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गीता के प्रमुख वचन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो बताया था वह 10 प्रमुख ज्ञान स्पष्ट है
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(1) मैं सब प्राणियों के हृदय में हर समय रहता हूं
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(2) जो यात्रा मृत्यु पर समाप्त हो जाए वह तो शरीर की यात्रा है आत्मा तो इससे भी आगे जाता है और उसकी यात्रा तो अनंत है

(3) ना मुझे कोई प्रिय है ना मुझे कोई अप्रिय यानी मैं सबके लिए समान हूं परंतु जो मुझे भजते हैं मैं उन्हीं की रक्षा करता हूं

(4) कर्म निरंतर करते रहो फल के विषय में कभी मत सोचो यदि सोचोगे तो कर्म में आसक्ति हो जाएगी और तुम्हारा कर्म बिगड़ जाएगा केवल कर्म ही तुम्हारे हाथ में है फल तुम्हारे हाथ में नहीं है

(5) जब संसार में अधर्म की वृद्धि और धर्म की हानि होती है तब मैं साधु पुरुषों की रक्षा के लिए धरती पर अवतरित होता हूं और अधर्म का नाश करता हूं

(6) हवा पानी अग्नि पृथ्वी आकाश शब्द रूप प्रकाश गंध रसना त्वचा मन बुद्धि अहंकार चित्त सूर्य चंद्रमा तारे ग्रह संपूर्ण ब्रह्मांड चेतन और चेतना धड़कन ह्रदय श्वास आंख कान वाणी समस्त जीव माया अविनाशी बीज यह सब मैं ही हूं मेरे से अलग कुछ भी नहीं है यानी मैं ही सब कुछ हूं सब कुछ

(7) बिना मोह के कर्म करना ही कर्मयोग है धर्म का पालन करना जरूरी है अर्थात कर्म ऐसे करो जिससे तुम्हारा मन उस कर्म से अलग रहे पर वह कार्य सही सही हो यानी उस कर्म से मोह ना हो

(8) आत्मा अमर है इसे कोई भी शस्त्र आग जल वायु इसे नष्ट नहीं कर सकता और आत्मा किसी को मार भी नहीं सकता और यह किसी के द्वारा मर नहीं सकती

(9) आत्मा अजन्मा है अविनाशी है नित्य है शाश्वत है पुरातन है दिव्य है और यह अखंड है यानी यह अनादि है अनंत है

(10) संपूर्ण धर्मों को छोड़कर केवल मेरी ही शरण में आ जाओ मैं समस्त पापों से तुम्हें मुक्त कर दूंगा

  श्रीमद्भागवत गीता के प्रमुख श्लोक का अर्थ 

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