामी का राशि परिवर्तन योग हो या एक-दूसरे को देखते हों तो विवाह कम आयु में होता है।
  • यदि शुक्र सप्तम या नवम भाव में हो और शुक्र से सप्तम भाव का स्वामी सप्तम भाव में हो तो विवाह 27 से 30 वर्ष की उम्र में होता है।
    मनुष्य के जीवन में कुंडली का खास महत्व होता है। इससे आने वाले कल के बारे में आभास किया जा सकता है। जीवन में कैसा दौर आने-वाला है अथवा अपका जीवन साथी कैसा होगा। इन सबकी जानकारी कुंडली के सप्तम भाव के आधार पर जानी जा सकती है। : आइये जाने किसी भी अपराध वाली कुंडली के मुख्य योग–
    —-किसी भी जन्मकुंडली का छठा भाव मनुष्य के आन्तरिक पाप का है जो व्यक्ति के अंदर के ‘असामाजिक तत्त्व’ को पैदा करता है।
    —-अष्टम भाव उस अपराध के क्रियाकलाप से सम्बन्धित है और नवम भाव से उसका परिणाम प्रभावित होता है।
    इन सब ज्योतिषीय कारकों के गहन विश्लेषण से ही निर्धारित किया जा सकता है की फलां व्यक्ति अपराध करेगा या नहीं ? करेगा तो कब करेगा ? किस तरह का अपराध करेगा ? आदि-आदि !
    ज्योतिष के अनुसार इसके बहुत से योग होते है। यहाँ कुछ विशिष्ट योगों की जानकारी निम्नवत है—
    —- लग्नेश व द्वादशेश अष्टमस्थ हो, षष्ठेश लग्नस्थ, अष्टमेश नवम में तथा राहु द्वादश भाव में हो तो जातक अपराध करता है।
    —- यदि कुंडली में नेपच्यून वक्री हो, सप्तमेश चन्द्रमा दो अशुभ ग्रहो के साथ अशुभ भाव में हो तो जातक अपनी पत्नी का कत्ल कर देता है।
    — यदि कुंडली के लग्न में नेपच्यून हो, यूरेनस उससे समकोण पर हो, शुक्र और वक्री मंगल आमने-सामने हो, चन्द्र और शनि भी आमने-सामने हो, बृहस्पति सूर्य से समकोण पर हो और शनि लग्न से चतुर्थ स्थान पर हो तो व्यक्ति अपनी पत्नी या प्रेमिका की हत्या करता है।
    —अष्टम भाव उस अपराध के क्रियाकलाप से सम्बन्धित है और नवम भाव से उसका परिणाम प्रभावित होता है।
    === जब लग्नेश व द्वादशेश अष्टमस्थ हो, षष्ठेश लग्नस्थ, अष्टमेश नवम में तथा राहु द्वादश भाव में हो तो जातक अपराध करता है।
    === जब कुंडली में नेपच्यून वक्री हो, सप्तमेश चन्द्रमा दो अशुभ ग्रहो के साथ अशुभ भाव में हो तो जातक अपनी पत्नी का कत्ल कर देता है। अथवा लग्न में नेपच्यून हो, यूरेनस उससे समकोण पर हो, शुक्र और वक्री मंगल आमने-सामने हो, चन्द्र और शनि भी आमने-सामने हो, बृहस्पति सूर्य से समकोण पर हो और शनि लग्न से चतुर्थ स्थान पर हो।
    —-आपराधिक प्रवृत्ति के लिए षष्ठेश व अष्टमेश के साथ दुष्ट ग्रहों की उपस्थिति नितान्त आवश्यक है। चन्द्रमा तथा वक्री बुध किसी भी व्यक्ति की आपराधिक प्रवृत्ति में वृद्धि करते हैं।
    — आपराधिक प्रवृत्ति कार्यरूप में परिणित हो सकती है जब अरिष्टकारक ग्रहों की दशा भी हो।
    — अपराध भावना के पूर्णरूपेण कार्यन्वयन के लिए यह आवश्यक है कि गोचर में अरिष्टकार ग्रहों पर शनि की दृष्टि-युति हो।
    कारावास के लिए कुछ विशेष प्रकार के योग अवश्य होने चाहिए। विशेषकर किसी व्यक्ति की लग्न कुण्डली और द्रेष्काण में अन्यथा अपराध करने पर भी कारावास नहीं हो सकता। इस बात को तृतीय और एकादश या चतुर्थ और दशम में बराबर ग्रह होने चाहिए। अर्था जितने ग्रह द्वितीय में हों, उतने ही द्वादश में हों। जितने ग्रह तृतीय में हों, उतने ही एकादश में भी हों अथवा जितने ग्रह चतुर्थ में हो, उतने ही दशम में भी हों। साथ ही सर्प या निगल द्रेष्काण होना चाहिए।
    ====ज्योतिष के अनुसार कुछ विशेष नक्षत्र बताए गए हैं, इस समय में चोरी या लूट होने पर व्यक्ति का धन वापस नहीं मिलता।ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र बताए गए हैं, इनमें कुछ नक्षत्रों के समय विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता होती है। इस संबंध में वेद-पुराण में एक श्लोक दिया गया है-
    ऊ गुन पू गुन वि अज कृ म आ भ अ मू गुनु साथ।
    हरो धरो गाड़ो दिया धन फिरि चढ़ई न हाथ।।
    इसके श्लोक का अर्थ है ‘उ’ अक्षर से आरंभ होने वाले नक्षत्र (उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद), ‘पू’ अक्षर से आरंभ होने वाले नक्षत्र (पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद), वि (विशाखा), अज (रोहिणी), कृ (कृतिका), म (मघा), आ (आद्र्रा), भ (भरणी), अ (अश्लेषा) और (मूल) भी इन्हीं नक्षत्रों के साथ शामिल है। इन चौदह नक्षत्रों में हरा हुआ धन, चोरी गया पैसा, लूटा गया पैसा और सोना, किसी के यहां अमानत के रूप में रखा पैसा, कहीं गाढ़ा हुआ पैसा या धन, किसी को उधार दिया गया धन वापस मिलने की संभावनाएं बहुत कम होती हैं। अत: इन विशेष नक्षत्रों के समय धन के संबंध में पूरी सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है।
    यहाँ ध्यान देवें की बुध, बुद्धि के कारक हैं अत: अपराध का स्वरूप और हथियार इसी के अनुरूप हो जाते हैं। इंटरनेट के माध्यम से होने वाले अपराध, काग$जों में की जाने वाली हेरा-फेरी आदि प्रतिकूल बुध से ही होते हैं।
    —-यदि किसी जन्म कुंडली में उक्त स्थिति हो तो किसी योग्य और अनुभवी ज्योतिषी से सलाह कर ज्योतिषीय उपाय से अनुकूल या प्रतिकूल बनाया जाकर समाज और राष्ट्र उत्थान में योगदान दिया जा सकता है।
    : पितृ दोष /प्रेत बाधा-
    किसी भी जातक के अपने परिवार में उसके जन्म से पूर्व यदि किसी पूर्वज की मरणोपरांत अंत्येष्टि क्रिया शास्त्र सम्मत विधि विधान से न की गयी हो या उसके परिवार में पूर्वजों के निमित्त कोई भी कार्य न किया जाता हो तो जातक की कुंडली में पितृ दोष जिसे प्रेत बाधा भी कहते हैं, अवश्य मिलता है। पितृ दोष आगे चलकर अनुवंशिक रोग की तरह से, आने वाली अगली पीढ़ी में भी आने लगता है। पितृ दोष जातक के अपने परिवार अर्थात पितृ पक्ष या ननिहाल अर्थात मातृ पक्ष दोनों में से किसी के कारण भी हो सकता है।
    पितृ दोष के कारण होने वाली समस्याएँ-
    आपकी कुंडली में चाहे कितने भी अच्छे योग क्यों ना हों, यदि आपकी कुंडली में पितृ दोष है तो जीवन अत्यंत संघर्षमय हो जायेगा। पितृ दोष के प्रभाव के कारण धन हानि, अनावश्यक के विवाद, परिवार में क्लेश, शुभ कार्यों में विलम्ब, संतान हीनता, अचानक दुर्घटना का योग, नौकरी-व्यापार में असफलता, अर्थात जीवन के हर क्षेत्र में समस्याओं की भरमार रहती है। इसका प्रभाव धीरे-धीरे पूरे परिवार पर होने लगता है और यह परिवार को दीमक की तरह धीरे-धीरे नष्ट कर देता है।
    पितृ दोष के योग-
    राहु-केतु और शनि को अत्यंत ही पाप ग्रह माना जाता है, और इन्ही के प्रभाव में यदि चन्द्रमा, सूर्य या गुरु आएँ तो पितृ दोष का सृजन हो जाता है। इसके साथ ही लग्न, पंचम, नवम और अष्टम के सम्बन्ध से भी पितृ दोष देखा जाता है। चन्द्रमा के कारण बनने वाला पितृ दोष माता के पक्ष के कारण, सूर्य के प्रभावित होने पर पिता के पक्ष के कारण, गुरु के पाप प्रभावित होने पर गुरु या साधु संतो के श्राप के कारण, शनि-राहु युति हो तो सर्प और अपने संतान के दोष का कारण बनता है।
    साथ ही यदि आप स्वयं अपराध या कुकर्म में लिप्त हैं, जैसे यदि आपने किसी स्त्री या पुरुष को इतना परेशान किया कि वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाये तो आपकी अगली पीढ़ी में भयानक पितृ दोष /प्रेत बाधा उत्पन्न होगी। बलात्कार, भ्रूण हत्या, किसी का धन हड़प लेना या किसी को धोखे से मार देना यह सब जघन्य अपराधों की श्रेणी में आते हैं और इसी का परिणाम आपको स्वयं या आपकी अगली पीढ़ी को किसी घटना-दुर्घटना का शिकार होकर चुकाना पड़ता है। यह घटनाएँ भी बहुत हृदय विदारक होती हैं जैसे पुरे परिवार का कार समेत पानी में या खाई में गिर कर समाप्त हो जाना, आग से घर में जल जाना, कहीं भगदड़ में मारा जाना।
    अर्थात यदि आपने कोई जघन्य अपराध किया हो तो कानून आपको सजा दे या ना दे, समय ज़रूर देख रहा होता है और उसका परिणाम आपको और आपकी आने वाली पीढ़ी को अवश्य भोगना पड़ता है।
    आगे कुछ ग्रहों की स्थिति दे रहा हूँ जो पितृ दोष को दर्शाती हैं-
    राहु, केतु या शनि से चन्द्रमा की युति (माता या माता के पक्ष के कारण श्राप)।
    राहु, केतु या शनि से सूर्य की युति (पिता या पिता के पक्ष के कारण श्राप)।
    राहु या केतु से मंगल की युति (भाई के कारण श्राप)।
    राहु या केतु से गुरु की युति (गुरु या संत का श्राप)।
    राहु या केतु से शुक्र की युति (ब्राह्मण या किसी विद्वान पुरुष का श्राप)।
    राहु-केतु या शनि के साथ चन्द्रमा का अष्टम में बैठना भयानक प्रेत बाधा को दर्शाता है।
    अष्टमेश का लग्न में और लग्नेश का अष्टम में बैठना भी अत्यंत घातक होता है।
    राहु-केतु-शनि या मंगल का पंचम में बैठना भी पितृ दोष का परिचायक होता है।
    यदि केतु अकेला पंचम में हो और उसपर शुभ ग्रह की दृष्टि ना हो तो वह जातक/जातिका अपने संतान को गर्भ में ही मार देते हैं।
    कृपया ध्यान दें: ऊपर दिए गए ग्रहों की स्थिति का होना ही केवल पूर्ण पितृ दोष या प्रेत दोष का कारक नहीं हो जाता अपितु ग्रहों का बला-बल, नक्षत्रों में उनकी स्थिति इत्यादि पर भी निर्भर होता है। साथ ही, ऊपर दिए गए पितृ दोषों में कुछ का प्रभाव कुछ कम होता है या जीवन के किसी एक क्षेत्र में होता है। परन्तु कुछ दोष बहुत ही भयानक होते हैं और उनका परिणाम भी अत्यंत ही भयानक होता है। अतः किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले किसी विद्वान से परामर्श अवश्य लें।
    उपचार-
    पितृ दोष या प्रेत बाधा का उपचार कुछ मामलों को छोड़कर संभव है। कुछ मामलों को मैंने इसलिए कहा कि यदि जातक की जन्म कुंडली में दोष है और उस दोष के प्रभाव में आकर उसने भी कोई अपराध कर दिया तो उसका उपचार संभव नहीं है। जैसे मेरे ऊपर लिखे पंक्तियों में ९वे स्थान पर लिखी पंक्ति के अनुसार यदि किसी जातक की कुंडली में केतु पंचम भाव में है और उसके प्रभाव में आकर उसने स्वयं ही अपने भ्रूण की हत्या गर्भ में की हो तो उसका उपचार नहीं है। उसका तो सिर्फ परिणाम है जिसे उसने भुगतना ही होता है।
    पितृ दोष का उपचार उसके लक्षण के आधार पर किया जाता है। जिसमे श्राद्ध, नारायण बलि, त्रिपिंडी श्राद्ध इत्यादि के अलावा यदि भयानक प्रेत बाधा हो तो वनदुर्गा का अनुष्ठान इत्यादि शामिल हैं। इसका सबसे बेहतर तरीका यह है कि किसी विद्वान से कुंडली की जाँच अच्छे से कराकर ही यथा उचित उपचार कराएँ।
    पितरों के निमित्त सामान्य श्राद्ध, नारायण बलि और त्रिपिंडी श्राद्ध करने के लिए पितृ पक्ष सर्वोत्तम समय है। अज्ञात पितरों के लिए और किसी भी तरह के पितृ दोष के निवारणार्थ पूजा के लिए पितृ पक्ष की अमावस्या श्रेष्ठ मानी जाती है।
    *अतः, पितृ दोष /प्रेत बाधा के निवारण के लिए इस पवित्र पक्ष का लाभ उठायें। दोष न भी हो तो भी आपकी आगे की पीढ़ी में इस तरह का दोष उत्पन्न न हो और आपके पूर्वजों का आशीर्वाद आपके और आपकी आने वाली पीढ़ी पर बना रहे इसके निमित्त इस पक्ष में यथा सामर्थ्य श्राद्ध अवश्य करें।
    : ✋✋ भाग्य रेखा ज्ञान✋✋
    🌟🌟🌷🌟🌟🌷🌟🌟🌷🌟🌟
    भाग्य रेखा की स्थिति किस्मत संबंधित निर्णयों
    का निर्धारण करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका
    निभाती है। भाग्य रेखा की स्थिति से ज्ञात
    होता है कि व्यक्ति शिक्षा संबंधित क्या फैसला
    करेगा, कौन सा क्षेत्र चुनेगा, और किन बाधाओ का
    सामना करेगा, उसे किन-किन सफ़लताओ एव
    विफलताओ का सामना करना पड़ेगा।
    भाग्य रेखा के कुछ सामान्य दृष्टिकोण नीचे दिये
    जा रहे है

रेखा को किस्मत की रेखा के रूप में भी
जाना जाता है । यह हथेली के केंद्र मे स्थित होती
है , इस रेखा का उदगम कलाई से, चंद्र पर्वत से, जीवन
रेखा से, मस्तिष्क रेखा या ह्रदय रेखा से होता है ।
इस रेखा द्वारा उन सभी क्रियाओ को जाना जा
सकता है जो हमारी अप्रत्यक्ष क्षमताओं को
बताता है जैसे शिक्षा और कैरियर, हमारी सफलता
और विफलता से संबंधित निर्णय और उन निर्णय से
होने वाले फल एवं इनमे आनी वाली बाधाओं का
बोध कराता है ।
भाग्य रेखा के आकार द्वारा किस्मत से सम्बंधित
महत्वपूर्ण निर्णयों का निर्धारण नीचे किया जा
रहा है :-

✋यदि भाग्य रेखा सीधी है और यह रेखा चंद्र पर्वत से
मिलती है, तो इससे पता चलता है कि व्यक्ति का
कैरियर अप्रत्याशित रूप से प्रभावित होगा ।

✋यदि भाग्य रेखा शनि पर्वत की ओर जाती हो और
उसकी शाखाएं किसी दूसरे पर्वत से मिलती हो तो
ऐसे व्यक्ति के जीवन पर उस पर्वत के गुणो का
अधिक प्रभाव रहेगा ।

✋यदि भाग्य रेखा की एक शाखा गुरु पर्वत की
दिशा की ओर जाती है तो किसी विशेष चरण मे
ऐसा व्यक्ति सामान्य से अधिक सफलता पाता है

✋यदि भाग्य रेखा का उदगम मंगल स्थान के आगे से हो
तो व्यक्ति कठिन और मुश्किल समय व्यतीत करेगा ।

✋यदि भाग्य रेखा की एक शाखा चंद्र पर्वत की ओर
दूसरी शाखा शुक्र पर्वत की ओर जाती है तो ऐसे
व्यक्ति का जीवन, कल्पना से जुनून द्वारा
प्रभावित रहेगा ।

✋यदि भाग्य रेखा टूटी हुई है तो यह दुर्भाग्य और
हानि की निशानी है और यदि इसी के समानांतर
दूसरी रेखा आरंभ हो जाए तो व्यक्ति के जीवन मे
भारी परिवर्तन आता है ।

✋यदि दो भाग्य रेखा समानान्तर चलती हो तो यह
एक शुभ संकेत है ऐसा व्यक्ति दो अलग अलग क्षेत्र मे महारथ हासिल करेगा ।

✋यदि भाग्य रेखा पर वर्ग की उपस्थिति हो तो ऐसे
व्यक्ति को व्यापार या वित्तीय मामलों में हानि
नही होती है ।

✋यदि भाग्य रेखा पर वर्ग के साथ क्रास का चिन्ह
हो तो ऐसे व्यक्ति को संकट का सामना करना
पड़ेगा तथा साथ ही द्वीप की उपस्थिति ये
दर्शाती है कि व्यक्ति को दुर्भाग्य हानि और
आपदाओं का सामना करना पड़ेगा ।

✋यदि चंद्र पर्वत से कोई शाखा भाग्य रेखा पर जा कर
मिलती है तो ये दर्शाती है कि व्यक्ति के वैवाहिक
जीवन एवं आम जीवन मे इच्छाओ की प्रबलता रहेगी।

✋जिस व्यक्ति के हाथ मे भाग्य रेखा अनुपस्थित
होती है, ऐसे व्यक्ति जीवन में कितनी भी सफलता
प्राप्त करे परन्तु उसका जीवन घास-फूस के समान
होता है ।

✋यदि भाग्य रेखा का उदगम जीवन रेखा से होता है
तो व्यक्ति अपने जीवन मे बहुत सफल एवं अपार धन
अर्जित करता है ।

✋यदि भाग्य रेखा कलाई से निकलती है, तो यह
दर्शाती है कि व्यक्ति अपने जीवन मे अपनी
इच्छाओं का बलिदान अपने माता पिता या
रिश्तेदार के लिये करता है।

✋यदि भाग्य रेखा कलाई से निकलती हुई सीधे शनि
पर्वत तक जाती है, तो यह अच्छी किस्मत और
असाधारण सफलता का संकेत होता है ।

✋यदि भाग्य रेखा चंद्र पर्वत पर मिलती है, तो उसकी
सफलता अन्य लोगों की योजना पर निर्भर करती
है।

✋यदि भाग्य रेखा सीधी हो और किसी पर्वत की
तरफ़ झुकाव हो तो यह दर्शाता है कि व्यक्ति की
सफलता उस पर्वत की विशेषताओं से संबंधित क्षेत्र पर
आधारित होंगी।

✋यदि भाग्य रेखा गुरु पर्वत के केन्द्र तक जाये तो इससे
पता चलता है कि व्यक्ति असामान्य शक्ति का
मालिक होता है, उसके जीवन मे अच्छा समय आता है।

✋यदि भाग्य रेखा की एक शाखा गुरु पर्वत पर मिलती
है तो व्यक्ति विशेष रुप से उसके चरण मे सामान्य से
अधिक सफलता पाता है ।

✋यदि भाग्य रेखा हथेली को पार करती हुई शनि की
ऊँगली तक जाए तो यह एक अच्छा सकेत नही है, उस
व्यक्ति से सफलता ही नही वरन सभी कुछ बहुत दूर
हो जाता है ।

✋यदि जीवन भाग्य, ह्रदय रेखा पर अचानक आकर रुक
जाए तो ऐसे व्यक्ति की सफलता उसकी भावनाओ
पर निर्भर करती है ।

✋यदि भाग्य रेखा, मष्तिष्क रेखा पर आकर रुक जाए
तो यह दर्शाता है कि व्यक्ति की मूर्खता और बड़ी
भूल के कारण उसे सफलता नही मिलती है ।

✋यदि भाग्य रेखा मंगल स्थान के अंत तक भी नही
पहुचती हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन मे कड़ी चुनौती,
कठिनाइयो और परेशानियो का सामना करता है ।

✋यदि भाग्य रेखा का उदगम मष्तिष्क रेखा से हो और
वह साफ सुथरी एवं स्पष्ट भी हो तो ऐसे व्यक्ति
की सफलता कठिन संघर्ष के बाद एवं प्रतिभा के
द्वारा प्राप्त होती है।
यदि भाग्य रेखा का उदगम ह्रदय रेखा से हो तो ऐसे
व्यक्ति को सफ़लता देर से प्राप्त होती है और उसे
संघर्ष भी करना पड़ता है।📚🖍🙏🙌
🌟🌟🌷🌟🌟🌷🌟🌟🌷🌟🌟🌷🌟🌟🌷🌟🌟
: अगर आप पैसों की कमी से जुझ रहे है। घर में आमदनी से अधिक खर्च आपके लिए अक्सर मानसिक तनाव का कारण बन जाता है तो नीचे लिखे वास्तुप्रयोग अपनाकर आप मां लक्ष्मी कीप्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं।

  • साल में एक दो-बार हवन करें।
  • घर में अधिक कबाड़ एकत्रित ना होने दें।
  • शाम के समय एक बार पूरे घर की लाइट जरूर जलाएं। इस समय घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है।
  • सुबह-शाम सामुहिक आरती करें।
  • महीने में एक या दो बार उपवास करें।
  • घर में हमेशा चन्दन और कपूर की खुशबु का प्रयोग करें।
  • जो व्यक्ति श्रेष्ठ धन की इच्छा रखते हैं वे रात्रि में सत्ताइस हकीक पत्थर लेकर उसके ऊपर लक्ष्मी का चित्र स्थापित करें, तो निश्चय ही उसके घर में अधिक उन्नति होती है।
  • किसी शुक्रवार के दिन रात्रि में पूजा उपासना करने के पश्चात एक सौ आठ बार ऊं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं लक्ष्मी वासुदेवाय नम: मंत्र का जप करें। धन से जुड़ी हर समस्या हल हो जाएगी।🙏🌹🚩
    : ग्रहों की सभा मे युवराज पद पर आसीन श्री बुध देव ज्योतिष और हम लाल किताब के ये अचूक उपाय

कन्या और मिथुन राशि के स्वामी बुध कन्या राशि में उच्च एवं मीन राशि में नीच का माना गया हैं। इसके सूर्य, शुक्र और राहु मित्र, चन्द्र शत्रु एवं मंगल, गुरु, शनि और केतु सम हैं। बारहवां भाव बुध का पक्का घर हैं। शुक्र और बुध दोनों ही एक ही भाव में हो तो बुध बलशाली होगा। लाल किताब में शत्रु और मित्र कुंडली की स्थिति के अनुसार होते हैं। लाल किताब के अनुसार यहां प्रस्तुत हैं बुध को शुभ करने के खाने के अनुसार उपाय-

बुध के अशुभ होने की निशानी

  • केतु और मंगल के साथ मंदा फल।
  • शत्रु ग्रहों से ग्रसित बुध का फल मंदा ही रहता है।
  • विशेषत: यह नौकरी या व्यापार में नुकसान दे सकता है।
  • संभोग की शक्ति क्षीण कर देता है।
  • सूंघने की शक्ति क्षीण हो जाती है।
  • समय पूर्व ही दांत खराब हो जाते हैं।
  • मित्र से संबंध बिगड़ जाते हैं।
  • व्यक्ति तुतलाने लगता है।
  • बहन, बुआ और मौसी पर विपत्ति बनी रहती है।

खाने के अनुसार बुध के सामान्य उपाय

बुध खाना नंबर 1

  1. बहन, बुआ व बेटी को नाराज न करें।
  2. मांस, मछली और शराब से दूर रहें।
  3. हरे रंग और सालियों से यथासंभव दूर रहें।
  4. अंडा, मांस और मदिरा का सेवन न करें।
  5. एक ही स्थान पर बैठकर करने वाला व्यापार अच्छा और फायदेमंद रहेगा।
  6. व्यापार, हकीमी आदि कार्य में सावधानी बरतें।

बुध खाना नंबर 2

  1. बहन, बेटी, बुआ का सम्मान करें।
  2. धर्म स्थान पर चन्द्र की चीजें दान करें।
  3. अंडे, मांस और शराब से बचें।
  4. भेड़, बकरी और तोता पालना सख्त वर्जित है।

बुध खाना नंबर 3

  1. साबुत मूंग रात में भिगोकर सुबह पक्षियों को डालें 43 दिन तक।
  2. जुबान को बस में रखें।
  3. हर रोज फिटकरी से अपने दांत साफ करें।
  4. दक्षिणमुखी घर में न रहें।
  5. अस्थमा की दवाएं वितरित करें।

बुध खाना नंबर 4

  1. गुरु का उपाय करें।
  2. माता-पिता का ध्यान रखें।
  3. मानसिक शांति के लिए चांदी की चेन पहनें।
  4. धन-संपत्ति पाने के लिए सोने की चेन पहनें।
  5. माथे पर 43 दिनों के लिए नियमित रूप से केसर का तिलक लगाएं।
  6. बंदरों को गुड़ खिलाएं और उनकी सेवा करें।

बुध खाना नंबर 5

  1. काल्पनिक डर और बेकार के तंत्र-मंत्र से बचें।
  2. बोलते वक्त संयम रखें।
  3. नकारात्मक न बोलें।
  4. पिता का ध्यान रखें।
  5. धन प्राप्त करने के लिए सफेद धागे में तांबे का 1 सिक्का पहनें।
  6. पत्नी की प्रसन्नता और अच्छी किस्मत के लिए गायों की सेवा करें।
  7. गोमुखी घर अत्यधिक शुभ जबकि शेरमुखी घर विनाशकारी साबित होगा
    बुध खाना नंबर 6
  8. अपनों से विरोध न रखें।
  9. बहन, बुआ और बेटी को लाभ पहुंचाएं।
  10. दुर्गा की भक्ति करें।
  11. कृषि भूमि में गंगा जल से भरी बोतल दफनाएं।
  12. अपनी पत्नी के बाएं हाथ में चांदी की एक अंगूठी पहनाएं।
  13. किसी भी महत्वपूर्ण काम की शुरुआत किसी कन्या या बेटियों की उपस्थिति में करें।

बुध खाना नंबर 7

  1. पत्नी या पति से अच्छे संबंध रखें।
  2. धन जमा करने की प्रवृत्ति डालें।
  3. साझेदारी के व्यापार से बचें।
  4. सट्टेबाजी से बचें।
  5. खराब चरित्र वाली साली से संबंध न रखें।

बुध खाना नंबर 8

  1. नाक छिदवा लें।
  2. नौकरी या व्यापार में उत्तम व्यवहार और जिम्मेदारी के महत्व को समझें।
  3. किसी की निंदा न करें। बहन हो तो उसकी मदद करें।
  4. बेकार के तंत्र-मंत्र के चक्कर में न रहें।
  5. दुर्गा की भक्ति करें।
  6. किसी मिट्टी के बर्तन में शहद भरकर यह श्मशान या सुनसान क्षेत्र में दफनाएं।
  7. किसी कंटेनर में दूध अथवा बारिश का पानी भरकर घर की छत पर रखें।
  8. अपनी बेटी की नाक में बाली पहनाएं।

बुध खाना नंबर 9

  1. किसी साधु या फकीर से कोई ताबीज न लें।
  2. पिता, गुरु या सज्जन व्यक्ति का अपमान न करें।
  3. हरे रंग के प्रयोग से बचें।
  4. अपनी नाक छिदवाएं।
  5. किसी मिट्टी के बर्तन में मशरूम भरकर धार्मिक जगह दान करें।

बुध खाना नंबर 10

  1. जुबान का चस्का न रखें अन्यथा बहुत तेजी से शरीर का क्षरण होने लगेगा।
  2. शराब, मांस, अंडे और बहुत अधिक भोजन खाने से बचें।
  3. चावल और दूध धार्मिक स्थानों में दान करें।

बुध खाना नंबर 11

  1. किसी फकीर, तांत्रिक, ज्योतिष या साधु से किसी भी प्रकार की कोई वस्तु न लें।
  2. गर्दन में किसी सफेद धागे या चांदी की चेन में तांबे का गोल सिक्का पहनें।
  3. अपने घर में विधवा बहन या बुआ को न रखें।
  4. हरे रंग और पन्ना रत्न से बचें।
  5. साधु या फकीर की दी हुई ताबीज न लें।

बुध खाना नंबर 12

  1. जुबान पर काबू रखें।
  2. वायदा पूरा करना सीखें।
  3. रोज दुर्गा मंदिर में जाकर सिर झुकाएं।
  4. नदी में एक नया खाली घड़ा फेंकें।
  5. स्टेनलेस स्टील की एक अंगूठी पहनें।
  6. केसर का तिलक लगाएं और धार्मिक स्थानों पर जाएं।
  7. किसी भी नए या महत्वपूर्ण काम को शुरू करने से पहले किसी अन्य व्यक्ति की सलाह लें।

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