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जीवन का आधार – गीता सार

  • योग में मन क्यों भटकता हैं?*

भगवान अर्जुन से कहते हैं – हे अर्जुन, अंतर आत्मा में चित्त का निरोध करके, ध्यानास्थ होकर कर्मो को मुझमें अर्पण करके आशा, ममता और संताप रहित हो करके युद्ध करो।

कभी-कभी महसूस होता हैं कि भगवान बार-बार अर्जुन को कहते हैं कि युद्ध करो, तुम इन सबको मारो ऐसा क्यों कहते हैं? अगर जीवन के संघर्ष कि बात हैं तो फिर उनको युद्ध करने के लिए बार-बार क्यों कहते हैं? ये क्यों नहीं कहते हैं कि संघर्ष करो और जीवन के संघर्ष में तुम बाहर आ जाओ? यहां “मारो इन सबको” अर्थात छोड़ो इन सबको। उसका अर्थ ये नहीं हैं कि कोई तीर-कमान चलाना हैं। तुम्हारा ये मोह जो बार-बार जागृत हो रहा हैं उसे छोड़ो और इसलिए भगवान कहते हैं कि चित्त का निरोध करके, ध्यानस्थ होकर कर्मो को मुझमें अर्पण करके आशा, ममता और संताप रहित हो करके युद्ध करो। व्यावहारिक स्तर पर जब हम आते हैं तो व्यावहारिक स्तर पर आशा भी जागृत होती हैं, ममता भी होती हैं, संताप भी होते हैं। इसलिए कर्मो को मुझमें अर्पण करके युद्ध करो।

आगे भगवान कहते हैं – वास्तव में जब ध्यान करने बैठते हैं तभी युद्ध का सही स्वरूप खड़ा होता हैं। अक्सर हर किसी कि शिकायत होती हैं कि जब भी ध्यान में बैठते हैं तो मन भटक जाता हैं , मन एकाग्र नहीं होता? परन्तु कभी यह जानने का प्रयास किया कि मन भटक जाता हैं तो कहां जाता हैं? मनुष्य का मन हमेशा कोई ना कोई इन्द्रियों के पीछे ही जाता हैं। मन बहुत चंचल हैं, जो बात सुनी, कोई बात कही या आंखो द्वारा देखी तो ध्यान में बैठते समय वो बात याद आती हैं। मन उसी के पीछे चला जाता हैं और उसी के बारे में सोचने लगता हैं।

मनुष्य का मन जब ध्यान करने बैठते हैं उस समय अगर भाग जाता हैं तो हमेशा कोई ना कोई इन्द्रियों कि चंचलता के पीछे ही जाता हैं। इसलिए भगवान कहते हैं – वास्तव में जब ध्यान करते हैं तभी युद्ध का एक सही स्वरूप खड़ा होता हैं। एक संघर्ष चालू हो जाता हैं और उसी समय काम, क्रोध, राग, द्वेष, आशा, तृष्णा आदी विकार बाधा के रूप में भयंकर आक्रमण करते हैं। इनको मिटाते हुए अंतर आत्मा में सिमटते जाना और ध्यानस्थ होते जाना ही यथार्थ युद्ध हैं।

भगवान ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह कोई हिंसक युद्ध नहीं हैं, अहिंसक युद्ध हैं। जो दोष दृष्टि रहित हो करके श्रद्धा के साथ इस युद्ध में रहता हैं वो कर्मो के बंधन से छूट जाता हैं।

अनेक प्रकार से दोष, दृष्टि के द्वारा अंदर चले जाते हैं। अनेकों के दोष को देखते हुए फिर युद्ध शुरू होता हैं। एक संघर्ष चालू होता हैं और उस संघर्ष में अगर गलत मार्ग अपना लिया, लोगो के दोष को देखते हुए व्यवहार में आने लगते हैं तो हमारा कर्मो का बंधन शुरू हो जाता हैं। भगवान इतनी सुन्दर जीवन जीने की कला हमे सीखाते हैं।

योग (ध्यान) आत्मा के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना श्वांस लेना शरीर के लिए। योग आत्मा की श्वांस (यानि जीवन) है।

👉 आज से हम नियमित रूप से योग करें और आत्मा को अपनी श्वांसो से वंचित न रखें…

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