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चक्रों और ग्रहों के बीच संबंध

चक्रों और ग्रहों के बीच संबंध

|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय|| ||जय गुरू देव|| हम नौ ग्रहों द्वारा शासित है अर्थात सूर्य ,चंद्र ,बृहस्पति ,बुध ,शुक्र , मंगल और शनि दो छाया ग्रहों के साथ अर्थात राहु (उत्तर बिंदु ) और केतु (दक्षिण बिंदु ) | ज्योतिष के दिव्य विज्ञान की मदद से हमारे महान संत और गुरु भविष्य बतानेके लिए विभिन्न तकनीकों का सहारा लेकर और आज की “आधुनिक तकनीकी दुनिया” के मुश्किल दौर से निपटने के लिए उपाय कर के मानवताकी मदद कर रहे है | ज्योतिषी व्यक्ति के जन्म के समय का उपयोग उस समय ग्रहों की स्थिति के आधार पर कुंडली बनाने के लिए करते है |

चक्रों और ग्रहों के बीच संबंध
परंतु यह ग्रह हमें किस प्रकार असर करते है वह ज्योतिष है | ध्यान दें की, हमारे सूक्ष्म शरीर में हमारे पास सूक्ष्म मस्तिष्कमेरु अक्ष है जिसमें जीवन उर्जा के सैट केंद्र भी शामिल हैं जिन्हें चक्र के रूप में भी जाना जाता है , इन केन्द्रों के द्वारा जीवन की उर्जा प्रवाहित होती है इन केन्द्रों को प्लेक्सस के सात जाल भी कहा जाता है |यह उर्जा केंद्र हमारे आध्यात्मिक ,शारीरिक और मानसिक पहलुओं को संतुलित रखने के लिए जिम्मेदार है और हमारे सुक्ष शरीर मे हमारे सात ग्रहों का प्रतिनिधित्व भी करते है |

चक्रों और ग्रहों के बीच संबंध
ये निचे बताए गए अनुसार भौतिक शरीर के संबंध में स्थित है : जड़ चक्र या मूलाधार ( गुदास्थि संबंधी ) रीढ़ के आधार पर स्थित है यह शनि द्वारा शासित है | तत्व पृथ्वी है |चिन्ह : मकर राशि , कुंभ राशि , मूल मंत्र : लाम | २. नाभि चक्र और स्वाधिस्थान ( धार्मिक ),पेट के निचले हिस्से में स्थित है | बृहस्पति द्वारा शासित है | तत्व पानी है | चिन्ह : धनुराशि , मीनराशि ,मूल मंत्र : वाम | ३.सूर्य जाल चक्र या मणिपुर ( कमर संबंधी ) : नाभि के ऊपर के भाग में स्थित है | यह मंगल द्वारा शासित है | तत्व अग्नि है | चिन्ह : मेष राशि ,वृश्चिक राशि| मूल मंत्र : राम | ४. ह्रदय चक्र या अनाहत (पृष्ठीय) : छाती के बिच भाग में स्थित | शुक्र के द्वारा शासित | तत्व हवा है | चिन्ह : वृषभ ,तुला , मूल मंत्र : याम |

चक्रों और ग्रहों के बीच संबंध
५. गला चक्र या विशुद्ध ( गर्दन संबंधी ) : गले में स्थित | यह बुध के द्वारा शासित है |तत्व आकाश है | चिन्ह : मिथुन राशि , कन्या राशि , मूल मंत्र : हम | ६. तीसरा नेत्र चक्र या अजना ( दिमागी ): कपाल के मध्य भाग में स्थित है | यह चंद्र और सूर्य द्वारा शासित है | तत्व महातत्व है | चिन्ह : कर्क राशि , सिंह राशि , मूल मंत्र : ओम | ७. मुकुट चक्र या सहस्वर ( मस्तिष्क ) | सर के उपरी हिस्से पर स्थित | यह आत्मज्ञान और आध्यात्मिक संबंधता के साथ हमारे उच्च स्व को जोड़ता है और इसे “ हजार पंखुड़ियोंवाला कमल “ भी कहते है | मूल मंत्र : शांति ( गहरी ध्यानस्थ अवस्था )

चक्रों और ग्रहों के बीच संबंध
हमारे प्राचीन शाश्त्रों में कई संदर्भ है जिनमें चक्रों को ग्रहों के प्रतिनिधि कहा गया है और और सही तरीकों को अपनाकर हानिकारक ग्रहों के प्रभाव को कम करता है |श्रीमद् भगवद गीता में भी श्री कृष्ण अपने शिष्य अर्जुन को समजते है की सही योग साधना और पूरी तरह से जीवन चक्र के बिच में एक शक्ति प्राप्त करके भगवान को प्राप्त किया हा सकता है | कविं पुराणमनुशासितार मणोरणीयांसमनुस्मरेद्य: | सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप मादित्यवर्णं तमस: परस्तात् || 9|| प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव | भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् || 10||

चक्रों और ग्रहों के बीच संबंध
योगानंद परमहंस द्वारा उनकी पुस्तक में अनुवाद भगवन अर्जुन के साथ वार्तालाप करते है | मृत्यु के समय योगी परम पवित्र इश्वर के पास पहुँचता है और प्रेम के साथ तथा योग की शक्ति से वह भौं के बिच अपनी जीवन शक्ति को पूरी तरह से प्रवेश करता है ( अजन चक्र ) तथा वह अपने मन को वह होने पर अटूट रूप से लगता है जो अँधेरे के सभी भ्रम से परे , सूर्य की तरह चमकता ,वह जसका रूप अकल्पनीय है ,सबसे अच्छे परमाणु की तुलना में सूक्ष्म है ,सभी का समर्थक , महान शासक , शाश्वत और सर्वग्न ( प्रकरण -८ पंक्ति ९ & १० ) श्रीमद् भगवद गीता में श्री कृष्ण ने मुक्ति ( मोक्ष ) को प्राप्त करने के मार्ग का उल्लेख किया है | उन्होंने चक्रों का भी उल्लेख किया है | ( प्रकरण -८ पंक्ति २३ – २६ )| में यह पंक्तियों पर अलग से लेख जल्द ही लिखूँगा |

चक्रों और ग्रहों के बीच संबंध
क्यों कुछ ग्रह स्वयं भू होते है और जातक की कुंडली में लाभ देते है | एक बच्चा उस दिन और उस समय किरणें तथा उस घंटे पैदा होता है जब आकाशीय किरणें व्यक्तिगत कर्म के साथ गाणितिक सामंजस्य में होती है | एक योगी की आत्मकथा में उसकी कुडली को एक चुनौतीपूर्ण चित्र जो उसके अपरिवर्तनशील अतीत और उसके संभवित भविष्य के परिणामों के रूप में दर्शाया है | यह अक्सर कहा जाता है की हमारी जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति हमारे पिछले जीवन के कर्म के कारन है , प्रकृति के उल्लेख योग्य कानूनों के रूप में है “ आप जैसा बोते है वैसा ही काटेंगे ”| पुरुषार्थ या लाभकारी पद पिछले जीवन कर्म के कारन है |ज्योतिषीय कुंडली न केवल ग्रहों के आपसी संबंध, बल्कि चक्रों के परस्पर संबंध और स्थितियों का विस्तृत गाइड मेप है |ग्रहों के पास कोई करुणा या शत्रुता नहीं है | वे केवल हमारे सूक्ष्म शरीर में रखे गए चक्रों द्वारा प्राप्त सकारात्मक और नकारात्मक ब्रह्मांडीय विकिरणों का उत्सर्जन करते हैं |

चक्रों और ग्रहों के बीच संबंध
यह संभवित है की कर्म वास्तवम में अन्तरिक्ष के सटीक बिंदुओं में संग्रहित न हो लेकिन बीएस इस चक्र स्थान के भीतर प्रतिध्वनि या अभिव्यक्ति को सबसे ज्यादा मात्र में पते है | ग्रह अप्रत्यक्ष ढंग से कम नहीं करते यदि किसी में शनिदोष है तो उसके लिए शनि केवल नकारात्मक ब्रह्मांडीय विकीर्ण भेजेगा और एक अन्य व्यक्ति जो कि शनि शान लाभ कर रहा है , तो शनि लाभ ब्रह्मांडीय विकीर्ण भेजेगा | ग्रह एक ही ब्रह्मांडीय विकीर्ण जरी करते हैं लेकिन यह हमारा चक्र है जो रिसीवर के रूप में कम कर रहा है और ग्रहों से उपयुक्त तरीके से ब्रह्मांडीय विकीर्ण प्राप्त नहीं कर रहा है | उदाहरण : सीधा प्रसारण उपग्रह डी बी एस ( DBS )हमारी छत पर रखे डिश एंटीना के लिए संकेत भेजते है इसलिए अब प्राप्त संकेतों की गुणवत्ता हमारे डिश एंटीना अभिविन्यास और स्थितियों पर निर्भर करती है | यदि डिश का अभिविन्यास सही नहीं है तो हम सिग्नल की खराब गुणवत्ता के लिए डी बी एस (DBS ) को दोष नहीं दे सकते |

चक्रों और ग्रहों के बीच संबंध
पिछले कर्म के कर्ण या किसी अन्य कर्ण से किसी का मूलाधार चक्र अवरुद्ध हो सकता है ,इसलिए व्यक्ति को शनि की पूर्ण ब्रह्मांडीय शक्ति नहीं मिल रही है और शनि के अनियमित ब्रह्मांडीय विकीर्ण प्राप्त हो रहे है ,जिसके परिणामस्वरूप उसे शनि संबंधित समस्याओ का सामना करना पड सकता है | अब ज्योतिष की मदद से और व्यक्ति अपने जीवन में जो समस्याओ का सामना कर रहा है उन्हें देखकर , हम आसनी से एक कुंडली में हानिकारक और लाभकारी ग्रह का पता लगा सकते है |इसके बाद हम जाँच क्र सकते है कि कौन सा चक्र संतुलित / कम सक्रिय या अति सक्रिय है क्योकि प्रत्येक चक्र संबंधित ग्रह के लौकिक विकिरण को अवशोषित /प्रतिबिंबित करता है |

चक्रों और ग्रहों के बीच संबंध
विभिन्न तकनीकें हैं जिनमें चक्र ध्यान मंत्र ,ध्यान योग , क्रिया योग , और कुछ अन्य का उपयोग चक्र को साफ करने , ठीक करने ,संतुलित करने या खोलने के लिए किया जाता है |यह एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति पर निर्भर करता है कि कौनसी तकनीक व्यक्ति के लिए उपयोगी है | (नेटल चार्ट क्व अनुसार और कौनसा चक्र शामिल है उसके अनुसार )विभिन्न ज्योतिषियों द्वारा सुझाए गे कई उपाय है जीसे कि हानिकारक राहु के लिए शरीर के वजन के बराबर नदी में कोयला फेंक सकते है या शनि महाराज के लिए तेल अभिषेक कर सकते है | यह कुछ लोगों के लिए कम कर सकता है और मैं इसके खिलाफ नहीं हूँ क्योकि लोग इन्हें सदियों से करते रहें है |तार्किक रूप से मजे कोयले और राहु के बिच कोई संबंध नहीं दिखता |

चक्रों और ग्रहों के बीच संबंध
समस्याएँ जो हमारे कार्य करने या न करने से बनती है इसलिए उनका समाधान भी हमारे भीतर होगा |यदि कोई उपचार के रूप में इस चक्र तकनीक का विकल्प चुन सकता है तो कोई नुकसान नहीं है |आगे सही तरीके से किया जाए तो ये चक्र तकनीक बहुत प्रभावी है और परिणाम बहुत कम समय में दिखाई देंगे और इन सबसे ऊपर आप अपने शारीर और आत्मा के लिए कुछ अच्छा कर रहें है |इन तकनीकों का उपयोग हमारे पुराने युग के योगी और ऋषि आध्यात्मिकज्ञान के लिए करते थे |सबसे ऊपर तो कभी भी सच्चे मन से इश्वर को प्रार्थना करना न भलें क्योंकि य्ह्केव्ल परमात्मा है जो हमें पिछले कर्मों के हमारे बोज से मुक्त क्र सकते है |

चक्रों और ग्रहों के बीच संबंध
अंत में मैं योगानंद परमहंसजी की “ योगी की प्रसिध आत्मकथा” के अंश को जोड़ना चाहूँगा :१.कभी कभी मैंने ज्योतिषियों को ग्रोहों के संकेतों के अनुसार मेरे सबसे खराब समय का चयन करने के लिए कहा था और फिर भी मैंने खुद को जो भी कार्य करना निर्धारित किया था उसे पूरा करूँगा |यह सच है कि इसे समय मेरी सफलता असाधारण कठिनाइयों के साथ रही है लेकिन मेरा विश्वास हमेशा उचित रहा है |ईश्वरीय सुरक्षा में विश्वास और मनुष्य के इश्वर द्वारा दी गए हौसले का सही इस्तेमाल किसी भी उलटे बुल से बढ़ कर है | २. पिछले कर्म के बिज अंकुरित नहीं हो सकते यदि वे ज्ञान की दिव्य आग में भुने गए है | अपने अगले लेख में मैं कुछ व्यक्ति अभ्यास करूँगा जो कि चक्र ध्यान तनिक के बारे में बताएँगे जो विशेषज्ञों की सहायता के बिना पढ़ें जा सकते है | भगवन कृष्ण प्रत्येक आत्मा को शांति , ज्ञान और दिव्य प्रेम का आशीर्वाद दे |

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