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किसी ने कहा धर्म छुट्टी पर है…

जब अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों पर इतरा कर स्वयं को ब्रह्माण्ड का नियंता समझने वाले लोग एक नन्हे विषाणु से पराजित हो जाँय, तो धर्म चुपचाप मुस्कुरा रहा होता है।
 जब मनुष्य के बड़े-बड़े दावों के नाक के नीचे स्थितियां इतनी विकट हो जाँय कि संक्रमण के भय से पिता अपने पुत्र का शव लेने से इनकार कर दे(अमेरिका), तो धर्म चुपचाप मुस्कुरा रहा होता है।
वे लोग, जिन्हें लगता है कि पृथ्वी पर विज्ञान पहली बार इतना सशक्त हुआ है, वे भावुक हैं तार्किक नहीं। अरबों वर्ष पुरानी पृथ्वी पर मानवीय सभ्यता का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है। इन लाखों वर्षों में असँख्य बार सभ्यताएँ उपजीं, विकाश के चरम पर पहुँची, विज्ञान ने अंतिम ऊंचाई को स्पर्श किया, और फिर सभ्यताएँ समाप्त हो गईं। हर उत्थान का अंतिम पड़ाव पतन होता है, और हर पतन का अगला पड़ाव उत्थान... 
अपने वैज्ञानिक उत्थान के मद में चूर हो कर धर्म को भूल चुकी सभ्यताएँ जब प्रकृति के साथ अत्याचार करती हैं, तो उनका विकास ही उन्हें मार डालता है। फिर वही धर्म उन्हें पुनर्जन्म देता है। व्यक्ति हो या सभ्यता, पराजय के बाद उसे धर्म की गोद में ही शरण मिलती है।
 दिक्कत यह है कि हमने सम्प्रदायों को ही धर्म मानना शुरू कर दिया है।
बहुत पीछे नहीं, मात्र पाँच हजार वर्ष पीछे जाइये। सिन्धु से ले कर नील तक, दजला-फ़रात से ले कर दक्षिण समुद्र तक, हर सभ्यता के पास धर्म था। सब प्रकृति की सुनते थे, और प्रकृति को ही पूजते भी थे। ऊर्जा देने वाले सूर्य, जल देने वाले इन्द्र, वायु के देवता पवन, अलग अलग नामों से ये ही सबके आराध्य थे। सब प्रकृति की सुनते थे, सब प्रकृति को पूजते थे।
फिर मनुष्य शक्तिशाली हुआ, और उसने व्यवस्था के केंद्र से प्रकृति को हटा कर स्वयं को स्थापित करने का प्रयास किया। बुद्ध आये, महाबीर आये, जीजस आये, जरथरुस्थ आये... सबने अपनी-अपनी ब्याख्या दी। व्यवस्था के केंद्र से प्रकृति हट गई, व्यक्ति आ गया। हमने व्यक्तियों द्वारा चलाये गए सम्प्रदाय को ही धर्म मान लिया। धर्म मुस्कुराता रहा, क्योंकि उसे पता है कि अंत में सब उसी के पास जाएंगे।
भारत इस मामले में तनिक अलग है। सनातन की गोद में भी असँख्य सम्प्रदाय उभरे, पर धर्म से नाता नहीं टूटा। प्रकृति से दूरी नहीं बनी। सारे सम्प्रदायों को अपनी गोद में रख कर भी सनातन प्रकृति का हाथ पकड़े रहा...
 धर्म कहीं नहीं गया। धर्म नहीं होता तो चिकित्सक अपने प्राणों को संकट में डाल कर रोगियों का उपचार नहीं कर रहे होते। धर्म नहीं होता तो भारत के हजारों लाखों युवक स्वयं आगे बढ़ कर भूखों तक अन्न नहीं पहुँचा रहे होते। धर्म नहीं होता तो पुलिस मौत के जमात में घुस कर रोगियों को अस्पताल तक नहीं पहुँचा रही होती। धर्म है, तभी मनुष्य कोरोना से लड़ पा रहा है।
 धर्म ड्यूटी कर रहा है। अधर्म कितना भी राह में रोड़ा अटकाए, धर्म कोरोना को पराजित कर के ही मानेगा। हमारी चेतना पर प्रकृति द्वार जड़ दिए गए ताले में जी जीवन मुस्कुराएगा, धर्म मुस्कुराएगा। क्योंकि अंत में जीत.....

      

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