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आत्मा अमर है , क्योंकि ? यह परमात्मा का ही एक अंश है !
शरीर क्या है?
हमारे द्वारा खाए हुए अन्न से सूक्ष्म शरीर का क्या संबंध है ? यह गति कैसे करती है ।
हमारा स्थूल शरीर जो इस आँख से दिखाई देता है वह तो मर जाता है , किंतु हमारा सूक्ष्म शरीर कभी नहीं मरता !
> धर्म का नवनीत है _ आध्यात्म दूध को तपना , ठंङा करना , जमाना और उसका मंथन करना ये सब सिर्फ एक मक्खन के लिए किया जाता है ; धर्म का निचौङ है “आत्मा” शरीर की उपासना के साथ आत्मा की भी उपासना हो व आत्मा की सन्निधि में पहुंचा जाये !

    *हिन्दू धर्म में स्थूल शरीर को जलाकर ही नष्ट करने का क्या कारण है?* *हमारे द्वारा       खाए हुए अन्न से सूक्ष्म शरीर का क्या सम्बन्ध है? यह गति कैसे करती है?*

हमारा स्थूल शरीर जो इस आँख से दिखाई देता है वह तो मर जाता है किन्तु हमारा सूक्ष्म शरीर नहीं मरता और हमारा मन इसी सूक्ष्म शरीर के माध्यम से एक शरीर से दुसरे शरीर की यात्रा करता रहता है | मन ही हमारे अनेकों जन्मों के संस्कारों का भी वाहक बनता है |

मन की शक्ति अपरम्पार है | आज आप जो कुछ भी हैं इसी मन के कारण | आपके जन्म में प्रत्यक्ष रूप ( परोक्ष रूप में नहीं ) में मन हीं, कारण है | स्वर्ग में जो कायाकल्प के वृक्ष का वर्णन है मनुष्यों के लिए यह मन हीं कायाकल्प के वृक्ष का कार्य करता है | मन नीचे से नीचे पतन की ओर ले जाता है और ऊपर से ऊपर उत्थान की ओर भी हमारा मन हीं, हमें ले जाता है | सुख और दुःख इसी मन से उत्पन्न हैं | तुम जो भी इस स्थूल जगत में सुखद या दुखद देखते हो वह इसी मन के कारण दिखता है |
पूर्व के ऋषियों मनीषियों को इसी मन को शोधन करने की कला आती थी जिसके कारण उनके जीवन में चमत्कार नजर आते थे | वर्तमान में इस मन पर अनेकों अनेक शोध कार्य जारी हैं | वर्तमान में ऐसे ऐसे चमत्कारी गुणों से सम्पन्न लोग भी हमारे सामने उभर कर आते हैं जिनकी मानसिक शक्तियाँ देख कर हम दंग रह जाते हैं |

टेलीपैथी , शरीर में विद्युत् उत्पन्न कर लेना आदि आदि मन की शक्तियों के कारण हीं होते हैं |
कुछ भी हो अंत में ये मन अधिकतर दुःख उत्पन्न करने वाला हीं हैं और स्थाई आनन्द से मानव को वंचित रखता है | इसलिए भारतीय या अन्य सिद्धों ने सार में यही कहा की इस मन का लोप कर दो, जीवन भर आनन्द की अनुभूति करोगे परमात्म सुख तुम्हें प्राप्त होगा और तुम्हारा पुनर्जन्म भी नहीं होगा |

तुम मोक्ष को उपलब्ध होवोगे |

आत्मा के उपर कई आवरण होते हैं | आत्मा के उपर दृश्य आवरण तो हमारा , रक्त मांस मज्जा , अस्थि चमड़े से निर्मित शरीर है | आत्मा के और भी कई आवरण हैं जो अनुभव में आते हैं |
हमारा मन भी आत्मा का आवरण हीं है | इस प्रकार बुद्धि , ज्ञान , आनन्द अहंकार आदि आत्मा के उपर अदृश्य आवरण होते हैं | कई बार हम ये सोचते हैं मैं हूँ यह मैं अहंकार रूपी आवरण है |

सभी का शरीर इन अन्न से बने हुएं हैं इसलिए कहा गया है अन्नं ब्रह्मा | शरीर अन्न से बना हुआ है | अन्न से वीर्य और रज बने होते हैं जिससे इस शरीर का निर्माण होता है |

इस अन्न से बने हुए स्थूल शरीर को अन्नमय कोश कहते हैं |

इस अन्न से बने शरीर का महत्व यह है कि परमात्म अनुभव में इसका अहम भूमिका है |
जिस प्रकार से नारियल के फल में अनेक आवरण होते हैं , ये आवरण कई भाग होते हैं जैसे छिलका , सख्त भाग उसके अंदर नारियल का गूदा और फिर उसके अंदर नारियल का पानी | ठीक उसी तरह ये शरीर जो अन्न से बना है बाहरी छिलका और सख्त खोपडा समझो इसे नारियल का | इसके अंदर फिर मन का कोश है , प्राण का कोश है , विज्ञान का कोश जो की आत्मा है और उस आत्म तत्व की प्राप्ति का आनन्द हीं आनन्दमय कोश है | अगर बाहरी छिलका और सख्त भाग न हो तो नारियल की कल्पना कर सकते हो क्या तुम ठीक उसी तरह शरीर का भी कार्य है |

मृत्यु के बाद तो तुम्हारा शरीर यहीं रह जाता है किन्तु सूक्ष्म शरीर जो अन्नमय शरीर का हीं सूक्ष्म रूप है नष्ट नहीं होता | यह सूक्ष्म शरीर अन्न के उस भाग से बना हुआ है जो अन्न का प्रकाश रूप है |

अन्न के बनने की भी जटिल क्रिया है यह अन्न भी पृथ्वी , प्रकाश ( अग्नि ) , जल , वायु और आकाश से हीं बना हुआ है | सूक्ष्म शरीर में इन्हीं दो तत्वों प्रकाश (अग्नि ) और आकाश की मात्रा प्रबल होती है बाकी तीन तत्वों की मात्रा अत्यंत अत्यंत सूक्ष्म होती है |

इन्हीं सूक्ष्मतम तत्वों के कारण सूक्ष्म शरीर जो मृत शरीर से निकला होता है कभी कभी लोगों को प्रेत रूप में दृश्य हो जाता है और कई बार इनकी आवाज़ भी सुनाई दे जाती है | इन्हीं तत्वों के माध्यम से आत्मा मन के साथ दुसरे शरीर में प्रवेश करता है | सूक्ष्म शरीर का आकार भी स्थूल शरीर के जितना हीं होता है और अदृश्य होता है | बिना साधना के इसे देखा और अनुभव नहीं किया जा सकता |

सनातन धर्म में शरीर को अग्नि में समर्पित करने का कारण है प्रथम तो अग्नि स्थूल शरीर को जला कर नष्ट कर देती है और सूक्ष्म तत्व को मुक्त कर देती है अगली जीवन यात्रा हेतु |

सूक्ष्म शरीर को परिभाषित करना हो तो हम कह सकते हैं कि सूक्ष्म शरीर सूक्ष्तम मन , प्रकाश , आकाश वायु और आत्मा का जोड़ है | फिर भी इस तरह यह पूर्णतया परिभाषित नहीं होता यह अनुभव से हीं समझा जा सकता है |

आत्मा अमर है क्योंकि यह परमात्मा का हीं एक अंश है. साधना में अपने ही आनंद रूप को देखकर मन का अस्तित्व वहां समाप्त हो जाता है.
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