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वास्तु शास्त्र और ब्रम्ह स्थान

किसी भी वास्तु के मध्य स्थान को ब्रम्ह स्थान कहते हैं जो किसी भी वास्तु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है इसे मध्य स्थान या नाभी भी कहते हैं यहीं से सारा सृजन आरंभ होता है सारी सृजन की प्रक्रिया या निर्माण की प्रक्रिया यहीं से आरंभ होती है । ब्रम्ह स्थान वास्तु में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है जैसे बच्चा जब गर्भ में होता है तो उसे सारा पोषण उसकी नाभि से जुड़ी प्लेसेंटा कार्ड से मिलता है ठीक उसी प्रकार पूरे वास्तु को सारा पोषण इसी नाभि या ब्रम्ह स्थान से प्राप्त होता है अतः इस स्थान का सकारात्मक ऊर्जा से आवेशित होना , साफ-सुथरा और पवित्र होना परम आवश्यक है ।
ब्रम्ह स्थान के दोष मुक्त अर्थात पवित्र होने पर व्यक्ति शान्त, शील स्वभाव वाला, ज्ञानवान,तेजयुक्त,शीघ्र और सटीक निर्णय लेने वाला,किसी भी विषय का सभी ओर से चिंतन करने वाला,श्रेष्ठ,उत्साही,उदार चरित्र वाला तथा अपने क्षेत्र या विषय में श्रेष्ठ होता है।

ब्रम्ह स्थान में दोष के लक्षण: इस स्थान में दोष होने पर व्यक्ति सही निर्णय लेने में सक्षम नही होता है उसके कार्य की प्रगति रुक जाती है घर ,आफिस,फैक्ट्री आदि के ब्रम्ह स्थान में दोष होने पर कार्य मे रुकावट आकर गति रुक जाती है बनाई गई योजनाएं शुरू नही हो पाती हैं या शुरू कर लें तो मूर्त रूप नही ले पाती और बीच मे किसी भी कारण के चलते बन्द करनी पड़ती है इस स्थान में दोष होने पर हृदय,नाभि तथा पेट से संबंधित घातक बीमारियां होने की प्रबल संभावना होती है ऐसा शास्त्र का कथन है । ब्रम्ह स्थान का संबंध सृजन से है इसीलिए इस स्थान में दोष होने पर संतान उत्पत्ति में भी बाधा उत्पन्न होने की प्रबल संभावना रहती है।

दोष: शौचालय ,सैप्टी टैंक,गंदे पानी का गड्ढा, पाइप लाइन,सीढ़ियाँ, जूते-चप्पल होना,स्टोर होना,लोहे या लकड़ी आदि का कोई भारी फर्नीचर होना,कोई कॉलम, दीवार या बिम्ब आदि का होना,ऊंचा- नीचा होना, गंदगी होना,शल्य होना आदि होने पर ब्रम्ह स्थान का दोषित होना कहलाता है ।

उपाय: सर्वप्रथम जो दोष है उसे दूर करना चाहिए उसके पश्चात शास्त्र में बताई गई विधि अनुसार विभिन्न विधियों की सहायता से शुद्धिकरण करवाना चाहिए इसके लिए सर्व औषधियों का प्रयोग शास्त्रों में विशेष रूप से बताया गया है फिर शुभ चिन्हों से युक्त मंजूषा या कलश जिसमे ब्रम्ह पद से संबंधित वस्तुएं (जैसे धातु,रत्न,संबंधित जड़ी या औषधियाँ, क्रिस्टल शुभ यंत्र और चिन्ह आदि) होती हैं को विधि अनुसार शुभ मुहूर्त या नक्षत्र में ब्रम्ह स्थान में स्थापित करना चाहिए। यदि संभव हो तो मंजूषा स्थापित करने के पश्चात उसी स्थान पर कमल,खीर,दूध,घी,धानी (लाजा) आदि से हवन करने चाहिए ।

नोट: किसी भी वास्तु का ब्रम्ह स्थान पद विन्यास द्वारा ज्ञात किया जाता है जो नौ पदों से मिलकर बना होता है यह प्लाट के आकार अनुसार ज्ञात किया जाता है ।

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