।।ॐ श्री परमात्मने नमः।।
धर्म के चार चरणों मे दान का विशेष महत्व है।
अध्यात्म के अनुसार साधनाकाल में दान ही श्रेष्ठ हैं।
दान संसार को त्यागने की उद्धत करता है।
दान में अमीर गरीब का अंतर नहीं देखा जा सकता।
बड़े बड़े राजा महाराजाओं ने भी भोग विलास एवम अपने वैभव का त्याग किया।
दान आवागमन से मुक्ति की ऒर पहला कदम है।
दान प्रत्येक दशा में कल्याणकारी है।
जिस किसी प्रकार दान किया जाए वह कल्याण की ओर अग्रसर करता है।
बहुत से लोग दान दूसरों की भलाई के लिए करते हैं।
आध्यात्मिक दान योगी के क्षेत्र की वस्तु।
सबसे बड़ा दान विद्या दान है।
विद्या वह है जो व्यक्ति को आवागमन से छुटकारा दिला दे।
सा विद्या या विमुक्तये।
गीता के अध्याय-17 में तीन प्रकार के दान बताया है सात्विक,राजस एवं तामस
सात्विक दान के अंतर्गत वो दान आता है जो सत्पात्र के प्राप्त होने पर, बदले में उपकार की भावना से रहित होकर दिया जाता है।
प्रत्युपकार की भावना से जो दान दिया जाता है वह राजसी दान है।
विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें-यथार्थ गीता